Re: वर्ष २०१२ जिला धौलपुर की एक घटना - thriller adventure st
Posted: 30 Oct 2015 08:10
आज भूदेव बहुत प्रसन्न था! उसकी गंगा ने स्वीकार लिया था उसका प्रेम! इसी ख़ुशी में, अपने अंक में भींच लिया था गंगा को उसने! गंगा, लरज गयी थी! शायद अचेत ही हो जाती, अगर संभालता नहीं वो भूदेव तो! उसने तब संभाल कर खड़ा किया गंगा को! माला सब देखती रही! आखिर में, गंगा ने स्वीकार लिया था उसका प्रेम!
"आज मैं बहुत खुश हूँ गंगा!!" बोला वो!
अभी भी न बोली कुछ!
"पानी पिला गंगा?" बोला वो!
गंगा ने घड़ा उठाया और डाल उसके हाथों की ओख में! आठ-दस बड़े बड़े घूँट पानी के लिए उसने! फिर खड़ा हो गया, हाथ साफ़ किये, और पोंछ भी लिए!
"तूने माला नहीं पहनी?" पूछा उसने!
गंगा का हाथ, अपने गले पर रेंगा! और एक ऊँगली फंसा निकाल ली माला बाहर, उस कपड़े से, जिस से कंधे ढके थे उसने अपने!
"कितनी सुंदर लग रही है तू गंगा! सच्ची!" बोला वो!
गंगा चुप! लेकिन सुने सबकुछ!
"तेरे गले में कैसी खूबसूरत लग रही है! मुझे पता था, पता था कि ये माला तेरे लिए ही बनी है!" बोला भूदेव!
गंगा, अपने कांपते हाथ से, उस माला को ही पकड़े रही! ऊँगली से उठाकर!
"अब चलूँगा गंगा! दो दिन तक नहीं आऊंगा, तेरी याद आएगी बहुत" बोला भूदेव!
और गंगा, शांत सब सुने!
"मेरा इंतज़ार करना गंगा! अब चलता हूँ" बोला वो!
भूदेव ने, घोड़ा पकड़ा, उसकी लग़ाम और बैठ गया फिर उस पर, घोड़ा घुमाया और जाने से पहले, फिर रुका!
"मेरी याद आएगी न गंगा?" पूछा उसने!
गंगा कुछ न बोले! शांत खड़ी रहे! ज़मीन को ताकती!
"बोल न गंगा! याद आएगी न?" बोला वो!
"हाँ.." हल्की सी आवाज़ में बोली गंगा!
और भूदेव! जैसे झूम उठा!! खुश हुआ बहुत! जिसे जिसका प्रेम मिल जाए, उस से बड़ा खजाना और क्या! भूदेव ने अपने प्रेम का इज़हार तो कर ही दिया था! इंतज़ार था बस गंगा का! वो भी आज बह निकली थी!!
"आऊंगा मैं! दो दिन बाद! अब चलता हूँ गंगा!" बोला वो!
और एड़ लगा, दौड़ा दिया घोड़ा! और गंगा! उस भूदेव को देखे जाए! हाथ में माला पकड़े अपनी! अब माला आई उसके पास!
"ये तूने अच्छा किया गंगा! अब कम से कम तड़पेगी तो नहीं!" बोली माला!
न बोली कुछ! बस, उसी रास्ते को देखती रही!!
"चल, घर चल अब" बोली माला!
पानी भरा उन्होंने, और चल दीं घर की तरफ! घर पहुंची! तो सीधा अपने कमरे में! आज तो देह से आग फूट रही थी! ठीक वहीँ से, जहां पकड़ा था उस भूदेव ने उसे! भर लिया था सीने में अपने! चौड़े सीने में! गंगा के हाथ, वहीँ, थिरक उठे! स्पर्श! ये स्पर्श था! उस भूदेव का स्पर्श!
दो दिन बीत गए कैसे न कैसे करके! बिताने ही पड़े! और कोई चारा था नहीं! उसकी बुआ का लड़का उदयचंद आया ही हुआ था, लेकिन उसने बदला बदला सा पाया अपनी बहन को! कई बार पूछा, तो नहीं बताया गंगा ने! टाल जाती हर बार! झूठी मुस्कान के साथ और हंसी के साथ उत्तर दिया करती उसको!
तीसरे दिन!
