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Re: गुनहगार – Hindi Sex thriller Novel

Posted: 27 Sep 2015 10:43
by Fuck_Me
“शरमाते हुवे तुम और भी सुंदर लगते हो” …. मैं उसके बात आन-सुनी कर दे.

“बस बुहुत बदमाशी हो गये आ.द अब तुम रोमॅन्स झरना ना शुरू हो जाना” ….. वो मुझे प्यार से आ.द बुलाती थे.

“मेरा तू दिल चाहता हा सारा टाइम हे तुम से रोमॅन्स झराता राहों” …. मैने मज़े लायटे हुवे कहा.

“हाँ पता हा जब यूके चले जयो गे वहाँ अंग्राइज लरकियों को देख के मुझे भूल जयो गे” …. उस ने अपना हाथ मेरे हाथों से खैंच लया.

“अरे जान तुम्हारे सुंदराता के सामने कोन टिक सकता हा, मेरा बस चले तू तुम्हेँ सामने बिठा के देखता राहों बस” … मैने और ज़्यादा रोमॅंटिक लहज़े मैं कहा.

“बस ऐसे हे झूती बतन बनाते रहते हो हर समय” …. उस ने झूती खफ्गी से कहा.

“अरे दिल चियर के दिखा डॉन क्या तब यक़ीन करो गे”

“बस बस अब ये घिसा पिता दियलॉगे ना मरो और फ्यूचर का सोचो” …. उस ने बात बदलते हुवे कहा.

“फ्यूचर का क्या सोचना हा बस वहाँ जा के म्बा करना हा और जल्दी जल्दी तुम से बियाः रचना और 10,15 बूचों का बाप बनाना हा” …. मैने मज़े ले कर कहा.

“क्या पागल हो गये हो ?? … 10,15 बुचे मैं कोई मशीन हों क्या ?? ” … मेरे बात सुन के संजना बेहोश होने को थी.

“हाँ तू 2,3 बचों से मेरा गुज़रा नही होगा” …. मैं अब भी उसे तंग कर रहा था.

“तू फिर बेक बुचे अडॉप्ट कर लेना मैं 2 से ज़्यादा बचों के हक़ मैं नही हों” ….

“मुझे तुम्हारे जैसे प्यारे प्यारे बचे चाहयेन अडॉप्ट कर के क्या फ़ायदा” …. मैने उसका गाल चू के कहा.

“बस अब सपने देखना बंद करो और उठो दायर हो गये हा पापा आज घर पर हे हैं और अकेले हैं” …. उस ने उठते हुवे कहा.

“आस यू से माई प्रिन्सेस (जैसे तुम कहो मेरे महारानी)” …. और हम दोनो हाथों मैं हाथ डाइ रेस्तूरंत से बाहर आ गये.

मुझे अपना फ्यूचर बुहुत सुंदर नज़र आ रहा था लंडन के डिग्री और संजना का साथ ऐक ऐसा हे हसीन सपना था जिस से बाहर निकालने का किसे भी दिल ना कराता लायकेन मुझे क्या पता था क़िस्मत मेरे लाइ कुछ और हे लिख रहे थे और मेरे सपनों पे हन्स रहे हा

लंडन बिल्कुल ऐक जादू नगरी जैसा था और कुछ कुछ मुंबई से मिलता जुलता भी वही भीर चाल और हर कोई जल्दी मैं था. वहाँ फुँछ के मुझे कुछ अलग फील नही हुवा बालके ऐसा लगा जैसे मैं अपने जैसे लोगों मैं ही आ गया हों वहाँ पर हर कोई अपने मतलब का था किसी को किसी की परवाह नही थी हर कोई अपनी जिंदगी मैं मगन था, हाँ बस फ़र्क शायद एट्ना हो की वो लोग शायद उतने खुद गार्ज नही थे जितना मैं उस समय तक हो चुका था और हर गुज़राते दिन के साथ और ज़्यादा होता जा रहा था.

