Re: देवरानी जेठानी
Posted: 25 Dec 2014 14:06
फिर दुलहा और दुलहन को पलंग पर बिठा के धान बोये। लौंडिया रोने लगी कि मैं तो सासू के नहीं जाऊँगी। उस समय उसकी मॉं, दादी और चाची समेत और जो स्त्रियें खड़ी थीं सब आँसू भर लायीं उन सबको रोते देख दौलतराम की ऑंखों में से भी ऑंसू निकल पड़े और कहने लगा बेटी रोवे मत, तुझे जल्दी बुला लेंगे। फिर लड़की और लड़के को पालकी में बिठा दिया और बुढ़ाने दरवाजे तक सब बिरादरी के आदमी बारात को पहुँचाने आए। समधियों से राम-राम कर अपने–अपने घर चले गए।
लाला सर्वसुखजी की सलाह तीन रोटी देने की थी। कहीं छोटेलाल के मुँह से निकल गई थी कि दो ही रोटी बहुत है। इस बात पर दौलतराम की बहु बहुत नाची-कूदी और कहने लगी कि छोटेलाल की गॉंठ का क्या खर्च हो था? अभी तो मालिक बैठा है।
नन्हे की सगाई बुलन्द शहर में झुन्नी-मुन्नी के यहॉं हुई थी। वह खत्ती भरा करें थे। नाज का भाव जो गिरा उन्होंने अपनी चारों खत्ती बेच दीं। इसमें उनकू दो हजार रुपये बन रहे। सो उन्होंने यह सलाह की कि भाई लौंडिया का बिवाह कर दो। यह इसी के भाग के हैं।
बिवाह सुझवा के सर्वसुखजी को एक चिट्ठी भेजी कि सतवा तीज का बिवाह न केवल सूझे है बहुत शुभ भी है सो तुमको रखना होगा और पीछे से नाई साहे चिट्ठी लेके आवेगा।
जब यह चिट्ठी यहॉं आई लाला ने छोटेलाल और दौलतराम को उनकी मॉं के सामने बुला के सलाह की। ये ही ठहरी कि रख लो। जहॉं सौ नहीं, सवाये। छोटे लाल ने कहा कि हमें अपने काम से काम है बहुत-सी टीप-टाप में कहॉं की नमूद मरी जा है।
लाला की घरवाली बोली कि कल को दो रुपये का कुसुंभ भेज देना। हम रैनी तो चढ़ा लें और गोटा किनारी लेते आना। दिन कै रह गये हैं। आगे सीना-पिरोना है।
लाला बोले यह सब काम दौलतराम कर देगा और भाई छोटेलाल कल चौधरी को बुला के पूछो तो सही कि कितने-कितने गाड़ी हो हैं।
छोटेलाल ने कहा कि पहिले सवारी लिखी जायँ कि कितनी बहिली जायँगी। तब दो जगह पूछकर किराये कर लेंगे।
दौलत राम ने कहा चबीनी तो दो दिन पहिले हो जायगी, क्योंकि गर्मी के दिन हैं। बहुत दिन में पकवान बुस जा है।
अगले दिन यहॉं से बुलन्द शहर की चिट्ठी का उत्तर लिख दिया गया है और थोड़े दिन पीछे वहॉं से नाई साहे चिट्ठी ले के आया। उसमें सात बान लौंडे के और पॉंच बान लौंडिया के लिखे थे। तिवास के दिन सारी बिरादरी को जेवनहार हुई। जो जीवने नहीं आया, उसका परोसा घर बैठे गया। जब लौंडा घोड़ी चढ़ लिया रात को बारात चल दी और हापुड़ जा ठहरी। वहॉं लाला ने पहिले ही आदमी भेज दिये थे कि वहॉं जाकर बन्शीधर से कह के बाग में कढ़ाई चढ़वा दें। सो वहॉं सब सामान तैयार था।
लाला ने बरातियों से कहॉं लो भाई, न्हा-धो के पहिले भोजन कर लो।
