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Re: एक पगली की कहानी- Hindi Kahani (Completed)

Posted: 06 Oct 2015 11:12
by sexy
अगले दिन, सुबह के 10 बजे:

राकेश दूर बेल बजा रहा था. साहबरा नही हो रहा हो जैसे उससे, हर 10 सेकेंड पे एक बार फिर बजा डालता. करीब 2 मिनिट इंतेज़ार किया उसने और फिर दूर खुलता है.
राकेश – क्या आंटी मैं कब से यहा…..(बोलते बोलते वो अश्कार्या से भर जाता है, और एक तक देखता रहता है)
शीला – अरे. क्या हुआ. बोलो भी. (मुस्कुराते हुए)
राकेश – वो. वो वो… मा मा . मैं यहा घंटी बजा रहा था… (राकेश बस शीला को देखता रह जाता है और उसकी बोली लड़खरने लगती है)
शीला – अंदर आओ. सॉरी मैने थोड़ा लाते से खोला दरवाज़ा. मैं नहा रही थी… आओ बैठो. मैं बस आती हू अभी चेंज कर के.
राकेश सोफा पे बैठ जाता है. पर उसकी निगाहें लगातार शीला के जिस्म पे टिकी थी. शीला दर असल सिर्फ़ एक टवल में थी. छाती के उपर से उसके घुतनो तक, सिर्फ़ एक टोलिए में. शीला को कभी ऐसी हालत में नही देखा था उसने. बाल खुले हुए, और उनमे से शॅमपू की खुश्बू आ रही थी. उसकी मखमली टाँगे भीगी हुई होने के कारण चमक रही थी. हक्का बक्का सा राकेश शीला को बेडरूम के तरफ जाता देखता रह गया. लंड पूरे उबाल पे आ चुका था उसका. पर वो पूरा कंट्रोल किए था.
10 मिनिट में शीला आ जाती है ड्रॉयिंग रूम में राकेश के पास. उसने एक वाय्लेट कलर का गाउन पहना था. सिल्क से बना हो जैसे, गाउन की चमक से लग रहा था. बाल अभी भी खुले थे. और होंठो पे एक हल्की सी ग्लॉस की चमक दिख रही थी.
शीला आती है और बगल वाले सोफे पे बैठ जाती है. राकेश की निगाहें फिर से स्कॅनिंग मोड पे आ जाती हैं.

शीला – सॉरी राकेश तुमेह मेरे चलते इतना इंतेज़ार करना परा. (अजीब सा साद फेस बनाए हुए शीला बोलती है)
राकेश – अरे नही शीला आंटी. मैं तो आपके लिए ज़िंदगी भर इंतेज़ार कर सकता हू. (मुस्कुराते हुए बोलता है)
शीला – अफ चल हट. फिरसे मत फ्लर्ट कर. मैं बोला था ना की एक गर्ल फ्रेंड ढूँढ लो.
राकेश – ढूँढ तो लिया ना.
शीला – कौन?
राकेश – आप! (मुस्कुराते हुए, पर कॉन्फिडेन्स में)
शीला – अरे यार. सुधार जेया. तू बच्चा है. और जनता है मेरी एज क्या है?
राकेश – ई आम ऑफ 18 सेंॉरिता, टर्निंग 19 वेरी सून. और आपकी एज भी क्या है, वो ही 25 या 26.
शीला – सो स्वीट ऑफ यू. बट मैं 25-26 की नही.
राकेश – पर मेरी पसंद तो तुम ही होना आंटी, और ये जगह और कोई नही ले सकता(राकेश थोड़ा शीला के सोफे के तरफ सरक के बोलता है)
शीला – अओ! मेरे प्यारे लवर! (शीला भी थोड़ा राकेश की तरफ झुकते हुए बोलती है)
राकेश की नज़रे उभरो की घाटी, शीला की छाती के तरफ बढ़ जाती है.
शीला – क्या मेरा लवर जनता है की मैने उसको यहा क्यू बुलाया था? मेरे किचन में मेरा गॅस स्टोव काम नही कर रहा. कल रात से मैने चाय तक नही पी.
राकेश अपनी नज़रे शीला की क्लीवेज पर से उठा के उसके चेहरे पे ले आता है, और अजीब सा लुक देता है जैसे की कितनी दीस्सापॉइंटमेंट हुई उससे.
ये चीज़ भाँपते हुए शीला हंस पार्टी है.
शीला – क्यूँ लवर. तुमको तो आता है ना गॅस स्टोव बनाना. मेरी हेल्प नही कर दोगे?
राकेश – आपके लिए कुछ भी कर दूँगा शीला आंटी. (थोड़ा और सरकते हुए शीला की तरफ बोलता है)
राकेश – पर मेरी छोटी सी फीस है आंटी. मैने तो बताया था ना. आपको याद तो है ना?
शीला – क्या बताया था. मुझे तो याद नही.
राकेश – अरे मैने बताया था ना. ऐसे मत बोलिए. (थोड़ा और सरकते हुए बोलता है, साद सा फेस बनाते हुए)
शीला – नही याद सच में. बताओ ना फिरसे. याद आ जाएगा शायद.
राकेश – वो मैने बोला था ना…. उम्म्म. किस के लिए…. वो ही फीस (थोड़ा और सरकते हुए बोलता है. इस टाइम तक वो अपने सोफे के एक दम किनारे तक आ जाता है. अब उसके और शीला के बीच सिर्फ़ एक फुट का डिस्टेन्स था.)
शीला – किस. क्या किस? (राकेश की तरफ थोड़ा और झुकती हुई)
राकेश शीला की होंठो की तरफ एक तक देखते हुए. उसके होंठ खुल रहे थे पर कुछ आवाज़ नही निकल रहा था. अपने मुँह से छोटा ‘ओ‚ बनाते हुए…
शीला – बोलो ना.
राकेश – आप किस करोगी मुझे… (हकलाते हुए बोलता है)
शीला अचानक से बिल्कुल करीब आए राकेश का चेहरा अपने बाएँ हाथ से पाकराती है और उसके एक गाल पे किस कर देती है. एक हल्की सी ‘एम्म्म पुचह‚ की आवाज़ आती है और तेज़ी से शीला सोफे पे से उठ जाती है.

