नौकर से चुदाई compleet

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raj..
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Re: नौकर से चुदाई

Unread post by raj.. » 01 Nov 2014 21:35

नौकर से चुदाई पार्ट---5
गतान्क से आगे.......
मैने कोई जवाब ना दिया तो वह डरते डरते फिर से
बोला..बीबीजी.नाराज़ हो मुझ से. तब उस का डर मिटाने के लिए
जानते है मेने क्या किया ? खड़े खड़े वही किचन मे हरिया के गले
मे अपनी बाहों की माला पहना दी. और उस के चौड़े सीने पर अपने
उरजों का मधुर दबाव दे कहा.उहह..हुम्ह..क.और मैने अपनी नाक उसकी
गर्दन पर रगड़ दी. मेरी इस प्रतिक्रिया पर तो वह खुश हो उठा और
मेरा कूल्हा साड़ी पर से ही मसल बोला..बीबीजी..आप बड़ी अच्छी हो..
और तदाक से एक बार इधर का गाल चूम लियाएक बार उधर का. मैं तो
शरम से लाल हो गयी और अपने आप को छुड़ा कर वाहा से भाग खड़ी
हुई..पर क्या मर्द से भागना इतना आसान होता है ? और भागना
चाहता भी कौन था ?

यहा तो मन मे हरदम यही इच्छा रहती थी कि कोई हो...अपना भी
कोई हो. सात साल के तरसने के बाद तो अब देवी मा ने मौका दिया है.
मैं इसे छोड़ने वाली नही थी. रात को खाने के बाद उसने मेरा
हाथ पकड़ कर जब कहा रात को आओगी ना बीबीजी...तो सच मानिए
मुझे बिल्कुल भी बुरा नही लगा. पर हा शरम से गाल ज़रूर गुलाबी
हो उठे..और रात.मुन्ना के सो जाने के साथ मेरा सो जाने का कोई
इरादा नही था. आखों मे नींद ही ना थी. कल रात उसके द्वारा दो
बार चोदे जाने की मीठी याद अभी बाकी थी. आज कितनी बार होगा ?
कैसे करेगा ? मन मे बार बार यही ख़याल आ रहा था..मुन्ना जब सो
गया तो मैं धीरे से उठी. अपने कपड़े ठीक किए. मैं साड़ी ब्लाओज
पहने थी. अंदर ब्रा थी. पर पेँटी ना थी.वो तो मेने अपनी आदत के
मुताबिक स्कूल से आते ही उतार दी थी. बालों मे कंघी की. थोड़ा सा
पाउदर भी चेहरे और मम्मों पर लगा लिया. दिल धड़कना शुरू हो
गया था. यह तो साला काम ही ऐसा है. और मेने कुंडी खोली. ये लो
वो तो सामने खड़ा था. ओ मा मेरी तो शरम के मारे पलकें ही झुक
गयी..तुम यहा ?.मेरे स्वर मे आस्चर्य था.मैं उसके यहा होने की
कतई उम्मीद नही कर रही थी..मुझे मालूम था बीबीजी..आप ज़रूर
आओगी.उसने अपना पेटेंट वाक्य दोहराया. मुझे कुछ भी कहने का
मोका दिए बगेर हाथ पकड़ खीचता हुआ अपने कमरे की और ले
चला. और मैं विधवा अपने नौकर का मज़ा लेने उसके साथ घिसटाती
सी चली गयी..हरिया का कमरा मेरा सुहाग कक्ष साफ सुथरा
कमरा एक ओर खटिया दूसरी ओर आलिए मे भगवान तीसरी ओर कोने मे
मोरी जहा पानी की भरी बाल्टी भी मोजूद थी. मालूम है कमरे मे
अगरबत्ती महक रही थी. ट्यूब लाईट का प्रकाश था. और बिस्तर की
चादर नयी थी. सब मिलकर मेरा ही इंतज़ार कर रहे थे..

raj..
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Re: नौकर से चुदाई

Unread post by raj.. » 01 Nov 2014 21:35

आज मेरे
बिना कहे ही हरिया ने जा कर दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. मेरा
दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था. पास आ कर जब हरिया ने मेरी कमर मे
हाथ डाला तो मैं धीरे से कुनमूनाई..ला..ला..लाईट..बंद कर दो..
उसने मुझे अपने से चिपका लिया..बीबीजी.अंधेरे मे मज़ा नही आएगा
जी..उसका हाथ मेरी पीठ पर पहुँच गया था..हमको शरम आती
है ना... मैं अपना चेहरा उसकी चौड़ी छाती मे छुपाटी हुई बोली.
तब उसने मुझे खड़े खड़े ही लेक्चर पिला दिया..देखो बीबीजी...मज़ा
लेना है तो शरमाने से काम नही चलेगा.अरे इसमे क्या है.यह तो
सब कोई करते है.दुनिया के सब मर्द चोदते है और दुनिया की सब
औरतें चुदवाति है.दुनिया से शरमाओ पर खाली एक मर्द से नही
शरमाने का क्या ? अपने मर्द से. समझी ना.मेरे को चुपचाप खोल
के पड़ जाने वाली औरतें पसंद नही.औरत को भी आगे बढ़ कर
हिस्सा लेना चाहिए.मज़ा लेने का काम तो दोनो तरफ से होना चाहिए
ना...अब मैं क्या कहती. मुझे तो साली शरम ही बहुत आ रही थी.
जीभ तो जैसे सूख ही गयी थी. तब उसने मेरा चेहरा थोडी पकड़
उपर उठाया. मर्द की निगाहों से भरपूर देखते हुए बोला..आप
बहुत खूबसूरत हो बीबीजी..अपनी तारीफ सुनकर मैं और शरमा
उठी.बीबीजी बिंदी नही लगाई ? मैं उसकी बाहों मे सिमट सी
गयी.उहूँ.लगाया करो..आप पर बहुत अच्छी लगेगी. वह मेरी पीठ से
होते हुए कूल्हों तक पहुँच गया.माँग मे सिंदूर लगाया करोबिंदी
लगाया करो.चूड़ी पहना करो.मैं ला कर दूँगा.

