Re: गुनहगार – Hindi Sex thriller Novel
Posted: 28 Sep 2015 10:05
अगले 14 दिन मेरी ज़िंदगी के सब से मुश्किल दिन थे ऐक ऐक दिन गिन गिन के गुज़रा मैने, एस दरमियाँ संजना से 2 बार मेरी बात हुवे और उस से मुझे पता लगा के वो भानु प्राताप का यक़ीन जीतने मैं काफ़ी हद तक कामयाब हो गयी हा जो के हमारे लाइ काफ़ी खुशी की बात थी. 14 दिन बाद मैने एंबसी फोन कर के पता क्या और वहाँ से मुझे संजना के वीसा लगने की खुश-खबरी मिली, मैने संजना को फोन कर के बताया और उसे कहा की किसी भी तरहन वो वहाँ जा के अपना वीसा ले और फिर मुझे बताए. संजना किसी बुहाने एंबसी जा कर वीसा ले आई और मुझे खबर की. फिर मैने एज का प्लान बताया के सीट कन्फर्म होने के बाद मैं उसे एग्ज़ॅक्ट डटे बतायों गा जिस दिन हम यहाँ से निकलन गे और उसे ऐक बुहुत माशूर शॉपिंग माल का बताया जहाँ पे उसे आना हा वहाँ पे लॅडीस बाथरूम मैं पल्लवी उसके लाइ बुरखा ले कर पहले से मोजूद होगी, एस तरहन उसके साथ आने वाले 2 गार्ड्स उसे पहचान नही पाएँ गे और वो आराम से बाहर निकल आए गी, और मैं माल के बाहर उसका एनटजार कारों गा और वहाँ से सीधा हम एरपोर्ट जाएँ गे. उसे सारा प्लान समझने के बाद मैने टिकेट बुक कराए और एस मैं मैने ख़ास टाइमिंग का ख़याल रखा मैने दिन 2 बजे की टिकेट बुक कराए टके संजना आराम से घर से निकल सके. टिकेट बुक करने के बाद मैने संजना को बता दया और अगले दिन हम जाने की त्यारी करने लगे, हुमैन अभी भी बुहुत सावधान हो के रहना था क्यूँ की जब तक हम इंडिया से निकल नही जाते थे हर लम्हा हुमैन भानु प्राताप से ख़तरा था हालाँकि अब तक हम ने उसे किसी भी किसाम का शक नही होने दया और एस मैं सब से बरा हाथ पल्लवी का था अगर वो और प्रेम हुमारी मदद ना करते तू शायद मैं कभी भी संजना को भानु प्राताप के चुंगल सा ना निकल पता.
अगले दिन मैं ठीक 12 बुजे टॅक्सी मैं अपने बाटेये हुवे शॉपिंग माल पे फुँछ गया, वहाँ से मैं मुसलसल पल्लवी के साथ कॉंटॅक्ट मैं था, करीबन 12:15 के करीब मुझे पल्लवी ने बताया के संजना वहाँ पे फुँछ गयी हा मैने टॅक्सी ड्राइवर को टॅक्सी माल के एंट्रेन्स के बिल्कुल सामने खड़ा करने का कहा और उसे टॅक्सी चालू रखने का बोला, करीबन 5 मिनिट बाद मुझे संजना का फोन आया के वो माल के बाहर फुँछ गयी हा क्यूँ की उस ने बुरखा क्या हुवा था एस लाइ मेरा उसे पहचान पाना मुश्किल था मैं टॅक्सी से बाहर निकल आया टके वो मुझे देख सके, वो मुझे देखते हे तकरीबन दोर्थी हुवे मेरे पास आ गयी और हम टॅक्सी मैं बेठ गये, मैने टॅक्सी वाले को एरपोर्ट जाने का कहा, मैने संजना को एशारा क्ये के वो कोई बात ना करे अभी तक हम ख़तरे से बाहर नही थे कोई भी छोटी से घालती हुमैन फुंसा सकती थी. एरपोर्ट फुँछ कर भी मैने संजना को बुरखा उतरने नही दया जब तक हमारे जहाज़ के फाइनल अनाउन्स्मेंट