संजना के पापा के रेफरेन्स से मुझे वहाँ की ऐक फर्म मैं जॉब भी मिल गयी थे और मेरा लाइ अपना खर्च उठना भी मसला ना रहा था. मुझे लंडन मैं आए 1 साल हो गया था जब ऐक रोड आक्सिडेंट मैं मेरे माता पिता का दिहाथ हो गया और मैं वापस इंडिया ना जा सका बालके मैं जाना हे नही चाहता था तू ये ज़्यादा ठीक होगा क्यूँ की मैं जा सकता था क्यूँ की मुझे अपने जॉब से एतनी चुती नही मिल रहे थी और मुझे बाप के अंटम संस्कार से ज़्यादा प्यारी मुझे वो जॉब थी और वो मन बाप जिन्हों ने मुझे यहाँ तक फुँचाया था वो मेरे अब किसी काम के नही थे मेरे अंदर खुद गारजी का ज़हेर एट्ना फैल चुका था के शायद अब जिस्म मैं खून से ज़्यादा खुद गारजी फैल चुकी थी. संजना ने मुझे बुहुत कन्विन्स क्या वापस आने के लाइ लायकेन मैं नही आया और बेहन भाइयों के साथ तू मेरा नाता पहले भी बुहुत कम था और मन बाप के जाने के बाद तू वो जो थोड़ा बुहुत नाता था वो भी ख़त्म हो गया. मेरे पे बस ऐक हे धुन सॉवॅर थी के मैं ऐक अमीर आदमी बन सकोन और उसके लाइ बस संजना का साथ हे मेरे लाइ काफ़ी था.

म्बा कंप्लीट करने के बाद मुझे ऐक फर्म मैं बुहुत अच्छे जॉब मिल गयी और मेरा एरदा था के मैं संजना के साथ 1,2 साल के अंदर शादी कर लूँ गा तब तक मुझे एट्ना एक्सपीरियेन्स हो जाए गा की मैं उसके पापा का बिज़्नेस भी संभाल सकोन जिस पे मेरी नजरां शायद स्कूल के जमाने से थाइन. लायकेन क़िस्मत को शायद कुछ और हे मंजूर था और मेरे जिंदगी मैं वो दिन आ गया जिस ने मेरे जिंदगी को बिल्कुल हे बदल दया. वो भी आम दिनों के तरहन का ऐक दिन था जब मैं ऑफीस से वापस आया के अचानक मेरा मोबाइल बुज उठा और स्करीन पे संजना का नंबर देख के मेरे फेस पे ऐक स्माइल आ गयी.

“हेलो ! …. संजना माई लव मैं तुम्हारे बड़े मैं हे सोच रहा था अभी ” …. मैने मुस्कुराते हुवे कहा.

“आ.द पापा को हार्ट अटॅक हुवा हा मैं एस वक़्त हॉस्पिटल मैं हों” …. संजना ने रोटी हुवे आवाज़ मैं मुझे वो बुरी खबर दी.

“कब? कैसे? तुम ने मुझे बताया क्यूँ नही” …. मेरे तू जैसे पैरों के नीचे से ज़मीन निकल गयी.

“मुझे खुद अभी पता लगा हा पापा ऑफीस मैं थे जब उन्हइन हार्ट अटॅक हुवा मुझे उनके मॅनेजर ने बताया मैं अभी हॉस्पिटल फुँची हों पापा आएक्यू मैं हाँ” …. वो मुसलसल रू रही थी.

“अछा तुम परेशन ना हो भगवान के किरपा से अंकल को कुछ नही होगा” …. मैने उसे तसली डायने के कोशिश की.

गुनहगार – Hindi Sex Novel – 4

Re: गुनहगार – Hindi Sex thriller Novel

Posted: 27 Sep 2015 10:43
by Fuck_Me
“मुझे बुहुत दर लग रहा हा आ.द, डॉक्टर ने कहा के बुहुत शदीद अटॅक था” ….

“तुम परेशन ना हो मैं अभी सीट कन्फर्म कराता हों इंडिया की” ….

