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Re: शादीशुदा मर्द की वासना hindi adult sex kahani

Posted: 08 Dec 2017 19:57
by sexy
निराली उनके सीने पर हाथ फेरते हुए बोली, “पहली बार नई औरत के साथ ऐसा हो जाता है. पर अभी हमारे पास वक़्त है. आप थोड़ी देर आराम कीजिये, मैं चाय बना कर लाती हूं.”



वो सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज पहन कर पहले बाथरूम में गई और फिर किचन में. उसके जाने के दो मिनट बाद पंकज बाथरूम में गये. वापस आ कर उन्होने अंडरवियर पहना और कुर्सी पर बैठ गये. पिछले कुछ मिनटों में जो उनके साथ हुआ था वो उनके दिमाग में एक फिल्म की तरह चलने लगा. उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि उन्होंने अपनी पत्नी के अलावा किसी और स्त्री के साथ सम्भोग किया था! पर सामने पड़े निराली के कपड़े बता रहे थे कि यह सच था.

वे थोड़े लज्जित भी थे – एक तो इसलिये कि उन्होंने एक नौकरानी के साथ यह काम किया था और दूसरे इसलिये कि वे उसे तुष्ट नहीं कर पाए.



पंकज अपने ख्यालों में खोये हुए थे कि निराली उनके लिए चाय ले कर आ गई. उन्हें चाय का कप दे कर वह उनके सामने जमीन पर बैठ कर चाय पीने लगी. उनको उदास देख कर वह बोली, “दुखी क्यों हो रहे हैं, बाबूजी? मैंने कहा ना कि हमारे पास वक्त है. इस बार सब ठीक होगा!”



“इस बार?” पंकज निराशा से बोले. “… अब दुबारा होना तो बहुत मुश्किल है!”



“क्या बात करते हैं, बाबूजी?” निराली विश्वास से बोली. “आप चाय पी लीजिये. फिर मैं आपके लंड को तैयार न कर दूं तो मेरा नाम निराली नहीं.”

यह सुन कर पंकज चौंक गए, न सिर्फ निराली के आत्मविश्वास से बल्कि उसकी भाषा से भी. वे ऐसे शब्दों से अनभिज्ञ नहीं थे, अनभिज्ञ तो कोई भी नहीं होता. पर उन्होंने अब तक किसी भी स्त्री के साथ ऐसी भाषा में बात नहीं की थी. किसी स्त्री के मुंह से ऐसे शब्द सुनना तो और भी विस्मयकारी था. उनकी पत्नी तो इतनी शालीन थी कि उनके सामने ऐसी भाषा का प्रयोग करना अकल्पनीय था.



उनको चकित देख कर निराली फिर बोली, “आपको यकीन नहीं हो रहा है, बाबूजी? अभी देख लेना … आपके लंड की क्या मजाल कि मेरे मुंह में आ जाए और खड़ा न हो!”



अब पंकज समझ गए कि निराली जिस तबके की थी उसमे मर्दों और औरतों द्वारा ऐसी भाषा में बोलना सामान्य होता होगा. चाय ख़त्म हो चुकी थी. निराली किचन में कप रख आई. उसने पंकज के सामने बैठ कर उनका अंडरवियर उतारा. उनके लंड को हाथ में ले कर वो बोली, “मुन्ना, बहुत सो लिए. अब उठ जाओ. अब तुम्हे काम पर लगना है.”



थोड़ी देर लंड को हाथ से सहलाने के बाद उसने सुपाडा अपने मुंह में ले लिया और उस पर अपनी जीभ फिराने लगी. जल्द ही उसकी जादुई जीभ का असर दिखा. निर्जीव से पड़े लंड में जान आने लगी. धीरे धीरे उसकी लम्बाई और सख्ती बढ़ने लगी. निराली ने पूरे लंड को अपने मुंह में लिया और उसे कस कर चूसने लगी. पंकज ने उसके सिर पर हाथ रख कर अपनी आँखे बंद कर ली. … उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि उनका लंड इतनी जल्दी दुबारा खड़ा हो गया था! निराली उनके लंड को ऐसे चूस रही थी जैसे वो उसके रस को चूस कर ही निकालना चाहती हो. पंकज इस सुखद एहसास का भरपूर मज़ा ले रहे थे, ”ओsssह…! निराली … थोड़ा धीरे … आsssह्ह …!”

