कच्ची उम्र की लज़्ज़त new hindi sex story 2017

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rajkumari
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Re: कच्ची उम्र की लज़्ज़त new hindi sex story 2017

Unread post by rajkumari » 23 Oct 2017 14:35

ड्राइंग रूम में सड़क से थोड़ी सी स्ट्रीट लाइट आ रही थी और वहाँ बैडरूम के जैसा घुप्प अन्धेरा नहीं था।
नीम अँधेरे में रिंकी मेरी बाहों में छटपटा रही थी- मैं नहीं… मैं नहीं… मौसी उठ जायेगी… मैं बदनाम हो जाऊँगी, आप मुझे कहीं का नहीं छोड़ोगे!
ऐसे ऊटपटाँग बोल रही थी।
बाहर आते ही मैंने अपने बैडरूम का दरवाज़ा और बच्चों के कमरे का दरवाज़ा बाहर से लॉक किया और रिंकी को बताया कि मौसी नहीं उठेंगी क्योंकि मौसी आज नींद में नहीं नशे में है।
फिर मैंने उसको नींद की गोलियों वाली बात बताई तो रिंकी आश्वस्त हुई।
मैंने रिंकी को बाहों में लेकर उसके तपते होठों पर होंठ रख दिए। अब रिंकी भी दुगने जोशो-खरोश से मेरा साथ देने लगी। मैं रिंकी का निचला होंठ चूस रहा था और रिंकी मेरा ऊपर वाला होंठ चूस रही थी।
कभी मैं रिंकी की जुबान अपने मुंह में पा कर चूसता और कभी मेरी जीभ रिंकी के मुंह के अंदर प्रिय के दांत गिनती।
मेरे दोनों हाथ रिंकी के जिस्म की चोटियों और घाटियों का जायज़ा ले रहे थे, रिंकी का एक हाथ मेरे लिंग के साथ अठखेलियां कर रहा था और दूसरा हाथ मेरी गर्दन के साथ लिपटा था और रिंकी खुद मेरे साथ लिपटी हुई पूरी हवा में झूल रही थी।
ऐसे ही रिंकी को अपने साथ लिपटाये लिपटाये चलते हुये मैंने ड्राइंग रूम में बिछे दीवान के पास उस को खड़ा कर दिया और खुद रिंकी का नाईट सूट उतारने लगा।
रिंकी ने रस्मी सा प्रतिरोध किया तो सही पर मैं माना ही नहीं… पलों में मैंने रिंकी के नाईट सूट के साथ साथ नीचे पहनी इनर भी उतार दी और अगले ही पल मैंने अपने कपड़ों को भी तिलांजलि दे दी और रिंकी की ओर मुड़ा।
वस्त्रविहीन खड़ी रिंकी कभी अपनी नग्नता छुपाने की, कभी दिखाने की कोशिश करती, कोई खजुराहो का दिलकश मुज्जस्मा लग रही थी। रिंकी के अनावृत दो उरोज़ और उन पर तन कर खड़े दो निप्पल जैसे पूरे संसार को चुनौती दे रहे थे कि ‘है कोई… जो हमें झुका सके?’
मेरा मन भावनाओं से भर आया, मैंने रिंकी को जोर से अपने आलिंगन में कस लिया और बदले में रिंकी ने दुगने जोर से मुझे अपने आलिंगन में कस लिया।
रिंकी के दोनों उरोज़ मेरे सीने में धँसे हुए से थे। मैं रिंकी के दिल की धड़कनें साफ़ साफ़ अपने सीने में धड़कती महसूस कर रहा था। वक़्त का पहिया चलते-चलते अचानक थम सा गया था, उस वक़्त मैं… सिर्फ मैं था, ना कोई पति… ना पिता, सिर्फ मैं!
मेरी दोनों बाजुयें सख़्ती से रिंकी को लपेटे हुए रिंकी की पीठ पर जमी थीं। मैं अपना एक हाथ रिंकी की पीठ पर ऊपर नीचे फिरा रहा था कंधों से लेकर नितंबों के नीचे तक!
कभी कभी मेरी उंगलियां नितंबों की दरार के साथ साथ नीचे… गहरे नीचे उतर जाती, बिल्कुल योनि-द्वार तक!