शीला – चलो चलो. जल्दी से किचन में आओ. अभी तो ऑफीस भी निकलना है 11 बजे तक. और अभी ये स्टोव ठीक नही हुआ तो मुझे रात का खाना भी बाहर खाना परेगा. (ये सब कहते हुए वो किचन की ओर बढ़ने लगती है.)
राकेश एक दम से उसके गाल पे हुए हमले से शॉक में था. नाज़ुक होंठो का गरम एहसास उसके गालो से अलग हो जाने के बाद भी महसूस कर पा रहा था.
राकेश – पर… पर मैं होंठो पे किस के लिए बोला था.
शीला – उफफफ्फ़. अब आओ भी किचन में मेरे लवर. लाते हो जौंगी मैं ऑफीस के लिए(राकेश की तरफ देखते हुए बोलती है)

राकेश का लंड पूरा खड़ा हो चुका था. बड़ी मुस्किल से छुपाने की नाकाम कोशिश के साथ किचन में आता है. शीला ने नोटीस कर लिया था उसका खड़ा लंड, पर ना हासने का डिसाइड किया.
राकेश बिना कुछ बोले औज़ार लेके रिपेर करने लगता है स्टोव. करीबन 10-15 मिनिट हुए होंगे और स्टोव काम करने लगा. तब जाके राकेश बोलता है, ‘आंटी, काम करने लगा. आप एक बार खुद चेक कर लीजिए.‚ शीला चेक कराती है. सब कुछ ठीक काम कर रहा था. तब तक वॉशबेसिन में राकेश अपना हाथ धो लेता है. वॉश बेसिन में हाथ धो के जैसे ही घूमता है तो देखता है शीला एक दम सात के उससे खड़ी है. चौंक के हल्का पीछे होता है.
शीला थोड़ा और एज बढ़ती है. राकेश अब पूरी तरह से बेसिन से चिपक जाता है. शीला मुस्कुरा रही थी. उसने अपना एक हाथ राकेश के गर्दन के पीछे रखा और दूसरा उसके कंधे पे. राकेश और शीला दोनो एक ही हाइट के थे. दोनो बिल्कुल आमने सामने, राकेश तो बस टकटकी बँधे देखा जा रहा था, ऐसा मानो जैसे की उसकी आँखें पलकें झपकना ही भूल गये थे. धीरे धीरे शीला अपने चेहरे को एज बढ़ती है. राकेश उसकी साँसे फील करना शुरू कर दिया अपने फेस पे.
शीला बची हुई चेहरो के बीच की दूरी हो हटा देती है, और हल्के ज़ोर से अपने बंद होंठ राकेश के होंठ पे जर देती है. वही सुनी सी आवाज़ राकेश के कानो में पहुँचती है, ‘म्‍म्म्ममममम पुउऊउक्ककचह!!!!‚
शीला के होंठो से राकेश के होंठो पे ‘पुच्छ‚ की आवाज़ इस बार पछले बार के मुक़ाबले थोड़ी लंबी आती है. 5 सेक का ही किस था, पर जिस मादक अंदाज़ से शीला ने किस किया वो राकेश कभी नही भूल सकता था.
होंठ अलग करते हुए शीला राकेश के तरफ से थोड़ी पीछे होती है और अपने हाथ उसपे से हटा लेती है. वो मुस्कुरा रही थी.

