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Re: गुनहगार – Hindi Sex thriller Novel

Posted: 28 Sep 2015 10:03
by sexy
उसके बाद टॅक्सी ताइजी से पल्लवी के घर को ऊरर जाने लगी, मैं बुहुत मुश्किल से अपने आप पे क़ाबू क्ये हुवे था वरना मेरा मॅन कर रहा था के जल्दी से पल्लवी से सारी बात उगलवा लूँ. पल्लवी के घर फुँचते ही मैने उस से वो सवाल कर दया जो मुझ से बर्दाश्त नही हो रहा था एतनी दायर से

“क्या कहा संजना ने ?? … क्यूँ हा वो वहाँ पे ?? …

“मैं उस से ज़्यादा नही पूच सकी, उसकी नोकरणी बार बार कमरे मैं आ रही थी और संजना बोल रही थी के वो उसकी पहरा डारी कर रही हा” …

“तू तुम एतनी दायर क्या करी रही वहाँ पे ???” … मैने बेइचानी से पूछा

“बता तू रही हों उसकी नोकरणी बार बार आ रही थी, बुहुत दिकाट से उसको मोबाइल ही दे पाई हों मैं, उस ने कहा के वो आज रात तुम्हेँ फोन करे गी”

“एसके एलवा कुछ नही कहा उस ने?? … मुझ से सबर नही हो रहा था

“बस यही बोला के भानु प्राताप ने धोके से उसकी शादी अपने बेटे से कर दी और उसके कहीं आने जाने पे फिलहाल पाबंदी हा” … पल्लवी के आवाज़ मैं फिकर के झलक सॉफ थी

“मुझे पहले हे शक था के उसको फँसाया गया हा एस शयांतर मैं” …

“संजना बोल रही थी के तुम दोबारा वहाँ पे मत आना भानु प्राताप बुहुत ख़तरनाक एंसन हा” … पल्लवी के आवाज़ मैं मेरे लाइ फिकेरमांडी थी

मैं थोड़ी दायर बाद पल्लवी के घर से वापस अपने होटेल के कमरे के तरफ जा रहा था और मेरे मैं दिमघ ऐक बात तू काफ़ी क्लियर हो गयी थी के
संजना को फुनसाया गया हा मगर किस तरहन ये बात अब तक पता ना चल सकी थी और ये तब हे पता चल सकी थी जब मेरे संजना से बात होती. अब
मुझे रात होने का बेइचानी से एनटजार था ……

रात का 1 बुज चुका था और मैं अपना मोबाइल सामने रखे बेचैनी से संजन के कॉल का एनटजार कर रहा था. हर गुज़राते मिनिट की साथ मेरा मॅन डूब रहा था मुझे लग रहा था के संजना मुझ से कॉंटॅक्ट नही करे गी, पर दिल मैं आशा थी के उस ने अगर बोला हा तू ज़रूर कॉंटॅक्ट करे गी अभी मैं एसी सोच मैं था की अचानक मेरा मोबाइल बुज उठा…

“हेलो संजना ???” …. मैने कॉल पिक कर के बेठाबी से कहा

“हेलो आ.द … ” ….. वो बस एट्ना ही कह सकी और उसके बाद उस ने रोना शुरू कर दया

“संजना ! प्लीज़ कंट्रोल करो खुद पे मैं आ गया हों ना मैं तुम्हारे साथ कुछ ग़लत नही होने डून गा” …. संजना के आँसू सच मच मुझे तकलीफ़ दे रहे थे. एस समय मेरे दिल मैं सिर्फ़ उसकी मोहब्बत थी और खुद गारजी कहीं बुहुत दूर रह गयी थी

“आ.द ! प्लीज़ मुझे यहाँ से निकालो मैं मार जायों गी यहाँ पे” …. वो मुसलसल रू रही थी

“संजना मैं तुम्हेँ वहाँ से निकालने हे आया हों लायकेन जब तक मुझे बतायो गी नही के हुवा क्या तुम कैसे फूंस गयी ठाकुर भानु प्राताप की हाथ मैं तू मैं कैसे मदद कर पयों गा तुम्हारी ??? ” …. मैने अब की बार फिर उसे समझने की कोशिश की और एस बार शायद उसे भी समझ आ गयी थी. संजना को कुछ टाइम लगा अपने आप को कंट्रोल करने मैं और फिर उस ने बठाना शुरू क्या