रिंकी की योनि से कामरस का अविरल प्रवाह जारी था जिससे मेरा हाथ सना जा रहा था लेकिन उस अलौकिक आनन्द को पाते रहने में मुझे रिंकी की योनि-द्वार तक अपने हाथों की गर्दिश कयामत के दिन तक मंज़ूर थी।
थोड़ी देर बाद मैंने बहुत प्यार से रिंकी को आलिंगन में लिए लिए, दीवान पर लेटा दिया और रिंकी के निप्पलों को अपने मुंह में लेकर कर खुद रिंकी के ऊपर झुक सा गया, उसके मुंह से सिसकारियां अपने चरम पर थी।
अचानक रिंकी ने अपना एक हाथ नीचे कर के मेरा लिंग अपने हाथ थाम लिया और जोर जोर से अपनी ओर खींचने लगी।
आज़माइश की घड़ी पास आती जा रही थी, बतौर प्रेमी, मेरे कौशल का इम्तिहान बहुत सख़्त था, मुझे ना सिर्फ बिना कोई हल्ला किये एक सफल अभिसार करना था, बल्कि अपनी कँवारी प्रेमिका को बिना कोई ठेस लगाए अपने प्यार का एहसास भी करवाना था।
बगल वाले कमरे में मेरी पत्नी सो रही थी और किसी किस्म का हल्ला-गुल्ला उसकी नींद उचाट कर सकता था।
काम मुश्किल था… पर मुझे करना ही था… हर हाल में करना था और अभी करना था।
मैंने रिंकी को जरा सा सीधा किया और घुटनों के बल बैठ कर रिंकी की दोनों टांगों के बीच में आ गया, अपना लिंग मैंने अपने दाएं हाथ में लेकर रिंकी की योनि की दरार पर रख कर थोड़ा अंदर की ओर दबाते हुए ऊपर नीचे फिराना शुरू कर दिया। रिंकी के मुंह से आहें, कराहें क्रमशः तेज़ और ऊँची होती जा रही थी और उसके शरीर में रह रह कर उत्तेजना की लहरें उठ रही थी।
जैसे ही मेरे लिंग का शिश्नमुंड रिंकी की योनि की दरार के ऊपर भगनासा को दबाता, रिंकी के शरीर में मदन-तरंग उठती जिसका कम्पन मैं स्पष्टत: महसूस कर रहा था।
रिंकी की योनि से कामरस अविरल बह रहा था, रिंकी रह-रह कर मुझे अपने ऊपर खींच रही थी जिससे यह बात साफ़ थी कि गर्म लोहे पर चोट करने का वक़्त आ गया था पर मैं कोई रिस्क नहीं ले सकता था।
अचानक मेरे लिंग का शिश्नमुंड रिंकी की योनि के मध्य भाग से जरा सा नीचे जैसे किसी नीची सी जगह में अटक गया और तभी रिंकी के शरीर में भी जोर से इक झुरझुरी सी उठी, जन्नत का मेहमान जन्नत की दहलीज़ पर ख़डा था, मैंने अपना लिंग रिंकी की योनि में वहीं टिका छोड़ दिया और ख़ुद रिंकी के ऊपर सीधा लेट गया।
मैंने रिंकी का निचला होंठ अपने होंठों में लिया और हौले हौले उस को चुभलाने लगा। रिंकी ने प्रतिक्रिया स्वरूप अपनी दोनों टांगें हवा में उठाईं और मेरी क़मर पर कैंची सी मार कर अपने पैरों से मेरी क़मर नीचे की ओर दबाने लगी।
अभी मेरा शिश्नमुंड भी पूरा रिंकी की योनि के अंदर नहीं गया था और लड़की मेरे लिंग को और अपनी योनि के अंदर लेने को उतावली हो रही थी।
मैंने अपने लिंग पर हल्का सा दबाव बढ़ाया, अब मेरे लिंग का शिश्नमुंड पूरा रिंकी की योनि के अंदर था।