राकेश – बाथरूम किस तरफ है आंटी.
शीला – आओ आओ. इधर है. (ज़ोर से हंसते हुए…)

राकेश अपना खड़ा लॉरा हाथ से चुपाता हुआ बाथरूम की तरफ भागता है. शीला अभी भी ज़ोर से हंस रही थी.
शाम के 4 बाज रहे थे. राकेश दिन भर आज सुबह के बड़े में सोच रहा था. शीला के चुममे का एहसास जैसे हो अभी भी ले पा रहा था. लंड तो मानो की ठंडा होने का नाम ना ले रहा हो. सुबह से अब तक में टीन बार मूठ मार चुका था. पर अंदर का उबाल शांत नही हो रहा था. ठीक 4 बजे उसने कॉल करने का सोचा रवि को. पर कॉल क्या करें, चल के खुद ही हाल बयान करने का सोचा.
4.10 में रवि के कमरे पे राकेश नॉक कराता है.
रवि – अरे राकेश. अभी. अभी कैसे?
राकेश – क्यूँ बे. नही आ सकता क्या (अंदर आ के रवि के बेड पे शान से लेट जाता है.)
रवि- सेयेल चप्पल तो निकल के लेट ना. ग़रीब का बिस्तर क्यूँ खराब कर रहा है.
राकेश – ग़रीब. साले इतनी बड़ी माल के यहा आना जाना शुरू हो गया है. अब तू मालदार हो चुका है भोसड़ी..
राकेश – आ! क्या किस थी यार. मज़ा आ गया.
रवि – किस?
राकेश – हाँ यार. आज किस कर ही लिया मैने शीला को. (गर्व से मुस्कुराते हुए)
रवि – क्या बात कर रहा है बे. तू सच बोल रहा है? (राकेश के पास बैठते हुए बोलता है.)
राकेश आज सुबह की हुई बातें रवि को बतने लगता है. रवि एक तक हो के सब सुनता जा रहा था.
रवि – आबे मुझे विश्वास नही हो रहा भाई.
राकेश – यार कसम से. क्या किस था. अब सोचता हूँ उसके होंठो के एहसास के बड़े में, तो मॅन कराता है की मैने उसे काट क्यू नही लिया. ज़ोर से एक दम चूस के सारा रस क्यू नही निचोर लिया.
रवि – आबे ऐसे किस करते हैं क्या. जानवर है क्या तू.
राकेश – हाँ बे जानवर ही हू. जानवर बना दिया है भाई मुझे शीला ने. (आहें भराते हुए बोलता है)
रवि – अच्छा. कोई फोटो नही शीला की? मतलब मैं देखना चाहता था.
राकेश – तू फ़ेसबुक पे है क्या?
रवि-नही. क्यूँ?
राकेश – शीला मेरे फ़ेसबुक मे आडेड है. तू भी सेयेल अकाउंट बना ले. आज कल माल लोग फ़ेसबुक पे ही पटा ती हैं. समझा क्या? रुक तेरे को मैं शीला का प्रोफाइल पिक दिखता हू.

Re: एक पगली की कहानी- Hindi Kahani (Completed)

Posted: 06 Oct 2015 11:12
by sexy
थोड़ी ही देर में राकेश अपने मोबाइल पे शीला का ड्प दिखता है.
रवि – यार तूने इसको किस किया? (रवि ज़ूम कर के शीला के रस भरे होंठो को देखते हुए बोलता है. स्लीव्ले में शीला की गोरी बाहें चमक रही थी. सेक्सी पूरी की पूरी. रवि बस आश्चर्य में था की इतनी बोल्ड जैसी दिखने वाली लड़की को आज राकेश किस किया है)
राकेश – हाँ बे. तेरे को सामने में मिलवौनगा. देखना कितनी बड़ी माल है. देख सला. मेरा लॉरा फिर खड़ा हो गया.
रवि घारी देखते हुए बोलता है. ‘भाग साले. ये ले मोबाइल और तू घर जा अभी. वहीं मुठिया लियो. अभी मुझे पढ़ने जाना है माँ के यहा. अब तू जा चल.‚
राकेश – प्रिया माँ के यहा जा रहा है? जा मज़े कर.

