एक भयानक आदमी – Indian Sex Thriller

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sexy
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Re: एक भयानक आदमी – Indian Sex Thriller

Unread post by sexy » 06 Oct 2015 11:19

“मैं तैयार हूँ.”

“बाहर निकालने का दरवाज़ा तो लॉक्ड होगा?”

“नहीं लॉक्ड नहीं है.”

“तो फिर उन के आने पर दरवाज़ा कोन खोलेगा? क्या तुम जागती रहोगी?”

“नहीं……..वो खुद खोल लेंगे…..और इस का तरीका उन के अलावा और किसी को नहीं मालूम.”

“क्या ये इमारात ‘हर्षफ़ीएल्ड फिशरीस‚ वालों की है?” इमरान ने पुचछा और लड़की ने हाँ मे सर हिला दिया.

“ये इमारात जेम्ज़ स्ट्रीट मे है ना?” इमरान ने पुचछा और इसका जवाब भी हाँ मे ही मिला. इमरान संतुष्ट हो गया की ये वही इमारात है जिस का सुराग उसे फोटोग्राफर के पिच्छा करने पर मिला था.

वो कुच्छ पल कुच्छ सोचता रहा, फिर बोला, “तुम मुझे धोका नहीं दे सकतीं…….अपने कमरे मे जाओ.”

वो चुप छाप वहाँ से निकल कर अपने कमरे मे चली गयी. इमरान उस के पिच्चे था. जैसे ही वो कमरे मे घुसी इमरान ने बाहर से दरवाज़ा बंद कर दिया.

“चुप छाप पड़ी रहना वरना गर्दन सॉफ…..मुझे लड़कियों पर भी रहम नहीं आता.” इमरान गुर्रा कर बोला.

अंदर से कोई जवाब ना मिला. इमरान आगे बढ़ा. वो बड़ी तेज़ी से इमारात का निरीक्षण कराता फिर रहा था. बाहर के सभी दरवाज़ों को ट्राइ किया……लेकिन उन्हने खोलने मे कामयाब नहीं हो सका. एक कमरे मे उसे हथियारों का भंडार दिखाई दिया. दरवाज़ा लॉक्ड नहीं था. शायद यहाँ से जाते समय उन्होने कुच्छ हथियार लिया था…..और जल्दी मे कमरे को लॉक्ड नहीं किए थे. इमरान ने एक टॉमी गुण उठा कर उसे लोड किया और कमरे से बाहर निकल गया. तोंहता टोमी गुण उस के हाथ मे थी.

लेकिन अगर कोई दूसरा उसे इस हाल मे देखता तो एकदम पागल समझता. होना ये चाहिए था की इमरान फोन पर पुलिस से संपर्क कर के इमारात का घेराव करा लेता. यहाँ फोन मौजूद था. इमरान चाहता तो उसे इस्तेमाल कर सकता था. मगर उस ने ऐसा ना किया. वो किसी शिकारी कुत्ते की तरह इमारात का कोना कोना सूंघटा फिर रहा था. उसे अपराधियों की वापसी की भी चिंता नहीं थी. अब वो उन के अपराधों क्यनक आद्मीो जान चुका था…..और एबीसी होटेल के करीब वाले वीरने पर भयानक आदमी की हुकूमत का मकसद भी पता चल गया था.

कुच्छ देर बाद वो फिर उसी कमरे के सामने पहुँच गया उसे क़ैद किया गया था. उस लड़की के कमरे की तरफ देखा…..दरवाज़ा वैसे ही बंद था. अंदर रौशनी ज़रूर थी लेकिन किसी किस्म की आवाज़ नहीं सुनाई दे रही थी.

इमरात के एक भाग मे एक डरबे मे उसे बतखें(डक्स) दिखाई दिए थे जिन मे से एक वो पकड़ लाया था. वो कमरे मे प्रवेश किया. टॉमी गुण मेज़ पर रख दी. रस्सी अभी तक चाट मे लगे कड़े से लटक रही थी.

कुच्छ पल बाद इमरान बतख को ज़बाह कर रहा था. कुच्छ खून फर्श पर फैल गया और कुच्छ उस ने सावधानी से एक ग्लास मे जमा कर लिया.

