गुनहगार – Hindi Sex thriller Novel

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sexy
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Re: गुनहगार – Hindi Sex thriller Novel

Unread post by sexy » 28 Sep 2015 10:05

अगले 14 दिन मेरी ज़िंदगी के सब से मुश्किल दिन थे ऐक ऐक दिन गिन गिन के गुज़रा मैने, एस दरमियाँ संजना से 2 बार मेरी बात हुवे और उस से मुझे पता लगा के वो भानु प्राताप का यक़ीन जीतने मैं काफ़ी हद तक कामयाब हो गयी हा जो के हमारे लाइ काफ़ी खुशी की बात थी. 14 दिन बाद मैने एंबसी फोन कर के पता क्या और वहाँ से मुझे संजना के वीसा लगने की खुश-खबरी मिली, मैने संजना को फोन कर के बताया और उसे कहा की किसी भी तरहन वो वहाँ जा के अपना वीसा ले और फिर मुझे बताए. संजना किसी बुहाने एंबसी जा कर वीसा ले आई और मुझे खबर की. फिर मैने एज का प्लान बताया के सीट कन्फर्म होने के बाद मैं उसे एग्ज़ॅक्ट डटे बतायों गा जिस दिन हम यहाँ से निकलन गे और उसे ऐक बुहुत माशूर शॉपिंग माल का बताया जहाँ पे उसे आना हा वहाँ पे लॅडीस बाथरूम मैं पल्लवी उसके लाइ बुरखा ले कर पहले से मोजूद होगी, एस तरहन उसके साथ आने वाले 2 गार्ड्स उसे पहचान नही पाएँ गे और वो आराम से बाहर निकल आए गी, और मैं माल के बाहर उसका एनटजार कारों गा और वहाँ से सीधा हम एरपोर्ट जाएँ गे. उसे सारा प्लान समझने के बाद मैने टिकेट बुक कराए और एस मैं मैने ख़ास टाइमिंग का ख़याल रखा मैने दिन 2 बजे की टिकेट बुक कराए टके संजना आराम से घर से निकल सके. टिकेट बुक करने के बाद मैने संजना को बता दया और अगले दिन हम जाने की त्यारी करने लगे, हुमैन अभी भी बुहुत सावधान हो के रहना था क्यूँ की जब तक हम इंडिया से निकल नही जाते थे हर लम्हा हुमैन भानु प्राताप से ख़तरा था हालाँकि अब तक हम ने उसे किसी भी किसाम का शक नही होने दया और एस मैं सब से बरा हाथ पल्लवी का था अगर वो और प्रेम हुमारी मदद ना करते तू शायद मैं कभी भी संजना को भानु प्राताप के चुंगल सा ना निकल पता.

अगले दिन मैं ठीक 12 बुजे टॅक्सी मैं अपने बाटेये हुवे शॉपिंग माल पे फुँछ गया, वहाँ से मैं मुसलसल पल्लवी के साथ कॉंटॅक्ट मैं था, करीबन 12:15 के करीब मुझे पल्लवी ने बताया के संजना वहाँ पे फुँछ गयी हा मैने टॅक्सी ड्राइवर को टॅक्सी माल के एंट्रेन्स के बिल्कुल सामने खड़ा करने का कहा और उसे टॅक्सी चालू रखने का बोला, करीबन 5 मिनिट बाद मुझे संजना का फोन आया के वो माल के बाहर फुँछ गयी हा क्यूँ की उस ने बुरखा क्या हुवा था एस लाइ मेरा उसे पहचान पाना मुश्किल था मैं टॅक्सी से बाहर निकल आया टके वो मुझे देख सके, वो मुझे देखते हे तकरीबन दोर्थी हुवे मेरे पास आ गयी और हम टॅक्सी मैं बेठ गये, मैने टॅक्सी वाले को एरपोर्ट जाने का कहा, मैने संजना को एशारा क्ये के वो कोई बात ना करे अभी तक हम ख़तरे से बाहर नही थे कोई भी छोटी से घालती हुमैन फुंसा सकती थी. एरपोर्ट फुँछ कर भी मैने संजना को बुरखा उतरने नही दया जब तक हमारे जहाज़ के फाइनल अनाउन्स्मेंट नही हो जाती मैं कोई भी ख़तरा मोल लेना नही चाहता था. समय बुहुत आहिस्ता आहिस्ता बीट रहा था या मुझे ही ऐसा लग रहा था आख़िर कर हमारे जहाज़ की फाइनल अनाउन्स्मेंट हुवे मैने संजना को बाथरूम भाईजा के वो बुरखा उतार के आ जाए और फिर हम जहाज़ के अंदर फुँछ गये. मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं कोई बुहुत बड़ी जुंग जीत के आया हों, एतने दिनों का ठानायो और परेशानी के बाद आख़िर कार हम सुख का सांस ले सकते थे. संजना की आँखों से तू आँसू बहना शुरू हो गये मैने उसका सिर अपने कंधे से टीका दया. वो थोड़ी दायर मुझ से बताईं कराती रही और फिर सू गयी ऐसा लगता था जैसे वो काए दिनों की जागी हुवे हा उसके चहरे पे सकूँ ही सकूँ नज़र आ रहा था. आख़िर कार हम लंडन फुँछ गये एरपोर्ट से बाहर निकलते ही मैने संजना को ज़ोर से अपनी बाँहों मैं जाकर लया, एतने दिन के बाद मैं कुछ रिलॅक्स हुवा था, भानु प्राताप के चुंगल से संजना को निकलना वाक़ए किसी जुंग जीतने से कम ना था. हम टॅक्सी पे मेरे फ्लॅट फुँचे और फ्लॅट मैं दाखिल होते ही संजना और मैं सोफे पे ऐसे गिर गये जैसे पता नही कितनी दूर से पैदल चल कर आ रहे हों