थोड़ी देर में रवि अपनी प्रिया माँ के यहा पहुँचता है.
वरॅंडा में बैठ जाता है और प्रिया का इंतेज़ार करने लगता है.
तभी थोड़ी देर में वॉचमन की अवज़ सुनी उसने. किसी से बात कर रहा था वो.
वॉचमन – कहे रे भूतनी के. आज पगली का ले ही लिया क्या बे.
दूसरा आदमी – नही रे. सिर्फ़ छुआ था. साली को लगता है की दौरा फिर परा था. सुनंदा मेडम से झगरा हुआ. खूब चीख चिल्ला रही थी. मैं गया था शांत करवाने उन दोनो का झगरा. इसी ना किसी बहाने मैने उसी गोरी बाहें छुई यार. मखमल है भाई मखमल. चोदूगा तो में ज़रूर रंडी को.
वॉचमन – अरे हुमरो एक चान्स दिलवओ ना. हम हूँ सॉफ करेंगे अपना हाथ.
तभी प्रिया की अंदर से आवाज़ आती है हल्की सी. और ये सुनके वो डन अलग हो जाते हैं और अपने अपने जगह चले जाते हैं. रवि अभी भी वरॅंडा में बैठा था.
तभी प्रिया वरॅंडा में आती है.
प्रिया – तुम आ गये. चलो उपर चलो. आज से पढ़ाई शुरू करते हैं.
प्रिया उसे अपने रूम में उपर ले जाती है. दोनो चेर पे बैठ जाते हैं. प्रिया चेमिसटी में केमिकल किनेटिक्स पढ़ना शुरू कर देती है. पढ़ाई तो वो पूरी ध्यान से कर रहा था. पर ध्यान सिर्फ़ पढ़ाई पे ही केंद्रित नही था. उसका दिमाग़ अभी भी राकेश के बताई घतनाओ पे घूम रहा था. ध्यान कभी इधर जाए तो कभी उधर. कभी पढ़ाई पे ही केंद्रित रहे तो फिर डगमगाते हुए शीला और राकेश के बताओं पे चली जाए. न्यूमरिकल सॉल्व करते करते वो थोड़ा अपना सिर उपर उठता है प्रिया बुक में कुछ ढूँढ रही थी. वो अपने भौं को सिक्ोरे हुए ध्यान से पढ़ रही थी. छान भर में उसके होंठ ‘ओ‚ के शेप में हो गये. रवि का ध्यान प्रिया के होंठो पे आ जाता है. नर्म, गुलाबी, रस से भरे हल्के उभरे हुए. जब प्रिया अपने होंठ पे जीभ फेराती है तो रवि का लंड ठनक जाता है. उसके दिमाग़ में आता है की काश वो भी अपने जीभ प्रिया के होंठो पे फिर पता. पर तभी…

प्रिया – रवि! क्या हुआ. ध्यान कहाँ है तुम्हारा?
रवि – जी माँ. एम्म माँ वो मैं सोच रहा था कुछ.
प्रिया – क्या सोच रहे थे. बताओ
रवि – ये क्वेस्चन नही सॉल्व हो रा है.
प्रिया – लाओ दिखाओ मुझे.
प्रिया कॉपी देखती है और हैरान रह जाती है. क्वेस्चन तो सॉल्व्ड था.
प्रिया – रवि क्वेस्चन तो तुमने सॉल्व कर लिया है. क्या बात हुआ ये. बताओ सच तुम. क्या सोच रहे थे. (अपनी मधुर आवाज़ में थोड़ा करकपन लेक बोलती है)
रवि – माँ वो…. वो…
प्रिया- क्या वो वो, बताओ
रवि – वो आपके होंठो के पास कुछ लगा हुआ है.
प्रिया हल्की सहम जाती है. अपने दुपट्टे के कोने से होंठो के पास पोचेटी है.
प्रिया – गया क्या?
रवि – नही माँ. थोड़ा और नीचे. (होंठो को घूराते हुए बोलता है)
प्रिया दो टीन बार और कोशिश कराती है फिर पूछती है रवि से. रवि हर बार बोलता है की वाहा अभी भी है.
प्रिया – कहाँ यार? लो हटा दो. (थोड़ा खीजते हुए बोलती है और अपना चेहरा रवि के तरफ एज बढ़ते हुए बोलती है)
रवि अपना रुमाल निकलता है आगे अपना हाथ बढ़ता है. रुमाल से होंठो के ठीक हल्के नीचे पोछने का दिखावा कराता है और प्रिया के होंठो का करीब से दीदार कराता है. लंड तो सरपट मानो वॉल्केनो की तरह अपना माल फेकने तो टायर हो गया. रवि पोछने के बहाने रुमाल के मध्यम से ही, हल्का ज़ोर उसके होंठो पे भी देता है जिससे प्रिया के होंठ हल्के डाबते हैं. रुमाल के मध्यम से होकर वो कोमल एहसास रवि पता है.
रवि – हो गया. (मुस्कुराते हुए बोलता है और रुमाल अपने पॉकेट में रख लेता है)
प्रिया – थॅंक यू! (मुस्कुराते हुए बोलती है. और फिर दोनो पढ़ाई में लग जाते हैं.)

