गुनहगार – Hindi Sex thriller Novel

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Fuck_Me
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Re: गुनहगार – Hindi Sex thriller Novel

Unread post by Fuck_Me » 29 Sep 2015 10:54

हमारे दरमियाँ लरैईिओं का सिलसला अब ऐक आम बात बन गयी थोर रोज़ किसी ना किसी बात पे हमारे लरआई होती थी और अब छोटी छोटी लरायाँ बड़ी लराइयों मैं बदलती जा रही देन. और फिर ऐक ऐसा वक़ीया हुवा जिस ने मेरे ज़िंदगी मैं सब कुछ बदल दया, मेरे भरपूर मेहनत का मुझे ये सिला मिला के आख़िर रोहित ओबेरोई ने मुझे वो ऑफर कर दी जिस का मैं कब से एन्ताज़ार कर रहा था उस ने मुझे कहा के अगर मैं उसके केनेडियन प्रॉजेक्ट को संभाल लोन तू उसे बुहुत खुशी होगी और मेरे लाइ एस से बड़ी बात क्या हो सकती थी मैं उन दिनों कॅनडा मैं रोहित ओबेरोई के साथ एसए सिलसाले मैं बात चीत करने आया हुवा था जब मुझे संजना की कॉल आई के जिस मैं उस ने मुझे बताया के वो प्रेग्नेंट हो गयी हा, मेरे कॅनडा आने से पहले उसकी तबीयत तू काफ़ी खराब थी लायकेन मुझे अंदाज़ा नही था के उसकी तबीयत एस वजा से भी खराब हो सकती हा, मेरे लाइ ये ऐक खुशी की खबर थी और पहली बार मैं मेरा दिल चाह रहा था के मैं सब कम चोर कर वापस लंडन जायों संजना के पास लायकेन मैं ऐसा कर ना सका मुझे अभी कॅनडा मैं बुहुत सा काम करना था और मैं ना चाहते हुवे भी वापस लंडन ना जा सका. मेरे वापस जाने पर एस बारी संजने ने मुझ से लरआई नही की वो बुहुत खुश थी के वो मन बनाने वाली हा और मैने एस बात का शूकर क्या लायकेन अब उसे पहले से ज़्यादा मेरे ज़रूरात थी, ऐक तरफ तू मैं उसके प्रेग्नेंट होने पे खुश था लायकेन दूसरी तरफ मुझे एस बात की परेशानी थी के एस समय जब मैं ऐक तरफ अपनी जॉब चोर रहा हों और दूसरी तरफ रोहित ओबेरोई के प्रॉजेक्ट के सिलसाले मैं काम का दबयो एस सब मैं संजना के लाइ वक़्त निकलना बुहुत मुश्किल था. मैने जॉब से रिज़ाइन कर दया था लायकेन मुझे वहाँ पे अपना काम पूरा करना था मैं अब ऑफीस से दायर से आने लगा क्यूँ की मैं वहाँ पे जल्द से जाड़ल अपना काम ख़त्म करना चाह रहा था और मेरे पास संजना के लाइ वक़्त और भी कम हो गया धीरे धीरे सनजान ने भी मुझ से शिकायत करना कम कर दी थी. रोहित ओबेरोई के मेरे लाइ पसंद बर्हती जा रही थी अब वो हर काम मैं मुझे अपने साथ रखता और अब खुले लफ़्ज़ों मैं मेरे लाइ अपनी पसंद का ेज़ार कराता और मेरे लाइ उस समय रोहित ओबेरोई को खुश करने से ज़्यादा ज़रूरी काम और कोई ना था. और फिर वो सब कुछ हुवा जिस का शायद मैने भी नही सोचा था, मेरे और संजना के लरायाँ तू पहली भी होते रहे देन लायकेन जो उस दिन हुवा वो हमारे ज़िंदगी को हमेशा के लाइ बदल गया. वो भी उन काए दिनों के तरहन मैं से ऐक दिन था जब मैं ऑफीस से दायर से काम ख़त्म कर के वापस फ्लॅट आया तू मुझे अपने फ्लॅट का दरवाज़ा खुला मिला मैं काफ़ी हैरान हुवा क्यूँ की संजना ने ऐसे लापरवाही कभी ना की थी मेरे दिल अचानक धारका के कहीं कुछ घालत ना हो गया मैं जदली से अपने फ्लॅट के अंदर गया तू वहाँ पे मुझे अपने साथ वाली फ्लॅट मैं रहने वाली मिस.नॅन्सी खड़ी नज़र आई, संजना बेड पे लैयती हुवे थी और डॉक्टर उसे इंजेक्षन लगा रहा था. मिस.नॅन्सी से मुझे पता चला के संजना की तबीयत काफ़ी खराब हो गयी थी और वो बड़ी मुश्किल से मिस.नॅन्सी के फ्लॅट तक फुँची और फिर उस ने वहाँ डॉक्टर को बुलाया. मिस नॅन्सी और डॉक्टर के जाने के बाद मैं सजना के करीब बेड पे बैठ गया

“संजना तुम्हारी तबीयत खराब हो गयी थी तू मुझे फोन कर डाइतें” …. मैने नरम लहज़े मैं कहा

“उस से क्या होता ??, तुम्हारे पास वक़्त ही कहाँ होता हा आज कल ?? ” ….. संजना की नज़रैयण सामने दीवार पे टिकी थाइन

