एक पगली की कहानी- Hindi Kahani (Completed)
Posted: 06 Oct 2015 11:11
अपने कमरे मे एकांत में बैठी वो सपनो के समंदर में टायर रही थी. आँखे खुली रहें या वो रहें बंद, उसके सपनो की आवा जाहि कभी बंद नही हुआ कराती थी. थी तो वो अब 25 की, शादी नही हुई थी, और ना ही अभी होने की कोई उमीद थी. पेशे से वो केमिस्ट्री टीचर थी पास के हाइ स्कूल में. नौकरी का उसका कोई शौक नही था, और ना ही उसे कोई ज़रूरात थी. पर आख़िर इतने बड़े घर में अकेले वो कराती क्या, इस लिए वो हाइ स्कूल में पढ़ाया कराती थी. ऐसे तो वो हर सब्जेक्ट्स पढ़ा सकती थी, पर केमिस्ट्री ही चुना उसने पढ़ने के लिए, वो क्लास 11 और 12 में केमिस्ट्री पढ़ाया कराती थी. इस लड़की का नाम था प्रिया. पूरा नाम प्रिया स्रिवास्तवा. इसके पापा का नाम था महेश स्रिवास्तवा, जो की अभी 50 साल के थे, और अपने बहुत बड़े बिज़्नेस को सम्हलने में रात दिन बिज़ी रहा करते थे. प्रिया की मा थी सुनंदा. सुनंदा स्रिवास्तवा अपने पाती के बिज़्नेस को सम्हलने में मदद कराती थी. पैसे की कोई कमी नही थी, और जैसा मैने कहा की सिर्फ़ आपने अकेलेपन को दूर करने के लिए ही प्रिया पढ़ाया कराती थी.
प्रिया के पापा बहुत स्ट्रिक्ट थे इस मामले में की घर में डिसिप्लिन बना रहे. उन्होने अपनी पूरी ज़िंदगी बहुत ही डिसिप्लिंड ढंग से बिठाई, और शायद यही कारण भी था की आज वो बहुत बड़े सक्सेस्फुल बिज़्नेसमॅन थे. उनको घर की प्रातिष्ठा, खानदान की मन सम्मान की बहुत चिंता रहती थी. वो ऐसा कोई काम ना खुद करते ना घर में अपने परिवार में किसी को करने देते जिससे की उनके और परिवार के मन सम्मान पे कोई दाग लगे. उनका अनुशण और कारक मिज़ाज़ घर में नौकरो चाकरो से लेकर खुद की बीवी और बछीोन पे बना रहता था. हर कोई उनसे डराते थे. उनके गरम और स्ट्रिक्क स्वाभाव से डराते थे. महेश स्रिवास्तवा अपनी बड़ी बेटी प्रिया की शादी खुद के कॅस्ट के किसी अमीर लड़के, जो की उनके हसियत में आए, वैसे लड़के से शादी करवाना चाहते थे. ऐसे लड़के पर जल्डो मिलते कहाँ हैं, थोड़ा वक़्त तो लग ही जाता है. और इसी लिए प्रिया 25 की हो गयी थी, वैसे उसे पढ़ाई अपनी 23 की उमर में ही कंप्लीट कर ली थी. 24 साल की हुई तो उसने कॉलेज में पढ़ने का काम शुरू कर दिया था. प्रिया ग्रॅजुयेट थी, सिटी कॉलेज से. महेश स्रिवास्तवा की छोटी बेटी थी शालिनी, जो की अभी 19 की थी और वो सिटी कॉलेज में ही पढ़ाई कर रही थी.