रात को चबीनी बॉंट के फिर चल दिये और दो पहर से पहिले बुलन्द शहर जा पहुँचे। शहर के बाहर से बेटीवाले के घर खबर करने को नाई भेज दिया। जब बारात चढ़ ली गाड़ीवानों से दाने-भूसे पर तकरार हुई। ताशेवालों और जाजकियों ने एक-एक आदमी के दो-दो परोसे मॉंगे। जब वार-द्वारी हो चुकी, तब नौशे को जनवासे में ले गए। और जब लौंडा फेरों पर से उठ के थापा पूजने गया, वहॉं उसने यह चार छन कहे और एक-एक छन का एक-एक रुपया लिया।
1- छन पिराकी आईयॉं और छन पिराकी जोड़ा
दूसरा छन जब कहूँगा जब ससुर देगा घोड़ा।
2- छन पिराकी आईयॉं और छन पिराकी धार।
अब का छन जब कहूँ जब सासू देंगी हार।
3- छन पिराकी आईयॉं और छन पिराकी बोता।
धौंसा लेके ब्याहने आया सर्वसुख का पोता।
यह सुनकर सब स्त्रियॉं हँस पड़ी और कहा तीन हुए। एक और कह दो।
4- छन पिराकी आईयॉं और छन पिराकी खुरमा
तुम्हारी बेटी ऐसी रक्खूँ जैसे ऑंखों में का सुरमा।।
दो रात बरात वहॉं रही और विदा होकर बराती आनन्दपूर्वक अपने घर आ गए।
यहॉं खोडि़ये में अर्थात विवाहवाली रात को अड़ौसन और बिरादरी की स्त्रियें इक्ट्ठी हुई। सबने गाया-बजाया। पैसा-पैसा बेल का दिया नाच-कूद हो रहा था कि चौधरी की बहु ने कहा-अरी दौलतराम की बहु कहॉं है?
उसकी सास बोली अपने घर पड़ी सोवे है।
उसने कहा यहॉं क्यों नहीं आई? कहीं लड़ी तो नहीं थी।
छोटेलाल की बहु ने कहा नहीं जी, यहॉं तो उसे किसी ने आधी बात भी नहीं कही।
वह बोली उसे मैं लाऊँ हूँ और दो चार लुगाइयों को साथ ले उसके घर पहुँची और शर्माशर्मी सोती को उठा के लायी और सबके बीच बिठा के उससे ढोलक बजवायी। वह बेचारी गाना बजाना क्या जाने थी।
ढोलकी के बजते ही सब लुगाई हँस पड़ीं।
वह वहॉं से उठ खड़ी हुई और रूस के अपने घर चली गई।
सबने मनाया फिर न बैठी।
अब लाला सर्वसुख जी बहुत बूढ़े हो गए थे, दूकान का काम तो बड़े बेटे दौलतराम ने सँभाल लिया था परन्तु लाठी ले-के ढुलकते-ढुलकते दोपहर पीछे रोटी खा के दूकान चले जाया करें थे।
छोटेलाल यह कहा करे था कि लाला जी अब तुम बैठ के भगवान का भजन करो और इस जगत की माया मोह को छोड़ो। छोटी बहु सुसरे की बड़ी टहल करे थी। बिछौना बिछाना, धोती धोना, रात को गर्म दूध करके पिलाना यह सब काम यही करे थी और अपने भनेलियों से कहती कि जी यह हमारे तीर्थ हैं। हमारे कहॉं भाग जो अपने बड़ों की टहल करें। धर्म-शास्त्र में लिखा है कि जो अपने बड़ों की टहल करते हैं उनके कुल की वृद्धि होती है, और स्वर्ग प्राप्त होता है।
जब कभी वह बूढ़ा दौलतराम की बहु से पानी मॉंगता वा और काम को कहता तो काम तो क्या करती, परंतु कहती कि उत्ता मरता भी तो ना है। रात-दिन कान खा है।
वह कहता हॉं बहु सच है, हमारी वह कहावत है-दॉंत घिसे और खुर घिसे, पीठ बोझ ना ले। ऐसे बूढ़े बैल को कौन बॉंध भुस दे।
बुढि़या उतनी नहीं थक गई थी। अपना काम अपने हाथ से कर ले थी। छोटेलाल की बहु से कहा करे थी अरे तेली के बैल की तरह दिन-भर इतना मत पिले। मॉंदी पड़ जायगी तो हमें पानी कौन पकड़ावेगा? और बहु हमारे पक्के पात हैं। आज मरे कल दूसरा दिन। तेरा कच्चा कुनबा है।
इसी बात पर दौलतराम की बहु कहती कि देख बुढि़या दोजगन को। छोटी बहु को कैसी चाहे है?