नही हो जाती मैं कोई भी ख़तरा मोल लेना नही चाहता था. समय बुहुत आहिस्ता आहिस्ता बीट रहा था या मुझे ही ऐसा लग रहा था आख़िर कर हमारे जहाज़ की फाइनल अनाउन्स्मेंट हुवे मैने संजना को बाथरूम भाईजा के वो बुरखा उतार के आ जाए और फिर हम जहाज़ के अंदर फुँछ गये. मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं कोई बुहुत बड़ी जुंग जीत के आया हों, एतने दिनों का ठानायो और परेशानी के बाद आख़िर कार हम सुख का सांस ले सकते थे. संजना की आँखों से तू आँसू बहना शुरू हो गये मैने उसका सिर अपने कंधे से टीका दया. वो थोड़ी दायर मुझ से बताईं कराती रही और फिर सू गयी ऐसा लगता था जैसे वो काए दिनों की जागी हुवे हा उसके चहरे पे सकूँ ही सकूँ नज़र आ रहा था. आख़िर कार हम लंडन फुँछ गये एरपोर्ट से बाहर निकलते ही मैने संजना को ज़ोर से अपनी बाँहों मैं जाकर लया, एतने दिन के बाद मैं कुछ रिलॅक्स हुवा था, भानु प्राताप के चुंगल से संजना को निकलना वाक़ए किसी जुंग जीतने से कम ना था. हम टॅक्सी पे मेरे फ्लॅट फुँचे और फ्लॅट मैं दाखिल होते ही संजना और मैं सोफे पे ऐसे गिर गये जैसे पता नही कितनी दूर से पैदल चल कर आ रहे हों
“आ.द , मुझे यक़ीन ही नही हो रहा के हम लंडन फुँछ गये” …. संजना ने मेरा हाथ पाकरते हुवे कहा
“मुझे अपने प्लान पे विश्वास था और तुम पर भी के अगर हम ने सब कुछ प्लान के दुवारा क्या तू हम ज़रूर कामयाब हों गे” …. मैने उसका हाथ चूम लया
“मुझे ऐसा लग रहा हा जैसे मैं सद्यों बाद आज़ाद फ़िज़ा मैं सांस ले रही हों, अब एहसास हो रहा हा के आज़ादी कितनी बड़ी डोलात हा” …. संजना ने ऐक लंबा सांस लया जैसे वो अपनी आज़ादी को अपने अंदर उतरना चाहते हो
“हाँ जान!, लायकेन अभी तू सिर्फ़ ये पहला हिसा था अभी हम पूरी तरहन आज़ाद तू नही हुवे, तुम अभी भी भानु प्राताप के बहू हो” ….. मुझे अब एज की फिकेर हो रही थी
“हाँ, ये बात तू मैने पहले भी तुम से कही थी लायकेन तुम ने कहा के एसके बड़े मैं बाद मैं सोचैईन गे” …. संजना ने मुझे याद कराया
“हाँ क्यूँ की मैने अभी तक एस बड़े मैं वाक़ए नही सोचा था, फिकेर तू मुझे एतने नही क्यूँ की एतने जल्दी तू भानु प्राताप हुमैन ढुंड नही सकता” ….. मैने उसे तसली दी
“लायकेन उसके गार्ड्स ने पल्लवी का घर तू देखा हा और उसे मेरे घर आते जाते भी देखा हा ??” ….. संजना की आवाज़ मैं फिकेर की झलक थी
“एसए लाइ तू मैने माल से भागने का प्लान बनाया था टके पल्लवी पे किसी किसाम का शक ना हो भानु प्राताप को, अगर वो उन से पूछने जाए गा भी तू वो उसे यही कहाँ गे के उन्हइन कुछ नही पता, अगर उस ने उन पे ज़्यादा ज़ोर डाला तू मैने उन्हइन कहा हा के वो बता डैन के हम लंडन मैं हैं” ….. मैने उसे समझाया
“लायकेन वो उनको नुक़सान भी तू फुँचा सकता हा ना, आख़िर उसे पता तू लग जाए गा के तुम्हारी बेहन हा पल्लवी” …..