निराली पांच मिनट तक उनका लंड चूसती रही. जब उसे यकीन हो गया कि अब लंड से काम लिया जा सकता है तो उसने पंकज को पलंग पर लेटने को कहा. जब पंकज लेट गए तब उसने अपना ब्लाउज़ और पेटीकोट उतारना शुरू किया. पंकज कामविभोर हो कर उसे निर्वस्त्र होते हुए देख रहे थे. नंगी होने के बाद निराली उनकी जांघों पर सवार हो गई. वो आगे झुक कर उनके होंठों को चूसने लगी. पंकज ने उसके स्तनों को अपने हाथों में लिया और उन्हें हल्के हाथों से दबाने लगे. निराली ने अपना मुंह उठा कर कहा, “बाबूजी, जोर से दबाओ ना. मेरी चून्चियां बीवीजी जितनी नाज़ुक नहीं हैं!”



पंकज उसकी चून्चियों को तबीयत से दबाने और मसलने लगे. निराली ने फिर से अपने रसीले होंठ उनके होंठों पर रख दिए और उनसे जीभ लड़ाने लगी. पंकज को ऐसा लग रहा था मानो वो स्वप्नलोक की सैर कर रहे हों. पलंग पर स्त्री का ऐसा सक्रिय और आक्रामक रूप वे पहली बार देख रहे थे. जब वे बुरी तरह काम-विव्हल हो गए तो उन्होंने निराली से याचना के स्वर में कहा, “बस निराली, … अब अन्दर डालने दो.”



निराली ने शरारत से उन्हें देखा और पूछा, “कहाँ डालना चाहते हो, बाबूजी? … मुंह में या मेरी चूत में?”



… पंकज ने शर्मा कर कहा, “तुम्हारी चूत में.”



निराली ने अपनी चूत पर थूक लगाया और उसे पंकज के लंड से सटा दिया. लंड को अपने हाथ से पकड़ कर उसने अपनी कमर को नीचे धकेला. एक ही धक्के में चूत ने पूरे लंड को अपने अन्दर निगल लिया. अब निराली हौले-हौले धक्के लगाने लगी.
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क्या कमाल लंड चूसा निराली ने!

निराली की गर्म चूत में जा कर पंकज के लंड में जैसे आग सी लग गयी. उनके नितम्ब अनायास ही उछलने लगे पर इस बार कमान निराली के हाथों में थी. उसने पंकज की जाँघों को अपनी जाँघों के नीचे दबाया और उन्हें उछलने से रोक दिया. उसने पंकज से कहा, “बाबूजी, आप आराम से लेटे रहो और मुझे अपना काम करने दो.”



पंकज ने समर्पण कर दिया. जब निराली ने देखा कि पंकज अब उसके कंट्रोल में हैं तो उसने धक्कों की ताक़त बढ़ा दी. पंकज लेटे-लेटे निराली के धक्कों का मज़ा लेने लगे. निराली एक-दो मिनट धक्के मारती और जब उसे लगता कि पंकज झड़ने वाले हैं तो वो रुक जाती. ऐसे ही वो एक बार धक्कों के बीच रुकी तो उसने पूछा, “बाबूजी, कभी बीवीजी भी आपको ऐसे चोदती हैं या वे सिर्फ चुदवाती हैं?”



पंकज ने थोडा शरमाते हुए कहा, “वे तो सिर्फ नीचे लेटती हैं. बाकी सब मैं ही करता हूं.”



“बाबूजी, मेरा मरद तो मुझे हर तरह से चोदता है – कभी नीचे लिटा कर, कभी ऊपर चढ़ा कर, कभी घोड़ी बना कर तो कभी खड़े-खड़े,” निराली ने कहा.