“संजना तुम जानती हो मैने ऑफीस से रिज़ाइन कर दया और मुझे जल्दी जल्दी यहाँ पे काम ख़त्म करना हा वहाँ पे रोहित ओबेरोई मेरा एन्ताज़ार कर रहा हा मैने उसके प्रॉजेक्ट को संभालना हा वहाँ जा कर” …. मैने हमेशा की तरहन उसे राति रटाई लाइन सुनाई

“आ.द तुम्हेँ रोहित ओबेरोई और उसके प्रॉजेक्ट के एलवा दुनिया मैं कुछ नज़र आता हा या नही, मैं तुम्हेँ समझा समझा के तक गयी हों अब तू मैने तुम से कहना भी चोर दया हा लायकेन दिन बी ए दिन रोहित ओबेरोई का बहोत तुम्हेँ जकार्ता जा रहा हा” …. उस ने थके थके से लहज़े मैं कहा

“तुम फिर से वोही पूरेानी बात को चेर रही हो मैं तुम्हेँ कितने दफ़ा समझा चुका हों के वो प्रॉजेक्ट मेरे लाइ बुहुत एहम हा, तुम जानती हो मैने कितनी मेहनत की हा तब जा कर रोहित ओबेरोई ने ये ऑफर की मुझे अब मैं एसए किसी कारण खोना नही चाहता” …. मैने सख़्त लहज़े मैं कहा

“चाहे उसके लाइ तुम्हेँ मुझे भी खोना परे ??” …. संजना के आवाज़ मैं अफ़सोस था

“तुम क्या बोल रही हो ??, मैं ये सब कुछ तुमहरे लाइ और अपने आने वाले बचे के लाइ ही तू कर रहा हों” ….

“झूट बिल्कुल झूट !, तुम जानते हो मेरे लाइ पैसा कभी एट्ना ज़रूरी नही रहा, पापा सारी ज़िंदगी पैसा कमाते रहे उनके पास मेरे लाइ बुहुत कम वक़्त होता था ऐसे मैं अंकली के प्यार ने मुझे सहारा दया, अंकली के बाद तुम ने वो कमी पूरी की मुझे कभी तन्हाई का वो एहसास नही हुवा जो बूचपन मैं होता था लायकेन अब मुझे ऐसा क्यूँ लग रहा हा के तुम एज बर्हते जा रहे हो और मैं पीछे रह गयी हों, क्यूँ आ.द बतायो मुझे जवाब दो ??” …. उस ने रोटी हुवे आवाज़ मैं मुझ से सवाल क्या

“मेरे पास तुम्हारी फज़ूल बातों का जवाब नही हा, तुम्हेँ ये सब कुछ सिर्फ़ एस लाइ लग रहा हा के मैं एन दिनों काफ़ी मसरूफ़ हों जैसी ही ये काम का दबयो ख़त्म हो जाए गा सब कुछ ठीक हो जाए गा” … मैने उसे समझते हुवे कहा

“नही आ.द सब कुछ ठीक नही होगा, तुम हर गुज़राते दिन के साथ मुझ से दूर होते जा रहे हो, मुझे दर हा किसी दिन ये फासला एट्ना ना बरह जाए के फिर हम दोनो के लाइ एसए पूर करना ना-मुमकिन बन जाए” ….

“मेरा ख़याल हा तुम्हेँ अब आराम करना चाहये, तुम्हारी तबीयत पहले ही खराब हा, हम एस मामले पे कल बात कारण गे” …. मैने उसकी बात का जवाब डाइ बिना उसे आराम करने का कहने लगा

“नही, हम आज ही बात कारण गे, आ.द भगवान के लाइ मुझे कुछ नही चाहये मुझे तुम चाहये हो तरस गयी मैं तुम्हारे दो पल के साथ के लाइ मुझे ये फ्लॅट अब ऐक जैल लगने लगा हा जहाँ पे मैं क़ैद हों, मेरे बात मानो हम वापस इंडिया चलते हैं” …. उस ने मेरा हाथ पाकरते हुवे कहा

“संजना कैसी बेवक़ूफी की बताईं कर रही हो, इंडिया जा के हम क्या कारण गे ??, मुझे ज़िंदगी मैं एज बरहने का मोक़ा मिल रहा और तुम मुझे पीछे की तरफ जाने का बोल रही हो ” …. मैने एस बार थोड़ा घुसे से कहा

“कितना एज आ.द ??, और कितना एज ?? , पापा ने सारे ज़िंदगी पैसा कमाया तू क्या हुवा ??, ऐक पल मैं सब कुछ चला गया ना, पैसे से रिश्ते नही खड़ीदे जाते हमारे पास जितना हा हमारे लाइ बुहुत हा, हम इंडिया वापस चलते हैं वहाँ पे बुंगलोव हा फॅक्टरी हा तुम उस फॅक्टर को संभाल लाना ” …. वो तू जैसे इंडिया जाने को त्यार बेठी थी

“उस फॅक्टरी से क्या मिले गा मुझे ?? , रोहित ओबेरोई का ये ऐक प्रॉजेक्ट मुझे कहाँ से कहाँ फुँचा सकता हा तुम सोच नही सकतें, अगर उस ने मुझे अपने इंटरनॅशनल प्रॉजेक्ट का मॅनेजिंग डाइरेक्टर बना दया तू ये कितनी बड़ी कामयाबी होगी मेरे तुम ये क्यूँ नही सोचटें” …. मेरे आवाज़ मैं अब भी सख्ती थी