“आ.द , मुझे यक़ीन ही नही हो रहा के हम लंडन फुँछ गये” …. संजना ने मेरा हाथ पाकरते हुवे कहा

“मुझे अपने प्लान पे विश्वास था और तुम पर भी के अगर हम ने सब कुछ प्लान के दुवारा क्या तू हम ज़रूर कामयाब हों गे” …. मैने उसका हाथ चूम लया

“मुझे ऐसा लग रहा हा जैसे मैं सद्यों बाद आज़ाद फ़िज़ा मैं सांस ले रही हों, अब एहसास हो रहा हा के आज़ादी कितनी बड़ी डोलात हा” …. संजना ने ऐक लंबा सांस लया जैसे वो अपनी आज़ादी को अपने अंदर उतरना चाहते हो

“हाँ जान!, लायकेन अभी तू सिर्फ़ ये पहला हिसा था अभी हम पूरी तरहन आज़ाद तू नही हुवे, तुम अभी भी भानु प्राताप के बहू हो” ….. मुझे अब एज की फिकेर हो रही थी

“हाँ, ये बात तू मैने पहले भी तुम से कही थी लायकेन तुम ने कहा के एसके बड़े मैं बाद मैं सोचैईन गे” …. संजना ने मुझे याद कराया

“हाँ क्यूँ की मैने अभी तक एस बड़े मैं वाक़ए नही सोचा था, फिकेर तू मुझे एतने नही क्यूँ की एतने जल्दी तू भानु प्राताप हुमैन ढुंड नही सकता” ….. मैने उसे तसली दी

“लायकेन उसके गार्ड्स ने पल्लवी का घर तू देखा हा और उसे मेरे घर आते जाते भी देखा हा ??” ….. संजना की आवाज़ मैं फिकेर की झलक थी

“एसए लाइ तू मैने माल से भागने का प्लान बनाया था टके पल्लवी पे किसी किसाम का शक ना हो भानु प्राताप को, अगर वो उन से पूछने जाए गा भी तू वो उसे यही कहाँ गे के उन्हइन कुछ नही पता, अगर उस ने उन पे ज़्यादा ज़ोर डाला तू मैने उन्हइन कहा हा के वो बता डैन के हम लंडन मैं हैं” ….. मैने उसे समझाया

“लायकेन वो उनको नुक़सान भी तू फुँचा सकता हा ना, आख़िर उसे पता तू लग जाए गा के तुम्हारी बेहन हा पल्लवी” …..

“हाँ, बट एट्ना ख़तरा तू लाना ज़रूरी था, वैसे भी किसी ना किसी तरहन तू हुमैन खुद भी भानु प्राताप से बात तू करनी हा, जब तक वो शादी वाला माला हाल नही होता, हम पूरी तरहन आज़ाद नही हाँ” ….. मैने उसे समझाया

“अछा अब एन सब बातों को चोरो फिलहाल, तुम फ्रेश हो जयो मैं बाहर से कुछ खाने को लता हों, आज तू हम एस अधूरी आज़ादी का जशन मनाएँ गे ना फिर कल से सोचना शुरू कारण गे के एज क्या करना हा” …… मैने संजना का गाल चुते हुवे कहा और वो भी मुस्कुरा दी

मैं अपने फ्लॅट से बाहर आ गया और अपने पसंदीदा रेस्तूरंत की तरफ चल दया खाना लेन के लाइ. संजना को तू मैने तसली दे दी थी लायकेन मेरा दिमघ अभी तक वोे बात सोच रहा था के अभी भी तुरप का पत्ता तू भानु प्राताप के हाथ मैं ही था, लंडन मैं हमारे साथ उसका ज़बरदस्ती करना मुश्किल था लायकेन अभी भी वो केस तू कर ही सका था और संजना अगर वहाँ ब्याना दे भी डायटी के उसकी शादी ज़बरदस्ती हुवे थी फिर भी केस जीतना एट्ना आसान नही था. एस मामले को ख़त्म करने के लाइ कुछ और ही सोचना था लायकेन क्या ये अब तक मेरे दिमघ मैं नही आया था ……