मैं चुपचाप उसके सीने मे मुँह घुसाए खड़ी रही..पहनोगि ना
?.उसने बड़े प्यार से पूछा. मैने मुँह से तो कुछ ना कहा पर हा मे
गर्दन ज़रूर हिला दी. मुझे तो खुद यही सब चीज़े पहनाने वाला
व्यक्ति चाहिए था. तब वह मुझे पकड़ कर खीचता हुआ भगवान
के आलिए के पास ले गया और कल की तरह सिंदूर ले कर मेरी माँग भर
दी. मैं उस के इस तरह के प्यार करने के तरीके पर निहाल हो
उठी. तब वही भगवान के सामने ही उसने मेरा चियर हरण करना
शुरू कर दिया. ट्यूब लाईट के प्रकाश मेअकेले बंद कमरे मेजब उसने
मेरे वस्त्र खीचना चालू किए तो बस मैं ना ना ही कहती रह
गयी.कभी ना कहती,कभी उसका हाथ पकड़ती तो कभी अपने कपड़े
पकड़ती.पर उसके आगे मेरी एक ना चली. मेरा एक एक कपड़ा
सिलसिलेवार उतरता चला

गया..1..साड़ी.2..ब्लाओज.3..पेटीकोट.4..और सब से आख़िर मे
ब्रा..अगले ही पल मैं अपने नौकर के आगे मदरजात नंगी खड़ी
थी..घबरा रही थी शरमा रही थी..कभी हथेली से अपने मम्मे
छुपा रही थी. तो कभी चूत पर हाथ फेला कर लगा रही थी. और
सामने खड़ा वो कुदरत की बनाई कारिगिरी को आखे फाड़ फाड़ कर
देख रहा था. उसे तो वाहा गाँव मे ऐसी सुंदर औरत मिलना मुश्किल
थी. मेरी शरम का जो हाल था वो तब और दस गुना बढ़ गया जब उसने
भी अपने कपड़े खोल डाले. 1..बंदी 2..धोती वह बस दो ही तो कपड़े
पहने था. धोती के अंदर चड्डी तक नही थी कम्बख़्त के. बस धोती
के उतरते ही जो सामने आया वो अनोखा नज़ारा था. मेने अपनी
जिंदगी मे बस दो ही लंड देखे थे..1..अपने पति का..(उनका ढीले
मे करीबा 3 उंगल का और खड़े मे करीब 5 उंगल का था.).2..स्कूल के
चपरासी का..(जो एक बार पेशाब कर रहा था और मैं वाहा से गुज़री
तो दिखा था.वह करीब दो उंगल का होगा.).बस लंड के मामले मे मेरा
एक्सपीरीएन्स इतना ही था.

raj..
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Re: नौकर से चुदाई

Unread post by raj.. » 01 Nov 2014 21:37

अब यूँ तो मैने अपने मुन्ना का भी देखा
है पर वो तो बच्चे का है, बहुत ही छोटा है.मेरी छोटी उंगली से
भी छोटा. उसकी तुलना मे यह हरिया का लंड वास्तव मे बहुत ही बड़ा
था. करीब सात इंच तो होगा लंबाई मे. और मोटा भी बहुत था.
रंग-एक दम काला. बड़े बड़े बाल. एक दम सीधा खड़ा-90 डिग्री के
एंगल पर. सामने की और तना हुआ नीचे बड़े बड़े अंदू लटक रहे
थे. ख़ास बात यह कि लंड की सुपादि पर चमड़ी चढ़ि हुई थी.पता
नही इस की चमड़ी उतरती भी है या नही.मेरे पति की तो उतरती
थी. फिर मेरा ध्यान पूरे ही हरिया पर गया. सामने नंगा खड़ा
था. सावला रंग बालिश्ट देह भरी हुई मछलीया कसरती बदन
चौड़ा चकला सीना 5-8 का कद मे तो उस की गर्दन तक पहुँचती हू.
कुल मिला कर यह कि वह मुझे काम देव का अवतार लग रहा था..मैं
उसे नज़र भर देख ही रही थी कि वह मेरे पास आया और मेरी नंगी
कमर मे हाथ डाल मुझे खीचता हुआ बिस्तर पर ले गया. खटिया
पर मैं नही लेटी बल्कि उसी ने मुझे धक्का दे कर पटक दिया और खुद
मेरी बगल मे हो कर मुझे बाहों मे भर लिया. नंगे हरिया से नंगी
हो कर लिपटने मे जो आनंद मिला रहा था उसे मैं शब्दों मे बयान
नही कर सकती. यह कहना ग़लत ना होगा कि हम दोनो ही एक दूसरे से
गूँथ गये. वह मुझ मे और मैं उसमे घुसे जा रहे थे. उसके नंगे
जिसम से अपना नंगा जिसम रगड़ना मुझे बहुत अच्छा लग रहा था.

