तुम्हारी मुस्कराहट मेरी ज़िन्दगी

romantic stories collection, all English or hindi romantic stories, long romantic stories in English and hindi. Love stories collection. couple stories..
007
Platinum Member
Posts: 948
Joined: 14 Oct 2014 17:28

तुम्हारी मुस्कराहट मेरी ज़िन्दगी

Unread post by 007 » 13 Dec 2014 09:59

तुम्हारी मुस्कराहट मेरी ज़िन्दगी

सफ़ेद रंग की एस्टीम गाडी मेरठ से डेल्ही जा रहे राजमार्ग पे दौड़ी जा रही थी .ड्राइविंग सीट पर बैठा वह सागर नाम का कोई 27 वर्षीय खूबसूरत युवक बड़ी ही बेचैनी के साथ गाडी चला रहा था .6 फीट लम्बे छरहरे बदन गोर रंग और सुंदर चेहरे वाला वह युवक बार बार बड़ी बेचैनी से बापने सिर को झटक रहा था .

गाडी ड्राइव करते हुए हुए ही वह बुदबुदाया. पूरे पांच वर्ष हो गये हमें एक दुसरे से अलग हुए. आज के दिन ही 5 वर्ष पहले तो गया था मै तुम्हारे पास से, काश मुझे मालुम होता की मेरा तुमसे दूर जाना मुझे हमेशा हमेशा के लिए तुमसे अलग कर देगा तो मै कभी भी पैसे कमाने के लिए दिल्ली न जाता.

बुदबुदाते हुए उसकी आन्खें भर आई गाडी की गति काफी धीमी हो गयी थी. इस समय गाडी मोदीनगर के पास से गुजर रही थी. मोदीनगर से थोडा पहले ही सड़क के दाहिनी तरफ एक विशाल पंडाल लगा था. हजारो की संख्या में वहाँ लोगो का हुजूम एकत्रित था. सागर ने ड्राइव करते समय ही एक उचटती सी निगाह उस तरफ डाली.

वह हौले से चौंक गया – “इतनी भीड़ , आखिर चक्कर क्या है ? क्या कोए विशेष व्यक्ति यहाँ आ रहा है ?”

मन में उठी उत्सुकता के कारण उसने गाडी उसी विशाल पंडाल के आगे रोक दी . वहाँ से गुजर रहे एक व्यक्ति से पूछा - भाई यहाँ क्या हो रहा है ?”
“यहाँ माँ आशा देवी अपने प्रवचन का अमृतपान सुनाने आई हुए हैं, लोग उन्ही के दर्शन करने आ रहा हैं.” भाई साहब बड़ी दूर दूर से लोग उनके पास आते हैं कोए चाहे कितना भी दुखी न्क्यु ना हो लेकिन माता की शरण में आते ही उसे सारे झंझटो से मुक्ति मिल जाती है .ऐसी शान्ति मिलती है मन को जैसे वर्षो से प्यासे व्यक्ति को एकाएक ढेर सारा निर्मल मीठा जल मिल गया हो .

माँ आशा देवी की प्रशंसा का गुणगान करता हुआ वह अधेड़ भी उसकी पंडाल में जा घुसा. सागर गाडी के अंदर बैठा ही न जाने पलभर तक क्या सोचता रहा . फिर कुछ निश्चय मन में करके उसने अपनी गाडी वही एक लाइन में पार्क कर दी और उतरकर गाडी लॉक करके वही पंडाल में पहुँच गया. पंडाल में हजारो की संख्या में लोग थे.

धरती पे कालीन और चटाइयां बिछीं थी जिन पर सभी लोग पलाथी मारे बड़े ही शांत भाव से बैठे हुए थे .स्त्री पुरुष, वृद्ध , युवा और बच्चे सभी एक दुसरे से बढ़कर उस पंडाल में उपस्थित थे. पंडाल के दुसरे सिरे पर बिलकुल सामने एक विशाल कोए ३ फीट उंचा पंद्रह फीट लंबा व दस फीट चौड़ा एक मंच बना था.