प्रिया रोज़ की तरह अपने कमरे के बाहर के चाट पे बैठी थी चेर पे. उसका कमरा सबसे उपर के माले पे था. उसको अकेलापन पसंद था और इसी लिए वो सबसे उपर के कमरे में रहती थी. उसके कमरे के बाहर खुला चाट था, जिसपे घर के नौकर चाकर कपड़े सूखने के लिए आते थे. और इसके अलावा कोई नही आता था. शालिनी उपर आती अगर उसको प्रिया से कोई अर्जेंट काम है तो, नही तो वो भी नही आती थी उसके कमरे में. सुनंदा, प्रिया की मा, वो तो जैसे उपर कभी जाना चाहती ही ना थी. उसका समय कहा होता था घर में ध्यान देने को, वो तो ज़्यादा तार समय बिज़्नेस में हाथ बतने में ही गुज़र देती थी. शालिनी की पढ़ाई चल रही थी तो वो ज़्यादातर पढ़ाई में, अपने कॉलेज में, और अपने कॉलेज के दोस्तो में बिज़ी रहती थी. प्रिया के पास सिर्फ़ स्कूल में पढ़ना, और बाकी का समय घर में रहना, यही थी उसकी दिनचर्या. कहीं बाहर घूमने जाना, दोस्तो से मिलना, ऐसा नही था उसके साथ. उसके पापा के स्वाभाव के चलते उसके बहुत कम ही दोस्त बने थे, लड़के तो बिल्कुल भी नही. महेश को ये बिल्कुल पसंद ना था की प्रिया किसी भी लड़के से मिले जुले, घर की बड़ी बेटी थी वो. शालिनी के लिए भी यही रूल्स थे पर शालिनी प्रिया के जैसी अग्यकारी नही थी. मस्ती से भारी, चुलबुली लड़की थी.
घर में काफ़ी नौकर चाकर थे. एक था ड्राइवर, जिसका नाम भोला था. उमर उसकी लगभग 35 के आस पास होगी. दूसरे थे रामू काका, जो घर में खाना बनाते थे. इनकी उमर 58 साल थी. विमला घर में झारू फटके का काम कराती थी. विमला शादी शुदा थी, और उसका एक बच्चा भी था 5 साल का. वो पास के महोल्ले में रहती थी. हर दिन सुबह सुबह वो घर आती थी और सारा काम दोपहर तक निपटा के किसी और के घर काम करने चली जाती थी. बस इतने लोगो से ही घिरी होती थी प्रिया. रामू काका का काम खास कर ये भी था की वो प्रिया का धान रखे. प्रिया थी तो बहुत शांत स्वाभाव की, पर कभी कभी हाइपर हो जाती थी. मानो जैसे की कोई दौरा परा है. थोड़ी देर चीखती चिल्लती, गुस्सा दिखती लोगो पे, पर अगले ही पल शांत हो जाती, फिरसे नॉर्मल हो जाती. चिंता की कोई बात नही है, ऐसा बताया था डॉक्टर ने. दे तो दे लाइफ की स्ट्रेस में ऐसा हो जाता है ये बोलके बस खुश रहना ही दवा है प्रिया की, ऐसा बोलके डॉक्टर ने सुनंदा और उसके पाती को राई दी थी. महेश तो यही सोचा कराता था की प्रिया अब कॉलेज में पढ़ने लगी है तो उसका मॅन लगा रहता होगा. शादी करनी बाकी है उसकी, वो हो ही जाएगी जैसे ही उनके पसंद का लड़का मिल जाता है तो. पर प्रिया के अंदर क्या चल रहा था शायद कोई नही जनता था.
हर शाम के जैसे वो कुर्सी पे बैठी थी, और अपने सपनो के समंदर में टायर रही थी. कुछ बीते हुए दिन याद आते थे, तो कोई ऐसी बातें भी मॅन में आती थी जो पूरी ना हो सकी. दुनिया तो सिर्फ़ बाहर का चेहरा देख के उसके सुंदराता को बयान कराता था, पर उसके अंदर जो आग थी उसकी गर्माहट ना तो वो बाहर आने देती थी और ना कोई भाँप पाया था. एक ने भाँपा था, उसके गर्माहट को महसूस किया था. प्रिया अभी उसके ख़यालो में ही थी. कुर्सी पे बैठे हुए, अपनी एक तंग को मोर के अपनी दूसरी टाँग सामने रखे मेज़ पे टिकाए थी. वो सलवार कमीज़ में थी. अँग्रेज़ी टाइप के कपड़े पहनने के सख़्त खिलाफ थे महेश बाबू. बाल उसके खुले थे और हवाओं के साथ मिल झूम रहे थे. उसके भरे हुए होंठ, जिसपे गुलाबी ग्लॉस की चमक थी, हल्के खुले थे. उसके होंठ उसके चेहरे को अत्यंत कामुक बना देते थे. उसकी आँखें बंद थी, और दिमाग़ उसकी हरकतों में खोया था. कुछ याद आता तो वो अपने चमकते होंठो पे हल्के से अपनी जीभ फेराती. मेज़ पे टीका उसके गड्राए टाँग थोड़ा हुलचल करते, और लाल नैल्पोलिश से सुसजीत उसके पैर के नाखूनओ को वो मेज़ पे रगड़ती. जिसने उसके जवानी को झंझोरा था पहली बार, वो उसको कभी भूल नही सकती थी. पहला नशा यौवन की मस्ती का उसने ही प्रिया को करवाया था. था तो उम्र में उससे छोटा, पर ना भूलने वाली बातें उसके यादों में चोर गया. उसका नाम रवि था.