“हाँ, बट एट्ना ख़तरा तू लाना ज़रूरी था, वैसे भी किसी ना किसी तरहन तू हुमैन खुद भी भानु प्राताप से बात तू करनी हा, जब तक वो शादी वाला माला हाल नही होता, हम पूरी तरहन आज़ाद नही हाँ” ….. मैने उसे समझाया
“अछा अब एन सब बातों को चोरो फिलहाल, तुम फ्रेश हो जयो मैं बाहर से कुछ खाने को लता हों, आज तू हम एस अधूरी आज़ादी का जशन मनाएँ गे ना फिर कल से सोचना शुरू कारण गे के एज क्या करना हा” …… मैने संजना का गाल चुते हुवे कहा और वो भी मुस्कुरा दी
मैं अपने फ्लॅट से बाहर आ गया और अपने पसंदीदा रेस्तूरंत की तरफ चल दया खाना लेन के लाइ. संजना को तू मैने तसली दे दी थी लायकेन मेरा दिमघ अभी तक वोे बात सोच रहा था के अभी भी तुरप का पत्ता तू भानु प्राताप के हाथ मैं ही था, लंडन मैं हमारे साथ उसका ज़बरदस्ती करना मुश्किल था लायकेन अभी भी वो केस तू कर ही सका था और संजना अगर वहाँ ब्याना दे भी डायटी के उसकी शादी ज़बरदस्ती हुवे थी फिर भी केस जीतना एट्ना आसान नही था. एस मामले को ख़त्म करने के लाइ कुछ और ही सोचना था लायकेन क्या ये अब तक मेरे दिमघ मैं नही आया था ……
अगले 3 दिन तक मैं और संजना यही सोचते रहे के अब एज क्या करना हा किस तरहन भानु प्राताप से जान चुराए जा सकती हा, क्यूँ की जब तक संजना की शादी ख़त्म नही होती थी हम पे मुसलसल ऐक तलवार लटकी थी. मुझे एसका बात का भी अंदाज़ा था के भानु प्राताप वहाँ आराम से नही बेठा होगा बालके हुमैन ढूनदने की हर मुमकिन कोशिश कर रहा होगा, मैने अपने वकील से भी बात कर न्यू एअर थी टके अगर कुछ अनहोनी हो जाए तू वो त्यार रहे उस से निपतने के लाइ, मैने उस से एस मामले पर भी बात की के अब क्या करना चाहये उस ने मुझे 2,3 हूल बताए जिस मैं से 1 मेरे दिल को लगा लायकेन उसके लाइ भानु प्राताप का राज़ी होना बुहुत ज़रूरी था. मैं अब एस बात का फ़ैसला नही कर पा रहा था के मुझे खुद भानु पताप से रब्टा करना चाहये या उसका एन्ताज़ार करना चाहये था मुझे एट्ना तू पता था के बुहुत जल्द वो मुझे ढुंड कर मुझ से रब्टा करे गा और और मेरा शक सही सबात हुवा अगले दिन ही भानु प्राताप का फोन मुझे आ गया और मुझे एस बात पे ज़्यादा हैरंगी नही हुवे
“लड़के, तुम्हेँ क्या लगा तुम संजना को ले कर लंडन भाग जयो गे तू मुझे पता नही लगे गा ??” …. भानु प्राताप की आवाज़ मैं चट्टान जैसी सख्ती थी
“नही मुझे ऐसी कोई घालत फ़हमी नही थी, मैने बस वोही क्या जो मुझे ठीक लगा” …. मैने आराम से जवाब दया
“क्या सही और क्या घालत ये तुम्हेँ बुहुत जल्द पता लग जाए गा, तुम्हेँ भानु प्राताप की ताक़त का अंदाज़ा नही हा” …. अब की बार उसकी आवाज़ और भी सख़्त थी
“अगर अंदाज़ा ना होता तू संजना को ले कर लंडन ना आता” …. शायद मेरी कोशिश थी के भानु प्राताप को कम से कम घुसा आए क्यूँ की मैं जनता था के अभी भी सारे पत्ते उसके हाथ मैं हाँ
गुनहगार – Hindi Sex Novel – 10