जिस पर गद्दे , तकिये वगैरह सब लगे थे और एक विशेष अंदाज में उस मंच को सजाया गया था.

मंच के दोनों तरफ कोए 20 व्यक्ति और इतनी ही संख्या में औरते विद्यमान थी जिनके चेहरे उस अथाह जनसमुदाय की तरफ ही थे. शायद वे लोग माताजी के विशेष शिष्यों में से थे, अभी तक माताजी अपने स्थान तक नहीं पहुंची थी. मंच पर उनके आसन के सामने कई माइक लगे हुए थे. पंडाल के अंदर भी कई स्पीकर लगे हुए थे.

प्रेस फोटोग्राफर व विडियो कैमरा वाले भी माताजी के प्रवचनों व उनकी छवि को अपने कैमेरो और टेपरिकॉर्डरों में कैद करने को तत्पर दिखाई दे रहे थे. पुलिस के सिपाही भी मुस्तैदी से अपनी ड्यूटी निभा रहे थे. कूल मिलकर बड़ी ही अच्छी व्यवस्था इस समय पंडाल में थी. तभी एक वर्दीधारी ने टोका “ श्रीमान जी आप कृपया करके वहा आगे जाकर बैठ जाएँ.

सागर की तंद्रा टूटी और वह अपने विचारों को झटकता थोडा आगे जाकर अन्य लोगो के साथ बैठ गया. उसके मन में अब न जाने क्यों अजीब सी हलचल मच गयी थी. प्रतिपल उसका मन माँ आशादेवी के दर्शन करने के लिए तड़प सा रहा था. उसे थोड़ी देर ही प्रतीक्षा करनी पड़ी. ताभिपन्दाल गगन भेदी नारों से गूँज उठा “ आशा मैया की जय ! आशा मैया जिंदाबाद”

पंडाल में बैठे हजारो लोग तत्काल माँ आशा देवी के सम्मान में उठ खड़े हुए .सागर भी हडबडाकर खडा हो गया. उसने देखा गेंहुए वस्त्र में लिपटी एक रूपसी कोई पच्चीस वर्षीया अनिध्या सुंदरी थी जिसके मुख मंडल पर तीव्र तेज प्रकट हो रहा था.

चेहरा कुछ इस तरह दमक रहा था जैसे सूर्य ने अपना अंश उसके चेहरे को समर्पित कर दिया हो. प्रकाश पुंज सा उसके चेहरे और ललाट से निकलता हुआ सा लग रहा था. बड़ी शालीनता से वह पंडाल में घुसती चली ज्ञ. उसके इर्द गिर्द भक्तो का समूह था जो पंडाल के मुहाने पर ही रुक गया. वह अपने आसन के पास पहुंचकर पलटी और सभी को हाथ से बैठने का इशारा किया.

अथाह जनसमूह तत्काल नीचे बैठ गया. सभी की निगाहें आशा माता के चेहरे पर टिकी हुई थी. पंडाल में बेहद पैना सन्नाटा खिंच चुका था. वह बड़ी शालीनता से अपने आसन पे बैठी और एक भरपूर निगाह उसने उपस्थित जनसमुदाय पर डाली. और सागर .... ना जाने क्यों एकटक आशा देवी के चेहरे को ताकता रह गया.

ज्यों ज्यों उसके मन में विशवास सा होता जा रहा था त्यों त्यों वह आश्चर्य के सागर में डूबता जा रहा था. बेहद आश्चर्य उसकी आँखों में उमड़ता जा रहा था. उसकी समझ में नहीं आ रहा था के वह गला फाड़कर हंसने लगेगा या चींख मार मारकर रोने लगेगा. उसकी दशा बड़ी ही विचित्र हो रही थी. वह ना हंस सकता था ना रो सकता था.

