Re: कामवासना
Posted: 10 Dec 2014 09:45
क्या । वह हैरत से बोली - तुम्हें मुझे पूरी तरह से देखने की इच्छा नहीं करती ?
- कभी नहीं । वह एक झटके से सख्त स्वर में बोला - क्योंकि साथ ही मुझे ये भी पता है । तुम मेरी भाभी हो । भाभी माँ । और एक बच्चा भी अपने माँ के आँचल से प्यार करता है । सम्मोहित होता है । उसे भी उन स्तनों से लगाव होता है । जिनसे वह पोषण पाता है । वह ठीक पति की तरह माँ के शरीर को कहीं भी स्पर्श करता है । उसके पूर्ण शरीर पर जननी भूमि की तरह खेलता है । पर आप बताओ । उसकी ऐसी इच्छा कभी हो सकती है कि मैं अपनी माँ को नंगा देखूँ ।
पदमा की बङी बङी काली आँखें आश्चर्य से फ़ैल गयी । उसका सौन्दर्य अभिमान पल में चूर चूर हो गया । मनोज जितना बोल रहा था । एकदम सच बोल रहा था ।
क्या अजीव झमेला सा था । नितिन बङी हैरत में था । वह कोई निर्णय नहीं ले पा रहा था । यहाँ रुके । या घर चला जाये । इसको साथ ले जाये । या इसके हाल पर छोङ जाये । कौन था ये लङका ? कैसी अजीव सी थी इसकी कहानी । और वह काली स्त्री छाया ।
उसने फ़िर से उधर देखा । वह भी मानों थक कर जमीन पर बैठ गयी थी । और अचानक वह चौंका । मनोज ने जेब से देशी तमंचा निकाला । और उसकी ओर बङाया ।
- मेरे अजनबी दोस्त । वह डूबे स्वर में बोला - आज तुम मेरी कहानी सुन लो । मुझे कसूरवार पाओ । तो बे झिझक मुझे शूट कर देना । और यदि तुम मेरी कहानी नहीं सुनते । बीच में ही चले जाते हो । फ़िर मैं ही अपने आपको शूट कर लूँगा । और इसके जिम्मेदार तुम होगे । सिर्फ़ तुम ।
उसने उँगली नितिन की तरफ़ उठाई । वह कुछ न बोला । और चुप बैठा हुआ उसके अगले कदम की प्रतीक्षा करने लगा ।
मध्य प्रदेश । यानी मध्य भारत का 1 राज्य । राजधानी भोपाल । यह प्रदेश 1 NOV 2000 तक क्षेत्रफल के आधार पर भारत का सबसे बडा राज्य था । लेकिन 1 NOV 2000 के दिन इस राज्य के कई नगर उससे हटा कर छत्तीसगढ़ बना दिया गया । इस प्रदेश की सीमायें - महाराष्ट्र । गुजरात । उत्तर प्रदेश । छत्तीसगढ़ । और राजस्थान से मिलती है ।
भारत की गौरवशाली संस्कृति में मध्य प्रदेश किसी जगमगाते दीप के जैसा है । जिसकी रोशनी की अलग ही चमक और अलग प्रभाव है । विभिन्न संस्कृतियों की अनेकता में एकता के आकर्षक गुलदस्ता जैसा । जिसे प्रकृति ने स्वयं अपने हाथों से सजाया हो । और जिसका सौन्दर्य और सुगन्ध चारों ओर फैल रहे हों । यहाँ की आबोहवा में कला । साहित्य । संस्कृति की मधुर गन्ध सी बहती है । यहाँ के लोक समूहों और जन जाति समूहों में प्रतिदिन नृत्य । संगीत । गीत की रसधार सहज प्रवाहित होती है । इसलिये हर दिन ही उत्सव जैसा होकर जीवन में आनन्द रस घोल देता है । मध्य प्रदेश के तुंग उतुंग पर्वत शिखर । विन्ध्य सतपुड़ा । मैकल कैमूर की उपत्यिकाओं के अन्तर से गूँजती अनेक पौराणिक कथायें । नर्मदा । सोन । सिन्ध । चम्बल । बेतवा । केन । धसान । तवा । ताप्ती आदि नदियों के उदगम और मिलन की कथाओं से फूटती हजारों धारायें यहाँ के जीवन को हरा भरा कर तृप्त करती हैं ।
