एक भयानक आदमी – Indian Sex Thriller

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Re: एक भयानक आदमी – Indian Sex Thriller

Unread post by sexy » 06 Oct 2015 11:16

“नहीं…….पड़ोस मे है और फिने भी है.”

“ज़रा लाओ तो डाइरेक्टरी?” इमरान ने कहा.

“तुम भी साथ चलो.”

“श……….चलो.”

वो दोनों बाहर निकले. निधी बराबर वाले फ्लॅट मे चली गयी और इमरान बाहर उस का इंतेज़ार कराता रहा.

5 मिनूट बाद निधी बाहर आई.

वापसी पर भी निधी ने बहुत सतर्कता से दरवाज़ा बंद किया. डाइरेक्टरी मे सिक्स नोट की तलाश शुरू हो गयी. ये नंबर कहीं ना मिला.

“मुझे तो ये बकवास ही लगता है.” निधी बोली “हो सकता है की ये लेटर किसी और ने मुझे डराने के लिए भेजा हो.”

“मगर इन घतनाओं से और कोन वाकिफ़ है?”

“क्यों………..कल जब तुम पर हमला हुआ था तो होटेल मे दर्जनों आदमी मौजूद थे……और ज़ाहिर है की तुम ही मुझे अपने कंधे पर उठा कर होटेल तक ले गये थे. तुम मेरे ही पास से उठ कर कसीनो मे भी गये थे.”

इमरान खामोश रहा और कुच्छ सोच रहा था. फिर कुच्छ पल बाद उस ने कहा “हम रात का खाना किसी शानदार होटेल मे खाएँगे.”

“फिर वही पागलपन. नहीं हम इस समय कहीं नहीं जाएँगे.” निधी ने कठोराता से कहा.

“तुम्हें चलना पड़ेगा…….वरना मुझे रात भर नींद नहीं आएगी.”

“क्यों…..नींद क्यों नहीं आएगी?”

“कुच्छ नहीं….” इमरान गंभीराता से बोला “बस यही सोच कर कुढता रहूँगा की तुम मेरी हो कोन……जो मेरा कहा मन लॉगी.”

निधी उसे गौर से देखने लगी. “क्या सच मच तुम्हें इस से दुख पहुँचेगा?” उस ने धीरे से पुचछा.

“जब मेरी कोई इच्छा पूरी नहीं होती तो मेरा दिल चाहता है की फूट फूट कर रोऊँ.” इमरान ने बड़ी मासूमियत से कहा.

निधी फिर उसे गौर से देखने लगी. इमरान के चेहरे पर मूरखता फैल गयी थी.

“ओक……मैं चलूंगी.” निधी ने धीरे से कहा और इमरान की आँखें मसरूर बच्चों की आँखों की तरह चमकने लगी.

थोड़ी देर बाद निधी तैयार हो कर निकली और इमरान को इस तरह देखने लगी जैसे हुस्न की अंकल माँग रही हो.

इमरान ने बुरा सा मूह बना कर कहा “तुम से अच्छा मेक-उप तो मैं कर सकता हूँ.”

“तूमम्म….!!”

“हन…..क्यों नहीं. अच्छा फिर कभी. अब हमें बाहर चलना चाहिए.”

“तुम बेमतलब मुझे चिढ़ाते हो.” निधी झुंझला कर बोली.

“अफ़सोस की तुम्हें उर्दू नहीं आती वरना मैं कहता….. उन को आता है प्यार पर गुस्सा; हम ही कर बैठे थे ग़ालिब पेश दस्ती एक दिन.”

[दोस्तो…….यहाँ इमरान ने ग़ालिब की शायरी की ऐसी तैसी कर डाली है.]

“चलो बकवास मत करो.” वो इमरान को दरवाज़े की तरफ धकेलते हुए बोली.

निधी इस समय सच मच हसीन लग रही थी. इमरान ने नीचे उतार कर एक टॅक्सी की और वो दोनों “वाइट मार्बल” के लिए निकल पड़े. ये यहाँ का सब से बड़ा और शानदार होटेल था.

“निधी क्यों ना मैं उसे फोन करूँ.” इमरान बोला.

“मगर डाइरेक्टरी मे नंबर कहाँ मिला. नहीं डियर……किसी ने मज़ाक किया है मुझ से.”