उसने मेरी पीठ पर हाथ फेरते हुए जब मेरे गाल को चूमा तो मैं
लाज से लाल हो उठी. मूँछे तो गढ़ी ही बीड़ी की बास से नाक
गंधा गयी. गोरे गाल पर थूक लग गया सो अलग. पर यह सब मुझे
लग बहुत अच्छा रहा था.ज़रा सा भी बुरा नही लगा. जाने क्यों ?
शायद उत्तेजना की वजह से मेरे शरीर से जो हारमोन छूट रहे थे
उन के कारण. मैं तो खुद भी यही सब चाह रही थी. उस समय मेरी
पूरी कोशिश यही थी कि मैं हरिया मे ही घुस जाउ. लेकिन मैं तो
औरत थी मैं हरिया मे कैसे घुस सकती थी ? घुसना तो उसे ही था
मेरे अंदर. यह जल्दी ही हुआ. उसने चिपका चिपकी के बीच अपना एक
हाथ मेरी जाँघो के मध्य डाल दिया. वाहा मेरी चूत तो अब तक की
क्रियाओं से इतनी उत्तेजित हो उठी थी कि वाहा से पानी निकलने लगा
था. पानी निकल कर मेरी जाँघ तक को गीला बना रहा था. हरिया की
उंगली मे वही पानी लगा तो उसने एक पल की भी देरी नही की. फ़ौरन
मेरे उपर चढ़ता चला गया. अब मैं नीचे थी और वो उपर वह मेरी
टागो को चीरता हुआ पुकारा.बीबीजी.मैं चुप्पी साधे
रही..बीबीजी..कर दम अंदर..मैं दम साधे पड़ी रही.अंदर करवाने
को ही तो उस के पास आई थी,पर कहते ना बना..वह पास खिसक कर
अपना खड़ा लंड मेरी झातदार चूत से थेल्ते हुए कहा..बीबीजी.बोला
करो.शरमाया मत करो..देखो आपको मेरे सर की कसम है..अब ऐसी
कसम सुन कर तो मैं काप उठी. फ़ौरन खटिया मे उठ बैठी. उस का
हाथ पकड़ बोली..हाय कसम क्यों देते हो जी.. यह भावना का सवाल
था. उस वक्त हरिया मेरा सब से प्रिय व्यक्ति था. उस से जो मेरा लंड
चूत का संबंध बन रहा था उस के लिए मैं पिछले सात साल से
तरस रही थे. उस के सर की कसम का सुनते ही मेरी सारी शरम
जाने कहा उड़नचू हो गयी. मेने उसे ठीक वैसे ही जी कह कर
संबोधित किया जैसे कि एक स्त्री अपने पति को करती है..बीबी
जी...मेरे सर की कसम है जो शरमाई तो.खूब बाते
करो..बोलो..अपने मन की बात करो..मेरा मन तो औरत की सोहबत को
बरसो से तरस रहा है.बहुत मन करता है कि किसी के साथ खूब
गंदी गंदी बातें करूँ..आप के पास भी कोई नही है...मेरा साथ दो
बीबीजी..मैं तुम्हारे साथ हाँ हरीयाहह. मैं बैठे बैठे उसके
गले मे हाथ डाल चिपक गयी. और उसके खुरदुरे गाल से अपना नर्म
मुलायम गाल रगड़ते हुए बोली.क्या तुम मुझे बेशरम बनाना चाहते
हो ? उसने मेरा गाल चूम लिया..हा..बीबीजी..तभी मज़ा आएगा. उसने और
गाल चूमा. उस से अपना गाल चूमवाना मुझे बड़ा अच्छा लग रहा
था. गाल पर लगे जा रहे थूक कि मुझे ज़रा भी परवाह नही थी.
मैं उस से चिपक कह उठी..मैं कोशिश करूँगी कि जो तुम्हे पसंद हो
वही करूँ.-यह हुई ना बात... वह खुश हो मेरे गाल की बोटी को अपने
मुँह मे ले कर चूस ही डाला. मैं नखरे से सीत्कार
उठी..सीईईई...क्या करते हो. उसने भोले पन से
पूछा..क्यों..क्यों..क्या हुआ... मैने नज़र उठा के उस कामदेव के
अवतार को देखा.फिर कही..निश्शान पड़ जाएगा नाह...
क्रमशः.........

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