इस राज्य में 5 लोक संस्कृतियों का समावेश है । ये 5 साँस्कृतिक क्षेत्र है - निमाड़ । मालवा । बुन्देलखण्ड । बघेलखण्ड । ग्वालियर ( चंबल ) प्रत्येक भू भाग का अलग जीवंत लोक जीवन । साहित्य । संस्कृति । इतिहास । कला । बोली और परिवेश है ।
इस राज्य की संस्कृति बहुरंगी है । महाराष्ट्र । गुजरात । उड़ीसा की तरह मध्य प्रदेश को खास भाषाई संस्कृति से नहीं पहचाना जाता । बल्कि यहाँ विभिन्न लोक और जन जातीय संस्कृतियों का समागम है । इसलिये कोई एक लोक संस्कृति नहीं है । एक तरफ़ यहाँ 5 लोक संस्कृतियों का आपसी समावेश है । दूसरी ओर अनेक जन जातियों की आदिम संस्कृतियों का सुखद नजारा है ।
मध्य प्रदेश के 5 सांस्कृतिक क्षेत्र - निमाड़ । मालवा । बुन्देलखण्ड । बघेलखण्ड । ग्वालियर और धार - झाबुआ । मंडला - बालाघाट । छिन्दवाड़ा । होशंगाबाद । खण्डवा - बुरहानपुर । बैतूल । रीवा - सीधी । शहडोल आदि जन जातीय क्षेत्रों में विभक्त है ।
निमाड़ मध्य प्रदेश के पश्चिमी अंचल में आता है । इसकी भौगोलिक सीमाओं में एक तरफ़ विन्ध्य की उतुंग पर्वत श्रृंखला । और दूसरी तरफ़ सतपुड़ा की सात उपत्यिकाएँ हैं । और मध्य में बहती है । नर्मदा की जल धार । पौराणिक काल में निमाड़ अनूप जनपद कहलाता था । बाद में इसे निमाड़ कहा गया ।
महाकवि कालीदास की धरती मालवा हरी भरी धन धान्य से भरपूर रही है । यहाँ के लोगों ने कभी अकाल नहीं देखा । विन्ध्याचल के पठार पर प्रसरित मालवा की भूमि सस्य । श्यामल । सुन्दर और उर्वर तो है ही । ये धरती पश्चिम भारत की सबसे अधिक स्वर्णमयी और गौरवमयी भूमि रही है ।
उत्तर में यमुना । दक्षिण में विंध्य प्लेटों की श्रेणियों । उत्तर - पश्चिम में चंबल । और दक्षिण पूर्व में पन्ना । आजमगढ़ श्रेणियों से घिरे भू भाग को बुंदेलखंड नाम से जाना जाता है । कनिंघम ने बुंदेलखंड के अधिकतम विस्तार के समय इसमें गंगा और यमुना का समस्त दक्षिणी प्रदेश जो पश्चिम में बेतवा नदी से पूर्व में चन्देरी और सागर के जिलों सहित विंध्यवासिनी देवी के मन्दिर तक तथा दक्षिण में नर्मदा नदी के मुहाने के निकट बिल्हारी तक प्रसरित था
बघेलखण्ड का सम्बन्ध भी अति प्राचीन भारतीय संस्कृति से है । यह भू भाग रामायण काल में कोसल प्रान्त के अन्तर्गत था । महाभारत काल में विराट नगर बघेलखण्ड भूमि पर ही था । जिसका नाम आजकल सोहागपुर है । भगवान राम की वनवास यात्रा इसी क्षेत्र से हुई थी । यहाँ के लोगों में शिव । शाक्त । वैष्णव सम्प्रदाय की परम्परा विद्यमान है । नाथ पंथी योगियो का भी खासा प्रभाव है । पर कबीर पंथ का प्रभाव सर्वाधिक है । कबीर के खास शिष्य धर्मदास बाँदवगढ़ निवासी ही थे ।