किंकर्तव्यविमूढ सा बना वह एकटक भाव से आशा देवी को देखता रहा. आशा देवी के प्रवचन शुरू हो चुके थे परन्तु सागर के कानो में उसके शब्द नहीं पद रहे थे , वहां तो सीटियां सी गूँज रही थी. ज्यों – ज्यों समय बीतता जा रहा था सागर पर पागलपन का दौर सा छाने लगा था. उसे आभास होने लगा था के उसकी दिमाग की नशें तनाव से ऐंठती जा रही हैनौर थोड़ी बहुत देर में वे फट पड़ेंगी.

उसका दिमाग किसी एटम बम की तरह फट जायेगा. अपने दोनों हाथों से उसने अपने सर को भींच लिया. तब तक प्रवचन समाप्त हो चले थे. एकाएक सागर को लगा के उसका सम्पूर्ण शारीर दहककर आग को गोला बनता जा रहा है. उसे अपने शारीर से आग की लपटें सी निकलती महसूस होने लगी. उसे अपना सर बहुत भारी लगने लगा और जैसे अभि फट जायेगा.

सागर ने बुरी तरह से अपने दोनों हाथों से अपने सर को भींच लिया. तत्काल ही वह पूरी ताकत से चिंखा – नहीं.....नहीं... सुमेधा नहीं, तुम मेरे साथ इतना घोर अन्याय नहीं कर सकती. मैं मर जाऊँगा सुमेधा .... मैं मर जाऊँगा. समूचे पंडाल में वह आवाज गूंजी. सब ने चौंककर सागर की तरफ देखा साथ ही मंच से उठाने की तयारी कर रही आशा देवी ने भी चिहुँककर सागर की तरफ देखा.

वह अपनी आँखें फाड़े सागर को देख रही थी जो अपने दोनों हाथों से सर को भींचकर निरंतर चींखे जा रहा था. मानो वह पागल हो उठा हो. और तभी वह खडा हुआ. सुलगती निगाहों से एक बार उसने आशा देवी की तरफ देखा. तत्काल ही वह धडाम से लोगो के बीच में गिर पडा. पास ही बैठे लोगों ने हडबडाकर उसकी तरफ देखा और नब्ज़ टटोली.

“माताजी ये तो बेहोश हो गया है.” कोई भीड़ में से चिंखा. आशा देवी जैसे सोते से जागी - “क्या हुआ ?” ..... माताजी बेचारा बेहोश हो गया है. शायद बेचारा बहुत दुखी है.
आशा देवी की आँखों के सामने तूफ़ान सा उमड़ने लगा. तत्काल ही वह चींखी - इन्हें उठाकर हमारे आरामगृह में पहुंचा दो.

जो आज्ञा माते – कुछ लोगो ने गुलामो की भाँती अपना सर झुकाया.
कहते ही आशा देवी पंडाल से उठ कड़ी हुई और वही इन्टर कॉलेज में बने अपने आरामगृह की तरह चल पड़ी. चार लोगो ने सागर को अपनी बाँहों में उठाया और आशा देवी के पीछे पीछे उनके आरामगृह की तरफ चल पड़े.

007
Platinum Member
Posts: 948
Joined: 14 Oct 2014 17:28

Re: तुम्हारी मुस्कराहट मेरी ज़िन्दगी

Unread post by 007 » 13 Dec 2014 10:01

“ लगता है बेचारा बहुत दुखी है .” भीड़ में से कोई बोला .
“ हाँ भैया दुखी था तभी तो यहाँ माता की शरण में आया होगा.” कोई दूसरा बोला.
कुछ भी हो भैया माताजी की महिमा भी बड़ी अपरम्पार है. कोई अन्य बोला - कितने दुखी पीड़ित लोग यहाँ आते हैं
और माताजी के दर्शन मात्र से ही उनके सारे विघ्न पल भर में ही दूर हो जाते हैं.
हां भैया तभी तो दूर दूर से लोग इनके प्रवचन सुनने कहुंच जाते हैं.