अगले 3 दिन तक मैं और संजना यही सोचते रहे के अब एज क्या करना हा किस तरहन भानु प्राताप से जान चुराए जा सकती हा, क्यूँ की जब तक संजना की शादी ख़त्म नही होती थी हम पे मुसलसल ऐक तलवार लटकी थी. मुझे एसका बात का भी अंदाज़ा था के भानु प्राताप वहाँ आराम से नही बेठा होगा बालके हुमैन ढूनदने की हर मुमकिन कोशिश कर रहा होगा, मैने अपने वकील से भी बात कर न्यू एअर थी टके अगर कुछ अनहोनी हो जाए तू वो त्यार रहे उस से निपतने के लाइ, मैने उस से एस मामले पर भी बात की के अब क्या करना चाहये उस ने मुझे 2,3 हूल बताए जिस मैं से 1 मेरे दिल को लगा लायकेन उसके लाइ भानु प्राताप का राज़ी होना बुहुत ज़रूरी था. मैं अब एस बात का फ़ैसला नही कर पा रहा था के मुझे खुद भानु पताप से रब्टा करना चाहये या उसका एन्ताज़ार करना चाहये था मुझे एट्ना तू पता था के बुहुत जल्द वो मुझे ढुंड कर मुझ से रब्टा करे गा और और मेरा शक सही सबात हुवा अगले दिन ही भानु प्राताप का फोन मुझे आ गया और मुझे एस बात पे ज़्यादा हैरंगी नही हुवे

“लड़के, तुम्हेँ क्या लगा तुम संजना को ले कर लंडन भाग जयो गे तू मुझे पता नही लगे गा ??” …. भानु प्राताप की आवाज़ मैं चट्टान जैसी सख्ती थी

“नही मुझे ऐसी कोई घालत फ़हमी नही थी, मैने बस वोही क्या जो मुझे ठीक लगा” …. मैने आराम से जवाब दया

“क्या सही और क्या घालत ये तुम्हेँ बुहुत जल्द पता लग जाए गा, तुम्हेँ भानु प्राताप की ताक़त का अंदाज़ा नही हा” …. अब की बार उसकी आवाज़ और भी सख़्त थी

“अगर अंदाज़ा ना होता तू संजना को ले कर लंडन ना आता” …. शायद मेरी कोशिश थी के भानु प्राताप को कम से कम घुसा आए क्यूँ की मैं जनता था के अभी भी सारे पत्ते उसके हाथ मैं हाँ

गुनहगार – Hindi Sex Novel – 10

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Re: गुनहगार – Hindi Sex thriller Novel

Unread post by sexy » 28 Sep 2015 10:05

“तुम्हेँ अंदाज़ा नही हा एसए लाइ तुम ने भानु प्राताप से तकर लेन की कोशिश की हा, मैने तुम्हेँ समझाया था के संजना से दूर चले जयो लायकेन तुम ने ऐसा नही क्या, तुम ने भानु प्राताप की ेज़ात से खैलने की कोशिश की हा एसका नतीजा तुम्हेँ भुगतना ही परे गा” …. भानु प्राताप ने मुझे चितवनी डाइते हुवे कहा

“प्राताप जी ! मेरा ख़याल हा हम एस मामले को आराम से भी सुलझा सकते हैं” …. मैं किसी भी तरहन उन से तकर लेन के मूड मैं नही था

“क्या सुलझाना हा ?? , कुछ सुलझने वाला नही लड़के, तुम मेरे सोच से ज़्यादा चालक निकले तुम ऐक बार मुझे धोका दे सकते हो बार बार नही, और एस धोके की तुम्हेँ एबरतनाक सज़ा डॉन गा मैं, ये वादा हा मेरा तुम से” …. भानु प्राताप का घुसा किसी तरहन कम नही हो रहा था

“प्राताप जी, बुजाए लारने के मेरे बात ज़रा ठंडे दिमघ से सुनिए, आप भी जानते हैं के लंडन मैं आप वो कुछ नही कर सकते जो इंडिया मैं कर सकते थे, आपके लाइ भी सब कुछ करना एट्ना आसान नही होगा” …. मैं उनका घुसा ठंडा करने की हर मुमकिन कोशिश कर रहा था

“तुम मेरे ताक़त से वाक़िफ़ नही हो, तुम लंडन तू क्या किसी भी दुनिया के हिसे मैं चले जयो मैं तुम्हेँ ढुंड निकालों गा” …

“उस से क्या होगा ??, ज़्यादा से ज़्यादा आप मुझे और संजना को मार दलाइन गे, या फिर शायद मुझे ही मार दलाइन गे उस से मसला हाल तू नही होगा, आप जानते हैं के अगर मुझे मार दया आप ने तू संजना भी कुछ कर गुज़रे गी और वसीयत के मुताबिक अगर संजना को कुछ हो गया तू जायअंकल मैं से आपको भी कुछ नही मिले गा” …. अब की बार मैने पक्के बिज़्नेसमॅन की तरहन उस से डील शुरू कर दी, और भानु प्राताप की गहरी खामोशी बता रही थी के वो मेरे बात पे गहरी सोच मैं गुम हो गया हा

