तुम्हारी मुस्कराहट मेरी ज़िन्दगी
Posted: 13 Dec 2014 09:59
तुम्हारी मुस्कराहट मेरी ज़िन्दगी
सफ़ेद रंग की एस्टीम गाडी मेरठ से डेल्ही जा रहे राजमार्ग पे दौड़ी जा रही थी .ड्राइविंग सीट पर बैठा वह सागर नाम का कोई 27 वर्षीय खूबसूरत युवक बड़ी ही बेचैनी के साथ गाडी चला रहा था .6 फीट लम्बे छरहरे बदन गोर रंग और सुंदर चेहरे वाला वह युवक बार बार बड़ी बेचैनी से बापने सिर को झटक रहा था .
गाडी ड्राइव करते हुए हुए ही वह बुदबुदाया. पूरे पांच वर्ष हो गये हमें एक दुसरे से अलग हुए. आज के दिन ही 5 वर्ष पहले तो गया था मै तुम्हारे पास से, काश मुझे मालुम होता की मेरा तुमसे दूर जाना मुझे हमेशा हमेशा के लिए तुमसे अलग कर देगा तो मै कभी भी पैसे कमाने के लिए दिल्ली न जाता.
बुदबुदाते हुए उसकी आन्खें भर आई गाडी की गति काफी धीमी हो गयी थी. इस समय गाडी मोदीनगर के पास से गुजर रही थी. मोदीनगर से थोडा पहले ही सड़क के दाहिनी तरफ एक विशाल पंडाल लगा था. हजारो की संख्या में वहाँ लोगो का हुजूम एकत्रित था. सागर ने ड्राइव करते समय ही एक उचटती सी निगाह उस तरफ डाली.
वह हौले से चौंक गया – “इतनी भीड़ , आखिर चक्कर क्या है ? क्या कोए विशेष व्यक्ति यहाँ आ रहा है ?”
मन में उठी उत्सुकता के कारण उसने गाडी उसी विशाल पंडाल के आगे रोक दी . वहाँ से गुजर रहे एक व्यक्ति से पूछा - भाई यहाँ क्या हो रहा है ?”
“यहाँ माँ आशा देवी अपने प्रवचन का अमृतपान सुनाने आई हुए हैं, लोग उन्ही के दर्शन करने आ रहा हैं.” भाई साहब बड़ी दूर दूर से लोग उनके पास आते हैं कोए चाहे कितना भी दुखी न्क्यु ना हो लेकिन माता की शरण में आते ही उसे सारे झंझटो से मुक्ति मिल जाती है .ऐसी शान्ति मिलती है मन को जैसे वर्षो से प्यासे व्यक्ति को एकाएक ढेर सारा निर्मल मीठा जल मिल गया हो .
माँ आशा देवी की प्रशंसा का गुणगान करता हुआ वह अधेड़ भी उसकी पंडाल में जा घुसा. सागर गाडी के अंदर बैठा ही न जाने पलभर तक क्या सोचता रहा . फिर कुछ निश्चय मन में करके उसने अपनी गाडी वही एक लाइन में पार्क कर दी और उतरकर गाडी लॉक करके वही पंडाल में पहुँच गया. पंडाल में हजारो की संख्या में लोग थे.
धरती पे कालीन और चटाइयां बिछीं थी जिन पर सभी लोग पलाथी मारे बड़े ही शांत भाव से बैठे हुए थे .स्त्री पुरुष, वृद्ध , युवा और बच्चे सभी एक दुसरे से बढ़कर उस पंडाल में उपस्थित थे. पंडाल के दुसरे सिरे पर बिलकुल सामने एक विशाल कोए ३ फीट उंचा पंद्रह फीट लंबा व दस फीट चौड़ा एक मंच बना था.
जिस पर गद्दे , तकिये वगैरह सब लगे थे और एक विशेष अंदाज में उस मंच को सजाया गया था.
मंच के दोनों तरफ कोए 20 व्यक्ति और इतनी ही संख्या में औरते विद्यमान थी जिनके चेहरे उस अथाह जनसमुदाय की तरफ ही थे. शायद वे लोग माताजी के विशेष शिष्यों में से थे, अभी तक माताजी अपने स्थान तक नहीं पहुंची थी. मंच पर उनके आसन के सामने कई माइक लगे हुए थे. पंडाल के अंदर भी कई स्पीकर लगे हुए थे.