“आ.द जल्दी आ जयो मैं बुहुत अकेला फील कर रही हों अगर पापा को कुछ हो गया तू मेरा क्या होगा” …. संजना के आवाज़ अब उसके आँसुयों मैं बुहुत हल्की रह गयी थी.

“तुम फिकेर ना करो मैं अभी सीट कन्फर्म कर के तुम्हेँ बताता हों” …. मैने उसे दिलासा डैइत्े हुवे बाये बोला.

मेरी सीट 1 वीक बाद की कन्फर्म हुवी क्यूँ की करिएस एम एस के कारण काफ़ी रश था. मैने संजना को फोन कर के उसे अपने आने के दिन का बताया मेरा दिमघ मैं बिल्कुल खाली हो रहा था मुझे समझ नही आ रही थी के अचानक ये सब क्या हो गया हा और अब एज क्या होगा अगर संजना के पापा को कुछ हो गया तू क्या होगा. मेरे दिमघ मैं बुहुत कुछ चल रहा था लायकेन एस बात से अंजान था की क़िस्मत ने कुछ और हे लिखा हुवा हा मेरे लाइ….

जो होना होता हा वो हो कर हे रहता हा संजना के पापा 2 दिन तक जिंदगी और मौत से लार्थे लार्थे आख़िर कार जिंदगी के बाजी हर गये और संजना से मेरे आखड़ी बात भी यहे हुवे जब उस ने मुझे ये खबर डायने के लाइ फोन क्या उसके बाद मैं मुसलसल उसका फोन ट्राइ कराता रहा लायकेन उसका मोबाइल बंद हो चुका था और घर पे भी काफे दफ़ा फोन कर चुका था लायकेन संजना से बात ना हो सकी हर बार उसके नोकेर गोल मोल सा जवाब डाइते. मुझे संजना के लाइ काफे परेशानी हो रहे थी मेरा बस नही चल रहा था मैं जल्द से जल्द इंडिया फुँछ जायों. आख़िर कार जैसे तैसे ऐक हफ़्ता गुजरा और मैं तकरीबन 3 साल बाद वापस इंडिया आ गया था. मैं एरपोर्ट से सीधा संजना के घर के घर गया मुझे अभी तक समझ नही आ रहे थी के आख़िर अचानक संजना कहाँ घयब हो गयी हा. मैने संजना के बुंगलोव फुँछ के बेल बजा के किसी के बाहर निकालने का इंतेज़ार करने लगा और थोड़ी दायर बाद अंदर से ऐक बाहर आया.

“जी किस से मिलना हा आपको ? “…. गुआर्द ने बाहर आ के मुझे से सवाल क्या.

“मुज़े संजना से मिलना हा, अंदर जा के बतायो के अंकुश आया हा” …. मैने गुआर्द को अपने बड़े मैं बताया.

“संजना मैं साहब तू यहाँ पे नही हाँ” …. उस ने बड़े आराम से जवाब दया.

“क्या मतलब यहाँ नही हाँ ?? … ये उनका घर हा तू वो कहाँ हैं ?? … उसके बात सुन के तू ऐक दफ़ा मुझे चाकर सा आ गया.

“वो तू प्रातब साहब के घर हैं” ….उसका ये जवाब मेरे लाइ पहले से भी ज़्यादा हैरान करने वाला था, क्यूँ की मेरे जानकारी मैं संजना के पापा अपने मन बाप के आक्लोट्े बेटे थे और स्कूल से ले के आज तक मैने संजना के मौन से कभी ये नाम नही सुना था जिस से मुझे अंदाज़ा होता के वो उसके पापा के कोई क़रीबी दोस्त थे या जिन के घर संजना का बुहुत आना जाना हो.और अभी तू ऐक हफ़्ता हुवा था उसके पापा के डेत को ऐक हफ्ते मैं वो अपने घर से किसे प्रातब के घर क्यूँ चली गयी थी, बुहुत सारे सवाल मेरे दिमघ मैं चल रहे थे.