“उस से क्या होगा आ.द ?? , अब ये प्रॉजेक्ट हा फिर एसके बाद और होगा फिर और तुम्हारे क़दम कहाँ जा के रुकण गे भगवान जाने लायकेन एस सब मैं हम बुहुत पीछे रह गये हैं और तुम एज बर्हते जा रहे हो, मैं तुम्हारे रफ़्तार का मुक़ाबला नही कर पा रहे हों” … उसकी आँखों से आँसू बहने लगे

“हाँ हाँ, मैं खुद घरज़ हों, पैसे का लालच हा मुझे, यही कहना चाहती हो, अरे तुम्हेँ तू खुश होना चाहये के तुम्हारा पाती एतने कामयाबियान हासिल कर रहा और तुम बेठ के रोने रू रही हो और मुझे सब चोर चार कर इंडिया जाने की बताईं कर रही हो, तुम चाहते हो के मैं घर मैं तुम्हारे पहलू से लग कर बेठ जायों ?? , और्तैईन तू अपनी पाती की कामयाबी पे खुश होती हाँ और उसकी तरक़ी की प्रठना कराती हाँ और तुम … ” …. मैने घुसे से उसके हाथ से अपना हाथ चुराया

“संजना मेडम, तुम्हेँ क्या पता कितनी मेहनत करनी पार्टी हा, दिन रात ऐक क्या हा मैने, खून पसीना बहाया हा मैने एस प्रॉजेक्ट के लाइ, तुम्हेँ मेरे मेहनत नज़र नही आते और तुम उल्टा उसे बेकार करने की कोशिश कर रही हो. क्या मिले गा तुम्हारे छोटी से फॅक्टरी संभाल के मुझे ??, हाँ बतायो मुझे मेरा खाब वो छोटी से फॅक्टरी चलाने का नही हा मैने अपने लाइ बुहुत से सपने देखे थे जिन्हेँ पूरा करना हा, पहले वो भानु प्राताप सला कूटे का पीला सब कुछ ले यूरा मेरे हाथ से, और अब तुम यहाँ बेठ के मुझ से अपनी तन्हाई के रोने रू रही हो, तुम्हेँ तू शूकर करना चाहये मैने तुम्हेँ खाली हाथ भी क़बूल कर लया और तुम्हेँ उस नुरख से बचाया और तुम बजाए मेरा शूकर अदा करने के अपने मज़लूमियत के रोने रू रही हो” …. मेरे अंदर शायद एतने अरसे से लावा पाक रहा था उसे आज बहने का मोका मिल गया

“क … क्या .. क्या तुम ने वो सब एहसान क्या मुझ पे ?? , तुम्हारा प्यार क्या सिर्फ़ उस डोलात की वजा से था” …. संजना तू जैसे मेरे बातिं सुन कर ऐक मुजसमा बन गयी थी उसकी आँखों ऐसे बाहर को उबाल रही थाइन जैसे अभी बाहर आ जाएँ गी

“हाँ हाँ अब कह दो के मैने तुम से डोलात के लाइ प्यार क्या था, ये एलज़ाम भी लगा दो मुझ पे” …. मैं उस समय अपने होश मैं नही था घुसे ने मुझे पागल कर दया था

“आ.द, तुम ने मुझ पे एहसान कर के मुझे भानु प्राताप से चुराया, मुझ पे एहसान कर के मुझे खाली हाथ क़बूल क्या” …. संजना खाब की सी काफियत मैं मेरे बताईं दोहरा रही थी

मैने घुसे से अपने समणि पार्टी छोटी से टेबल को ऐक लात मारी और दूसरे कमरे मैं चला गया, मेरे दिमघ पे उस वक़्त बुहुत शदीद घुसा सॉवॅर था मुझे संजना के बातों से ऐसा लग रहा था जैसे उस से बरा खुद घरज़ कोई नही हा. मैने अपने की हुवे शायद ऐक आक्लॉटी आचाय भी उस दिन गँवा दी थी, संजना ने सारे ज़िंदगी मेरे कब कब और कितने मदद की थी अगर मैं शायद गिनता तू गिन भी नही सकता था, आज जिस मक़ाम पर मैं फुँचा था वो सिर्फ़ संजना के वजा से था स्कूल से ले कर आज तक उस ने हर क़दम पे मुझे सहारा दया था, मैं तू ऐक हक़ीर से एंसन था जो शायद दुनिया की भीर मैं गुम हो जाता संजना ने मुझे आसमान पर फुँचाया था और आज मैने उसी आसमान पे थूकने की कोशिश की थी लायकेन अंजान था के आसमान पर अगर थूका जाए तू वो थूक वापस अपने हे मौन पर आ गिराता हा.

गुनहगार – Hindi Sex Novel – 13
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Re: गुनहगार – Hindi Sex thriller Novel

Unread post by Fuck_Me » 29 Sep 2015 10:54

अगले दिन मुझे कॅनडा जाना था, मैं सूबह उठा तू संजना अभी सू रही थी या शायद सोने का नाटक कर रही थी मैने उस से कोई बात क्ये बेघार ऐक कगाज़ वहीं छोरा जिस मैं मैने अपने कॅनडा जाने का उसे बताया और फिर कॅनडा चला गया, मुझे यक़ीन था के वो अब मुझ से माफी माँगे गी, मुझे अपना आप कहीं पे भी घालत नही लग रहा था. कॅनडा फुँछ कर मैं काम मैं मसरूफ़ हो गया, ऐक दो दफ़ा मुझे संजना को फोन करने का ख़याल आया लायकेन फिर मैने सोचा के मैं क्यूँ झूकोन उसे अपनी घालती का ख़याल होना चाहये और माफी माँगनी चाहये और फिर से अपने काम मैं मसरूफ़ हो गया एस बात से अंजान के मेरे पीछे लंडन मैं मौसम के साथ साथ सब कुछ तब्दील हो रहा था…..