प्रेस फोटोग्राफर व विडियो कैमरा वाले भी माताजी के प्रवचनों व उनकी छवि को अपने कैमेरो और टेपरिकॉर्डरों में कैद करने को तत्पर दिखाई दे रहे थे. पुलिस के सिपाही भी मुस्तैदी से अपनी ड्यूटी निभा रहे थे. कूल मिलकर बड़ी ही अच्छी व्यवस्था इस समय पंडाल में थी. तभी एक वर्दीधारी ने टोका “ श्रीमान जी आप कृपया करके वहा आगे जाकर बैठ जाएँ.
”
सागर की तंद्रा टूटी और वह अपने विचारों को झटकता थोडा आगे जाकर अन्य लोगो के साथ बैठ गया. उसके मन में अब न जाने क्यों अजीब सी हलचल मच गयी थी. प्रतिपल उसका मन माँ आशादेवी के दर्शन करने के लिए तड़प सा रहा था. उसे थोड़ी देर ही प्रतीक्षा करनी पड़ी. ताभिपन्दाल गगन भेदी नारों से गूँज उठा “ आशा मैया की जय ! आशा मैया जिंदाबाद”
पंडाल में बैठे हजारो लोग तत्काल माँ आशा देवी के सम्मान में उठ खड़े हुए .सागर भी हडबडाकर खडा हो गया. उसने देखा गेंहुए वस्त्र में लिपटी एक रूपसी कोई पच्चीस वर्षीया अनिध्या सुंदरी थी जिसके मुख मंडल पर तीव्र तेज प्रकट हो रहा था.
चेहरा कुछ इस तरह दमक रहा था जैसे सूर्य ने अपना अंश उसके चेहरे को समर्पित कर दिया हो. प्रकाश पुंज सा उसके चेहरे और ललाट से निकलता हुआ सा लग रहा था. बड़ी शालीनता से वह पंडाल में घुसती चली ज्ञ. उसके इर्द गिर्द भक्तो का समूह था जो पंडाल के मुहाने पर ही रुक गया. वह अपने आसन के पास पहुंचकर पलटी और सभी को हाथ से बैठने का इशारा किया.
अथाह जनसमूह तत्काल नीचे बैठ गया. सभी की निगाहें आशा माता के चेहरे पर टिकी हुई थी. पंडाल में बेहद पैना सन्नाटा खिंच चुका था. वह बड़ी शालीनता से अपने आसन पे बैठी और एक भरपूर निगाह उसने उपस्थित जनसमुदाय पर डाली. और सागर .... ना जाने क्यों एकटक आशा देवी के चेहरे को ताकता रह गया.
ज्यों ज्यों उसके मन में विशवास सा होता जा रहा था त्यों त्यों वह आश्चर्य के सागर में डूबता जा रहा था. बेहद आश्चर्य उसकी आँखों में उमड़ता जा रहा था. उसकी समझ में नहीं आ रहा था के वह गला फाड़कर हंसने लगेगा या चींख मार मारकर रोने लगेगा. उसकी दशा बड़ी ही विचित्र हो रही थी. वह ना हंस सकता था ना रो सकता था.
किंकर्तव्यविमूढ सा बना वह एकटक भाव से आशा देवी को देखता रहा. आशा देवी के प्रवचन शुरू हो चुके थे परन्तु सागर के कानो में उसके शब्द नहीं पद रहे थे , वहां तो सीटियां सी गूँज रही थी. ज्यों – ज्यों समय बीतता जा रहा था सागर पर पागलपन का दौर सा छाने लगा था. उसे आभास होने लगा था के उसकी दिमाग की नशें तनाव से ऐंठती जा रही हैनौर थोड़ी बहुत देर में वे फट पड़ेंगी.
उसका दिमाग किसी एटम बम की तरह फट जायेगा. अपने दोनों हाथों से उसने अपने सर को भींच लिया. तब तक प्रवचन समाप्त हो चले थे. एकाएक सागर को लगा के उसका सम्पूर्ण शारीर दहककर आग को गोला बनता जा रहा है. उसे अपने शारीर से आग की लपटें सी निकलती महसूस होने लगी. उसे अपना सर बहुत भारी लगने लगा और जैसे अभि फट जायेगा.