पंकज को लगा कि उसे चुदाई के साथ-साथ निराली की अश्लील बातें सुनने में भी मज़ा आ रहा है. … चुदाई और निराली की बातें दो-तीन मिनट और चलीं. फिर पंकज को लगा कि वे आनन्दातिरेक में आसमान में उड़ रहे है. जब आनंद का एहसास अपनी चरम सीमा पर पहुँच गया तो उन्होने निराली की कमर पकड़ ली. उनके नितंब अपने आप तेज़ी से फुदकने लगे. वैसे भी उन्होंने बहुत देर से अपने को रोक रखा था. उन्होंने निराली को अपनी बाहों में भींच लिया. उन्हें अपने लंड पर उसकी चूत का स्पंदन महसूस हो रहा था जिसे वे सहन नहीं कर पाये. उनका लंड निराली की चूत में वीर्य की बौछार करने लगा. जब निराली की चूत ने उनके वीर्य की आखिरी बूंद भी निचोड़ ली तो उनका लंड सिकुडने लगा. दोनों एक दूसरे को बाहों में समेटे लेटे रहे. … कुछ देर बाद जब पंकज की साँसे सामान्य हुईं तो उन्होंने कहा, “निराली, तुमने आज जो आनंद मुझे दिया है वो मैं कभी नहीं भूलूंगा.”

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महीना समाप्त हुआ. निराली को तनख्वाह देनी थी. पंकज ने वादे के मुताबिक उसे एक की बजाय दो हज़ार रुपये दिए. पर निराली ने एक हज़ार रुपये वापस करते हुए उन्हें कहा, “बाबूजी, मेरे मर्द ने मना किया है. मैं एक हज़ार ही लूंगी.”



यह सुन कर पंकज चौंक गए. उन्होंने आश्चर्य से कहा, “क्या? … तुमने उसे यह बता दिया?”



निराली ने गर्दन झुका कर जवाब दिया, “इतनी बड़ी बात मैं उससे कैसे छुपाती. उसके हाँ करने पर ही मैं आपकी इच्छा पूरी करने को तैयार हुई थी.”



पंकज को यकीन नहीं हो रहा था कि निराली का पति यह कर सकता है. उन्होंने विस्मय से पूछा, “तुम्हारा पति यह मान गया? उसने तुम्हे मेरे से चुदने की इजाज़त दे दी … और इसके बदले में वो कुछ नहीं चाहता?”



‘‘आपने मेरे मरद को ग़लत समझा है … वह कोई धर्मात्मा नहीं है … वो भी आपकी तरह औरतों का रसिया है. उसे सिर्फ इतना चाहिए कि जैसे उसने आपकी इच्छा पूरी की वैसे ही आप उसकी इच्छा पूरी कर दें.’’



निराली की बात से पंकज चकरा गए. वे यह तो समझ गये कि निराली का पति एक नई औरत चाहता है और निराली को इस में कोई ऐतराज़ नहीं है पर उन्हें यह समझ में नहीं आया कि इसमें वो क्या कर सकते हैं. उन्होंने कहा, “लेकिन इस के लिए तो एक हज़ार काफी होंगे! … मेरा मतलब है कि इतने में तो वो एक अच्छी-खासी औरत का इंतजाम कर सकता है.”



“क्या कह रहे हैं, बाबूजी?” निराली ने नाराज़गी से कहा. “मेरा मरद ऐसा नहीं है. वो बाज़ारू औरतो के पास नहीं जाता.”



“तो … तो फिर क्या चाहता है वो?”



“बीवी के बदले बीवी! … बीवीजी के आने में अभी टाइम है पर वो इतना इंतजार कर लेगा. जिस दिन वो वापस आयें, उस दिन आप उन्हें मेरे मरद के पास भेज देना.”



यह सुन कर पंकज का चेहरा गुस्से से तमतमा उठा. उन्होंने क्रोध से कहा, ‘‘जानती हो क्या कह रही हो तुम?’’



‘‘अदला-बदली की ही तो बात कर रही हूं. एक हज़ार में बाज़ारू औरत तो आप भी ला सकते थे … फिर आप मुझे एक हज़ार रुपये क्यों दे रहे थे? … इसीलिये ना कि मैं धंधा करने वाली बाज़ारू औरत नहीं हूं!”



“यह तो धोखाधड़ी है! तुमने यह पहले क्यों नहीं बताया?” पंकज ने तमतमा कर पूछा.