मुझे 2 दिन बाद लंडन आना था लायकेन काम ज़्यादा होने की वजा से मुझे 1 हफ़्ता कॅनडा मैं रुकना परा, एस दरमियाँ मुझे संजना के कोई कॉल नही आई 4,5 दिन तक तू मैने भी धीयाँ नही दया लायकेन आखड़ी के 1,2 दिन मुझे थोड़ी फिकेर होने लगी क्यूँ की उस तबीयत खराब थी जब मैं कॅनडा आया था, मैने उसे फोन क्या लायकेन वो मेरे कॉल नही उठा रही थी और ना ही घर का नंबर से कोई जवाब आ रहा था. मैं अपना काम ख़त्म कर के वापस लंडन आया, एरपोर्ट से फ्लॅट तक के सफ़र मैं मेरे दिल मैं अजीब से ख़याल आ रहे थे मुझे लग रहा था जैसे कुछ घालत होने वाला हा या हो गया हा. फ्लॅट पे फुँछ के मुझे अपने ख़यालात ठीक साहबित होते दिखाए डाइ, संजना फ्लॅट पे नही थी सारा फ्लॅट देखने के बाद मैने अलमारी देखी तू वहाँ पे उसके काप्राय भी नही थे, उसका पासपोर्ट, डॉक्युमेंट्स सब कुछ घयब था वहाँ से. मैं तक के सोफे पे बेठ गया और जाब से मोबाइल निकल के उसका नंबर मिलाया तू वो भी बंद था. मुझे समझ नही आ रही थी के संजना कहाँ जा सकती हा, क्या वो मुझे चोर कर चली गयी लायकेन ऐसा कैसे हो सकता हा, वो मुझे चोर कर कैसे जा सकती हा और कहाँ इंडिया या फिर कहीं और, एन सब सवालों का मेरे पास कोई जवाब ना था आख़िर काफ़ी दायर वहाँ बेठे रहने के बाद मैं अंदर बेडरूम मैं चला गया टके नहा के काप्राय तब्दील कर सकोन. मैने जैसे ही अपने घारी उतार कर अपने बेड के साथ टेबल पे न्यू एअर तू वहाँ मुझे ऐक कगाज़ परा नज़र आया जो टेबल लॅंप के नीचे रखा था. मैने उसे उठा के खोला और परहना शुरू क्या

डियर अंकुश,

कभी कभी एंसन के पास कहने को बुहुत कुछ होता हा लायकेन शब्द नही होते ये खत लिखते हुवे मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हा बुहुत कुछ हा कहने को लायकेन समझ नही आ रही क्या कहों और कहाँ से शुरू कारों. बचपन से ले कर आज तक मैने टीन लोगों को बेपनाह प्यार क्या हा पापा, अंकली और तुम्हेँ लायकेन मेरा नसीब देखो 2 लोग मुझे चोर कर चले गये और तुम ने मुझे मार दया. हाँ अंकुश आज संजना मार गयी हमेशा के लाइ, तुम जानते हो पिछले 7 दिन मैने ज़िंदगी और मौत से लर्टे गुज़रे हैं, काई बार मेरा दिल क्या के मैं अपने आपको ख़त्म कर लोन लायकेन मेरे अंदर जो ऐक ज़िंदगी पल रही हा उसके ख़याल ने मुझे ऐसा करने नही दया, 7 दिन मैं ज़िंदगी और मौत के बीच किसी घारी के काँटे के तरहन एधेर और उधेर फिराती रही, कभी ज़िंदगी जीत जाती और कभी मौत और आख़िर कार ज़िंदगी एस लरआई मैं जीत गयी मैं एतनी खुद घरज़ नही बन पाई के अपने सकूँ के लाइ उसके सनसाइन बंद कर डॉन जो अभी दुनिया मैं ही नही आया. लायकेन अब बस ये दिल ही धरके गा ज़िंदगी खामोश हो चुकी हा, मेरे अंदर सब
कुछ टूट गया हा, मेरा भरोसा, मेरा मांं, मेरा जज़्बात, मेरा प्यार और मेरा दिल सब कुछ, बस एस किर्छी किर्छी वजूद को मैं अगर ज़ोर पाई हों तू सिर्फ़ उस एहसास के लाइ जो ऐक औरात को मन बनाने के बाद होता हा मैं उस एहसास को महसूस करना चाहती हों. मैने सुना था के बचपन के मोहब्बत और दोस्ती बिकुल खालिस होती हा बिना किसी घरज़ के और जिन लोगों को ये मिल जाए वो बुहुत खुश नसीब होते हैं लायकेन मेरे बाद क़िस्मती देखो अंकुश मैं एस मामले मैं भी खाली हाथ रह गयी मेरे तू बचपन के मोहब्बत भी मेरे वजूद को ना बचा सकी. एतनी अज़ीयत तू मुझे भानु पराताप के पास भी नही हुवे थी जीतने अज़ीयत मुझे एन 7 दिनों मैं हुवे हो जब जब मुझे तुम्हारे वो अल्फ़ाज़ याद आते थे मेरे अंदर आँधियाँ से चलनी शुरू हो जातें जो मेरे वजूद को यूरा ले जातीं, तुम शायद नही समझ सको गे बार बार मरने की अज़ीयत कितने तकलीफ़ दाह हा, मैने कहीं पड़ा था के मरने के दहशत बुहुत खोफ़नक होती हा लायकेन किसी एंसन को जीने से दर लगना शुरू हो जाए तू उस से बड़ी दहशत कोई नही हा, मुझे तब ये बात समझ नही आई थी लायकेन आज मुझ एसके ऐक ऐक लफ्ज़ की समझ आ गयी हा, मैं जान चुकी हों के क्यूँ कभी कभी ज़िंदगी मौत से भी बाद-तार लगना शुरू हो जाती हा. आज मैं ये सोच रही के काश तुम मुझे भानु प्राताप से बचाने ना आते, मैं उसके चुंगल मैं या तू आत्मा हत्या कर लैयती या फिर हालत से समझोता कर लैयती लायकेन तुम्हारा जो बट मेरे दिल के अंदर बना था कम आज़ कम वो तू ना टूटता ना, आज वो बट टूट गया अंकुश, मेरे मोहब्बत का बट टूट गया और मैं ऐसी बाद नसीब हों के कुछ कर भी नही पाई बस उसे टूटता देखती रही चुप छाप.