रवि गाव से इस सहर में आया था ित जी की टायरी के लिए कोचैंग करने. अब वो 18 साल का हो चुका था. फिज़िक्स और मेद्स की टीयूशान तो उसने पाकर ली थी. वो कोचैंग में कई दोस्त बनाया अपने, पर उन दोस्तो में से सबसे ज़्यादा करीब था वो राकेश और चंदन के. राकेश और चंदन भी 18 साल के हो चुके थे. इन दोनो का घर यहीं इसी सहर में था. इनके मदद से ही बाहर से आया रवि एक रूम रेंट पे ले पाया. चंदन और राकेश एक ही फ्लॅट में रहते थे, और रवि उसी गली के अंतिम मकान के सबसे उपर वाले रूम में. पढ़ाई करने के लिए कई लड़के लाकिया सहर आते थे. कोचैंग तूतिओन्स की मानो भीर सी थी इस सहर में. रवि भी एक अस्पाइरिंग लड़का था और अपने खवाबो को पूरा करने के लिए मेहनत करने सहर आ गया था.
हर दिन शाम में तीनो मिलके टहलने निकलते थे. कभी कभी वो साथ में सिनिमा भी हो लेते थे. पर चुकी राकेश और चंदन का घर यही इसी सहर में था, तो उनके मा पिता और बाकी के घर वाले भी तो साथ में रहते थे. इसी कारण से रवि के साथ ज़्यादा देर समय नही दे पाते थे और घर जाना पर जाता था. आख़िर पिताजी से दाँत सुनना किसे पसंद था. फिज़िक्स और मेद्स की कोचैंग तीनो एक जगह ही करते थे, और साथ ही आना जाना होता था इनका. रवि ने अभी तक केमिस्ट्री की कोचैंग नही जाय्न की थी. पर सोच रहा था की ज्प ऑप्षन्स हैं उसके पास वो उनमे से किसे चुने. केमिस्ट्री उसके लिए कठिन विषय रहा है शुरू से.
एक शाम वो तीनो बगीचे में बैठे बात कर रहे थे.
प्रिया के पापा बहुत स्ट्रिक्ट थे इस मामले में की घर में डिसिप्लिन बना रहे. उन्होने अपनी पूरी ज़िंदगी बहुत ही डिसिप्लिंड ढंग से बिठाई, और शायद यही कारण भी था की आज वो बहुत बड़े सक्सेस्फुल बिज़्नेसमॅन थे. उनको घर की प्रातिष्ठा, खानदान की मन सम्मान की बहुत चिंता रहती थी. वो ऐसा कोई काम ना खुद करते ना घर में अपने परिवार में किसी को करने देते जिससे की उनके और परिवार के मन सम्मान पे कोई दाग लगे. उनका अनुशण और कारक मिज़ाज़ घर में नौकरो चाकरो से लेकर खुद की बीवी और बछीोन पे बना रहता था. हर कोई उनसे डराते थे. उनके गरम और स्ट्रिक्क स्वाभाव से डराते थे. महेश स्रिवास्तवा अपनी बड़ी बेटी प्रिया की शादी खुद के कॅस्ट के किसी अमीर लड़के, जो की उनके हसियत में आए, वैसे लड़के से शादी करवाना चाहते थे. ऐसे लड़के पर जल्डो मिलते कहाँ हैं, थोड़ा वक़्त तो लग ही जाता है. और इसी लिए प्रिया 25 की हो गयी थी, वैसे उसे पढ़ाई अपनी 23 की उमर में ही कंप्लीट कर ली थी. 24 साल की हुई तो उसने कॉलेज में पढ़ने का काम शुरू कर दिया था. प्रिया ग्रॅजुयेट थी, सिटी कॉलेज से. महेश स्रिवास्तवा की छोटी बेटी थी शालिनी, जो की अभी 19 की थी और वो सिटी कॉलेज में ही पढ़ाई कर रही थी.