“बाबूजी, मैंने तो कहा था कि मेरी एक शर्त है,” निराली ने कहा. “पर आपने उसे सुने बिना ही कह दिया कि आपको मेरी हर शर्त मंजूर है.”



पंकज को याद आया कि निराली की बात सच थी. पर वो अब भी अपने आपे से बाहर थे. वे गुस्से से बोले, “एक हज़ार कम हैं तो दो हज़ार ले लो.”



अब निराली भी उसी लहज़े में बोली, “बाबूजी, आप बीवीजी को मेरे मरद के पास भेज देना, मैं आपको दो हज़ार रुपये दे दूंगी!”



पंकज अब गुस्से से पागल हो गए. वे बोले, ‘‘तू अपनी औकात भूल गई है! अपने पैसे ले और जा. … और हां, कल से काम पर नहीं आना.’’



निराली को उन पर गुस्सा भी आया और दया भी. वो सहज स्वर में बोली, ‘‘मैं तो आपकी औकात देख रही हूँ, बाबूजी! आपकी बीवी सती सावित्री और गरीब की बीवी रंडी! … यह है बड़े लोगों की औकात! … ठीक है, जाती हूं अब.’’



निराली जाने के लिए मुड़ी. पंकज का वासना का नशा अब पूरी तरह से उतर चुका था. निराली को जाती हुई देख कर वे सोच रहे थे कि आज वे बाल-बाल बचे हैं. तभी निराली फिर मुड़ी. उसने अपना मोबाइल ऑन किया और उसे पंकज के सामने कर दिया. उसे देख कर पंकज का सर घूमने लगा. उन्हें लगा कि वे गश खा कर गिरने वाले हैं. … मोबाइल में उनकी और निराली की चुदाई का वीडियो था. वे किसी तरह संभले और उनके मुंह से निकला, “ ये…! ये कैसे…!!!”

निराली को उनकी हालत देख कर मज़ा आ रहा था. उसने उनकी दुविधा दूर करते हुए कहा, “आपको याद है कि जब आपने पहली बार मुझे दबोचा था, तब मैने क्या कहा था? … ‘आज नहीं, कल इतवार है. कल आप जो चाहो कर लेना.’ … अगले दिन आपके कमरे में आ कर मैंने खिड़की से बाहर देखा था और पर्दों को खिसकाया था. मैंने पर्दों के बीच थोड़ी जगह छोड़ दी थी. … बस, बाकी काम बाहर से मेरे मरद ने कर दिया.”



अब पंकज की हालत ऐसी थी कि काटो तो खून नहीं. वे अवाक् थे कि यह क्या हो गया? हुआ भी है या नहीं? एक पल उन्हें यह सपना लगता पर दूसरे पल सामने खड़ी निराली उन्हें हकीकत लगती. उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या करें?



निराली ने मोबाइल बंद कर के कहा, “आप ठीक तो हैं, बाबूजी? आपकी तबियत कुछ बिगड़ी हुई सी लग रही है!”



पंकज जैसे नींद से जागे, “हूं? … मैं! … हां, … ठीक हूं … तुम … तुम क्या करोगी? … मतलब अब …?”



अब स्थिति पूरी तरह निराली के काबू में थी. वह खुश हो कर बोली, “अब तो तीन ही रास्ते हैं. … आप आराम से बैठ जाइए ना. … पहला रास्ता यह है कि मैं बीवीजी को यह वीडियो दिखा दूं और आगे क्या करना है यह उन्ही पर छोड़ दें. … दूसरा रास्ता यह है यह वीडियो बाज़ार में बिके और इसे हर कोई देखे. …”



पंकज अब एक हारे-पिटे जुआरी की तरह दिख रहे थे. अगर उनकी पत्नी ने यह वीडियो देख लिया तो न जाने वो उनके साथ क्या करेगी! और यह बाज़ार में बिकने लगा तो उनके सामने आत्महत्या करने के सिवा कोई चारा नहीं बचेगा! वे डरे हुए स्वर में बोले, “और तीसरा रास्ता?”