प्रिया 25 वर्ष की हो गयी थी. इसके पिता बहुत स्ट्रिक्ट थे, इस लिए इसने कभी बॉय फ्रेंड वगेरा नही बनाया. इसके तो दोस्त भी बिल्कुल ना के बराबर थे. अपने पापा के बनाए हदों के अंदर वो घुट रही थी. यूँ तो बाहर से सादगी और उक्च्या संस्कार का लिबास था, पर अंदर ही अंदर वो वासना की आग में जल रही थी. वासना इस कदर बढ़ी हुई थी, की अब तो उसे मानसिक तौर पे बीमार भी बनता जा रहा था. अपने अंदर की खुजली को रोक के रखने के चलते उसका रखत छाप बढ़ा रहता. वो गुस्सैल हो गयी थी. चीर्छिरी सी. कई बार तो घर में काफ़ी झगरा हो जया कराता था उसका बिना बात के. कभी मा के साथ, तो भी अपने छोटी बेहन के साथ. प्रिया के घर के नौकर क्या समझते अंदर की बात. वो तो बस उसे बिना बात अपने मा और बेहन से झगरा करते हुए सुनते थे. घर का वॉचमन और ड्राइवर भोला, ये लोग कई बार प्रिया को पाकर के उसके कमरे में ले जाते और अपनी मालकिन सुनंदा के कहे अनुसार उसे बंद करदेटे कमरे में. वो चिल्लती चीखती रहती. कोस्ती रहती लोगो को. वो जब गुस्से में होती, तो उसकी ज़ोर ज़ोर से उठती गिराती सांसो के चलते उसके छाती में होने वाले पहारों के हिचकोले देख के भोला और वॉचमन का लंड साँप के तरह फंफना उठता था. प्रिया कभी अपने बाबूजी पे नही चीखी. वो उनसे बहुत डराती थी. उँची आवाज़ में बात करने का सोचती भी नही थी. प्रिया के स्वाभाव ऐसा क्यूँ हो गया है इसका कारण कोई समझ नही पाया उसके घर में. प्रिया कभी खुल के अपने अंदर के उठते शोल्न के बड़े में किसी से बोल भी नही पाती थी. उसकी तबीयत एक समय ऐसी भी हो गई थी जब उसकी महिनवरी तक बिगड़ गयी. खून बहुत ज़्यादा आया कराता था. मा बाप ने डॉक्टर से दिखलवाया तो उसने स्ट्रेस ना लेने को कहा प्रिया को. प्रिया जब से कॉलेज में पढ़ना शुरू किया तबसे उसके हालत में कुछ सुधार हुआ. महिनवरी तो ठीक हो गई पर स्वाभाव में चीर्छिरा पं नही गया था.

रवि के इस तरह से उसके होंठ चुने के कारण प्रिया बिल्कुल सहम सी गई थी. कई सारी बातें एक सनसनी जैसे शरीर में फैलती है, वैसे ही दिमाग़ के कोने कोने में दोड गई. एक खुशी का एहसास था अंदर से. मुस्कुराहट तो छुपी थी, पर चेहरा चमकने लगा था.