“ठाकुर भानु प्राताप मेरे पापा के 30% के बिज़्नेस पार्ट्नर हैं, तुम्हेँ पता हा पिछले कुकछ सलूँ मैं पापा के तबीयत खराब रहने लगी थी और उनके लाइ ट्रॅवालेिंग करना काफ़ी मुश्किल हो गया था तब उन्हों ने अपने इनेर्नटिओनल इनवेस्टमेंट्स को लुक आफ्टर करने के लाइ भानु प्राताप से पार्ट्नरशिप कर ली थी क्यूँ की भानु प्राताप अमेरिका मैं रहता था” …….

“क्या हुवा संजना ?? तुम चुप क्यूँ हो गयी हो ??? एज बतायो ???? ” …. संजना ऐक दम से चुप हो गयी तू मैने बेठाबी से कहा

“आ.द मुझे लगा शायद दरवाजे की पास कोई ठहरा मेरी बात सुन रहा हा, चेक करने गयी थी” …. उस ने अपने चुप होने का कारण बताया

“ओक अब एज बतायो तुम वहाँ फुँची कैसे ??? ” …..

“जिस दिन पापा के डेत हुवी उस से अगले दिन भानु प्राताप मेरे पास आया और बोला के मेरा अकेला घर पे रहना ठीक नही और जब अंकुश इंडिया आ जाए तुम वापस घर आ जाना, मैं उसके साथ उसके घर आ गयी. आ.द मुझे अंदाज़ा भी नही था के ये एट्ना कमीना एंसन निकले गा एस ने कब मुझ से मॅरेज सर्टिफिकेट और पवर ऑफ अटर्नी अपने नाम करा लाइ मुझे पता हे नही चला. मैं उस समय पापा के घूम मैं एतनी खू चुक्की थी के मुझे अंदाज़ा भी नही हुवा के ये मेरे साथ क्या गेम खैल रहा हा” ….. संजना ने पूरी डीटेल बताते हुवे कहा.

“लायकेन शादी क्यूँ ??? … क्या एसका बेटा तुम मैं इंट्रेस्टेड हा ?? ” ….. मुझे अभी तक बात क्लियर नही हुवी थी.

“क्यूँ की पापा के विल के अन्नूसर मैं अपनी प्रॉपर्टी किसी के नाम नही कर सकती सिर्फ़ चॅरिटी को दे सकती हों या फिर सिर्फ़ पवर ऑफ अटर्नी हे बना सकती हों किसी को बट वो भी सिर्फ़ ऐसे एंसन को जिस से मेरा कोई रिश्ता हो और पवर ऑफ अटर्नी मैं भी मेरे से अप्रूवल बुहुत ज़रूरी हा हर फ़ैसली मैं” …. अब की बार संजना ने मुझे असल बात बताई

“ऑश तू एस लाइ उस ने अपने बेटे के शादी तुम से कराई, वो सारे पत्ते अपने हाथ मैं रखना चाहता हा” …. अब की बार मुझे सारा गेम समझ मैं आया और मैं भानु प्राताप की जहनत की अंकल डाइ बिना ना रह सका

“आ.द प्लीज़ तुम कुछ करो ये एस बुंगलोव नुमा जैल मैं मेरा दम निकल जाए गा” …. संजना फिर रू डायने को थी

गुनहगार – Hindi Sex Novel – 7

Re: गुनहगार – Hindi Sex thriller Novel

Posted: 28 Sep 2015 10:03
by sexy
“संजना देखो तुम कंजूर मत प़ड़ो एस समय हुमैन मजबूत रहना हा और सब कुछ सोच समझ के करना हा भानु प्राताप बुहुत शातिर एंसन हा हुमारी छोटी से ग़लती भी हुमैन जिंदगी भर के लाइ ऐक दूसरे से दूर कर सकती हा” ….. मैने संजना को समझने की कोशिश की

“आ.द मैं क्या कारों मेरा कंट्रोल नही रहता खुद पे, तुम बतायो एज क्या करना हा तुम ने कुछ सोचा हा ??? ” …. अब की बार उस ने अपने आप पे कंट्रोल करते हुवा पूछा