“मैं ऐसा नहीं समझता.”

“तुम्हारी समझ ही कब इस लायक है…..की कुच्छ समझ सको.”

“मैं कहता हूँ सिक्स नोट ***** पर डाइयल करो. अगर जवाब ना मिले तो अपने कान उखाड़ लेना…..अरे नहीं…..मेरे कान.”

“मगर मैं कहूँगी क्या?”

“सुनो…….रास्ते मे किसी पब्लिक बूत से फोन करेंगे. तुम कहना की वो एक पागल रईस-ज़डा है. कहीं बाहर से आया है. लेकिन आज एक मुश्किल मे फँस गया है. रिश्वत दे कर किसी तरह से जान च्चुदाई. उस के पास ग़लती से कुच्छ जाली नोट आ गये हैं……..जिन्हें चलता हुआ आज पकड़ा गया था.”

“जाली नोट…..!” निधी ने घबरा कर कहा.

“हन निधी ये सही है….” इमरान ने दर्द भारी आवाज़ मे कहा “आज मैं बाल बाल बचा…..वरना जैल मे होता. मेरे नोटों मे कुच्छ जाली नोट मिक्स हो गये हैं. मैं नहीं जानता की वो कहाँ से आए हैं.”

“लेकिन कहीं वो उनहीं पॅकेट्स के तो नहीं जो तुम ने उस से पिच्छली रात छ्चीने थे.”

“पता नहीं.” इमरान निराश स्वर मे बोला “मुझ से हिमाकत ये हुई की मैं ने उन नोटों को दूसरे नोटों मे मिला दिया है.”

“तुम मुझे सच क्यों नहीं बताते की तुम कोन हो?” निधी भिन्ना कर बोली.

“मैं ने सब कुच्छ बता दिया है निधी.”

“यानी तुम सच मच अहमक हो….”

“तुम बात बात पर मेरी तौहीन कराती हो.” इमरान बिगड़ गया.

“अरे नहीं नहीं….” निधी उस के सर पर हाथ फेराती हुई बोली “अच्छा जाली नोटों का क्या मामला है?”

“मैं तो कहता हूँ की ये उसी लड़की की हरकत है जो मुझे रेलवे स्टेशन के वेटिंग रूम मे मिली थी. उस ने असली नोटों के पॅकेट्स गायब कर के जाली नोट रख दिए और फिर मुझे एबीसी होटेल मे मिलने केलिए बुलाया. मेरा दावा है की वो उसी अग्यात आदमी की एजेंट थी. और अब मैं ये सोच रहा हूँ की पिच्छली रात मैं ने जो पॅकेट छ्चीने हैं वो वास्तव मे मैं ने छ्चीने नहीं बल्कि वो खुद ही मेरे हवाले कर गया है. जानती हो इस का क्या मतलब हुआ. यानी जो पॅकेट अब भी उस के पास हैं वो असली नोटों के हैं. इसका मतलब वो फिर मुझ से असली ही नोट ले गया है और जाली मेरे सर तोप गया.”

“अच्छा वो नोट जो तुम जुवे मे हारे थे….” निधी ने पुचछा.

उन के बड़े मे भी मैं कुच्छ नहीं कह सकता. हो सकता है की जाली हों……या उन मे भी कुच्छ असली नोट चले गये हों. अब तो असली और नकली मिक्स हो कर रह गये हैं. मेरी हिम्मत नहीं पड़ती की उन मे से किसी नोट को हाथ लगओन.”

“मगर उस लड़की ने तुम्हारे नोट किस तरह उसाए होंगे?”

“श….” इमरान की आवाज़ फिर दर्दनाक हो गयी. “मैं बड़ा बाद-नसीब आदमी हूँ……..बल्कि अब मुझे विश्वास हो गया है की मूरख भी हूँ. तुम ठीक कहती हो………हन तो कल सुबह ठंडक ज़्यादा थी ना……मैं ने जॅकेट पहन रखा था और 15-20 पॅकेट्स उस की जेबों मे ठूंस रखे थे.”

“तुम मूरख से भी कुच्छ अधिक लगते हो.” निधी झल्ला कर बोली.