तीसरे दिन दोपहर बाद चलीं वे पानी लेने! गंगा के कदम तेज थे! प्रेम-अगन में ऐसा ही होता है! हर चीज़ में तेजी आ जाती है! चाहे याद हो, या फिर साँसें, हमेशा ही तेज रहती हैं! छोटा रास्ता भी लम्बा हो जाता है, लम्बे लम्बे पग धर, छोटा बनाया जाता है उसे! और यही तो गंगा कर रही थी! गंगा ने रास्ता देखा, आ रहा था कोई! वो झट से कुँए पर चली गयी! और कुछ ही देर बाद, वो घुड़सवार वहीँ रुक गया! घोड़े से उतरा, अपने घोड़े को लाया, नांद तक, माला ने पानी भरना शुरू किया नांद में! और वो भूदेव, चला उस गंगा के पास!
"पानी!" बोला भूदेव!
गंगा ने पानी पिलाया उसको! उसने पानी पिया! और हाथ पोंछे!
"कैसी है गंगा तू?" पूछा उसने!
कुछ न बोली!
"भली तो है न?" पूछा भूदेव ने!
सर हिलाया उसने बस! और उस भूदेव के लिए, ये ही बहुत था!
"तेरी याद आई बहुत, इन दो दिन गंगा! रहा ही नहीं गया! जी तो किया, भाग आऊं तेरे पास, एक बार निहार लूँ तुझे!" बोला वो!
प्रेम में डूबा था आकंठ वो, भूदेव!
फिर अपने बड़ी सी जेब से कुछ निकाला उसने! कपड़े में लिपटा था कुछ!
"ले गंगा! तेरे लिए लाया शहर से!" बोला वो!
अब गंगा हाथ न लगाये!
"ले न?" बोला वो!
हिले भी नहीं!
"गंगा?" बोला भूदेव!
नहीं हिली!
"माला?" बोला वो!
"जी?" बोली वो!
"ये ले, इसके लिए है, तेरे लिए भी लाऊंगा!" बोला भूदेव!
माला ने लिया वो कपड़ा! कोई बड़ी सी डिबिया थी वो!
"इसमें क्या है?" पूछा माला ने!
"गंगा को देना, वो बता देगी!" वो बोला!
"आप ही बता दो?" माला ने पूछा!
"अच्छा! श्रृंगारदानी है! गंगा के लिए!" बोला वो!
"अरे वाह!" बोली माला!
"हाट गया था, शहर की, तो ले ली इसके लिए!" बोला वो!
"अच्छा किया!" बोली माला!
"हाँ, खूब सजेगी गंगा इसमें!" बोला वो!
"हाँ, खूब सजेगी ये!" बोली माला!
"आप रहते कहाँ हो?" पूछा माला ने!
"मैं! क्या करेगी जानकर?" पूछा हँसते हुए उसने!
"कहाँ से, बताओ तो?" बोली वो!
"क्या करेगी तू?" बोला वो! हंसकर!
और गंगा! उन्हें सुने! चुपचाप!
"अरे? बताओ तो?" बोली वो!
"कितना बोलती है तू माला! इसे भी सीखा दे!" बोला वो!
"सिखा दूँगी! पहले बताओ!" बोली माला!
"मैं रहने वाला हिंडौन का हूँ, हिंडौन से करौली, धौलपुर, बयाना तक का सफर हो जाता है कई कई बार एक दिन में! काम ही ऐसा है! धौलपुर आता हूँ, तो इसके लिए! और ये है, मुझ से बात ही नहीं करती!" बोला भूदेव!
"इतना सफर?" बोली माला!
"हाँ, मज़बूरी है!" बोला वो!
"यहां से घर कब पहुंचोगे?" पूछा माला ने!
"रात तक!" बोला वो!
"और सुबह?" पूछा उसने!
"अलस्सुबह ही निकलना होता है!" बोला वो!
"इतना काम?" पूछा माला ने!
"हाँ, माला!" बोला वो!
"गंगा?" बोली माला!
जब नहीं दिया जवाब, तो गयी उसके पास!
"तू बात क्यों नहीं करती?" पूछा माला ने!
नहीं की! कोई उत्तर नहीं!
"पता नहीं, क्या बात है!!" बोला वो!
"शर्म आती है इसे!" बोली माला!
"मुझसे कैसे शर्म?" पूछा भूदेव ने!
"अब मैं क्या जानूँ?" बोली माला!
"इसको बता न माला, कि बात करे मुझसे!" बोला वो!
"अब आप ही मनाओ इसको!" बोली माला,
"मान जाओ गंगा!!" बोला भूदेव!
"ऐसे नहीं!" बोली माला!
"फिर?" पूछा उसने!
"हाथ जोड़कर!" बोला वो!
"अच्छा! अच्छा!" बोला वो!
आगे आया, थोड़ा सामने! हाथ जोड़े!