“नही अभी तक तू मुझे पता भी नही था के तुम्हारे साथ क्या हुवा हा, मैं कुछ सोचता हों लायकेन हुमैन जो भी करना हा बुहुत सोच कर करना होगा हम छोटी से ग़लती भी नही कर सकते वरना अंजम बुहुत भयंकर होगा” ……

“आ.द जो भी करना जल्दी करना मुझे भानु प्राताप का प्लान कुछ ठीक नही लग रहा जब से तुम आए हो मुझे लग रहा हा वो मुझे यहाँ से शिफ्ट करने का सोच रहा हा अगर उस ने मुझे यहाँ से भाईज दया तू फिर हुमारा मिलना और भी मुश्किल हो जाए गा” ….. संजना के लहज़े मैं फिकेर सॉफ थी

“तुम फिकेर ना करो मैं जल्द हे कुछ कराता हों, तुम बस ऐक काम करो की भानु प्राताप को एस बात का यक़ीन दिलायो की तुम ने हर आशा चोद दी हा और तुम्हेँ यक़ीन हो गया हा की मैं नही आयों गा और तुम ने अब सब कुछ क़बूल कर लया हा. ये बुहुत ज़रूरी हा भानु प्राताप का यक़ीन जीतना हुमरे लाइ बुहुत हे ज़रूरी हा” ….. मैने उसे समझते हुवे कहा

“ह्म्‍म्म्म !… मैं समझ गयी तुम्हारी बात मैं तुम्हेँ अब 2 दिन के बाद कॉल कारों गी तुम तब तक ज़रूर कोई आइडिया सोच लाना, क्यूँ की बार बार फ़ोना करना भी ख़तरे से खाली नही हा” …..

“ओक … तुम अपना ख़याल रखना और परेशन मत होना अब मैं आ गया हों ना तुम्हेँ कुछ नही होगा” …. मैने मोहब्बत भरे लहज़े मैं उसे तसली दी

“अब मैं फोन रखती हों, लव उ आ.द, बाइ” ….. संजना ने फोन रखते हुवा कहा

“लोवे उ टू” ….. मैं बस एट्ना हे कह सका

अब मुझे एतनी तसली तू हो गयी थी के संजना ने मुझे धोका नही दया बालके उसके साथ धोका हुवा हा और उसकी प्रॉपर्टी भी सेफ हा. लायकेन जो सब से बरा मसला था वो वैसे का वैसा था और वो था संजना को भानु प्राताप के चुंगल से रिहाई दिलाना और उसके लाइ कोई बुहुत हे अछा प्लान सोचना था मुझे क्यूँ की ग़लती का चान्स नही था. मैं अब बेड पे लाइते आने वाले समय का सोच रहा था के मुझे जल्द से जल्द कुछ ऐसा सोचना हा जिस से मैं संजना को भानु प्राताप से रिहाई दिला सकोन. ये खैल बुहुत घातक भी हो सकता था लायकेन अब मुझे ये खैलना हे था क्यूँ की मुझे संजना को पाना था किसी भी क़ीमत पर ..

मैं उस रात सू नही सका नींद तू मेरी आँखों से जैसे गायब ही हो गयी थी, वो पूरी रात और अगला दिन मैं यही सोचता रहा के किस तरहन संजना को भानु प्राताप के बुंगलोव से निकालों सब कुकछ बुहुत सोच समझ के करना था वरना ऐक छोटी सी ग़लती भी हुमैन हमेशा की नींद सुला सकती थी. आख़िर काफ़ी सोचना के बाद ऐक प्लान मेरे दिमघ मैं आ ही गया लायकेन उसको पूरा करने के लाइ पहले मुझे संजना से बात करनी थी. अब मेरे पास करने को कुछ नही था सिवाए संजना की कॉल का इंतेज़ार करने के सू मैं सो गया क्यूँ की अभी 1 दिन बाकी था उसकी कॉल आने मैं. अगला सारा दिन मैने सू के गुज़ारा और रात होते ही मुझे संजना की कॉल का एनटजार था. तकरीबन 1:30 बुजे के करीब उसकी कॉल आ गयी

“हेलो संजना ” …. मैने कॉल रिसीव करते हुवे बेठाबी से कहा

“हेलो आ.द, कैसे हो ?? ” …. सनजान ने जवाब दया

“तुम्हारी आवाज़ सुन के ज़्यादा बेटर फील कर रहा हों” …. मैने रोमॅंटिक लहज़े मैं कहा