“आप भी जानते हैं और मैं भी के आपको या आपके बेटे को संजना मैं कोई इंटेरेस्ट नही हा, आपको सिर्फ़ उसकी जायअंकल चाहये तू क्यूँ ना हम आराम से बेठ के एस मामले को हाल कर लाइन” …. मैने अपनी बात जारी रखते हुवे कहा

“वो किस तरहन ?? ” …. भानु प्राताप आहिस्ता आहिस्ता शायद मेरे बात समाजाह रहा था

“देखिए मेरे पास एसका ऐक हूल हा, जिस से बिना लारे झगरे हम सब का मसला हाल हो सकता हा” …. मैने लोहा गरम देख के हथोड़ा मार दया

“कैसा हूल ?? ” …

“आप अपने बेटे से कहिए के वो संजना को तलाक़ दे दे और एसके बदले हम जायअंकल को 50/50 कर लायटे हैं, आधी जायअंकल आप रख लीजिए आधी संजना के नाम कर दीजिए” …. मैने अपना सोचा हुवा हूल उसके सामने रखा

“बुहुत खूब, लड़के जितना तुम अपने आप को चालक समझते हो उतने तुम हो नही, संजना को तलाक़ भी मिल जाए और आधी जायअंकल भी, तुम्हारे जैसे भूके नंगे के लाइ तू आधी जायअंकल भी काफ़ी हा एट्ना पैसा तुम ने कभी खाब मैं भी नही देखा होगा, तुम्हेँ क्या लगता हा मैं यहाँ पे हाथ पे हाथ रख के तुम्हारी किसी ऑफर का एनटजार कर रहा था, मैं सब कुछ पता करा चुका हों मेरे आदमी तुम्हारे भाइयों और तुम्हारी बेहन के घर पर 24 घंटे नज़र रखे हुवे हैं, मेरे ऐक एशरे पर उनकी सनसाइन रुक जाएँ गी” …. पहली बार भानु प्राताप ने तफ़सील से बात की

“मैं पहले भी कह चुका हों आप से एस सब का कोई फ़ायदा नही निकले गा बालके उल्टा मसला और घांबीर हो जाए गा, अगर आपको 50/50 वाली ऑफर मंजूर नही तू आप बताए आपको कितना हिस्सा चाहये, मैं त्यार हों आप से डील करने के लाइ” …. मैने ऐक बार फिर से उसे समझने की कोशिश की

“फ़र्ज़ करो अगर मैं तुम्हारे बात मन भी लोन तू ये होगा कैसा ??, तुम ने शायद वसीयत ठीक से नही पढ़ी संजना के बाप ने उस मैं साफ साफ लिखा हा के संजना अपनी जायअंकल किसी के नाम नही कर सकती, वरना जो तुम बोल रहे हो वो मैं बुहुत पहले ही कर चुका होता” …. भानु पराताप ने तनिज़या लहज़े मैं कहा

“और मुझे लगता हा शायद जल्दी मैं आप वसीयत सही तरहन नही पारह सके, ये ठीक हा के संजना किसी के नाम अपनी जायअंकल नही कर सकती लायकेन वो चॅरिटी तू कर सकती हा ना अपनी जायअंकल और आप जैसे बड़े आदमी का कोई ना कोई चारिटबल ऑर्गनाइज़ेशन तू ज़रूर होगी तू वहाँ पे चॅरिटी तू कर ही सकती हा” … मैने मुस्कुराते हुवे उन्हइन समझाया

“ह्म ! लड़के तुम हर बार मुझे हैरान करते हो अपनी ज़हनत से, लायकेन फिर भी 50/50 मुझे मंज़ूर नही हा अगर मैने तुम्हारे साथ 50/50 ही करना होता तू फिर डील करने के क्या ज़रूरात हा मुझे” …. भानु प्राताप अब कुछ नरम पर रहा था

“ठीक हा आप बताए आप कैसी डील करना चाहते हो” …. मैने एस बार खुला ऑफर दया उन्हइन

“सब से पहले मुझे अपने वकील से बात करना होगी, उसके बाद ही मैं तुम से मज़ीद एस मामले पे कोई बात कारों गा” …. भानु प्राताप ने कुछ सोचे हुवे कहा

“मुझे मंज़ूर हा आप भले अपने वकील से आराम से बात कर लीजिए, मुझे आप की कॉल का एन्ताज़ार रहे गा” …. मुझे तसली हो गयी के बात उसकी समझ मैं आ गयी और मैं जनता था के उसका वकील भी उसे वोे मशवरा दे गा जो मैं दे रहा हों क्यूँ की एस मैं सिर्फ़ और सिर्फ़ उसका फ़ायदा था और ये बात मुझे अपना वकील काई बारी बता चुका था

“ठीक हा मैं तुम्हेँ 2 दिन बाद कॉल कारों गा और अगर मेरे वकील ने एस डील की लाइ ग्रीन सिग्नल दे दया तू फिर मैं उसे भैईज़ों गा लंडन बाकी मामलात वो वहीं आ कर निपटा दे गा” …. भानु प्राताप ने बात ख़त्म करते हुवे कहा