"मान जाओ गंगा!" बोला वो!
और गंगा के होंठ फैले! पहली बार!!
"गंगा?" बोला वो!
कुछ न बोली फिर भी!
"ए गंगा!" बोला भूदेव!
सर उठाया! और आँखों में झाँका भूदेव की! अंदर तक, सिहर सा गया भूदेव!!
"आज मैं बहुत खुश हूँ गंगा!!" बोला वो!
अभी भी न बोली कुछ!
"पानी पिला गंगा?" बोला वो!
गंगा ने घड़ा उठाया और डाल उसके हाथों की ओख में! आठ-दस बड़े बड़े घूँट पानी के लिए उसने! फिर खड़ा हो गया, हाथ साफ़ किये, और पोंछ भी लिए!
"तूने माला नहीं पहनी?" पूछा उसने!
गंगा का हाथ, अपने गले पर रेंगा! और एक ऊँगली फंसा निकाल ली माला बाहर, उस कपड़े से, जिस से कंधे ढके थे उसने अपने!
"कितनी सुंदर लग रही है तू गंगा! सच्ची!" बोला वो!
गंगा चुप! लेकिन सुने सबकुछ!
"तेरे गले में कैसी खूबसूरत लग रही है! मुझे पता था, पता था कि ये माला तेरे लिए ही बनी है!" बोला भूदेव!
गंगा, अपने कांपते हाथ से, उस माला को ही पकड़े रही! ऊँगली से उठाकर!
"अब चलूँगा गंगा! दो दिन तक नहीं आऊंगा, तेरी याद आएगी बहुत" बोला भूदेव!
और गंगा, शांत सब सुने!
"मेरा इंतज़ार करना गंगा! अब चलता हूँ" बोला वो!
भूदेव ने, घोड़ा पकड़ा, उसकी लग़ाम और बैठ गया फिर उस पर, घोड़ा घुमाया और जाने से पहले, फिर रुका!
"मेरी याद आएगी न गंगा?" पूछा उसने!
गंगा कुछ न बोले! शांत खड़ी रहे! ज़मीन को ताकती!
"बोल न गंगा! याद आएगी न?" बोला वो!
"हाँ.." हल्की सी आवाज़ में बोली गंगा!
और भूदेव! जैसे झूम उठा!! खुश हुआ बहुत! जिसे जिसका प्रेम मिल जाए, उस से बड़ा खजाना और क्या! भूदेव ने अपने प्रेम का इज़हार तो कर ही दिया था! इंतज़ार था बस गंगा का! वो भी आज बह निकली थी!!
"आऊंगा मैं! दो दिन बाद! अब चलता हूँ गंगा!" बोला वो!
और एड़ लगा, दौड़ा दिया घोड़ा! और गंगा! उस भूदेव को देखे जाए! हाथ में माला पकड़े अपनी! अब माला आई उसके पास!
"ये तूने अच्छा किया गंगा! अब कम से कम तड़पेगी तो नहीं!" बोली माला!
न बोली कुछ! बस, उसी रास्ते को देखती रही!!
"चल, घर चल अब" बोली माला!
पानी भरा उन्होंने, और चल दीं घर की तरफ! घर पहुंची! तो सीधा अपने कमरे में! आज तो देह से आग फूट रही थी! ठीक वहीँ से, जहां पकड़ा था उस भूदेव ने उसे! भर लिया था सीने में अपने! चौड़े सीने में! गंगा के हाथ, वहीँ, थिरक उठे! स्पर्श! ये स्पर्श था! उस भूदेव का स्पर्श!
दो दिन बीत गए कैसे न कैसे करके! बिताने ही पड़े! और कोई चारा था नहीं! उसकी बुआ का लड़का उदयचंद आया ही हुआ था, लेकिन उसने बदला बदला सा पाया अपनी बहन को! कई बार पूछा, तो नहीं बताया गंगा ने! टाल जाती हर बार! झूठी मुस्कान के साथ और हंसी के साथ उत्तर दिया करती उसको!
तीसरे दिन!
तीसरे दिन दोपहर बाद चलीं वे पानी लेने! गंगा के कदम तेज थे! प्रेम-अगन में ऐसा ही होता है! हर चीज़ में तेजी आ जाती है! चाहे याद हो, या फिर साँसें, हमेशा ही तेज रहती हैं! छोटा रास्ता भी लम्बा हो जाता है, लम्बे लम्बे पग धर, छोटा बनाया जाता है उसे! और यही तो गंगा कर रही थी! गंगा ने रास्ता देखा, आ रहा था कोई! वो झट से कुँए पर चली गयी! और कुछ ही देर बाद, वो घुड़सवार वहीँ रुक गया! घोड़े से उतरा, अपने घोड़े को लाया, नांद तक, माला ने पानी भरना शुरू किया नांद में! और वो भूदेव, चला उस गंगा के पास!