“नहीं सुनो तो. मैं ने अपने हिसाहब से बड़ी अकल्मंदी की थी. एक बार की बात है मेरे चाचा सफ़र कर रहे थे. उनके पास 15 हज़ार रुपये थे…..जो उन्हों ने सूट-केस मे रख छोड़े थे. सूट-केस रास्ते मे कहीं गायब हो गया. तब से मेरी ये आदत है की हमेशा सफ़र मे सारी रकम अपने पास ही रखता हूँ. पहले कभी ऐसा धोका नहीं खाया…..ये पहली चोट है.”

“लेकिन आख़िर उस लड़की ने तुम पर किस तरह हाथ सॉफ किया?”

“ये मत पुच्च्ो…..मैं बिल्कुल उल्लू हूँ.”

“मैं जानती हूँ की तुम उल्लू हो…..लेकिन मैं ज़रूर पुच्हूँगी.”

“अरे…..उस ने मुझे उल्लू बनाया था. कहने लगी तुम्हारी शकल मेरे दोस्त से बहुत मिलती है जो पिच्छले साल एक दुर्घतना का शिकार हो कर मार गया. मैं उसे बहुत चाहती थी…..बस पंद्रह मिनूत्स मे बेठाकल्लूफ हो गयी. मैं कुच्छ तका सा था. कहने लगी क्या तुम बीमार हो. मैं ने कहा नहीं सर मे दर्द है. बोली लाओ चम्पी कर दूं……चम्पी समझती हो?”

“नहीं मैं नहीं जानती.” निधी ने कहा.

इमरान उस के सर पर चम्पी करने लगा.

“हटो….मेरे बाल बिगाड़ रहे हो.” निधी उस का हाथ झटक कर बोली.

“हन तो वो चम्पी कराती रही और मैं वेटिंग रूम की ईज़ी चेर पर सो गया. फिर शायद आधे गहनते बाद आँख खुली. वो बराबर चम्पी किए जा रही थी. सच कहता हूँ उस समय वो मुझे बहुत अच्छी लग रही थी और मेरा दिल चाह रहा था की वो इसी तरह सारी ज़िंदगी चम्पी किए जाए….फिर एबीसी होटेल मे मिलने का वादा कर के मुझ से हमेशा के लिए जुड़ा हो गयी.”

इमरान की आवाज़ काँपने लगी थी. ऐसा लग रहा था जैसे वो अब रो देगा.

“हाएन्न…….बुद्धू…..तुम उसके लिए रो रहे हो जिस ने तुम्हें लूट लिया.” निधी हंस पड़ी.

“श…..मैं रो रहा हूँ.” इमरान अपने दोनों गालों पर थप्पड़ माराता हुआ बोला, “नहीं मैं गुस्से मे हूँ. जहाँ वो मिली उस का गला घोंट दूँगा.”

“बस करो मेरे शेर……..बस करो.” निधी उस का कंधा तपकते हुए बोली.

“अब तुम मेरा मज़ाक उसा रही हो.” इमरान बिगड़ गया.

“नहीं……मुझे तुम से हमदर्दी है. लेकिन मैं सोच रही हूँ की अगर जुवे मे भी तुम जाली नोट हारे हो तो अब वहाँ जाना भी कठिन होगा. हुच्छ आश्चर्या नहीं की मुझे उसके लिए भी भुगतना पड़े.”

“नहीं…..तुम परवाह ना करो. तुम्हारा कोई बाल भी बाका नहीं कर सकता. मैं लाखों रुपये खर्च कर दूँगा.”

निधी कुच्छ ना बोली. वो कुच्छ सोच रही थी.

“मेरी समझ से यहाँ एक टेलिफोन बूत है.” इमरान ने कहा और ड्राइवर से बोला “गाड़ी रोक दो.”

टॅक्सी रुक गयी. निधी और इमरान नीचे उतार गये.

बूत खाली था. निधी ने एक बार फिर इमरान से पुचछा की उसे क्या कहना है. इमरान ने इस बड़े मे कुच्छ देर पहले कहे हुए सेंटेन्स दुहरा दिए. निधी फोन मे काय्न्स डाल कर नंबर डाइयल करने लगी और फिर इमरान ने उस के चेहरे पर हैरात के भाव देखे.