***

ठीक 3 बजे इमारात का मैं गाते खुला…..और दस आदमी अंदर आए. उन मे केवल एक का चेहरा नक़ाब मे चुपा हुआ था. बाकी 9 आदमी बेनक़ाब थे.. उन के चेहरों से थकावट झलक रहे थे.

लेकिन क़ैदी के कमरे के सामने रौशनी देख कर उन के चेहरों से थकावट के भाव एक पल मे गायब हो गये. खुले हुए दरवाज़े से रौशनी बाहर बरामदे मे फैल रही थी.

उन का नक़ाब-पॉश सरगना बे-तहाशा भागता हुआ कमरे मे जा घुसा और फिर उस की आँखें हैरात से फैल गयीं. कमरा खाली था. चाट से एक खों से भारी रस्सी लटकी हुई थी……और फर्श पर भी खून दिखाई दे रहा था.

फिर खून के छ्होटे छ्होटे धब्बे उस जगह से दरवाज़े तक चले गये थे. वो दरवाज़ा की तरफ झपटा. उस के बाकी 9 साथी अवाक से दरवाज़ा के सामने खड़े थे.

खून के अनगिनत छ्होटे छ्होटे धब्बे दरवाज़ा के बाहर बरामदे मे भी थे. वो सब उन्हें देखते हुए आगे बढ़ते गये.

अब धब्बों का रुख़ हथियार वाले कमरे की तरफ हो गया था. उन मे से एक ने जेब से टॉर्च निकाली क्यों की इस राहदारी मे अंधेरा था. उन्हें हथियारों के भंडार वाले कमरे का दरवाज़ा भी खुला हुआ मिला. खून के धब्बे कमरे के भीतर तक चले गये थे. वो सब हरबादी मे अंदर चले गये……..और तभी किसी के मूह से निकला….”अर्रे……बतख….!! ये क्या?”

फिर वो मूड भी नहीं पाए थे की दरवाज़ा बाहर से बंद हो गया. अंधेरे मे इमरान का ठहाका गूँज रहा था.

लेकिन इमरान को इस की खबर नहीं थी की यही अंधेरा जिस से उस ने फ़ायदा उठाया था खुद उसी के लिए ख़तरनाक साहबित हो सकता है.

वो नहीं जानता था की उन का सागना बाहर ही रह गया था.

“क्यों दोस्तो…..अब क्या हाल है?” इमरान ने हांक लगाई.

वो सब अंदर से दरवाज़ा पीतने और शोर मचाने लगे.

इमरान ने फिर कहकहा लगाया. लेकिन ये कहकहा अचानक इस तरह रुक गया जैसे किसी साएकल के पहियों मे अचानक ब्रेक लग गये हों.

किसी ने पिच्चे से उस पर हमला कर दिया था और टॉमी गुण उस के हाथ से निकल कर अंधेरे मे कहीं दूर जा गिरी थी.

हमलावर उन का सरगना था……जो हथियार वाले कमरे मे बंद कर दिए गये थे. जब वो खून के धब्बों को देखते हुए आगे बढ़ रहे थे तो वो क़ैदी वाले कमरे के सामने ही रुक कर कुच्छ सोचने लगा था. बाकी सब हथियार वाले कमरे तक पहुँच गये थे……और वो वहीं खड़ा चिंता भारी निगाहों से चारों तरफ देखता रहा था.

और अब शायद किस्मत इमरान पर ठहाके लगा रही थी. हमला बहुत अप्रात्याशित और ज़ोरदार था. इमरान को बिल्कुल यही लगा जैसे कोई सैकड़ों मन वज़नी चट्टान उस पर आ गिरी हो.

खुद उस का शरीर भी बहुत जानदार था. लेकिन इस हमले ने उस के दाँत खट्टे कर दिए थे. नक़ाब-पॉश उस से लिपट पड़ा था.

इमरान ने उसकी पकड़ से निकलना चाहा लेकिन कामयाब नहीं हो सका.

उस ने उसे कुच्छ इस तरह जाकड़ रखा था की इमरान का दम घुतने लगा था. हथियारों के भदर मे अभी भी शोर जारी था.