“ओक ! मुझे एन्ताज़ार रहे गा” …. मैने ये बोल कर कॉल बंद कर दी

कॉल ख़त्म करते ही मैने ऐक ग्लास पानी का प्या मुझे लग रहा था जैसे मैं किसी भोज से आज़ाद हो गया हों क्यूँ की एट्ना तू मुझे पक्का यक़ीन था के भानु प्राताप का वकील उसे ग्रीन सिग्नल ही दे गा और मुझे बस एस बात का दर था के भानु प्राताप कहीं घुसे मैं आ कर मेरे बात को उन-सुना ना कर दे लायकेन वो भी पक्का बिज़्नेसमॅन था अपने ऩफा नुक़सान को जज़्बात से बिल्कुल अलग रखता था. अब मुझे 2 दिन और एन्ताज़ार करना था जब तक भानु प्राताप अपने वकील से बात पूरी कर ले. मैने भी ऑफीस मैं अपना बाकी का काम जल्दी से निपटाया, अब मुझे अपने वकील से बात करना थी और संजना से भी टके वो भी कुछ सुख का सांस ले सके …

घर फुँछ कर संजना को मैने अपने और भानु प्राताप के दरमियाँ होने वाली सारी बात से आगाह क्या, और अपने वकील से होने वाली बात भी बताई, मेरे वकील को शक था के भानु प्राताप तलाक़ के बदले जायअंकल का ऐक बरा हिसा अपने नाम कराए गा. संजना को एस बात की फिकेर ना थी वो सिर्फ़ एस ज़बरदस्ती की शादी से छुटकारा चाहती थी, चाहे उसके लाइ उसे जायअंकल से हाथ भी धोना परे, मुझे एस बात से कोई हैरंगी ना थी क्यूँ की संजना ने हमेशा पैसे से ज़्यादा मोहब्बत और रिश्तों को एहमियत दी थी. 2 दिन बाद भानु प्राताप का फोन आया और जैसे मेरे वकील को शक था बिल्कुल वैसा हे हुवा, भानु प्राताप ने तलाक़ के बदले मैं करीबन 90% जायअंकल अपने नाम करने को कहा, वो तलाक़ के साथ सिर्फ़ संजना का बुंगलोव और 1 फॅक्टरी हुमैन डायने को त्यार था. संजना तू खैर पहले भी मुझे कह चुकी थी के वो तलाक़ के बदले जो माँगता हा उसे दे दो, लायकेन भानु प्राताप की एस शर्त के बाद मेरा दिल थोड़ा डग-मगाने लगा एतने बड़ी जायअंकल और यूस्क मैं से सिर्फ़ 1 फॅक्टरी और बुंगलोव, मुझे लगा ये बुहुत घाटे का सौदा हा जिस मैं सिर्फ़ और सिर्फ़ भानु प्राताप को फ़ायदा हा लायकेन फिर दूसरे ही पल मुझे एहसास हुवा के मेरे सोच कितनी छोटी हो गयी हा, ये संजना के पूरे ज़िंदगी का मामला था और मैं उस सौदा मैं अपने फ़ायदे की सोच रहा था लायकेन शायद अब किसी भी खुद घर्ज सोच का मेरे दिल मैं आना कोई हैरंगी की बात नही थी क्यूँ की मुझे खुद भी अब मालूम नही पराता था के कब कब मैं सिर्फ़ अपने स्वार्थ के बड़े मैं सोचने लग जाता हों.

अपने वकील से बात करने के बाद मैने भानु प्राताप को हाँ मैं जवाब दे दया और फिर उस ने अपना वकील लंडन भाईजा जिस ने सारे डील फाइनल की, सारे जायअंकल उसके चॅरिटी ऑर्गनाइज़ेशन के नाम हुवी और बदले मैं बुंगलोव और फॅक्टरी के कागज़ाट और उसके साथ ही तलाक़ के पेपर्स उस ने हमारे हुवाले क्ये. जिस दिन ये सब कुछ हुवा उस दिन मैने और संजना ने अपनी आज़ादी का सही जशन मनाया और उस रात अपने भविशर के बड़े मैं बुहुत से सुहाने खाब देखे. हुमैन ऐक तरहन से नया जीवन मिला था एतनी बड़ी मुसीबत को टलने के बाद हम दोबारा ऐक हुवे थे. 1 हफ्ते बाद मैने और संजना ने शादी कर ली, हमारे लाइ अब इंडिया जाना अब संभव नही था तू संजना ने फॅक्टरी के मामलात अपने पूरेाने मॅनेजर के हुवाले कर डाइ जो उसके पापा के साथ बरसों से काम कर रहा था और बुंगलोव फिलहाल बंद कर दया था, मेरा तू ख़याल था के हम उसे किराए पर दे डाइते हैं पर संजना एस पे राज़ी नही थी उसे अपने उस घर से बुहुत मोहब्बा थी वो नही चाहती थी के कोई तीसरा आ कर उस मैं रहे.