“तुम्हेँ ये प्रातब साहब के घर का अड्रेस पता हा ?? ” …. मैने उस गुआर्द से पूछा.

“जी बिल्कुल पता हा” …. उस ने जवाब दया.

“मुझे उनके घर का अड्रेस बतायो” ….

“लायकेन आप कोन हो और प्रातब साहब के घर का अड्रेस क्यूँ पॉच रहे हो ??” … पहले बार उस ने मेरे सवाल के जवाब मैं सवाल क्या.

“मैं संजना का दोस्त हों और उस से मिलना चाहता हों” ….

“अछा ठीक मैं आपको अड्रेस बता देता हों” …..उसके जैसे तसली हो गये उसे ने मुझे अड्रेस बता दया.

मेरे मन मैं अजीब से ख़यालात आ रहे थे मैने सोचा भी नही था की मुझे ऐसी सिचुयेशन का सामना भी करना प़ड़ सकता हा लायकेन अब मेरे पास एस्की एलवा कोई रास्ता भी नही था के मैं प्राताप की घर जा कर पता कारों के संजना वहाँ पे क्यूँ रुकी हुवे हा. मेरे साथ क्यूँ की मेरा समान भी था एस लाइ मैने पहले होटेल जाने का फ़ैसला क्या टके वहाँ पे अपना समान रख के फिर उस प्राताप के घर जा के संजना का पता कारों. मैं टॅक्सी ले कर ऐक पहले ऐक होटेल फुँचा वहाँ पे ऐक रूम बुक क्या और अपना समान वहाँ रख के फॉरन हे उस गुआर्द के बताए हुवे अड्रेस पे फुँछ गया.

ठाकुर भानु प्राताप के नाम प्लेट ऐक बुहुत आलीशान बुंगलोव के बाहर लगी हुवी थी और मैं उस बुंगलोव के शान देख कर हे काफ़ी इंप्रेस हो गया उस से मुझे ये अंदाज़ा तू हो गया के ये शख्स जो कोई भी हा काफे अमीर आदमी हा. वहाँ खरे गुआर्द को मैने अपने आने के वजा बताई तू वो अंदर बतने चला गया, थोड़ी दायर बाद वो वापस आया और मुझे अंदर आने को कहा. वहाँ से ऐक नोकेर मुझे ड्रॉयिंग रूम तक ले गया और बेठने को बोला के ठाकुर साहब अभी आते हैं आप यहाँ पे एन्ताज़ार कारण. मैं वहीं बेठ के ड्रवैिंग रूम के सजावट देखने लगा, वो बुंगलोव बाहर से जितना शानदार था अंदर से उस से भी ज़्यादा शानदार था. थोड़ी दायर बाद हे ऐक दरवाजे से ऐक शख्स कमरे मैं दाखिल हुवा, उस ने टू पीस सूट पहना हुवा था और उसके चहरे पे ऐक ख़ास किसाम के सख्ती दिखाई डायटी थी जैसे के वो काफे ज़िद्दी किसाम का एंसन हा. वो अपने नाम से बिल्कुल उलट पर्सनॅलिटी रखता था क्यूँ की उसका नाम सुन के किसे राजा महाराजा का हुलिया दिमघ मैं आता था लायकेन टू पीस सूट मैं वो कहीं से भी अपने नाम से माइल नही खा रहा था सिर्फ़ उसके चहरे पे गहरी मूचान कुछ कुछ उसके नाम से जर रही थाइन. उस ने ऐक नज़र मुझ पे डाली और फिर वहाँ रखे ऐक सोफे पे बेठ गया.

“अंकुश देव, मैं काफे दिन से तुम्हारा इंतेज़ार कर रहा था” …. उस ने बेठाते ही मुझ से जिस अंदाज मैं ये बोला वो मेरे लाइ काफ़ी हैरान कन था क्यूँ की मेरी जानकारी मैं ये शख्स मुझे नही जनता था.