ग्वालियर मध्य प्रदेश का चंबल क्षेत्र । भारत का मध्य भाग । यहाँ भारतीय इतिहास की अनेक महत्त्वपूर्ण घटनायें हुई हैं । इस क्षेत्र का सांस्कृतिक आर्थिक केंद्र ग्वालियर शहर है । सांस्कृतिक रुप से भी यहाँ अनेक संस्कृतियों का आवागमन और संगम हुआ है । 1857 का पहला स्वतंत्रता संग्राम झाँसी की वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई ने इसी भूमि पर लड़ा था ।
इसी मध्य प्रदेश के निमाङ की अमराइयो में कोयल की कूक गूंजने लगी थी । पलाश के फूलो की लाली फ़ैल रही थी । होली का खुमार सिर चढकर बोल रहा था । मधुर गीतों की गूँज से निमाङ चहक रहा था ।
दिल में ढेरों रंग बिरंगे अरमान लिये रंग बिरंगे ही वस्त्रों में सजी सुन्दर युवतियों के होंठ गुनगुना रहे थे - म्हारा हरिया ज्वारा हो कि । गहुआ लहलहे मोठा हीरा भाई वर बोया जाग । कि लाड़ी बहू सींच लिया रानी सिंची न जाण्य हो कि ज्वारा पेला पडया । उनकी सरस क्थो लाई हो । हीरा भाई ढकी लिया ।
इसी रंग बिरंगी धरती पर वह रूप की रंगीली रानी आँखों में रंग बिरंगे ही सपने सजाये जैसे सब बन्धन तोङ देने को मचल रही थी । उसकी छातियों में मीठी मीठी कसक सी होती थी । उसके दिल में कोई अनजान सी हूक उठती थी । हाय वो कौन होगा । जो उसे बाँहों में भींच कर रख देगा ।
सासु न बहू गौर पूजा ही रना देव । अडोसन पड़ोसन गौर पूजा हो रना देव । पड़ोसन पर तुटयो गरबो भान हो रना देव । कसी पट तुटयो गरबो भान हो रना देव । दूध केरी दवनी मङ घेर हो रना देव । पूत करो पालनों पटसल हो रना देव । स्वामी सुत सुख लड़ी सेज हो रना देव । असी पट तुटयो गरबो भान हो रना देव ।
आज की रात । उसने सोचा । इसी वीराने में बीतने वाली थी । कहाँ का फ़ालतू लफ़ङा उसे आ लगा था । साँप के मुँह छछूँदर । न निगलते बने । न उगलते ।
- पर पर मेरे दोस्त । वह फ़िर से बोला - जिन्दगी किसी हसीन ख्वाव जैसी नहीं होती । कभी नहीं होती । जिन्दगी की ठोस हकीकत कुछ और ही होती है ? कुछ और ही ।
यकायक वह उकता सा उठा । वह उठ खङा हुआ । और फ़िर बिना बोले ही चलने को हुआ । मनोज ने उसे कुछ नहीं कहा । और तमंचा कनपटी से लगा लिया - ओ के मेरे अजनबी दोस्त अलबिदा ।
आ वैल मुझे मार । जबरदस्ती गले लग जा । शायद इसी के लिये कहा गया है । हारे हुये जुआरी की तरह वह फ़िर से बैठ गया । उसने एक सिगरेट निकाली । और सुलगा ली । लेकिन नितिन खामोशी से उस छाया को ही देखता रहा ।
- लेकिन मैं शर्मिन्दा नहीं हूँ । पदमा सहजता से बोली - अभी भी नहीं हूँ । अभी अभी तुमने कहा । तुम्हें मुझे यहाँ देखना भाता है । फ़िर बताओ । क्यों । बोलो बोलो । ऐसे ही मैं भी तुमको बहुत निगाहों से देखती हूँ । अगर तुम्हारे दिल में कुछ काम रस सा जागता है । फ़िर मेरे दिल में क्यों नहीं ? और वैसे भी देवर भाभी का सम्बन्ध अनैतिक नहीं है । देवर को द्वय वर कहा गया है । दूसरा वर । यह एक तरह से समाज का अलिखित कानून है । देवर भाभी के शरीरों का मिलन हो सकता है ।