मुझे हमेशा लगता था के तुम थोड़े से खुद घरज़ हो अपने फ़ायदे के एज कुछ नही देखते लायकेन फिर मुझे लगा के खुद घरज़ तू हर एंसन होता हा अपने स्वार्थ के तू सब हे घुलाम होते हैं लायकेन मुझे कभी ये अंदाज़ा नही था के मुझ से मोहब्बत मैं भी तुम्हारा कोई स्वार्थ छुपा हा, तुम्हेँ मुझ से मोहब्बत नही हा बलके मैं भी तुम्हारे लाइ उस बिज़्नेस प्रॉजेक्ट के तरहन ही हों जिसे कामयाबी से पूरा कर के तुम तराकी के मंज़िल छरहना चाहते हो, ऐक बार कह कर तू देखा होता अंकुश मैं कभी तुम्हेँ अपने साथ ना बँधती, मोहब्बत तू राइट के तरहन होती हा एसए मुति मैं जकारना चाहो भी तू ये मुति मैं नही रहती फिसल जाती हा, मैं भी कभी तुम्हेँ जाकर के ना रखते बालके आज़ाद चोर डायटी लायकेन शायद ये सब एसए तरहन होना लिखा था मेरे हिसे मैं ये अज़ीयत आनी ही थी सो आ गयी. मैं यहाँ से बुहुत दूर जा रही हों अंकुश और कहाँ जा रही हों एसका मुझे खुद भी पता नही दुनिया के किसे कोने मैं मुझे भी पनाह मिल जाए गी लायकेन यहाँ रह कर हर रोज़ तुम्हेँ देखना और फिर वो अज़ीयत भरे लम्हत याद करना मेरे बस मैं नही हा एतने ताक़त मुझ मैं नही हा के मैं अपने मोहब्बत के मुजसमे को हर रोज़ अपनी आँखों के सामने टूटता हुवा देखों मेरे अंखाईं ये बर्दाश्त नही कर सकतें. मेरे तुम से आखड़ी विनती हा के मुझे ढूनदने की कोशिश मत करना और मैं भगवान से प्रठना कराती हों के हुमारा सामना फिर दोबारा ज़िंदगी मैं कभी ना हो शायद मैं खुद पे क़ाबू ना रख पयों और जवाब माँग बेठों जो के मैं नही चाहती एसए लाइ मैं तुम्हारे घैर हज़री मैं यहाँ से जा रही हों, और जाते जाते तुम्हेँ हर उस बंधन से आज़ाद कर के जा रही हों जो ऐक पत्नी होने के नाते मेरा तुम्हारे साथ हा और भगवान से हमेशा यही प्रठना कारों गी के तुम्हेँ ज़िंदगी मैं हर कामयाबी और खुशी मिले जो तुम चाहते हो और तुम्हारे खाब सुचाई बन जाएँ, मैं कभी तुम्हारे कामयाबी के रह मन मैं रुकावट नही बनाना चाहती थी मैं तू बस तुम से प्यार के चाँद बूँद माँग रही थी क्यूँ की मुझे प्यार के साइवा कुछ नही चाहये था लायकेन मेरे क़िस्मत मैं शायद प्यार पाना नही हा. अपना ख़याल रखना और दिल पे कोई भोज मत रखना मेरे जाने के बाद संजना के नाम का पन्ना अपना ज़िंदगी से निकल देना.

किया हा प्यार जिसे हम ने ज़िंदगी की तरहन
वो आशना भी मिला हम से अजनबी की तरहन

सितम तू ये हा के वो कभी भी ना बन सका अपना
क़बूल हम ने किए जिस के घूम खुशी की तरहन

बरहा के प्यास मेरी उस ने हाथ चोर दया
वो कर रहा था मुरावट भी दिल लगी की तरहन

कभी ना सोचा था हम ने क़तील उसके लाइ
करे गा हम पे सितम वो भी हर किसी की तरहन

संजना

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Re: गुनहगार – Hindi Sex thriller Novel