‘आ… ई…ई…ई… ई…ई…ईईईई!!!’ रिंकी के मुंह से आनन्द स्वरूप निकल रही सीत्कारों में पीड़ा का जरा सा समावेश हो गया। मुझे इस का पहले से ही अंदाज़ा था, मैंने फ़ौरन अपने लिंग पर दबाब डालना बंद कर दिया और यहीं से शिश्नमुंड वापिस खींच कर हौले से रिंकी की योनि में वापिस यही तक दोबारा ले जा कर फिर वापिस खींच लिया।
ऐसा मैंने तीन चार बार किया, रिंकी पर इसकी तत्काल प्रतिक्रिया हुई, पांचवी बार जैसे ही मैंने अपना लिंग रिंकी की योनि से बाहर निकाला, रिंकी ने मेरी पीठ पर अपनी टांगों की कैंची तत्काल पूरी ताक़त से अपनी ओर खींची, परिणाम स्वरूप मैं भी रिंकी की ओर जोर से खिंचा और मेरा लिंग भी रिंकी की योनि में ढाई से तीन इंच और गहरा चला गया।
‘सी…ई…ई…ई… आह…!’ रिंकी के मुख से आनन्द और पीड़ा भरी मिली-जुली सिस्कारी निकल गई।

रिंकी की योनि एकदम कसी हुई और अंदर से जैसे धधक रही थी, मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरा लिंग जैसे किसी नर्म गर्म संडासी में फंसा हुआ हो। ऐसा लगता था कि योनि की उष्मा शनैः शनैः मेरे लिंग को पिंघला कर ही मानेगी तो विरोध स्वरूप मेरा लिंग भी बृहत्तर से बृहत्तर आकार लेने लगा।
योनि और लिंग के स्राव मिल कर खूब चिकनाहट पैदा कर रहे थे और योनि में लिंग का आवागमन थोड़ा सा सुगम होता जा रहा था लेकिन अभी मैं अपने लिंग को रिंकी की योनि के और ज्यादा अंदर प्रवेश करवाने से परहेज़ कर रहा था, आराम-आराम से अपने लिंग को रिंकी की योनि से बाहर खींच कर, फिर जहां था वहीं तक दोबारा ठेल रहा था।
अब रिंकी भी इस रिदम का लुत्फ़ अपने नितम्ब उठा-उठा कर ले रही थी, ऐसे करते करते दस मिनट हो चुके थे और रिंकी आँखें बंद कर के अभिसार का सम्पूर्ण आनन्द ले रही थी, लेकिन अभी कहानी आधी ही हुई थी, समय आ गया था कि इस अभिसार को सम्पूर्णता की ओर अग्रसर किया जाए।
प्रेमपूर्वक किये जा रहे अभिसार का सबसे मुश्किल क्षण आने को था, यह वो क्षण होता है जब एक पुरुष, पूर्ण-पुरुष की उपाधि पाता है और एक स्त्री, सुहागिन की पदवी पाती है। इसी क्षण से आगे चल कर स्त्री, एक जननी बनती है, एक माँ बनती है और एक नई सृष्टि रचती है।
इस पल में पुरुष अपनी प्रेयसी के साथ प्यार के साथ साथ थोड़ी सी क्रूरता से पेश आता है, वही क्रूरता दिखाने का पल आ पहुंचा था। मैंने रिंकी के बाएं उरोज़ के निप्पल को मुंह में लिया और उसे चुभलाने लगा, रिंकी के गर्म शरीर का उत्ताप फिर से बढ़ने लगा और उन्माद में रिंकी बिस्तर पर जल बिन मछली की तरह तड़पने लगी।
मैंने रिंकी का सर अपने दोनों हाथों से दाएं-बाएं से दबा कर, रिंकी के उरोज़ के निप्पल से मुंह उठाया और रिंकी के दोनों होठों को अपने होठों में दबा लिया और लगा चूसने!