गुनहगार – Hindi Sex Novel – 11

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Re: गुनहगार – Hindi Sex thriller Novel

Unread post by sexy » 28 Sep 2015 10:05

मूज़े अब और ज़्यादा मेहनत करनी थी क्यूँ की जीतने खाब मैने संजना के जायअंकल के हुवाले से देखे थे वो तू सब ख़त्म हो गये थे और अब मूज़े
अपने खाब पूरे करने के लाइ सिर्फ़ अपने उपेर ही भरोसा करना था. एन ही दिनों मैं मुझे कंपनी के काम के सिलसिले मैं कॅनडा जाने का मोक़ा मिला वहाँ पे मेरे मुलाक़ात रोहित ओबेरोई से हुवी, वो इंडिया के काफे नामी गरमी बिज़्नेसमॅन थे और अब कॅनडा मैं अपना बिज़्नेस जमा रहे थे, उन से मिलना भी ऐक एतीफ़ाक़ ही था क्यूँ की वो हमारे कंपनी के साथ ऐक बुनएस्स डील करना चाह रहे थे कॅनडा मैं और हालाँकि मैं गया तू किसी और काम से था लायकेन हमारे जो मॅनेजिंग डाइरेक्टर थे उन्हइन किसी काम से वापस लंडन आना परा तू और मैं क्यूँ के उनके असिस्टेंट के टॉर पर काम कर रहा था तू वो मुझे रोहित ओबेरोई के साथ मीटिंग का काम सोनप कर वापस चले गये. रोहित ओबेरोई के साथ मीतिग को ले कर मैं काफ़ी घबराया हुवा था क्यूँ की ये मेरे जिंदगी की पहली बुहुत बड़ी मीटिंग थी और मैं जनता था के अगर मैं उन्हइन अपनी कंपनी के साथ काम करने पे राज़ी हो गया तू मेरे जॉब के लाइ ये सफलता बुहुत एहम साहबित होगी

“मिस्टर.अंकुश वैसे तू मैं यहाँ पे खुद अकेले भी बिज़्नेस की शुरुवत कर सकता हों लायकेन क्यूँ के ये मेरा पहला इंटरनॅशनल प्रॉजेक्ट हा एस लाइ मैं चाहता हों के किसी ऐसी कंपनी के साथ जॉइंट वेंचर कारों जो पहले से ही कॅनडा मैं बिज़्नेस कर चुकी हो, आपके कंपनी का लंडन और कॅनडा मैं काफ़ी नाम सुना हा तू मैने सोचा क्यूँ ना शुरुवत आप लोगों के साथ ही की जाए” …. रोहित ओबेरोई के साथ वैसे तू हमारे अफीशियल मीटिंग होना अभी बाकी थी लायकेन उन्हों ने उस से पहले ही मुझे अपने फ्लॅट पे खाने की दावत पे बुला लया

“सिर ! हमारे लाइ तू ये फखार की बात होगी के आप जैसा माशूर बिज़्नेसमॅन हमारे साथ काम करना चाह रहा हा, आपको इंडिया मैं कोन नही जनता और मुझे यक़ीन हा के आपको हुमारी कंपनी के साथ ये बिज़्नेस डील कर के कोई अफ़सोस नही होगा” …. मैने ऐक दम पक्के बिज़्नेस मन के तरहन उन्हइन यक़ीन दिलाने की कोशिश की

“बिल्कुल लायकेन मैं चाहता हों के सब कुछ वैसे ही हो जैसे मैने सोचा हा, ये मेरे कंपनी का पहला इंटरनॅशनल प्रॉजेक्ट हा और एस मैं कोई भी घालती मैं बर्दस्त नही कर सकता, अगर पहली बारी ही कोई घालती हो गयी तू मेरे कंपनी का नाम खराब हो सकता हा जो मैं बर्दस्त नही कर सकता, आज जहाँ पे मैं हो वहाँ फुँचने के लाइ मैने बुहुत मेहनत की हा” …. रोहित ओबेरोई की आवाज़ मैं ऐक उन-देखी से सख्ती थी

“सिर ! ऐसा कुछ नही होगा, हुमारी कंपनी पिछले 20 साल से लंडन और कॅनडा मैं बिज़्नेस कर रही हा और यहाँ पे हम ने अपना नाम करी मेहनत से ही बनाया हा, हमारे लाइ भी ये प्रॉजेक्ट बुहुत एहमियत रखता हा पहली बारी हम किसी इंडियन कंपनी के साथ एट्ना बरा प्रॉजेक्ट कारण गे और वैसे भी हुमारा एक्सपीरियेन्स आपके लाइ बुहुत फ़ायदा मंद साहबित होगा मुझे पूरा यक़ीन हा” …. मैने ऐक बार फिर से उन्हइन यक़ीन दिलाया