“कम ऑन आ.द, एस सिचुयेशन मैं भी रोमॅन्स झार रहे हो” …. उस ने बुनावती खफ्गी से कहा

“प्यार करने वाले कभी डराते नही, जो डराते हैं वो प्यार करते नही” …. मैने गाना गेया के जवाब दया

“अछा बुहुत हो गया रोमॅन्स, ये बतायो के तुम ने कुछ सोचा या नही ??? ” ….. संजना ने बात बदलते हुवे कहा

“हाँ सोचा तू हा बट उसके लाइ मुझे थोड़ी इन्फर्मेशन चाहये ” …. मैने भी सीरीयस लहज़े मैं जवाब दया

“कैसी इन्फर्मेशन ??? ” …. अब की बार संजना ने सवालिया अंदाज मैं पूछा

“तुम्हारा पासपोर्ट कहाँ हा ??? ” ….. मैने अगला सवाल क्या

“मेरे लॉकर मैं हा, मेरे सारे डॉक्युमेंट्स भी वहीं हाँ” ….. संजना ने फॉरन जवाब दया

“लॉकर मैं क्यूँ ??? ” …. मेरे लहज़े मैं हैरंगी थी

“पापा हमेशा लॉकर मैं ही रखवते थे डॉक्युमेंट्स, तुम जानते हो ना बाहर आना जाना लगा रहता था तू एस लाइ ईज़ी रहता था लॉकर मैं रखवाना डॉक्युमेंट्स” …. अब की बार उस ने तफ़सील से जवाब दया

“ऑश ! ये तू और ज़्यादा अछा हा, अब मेरे बात धीयाँ से सुनो. मैं 2 दिन के बाद पल्लवी को तुम्हारे पास भैईज़ों गा तुम उसको लॉकर का कोड बता देना और अड्रेस भी, वो तुम्हेँ अपनी बर्तडे पे इन्वाइट करने आए गी और तुम ने उसके घर आना हा फिर उस दिन” …. मैने उसे डीटेल मैं समझाया

“ओक मैं समझ गयी तुम्हारी बात, बट क्या हम वहाँ से भागन गे क्या ?? … मेरे साथ तू गार्ड्स हों गे भानु प्राताप के ?? …..

“नही हम कहीं नही भागन गे, तुम्हेँ मैं बाकी का प्लान वहीं पे समझायों गा. तुम ये बतायो के भानु प्राताप का कुछ कॉन्फिडेन्स हुवा हा तुम पे या नही ??? …. मैने उस से पूछा

“आ.द 2 दिन मैं एट्ना कुछ तू चेंज नही हो सकता ना, लायकेन कुछ ना कुछ शायद बना हे लया हा कॉन्फिडेन्स, आज मैं शॉपिंग पे भी गयी थी लायकेन भानु प्राताप के गुआरदज़ मेरे साथ थे” …. संजना ने जवाब दया

“गुड ! .. एट्ना भी बुहुत हा, बस तुम अब रीडी रहना और कहीं कोई ग़लती ना हो वरना हुमारा मिलना ना-मुमकिन हो जाए गा” …. मैने उसे समझते हुवे कहा

उसके बाद संजना ने फोन कर दया. अब मुझे कल का एनटजार था क्यूँ की अब मुझे पल्लवी को अपना प्लान समझना था क्यूँ की अब सब कुछ पल्लवी पे डिपेंड कराता था उसके बेघार ये प्लान कामयाब नही हो सकता था. अगले दिन मैं पल्लवी के घर गया और उसे अपने प्लान के बड़े मैं बताया जिसे सुन के वो फिर से परेशन हो गयी क्यूँ की उसे दर था के कहीं वो फूंस ना जाए एस सब मैं.
गुनहगार – Hindi Sex Novel – 8

Re: गुनहगार – Hindi Sex thriller Novel

Posted: 28 Sep 2015 10:04
by sexy
“पल्लवी तुम परेशन ना हो कुछ नही होगा भानु प्राताप तुम्हारे बड़े मैं कुछ नही जनता और वैसे भी हम तुम्हारे घर से भागे गे नही एस लाइ तुम लोगों को कोई परेशानी नही होगी” …. मैने पल्लवी को समझते हुवे कहा

“वो तू ठीक हा अंकुश लायकेन एसके लाइ मुझे प्रेम (पल्लवी का हज़्बंद) से बात करना होगी” …. पल्लवी ने जवाब दया

“ओक! .. मैं प्रेम का इंतेज़ार कर लेता हों वो ऑफीस से आ जाए तू मैं खुद उस से बात कर लेता हों” …. मुझे अब प्रेम का ऑफीस से वापसी का एनटजार था.