एक और भक्त बोला – देखा नहीं उस व्यक्ति के दुःख को देखकर माताजी के चेहरे पर कितना दुःख था .
वो तो अपने भक्तों को दिखी देखकर दुखी होने वाली माता है, भैया महान लोग अपने भक्तो के दुःख से ही दुखी हो जाते हैं.
इसी तरह सब अपने अपने भाव प्रकट करते करते पंडाल से बहार आने लगे.

“उधर आराम गृह में
“माताजी इन्हें होश आ रहा है.” पानी के छींटे देता वह व्यक्ति सागर को कुछ बडबडाते हुए देखकर पास बैठी आशा देवी से बोला.
आशा देवी ने धीरे से निगाहें उठाकर सागर को देखा.

फिर वह कमरे में उपस्थित लोगो से बोली – अप सब लोग बहार चले जाइये कोई भी हमारी आज्ञा के बिना कमरे में आने का प्रयत्न ना करे.
“जो आज्ञा माता” तत्काल ही सभी लोग उस कमरे से बहार निकल गये.
सागर ने धीरे धीरे आँखें खोली. तुरंत ही उसकी नजर कमरे में चारो तरफ घूमी इस समय वह बड़े सुंदर ढंग से सजे कमरे में बैड पर लेता था.
उसने देखा इस कमरे में 4 कुर्सियां 2 सुंदर स्टूल तथा एक मेज और सुंदर सुंदर गमले रखे हुए थे जिनमे ताजे फूल खिल रहे
थे जिनकी महक से सारा कमरा महक रहा था.

अपनी निगाहें चारो तरफ घुमाता हुआ सागर असहाय भाव से देखने लगा तो उसकी नजर पास में कुर्सी पर बैठी आशा देवी पर पड़ी.
एक सिहरन सी सागर के बदन पर दोड़ गयी. कई भाव और रंग एक साथ उसके चेहरे पर आकर गुजर गये.
जबकि आशा देवी भावहीन चेहरा लिए बस एकटक सागर के सुंदर शालीन तथा सौम्य चेहरे को ताकती रही.

“त...तुम” सागर की आवाज लडखडाने लगी.
हाँ सागर मैं वही हु जिसे तुम पहचान चुके हो , आशा देवी निर्विकार भाव से बोली.
सुमेधा.....! सागर तत्काल ही बैड से उठा और सुमेधा के गले से लिपट गया – “ ये तुमने कोण सा रूप धारण कर लिया, क्यों इस समाज से नाता तोड़ लिया,
क्यों ये वैराग्य अपना लिया....मुझे क्यों इतनी बड़ी सजा दे डाली सुमेधा क्यों ?”

सुमेधा ने सागर के कन्धों को पकड़ा और उसे धीरे से अपने से अलग करके उसका सर अपनी गोद में रख लिया.
आँखों में बड़ी तीव्रता से आंसुओं की लहर उमड़ पड़ी जिसे सुमेधा ने बड़ी ही सफाई से अंदर ही अंदर पी लिया.
“वक़्त के जो लम्हे बीत चुके हैं उन्हें दोहारने से कोई लाभ नहीं होगा.”

सुमेधा ने बड़े ही शालीन स्वर में कहा – “ आज वक़्त क्या चाह रहा है ये सोचो और समझो अपने अतीत की तरफ भागने के बजाये वर्तमान को देखो सागर
और भविष्य पर द्रष्टि रखो इसी में आपको वाएत्विक आनंद की अनुभूति होगी.

“ये गूढ़ बाते एक साधारण व्यक्ति की समझ से परे हैं. मई तो सिर्फ इतना जानता हु के तुम मेरी हो सिर्फ मेरी.”
सागर ने सुमेधा की गोद में अपना सर छुपा लिया – “पांच सालो से कहा कहा नहीं खोजा मैंने तुम्हे, सारी दुनिया की ख़ाक छानते छानते मै थक गया सुमेधा,
और जब आज तुम मिली तो इस रूप में.... आह मेरी सुमेधा हजारो भक्तो की आशा का केंद्र बनकर आशा देवी के रूप में पूजी जा रही है.”
“ शायद वक़्त और मेरी किस्मत को यही मंजूर था सागर !”