“वो तो मैंने पहले ही बता दिया था. आप बीवीजी को राज़ी करके मेरे मरद के पास भेज दें. वो उन्हें चोद लेगा तो यह किस्सा ही ख़तम हो जाएगा. … और हां, आप चाहें तो यह अदला-बदली आगे भी चल सकती है. …अब चलती हूँ मैं. कल आऊंगी. तब तक आप सोच लीजिये कि आपको क्या करना है!”



निराली चली गई और पंकज गहरे सोच में डूब गए. सोच क्या, वे तो एक गहरे गर्त में थे जिससे निकलना असंभव सा लग रहा था. निराली के बताये पहले दो रास्तों का तो एक ही अंजाम था – उनकी निश्चित बर्बादी! तीसरा रास्ता उन्हें बचा सकता था पर … अपनी संभ्रांत पत्नी को एक नौकरानी के पति को सौंपना!!!



उनके दिल से आवाज आई, “तुम्हारे जैसा इज्ज़तदार आदमी यह घटिया काम करेगा?”



तभी दिल के दूसरे कोने ने कहा, “बड़ा इज्ज़तदार बनता है! अगर अपनी बीवी को उसके पास नहीं भेजा तो तेरी इज्ज़त बचेगी?”



पहले कोने ने जवाब दिया, “क्या करूँ फिर? एक तरफ कुआँ है और दूसरी तरफ खाई! अगर दीपिका को भेजा तो भी इज्ज़त जायेगी और नहीं भेजा तो भी!”



दूसरे कोने ने समझाया, “तू यह क्यों नहीं सोचता कि उस घटिया आदमी ने दीपिका को चोद भी लिया तो बात सिर्फ चार लोगों तक ही सीमित रहेगी. दुनिया के सामने तो इज्ज़त बनी रहेगी.”



पहले कोने ने कहा, “हां, यह तो है. मुझे निराली को सख्ती से कहना होगा कि यह बात हम चार लोगों तक ही सीमित रहनी चाहिए.”

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दूसरे कोने ने कहा, “अब हिम्मत रख और दीपिका के आने पर उसको तैयार कर.”



पहला कोना अब भी शंकित था, “पर दीपिका मानेगी? उसने इंकार कर दिया तो?”



दूसरे कोने ने उसकी शंका दूर की, “मूर्ख, दीपिका एक भारतीय पत्नी है. रोज़ तो अखबारों में पढता है कि पति अगर बलात्कार भी कर आये तो पत्नी उसे बचाने की कोशिश करती है, यहाँ तक कि उसे निर्दोष साबित करने के लिए उसे नपुंसक भी बता देती है!”



‘ठीक है,” पहले कोने ने थोडा आश्वस्त हो कर कहा. “दीपिका के आने पर उससे बात करता हूं.”



पंकज ने मन ही मन तय तो कर लिया था कि दीपिका के लौटने पर वे उससे बात करेंगे पर ऐसी बात करना कोई आसान काम नहीं था. वे अच्छी तरह जानते थे कि स्थिति उस के सामने रखने में उन्होंने ज़रा भी गलती कर दी तो परिणाम भयानक हो सकता है. वे दीपिका को खो भी सकते हैं. वैसे दीपिका क्रोधी स्वाभाव की नहीं थीं पर अपने पति की बेवफाई कौन स्त्री बरदाश्त करेगी. पंकज समझते थे कि उनको एक-एक शब्द तौल कर बोलना होगा और साथ ही उन्हें अच्छी खासी एक्टिंग भी करनी होगी. उन्हें अपने कॉलेज के दिन याद आ गए जब वे नाटकों में अभिनय किया करते थे. गनीमत थी कि दीपिका के लौटने में तीन दिन थे. इन तीन दिनों में उन्हें पूरा रिहर्सल करना था. लेकिन मुश्किल यह थी कि यहाँ कोई संवाद लेखक और निर्देशक नहीं था. सब कुछ उन्हें स्वयं करना था. पंकज दिन-रात सोचते रहते थे कि उन्हें क्या और कैसे बोलना है.



निराली रोज़ काम करने आती थी और पंकज से पूछती रहती थी कि बीवीजी कब आएँगी. निराली और उसके पति ने उनका वासना का भूत ऐसा उतारा था कि निराली को देख कर अब उन्हें रोमांच के बजाय वितृष्णा होती थी. उन्होंने तय कर लिया था कि इस बार वे बच जाएँ तो भविष्य में किसी परायी स्त्री कि तरफ आँख उठा कर भी नहीं देखेंगे.