एक दिन बैठे बिठाये बड़े लाला को ताप चढ़ आई तीसरे दिन खॉंसी हो गई फिर सांस हो आया। हकीमजी को बुलाया। उन्होंने नाड़ी देखके कहा कि लाला सर्वसुख जी की अब रामनगर की तैयारी है। औषधी मैं बतलाये देता हूँ, पिलाओ। और लाला से बोले कि लाला सर्वसुखजी, अब अच्छा समय है कि भगवान की दया से बेटे-पोते मौजूद हैं।
वह बोले हकीमजी कोई ऐसी औषधी दो कि अबकी बिरियॉं मैं बच जाऊँ और दौलतराम और छोटेलाल का साझा बाँट दूँ। मैं जानू हूँ कि मेरे पीछे फ़जीता होगा।
हकीम जी तो चले गये। लाला बेटे-पोतों की ओर देख ऑंसू भर लाये। उन दोनों का जी भर आया। बेचारी बुढि़या रोने लगी।
छोटेलाल ने कहा कि लाला जी, घबराओ मत। भगवान ने चाहा तो अच्छे हो जाओगे।
अगले दिन गौदान कराया और गंज की दूकान पुन्य करके पुरोहित को दी।
पॉंचवें दिन लाला का हाल बेहाल हो गया। जब नाड़ी बहुत मंद पड़ गयी गंगाजल मुँह में डालने लगे और फिर जमीन पर उतार कर पंचरत्न मुँह में डाला।
जब लाला काल कर गये, बेटे हाय लालाजी-लालाजी कहते हुए बाहर आन बैठे। मुरदे के चारों ओर स्त्रियॉं घिर आयीं और रोने-पीटने लगीं। बाहर जब मुहल्ले और बिरादरी के लोग इकट्ठे हो गए, बिमान बनाने की ठहरी। ताशेवाले और जाजकी बुलाये गये।
जब कोई मुहल्ले वा बिरादरी में से आता, यह कहता कि लाला सर्वसुखजी बड़े भाग्यवान थे जिनके बेटे-पोते मौजूद हैं। उनका आज तो खुशी का दिन है।
कोई कहता कि साहिब जहॉं मिल जायें थे पहिले से पहिले ही राम-राम कर लें थे। अच्छा स्वभाव था।
पुरोहित जी बोले कि महाराज, उन्होंने अपने जीते जी एक काम अच्छा किया इस काल में जितने कँगले आये सबको पाव-पाव भर दाने दिये।
जब दोनों भाई भद्र हो चुके, पिंजरी को उठा अन्दर ले गए और मुर्दे को न्हाला-धुला तख्तों पर रख दिया और एक दोशाला ऊपर डाल दिया और जरी की झालर ऊपर लगायी चारों ओर झंडियॉं लगायी गयीं।
एक पोते को घडि़याल बजाने को दी। शेष दोनों में से एक को शंख, दूसरे को घण्टा दिया। सुखदेई का बेटा शिवदयाल यहॉं मण्डी में मूँज बेचने आया था। नाना का मरना सुनते ही भागा आया।
लोग बोले साहेब धेवता भी आन पहुँचा। इसके हाथ में मोरछल दो।
फिर राम-राम सत्य कहते मुर्दे को मरघट में ले पहुँचे।
औरतें भी पीछे से सूर्य कुण्ड न्हाने गयीं। तीन दिन तक बड़े हॉंसे तमाशे रहे तीसरे दिन जब उठावनी हो चुकी, दसवें दिन न्हान धोवन हुआ। ग्यारवें दिन एकादशा में अचारज को बहुत माल दिया और लाला के हुलास सूँघने की चॉंदी की डिबिया भी दे दी। तेरहवीं के दिन सारी बिरादरी की जेवनार हुई। पक्का परोसा किया और मुहल्ले में भी बॉंटा।