प्रेम के ऑफीस से आते ही मैने उसे अपने प्लान के बड़े मैं बताया और कुछ दायर आर्ग्यू करने के बाद वो मन गया. मैं वापस होटेल मैं अपने रूम मैं आ गया. मेरे मॅन मैं आशा की किरण चमक रही थी मुझे लग रहा था के अगर सब कुछ प्लान के अनुःसार हुवा तू मैं संजना को भानु प्राताप के बुंगलोव से निकालने मैं कामयाब हो जायों गा. अब मुझे उस दिन का एनटजार था जब पल्लवी संजना के पास जाती क्यूँ की एज का प्लान उसके बाद हे एज बढ़ सकता था…

2 दिन बाद पल्लवी दोबारा संजना के घर गयी उसे अपनी बर्तडे पे इन्वाइट करने और उस से उसके लॉकर का अड्रेस भी ले आई, और फिर वहाँ से मैने उसके सारे डॉक्युमेंट्स और पासपोर्ट निकलवा लया. अब मुझे एनटजार था तू उस दिन का जिस दिन संजना ने पल्लवी के घर आना था, मेरे लाइ समय बिठाना मुश्किल हो रहा था लायकेन जैसे तैसे वो दिन आ ही गया जब संजना ने पल्लवी के घर आना था मैं उस दिन सूबह सूबह ही पल्लवी के घर फुँछ गया वहाँ पे ज़्यादा लोग तू नही थे बस प्रेम और पल्लवी के कुछ जान पहचान के लोग थे क्यूँ की पल्लवी की बर्तडे तू नही थी एस लाइ उन सब को कोई और कारण ही बताया था प्रेम और पल्लवी ने. मैं पल्लवी के कमरे मैं बेठा था और मेरी नज़रैयण दरवाज़े पे टिकी थाइन, तकरीबन 12 बुजे के लग भाग संजना वहाँ फुँची और जैसी ही वो घर मैं दाखिल हुवी उसकी नज़रैयण मुझे ढूनदनी लगी, कमरे मैं बेठा मैं उसकी चहरे पे उत्साव सॉफ डैख रहा था, मैं फॉरन ही कमरे से बाहर आ गया और वो बिना किसी की परवाह क्ये भागते हुवे आ के मेरे गले लग गयी, मैं अपने कंधे पे उसके आँसू सॉफ महसूस कर सकता था, उसकी एस हरकत पे काफ़ी सारे लोग हुमारी आयार देखने लगे तू मैं संजना को ले कर कमरे के अंदर आ गया

“संजना ! प्लीज़ रोना बंद करो देखो सब लोग हुमैन देख रहे हैं” ….. मैने उसे समझने की कोशिश की

“तुम्हेँ लोगों के परवाह हा, मेरी नही ?? .. जानते हो किस अज़ाब मैं रह रही हों मैं ?? ” ….. वो अभी भी रू रही थी

“मेरी जान मैं सब जनता हों लायकेन ये समय कमजोर परने का नही हा बालके मजबूत होने का हा, अगर हम कमज़ोर पर गये तू भानु प्राताप से कैसे मुक़ाबला कारण गे ??” ….. मैने ऐक बार फिर से उसे समझने की कोशिश की

“एस समय मुझे कुछ ना समझीो आ.द, मुझे खुद पे कंट्रोल करना बुहुत मुश्किल लग रहा हा, तुम्हेँ कितने समय के बाद देख रही हों जानते हो ना, मुझे तू लगा था अब मैं कभी तुम्हेँ डैख भी नही पयों गी” ….. उस ने अपना सिर मेरे शने पे टीका दया

“ऐसा कैसे हो सकता हा भला मैं तुम्हेँ उस नूर्क मैं अकेला तू नही चोर सकता था ना, मुझे तू आना ही था” …. मैने उसके माथे को चूमते हुवे कहा