वो एक ही साँस मे वो सब दुहरा गयी जो इमरान ने बताया था. फिर खामोश हो कर शायद दूसरी तरफ से बोलने वाले की बात सुनने लगी.

“देखिए….” उस ने थोड़ी देर बाद मौत पीस मे कहा “मुझे जो कुच्छ भी मालूम था मैं ने बता दिया. इस से अधिक मैं कुच्छ भी नहीं जानती. वैसे मुझे भी उस के बड़े मे चिंता है….की उस की असलियत क्या है. प्रकट मे तो वो मूरख और पागल लगता है.”

“आया कहाँ से है?” दूसरी तरफ से आवाज़ आई.

“वो कहता है की दिलावरपूरे से आया हूँ.”

“क्या वो इस समय तुम्हारे पास मौजूद है?”

“नहीं…..बाहर टॅक्सी मे है. मैं एक पब्लिक बूत से बोल रही हूँ. उस से बहाना कर के आई हूँ की अपनी एक फ्रेंड को एक खबर देनी है.”

“कल रात से पहले भी उस से कभी मुलाकात हुई थी?”

“नहीं……कभी नहीं.”

“क्या उसे मेरा लेटर दिखाया था?”

“नहीं….क्या दिखा दूं?” निधी ने पुच्छ लेकिन इस का कोई जवाब नहीं मिला.

दूसरी तरफ से फोन काट चुका था. निधी ने रिसीवर रख दिया. इमरान ने फ़ौरन इनक़ुआरी के नंबर डाइयल किए.

एक भयानक आदमी – 7

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Re: एक भयानक आदमी – Indian Sex Thriller

Unread post by sexy » 06 Oct 2015 11:17

“हेलो….एंक्वाइरी….”

“हेलो.” दूसरी तरफ से आवाज़ आई.

“अभी पब्लिक बूत नो.46 से किसी के नंबर डाइयल किए गये थे. मैं पता चाहता हूँ.”

“आप कोन हैं?”

“मैं सीस्प सिटी हूँ.” इमरान ने कहा.

“श…..शायद आप को ग़लत-फ़हमी हुई है.” दूसरी तरफ से कहा गया. “बूत नो 46 से आधे घंटे से कोई कॉल नहीं हुई.”

“ओक….थॅंक्स.” इमरान ने रिसीवर रख दिया और दोनों बाहर आ गये.

“तुम सीस्प सिटी हो?” निधी हँसने लगी.

“अगर ये ना कहता तो वो कुच्छ भी नहीं बताता.” इमरान बोला.

“लेकिन उस ने बताया क्या?”

“यही की बूत नो 46 से पिच्छले आधे घंटे से कोई कॉल नहीं हुई. मगर निधी तुम ने कमाल कर दिया. जो कुच्छ भी कहना था वही तुम ने भी कह दिया.”

“तुम क्या जानो की उस ने क्या कहा था.”

“तुम्हारे जवाब से मैं उस के सवाल का अनुमान लगा लिया था.”

“तुम केवल लड़कियों के मामले मे बेवकूफ़ लगते हो.”

“तुम खुद बेवकूफ़.” इमरान बिगड़ कर बोला.

“चलो चलो….” वो उसे टॅक्सी की तरफ धकेलते हुए बोली.

“नहीं……तुम बार बार मुझे बेवकूफ़ कह कर चिढ़ाती हो.”

कुच्छ देर बाद निधी ने कहा “उसकी आवाज़ भी अजीब थी. ऐसा लग रहा था जैसे कोई भूका भेड़िया गुर्रा रहा हो…………..मगर ये कैसे संभव है….एक्सचेंज को इसकी सूचना तक ना हुई.”

“उहह…….मारी गोली. हमें करना ही क्या है.” इमरान ने गर्दन झटक कर कहा. “मुझे तो अब उस लड़की की तलाश है जिस ने मेरे नोटों मे घपला किया था.”

“नहीं इमरान….” निधी बोली “ये विचित्रा इन्फर्मेशन पुलिस के लिए काफ़ी इंट्रेस्टिंग होगी….”

“कोन सी इन्फर्मेशन?”

“यही की सिक्स नोट***** को रिंग किया जाता है. कॉल होती है और टेलिफोन एक्सचेंज को इस की खबर नहीं होती.”