“क्या हुवा तुम्हेँ क्या लगा के मैं तुम्हेँ नही जनता ?? … अगर जनता ना होता तू तुम एस वक़्त बुंगलोव के बाहर खरे होते यहाँ पे बेठे ना होते …. उस की बात से मुझे अंदाज़ा हो रहा था के वो मेरे चहरे से मेरे हैरंगी जान चुका हा.

“जी क्या आप मुझे जानते हाँ ?? .. मेरा तू ख़याल था हम पहली बार मिल रहे हैं ….. मैने अब अपनी हैरात के वजा बताई

“हाँ हम पहली बार ही मिल रहे हैं लायकेन मैं तुम्हेँ जनता हों” …. उस ने फिर आराम से मेरे सवाल का जवाब दया.

“लायकेन कैसे मैं तू आपको नही जनता ?? ” …. मैने फिर से ऐक सवाल क्या.

“बुहुत बताईं हुमारी जानकारी मैं नही होटें लायकेन फिर भी उनका वजूद होता हा, ये भी ऐक ऐसी हे बात हा. तुम एस सवाल को चोदा के मैं तुम्हेँ कैसे जनता हों, तुम ये बतायो की तुम यहाँ पे क्यूँ आए हो ???” …. अब की उस ने जवाब के साथ ऐक सवाल भी कर दया

“अभी तू आप ने कहा के आप मेरा एनटजार कर रहे थे तू फिर आपको भी पता होगा की मैं यहाँ क्यूँ आया हों” …. पहली बार मैने आत्मा विश्वास से उसकी बात का जवाब दया

गुनहगार – Hindi Sex Novel – 5

Re: गुनहगार – Hindi Sex thriller Novel

Posted: 27 Sep 2015 10:43
by Fuck_Me
ह्म ! … तुम मेरे अंदाज़े से ज़्यादा अक़ल्मंद एंसन हो… हाँ मैं जनता हों तुम यहाँ पे क्यूँ आए हो लायकेन मैं तुम्हारे मौन से सुनना चाहता हों” …. उस ने मेरे आँखों मैं अँहेँ डाल के मुझ से कहा

“मैं संजना से मिलना चाहता हों” …. अब की बार मैने भी सीधे अपना मुद्दा बयान कर दया

“नही मिल सकते” …. जितनी सफाई से मैने अपना मुद्दा बयान क्या था उतनी हे सफाई से मुझे जवाब भी मिल गया

“क्यूँ नही मिल सकता ??? … और आप कोन होते हैं मुझे उस से मिलने से रोकने वाले ??? …. अब की बार मेरे लहजे मैं घुसा था

“मैने तुम्हेँ कहा ना काई बताईं हुमारी जानकारी मैं नही होती हैं लायकेन फिर भी होती हैं, मैं तुम्हारे सवाल का जवाब डायना ज़रूरी नही समझता” ….. भानु प्रातब का लहज़ा अभी भी ठंडा ही था

“लायकेन मैं पूछने का हक़ रखता हों क्यूँ की संजना और मैं बचपन से ऐक दूसरे से मोहब्बत करते हैं और वो मेरी होने वाली पत्नी हा”

“अपनी ज़बान का लगाम दो लड़के, तुम एस वक़्त ठाकुर भानु प्राताप के बहू के बड़े मैं बात कर रहे हो” …. मुझे लगा की उसकी आवाज़ के गरज से ड्रॉयिंग रूम के दीवराइण भी हिल गयी हैं

“क्या ???????? … कैसी शादी ?, किस से शादी ?, मैं नही मन सकता संजना किसी से शादी कर सकती हा और वो मुझे कुछ पता ही नही” …. मैं तू जैसे सकते मैं आ गया था

“ये सच हा संजना की शादी मेरे बेटे ठाकुर शंकर प्रसाद से हो चुकी हा” … अब की बार उस ने फिर ठंडे लहज़े मैं जवाब दया

“मैं ऐक बार संजना से मिलना चाहता हों और यही बात उसके मौन से सुनना चाहता हों” … अब की बार फिर मैने अपने पूरेाना मुद्दा उसके सामने पेश कर दया