मनोज शायद तुम्हें मालूम न हो । अभी तुम दुनियादारी के मामले में बच्चे हो । अगर किसी स्त्री को उसके पति की कमी से औलाद ना होती हो । तो उसकी अतृप्त जमीन में देवर ही बीजारोपण का प्रथम अधिकारी होता है । उसके बाद । कुछ परिस्थितियों में जेठ भी । और जानते हो । ऐसा हमेशा घर वालों की मर्जी से उनकी जानकारी में होता है । वे कुँवारे और शादीशुदा देवर को प्रेरित करते हैं कि वह भाभी की उजाङ जमीन पर खुशियों की फ़सल लहलहा दे ।
नितिन के दिमाग में एक विस्फ़ोट सा हुआ । कैसा अजीव संसार है यह । शायद यहाँ बहुत कुछ ऐसा विचित्र है । जिसको उस जैसे लोग कभी नहीं जान पाते । तन्त्र दीप से शुरू हुयी उसकी मामूली प्रेतक जिज्ञासा इस लङके के दिल में घुमङते कैसे तूफ़ान को सामने ला रही थी । उसने सोचा तक न था । सोच भी न सकता था ।
- शब्द । शब्द । वह तमंचा जमीन पर रखता हुआ बोला - और शब्द । शब्दों का कमाल । कितनी हैरानी की बात थी । भाभी के शब्द आज मुझे जहर से लग रहे थे । उसके चुलवुले पन में मुझे एक नागिन नजर आ रही थी । उसके बेमिसाल सौन्दर्य में मुझे काली नागिन नजर आ रही थी । एक खतरनाक चुङैल । खतरनाक चुङैल । मुझे..अचानक उसे कुछ याद सा आया - एक बात बताओ । तुम भूत प्रेतों में विश्वास करते हो । मेरा मतलब । भूत होते हैं । या नहीं होते हैं ?
नितिन ने एक सिहरती सी निगाह काली छाया पर डाली । उसका ध्यान सरसराते पीपल के पत्तों पर गया ।
- कभी नहीं । वह एक झटके से सख्त स्वर में बोला - क्योंकि साथ ही मुझे ये भी पता है । तुम मेरी भाभी हो । भाभी माँ । और एक बच्चा भी अपने माँ के आँचल से प्यार करता है । सम्मोहित होता है । उसे भी उन स्तनों से लगाव होता है । जिनसे वह पोषण पाता है । वह ठीक पति की तरह माँ के शरीर को कहीं भी स्पर्श करता है । उसके पूर्ण शरीर पर जननी भूमि की तरह खेलता है । पर आप बताओ । उसकी ऐसी इच्छा कभी हो सकती है कि मैं अपनी माँ को नंगा देखूँ ।
पदमा की बङी बङी काली आँखें आश्चर्य से फ़ैल गयी । उसका सौन्दर्य अभिमान पल में चूर चूर हो गया । मनोज जितना बोल रहा था । एकदम सच बोल रहा था ।
क्या अजीव झमेला सा था । नितिन बङी हैरत में था । वह कोई निर्णय नहीं ले पा रहा था । यहाँ रुके । या घर चला जाये । इसको साथ ले जाये । या इसके हाल पर छोङ जाये । कौन था ये लङका ? कैसी अजीव सी थी इसकी कहानी । और वह काली स्त्री छाया ।
उसने फ़िर से उधर देखा । वह भी मानों थक कर जमीन पर बैठ गयी थी । और अचानक वह चौंका । मनोज ने जेब से देशी तमंचा निकाला । और उसकी ओर बङाया ।
- मेरे अजनबी दोस्त । वह डूबे स्वर में बोला - आज तुम मेरी कहानी सुन लो । मुझे कसूरवार पाओ । तो बे झिझक मुझे शूट कर देना । और यदि तुम मेरी कहानी नहीं सुनते । बीच में ही चले जाते हो । फ़िर मैं ही अपने आपको शूट कर लूँगा । और इसके जिम्मेदार तुम होगे । सिर्फ़ तुम ।