अगले दिन से छोटेलाल नौकरी पर जाने लगा। दौलतराम दूकान के धंधे में लग गया। बुढि़या अब सुस्त रहने लगी। दौलतराम की बहु के अभिमान का कुछ ठिकाना नहीं रहा। ऐसी बढ़कर बातें मारती और कहती कि जो कुछ करे है, मेरा ही मालिक करे है। और यह सारी मेरी ही मालिक की कमाई है।
जो चीज लाला के सामने छोटेलाल के घर दूकान से आया करे थी, आना बन्द हो गई। बुढि़या बहुतेरा कहती पर उसकी कौन सुने था।
बहु के सिखाये में आके दौलतराम की दृष्टि भी फिर गई।
छोटेलाल ने एक दिन अपने घर में सलाह कि की भाई तो सारा माल-मता दबा बैठा। साझा बॉंटने के नाम से बात नहीं करता। अब क्या करें? उसने कहा सुनो जी हम क्या छाती पर रख कर ले जाऍंगे और आगे कौन ले गया है? बिरादरी वाले कहेंगे कि बाप के मरते ही फजीता हुआ। जब तक बुढि़या बैठी है, चुप ही रहो। आगे जो होगा देखी जायगी। भगवान का दिया हमारे यहॉं भी सब कुछ है।
बाप को मरे छह महीने बीते होंगे कि बुढि़या मर गई।
दौलत राम की बहु बोली बाप का मरना तो बड़े बेटे ने किया मॉं का मरना छोटा बेटा करेगा।
चौधरी की बहु ने कहा कि दूकान तो अभी साझे में है?
उसने बोली कि हैं किसका साझा? अपना खाना अपना पीना।
बाहर मर्दो में भी यही चर्चा फैली। दौलतराम ने एक न मानी। छोटेलाल का ही खर्च उठा। मॉं को बड़े गाजे बाजे के साथ निकाला। पहिले से अच्छी बिरादरी की जेवनहार कर दी।
जब छोटेलाल ने देखा बड़ा भाई किसी प्रकार से नहीं मानता, साझा बॉंटने के नाम लड़ने को दौड़े है। एक वकील की सलाह से तकसीम की अर्जी दे दी।
इस पर जवाबदेही दौलतराम ने की कि यह सब मेरा पैदा किया हुआ है।
हाकिम ने इस मुकदमे को पंचायत में भेज दिया। पंचों ने न्याय की रीति से आधा बॉंट दिया। दौलतराम को पंचों का कहा अंगीकार करना पड़ा क्योंकि उन्होंने समझा दिया कि जो तुम इसके न मानोगे और आगरे की सुध धरोगे तो बिगड़ जाओगे।
मण्डी की दूकान दौलत राम के पास रही। तिसपर भी दौलत राम की बहु कहने लगी कि हमकों पंचों ने लुटवा दिया। जिस हवेली में दोनों भाई रहें थे छोटेलाल के हिस्से में आई।
इस कारण दौलतराम को दूसरी हवेली में जाना पड़ा। जिस दिन दौलतराम की बहु उठ के गई चलती-चलती दो खिडकियों के किवाड़ और चौखट उतार के ले चली। जूँ ही दोवारी पहुँची चौखट से ठोकर खा के गिरी।
बोली हे भगवान उत्ते बैरी यहॉं भी चैन नहीं देते!
और बड़-बड़ करती चली गई।
समाप्त