“खामोश रहो….” उन के सरगना ने उन्हें दांता. लेकिन उसकी आवाज़ इतनी शांत और ठंडी थी जैसे उस ने किसी ईज़ी चेर पर आराम से पड़े पड़े उन्हें दांता हो.

दूसरी तरफ उस ने इमरान को ज़मीन से उखाड़ दिया था…..और लगातार उसे उपर उठता जा रहा था. इमरान ने उस की टाँगों मे अपनी टाँगें फँसानी चाही…..लेकिन कामयाब नहीं हो पाया. वो उसे उपर उठता जा रहा था.

ये सच थी की इमरान के हवास उस समय जवाब दे गये थे. हमलावर पर मानो किसी प्रकार का जुनून सवार हो गया था. उसे भी शायद इस बात का होश नहीं रह गया था की अब उस की गर्दन आसानी के साथ इमरान की पकड़ मे आ सकती है. वो तो इस चक्कर मे था की इमरान को उठा कर किसी दीवार पर दे मारे……और उसकी हड्डियों का सूरमा बन जाए.

इस प्रकार के ख़तरनाक मुजरिम अगर किसी ख़ास मौके पर इस तारा आवेश मे आ कर अपनी बुद्धि ना गँवा बैठें तो क़ानून बेचारा किसी म्यूज़ीयम के शो-केस की सुंदराता बन कर रह जाए.

अचानक इमरान के हाथ उस की गर्दन से टकराए और डूबते हुए को तिनके का सहारा मिल गया. उस ने बुरी तरह उस की गर्दन दबोच ली और फिर दोनों एक साथ ज़मीन पर आ रहे.

इमरान के हाथों से उस की गर्दन निकल चुकी थी. लेकिन उस ने गिराते गिराते अपनी कोहूनी उस की नाक पर जमा दी……और बाएँ हाथ से इस ज़ोर का घूँसा उसके माथे पर मारा की नक़ाब-पॉश के मूह से एक भयानक चाख निकल गयी.

इमरान इस मौका को हाथ से ना जाने देना चाहता था. वो उस पर लड़ पड़ा और उसके दोनों हाथ पकड़ लिए. नक़ाब पॉश चिट गिरा था……और इमरान उस के सीने पर सवार था. साथ ही वो अपनी पूरी शक्ति उस के हाथ को ज़मीन से लगाए रखने पर खर्च कर रहा था. और वो इस मे किसी हद तक कामयाब भी हो चुका था. मगर ये पोज़िशन भी ख़तरे से खाली नहीं था. इमरान उस की ताक़त का अंदाज़ कर ही चुका था. इसलिए अच्छी तरह समझता था की अगर उसे ज़रा सा भी मौका मिल गया तो उसे गेंद की तरह उच्छाल देगा.

उस ने इसी बौखलाहट मे अपना सर नक़ाब पॉश के चेहरे पर दे मारा. चोट नाक पर पड़ी. नक़ाब-पॉश बिलबिला उठा. फिर तो इमरान के सर ने रुकने का नाम ना लिया. नक़ाब-पॉश की चीखें बहुत भयानक तीन. उस के साथियों ने फिर शोर मचाना शुरू कर दिया था. लेकिन खुद नक़ाब-पॉश की आवाज़ें धीरे धीरे डबती जा रही तीन…..फिर हल्की सिसकियों मे बदल कर शांत हो गयीं.

दूसरे दिन न्यूज़ पेपर्स के ईव्निंग एडिशन की एक कॉप्पी भी किसी होवकर के पास नहीं बची तीन.

एक अख़बार निधी के सामने भी था. और उस की आँखें हैरात से फैली हुई तीन. अली इमरान……..वो सोच रही थी….वही अहमाक़…….वही दिलेर…..सिब का बड़ा ऑफीसर……..उस की सोचों से भी परे……उस ने एक बहुत बड़े अपराधी को उसके साथियों समेत अकेला गिरफ्तार किया था. अपराधी भी कैसा….? जिस ने महीनों बड़े बड़े पुलिस ओफ्फिसेरोन को नाकोन चढ़ने छबवाए थे. जिस का पर्सनल टेलिफोन एक्सचेंज था. शहर मे जिस की कितनी सारी कोठियाँ तीन. एक बहुत बड़ा स्मग्लर था. जिस के काई गोदाआंटी मे पुलिस ने गैर-क़ानूनी ढंग से इम्पोर्ट किया हुआ बेश-कीमती मॅट रिकवर किया था. जो प्रकट मे एक साधारण माचुवारा था……और ‘हेरषफ़ीएल्ड फिशरीस‚ के एक स्टीमर पर नौकर था. वो स्टीमर खुद उसी का था……लेकिन स्टीमर का कॅप्तन उसे अपना अधीन समझता था. हेरषफ़ीएल्ड की फर्म का मालिक वही था लेकिन फर्म का मॅनेजर उस के अस्तित्वा से बेख़बर था.