“ नहीं .... नहीं सुमेधा नहीं! ” सागर विरोधपूर्ण स्वर में बोला – “ मैं किस्मत पर विस्वास नहीं करता,
मैं तो मनुष्य की इच्छाशक्ति, उसके दृढ निश्चय और विस्वास पर आस्था रखता हु, मैं किस्मत को नही मानता.”
“ तुम वक़्त को तो मानते हो ना ”
“ हाँ “

“ तो समझ लो वक़्त को मंजूर नहीं था हमारा मिलना . उसे तो यही मंजूर था जिस रूप में आज हम मिले हैं .“
“ सुमेधा ...!” सागर तड़प उठा – “ मेरी 5 वर्षों की ये तपश्या निष्फल नहीं हो सकती ,तुम्हे ये गेंहुए रंग का चोगा उतारना ही होगा. आज तुम्हे लिए बिना मैं यहाँ से नहीं जाऊँगा !”
“ ये असंभव है सागर !” सुमेधा के चेहरे पर दृढ निश्चय उमड़ा – “ आज मई अपनी मंजिल पे इतना आगे बढ़ चुकी हु के खुद भी चाहकर अब वापस लौटने की सामर्थ्य नहीं रही मुझमे.
सुमेधा ........” सागर बिलख पडा

देखो सुमेधा सिर्फ तुम्हे पाने की चाहत में मई एक बहुत ही कामयाब आदमी बन गया. मई कंगाल्पति से करोडपति बन गया. मैंने दिन रात एक कर दिए मैंने अपने जीवन की एक एक सांस अपने आप को ऊपर उठाने में अर्पित कर दी. मैं आज एक कामयाब स्क्रिप्ट राइटर हु , मेरे पास करोड़ों की संपत्ति है गाडी है बंगले हैं ,” बस तुम नहीं हो “.
“मुझे आज ये जानकार बहुत ख़ुशी हो रही है सागर के तुम एक बहुत बडे आदमी बन गये हो “
“लेकिन मुझे ऐसा बड़ा आदमी नहीं बनना की मैं तुम्हे पा ना सकू “
“मुझे भूल ही जाओ सागर तो अधिक बेहतर होगा “ सुमेधा ने बेचैनी से पहलु बदला – समझ लेना की सुमेधा मर गयी है.
“ नहीं “ पिछले 10 सालो से मैं जिस तस्वीर को मैं दिल में बसाये बैठा हु उसे कैसे भुला दू . क्या तुम मुझे भुला सकती हो सुमेधा .... बोलो-बोलो क्या तुम मुझे भूल पायी हो ......... भूल पायी हो तुम मुझे ?”
सुमेधा ने विवशताभरी भरी निगाहों से सागर को देखा ; सागर के चेहरे पर तूफ़ान सा उमड़ रहा था.
“ सागर मैंने समझौता कर लिया है “
“ किस्से ?“
“ हालातो से “
“ कैसा समझौता ?”
मेरी हर सांस अब लोगो की सेवा और उनके मार्गदर्शन में समर्पित हो चुकी है.
“ तो फिर एक काम करो सुमेधा ?”
क्या ?
“ तुम अपने किसी सेवक को आदेश दो की वो तत्काल कहीं से जहर ले आये और शरबत में घोलकर अपने हाथो से मुझे पिला दे “
“स .... सागर!”
“ बस अब यही समाधान है मैं तभी मुक्त हो पाऊंगा ज़िन्दगी की इस बेकार भागदौड़ से, हर दिन के रोने तदपने से “
“चुप करो सागर मैं इस तरह के शब्द तुम्हारे मुह से नहीं सुनना चाहती “