Unread post by Fuck_Me » 29 Sep 2015 10:54

मैं खत पारह के जैसे बे-दम हो गया मैं सोच भी नही सकता था के संजना एट्ना बरा क़दम उठा ले गी, मेरा तू ख़याल था वो मुझ से नाराज़ हा मेरे साथ लरआई करे गी लायकेन फिर मन जाए गी मगर उस ने हमेशा मुझ से बे-घरज़ मोहब्बत की थी और उसके लाइ मेरे वो कहे गये अल्फ़ाज़ किसी खंजर से कम ना थे जो उसके जिस्म मैं चुभ गये थे. मैने उसके बाद उसे ढूनदने के कोशिश की और इंडिया मैं पता कराया लायकेन उसका मॅनेजर कुछ बतने को राज़ी ना था और ना ही कहीं और तरहन से उसका पता लग रहा था आख़िर कार 2 महीनों के भाग दूर के बाद मुझे एट्ना पता लग सकता के वो इंडिया मैं अपना बुंगलोव और फॅक्टर बैच कर कहीं चली गयी हा कहाँ ये कोई नही जनता था और जो जानते थे वो बतने को त्यार ना थे. मेरे ज़िंदगी मैं किसे पड़ी की तरहन आई और अपने जादूई चारी से मेरे ज़िंदगी बदल कर वो चली गयी. मैं कुछ अरसे तक उसकी याद मैं परेशन होता रहा लायकेन फिर मैं अपने पैसे की दुनिया मैं खो गया अब तू मैं मानो बिल्कुल आज़ाद हो गया था और मेरा जानूं बस मेरा काम रह गया था मुझे लगा शायद संजना का बाब मेरे ज़िंदगी से ख़त्म हो चुका हा लायकेन ये नही जनता था के एंसन जो कुछ बोटा हा ऐक ना दिन उसे वो कातना भी पराता हा ……..

संजना के जाने के बाद कुछ अरसा तू मैं उसकी कमी काफ़ी महसूस कराता रहा लायकेन फिर आहिस्ता आहिस्ता मैं पैसे के दौड़ मैं गुम हो गया, रोहित ओबेरोई के कॅनडा के प्रॉजेक्ट करने के बाद उस ने मुझे अपने इंटरनॅशनल प्रॉजेक्ट्स का हेड बना दया और फिर तू जैसे ऐक ना ख़त्म होने वाली कामयाबी का सिलसिला था जो मेरे ज़िंदगी मैं शुरू हो गया, पहले मैं पैसे के पीछे भाग रहा था और फिर पैसा मेरे पीछे भागने लगा. ऐक के बाद ऐक कामयाबी और कभी कभी मुझे लगता जैसे ज़िंदगी ने मेरे सामने 2 ऑप्षन्स रखे थे, ऐक संजना और दूसरा कामयाबी और संजना के मेरे ज़िंदगी से जाते ही कामयाबी ने मुझे अपनी बाँहों मैं ले लया था. काफ़ी अरसा कॅनडा मैं काम करने के बाद मेरे पास एट्ना पैसा जमा हो गया के मैने रोहित ओबेरोई के साथ मिल कर इंडिया मैं फॅक्टरी खोल ली और वापस इंडिया आ गया, रोहित ओबेरोई का मेरे कामयाबी मैं बुहुत बरा हाथ रहा था और शायद अगर उसके कोई बेटी होती तू मुझे वो अपना दामाद भी बना लेता. मेरे दूसरी शादी मैं भी रोहित ओबेरोई का बुहुत बरा हाथ था उस ने मेरे शादी अपने दोस्त कलश अगरवाल के बेटी प्रयंका अगरवाल से कराई और मेरे ज़िंदगी मैं ये भी ऐक बुहुत बरा फ़ैसला था क्यूँ की प्रियंका से शादी करने के बाद मुझे उसके अंकल के भी सपोर्ट मिल गये और फिर मैं और तैइज़ी से तराकी की सीरहयन छर्हता गया.

प्रियंका ऐक बुहुत अछी पत्नी साहबित हुवे मेरे लाइ उस ने हर क़दम पे मेरा साथ दया और मेरे ज़िंदगी मैं संजना के जाने से जो कमी पैदा हुवे थी वो भी दूर कर दी. बस ऐक घूम जो हमारे ज़िंदगी मैं था वो था के हुमैन औलाद का सुख नही मिला था, हम ने उसके एलाज़ के लाइ दुनिया के हर डॉक्टर के पास गये लायकेन हर डॉक्टर यहे कहता था के कोई मसला नही बस भगवान के मर्ज़ी जब होगी तब हम माता पिता बन जाएँ गे और शायद भगवान के ये मर्ज़ी नही थी. काई बार हम अपनी ज़िंदगी मैं आने वाले किसे दुख या कमी का मतलब नही समझ पाते और भगवान से शिकायत करने लगते हैं ये जाने बेघार के हमारे साथ जो हो रहा होता हा उसके पीछे कहीं ना कहीं हमारे अपने करम होते हैं जिन के वजा से हमारे साथ वो हो रहा होता हा, शायद मेरे साथ भी ऐसा हे था मैने जिस बुचे को एस दुनिया मैं आने से पहली ही पिता के साए से महरूम कर दया था वो शायद भगवान को पसंद नही आया था और अब मैं पिता के सुख से महरूम था. आख़िर काए अरसा एन्ताज़ार के बाद हम ने प्रियंका की बेहन की बेटी स्नेहा को गौड़ ले लया वो 2 साल की थे जब हम ने उसे गौड़ लया.