सागर ने बुरी तरह से अपने दोनों हाथों से अपने सर को भींच लिया. तत्काल ही वह पूरी ताकत से चिंखा – नहीं.....नहीं... सुमेधा नहीं, तुम मेरे साथ इतना घोर अन्याय नहीं कर सकती. मैं मर जाऊँगा सुमेधा .... मैं मर जाऊँगा. समूचे पंडाल में वह आवाज गूंजी. सब ने चौंककर सागर की तरफ देखा साथ ही मंच से उठाने की तयारी कर रही आशा देवी ने भी चिहुँककर सागर की तरफ देखा.
वह अपनी आँखें फाड़े सागर को देख रही थी जो अपने दोनों हाथों से सर को भींचकर निरंतर चींखे जा रहा था. मानो वह पागल हो उठा हो. और तभी वह खडा हुआ. सुलगती निगाहों से एक बार उसने आशा देवी की तरफ देखा. तत्काल ही वह धडाम से लोगो के बीच में गिर पडा. पास ही बैठे लोगों ने हडबडाकर उसकी तरफ देखा और नब्ज़ टटोली.
“माताजी ये तो बेहोश हो गया है.” कोई भीड़ में से चिंखा. आशा देवी जैसे सोते से जागी - “क्या हुआ ?” ..... माताजी बेचारा बेहोश हो गया है. शायद बेचारा बहुत दुखी है.
आशा देवी की आँखों के सामने तूफ़ान सा उमड़ने लगा. तत्काल ही वह चींखी - इन्हें उठाकर हमारे आरामगृह में पहुंचा दो.
जो आज्ञा माते – कुछ लोगो ने गुलामो की भाँती अपना सर झुकाया.
कहते ही आशा देवी पंडाल से उठ कड़ी हुई और वही इन्टर कॉलेज में बने अपने आरामगृह की तरह चल पड़ी. चार लोगो ने सागर को अपनी बाँहों में उठाया और आशा देवी के पीछे पीछे उनके आरामगृह की तरफ चल पड़े.
सफ़ेद रंग की एस्टीम गाडी मेरठ से डेल्ही जा रहे राजमार्ग पे दौड़ी जा रही थी .ड्राइविंग सीट पर बैठा वह सागर नाम का कोई 27 वर्षीय खूबसूरत युवक बड़ी ही बेचैनी के साथ गाडी चला रहा था .6 फीट लम्बे छरहरे बदन गोर रंग और सुंदर चेहरे वाला वह युवक बार बार बड़ी बेचैनी से बापने सिर को झटक रहा था .
गाडी ड्राइव करते हुए हुए ही वह बुदबुदाया. पूरे पांच वर्ष हो गये हमें एक दुसरे से अलग हुए. आज के दिन ही 5 वर्ष पहले तो गया था मै तुम्हारे पास से, काश मुझे मालुम होता की मेरा तुमसे दूर जाना मुझे हमेशा हमेशा के लिए तुमसे अलग कर देगा तो मै कभी भी पैसे कमाने के लिए दिल्ली न जाता.
बुदबुदाते हुए उसकी आन्खें भर आई गाडी की गति काफी धीमी हो गयी थी. इस समय गाडी मोदीनगर के पास से गुजर रही थी. मोदीनगर से थोडा पहले ही सड़क के दाहिनी तरफ एक विशाल पंडाल लगा था. हजारो की संख्या में वहाँ लोगो का हुजूम एकत्रित था. सागर ने ड्राइव करते समय ही एक उचटती सी निगाह उस तरफ डाली.
वह हौले से चौंक गया – “इतनी भीड़ , आखिर चक्कर क्या है ? क्या कोए विशेष व्यक्ति यहाँ आ रहा है ?”
मन में उठी उत्सुकता के कारण उसने गाडी उसी विशाल पंडाल के आगे रोक दी . वहाँ से गुजर रहे एक व्यक्ति से पूछा - भाई यहाँ क्या हो रहा है ?”