“मैं तुम्हेँ एसका जवाब पहले ही दे चुका हों के, तुम संजना से नही मिल सकते, और जितना तुम्हेँ मैने बता दया हा उतना बठाना भी ज़रूरी नही था लायकेन अब तुम्हेँ पता चल हे गया हा तू अब तुम यहाँ से जा सकते हो एस से पहले के मुझे गार्ड्स को कशहत डायना परे” …. उस ने जैसे मुझे बाहर का रास्ता दिखाया

“देखैईं मुझे ऐक बार संजना से मिलने डैन फिर मैं यहाँ से चला जायों गा”

“लड़के तुम अब मेरा धीरज आज़मा रहे हो बहतेर हा के अब तुम यहाँ से चलते बनो” … अब की बार उसके लहज़े मैं सख्ती थी

“ठीक हा मैं यहाँ से चला जाता हों लायकेन आप ये अछा नही कर रहे”

“मुझे पता हा मैं क्या कर रहा हों, तुमसे मिल के मुझे कोई खुशी नही हुवी और तुम्हेँ भी नही हुवी होगी, प्रात्तना कराता हों के दोबारा कभी मुलाक़ात ना हो” …. उस ने जैसे मुझे अब बाहर का रास्ता दिखाया

मैं वहाँ से बाहर आ गया और लहों सवाल मेरे दिमघ मैं घूम रहे थे जिनका मेरे पास जवाब नही था. मुझे लग रहा था के मेरा दिमघ फूटत जाए गा. संजना ने शादी कर ली मुझे बताया नही लायकेन क्यूँ उस ने ऐसा क्यूँ क्या, मेरा मॅन कह रहा था के कोई बुहुत भयानक शयांतर रुकचा गया हा जिस मैं संजना फुनन्स गयी हा लायकन मैं उस तक फुँछों गा कैसे ये शानदार बुंगलोव अब मुझे ऐक शानदार जैल लग रहा था जिसके अंदर जाना आसान नही था. मगर मुझे किसी भी तरहन संजना तक फुँचना था मेरा दिमघ ताइजी से एज आने वाले हालात के बड़े मैं सोच रहा था….

मैं होटेल के कमरे मैं लैयता पिछले ऐक दिन मैं होने वाली घतना पे सोच रहा था मुझे लग रहा था जैसे मैं कोई सपना डैख रहा हों और अचानक मेरे आँख खुले गी और सब कुछ पहले जैसा हो जाए गा लायकेन ये सपना नही था हक़ीक़त थी और एस हक़ीक़त का यक़ीन करना बुहुत मुश्किल काम था. मेरे दिमघ मैं जो ऐक सवाल बार बार घूम रहा था वो ये था के आख़िर संजना शादी करने पे राज़ी कैसे हो गयी क्या उसे मजबूर क्या गया मगर किस तरहन लायकेन एन सब सवालों का जवाब सिर्फ़ संजना हे दे सकती थी और जिसे शायद ये भी पता ना हो के मैं वापस इंडिया आ चुका हों. मैं सब ये सोच रहा था के मैं संजना से किस तरहन कॉंटॅक्ट कारों और संजना से कॉंटॅक्ट करने का मतलब था भानु प्राताप से डाइरेक्ट पंगा ले लाना और मेरे जैसा एंसन के लाइ ऐसा सोचना कुछ हैरान करने वाला ना था मैं पहले अपने फ़ायदा नुक़सान का ही सोच रहा था क्यूँ की अब मेरे लाइ खुद गारजी ऐक नॉर्मल से चीज़ हो चुकी थी मैं हर मामले मैं पहले अपने फ़ायदा का सोचता था और बाद मैं हे कोई क़दम उठता था और एस समय भी मैं यही कर रहा था मैं ज़ोर टॉर कर रहा था के संजना से कॉंटॅक्ट करना फ़ैयडमंड होगा भी या नही या फिर मैं किसी मुसीबत मैं ना फूंस जायों लायकेन एस सब का फिलहाल मेरे पास कोई जवाब नही था क्यूँ की जब तक संजना से बात ना हो जाती किसी भी नतीजे पे फुँचना संभव नही था.