"पानी!" बोला भूदेव!
गंगा ने पानी पिलाया उसको! उसने पानी पिया! और हाथ पोंछे!
"कैसी है गंगा तू?" पूछा उसने!
कुछ न बोली!
"भली तो है न?" पूछा भूदेव ने!
सर हिलाया उसने बस! और उस भूदेव के लिए, ये ही बहुत था!
"तेरी याद आई बहुत, इन दो दिन गंगा! रहा ही नहीं गया! जी तो किया, भाग आऊं तेरे पास, एक बार निहार लूँ तुझे!" बोला वो!
प्रेम में डूबा था आकंठ वो, भूदेव!
फिर अपने बड़ी सी जेब से कुछ निकाला उसने! कपड़े में लिपटा था कुछ!
"ले गंगा! तेरे लिए लाया शहर से!" बोला वो!
अब गंगा हाथ न लगाये!
"ले न?" बोला वो!
हिले भी नहीं!
"गंगा?" बोला भूदेव!
नहीं हिली!
"माला?" बोला वो!
"जी?" बोली वो!
"ये ले, इसके लिए है, तेरे लिए भी लाऊंगा!" बोला भूदेव!
माला ने लिया वो कपड़ा! कोई बड़ी सी डिबिया थी वो!
"इसमें क्या है?" पूछा माला ने!
"गंगा को देना, वो बता देगी!" वो बोला!
"आप ही बता दो?" माला ने पूछा!
"अच्छा! श्रृंगारदानी है! गंगा के लिए!" बोला वो!
"अरे वाह!" बोली माला!
"हाट गया था, शहर की, तो ले ली इसके लिए!" बोला वो!
"अच्छा किया!" बोली माला!
"हाँ, खूब सजेगी गंगा इसमें!" बोला वो!
"हाँ, खूब सजेगी ये!" बोली माला!
"आप रहते कहाँ हो?" पूछा माला ने!
"मैं! क्या करेगी जानकर?" पूछा हँसते हुए उसने!
"कहाँ से, बताओ तो?" बोली वो!
"क्या करेगी तू?" बोला वो! हंसकर!
और गंगा! उन्हें सुने! चुपचाप!
"अरे? बताओ तो?" बोली वो!
"कितना बोलती है तू माला! इसे भी सीखा दे!" बोला वो!
"सिखा दूँगी! पहले बताओ!" बोली माला!
"मैं रहने वाला हिंडौन का हूँ, हिंडौन से करौली, धौलपुर, बयाना तक का सफर हो जाता है कई कई बार एक दिन में! काम ही ऐसा है! धौलपुर आता हूँ, तो इसके लिए! और ये है, मुझ से बात ही नहीं करती!" बोला भूदेव!
"इतना सफर?" बोली माला!
"हाँ, मज़बूरी है!" बोला वो!
"यहां से घर कब पहुंचोगे?" पूछा माला ने!
"रात तक!" बोला वो!
"और सुबह?" पूछा उसने!
"अलस्सुबह ही निकलना होता है!" बोला वो!
"इतना काम?" पूछा माला ने!
"हाँ, माला!" बोला वो!
"गंगा?" बोली माला!
जब नहीं दिया जवाब, तो गयी उसके पास!
"तू बात क्यों नहीं करती?" पूछा माला ने!
नहीं की! कोई उत्तर नहीं!
"पता नहीं, क्या बात है!!" बोला वो!
"शर्म आती है इसे!" बोली माला!
"मुझसे कैसे शर्म?" पूछा भूदेव ने!
"अब मैं क्या जानूँ?" बोली माला!
"इसको बता न माला, कि बात करे मुझसे!" बोला वो!
"अब आप ही मनाओ इसको!" बोली माला,
"मान जाओ गंगा!!" बोला भूदेव!
"ऐसे नहीं!" बोली माला!
"फिर?" पूछा उसने!
"हाथ जोड़कर!" बोला वो!
"अच्छा! अच्छा!" बोला वो!
आगे आया, थोड़ा सामने! हाथ जोड़े!
"मान जाओ गंगा!" बोला वो!
और गंगा के होंठ फैले! पहली बार!!
"गंगा?" बोला वो!
कुछ न बोली फिर भी!
"ए गंगा!" बोला भूदेव!
सर उठाया! और आँखों में झाँका भूदेव की! अंदर तक, सिहर सा गया भूदेव!!