“आए निधी…….खबरदार…..किसी से इसकी चर्चा मत करना. क्या तुम सच मच अपनी गर्दन तुड़वाना चाहती हो. अगर पुलिस तक ये खबर गयी तो समझ लो मैं और तुम दोनों ख़त्म कर दिए जाएँगे. वो कोई साधारण चोर या उचक्का नहीं लगता. हन…..मैं ने सैकड़ों जासूसी नॉवाले्स पढ़े हैं. एक नॉवाले मे पढ़ा था की एक बहुत बड़े करिमिनल ने अपना पर्सनल टेलिफोन एक्सचेंज बना रखा था……और सरकारी एक्सचेंज को इसकी हवा भी नहीं लगी थी.”

“तो तुम अब इसी से दर गये हो?”

“डरा तो नहीं हूँ……मगर मैं क्या बताओन. मैं ने जासूसी नॉवाले मे पढ़ा था की वो आदमी हर जगह मौजूद रहता था…..जहाँ नाम लो वहीं हाज़िर……” इमरान अपना मूह पीतने लगा…..और निधी हँसने लगी. काफ़ी देर तक हँसती रही. फिर अचानक चौंक कर सीधी बैठ गयी. वो हैरात से चारों तरफ देख रही थी.

“तुम होश मे हो या नहीं?” उस ने इमरान की तरफ झुक कर धीरे से कहा “हम शहर मे नहीं हैं….”

इमरान आँखें फाड़ फाड़ कर बाहर देखने लगा. कार वास्तव मे एक अंधेरी सड़क पर दौड़ रही थी……और दोनों तरफ दूर दूर तकहनेतों और मैदानों के अलावा कुच्छ नहीं थे.

“प्यारे ड्राइवर गाड़ी रोक दो.” इमरान ने ड्राइवर से कहा. लेकिन दूसरे ही पल उसे अपनी पिच्चे शीशा टूतने का च्चानाका सुनाई दिया और साथ ही कोई ठंडी सी चीज़ उस की गर्दन से चिपक कर रह गयी.

“खबरदार…….चुप छाप बैठे रहो.” उस ने अपने कान के निकट ही किसी को कहते सुना “तुम्हारी गर्दन मे च्छेद हो जाएगा……और लड़की तुम दूसरी तरफ खिशकजाओ.”

टॅक्सी पूरेाने मॉडेल की थी. इसकी दिक्क़ी बीच से उपर की तरफ खुलती थी. शायद शुरू ही से ये आदमी दिक्क़ी मे चुपा हुआ था. जंगल मे पहुँच कर उस ने दिक्क़ी खोली और कार का पिच्छला शीशा तोड़ कर रिवॉलव इमरान की गर्दन पर रख दी.

निधी भयभीत निगाहों से उस चौड़े चाकले हाथ को देख रही थी जिस मे रिवॉलव दबा हुआ था.

इमरान तो हिला भी नहीं था. वो किसी पत्थर की मूरात की तरह स्थिर दिखाई दे रहा था. यहाँ तक की उस की पलकें भी नहीं झपक रही तीन. कार वैसे ही फ़र्राटे भाराती रही. ऋषि पर बेहोशी छ्छा रही थी. उसे ऐसा लग रहा था जैसे कार पाताल की तरफ जा रही हो. उस की आँखें बंद होती जा रही तीन.

अचानक उस ने एक चीख सुनी…..बिल्कुल अपने कान के करीब और बौखला कर अपनी आँखें खोल दिन. इमरान कार के पिच्छले शीशे के टूतने से पैदा होने वाली गॅप से अंधेरे मे घूर रहा था और रिवॉलव उस के हाथ मे था.

“ड्राइवर गाड़ी रोको.” इमरान ने रिवॉलव उसकी तरफ कर के कहा.

ड्राइवर ने पलट कर देखा तक नहीं.

“मैं तुम से कह रहा हूँ.” उस ने इस बार रिवॉलव का दस्ता ड्राइवर के सर पर दे मारा. ड्राइवर एक गंदी सी गाली दे कर पलटा लेकिन रिवॉलव का रुख़ अपनी तरफ देख कर हैरान रह गया.