उसने उँगली नितिन की तरफ़ उठाई । वह कुछ न बोला । और चुप बैठा हुआ उसके अगले कदम की प्रतीक्षा करने लगा ।
मध्य प्रदेश । यानी मध्य भारत का 1 राज्य । राजधानी भोपाल । यह प्रदेश 1 NOV 2000 तक क्षेत्रफल के आधार पर भारत का सबसे बडा राज्य था । लेकिन 1 NOV 2000 के दिन इस राज्य के कई नगर उससे हटा कर छत्तीसगढ़ बना दिया गया । इस प्रदेश की सीमायें - महाराष्ट्र । गुजरात । उत्तर प्रदेश । छत्तीसगढ़ । और राजस्थान से मिलती है ।
भारत की गौरवशाली संस्कृति में मध्य प्रदेश किसी जगमगाते दीप के जैसा है । जिसकी रोशनी की अलग ही चमक और अलग प्रभाव है । विभिन्न संस्कृतियों की अनेकता में एकता के आकर्षक गुलदस्ता जैसा । जिसे प्रकृति ने स्वयं अपने हाथों से सजाया हो । और जिसका सौन्दर्य और सुगन्ध चारों ओर फैल रहे हों । यहाँ की आबोहवा में कला । साहित्य । संस्कृति की मधुर गन्ध सी बहती है । यहाँ के लोक समूहों और जन जाति समूहों में प्रतिदिन नृत्य । संगीत । गीत की रसधार सहज प्रवाहित होती है । इसलिये हर दिन ही उत्सव जैसा होकर जीवन में आनन्द रस घोल देता है । मध्य प्रदेश के तुंग उतुंग पर्वत शिखर । विन्ध्य सतपुड़ा । मैकल कैमूर की उपत्यिकाओं के अन्तर से गूँजती अनेक पौराणिक कथायें । नर्मदा । सोन । सिन्ध । चम्बल । बेतवा । केन । धसान । तवा । ताप्ती आदि नदियों के उदगम और मिलन की कथाओं से फूटती हजारों धारायें यहाँ के जीवन को हरा भरा कर तृप्त करती हैं ।
इस राज्य में 5 लोक संस्कृतियों का समावेश है । ये 5 साँस्कृतिक क्षेत्र है - निमाड़ । मालवा । बुन्देलखण्ड । बघेलखण्ड । ग्वालियर ( चंबल ) प्रत्येक भू भाग का अलग जीवंत लोक जीवन । साहित्य । संस्कृति । इतिहास । कला । बोली और परिवेश है ।
इस राज्य की संस्कृति बहुरंगी है । महाराष्ट्र । गुजरात । उड़ीसा की तरह मध्य प्रदेश को खास भाषाई संस्कृति से नहीं पहचाना जाता । बल्कि यहाँ विभिन्न लोक और जन जातीय संस्कृतियों का समागम है । इसलिये कोई एक लोक संस्कृति नहीं है । एक तरफ़ यहाँ 5 लोक संस्कृतियों का आपसी समावेश है । दूसरी ओर अनेक जन जातियों की आदिम संस्कृतियों का सुखद नजारा है ।
मध्य प्रदेश के 5 सांस्कृतिक क्षेत्र - निमाड़ । मालवा । बुन्देलखण्ड । बघेलखण्ड । ग्वालियर और धार - झाबुआ । मंडला - बालाघाट । छिन्दवाड़ा । होशंगाबाद । खण्डवा - बुरहानपुर । बैतूल । रीवा - सीधी । शहडोल आदि जन जातीय क्षेत्रों में विभक्त है ।
निमाड़ मध्य प्रदेश के पश्चिमी अंचल में आता है । इसकी भौगोलिक सीमाओं में एक तरफ़ विन्ध्य की उतुंग पर्वत श्रृंखला । और दूसरी तरफ़ सतपुड़ा की सात उपत्यिकाएँ हैं । और मध्य में बहती है । नर्मदा की जल धार । पौराणिक काल में निमाड़ अनूप जनपद कहलाता था । बाद में इसे निमाड़ कहा गया ।