“यहाँ माँ आशा देवी अपने प्रवचन का अमृतपान सुनाने आई हुए हैं, लोग उन्ही के दर्शन करने आ रहा हैं.” भाई साहब बड़ी दूर दूर से लोग उनके पास आते हैं कोए चाहे कितना भी दुखी न्क्यु ना हो लेकिन माता की शरण में आते ही उसे सारे झंझटो से मुक्ति मिल जाती है .ऐसी शान्ति मिलती है मन को जैसे वर्षो से प्यासे व्यक्ति को एकाएक ढेर सारा निर्मल मीठा जल मिल गया हो .
माँ आशा देवी की प्रशंसा का गुणगान करता हुआ वह अधेड़ भी उसकी पंडाल में जा घुसा. सागर गाडी के अंदर बैठा ही न जाने पलभर तक क्या सोचता रहा . फिर कुछ निश्चय मन में करके उसने अपनी गाडी वही एक लाइन में पार्क कर दी और उतरकर गाडी लॉक करके वही पंडाल में पहुँच गया. पंडाल में हजारो की संख्या में लोग थे.
धरती पे कालीन और चटाइयां बिछीं थी जिन पर सभी लोग पलाथी मारे बड़े ही शांत भाव से बैठे हुए थे .स्त्री पुरुष, वृद्ध , युवा और बच्चे सभी एक दुसरे से बढ़कर उस पंडाल में उपस्थित थे. पंडाल के दुसरे सिरे पर बिलकुल सामने एक विशाल कोए ३ फीट उंचा पंद्रह फीट लंबा व दस फीट चौड़ा एक मंच बना था.
जिस पर गद्दे , तकिये वगैरह सब लगे थे और एक विशेष अंदाज में उस मंच को सजाया गया था.
मंच के दोनों तरफ कोए 20 व्यक्ति और इतनी ही संख्या में औरते विद्यमान थी जिनके चेहरे उस अथाह जनसमुदाय की तरफ ही थे. शायद वे लोग माताजी के विशेष शिष्यों में से थे, अभी तक माताजी अपने स्थान तक नहीं पहुंची थी. मंच पर उनके आसन के सामने कई माइक लगे हुए थे. पंडाल के अंदर भी कई स्पीकर लगे हुए थे.
प्रेस फोटोग्राफर व विडियो कैमरा वाले भी माताजी के प्रवचनों व उनकी छवि को अपने कैमेरो और टेपरिकॉर्डरों में कैद करने को तत्पर दिखाई दे रहे थे. पुलिस के सिपाही भी मुस्तैदी से अपनी ड्यूटी निभा रहे थे. कूल मिलकर बड़ी ही अच्छी व्यवस्था इस समय पंडाल में थी. तभी एक वर्दीधारी ने टोका “ श्रीमान जी आप कृपया करके वहा आगे जाकर बैठ जाएँ.
”
सागर की तंद्रा टूटी और वह अपने विचारों को झटकता थोडा आगे जाकर अन्य लोगो के साथ बैठ गया. उसके मन में अब न जाने क्यों अजीब सी हलचल मच गयी थी. प्रतिपल उसका मन माँ आशादेवी के दर्शन करने के लिए तड़प सा रहा था. उसे थोड़ी देर ही प्रतीक्षा करनी पड़ी. ताभिपन्दाल गगन भेदी नारों से गूँज उठा “ आशा मैया की जय ! आशा मैया जिंदाबाद”
पंडाल में बैठे हजारो लोग तत्काल माँ आशा देवी के सम्मान में उठ खड़े हुए .सागर भी हडबडाकर खडा हो गया. उसने देखा गेंहुए वस्त्र में लिपटी एक रूपसी कोई पच्चीस वर्षीया अनिध्या सुंदरी थी जिसके मुख मंडल पर तीव्र तेज प्रकट हो रहा था.
चेहरा कुछ इस तरह दमक रहा था जैसे सूर्य ने अपना अंश उसके चेहरे को समर्पित कर दिया हो. प्रकाश पुंज सा उसके चेहरे और ललाट से निकलता हुआ सा लग रहा था. बड़ी शालीनता से वह पंडाल में घुसती चली ज्ञ. उसके इर्द गिर्द भक्तो का समूह था जो पंडाल के मुहाने पर ही रुक गया. वह अपने आसन के पास पहुंचकर पलटी और सभी को हाथ से बैठने का इशारा किया.