“गाड़ी रोक दो प्यारे….” इमरान उसे चुमकार कर बोला. “तुम्हारे साथी की रीढ़ की हड्डी ज़रूर टूट गयी होगी……क्यों की कार की रफ़्तार बहुत तेज़ थी.”

“कार रुक गयी.

“शाबास…” इमरान धीरे से बोला. “अब तुम्हें राग भैरवी सूनओन या दूरगत…..या जो भी उसे कहते हो…….ध्रुप़ड़ कहते हैं शायद. लेकिन पढ़े लिखे लोग अक्सर ड्रप़ड़ कहते हैं.”

ड्राइवर कुच्छ ना बोला. वो सुख रहे होंतों पर ज़ुबान फेराता रहा.

“निधी. इसके गले से टीए खोल लो.” इमरान ने निधी से कहा.

***

थोड़ी देर बाद कार शहर की तरफ वापस जा रही थी. निधी और इमरान अगली सीट पर थे. इमरान कार ड्राइव कर रहा था. पिच्छली सीट पर ड्राइवर बेबस पड़ा हुआ था. उस के दोनों हाथ पीठ पर उसी की टीए से बँधे हुए थे और पैरों क्प जकड़ने के लिए इमरान ने अपनी बेल्ट इस्तेमाल की थी……और उस के मूह मे 2 रुमाल कंठ तक ठूंस दिए गये थे.

सीट के नीचे एक लाश थी जिस का चेहरा भुर्ता हो गया था.

खिड़कियों के शीशों पर काला परदा खींच दिया गया था.

निधी ऐसे खोमोश थी जैसे उस की अपनी ज़िंदगी भी ख़तरे मे हो.

वो काफ़ी देर से कुच्छ बोलने की कोशिश कर रही थी मगर अभी तक उसे कामयाबी नहीं मिली थी. लेकिन कब तक? कार मे पड़ी हुई लाश उसे पागलों की तरह चीखने पर मजबूर कर रही थी.

“मेरा ख़याल है की अब तुम सीधे कोतवाली चलो.” निधी ने कहा.

“अर्रे बाप रे….” इमरान भयभीत धनग से बर्बदाया.

“नहीं तुम्हें चलना पड़ेगा. कुच्छ नहीं…..कोई खास बात नहीं. हम जो कुच्छ भी बयान देंगे वो ग़लत नहीं होगा. तुम ने अपनी जान बचाने के लिए उसे नीचे गिराया था.”

“वो तो सब ठीक है……मगर पुलिस का चक्कर….नहीं…..ये मेरे वॉश का रोग नहीं.”

“फिर लाश का क्या होगा? तुम ने उसे वहाँ से उठाया ही क्यों? ड्राइवर को भी वहीं छोड़ आते. कार को हम शहर से बाहर ही छोड़ कर पैदल चले जाते.”

“उस टाइम क्यों नहीं दी थी ये मशविरा.” इमरान गुस्से से बोला “अब क्या हो सकता है. अब तो हम शहर मे प्रवेश कर चुके हैं.”

निधी के हाथ पैर ढीले हो गये. उस ने माथे से पसीना पोचहते हुए कहा “अब भी कुच्छ नहीं हुआ. फिर वहीं वापस चलो.”

“तुम मुझ से अधिक मूरख लगती हो. इस बार अगर 10-5 से मुकाबला हो गया तो मेरा कचूमर बन जाएगा और तुम्हारी जेल्ली.”

“फिर क्या करोगे?”

“देखो…..एक बात सूझ रही है…..मगर तुम्हें ना बताउँगा. और ना तुम फिर कोई ऐसा सजेशन दोगी की मुझे अपनी बुद्धि पर रोना आ जाए.”

निधी खामोश हो गयी. इस लिए नहीं की लाजवाब हो गयी थी बल्कि उसका शरीर बुरी तरह काँप रहा था…….और हलाक मे काँटे पड़ते जा रहे थे.

इमरान कार को शहर के एक ऐसे हिस्से मे लाया जहाँ किराए पर दिए जाने वाले बहुत से गर्रगे थे.