महाकवि कालीदास की धरती मालवा हरी भरी धन धान्य से भरपूर रही है । यहाँ के लोगों ने कभी अकाल नहीं देखा । विन्ध्याचल के पठार पर प्रसरित मालवा की भूमि सस्य । श्यामल । सुन्दर और उर्वर तो है ही । ये धरती पश्चिम भारत की सबसे अधिक स्वर्णमयी और गौरवमयी भूमि रही है ।
उत्तर में यमुना । दक्षिण में विंध्य प्लेटों की श्रेणियों । उत्तर - पश्चिम में चंबल । और दक्षिण पूर्व में पन्ना । आजमगढ़ श्रेणियों से घिरे भू भाग को बुंदेलखंड नाम से जाना जाता है । कनिंघम ने बुंदेलखंड के अधिकतम विस्तार के समय इसमें गंगा और यमुना का समस्त दक्षिणी प्रदेश जो पश्चिम में बेतवा नदी से पूर्व में चन्देरी और सागर के जिलों सहित विंध्यवासिनी देवी के मन्दिर तक तथा दक्षिण में नर्मदा नदी के मुहाने के निकट बिल्हारी तक प्रसरित था
बघेलखण्ड का सम्बन्ध भी अति प्राचीन भारतीय संस्कृति से है । यह भू भाग रामायण काल में कोसल प्रान्त के अन्तर्गत था । महाभारत काल में विराट नगर बघेलखण्ड भूमि पर ही था । जिसका नाम आजकल सोहागपुर है । भगवान राम की वनवास यात्रा इसी क्षेत्र से हुई थी । यहाँ के लोगों में शिव । शाक्त । वैष्णव सम्प्रदाय की परम्परा विद्यमान है । नाथ पंथी योगियो का भी खासा प्रभाव है । पर कबीर पंथ का प्रभाव सर्वाधिक है । कबीर के खास शिष्य धर्मदास बाँदवगढ़ निवासी ही थे ।
ग्वालियर मध्य प्रदेश का चंबल क्षेत्र । भारत का मध्य भाग । यहाँ भारतीय इतिहास की अनेक महत्त्वपूर्ण घटनायें हुई हैं । इस क्षेत्र का सांस्कृतिक आर्थिक केंद्र ग्वालियर शहर है । सांस्कृतिक रुप से भी यहाँ अनेक संस्कृतियों का आवागमन और संगम हुआ है । 1857 का पहला स्वतंत्रता संग्राम झाँसी की वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई ने इसी भूमि पर लड़ा था ।
इसी मध्य प्रदेश के निमाङ की अमराइयो में कोयल की कूक गूंजने लगी थी । पलाश के फूलो की लाली फ़ैल रही थी । होली का खुमार सिर चढकर बोल रहा था । मधुर गीतों की गूँज से निमाङ चहक रहा था ।
दिल में ढेरों रंग बिरंगे अरमान लिये रंग बिरंगे ही वस्त्रों में सजी सुन्दर युवतियों के होंठ गुनगुना रहे थे - म्हारा हरिया ज्वारा हो कि । गहुआ लहलहे मोठा हीरा भाई वर बोया जाग । कि लाड़ी बहू सींच लिया रानी सिंची न जाण्य हो कि ज्वारा पेला पडया । उनकी सरस क्थो लाई हो । हीरा भाई ढकी लिया ।
इसी रंग बिरंगी धरती पर वह रूप की रंगीली रानी आँखों में रंग बिरंगे ही सपने सजाये जैसे सब बन्धन तोङ देने को मचल रही थी । उसकी छातियों में मीठी मीठी कसक सी होती थी । उसके दिल में कोई अनजान सी हूक उठती थी । हाय वो कौन होगा । जो उसे बाँहों में भींच कर रख देगा ।
सासु न बहू गौर पूजा ही रना देव । अडोसन पड़ोसन गौर पूजा हो रना देव । पड़ोसन पर तुटयो गरबो भान हो रना देव । कसी पट तुटयो गरबो भान हो रना देव । दूध केरी दवनी मङ घेर हो रना देव । पूत करो पालनों पटसल हो रना देव । स्वामी सुत सुख लड़ी सेज हो रना देव । असी पट तुटयो गरबो भान हो रना देव ।