प्रिया रोज़ की तरह अपने कमरे के बाहर के चाट पे बैठी थी चेर पे. उसका कमरा सबसे उपर के माले पे था. उसको अकेलापन पसंद था और इसी लिए वो सबसे उपर के कमरे में रहती थी. उसके कमरे के बाहर खुला चाट था, जिसपे घर के नौकर चाकर कपड़े सूखने के लिए आते थे. और इसके अलावा कोई नही आता था. शालिनी उपर आती अगर उसको प्रिया से कोई अर्जेंट काम है तो, नही तो वो भी नही आती थी उसके कमरे में. सुनंदा, प्रिया की मा, वो तो जैसे उपर कभी जाना चाहती ही ना थी. उसका समय कहा होता था घर में ध्यान देने को, वो तो ज़्यादा तार समय बिज़्नेस में हाथ बतने में ही गुज़र देती थी. शालिनी की पढ़ाई चल रही थी तो वो ज़्यादातर पढ़ाई में, अपने कॉलेज में, और अपने कॉलेज के दोस्तो में बिज़ी रहती थी. प्रिया के पास सिर्फ़ स्कूल में पढ़ना, और बाकी का समय घर में रहना, यही थी उसकी दिनचर्या. कहीं बाहर घूमने जाना, दोस्तो से मिलना, ऐसा नही था उसके साथ. उसके पापा के स्वाभाव के चलते उसके बहुत कम ही दोस्त बने थे, लड़के तो बिल्कुल भी नही. महेश को ये बिल्कुल पसंद ना था की प्रिया किसी भी लड़के से मिले जुले, घर की बड़ी बेटी थी वो. शालिनी के लिए भी यही रूल्स थे पर शालिनी प्रिया के जैसी अग्यकारी नही थी. मस्ती से भारी, चुलबुली लड़की थी.
घर में काफ़ी नौकर चाकर थे. एक था ड्राइवर, जिसका नाम भोला था. उमर उसकी लगभग 35 के आस पास होगी. दूसरे थे रामू काका, जो घर में खाना बनाते थे. इनकी उमर 58 साल थी. विमला घर में झारू फटके का काम कराती थी. विमला शादी शुदा थी, और उसका एक बच्चा भी था 5 साल का. वो पास के महोल्ले में रहती थी. हर दिन सुबह सुबह वो घर आती थी और सारा काम दोपहर तक निपटा के किसी और के घर काम करने चली जाती थी. बस इतने लोगो से ही घिरी होती थी प्रिया. रामू काका का काम खास कर ये भी था की वो प्रिया का धान रखे. प्रिया थी तो बहुत शांत स्वाभाव की, पर कभी कभी हाइपर हो जाती थी. मानो जैसे की कोई दौरा परा है. थोड़ी देर चीखती चिल्लती, गुस्सा दिखती लोगो पे, पर अगले ही पल शांत हो जाती, फिरसे नॉर्मल हो जाती. चिंता की कोई बात नही है, ऐसा बताया था डॉक्टर ने. दे तो दे लाइफ की स्ट्रेस में ऐसा हो जाता है ये बोलके बस खुश रहना ही दवा है प्रिया की, ऐसा बोलके डॉक्टर ने सुनंदा और उसके पाती को राई दी थी. महेश तो यही सोचा कराता था की प्रिया अब कॉलेज में पढ़ने लगी है तो उसका मॅन लगा रहता होगा. शादी करनी बाकी है उसकी, वो हो ही जाएगी जैसे ही उनके पसंद का लड़का मिल जाता है तो. पर प्रिया के अंदर क्या चल रहा था शायद कोई नही जनता था.