“मूज़े आपकी बात पे कोई शक नही, वैसे भी यहाँ आने से पहले मैं यहाँ की सब ही कंपनीज़ के बड़े मैं पूरी जानकारी ले कर आया था और आप लोगों के कंपनी भले कुछ और कंपनीज़ के मुक़ाबले कुछ नयी हा यहाँ पे कुछ कंपनीज़ 30,40 साल से भी काम कर रही हाँ लायकेन आप लोगों का यहाँ पे काफ़ी अछा नाम हा एसए लाइ मैने सोचा के एस प्रॉजेक्ट पे पहले आप लोगों से बात की जाए” ….. अब की बार उन्हों ने थोड़ा मुस्कुराते हुवे कहा

“सिर ! ऐक हिन्दुस्ठानी होने के नाते मुझे बुहुत खुशी हा के आप जैसे बिज़्नेसमॅन ने इंटरनॅशनल मार्केट मैं कदम जमाने का सोचा हा, एस से हमारे मुल्क का भी नाम उँचा होगा” …. मैने अब थोड़ा खुशांडी लहज़े मैं कहा

“ठीक हा मिस्टर.अंकुश तू कल हम अफीशियल मीटिंग मैं प्रॉजेक्ट के तफ़सीलट और बाकी के मामलात तय कारण गे, मैं उमीद कराता हों के हम एस डील को करने मैं कामयाब हो जाएँ गे, वैसे मुझे बताया था के यहाँ पे एस डील के सिलसिले मैं मिस्टर.आर्तर मेरे साथ मीटिंग करने आएँ गे लायकेन यहाँ आ के पता चला के अब आप के साथ ये मीटिंग करना होगी” …..

“सिर ! मिस्टर.आर्तर को कुछ ज़रूरी कम के सिलसिले मैं वापस लंडन जाना परा और मैं उनका असिस्टेंट हों एस लाइ ये मीटिंग का काम मुझे सोनप गये हैं लायकेन आप फिकर मत कीजिए अगली मीटिंग तक वो वापस आ जाएँ गे” ….. मैने उन्हइन तफ़सील से आगाह क्या

“कोई बात नही यंग मान, नोजवानों मैं और ज़्यादा जोश होता हा बजाए मेरे जैसे बूढ़ों के” ….. रोहित ओबेरोई ने बात ने मुस्कुराते हुवे कहा

“मूज़े तू एस बात की खुशी हा सिर के मुझे आप जैसे नामी गरमी एंसन के साथ मुलाक़ात का मोक़ा मिल गया, मुझे यक़ीन हा आप से बुहुत कुछ सीखने का मोक़ा मिले गा मूज़े” …. मैने ऐक बार फिर से खुशांडी लहज़े मैं कहा

“और मुझे तुम से, तुम्हारा जोश और कुछ करने की चाह मुझे पसंद आई, अपनी जवानी का दूर याद आ गया तब मैं भी तुम्हारे तरहन था का था कुछ करने की कुछ पा लाइने की खाहिश, तुम बुहुत एज जयो गे” …… अब की बार उनाओं ने सोफे से उठ के मेरे शने पे हाथ रखते हुवे कहा

“आयो खाना लग चुका हा” ….. ये कहते ही वो मुझे डाइनिंग टेबल पर ले आए

खाने के डॉरॅन वो मुझे अपनी जिंदगी और अपनी जवानी के काई क़िसे सुनते रहे जहाँ से मुझे पता लगा के कैसे उन्हों ने अपनी अंकल की छोटी से कंपनी नो यहाँ तक फुँचाया था, और उस रात वापस अपने फ्लॅट आते हुवे मैं रोहित ओबेरोई के बड़े मैं ही सोच रहा था मैं उन से और उनकी कामयाबयोन से बुहुत मुटासीर हुवा था और भगवान का शूकर कर रहा था के मुझे उस जैसे आदमी से मिलने का मोक़ा मिला मुझे यक़ीन था उनके साथ मुझे बुहुत कुछ सीखने का मोक़ा मिले गा लायकेन मैं ये नही जनता था के ये ऐक मुलाक़ात मेरे ज़िंदगी मैं बुहुत बरा तूफान लाने वाले थी, ऐक ऐसा तूफान जो मेरे आने वाली ज़िंदगी मैं सब कुछ बदलने वाला था शायद मुझे भी …..