बार-बार सोचने पर भी पंकज के समझ में नहीं आ रहा था कि वे दीपिका को क्या कहें. उन्होंने मन ही मन कई तरह के वाक्य बनाए पर हरेक में कुछ न कुछ कमी नज़र आ जाती थी. अंत में उन्होंने सोचा कि दीपिका को कोई गहरा शॉक देना ही एक मात्र रास्ता था जो उन्हें उसके गुस्से से बचा सकता था. शॉक कैसा हो यह भी उन्होंने सोच लिया. रिहर्सल का तो वक़्त ही नहीं मिला क्योंकि दीपिका के लौटने का दिन आ गया था. ट्रेन पहुँचने से पहले उन्होंने दीपिका को फ़ोन से बताया कि तबियत ख़राब होने के कारण वे स्टेशन नहीं आ सकेंगे. दीपिका ने उनको कहा कि वे ओटो रिक्शा ले कर आ जायेंगी. वे अपनी तबियत का ध्यान रखें.



छुट्टी का दिन था. निराली काम करके जा चुकी थी. दीपिका घर पहुंचीं तो उन्होंने देखा कि ड्राइंग रूम का दरवाजा खुला हुआ था. उन्हें लगा कि पंकज की तबियत जितना उन्होंने सोचा था उससे ज्यादा ख़राब है. वे सूटकेस नीचे रखने के लिए झुकीं तो उन्हें मेज पर पेपर वेट से दबा एक बड़ा कागज़ दिखा जो हवा से फडफडा रहा था. मेज पर और कुछ नहीं था. उन्होंने आगे बढ़ कर वो कागज़ उठाया. जैसे ही उन्होंने उसे पढना शुरू किया, उनकी आँखों के आगे अँधेरा छा गया.



किसी तरह मेज़ पर अपने हाथ रख कर वे गिरने से बचीं. उन्होंने बड़ी हिम्मत कर के खुद को संभाला और वे बिजली की तेज़ी से अन्दर की ओर दौड़ पडीं. बैडरूम के दरवाजे पर पहुँचते ही वे एक पल के लिए ठिठकीं और फिर चिल्ला उठीं, “नहीं. रुको.”



पंकज ने चौंक कर उन्हें देखा और कहा, “मत रोको मुझे. मेरे लिये और कोई रास्ता नहीं बचा है. हो सके तो मुझे माफ़ कर देना.”



इससे पहले कि वे कुछ करते, दीपिका ने दौड़ कर उनकी टांगों को पकड़ लिया. उन्होंने हाँफते हुए कहा, “ये क्या पागलपन है! नीचे उतरो. तुन्हें मेरी कसम है. अगर तुम्हे कुछ हो गया तो मैं भी आत्महत्या कर लूंगी.”



(आप समझ ही गए होंगे कि पंकज ने क्या किया था. उन्होंने ड्राइंग रूम में एक पत्र लिख छोड़ा था जिसमे लिखा था –

मेरे प्राणों से प्रिय दीपिका,



जब तुम यह पत्र पढ़ोगी तब तक मेरी आत्मा मेरे अधम शरीर से विदा हो चुकी होगी. मैंने जो पाप किया है उसका कोई प्रायश्चित नहीं है. तुम्हे मुंह दिखाना तो दूर, मैं तो तुम से माफ़ी मांगने के लायक भी नहीं रहा हूं.



तुम्हारा गुनहगार,



पंकज



पत्र पढ़ते ही किसी अनहोनी की आशंका से त्रस्त दीपिका तुरंत अन्दर दौड़ पडी थीं.

———–क्रमशः————-

निराली की अजीब शर्त और ब्लैकमेल ने पंकज के पास दुनिया छोड़ने के अलावा कोई चारा नही छोड़ा था, पर उनकी बीवी वहां पहुच चुकी थी. आगे ये पति-पत्नी क्या कोई हल निकल पाते है? इस xnxx story का अगला भाग जल्द ही..