ज़ाहिर है की एक मामूली से अच्चुवारे को एक बड़ी कंपनी का मॅनेजर क्या जानता. वो उस समय उन सब का मालिक होता था जब उस के चेहरे पर काला नक़ाब होता था. उस समय हेरषफ़ीएल्ड फिशरीस के तीनो स्टीमर मच्चलियों के शिकार करने के बजाए स्मगलिंग का साधन बन जाते थे.

वो साहिल से 50-60 मिले की दूरी से गुज़रने वाले विदेशी शिप्स से उतारा हुआ अवैध माल लोड करते थे…..और फिर किनारे की तरफ लौट आते थे.

सामुद्री पुलिस(कोस्ट-गार्ड्स) को कानो कान खबर भी नहीं होती…..क्यों की माल निचले हिस्से मे होता था और उपरी डेक पर मच्चलियों के ढेर दिखाई देते थे.

ये अख़बार की रिपोर्ट थी. लेकिन वास्तविकता ये थी की सामुद्री पुलिस के लोग हेरषफ़ीएल्ड वालों से बड़ी आस्था रखते थे……इस लिए उन की कड़ी निगरानी का सवाल ही नहीं पैदा होता था.

न्यूज़ मे ये भी था की एबीसी होटेल के सामने वाले वीरने पर उस भयानक आदमी का साम्राज्या क्यों था?

उस की हक़ीकत ये थी की स्मगल किया हुआ माल उसी रास्ते से ख़ुफ़िया गोदाआंटी तक पहुँचाया जाता था. इसलिए रास्ता सॉफ रखने के लिए उस भयानक आदमी ने (जिस का बायन कान आधा कटा हुआ था) वहाँ मार काट का बेज़ार गर्म कर दिया था. जिस का परिणाम ये हुआ की पुलिस को वहाँ ख़तरे का बोर्ड लवाना पड़ा था.

न्यूज़ मे ये बात भी क्लियर कर दी गयी थी की एबीसी होटेल वालों का इस गिरोह से कोई संबंध नहीं था.

निधी बड़ी देर से अख़बार पर नज़र जमाए रही. फिर अचानक किसी की आहत पर चौंक कर दरवाज़े की तरफ मूडी. इमरान सामने खड़ा मुस्कुरा रहा था.

निधी बौखला कर खड़ी हो गयी. उस के चेहरे पर हवाइयाँ उडद रही तीन……और आँखें झुकी हुई तीन.

“पचास भैंसॉं का सौदा हो गया है.” इमरान ने कहा.

निधी कुच्छ ना बोली. उस की आँखों से दो बूँद तपाक कर कपड़ों मे विलीन हो गये. अख़बार पढ़ने से पहले तक वो एक बेवकूफ़ लड़की की तरह इमरान के बड़े मे बहुत कुच्छ सोचती रही थी. और उस ने इन दो दिनों मे इमरान को तलाश करने के सिलसिले मे शहर का कोना कोना छ्चान मारा था.

“तुम रो रही हो…….कमाल है….!” इमरान उस की तरफ बढ़ता हुआ बोला.

“जाइए जाइए………” निधी हाथ उठा कर बोली. “अब मुझ मे बेवकूफ़ बनने की ताक़त नहीं रह गयी.”

“निधी…..निधी….ईमानदारी से कहना….” इमरान एका-एक गंभीर हो गया “क्या मैं तुम से ज़बरदस्ती मिला था?”

“लेकिन अब आप यहाँ क्यों आए हैं?”