“ जानता हु तुम्हे पहले ही मेरे मुह से निकले ऐसे शब्दों पर शख्त ऐतराज था !” सागर के होठो पर अनायास ही मुस्कान उभर आई – “ मैंने ये बाते इसीलिए कही थी के ताकि मैं जां सकू के तुम आज भी मेरा ख्याल उतना ही रखती हो ,क्या तुम आज भी वही सत्य और पवित्र प्रेम करती हो या नहीं !”
“ स .... सागर सच्चाई तो ये है के मेरी ज़िन्दगी में आने वाले वो प्रथम व्यक्ति तुम ही थे जिसमे मेरे दिल में प्रेम के बिज़ को अंकुरित किया.”
“सुमेधा फिर क्यों खुद को इस गेरुए वस्त्र में लपेटकर जीतेजी एक ज़िंदा लाश बनकर जी रही हो.”
“ सागर तुम्हारे द्वारा अंकुरित उस प्रेम बीज का ही चमत्कार है ये.” वह धीरे से बोली – “ तुम्हारे उसी अथाह प्रेम की दरिया मैं आज दोनों हाथों से इस दुनिया पर लुटा रही हु और कमाल है की जितना मई इसे लुटा रही हु यह उससे कई गुना फिर मेरे पास एकत्रित हो जाता है जैसे कभी ख़तम ही नहीं होगा .”
“ सुमेधा इन सब बातो को घर जाकर करेंगे चलो अब तुम मेरे साथ चलो .”
“ सागर तुम सूरज से कहो की वो पश्चिम से निकला करे दरिया से कहो की वो हिमालय पर्वत की तरफ बहने लगे तो संभव है ये तुम्हारी बात मान लें मगर जिस बात को आज तुम आशा देवी से कह रहे हो वह इस जनम में तो संभव ही नहीं हो सकती.”
“ तो फिर मुझे बताओ मैं क्या करू ?”
“ घर जाओ और अपने करियर तथा परिवार पर ध्यान दो .”
“ भाड़ में जाये करियर भट्टी में जाए परिवार .....! “
“ ऐसा नहीं कहते सागर , अरे मैंने ही तो तुम्हारा नाम सागर रखा था जानते हो क्यों क्युकी सागर की प्रवृति गंभीर होती है वो दुनिया की हर अच्छी बुरी वस्तु को अपने गर्भ में समेटे हुए है.” सुमेधा बोली – “ तुम भी सागर की सार्थकता को भंग मत करो उसकी गंभीरता और विराट स्वरुप को स्मरण रखो , मेरे लिए तुमने खुद को आज एक कामयाब इंसान बना लिया अब तुम खुद को एक परिवार के प्रति जिम्मेदार भी बनाओ. ”
“ सुमेधा.....!” सागर तिलमिलाए स्वर में बोला – “ मैं क्या करू मैं चाहकर भी तुम्हे नहीं भूल पा रहा हूँ और अब तो तुम्हारे बिना जी भी नहीं पाऊंगा तुम्हे इस रूप में देखकर मैं कैसे शान से अपने घर में रहूंगा ?”
“ जैसे पहले रहते थे वैसे ही रहोगे. ”
“ तुम मुझे सजा दे रही हो सुमेधा ..... मैं जानता हु तुम मुझे सजा दे रही हो......... शायद मैं हु भी इसी काबिल .”
“ न..... नहीं सागर , नहीं मैं तुम्हे कोई सजा नहीं दूंगी .”
“ तो “
“ मेरी बात थोड़ी गंभीरता से सुनो “
“सुन रहा हु “
“ तुम्हे याद है वो दिन जब तुमने मुझे अपनी बाहों में भरकर कहा था के सुमेधा मेरा इन्तेजार करना ....