आख़िर बुहुत दायर सोचने के बाद मैं एस नतीजे पे फुँचा के मुझे ऐक बारी तू संजना से कॉंटॅक्ट करना ही होगा लायकेन कैसे उस से कॉंटॅक्ट सिर्फ़ उससी सूरात संभव था जब कोई भानु प्राताप के बुंगलोव मैं जा के उस से मिलता लायकेन ऐसा कोन कर सकता. फिर काफ़ी दायर सोचने के बाद मेरे जहाँ मैं अपने दीदी पल्लवी का ख़याल आया क्यूँ की एट्ना तू मुझे कन्फर्म था के भानु प्राताप मेरे फॅमिली के बड़े मैं ज़्यादा नही जनता होगा अगर जनता भी होगा तू उस ने पल्लवी को डैखहा हुवा नही होगा एस लाइ मुझे ये ऑप्षन सब से बेस्ट लगा के मैं पल्लवी से कहों वो जा कर संजना से मिले और असली बात के जानकारी ले.

मुझे पल्लवी के घर का अड्रेस नही आता था और ये कोई हैरात के बात ना थी अपने बेहन भाइयों से नाता तू मैं कब का टॉर चुका था, सू उसके घर का अड्रेस लाइने के लाइ पहले मैं अपने भाइयों के शॉप पे गया वहाँ से मुझे पल्लवी के घर का अड्रेस मालूम परा. पल्लवी के पाती रेलवे मैं ऐक अछी पोस्ट पे कम कर रहे था और वो ऐक टिपिकल मिड्ल क्लास फॅमिली का बहटरीन नमूना थी जहाँ पे उसके पाती और दीवार का घर साथ साथ था बालके ऐक हे दीवार थी दोनो घरों मैं. पहले तू मुझे डैख के वो काफ़ी हैरान हुवी और खुश भी बुहुत हुवी उसे लगा के शायद मैं बेहन के मोहब्बत मैं उस से मिलने आया हों, फिर मैने उसे अपने आने का कारण बताया और शुरू से आख़िर तक सारी बात उसे बताई और उस से मदद माँगी के वो संजना के पास जा कर असली बात का पता करे. पहले तू वो काफ़ी परेशन हो गयी के कहीं कोई मसला ना पैदा हो जाए लायकेन फिर मेरे काफ़ी समझने पे वो जाने को राज़ी हो गयी.

अगले दिन मैं पल्लवी को ले कर भानु पराताप के बुंगलोव फुँछ गया रास्ते मैं मैने उसे ऐक न्यू मोबाइल भी खड़ीद के दया और उसे ब्टाया के ये मोबाइल संजना को दे टके वो मुझ से कॉंटॅक्ट कर सके. मैने टॅक्सी भानु प्राताप के बुंगलोव से कुछ दूर रोक ली और दूर से ही उसे बुंगलोव का बताया और कहा के के वो संजना से मिल के आ जाए मैं उसका यहीं पे इंतेज़ार कर रहा हों. पल्लवी बुंगलोव के अंदर चली गयी और मैं टॅक्सी मैं उसका इंतेज़ार करने लगा मेरे लाइ ऐक ऐक पल मान्नो ऐक साल के बराबर था मैं जल्द से जल्द असल राज को जानना चाह रहा था. आख़िर 1 घंटे के लंबे एनटजार के बाद मुझे पल्लवी गाते से बाहर आती दिखाई दी वो जल्दी जल्दी टॅक्सी के तरफ आ रही थे और आ के टॅक्सी मैं बेठ गयी.

“अंकुश जल्दी से चलो यहाँ से” …. उस ने बस बैठ के एट्ना हे कहा मुझ से.

गुनहगार – Hindi Sex Novel – 6