“तुम्हारा शुकरिया अदा करने और साथ ही एक बात और भी है. तुम ने एक बार कहा था की तुम अपने वर्तमान जीवन शैली से बेज़ार हो चुकी हो. इसलिए मैं एक मशविरा देने आया हूँ.”

“मशविरा……….मैं जानती हूँ….” निधी रूखे लहजे मे बोली “आप यही कहेंगे की अब बा-इज़्ज़त ढंग से जीवन गुज़ारुन. लेकिन मैं इस सजेशन का एहसान अपने सर पर नहीं लेना चाहती. गिरा हुआ आदमी भी अक्सर ये ज़रूर सोचता है की उसे इज़्ज़त-दार ढंग से ज़िंदगी बसर करनी चाहिए.”

“मैं तुम्हें अपने साथ ले जाना चाहता हूँ.” इमरान ने कहा. “मेरे सेक्षन को एक लेडी स्टाफ की भी ज़रूरात है. सॅलरी अच्छी मिलेगी.”

निधी के चेहरे पर सुन्यू एअर दौड़ गयी. वो कुच्छ पल इमरान के चेहरे पर नज़र जमाए रही फिर बोली “मैं तैयार हूँ.”

“हहा….” इमरान अहमकोन की तरह ठहाका लगाया. “अब मैं अपने साथ एक हज़ार भैंसें ले जा रहा हूँ.”

निधी के होंतों पर फीकी सी मुस्कुराहट फैल गयी.

“तुम सच मच उदास दिखाई दे रही हो.” इमरान ने कहा.

“नहीं तो…..नहीं….” वो ज़बरदस्ती हंस पड़ी.

कुच्छ देर तक खामोशी रही. फिर निधी ने कहा “एक बात कहना है.”

“एक नहीं दस बातें……कुच्छ कहो भी तो.”

“मैं तुम्हारा अदब(रेस्पेक्ट) नहीं करूँगी. तुम्हें बॉस नहीं समझूंगी.”

“तोते कहोगी मुझे…….आन्णन्न्?” इमरान आँखें नाचा कर बोला.

निधी हँसने लगी. लेकिन इस हँसी मे शर्मिंदगी की झलक भी थी.

“आख़िर तुम ने इन्वेस्टिगेशन का कौन सा तरीका अपनाया था? ये बात अब तक मेरी समझ मे ना आ सकी.”

“ये इन्वेस्टिगेशन नहीं था….जुसी….अर्ररर….निधी….आइसे आम बोल चल मे बंडल-बाज़ी कहते हैं. और मैं इसी तरह अपना काम निकालता हूँ. जासोसी की कला जिसे कहते हैं वो बहुत उँची चीज़ है. लेकिन ये केस ऐसा था जिस मे जासूसी की कला झक मार्टी रह जाती. और हक़ीकत ये है की मैं इस केस मे बुरी तरह उल्लू बना हूँ.”

“कैसे…?”

“मैं समझ रहा था की मैं उन्हें उल्लू बना रहा हूँ. लेकिन जब मैं उन के फंदे मे फँस गया तब मुझे एहसास हुआ की मैं उल्लुओं का सरदार हूँ. रूको मैं पूरी बात बता देता हूँ.. मैं वास्तव मे उन पर ये प्रकट करना चाहता था की मैं भी उनहीं की तरह एक बदमाश हूँ…..और जाली नोटों का कारोबार मेरा धनदा है. मुझे आशा थी की मैं इस तरह उन मे घुल मिल सकूँगा. मेरी उम्मीद पूरी हो गयी. उन के सरगना ने मुझे उसी वीरने मे बुलाया था जहाँ पहली बार मुझ पर हमला हुआ था.”

“मगर ये तो बताओ की ये तरीका अपनाने की ज़रूरात ही क्या थी? जब की तुम उन के सरगण को पहले ही जान चुके थे. तुम ने मुझ से कान कटे आदमी के बड़े मे पुच्छ टच्छ की थी या नहीं.”