स्नेहा के हुमारी ज़िंदगी मैं आने के बाद हुमारी दुनिया जैसे मुकामल हो गयी, और हम दोनो के जान बसी थी स्नेहा मैं, हम ने उसे एतने प्यार से पाला के शायद हे किसे मन बाप ने अपने किसे बचे को ऐसे पाला होगा. मेरे तू वो गुरिया थे, मेरा बस नही चलता था के दुनिया के हर खुशी अपने बेटी के कदआंटी मैं डाल डॉन. जैसे जैसे वो बड़ी होती गयी मेरा प्यार उसके लाइ और भी बर्हता गया, मेरा बस नही चलता था मैं उसे हर समय अपनी आँखों के सामने रखों. स्नेहा भी मुझ से बुहुत जूरी हुवे थी अपने मन से ज़्यादा वो मेरे करीब थी और अपनी हर छोटी बड़ी बात वो मेरे साथ शेयर करते थी. समय गुज़राता गया और स्नेहा बड़ी हो गयी, मुझे कभी ये ख़याल नही आया था के बेटी को तू आख़िर कार ऐक प्राया धन ही होती हा और जब स्नेहा 22 साल की हुवे तू उसके रिश्ते आना शुरू हो गये ज़हेर हा ऐक आक्लॉटी बेटी और वो भी एतनी बड़ी जायअंकल के तन्हा मलिक रिश्तों के ऐक लाइन थी जो उसके लाइ लग गयी लायकेन मैं स्नेहा को किसे ऐसे एंसन से बियाहने को राज़ी नही था जो उस से उसके पैसे के लाइ शादी करना चाहता हो बालके मेरे सोच थी के मैं ऐक ऐसा लड़का चुनों गा उसके लाइ जो घर दामाद बन के रहे. वक़्त भी अजीब खैल खैइलता हा हमारे साथ और एंसन पता नही क्यूँ अपना माज़ी हमेशा भूल जाता हा, अगर मैं सोचता के मैं जिस जगा पे उस वक़्त था तू कभी संजना के पापा भी उस जगा पे हों गे लायकेन हर एंसन शायद अपने माज़ी से एट्ना हे बेपरवाह हो जाता हा जितना मैं हो गया था या शायद माने ज़िंदगी मैं एट्ना सुख और कामयाबी देखे थे के मुझे लगता था जो मैं सोचता हों या कारों गा सब मेरे मर्ज़ी के मुताबिक होगा.

मुझे पहला झटका तब लगा जब स्नेहा ने ऐक दिन मुझे ऐक लड़के के बड़े मैं बताया और कहा के वो उस से प्यार कराती हा, मैने स्नेहा से कुछ कहा नही बस एट्ना कहा के वो मुझे उस से मिलवाए पर कहीं ना कहीं मैं अंदर हे अंदर दर रहा था मैं अपने माज़ी को तब भी याद नही कर रहा था लायकेन शायद मेरे दिमघ मैं कहीं ना कहीं मेरा माज़ी अपने होने का एहसास दिला रहा था. स्नेहा ने मुझे रोहन से मिलाया जिस से वो प्यार कराती थी, रोहन ऐक कंपनी मैं मॅनेजर के टॉर पर काम कर रहा था, उस से मिलने के बाद मेरा दर कुछ हद तक कम हो गया क्यूँ के वो भले पैसे के मामले मैं किसी तरहन भी हमारे मुक़ाबले मैं नही था लायकेन फिर भी ऐक अच्छे पोस्ट पे काम कर रहा था. उस ने बताया के उसके मन बाप का बचपन मैं ही दिहाथ हो गया था और उसके परवरिश उसके चाचा ने के जिनका करीब 2 साल पहले हार्ट अटॅक की वजा से दिहाथ हो गया और अब वो दुनिया मैं बिल्कुल अकेला हा और ये मेरे लाइ ऐक अच्छे खबर थी क्यूँ के मैं हमेशा से ही घर दामाद चाहता था स्नेहा के लाइ. मैने रोहन के सामने घर दामाद बनाने के शर्त न्यू एअर जिसे उस ने कुछ अरसा सोचने के बाद क़बूल कर लया. मैने उसके जॉब का पता कराया अपने तसली के लाइ उसके साख अपने कंपनी पे बुहुत अच्छे थी और वो मुंबई के ऐक अच्छे एलक़े मैं ऐक घर मैं रहता जो उस ने किराए पे ले रखा था. रोहन के बड़े मैं अपने तसली करने के बाद मैने स्नेहा और रोहन के माँगनी तय कर दी और माँगनी के त्यारियाँ होने लगे. मैं स्नेहा के माँगनी मैं कोई कमी नही चाहता था मैने मुंबई के सब से बड़े होटेल मैं बुकिंग कराई थी माँगनी के लाइ और आख़िर कार वो दिन आ गया जब स्नेहा और रोहन के माँगनी होनी थे.