रोहित ओबेरोई से होने वाले वो पहली मुलाक़ात आखड़ी ना थी आने वाले महीनों मैं मेरे काए और मुलाक़ाठान उन से होती रहें और हर मुलाक़ात मैं मेरे लाइ वो और ज़्यादा एहमियत हासिल करते गये और एस सारा समय मैं मुझे उनके क़रीब होने का काफ़ी मोक़ा मिला हालाँकि अपने कंपनी की तरफ से तू मैने उनके साथ बस ऐक हे अफीशियल मीटिंग के जिसके बाद मिस्टर.आर्तर ने दोबारा आ कर अपना काम संभाल लया लायकेन मैं उन से उन-अफीशियल काई बारी मुलाक़ात कर चुका था. मेरे अंदर कहीं ना कहीं ये खाहिश पल रही थी के वो मुझे अपने केनेडियन प्रॉजेक्ट मैं शामिल कर लाइन हालाँकि मुझे अब तक उन्हों ने ऐसा कोई एशारा नही दया था लायकेन कहीं ना कहीं मुझे लग रहा था के वो मुझे और मेरे काम की लगान को पसंद करते हैं और कभी ना कभी मुझे वो ये ऑफर ज़रूर कारण गे. मैं अब 2 कश्टियों का सॉवॅर हो चुका था ऐक तरफ मैं अपने जॉब कर रहा था और दूसरी तरफ जब भी मोक़ा मिलता मैं कॅनडा जाता था रोहित ओबेरोई से मिलने और उनके हर तरहन से मदद करने की कोशिश कर रहा था उनके प्रॉजेक्ट मैं. एसका नतीजा ये हुवा के संजना के लाइ मेरे पास बुहुत कम समय बैचता क्यूँ की अक्सर वीकेंड पे मैं कॅनडा चला जाता और सारा हफ़्ता अपने जॉब की वजा से मसरूफ़ रहता, पहले तू संजना ने मुझे कुछ ना कहा लायकेन 1,2 महीने गुजरने के बाद वो मुझ से एस बात की शिकायत करने लगी के मैं उसे बुहुत कम समय दे रहा हों और वो अकेली रह रह के तंग आ चुकी हा, उसकी शिकायत कुछ घालत ना थी लायकेन मेरे सिर पे उस वक़्त बस रोहित ओबेरोई को मुटासीर करने का बहोत सॉवॅर था.

संजना और मेरे दरमियाँ एस बात को ले कर पहले तू थोड़ी बुहुत लरआई होते रही लायकेन फिर मैं ऊए माना लेता था लायकेन समय गुजरने के साथ साथ उन लराइयों मैं सख्ती आती गयी, संजना की शिकायत ये थी के जब मैं ऐक अच्छे जगा पे पहले ही जॉब कर रहा हों तू यौन बार बार रोहित ओबेरोई के पास जाने के क्या टुक हा खास कर जब एस तरहन मैं उसे बिल्कुल वक़्त नही दे पता और मेरा कहना ये था के जो जॉब अब मैं कर रहा था वो मेरे सपने पूरी करने के लाइ काफ़ी नही थी जिस मक़ाम पे मैं खुद को देखना चाहता था वो शायद रोहित ओबेरोई की संगत मैं पूरा हो सकता था. संजना और मेरे दरमियाँ पहली बार बुहुत बड़ी लरआई तब हुवे जब मुझे अपने कंपनी के तरफ से प्रमोशन नही मिला जिस का मैं पिछले 2 साल से एनटजार कर रहा था और मुझे पूरा यक़ीन था का एस दफ़ा वो प्रमोशन मैं ज़रूर हासिल करने मैं कामयाब हो जायों गा लायकेन ऐसा ना हो सका और उस वीकेंड पे जब मैने कॅनडा जाने की बात की तू संजना हमेशा की तरहन नाराज़ होने लगी तू मुझे अचानक बुहुत घुसा आ गया और मैने उसे बुहुत सुनाई के वो बुजाए मेरा साथ डायने के मेरे रह मैं रुकावट बन रही हा, पहली दफ़ा मैं उसे मनाए या बात क्ये बेघार कॅनडा चला गया. एस बार संजना ने मुझे मनाया और अपने किए की माफी माँगी, लायकेन फिर ये सिलसला रुका नही हर आने वाले दिन के साथ हुमारी लरैईिओं मैं और ज़्यादा तैइज़ी आती गये अब हम लर्टे थे तू काए काए दिन ऐक दूसरे से बात क्ये बिना गुजर जाते थे. मेरे मॅन अब आहिस्ता आहिस्ता ये बात घैरा कर रही थी के शायद मैने जो डील भानु प्राताप के साथ की थी वो घालत थी हालाँकि मैने तू ऐसा कोई त्याग नही दया था वो सारी जायअंकल संजना की ही थी और उसके ज़िंदगी बचाने के लाइ अगर उसका सौदा करना परा था तू एस मैं मेरा कोई भी त्याग नही था लायकेन मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरे साथ ज़्यादती हुवे हा क़िस्मत ने मुझ से सब कुछ चीन लया हा जब के असलियत मैं तू मेरा तू कुछ था ही नही वो सब कुछ तू संजना का ही था जो गया था लायकेन उस ऐक डील की वजा से मुझे लग रहा था जैसे मेरा सारा भविशर डायो पे लग गया था क्यूँ की मेरे हमेशा से यही सोच थी के संजना के पापा के बुना बनाया कारोबार मुझे मिल जाए गा लायकेन अब ऐसा नही था अब मुझे खुद से मेहनत करना पर रही थी और उसके वजा से मुझ मैं दिन बी ए दिन घुसा और जुनझूलहट बर्हती जा रही थी.

गुनहगार – Hindi Sex Novel – 12

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