अगले दिन मैं ठीक 12 बुजे टॅक्सी मैं अपने बाटेये हुवे शॉपिंग माल पे फुँछ गया, वहाँ से मैं मुसलसल पल्लवी के साथ कॉंटॅक्ट मैं था, करीबन 12:15 के करीब मुझे पल्लवी ने बताया के संजना वहाँ पे फुँछ गयी हा मैने टॅक्सी ड्राइवर को टॅक्सी माल के एंट्रेन्स के बिल्कुल सामने खड़ा करने का कहा और उसे टॅक्सी चालू रखने का बोला, करीबन 5 मिनिट बाद मुझे संजना का फोन आया के वो माल के बाहर फुँछ गयी हा क्यूँ की उस ने बुरखा क्या हुवा था एस लाइ मेरा उसे पहचान पाना मुश्किल था मैं टॅक्सी से बाहर निकल आया टके वो मुझे देख सके, वो मुझे देखते हे तकरीबन दोर्थी हुवे मेरे पास आ गयी और हम टॅक्सी मैं बेठ गये, मैने टॅक्सी वाले को एरपोर्ट जाने का कहा, मैने संजना को एशारा क्ये के वो कोई बात ना करे अभी तक हम ख़तरे से बाहर नही थे कोई भी छोटी से घालती हुमैन फुंसा सकती थी. एरपोर्ट फुँछ कर भी मैने संजना को बुरखा उतरने नही दया जब तक हमारे जहाज़ के फाइनल अनाउन्स्मेंट नही हो जाती मैं कोई भी ख़तरा मोल लेना नही चाहता था. समय बुहुत आहिस्ता आहिस्ता बीट रहा था या मुझे ही ऐसा लग रहा था आख़िर कर हमारे जहाज़ की फाइनल अनाउन्स्मेंट हुवे मैने संजना को बाथरूम भाईजा के वो बुरखा उतार के आ जाए और फिर हम जहाज़ के अंदर फुँछ गये. मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं कोई बुहुत बड़ी जुंग जीत के आया हों, एतने दिनों का ठानायो और परेशानी के बाद आख़िर कार हम सुख का सांस ले सकते थे. संजना की आँखों से तू आँसू बहना शुरू हो गये मैने उसका सिर अपने कंधे से टीका दया. वो थोड़ी दायर मुझ से बताईं कराती रही और फिर सू गयी ऐसा लगता था जैसे वो काए दिनों की जागी हुवे हा उसके चहरे पे सकूँ ही सकूँ नज़र आ रहा था. आख़िर कार हम लंडन फुँछ गये एरपोर्ट से बाहर निकलते ही मैने संजना को ज़ोर से अपनी बाँहों मैं जाकर लया, एतने दिन के बाद मैं कुछ रिलॅक्स हुवा था, भानु प्राताप के चुंगल से संजना को निकलना वाक़ए किसी जुंग जीतने से कम ना था. हम टॅक्सी पे मेरे फ्लॅट फुँचे और फ्लॅट मैं दाखिल होते ही संजना और मैं सोफे पे ऐसे गिर गये जैसे पता नही कितनी दूर से पैदल चल कर आ रहे हों
“आ.द , मुझे यक़ीन ही नही हो रहा के हम लंडन फुँछ गये” …. संजना ने मेरा हाथ पाकरते हुवे कहा
“मुझे अपने प्लान पे विश्वास था और तुम पर भी के अगर हम ने सब कुछ प्लान के दुवारा क्या तू हम ज़रूर कामयाब हों गे” …. मैने उसका हाथ चूम लया
“मुझे ऐसा लग रहा हा जैसे मैं सद्यों बाद आज़ाद फ़िज़ा मैं सांस ले रही हों, अब एहसास हो रहा हा के आज़ादी कितनी बड़ी डोलात हा” …. संजना ने ऐक लंबा सांस लया जैसे वो अपनी आज़ादी को अपने अंदर उतरना चाहते हो
“हाँ जान!, लायकेन अभी तू सिर्फ़ ये पहला हिसा था अभी हम पूरी तरहन आज़ाद तू नही हुवे, तुम अभी भी भानु प्राताप के बहू हो” ….. मुझे अब एज की फिकेर हो रही थी
“हाँ, ये बात तू मैने पहले भी तुम से कही थी लायकेन तुम ने कहा के एसके बड़े मैं बाद मैं सोचैईन गे” …. संजना ने मुझे याद कराया
“हाँ क्यूँ की मैने अभी तक एस बड़े मैं वाक़ए नही सोचा था, फिकेर तू मुझे एतने नही क्यूँ की एतने जल्दी तू भानु प्राताप हुमैन ढुंड नही सकता” ….. मैने उसे तसली दी
“लायकेन उसके गार्ड्स ने पल्लवी का घर तू देखा हा और उसे मेरे घर आते जाते भी देखा हा ??” ….. संजना की आवाज़ मैं फिकेर की झलक थी
“एसए लाइ तू मैने माल से भागने का प्लान बनाया था टके पल्लवी पे किसी किसाम का शक ना हो भानु प्राताप को, अगर वो उन से पूछने जाए गा भी तू वो उसे यही कहाँ गे के उन्हइन कुछ नही पता, अगर उस ने उन पे ज़्यादा ज़ोर डाला तू मैने उन्हइन कहा हा के वो बता डैन के हम लंडन मैं हैं” ….. मैने उसे समझाया
“लायकेन वो उनको नुक़सान भी तू फुँचा सकता हा ना, आख़िर उसे पता तू लग जाए गा के तुम्हारी बेहन हा पल्लवी” …..