अगले ही पल मैंने अपना लिंग रिंकी की योनि से बाहर निकाल कर पूरी शक्ति से वापिस रिंकी की योनि में उतार दिया। अगर मैंने रिंकी के दोनों होंठ अपने होंठों से बंद नहीं कर दिए होते तो यकीनन रिंकी की चीख सड़क के परले सिरे तक सुनाई दी होती।
तत्काल रिंकी के दोनों हाथों ने दीवान की चादर पकड़ कर गुच्छा-मुच्छा कर डाली और अपने पैरों से मुझे पर धकेलने की असफल कोशिश करने लगी। रिंकी की आँखों से आंसुओं की धारें फ़ूट पड़ी पर अब तो जो होना था सो हो चुका था।
अब रिंकी कुंवारी नहीं रही थी।
मैं रिंकी के ऊपर औंधा पड़ा धीरे धीरे रिंकी के सर को सहला रहा था, उसके आंसू अपने होंठों से बीन रहा था।
धीरे-धीरे रिंकी का रोना कम होता गया और मैंने हौले हौले अपनी क़मर को हरकत देना प्रारंभ किया, चार-छह धक्कों के बाद, अचानक रिंकी के शरीर में वही जानी पहचानी कम्पन की लहर उठी।
दो पल बाद ही रिंकी का शरीर इस रिदम का जवाब देने लगा। लिंग को रिंकी की योनि से बाहर खींचने की क्रिया के साथ साथ ही रिंकी अपने नितम्ब नीचे को खींच लेती और जैसे ही लिंग योनि में दोबारा प्रवेश पाने को होता तो रिंकी शक्ति के साथ अपने नितंब ऊपर को करती, परिणाम स्वरूप एक ठप्प की आवाज के साथ मेरा लिंग रिंकी की योनि के अंतिम छोर तक जाता।
रिंकी के मुख से ‘आह…आई… ओह… मर गई… हा… उफ़… उम्म्ह… अहह… हय… याह… हाय… सी… ई…ई’ की आधी-अधूरी सी मज़े वाली सिसकारियां अविरल निकल रही थी और मैं बेसाख्ता रिंकी को यहाँ-वहाँ चूम रहा था, चाट रहा था माथे पर, आँखों पर, गालों पर, नाक पर, गर्दन पर, गर्दन के नीचे, कंधो पर, उरोजों पर, निप्पलों पर, उरोजों के बीच की जगह पर!
हमारा अभिसार अपनी अधिकतम गति पर था, अचानक रिंकी का शरीर अकड़ने लगा, रिंकी ने अपने दांत मेरे बाएं कंधे पर गड़ा दिए, मेरी पीठ पर रिंकी के तीखे नाख़ून पच्चीकारी करने की कोशिश करने लगे।
ये लक्षण मेरे जाने पहचाने थे, मैं तत्काल अपनी कोहनियों के बल हुआ और रिंकी के दोनों हाथ अपने हाथों में जकड़ कर बिस्तर पर लगा दिए और अपनी कमर तीव्रतम गति से चलाने लगा, साथ साथ मैं कभी रिंकी के होठों पर चुम्बन जड़ रहा था, कभी उसके निप्पलों पर, कभी उसकी आँखों पर!
अचानक रिंकी का सारा शरीर कांपने लगा और रिंकी की योनि में जैसे विस्फोट हुआ और रिंकी की योनि से जैसे स्राव का झरना फूट पड़ा। रिंकी जिंदगी में पहली बार सम्भोगरत हो कर स्खलित हो रही थी और रिंकी की योनि की मांसपेशियों ने संकुचित होकर मेरे लिंग को जैसे निचोड़ना शुरू कर दिया।
प्रतिक्रिया स्वरूप मेरा लिंग और ज्यादा फूलना शुरू हो गया, इसका नतीजा यह निकला कि मेरे लिंग के लिए संकरी योनि में रास्ता और भी ज्यादा संकरा हो गया और मेरे लिंग पर रिंकी की योनि की अंदरूनी दीवारों की रगड़ पहले से भी ज्यादा लगने लगी।
करीब एक मिनिट बाद ही जैसे ही मैंने पूरी शक्ति से अपना लिंग रिंकी की योनि में अंदर तक डाला मेरे अंडकोषों में एक जबरदस्त तनाव पैदा हुआ और मेरे लिंग ने पूरी ताक़त से वीर्य की पिचकारी रिंकी की योनि के आखिरी सिरे पर मारी फिर एक और.. एक और… एक और… एक और… मेरे गर्म वीर्य की बौछार!
अपनी योनि में महसूस कर के अब तक निढाल और करीब-करीब बेहोश पड़ी रिंकी जैसे चौंक कर उठी और उसने मुझसे अपने हाथ छुड़ा कर जोर से मुझे आलिंगन में ले लिया और मुझे यहाँ-वहाँ चूमने लगी।
एक भँवरे ने एक कली को फूल बना दिया था, एक लड़की, एक औरत बन चुकी थी, एक सफल अभिसार का समापन हो चुका था।

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