मैं तुम्हारी खातिर जा रहा हु इस दुनिया से टक्कर लेने लायक इंसान बनने मेरा इंतज़ार करना सुमेधा .
" हां मुझे याद है .
" तो ये भी याद होगा की उन दिनों मेरी कोख में तुम्हारा अंश पल रहा था .
' नहीं मुझे इस बात की कोई खबर नहीं थी .' सागर ने विरोध किया - सच मानो सुमेधा मुझे इस बात की कोई जानकारी नहीं थी .'
'क.... क्या..... तुम्हे जानकारी नहीं थी की मैं तुम्हारे बेटे की माँ बनने वाली थी.'
'क... क्या.... मेरा बेटा ?
'हां तुम्हारा बेटा .
' त... तुम मेरे बेटे की माँ बनने वाली थी.'
' हां... हां. '
' सुमेधा मुझे तो आज तुम्हारे मुह से ही सुनने को मिल रहा है की तुम मेरी अमानत को अपने गर्भ में स्थान दे बैठी थी.'
' हाँ सहर मेरी कोख में तुम्हारा अंश आ चूका था.' सुमेधा बोली - सच्चाई तो ये है की मुझे स्वयं भी उस समय तक पता नहीं था जब तक तुम मेरे पास थे ये सब तो मुझे भी बाद में पता चला जब तुम्हारे जाने के बाद मुझे उल्टियाँ होने लगी और जब धीरे धीरे मेरा पेट बढ़ने लगा था .'
' सुमेधा तुमने कैसे इस समाज से मुकाबला किया होगा ? ' सागर की आँखें आश्चर्य से फटी जा रही थी .'
' मैंने मुकाबला किया था सागर इस समाज से मुकाबला किया था मैंने .... मैंने अपने प्यार की निशानी की रक्षा के लिए अपने परिवार , रिश्तेदार यहाँ तक की इस समूचे समाज से बगावत कर दी .
' हे भगवन इतना बड़ा संघर्ष किया तुमने मेरे बेटे के लिए ?"
' तुम्हारे बेटे के लिए हमारे बेटे के लिए मैंने मन में ठान ली थी की हर हाल में उसे जन्म दूंगी .'
' त.. तुमने मुझे पता क्यों नहीं किया .'
' मेरे पास तुम्हारा कोई पता नहीं था. कहाँ-कहाँ धक्के खाए मैंने तुम्हारा पता जानने के लिए , मगर मैं नाकाम रही .'
' उफ़, मेरे भगवन क्या क्या बीती होगी तुम पर?'
' मत पुचो सागर मैं अपने प्यार की निशानी को जन्म देने के लिए यहाँ छटपटाती रही , किस-किस दरवाजे पर दस्तक दी, मगर .... मगर मैं हर तरफ से निराश ही रही और आखिर में तंग आकर मैंने पिता का घर छोड़ दिया.'
' सागर बिलख पडा - 'त... तुमने कितनी विपदाओं का सामना किया सुमेधा . तुमने मेरी खातिर कितने कुछ पहले ही किया था मेरे जाने के बाद भी तुमने मेरे प्रति समर्पित भवना पर आंच नहीं आने दी आखिर , उस समय में भी मेरे लिए मेरे प्यार की निशानी को जीवनदान देने के लिए घर त्याग दिया. '
' सुमेधा की आँखों से आंसुओं की दो धराये निकलकर उसके सुर्ख गोल चेहरे को गीला करने लगी. '
' सुमेधा की रुलायी फूट पड़ी - उसके बाद सहर मैंने कहाँ कहाँ धक्के नहीं खाए कितने लोगो ने मेरी मजबूरी का फायदा उठाकर मुझे अपनी हवस का शिकार बनाना चाह मैं दर दर भटकी , लेकिन कहीं किनारा न मिला .'

samir
Posts: 5
Joined: 20 Apr 2016 15:13

Re: तुम्हारी मुस्कराहट मेरी ज़िन्दगी

Unread post by samir » 02 May 2016 17:06

good story but how to continue this story ?

Post Reply