आज की रात । उसने सोचा । इसी वीराने में बीतने वाली थी । कहाँ का फ़ालतू लफ़ङा उसे आ लगा था । साँप के मुँह छछूँदर । न निगलते बने । न उगलते ।
- पर पर मेरे दोस्त । वह फ़िर से बोला - जिन्दगी किसी हसीन ख्वाव जैसी नहीं होती । कभी नहीं होती । जिन्दगी की ठोस हकीकत कुछ और ही होती है ? कुछ और ही ।
यकायक वह उकता सा उठा । वह उठ खङा हुआ । और फ़िर बिना बोले ही चलने को हुआ । मनोज ने उसे कुछ नहीं कहा । और तमंचा कनपटी से लगा लिया - ओ के मेरे अजनबी दोस्त अलबिदा ।
आ वैल मुझे मार । जबरदस्ती गले लग जा । शायद इसी के लिये कहा गया है । हारे हुये जुआरी की तरह वह फ़िर से बैठ गया । उसने एक सिगरेट निकाली । और सुलगा ली । लेकिन नितिन खामोशी से उस छाया को ही देखता रहा ।
- लेकिन मैं शर्मिन्दा नहीं हूँ । पदमा सहजता से बोली - अभी भी नहीं हूँ । अभी अभी तुमने कहा । तुम्हें मुझे यहाँ देखना भाता है । फ़िर बताओ । क्यों । बोलो बोलो । ऐसे ही मैं भी तुमको बहुत निगाहों से देखती हूँ । अगर तुम्हारे दिल में कुछ काम रस सा जागता है । फ़िर मेरे दिल में क्यों नहीं ? और वैसे भी देवर भाभी का सम्बन्ध अनैतिक नहीं है । देवर को द्वय वर कहा गया है । दूसरा वर । यह एक तरह से समाज का अलिखित कानून है । देवर भाभी के शरीरों का मिलन हो सकता है ।
मनोज शायद तुम्हें मालूम न हो । अभी तुम दुनियादारी के मामले में बच्चे हो । अगर किसी स्त्री को उसके पति की कमी से औलाद ना होती हो । तो उसकी अतृप्त जमीन में देवर ही बीजारोपण का प्रथम अधिकारी होता है । उसके बाद । कुछ परिस्थितियों में जेठ भी । और जानते हो । ऐसा हमेशा घर वालों की मर्जी से उनकी जानकारी में होता है । वे कुँवारे और शादीशुदा देवर को प्रेरित करते हैं कि वह भाभी की उजाङ जमीन पर खुशियों की फ़सल लहलहा दे ।
नितिन के दिमाग में एक विस्फ़ोट सा हुआ । कैसा अजीव संसार है यह । शायद यहाँ बहुत कुछ ऐसा विचित्र है । जिसको उस जैसे लोग कभी नहीं जान पाते । तन्त्र दीप से शुरू हुयी उसकी मामूली प्रेतक जिज्ञासा इस लङके के दिल में घुमङते कैसे तूफ़ान को सामने ला रही थी । उसने सोचा तक न था । सोच भी न सकता था ।
- शब्द । शब्द । वह तमंचा जमीन पर रखता हुआ बोला - और शब्द । शब्दों का कमाल । कितनी हैरानी की बात थी । भाभी के शब्द आज मुझे जहर से लग रहे थे । उसके चुलवुले पन में मुझे एक नागिन नजर आ रही थी । उसके बेमिसाल सौन्दर्य में मुझे काली नागिन नजर आ रही थी । एक खतरनाक चुङैल । खतरनाक चुङैल । मुझे..अचानक उसे कुछ याद सा आया - एक बात बताओ । तुम भूत प्रेतों में विश्वास करते हो । मेरा मतलब । भूत होते हैं । या नहीं होते हैं ?
नितिन ने एक सिहरती सी निगाह काली छाया पर डाली । उसका ध्यान सरसराते पीपल के पत्तों पर गया ।