“मुझे ले चलो यहाँ से आ.द, मैं सच कहती हों मैं मार जायों गी उस क़ैद मैं या फिर आत्मा हत्या कर लूँ गें” ….. संजना की आवाज़ मैं दर्द था जो मुझे सॉफ महसूस हो रहा था

“तुम्हेँ लेन ही तू आया हों पर ऐसे नही संजना, अगर हम यहाँ से भाग भी जाएँ तू कहाँ जाएँ गे ?? , तुम्हेँ अंदाज़ा तू हो गया होगा भानु प्राताप कितना ख़तरनाक एंसन हा, हम इंडिया मैं कहीं भी चुप जाएँ वो हुमैन ढुंड निकले गा और अगर ऐक बार हम पकड़े गये तू फिर कभी नही मिल सकन गे” ….. मैने उसे फिर से समझाया

“तू फिर ??, मुझे यहाँ क्यूँ बुलाया जब मुझे वहाँ से निकलना नही था तू” …. अब की बार संजना की आवाज़ मैं थोड़ा घुसा था

“अभी समझता हों तुम्हेँ, मैने सब कुछ प्लान कर के रखा हा” …. मैं उसे कहते हुवे उठ खड़ा हुवा और कमरे से बाहर जा के पल्लवी को बुलाया

“अंकुश, तुम्हारे जीजा राजवीर के घर से बाहर सब कुछ चेक कर आए हैं, संजना के साथ 2 गार्ड्स हैं जो बाहर दरवाज़े पे खरे हैं उसके एलवा बाकी कोई नही हा” …. पल्लवी ने आते ही बठाना शुरू कर दया

“कोन राजवीर ??, और ये सब क्या ??” ….. संजना ने हैरंगी से हुमारी तरफ देखा और उठ खड़ी हुवी

“राजवीर मेरे जीजा का भाई हा और साथ वाला घर उनका हा एन दोनो घरों मैं ऐक खिड़की बुनी हुवे जिस से हम बिना दरवाज़ा एस्टमाल क्ये उस तरफ राजवीर के घर जा सकते हैं, और प्रेम अभी वहीं से बाहर गया था देखने के लाइ के भानु प्राताप ने तुम पे कोई पहरा तू नही लगा रखा” …. मैने संजना को समझते हुवे कहा

“मेरे साथ तू बस 2 गार्ड्स ही आए हैं, लायकेन तुम तू अभी कह रहे थे के हम कहीं भागे गे नही तू फिर तू फिर एस सब का क्या मतलब” …. संजना अभी भी नही समझ सकी थी

“देखो हम यहाँ से कहीं भी भागें इंडिया मैं हम कहीं नही चुप सकते, मैने तुम्हारा पासपोर्ट और बाकी डॉक्युमेंट्स निकलवा लाइ हैं, अब हम यहाँ से राजवीर के घर जाएँ गे और वहाँ से बुरखा कर के उसके घर से बाहर निकलन गे, वहाँ से हम सीधा एंबसी जाएँ गे जहाँ पे तुम्हारे वीसा के लाइ अप्लाइ कारण गे” ….. मैने उसे अपना प्लान समझते हुवे कहा

“लायकेन हुमैन एतनी जल्दी वीसा कैसे मिले गा, तुम्हारे पास तू रिटर्न टिकेट हा लायकेन मुझे एतनी जल्दी वीसा मिलना आसान नही” …. संजना अभी भी सहे
तरहन समझ नही पाई थी मेरी बात

“तुम्हारे विज़िट वीसा के लाइ अप्लाइ कारण गे हम, ऐक बार हम इंडिया से निकल गये तू फिर लंडन मैं भानु प्राताप के लाइ हुमैन पाकरना एट्ना आसान नही होगा, हम वहाँ पे उस पे केस भी कर सकते हैं या फिर उस से लाइन डैन का कोई और तरीका सूझ जाए गा उसके बड़े मैं अभी मैने सोचा नही लायकेन मुझे सब से सही ऑप्षन यहे लगा हा के हम इंडिया से निकल जाएँ उसके बाद ही कुछ सोचैईन गे एज क्या करना हा” …. मैने संजना को अपना प्लान समझते हुवे कहा