हर शाम के जैसे वो कुर्सी पे बैठी थी, और अपने सपनो के समंदर में टायर रही थी. कुछ बीते हुए दिन याद आते थे, तो कोई ऐसी बातें भी मॅन में आती थी जो पूरी ना हो सकी. दुनिया तो सिर्फ़ बाहर का चेहरा देख के उसके सुंदराता को बयान कराता था, पर उसके अंदर जो आग थी उसकी गर्माहट ना तो वो बाहर आने देती थी और ना कोई भाँप पाया था. एक ने भाँपा था, उसके गर्माहट को महसूस किया था. प्रिया अभी उसके ख़यालो में ही थी. कुर्सी पे बैठे हुए, अपनी एक तंग को मोर के अपनी दूसरी टाँग सामने रखे मेज़ पे टिकाए थी. वो सलवार कमीज़ में थी. अँग्रेज़ी टाइप के कपड़े पहनने के सख़्त खिलाफ थे महेश बाबू. बाल उसके खुले थे और हवाओं के साथ मिल झूम रहे थे. उसके भरे हुए होंठ, जिसपे गुलाबी ग्लॉस की चमक थी, हल्के खुले थे. उसके होंठ उसके चेहरे को अत्यंत कामुक बना देते थे. उसकी आँखें बंद थी, और दिमाग़ उसकी हरकतों में खोया था. कुछ याद आता तो वो अपने चमकते होंठो पे हल्के से अपनी जीभ फेराती. मेज़ पे टीका उसके गड्राए टाँग थोड़ा हुलचल करते, और लाल नैल्पोलिश से सुसजीत उसके पैर के नाखूनओ को वो मेज़ पे रगड़ती. जिसने उसके जवानी को झंझोरा था पहली बार, वो उसको कभी भूल नही सकती थी. पहला नशा यौवन की मस्ती का उसने ही प्रिया को करवाया था. था तो उम्र में उससे छोटा, पर ना भूलने वाली बातें उसके यादों में चोर गया. उसका नाम रवि था.
रवि गाव से इस सहर में आया था ित जी की टायरी के लिए कोचैंग करने. अब वो 18 साल का हो चुका था. फिज़िक्स और मेद्स की टीयूशान तो उसने पाकर ली थी. वो कोचैंग में कई दोस्त बनाया अपने, पर उन दोस्तो में से सबसे ज़्यादा करीब था वो राकेश और चंदन के. राकेश और चंदन भी 18 साल के हो चुके थे. इन दोनो का घर यहीं इसी सहर में था. इनके मदद से ही बाहर से आया रवि एक रूम रेंट पे ले पाया. चंदन और राकेश एक ही फ्लॅट में रहते थे, और रवि उसी गली के अंतिम मकान के सबसे उपर वाले रूम में. पढ़ाई करने के लिए कई लड़के लाकिया सहर आते थे. कोचैंग तूतिओन्स की मानो भीर सी थी इस सहर में. रवि भी एक अस्पाइरिंग लड़का था और अपने खवाबो को पूरा करने के लिए मेहनत करने सहर आ गया था.
हर दिन शाम में तीनो मिलके टहलने निकलते थे. कभी कभी वो साथ में सिनिमा भी हो लेते थे. पर चुकी राकेश और चंदन का घर यही इसी सहर में था, तो उनके मा पिता और बाकी के घर वाले भी तो साथ में रहते थे. इसी कारण से रवि के साथ ज़्यादा देर समय नही दे पाते थे और घर जाना पर जाता था. आख़िर पिताजी से दाँत सुनना किसे पसंद था. फिज़िक्स और मेद्स की कोचैंग तीनो एक जगह ही करते थे, और साथ ही आना जाना होता था इनका. रवि ने अभी तक केमिस्ट्री की कोचैंग नही जाय्न की थी. पर सोच रहा था की ज्प ऑप्षन्स हैं उसके पास वो उनमे से किसे चुने. केमिस्ट्री उसके लिए कठिन विषय रहा है शुरू से.
एक शाम वो तीनो बगीचे में बैठे बात कर रहे थे.