अथाह जनसमूह तत्काल नीचे बैठ गया. सभी की निगाहें आशा माता के चेहरे पर टिकी हुई थी. पंडाल में बेहद पैना सन्नाटा खिंच चुका था. वह बड़ी शालीनता से अपने आसन पे बैठी और एक भरपूर निगाह उसने उपस्थित जनसमुदाय पर डाली. और सागर .... ना जाने क्यों एकटक आशा देवी के चेहरे को ताकता रह गया.
ज्यों ज्यों उसके मन में विशवास सा होता जा रहा था त्यों त्यों वह आश्चर्य के सागर में डूबता जा रहा था. बेहद आश्चर्य उसकी आँखों में उमड़ता जा रहा था. उसकी समझ में नहीं आ रहा था के वह गला फाड़कर हंसने लगेगा या चींख मार मारकर रोने लगेगा. उसकी दशा बड़ी ही विचित्र हो रही थी. वह ना हंस सकता था ना रो सकता था.
किंकर्तव्यविमूढ सा बना वह एकटक भाव से आशा देवी को देखता रहा. आशा देवी के प्रवचन शुरू हो चुके थे परन्तु सागर के कानो में उसके शब्द नहीं पद रहे थे , वहां तो सीटियां सी गूँज रही थी. ज्यों – ज्यों समय बीतता जा रहा था सागर पर पागलपन का दौर सा छाने लगा था. उसे आभास होने लगा था के उसकी दिमाग की नशें तनाव से ऐंठती जा रही हैनौर थोड़ी बहुत देर में वे फट पड़ेंगी.
उसका दिमाग किसी एटम बम की तरह फट जायेगा. अपने दोनों हाथों से उसने अपने सर को भींच लिया. तब तक प्रवचन समाप्त हो चले थे. एकाएक सागर को लगा के उसका सम्पूर्ण शारीर दहककर आग को गोला बनता जा रहा है. उसे अपने शारीर से आग की लपटें सी निकलती महसूस होने लगी. उसे अपना सर बहुत भारी लगने लगा और जैसे अभि फट जायेगा.
सागर ने बुरी तरह से अपने दोनों हाथों से अपने सर को भींच लिया. तत्काल ही वह पूरी ताकत से चिंखा – नहीं.....नहीं... सुमेधा नहीं, तुम मेरे साथ इतना घोर अन्याय नहीं कर सकती. मैं मर जाऊँगा सुमेधा .... मैं मर जाऊँगा. समूचे पंडाल में वह आवाज गूंजी. सब ने चौंककर सागर की तरफ देखा साथ ही मंच से उठाने की तयारी कर रही आशा देवी ने भी चिहुँककर सागर की तरफ देखा.
वह अपनी आँखें फाड़े सागर को देख रही थी जो अपने दोनों हाथों से सर को भींचकर निरंतर चींखे जा रहा था. मानो वह पागल हो उठा हो. और तभी वह खडा हुआ. सुलगती निगाहों से एक बार उसने आशा देवी की तरफ देखा. तत्काल ही वह धडाम से लोगो के बीच में गिर पडा. पास ही बैठे लोगों ने हडबडाकर उसकी तरफ देखा और नब्ज़ टटोली.
“माताजी ये तो बेहोश हो गया है.” कोई भीड़ में से चिंखा. आशा देवी जैसे सोते से जागी - “क्या हुआ ?” ..... माताजी बेचारा बेहोश हो गया है. शायद बेचारा बहुत दुखी है.
आशा देवी की आँखों के सामने तूफ़ान सा उमड़ने लगा. तत्काल ही वह चींखी - इन्हें उठाकर हमारे आरामगृह में पहुंचा दो.
जो आज्ञा माते – कुछ लोगो ने गुलामो की भाँती अपना सर झुकाया.
कहते ही आशा देवी पंडाल से उठ कड़ी हुई और वही इन्टर कॉलेज में बने अपने आरामगृह की तरह चल पड़ी. चार लोगो ने सागर को अपनी बाँहों में उठाया और आशा देवी के पीछे पीछे उनके आरामगृह की तरफ चल पड़े.