“तुम्हेँ लगता हा के ये प्लान सफ़्फल होगा ??” …. संजना ने पूछा

“एसके एलवा मेरे पास और कोई अछा प्लान नही और ऐक बार हम इंडिया से निकल गये तू फिर भानु प्राताप भी कुछ नरम पर जाए गा, लंडन मैं उसकी फुँछ वैसी नही होगे जैसी यहाँ पे हा, यहाँ पे हम पुलिस के पास गये भी तू केस अदालत तक फुँचने से पहले ही वो पुलिस की मदद से हुमैन पाकर ले गा” ……

“ठीक हा अगर तुम्हेँ ठीक लगता हा तू मुझे क्या ऐतराज़ हो सकता हा” ….. संजना ने अब की बार एटमीनान से कहा

उसके बाद हम उस खिड़की के ज़रिए राजवीर के घर दाखिल हुवे और वहाँ से बुरखा कर के बाहर निकले, अब हुमैन उस गली से निकल कर उस से अगली गली मैं जाना था जहाँ पे गारी मैं राजवीर हुमारा एनटजार कर रहा था. हम ने जैसी हे अगली मैं फुँचे राजवीर ने हुमैन देख कर गारी स्टार्ट कर दी हम जल्दी से उसकी गारी मैं बेठ गये, गारी मैं हम ने अपने बुरखे उतरे और रास्ते मैं ही मैने संजना से भानु प्राताप के बेटे के बड़े मैं पूछा जिस से उसकी शादी हुवे थी, संजना ने बताया के वो अमेरिका मैं होता और वो बस मॅरेज सर्टिफिकेट पे साइन करने के लाइ आया था और फिर 3 दिन बाद वापस चला गया. हालाँकि मैने संजना पे ज़ाहिर नही होने दया लायकेन शायद मैं अपने अंदर के शक से निजात पाने के लाइ ये पूच रहा था के कहीं उस ने संजना के साथ कुछ ज़बरदस्ती तू नही की, शायद अब मुझे एस बात का एहसास भी नही होता था के मैं किस हद तक अपने खुद गारजी का ग्युलम हो चुका हों मैं हर बात मैं अपना फ़ायदे के बड़े मैं ज़रूर सोचता था और उस समय शायद संजना ने ऐसा पूछना भी मेरी खुद गार्ज तबीयत से ज्यूरा हुवा था.

एंबसी फुँछ के हम ने संजना के विज़िट वीसा के लाइ अप्लाइ कर दया और हुमैन 15 दिन का समय दया गया क्यूँ की संजना अक्सर लंडन,अमेरिका आती जाती रहती थी एस कारण मुझे कोई ख़तरा नही था और मुझे यक़ीन था के 15 दिन बाद उसे आसानी से वीसा मिल जाए गा. हम राजवीर के गारी मैं वापस घर फुँचे एस सारे काम मैं हुमीं करीबन 1:30 घंटा लग गया. पल्लवी के घर फुँचते ही मैने संजना को कहा के अब वो वापस जाए कहीं भानु प्राताप को उस पे शक ना हो जाए अगर ज़्यादा दायर हुवी तू. संजना वापस जाने को राज़ी ना थी लायकेन मैने उसे समझाया के अभी उसका वापस जाना बुहुत ज़रूरी हा अगर हुमैन हमेशा के लाइ मिलना हा तू फिर मैने उसे दोबारा समझाया के एन 15 दिन मैं उस ने भानु प्राताप का यक़ीन और मजबूत करना हा के वो अपनी ज़िंदगी से समझोता कर चुकी हा टके उसे किसी भी किसाम का शक ना हो. संजना के वापस जाने के थोड़ी दायर बाद मैं भी वापस अपने होटेल आ गया. अब तक का सारा प्लान सफ़्फल रहा था और कोई मसला नही हुवा था और एस बात पे मैं बुहुत खुश था, मुझे अब किसी भी तरहन ये 15 दिन गुजरने थे ऐक बार संजना का वीसा लगने के बाद मैं उसे भानु प्राताप के चुंगल से निकालने मैं कामयाब हो जायों गा. मैने अपने कमरे मैं लगे कॅलंडर पे आज की डटे पर सुरख मार्कर से करॉस का निशान बना दया, 14 दिन और ……….

गुनहगार – Hindi Sex Novel – 9