माँगनी के दिन सूबह मुझे रोहन का फोन आया वो माँगनी के बड़े मैं कुछ बात करना चाह रहा था तू मैने उसे बताया के मैं कुछ काम के लाइ ऑफीस जा रहा हों और 2 घंटे बाद घर आ जायों गा तू वो घर आ के बात कर ले मुझ से. स्नेहा और प्रियंका दोनो मुझ से काफ़ी नाराज़ हुवें के मैं ऑफीस क्यूँ जा रहा हों लायकेन मैं उन से 2 घंटे मैं वापस आने का वादा कर के ऑफीस चला गया. ऑफीस मैं जा के मैं जल्दी जल्दी अपना काम ख़त्म कर रहा था टके मैं जल्द से जल्द वापस घर जा सकोन. एतने मैं मेरे सीकरेटरी ने ऐक पॅकेट मुझे आ कर दया के ये कोई शख्स मेरे लया दे कर गया हा. मैने वो पॅकेट साइड पे रख दया और अपना काम करने लगा, काम ख़त्म करने के बाद मैने उस पॅकेट को उठाया तू वो बुहुत खूबसूरात पॅकिंग मैं था मुझे लगा शायद स्नेहा के माँगनी का गिफ्ट भाईजा हा किसी ने, मैने मुस्कुराते हुवे वो पॅकेट खोला तू उसके अंदर ऐक सीडी थी मुझे काफ़ी हैरंगी हुवे के ये कैसा गिफ्ट हा मैने अपने लॅपटॉप मैं वो सीडी लगा के उसे चलाया और जैसे जैसे वो सीडी चलती गयी मेरे वजूद को हिलती गयी मुझे लग रहा था जैसे सारे दुनिया गोल गोल घूम रही हा मेरे एर्द गिर्द, मेरा दिमघ मेरा साथ चोर्ता जा रहा था आहिस्ता आहिस्ता, सीडी ख़त्म होने तक मेरे हालत ऐसी हो चुकी थी जैसे पता नही मैं कितने माइल्स तक भागता रहा हों मेरा पूरा जिस्म पसीने से नहा चुका और मेरे सनसाइन ज़ोर ज़ोर से चल रही थाइन, मैने अपने लॅपटॉप से सीडी निकल के उसके पूरे्ज़े पूरे्ज़े कर डाइ लायकेन मेरे सीने मैं अचानक बुहुत ज़ोर से दर्द हुवा और फिर वो दर्द बर्हता हे गे मैने ऐक हाथ अपने सीने पे रख के जैसे उस दर्द पे क़ाबू पाने की कोशिश के लायकेन नाकाम रहा दर्द बर्हता हे जा रहा था और फिर थोड़ी दायर बाद मैं होश से बेगाना हो चुका था ………

वो बुहुत धीरे धीरे अंखाईं खोल रहा था और होश मैं आने के बाद सब से पहला ख़याल जो उसके दिमघ मैं आया वो ये था के वो कहाँ हा. उस ने अंखाईं खोल के अपने आस पास देखा तू उसे लगा जैसे हर तरफ अंधैरा हे अंधैरा हा फिर उस ने दोनो हाथों से अपने आँखों को ज़ोर से रग्रा और घोर से देखने के कोशिश के तू आहिस्ता आहिस्ता तमाम मंज़ीर उसके सामने सॉफ होता गया और सामने दीवार पे लगे उसके तस्वीर उसे बता रहे थे के हू अपने बेडरूम मैं हा. उस ने अपने बेड के साथ लगे टेबल लॅंप को ऑन क्या तू कमरे मैं हल्की से रोशनी फैल गये. उस ने उठ कर बेठ्ने के कोशिश के लायकेन उसे एहसास हुवा के वो एतनी कमज़ोरी महसूस कर रहा हा के उठ के बेठ नही सकता.अब उसका दिमघ आहिस्ता आहिस्ता जागने लगा था उस ने अपने दिमघ पे ज़ोर डायना शुरू क्या याद करने के लाइ वो एस हालत मैं क्यूँ हा. धीरे धीरे उसे याद आने लगा आज सूबह हमेशा के तरहन उस ने अपने पत्नी और बेटी के साथ नाश्ता क्या था और उसके पत्नी ने नाश्ते के टेबल पे उसके साथ लरआए भी के थे के वो आज ऑफीस ना जाए क्यूँ के आज उसके जान से प्यारी बेटी के माँगनी थे और हू चाहते थे के आज हू अपना सारे तवजु शाम को होने वाले पार्टी पे रखे लायकेन कुछ ज़रूरी काम होने के वजा से उसे ऑफीस जाना परा था और वो अपने पत्नी से वादा कर के ऑफीस गया था के वो 2 घंटे मैं वापस आ जाए गा.एसके एज उसे कुछ याद नही आ रहा था

“क्या मैं कोई खाब देख रहा हों या मेरा कोई आक्सिडेंट हुवा था लायकेन आक्सिडेंट होता तू मेरे जिस्म पे ज़ख़्आंटी के कोई निशान क्यूँ नही हाँ, फिर मुझे कुछ याद क्यूँ नही रहा मैं ऑफीस के लाइ निकला था तू फिर अपने बेड पे कैसे फुँचा”

के अचानक ऐक बिजली से उसके दिमघ मैं चंकी उसे सब याद आने लगा वो ऑफीस मैं बेठा जल्दी जल्दी अपने काम निपटा रहा था टके जल्दी घर वापस जा सके के उसके सेकरेटरी ने उसके कमरे मैं आ के उसे ऐक पॅकेट दया था ये कह कर के ये उसके लाइ आज करियर से आया हा. उस ने पॅकेट को खोला था और उस मैं उसे ऐक सीडी मिले थे जो उस ने अपने लॅपटॉप मैं लगाए थे और फिर उसे सब कुछ याद आने लगा और फिर उसके मौन से ऐक ज़ोरदार चीख निकले और ऐक बार फिर वो बेहोश हो चुका था. उसके चीख के आवाज़ सुन कर उसके पत्नी और बेटी दोराते हुवे उसके कमरे मैं आए और जल्दी से उसके पास आए

गुनहगार – Hindi Sex Novel – 15
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A woman is like a tea bag - you can't tell how strong she is until you put her in hot water.

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