2 घंटे पढ़ाई चली. प्रिया ने फिर क्लास ओवर करने का सोचा आज के लिए.
प्रिया – चलो आज बहुत पढ़ाई हो गई. अब ख़त्म करते हैं.
रवि – ठीक है माँ. अब कब आऊगा मैं?
प्रिया – अब परसो आना तुम. हम लोग आल्टरनेट करके करेंगे क्लास. ठीक है ना ये ?
रवि – ठीक है माँ. जैसा आपको ठीक लगे. मैं तो रोज़ भी क्लास कर लूँगा अगर ज़रूरात है तो. (मुस्कुराता हुआ बोलता है)
प्रिया – अगर ज़रूरात होगी तो मैं आने बोल दूँगी. पर क्लासस इन जनरल हम आल्टरनेट दे कर के ही करेंगे ताकि तुमेह खुद भी पढ़ने का काफ़ी टाइम मिल सके.
रवि – ठीक है माँ.
रवि अपना बस्ता उठता है और कमरे से निकालने लगता है. प्रिया उसके पीछे आ रही होती है. तभी रवि पीछे मुराता है.
रवि – माँ आपसे पढ़ के मुझे बहुत अच्छा लगा. मुझे केमिस्ट्री में अब इंटेरेस्ट आने लगा है.
प्रिया – मुझे भी तुमेह पढ़ने में बहुत अच्छा लगा. (मुस्कुराहट और एक शर्म की लाली के साथ वो बोलती है).
प्रिया – अपना बाग देखो, चैन खुला है. (ज़ोर से हंसते हुए)

इतने में प्रिया का दुपटा सरक जाता है और रवि की निगाहें दुनिया के सबसे सुंदर, गड्राए उभारों पर टिक जाता है. मखमली दूधिया स्किन गले से होकर स्तन तक खूबसूराती का जम पीला रहे थे. प्रिया को एहसास होता है रवि की निगाहें कहाँ टिकी हैं, और शर्म से सिर नीचा कर दुपट्टा सम्हल लेती है. इतने में रवि चैन बिना बाग की ओर देखे खिच देता है. ऐसा करने में उसकी उंगली काट जाती है. रवि के मुँह से ‘इसस्स्शह!‚ की आवाज़ निकल पार्टी है.
प्रिया घबरा के एज बढ़ती है.
प्रिया – अरे क्या हुआ. दिखाओ मुझे.

रवि के उस उंगली से खून आने लगता है. उसके मुँह से हल्की ‘उफफफ्फ़‚ की आवाज़ आई.

प्रिया – अरे खून आ रा है ये तो.

रवि – सीसी सीसी सीसी .. .कोई बात नही माँ. ठीक है.

पर इतना बोलना ही था रवि का की प्रिया ने वो उंगली अपने मुँह मे ले लेती है. रवि की तो मानो अब ‘अया!‚ निकल जाती है मुँह से.

प्रिया ज़ोर से अपने होंठो में भेंच कर उंगली चूसना शुरू कर देती है. रवि अपने उंगली पर उन कोमल होंठो का चूसना महसूस कर रहा था. बीच बीच में जीभ लटपटा रहे थे उंगली में. कारेबान 10 सेक तक जन्नत रवि के उंगली पर अमृत बरसटा रहा. फिर मुँह से प्रिया धीरे से उंगली निकलती है. प्रिया का मुँह का लार(सलाइवा) का एक तार उसके नीचले होंठो से उंगली तक जुड़ा हुआ धीरे धीरे लमारने लगता है. लमराते लमराते लार का तार टूट जाता है. रवि ये दृश्या तक ताकि लगाए देख रहा था. रवि का लंड मानो अब पेंट फार के बाहर आ जाने वाला था.
रवि तुरंत घूँट जाता हैं अपना उभरा हुआ लंड छुपाने के लिए और थॅंक यू माँ बोलता हुआ कमरे से निकल कर सीढ़ियो से नीचे जाने लगता है. आधी सीढ़ियाँ उतरा ही था की वो रुक जाता है.

रवि अपने उस उंगली को देखता है, उसपे प्रिया का मुँह का लार लगा हुआ था. पूरा गीला था वो उंगली. रवि उस उंगली को अपने मुँह में डाल लेता है और उसकी आँखे बंद हो जाती हैं.

रवि धीरे से फिर आँख खोलता है और बिना उस उंगली को अपने मुँह से बाहर निकले सीढ़िया उतार के नीचे आ जाता है. नीचे के टल्ले से मैं गाते के बाहर वो वैसा ही मुँह में अपनी उंगली डाले चलता चला जाता है तेज़ी में अपने घर की ओर.