“हाँ, बट एट्ना ख़तरा तू लाना ज़रूरी था, वैसे भी किसी ना किसी तरहन तू हुमैन खुद भी भानु प्राताप से बात तू करनी हा, जब तक वो शादी वाला माला हाल नही होता, हम पूरी तरहन आज़ाद नही हाँ” ….. मैने उसे समझाया
“अछा अब एन सब बातों को चोरो फिलहाल, तुम फ्रेश हो जयो मैं बाहर से कुछ खाने को लता हों, आज तू हम एस अधूरी आज़ादी का जशन मनाएँ गे ना फिर कल से सोचना शुरू कारण गे के एज क्या करना हा” …… मैने संजना का गाल चुते हुवे कहा और वो भी मुस्कुरा दी
मैं अपने फ्लॅट से बाहर आ गया और अपने पसंदीदा रेस्तूरंत की तरफ चल दया खाना लेन के लाइ. संजना को तू मैने तसली दे दी थी लायकेन मेरा दिमघ अभी तक वोे बात सोच रहा था के अभी भी तुरप का पत्ता तू भानु प्राताप के हाथ मैं ही था, लंडन मैं हमारे साथ उसका ज़बरदस्ती करना मुश्किल था लायकेन अभी भी वो केस तू कर ही सका था और संजना अगर वहाँ ब्याना दे भी डायटी के उसकी शादी ज़बरदस्ती हुवे थी फिर भी केस जीतना एट्ना आसान नही था. एस मामले को ख़त्म करने के लाइ कुछ और ही सोचना था लायकेन क्या ये अब तक मेरे दिमघ मैं नही आया था ……
अगले 3 दिन तक मैं और संजना यही सोचते रहे के अब एज क्या करना हा किस तरहन भानु प्राताप से जान चुराए जा सकती हा, क्यूँ की जब तक संजना की शादी ख़त्म नही होती थी हम पे मुसलसल ऐक तलवार लटकी थी. मुझे एसका बात का भी अंदाज़ा था के भानु प्राताप वहाँ आराम से नही बेठा होगा बालके हुमैन ढूनदने की हर मुमकिन कोशिश कर रहा होगा, मैने अपने वकील से भी बात कर न्यू एअर थी टके अगर कुछ अनहोनी हो जाए तू वो त्यार रहे उस से निपतने के लाइ, मैने उस से एस मामले पर भी बात की के अब क्या करना चाहये उस ने मुझे 2,3 हूल बताए जिस मैं से 1 मेरे दिल को लगा लायकेन उसके लाइ भानु प्राताप का राज़ी होना बुहुत ज़रूरी था. मैं अब एस बात का फ़ैसला नही कर पा रहा था के मुझे खुद भानु पताप से रब्टा करना चाहये या उसका एन्ताज़ार करना चाहये था मुझे एट्ना तू पता था के बुहुत जल्द वो मुझे ढुंड कर मुझ से रब्टा करे गा और और मेरा शक सही सबात हुवा अगले दिन ही भानु प्राताप का फोन मुझे आ गया और मुझे एस बात पे ज़्यादा हैरंगी नही हुवे
“लड़के, तुम्हेँ क्या लगा तुम संजना को ले कर लंडन भाग जयो गे तू मुझे पता नही लगे गा ??” …. भानु प्राताप की आवाज़ मैं चट्टान जैसी सख्ती थी
“नही मुझे ऐसी कोई घालत फ़हमी नही थी, मैने बस वोही क्या जो मुझे ठीक लगा” …. मैने आराम से जवाब दया
“क्या सही और क्या घालत ये तुम्हेँ बुहुत जल्द पता लग जाए गा, तुम्हेँ भानु प्राताप की ताक़त का अंदाज़ा नही हा” …. अब की बार उसकी आवाज़ और भी सख़्त थी
“अगर अंदाज़ा ना होता तू संजना को ले कर लंडन ना आता” …. शायद मेरी कोशिश थी के भानु प्राताप को कम से कम घुसा आए क्यूँ की मैं जनता था के अभी भी सारे पत्ते उसके हाथ मैं हाँ
गुनहगार – Hindi Sex Novel – 10