“की थी. लेकिन उस समय तक मैं नहीं जानता था की सरगना वही है. और फिर केवल जान‚ने से क्या होता है. उस के खिलाफ सबूत उपलब्ध किए बिना मैं उस पर हाथ नहीं डाल सकता था. और सबूत के लिए इस से बेहतर और कोई तरीका नहीं हो सकता था जो मैं ने अपनाना चाहा था. हाँ जब वहाँ पहुँचा तो उन्होने मेरा बैरंग पार्सल बना डाला. सर की वो चोट अभी तक दुख रही है. फिर वो मुझे अपने ठिकाने पर ले गये. और वहाँ मुझे पता चला की वो मेरे बड़े मे कंप्लीट जानकारी रखते हैं.”

फिर इमरान ने अपनी आत्महत्या की कहानी सुनाते हुए कहा “मैं ने रस्सी कमर मे बाँध ली थी और उसे जॅकेट के अंदर से इस तरह गर्दन के सीध मे ले गया था की दूर से फंडा गर्दन मे ही लगा दिखाई दे. हहा……..फिर वो फँस ही गयी….”

“हन…..बस केवल लड़कियों को ही बेवकूफ़ बनाना जानते हो.” निधी मूह बना कर बोली.

“मैं खुद की बेवकूफ़ हूँ निधी……यकीन करो. ये तो अक्सर एक ख़ास किस्म का मूड मुझ पर सवार हो जाता है…..जब मैं दूसरों को बेवकूफ़ नहीं लगता.”

फिर उस ने बतख के खून वाला जोक सुनाया…..और निधी बे-तहाशा हँसने लगी.

“लेकिन….” इमरान बुरा सा मूह बना कर बोला. “यहाँ भी मैं उल्लू बन गया. उस के साथियों को तो मैं ने इस तरह बंद कर दिया था…..लेकिन वो खुद बाहर ही रह गया था……..और फिर कहानी ये है निधी की मैं इमरान हूँ या नहीं यकीन से नहीं कह सकता.”

“क्या मतलब….”

“मैं इमरान का बहोत हूँ. और अगर मैं बहोत नहीं हूँ तो इस पर यकीन आने मे काफ़ी समय लगेगा की सच मच ज़िंदा हूँ. उफ्फॉ….वो कम्बख़्त पता नहीं कितने ‘हॉर्स-पवर‚ का है. मुझे तो बिल्कुल उम्मीद नहीं थी की उस के हाथों ज़िंदा बचूँगा. ये कहो की दिमाग़ कंट्रोल से बाहर नहीं हुआ था……वरना वो मुझे फुट-बॉल की तरह उच्छाल देता.”

इमरान खामोश हो कर चेवींगुँ चबाने लगा.

“अब मुझे विश्वास हो गया की तुम सच मच मूरख हो.”

“हूँ ना….हहा….” इमरान ने ठहाका लगाया.

“बिल्कुल…….दुनिया का कोई अकल्मंद आदमी अकेला उन से निपतने की कोशिश नहीं कराता. तुम्हारे पास बहुत उपाए थे. कमरे से निकालने के बाद तुम पुलिस की मदद हासिल कर सकते थे.

“हन….है तो यही बात. लेकिन उस सूरात मे हमें उन की परच्छाइयाँ भी नहीं मिलती. वो कोई मामूली गिरोह नहीं था निधी. तुम खुद सोचो….पुलिस की भीड़-भाड़…..मी गोद….सारा खेल चौपट हो जाता. उफ्फो…..एनीवे….मैं इतना ज़रूर कहूँगा की इस बड़े मे डॅडी मुझ से ज़रूर एक्सप्लनेशन माँगेंगे……और फिर शायद मुझे इस्तीफ़ा ही देना पड़े.”

“तो फिर मुझे क्यों साथ ले जा रहे हो?”

“परवाह मत करो. जासूसी नॉवाले्स छ्चापने का धनदा कर लेंगे. तुम उन्हें ठेले पर सज़ा कर फेरी करना. और मैं एजेंट्स को लिखा करूँगा की हम एक किताब के ऑर्डर पर भी आप को सौ पर्सेंट कमिशन देंगे. और किताब का टाइटल पेज एक महीना पहले ही आप की सेवा मे भेज दी जाएगी. आप का दिल चाहे तो आप केवल कवर पेज ही 1 मे सेल कर के किताब को रद्दी वाले के गले मंध सकते हैं…..इत्यादि….इत्यादि…..हुपप्प्प्प्प…….”


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