उस ने एक जगह कार रोक दी और उतार कर एक गर्रगे प्राप्त करने के लिए बात चिट करने लगा. उस ने मॅनेजर को बताया की वो टूरिस्ट है. एक होटेल मे ठहरा हुआ है. लेकिन चूँकि वहाँ कारॉन के रखने का कोई इंतेज़ाम नहीं है इसलिए वो यहाँ एक गर्रगे किराया पर लाना चाहता है. बात कोई ख़ास नहीं थी इस लिए उसे गर्रगे हासिल करने मे कठिनाई नहीं हुई. उस ने एक हफ़्ता का किराया अड्वान्स पे कर के गर्रगे की चाभी और रिसीट लिया और फिर कार को गर्रगे मे बंद कर के निधी के साथ टहलता हुआ दूसरी सड़क पर आ गया.

“लेकिन इस का अंजम क्या होगा?” ऋषि बर्बदाई.

“सुबह तक वो ड्राइवर भी मार जाएगा.” इमरान ने बड़ी सादगी से उत्तर दिया.

“तुम बिल्कुल गढ़े हो.” निधी झल्ला गयी.

“नहीं…….अब मैं इतना गढ़ा भी नहीं हूँ. मैं ने अपना सही नाम और पता नहीं लिखवाया है.”

“इस ख़याल मे ना रहना.” निधी ने कड़वे स्वर मे कहा “पुलिस शिकारी कुत्तों की तरह पिच्छा कराती है.”

“चिंता मत करो. एक हफ़्ता तक तो वो गर्रगे खुलना नहीं है. क्यों की मैं ने एक हफ़्ता का अड्वान्स किराया पैड कर दिया है. और फिर एक हफ्ते मे……मैं ना जाने कहाँ हुंगा. हो सकता है मार ही जौन. हो सकता है उस अग्यात आदमी मौत आ जाए. एनीवे……वो अपने दो साथियों को खो ही चुका है.”

निधी कुच्छ ना बोली. उस का सर चकरा रहा था.

इमरान ने एक टॅक्सी रुकवाई. निधी के लिए गाते खोला और फिर खुद भी अंदर बैठता हुआ ड्राइवर से बोला “वाइट मार्बल.”

निधी आँखें फाड़ फाड़ कर उसे देखने लगी.

“हन….” इमरान सर हिला कर बोला “वहीं खाना खाएँगे. कॉफी पिएँगे और तुम 1-2 पेग ले लेना. तबीयत संभाल जाएगी. वैसे अगर चेवींगुँ पसंद करो तो अभी दूं…….और हान्न्न……हम वहाँ दो एक रौंद रामबा भी नाचेंगे.”

“क्या तुम सच मच पागल हो?” निधी धीरे से बोली.

“हाएंन…..कभी अहमाक़ कभी पागल…..अब मैं अपना गला घोंट लूँगा.”

निधी खामोश हो गयी. वो इस बड़े मे बहुत कुच्छ कहना चाहती थी. लेकिन उसे शब्द नहीं मिल रहे थे. मानसिक बिखराव अपनी अंतिम सीमा को च्छू रहे थे.

वो वाइट मार्बल मे पहुँच गये. निधी का दिल चाह रहा था की पागलों की तरह चीखती हुई घर की तरफ भाग जाए.

इमरान उसे एक कॅबिन मे बिठा कर टाय्लेट की तरफ चला गया. टाय्लेट का तो केवल बहाना था. वास्तव मे वो उस कॅबिन मे जाना चाहता था जहाँ पे फोन की सुविधा थी.

उस ने इनस्पेक्टर जॉड के नंबर डाइयल किए.

“हेलो…..कोन? इनस्पेक्टर जॉड से मिलना है. श….आप हैं. सुनिए मैं अली इमरान बोल रहा हूँ……हन…..देखिए….अमीरगंज के गर्रगे नंबर13 मे जो की लॉक्ड है…..आप को नीले रंग की एक कार मिलेगी. उस मे दो शिकार हैं. एक मुर्दा और दूसरा शायद आप को ज़िंदा मिले…..गर्रगे की कुंजी मेरे पास है…..आप सर्च वार्रेंट ले कर जाइए और बे-धड़क टाला तोड़ दीजिए…..एस एस…..ये उसी सिलसिले की एक कड़ी है…..मुझे यकीन है की दोनों उसी के आदमी हैं. और सुनिए काफ़ी राझडारी की ज़रूरात है. इस घतना को गुप्त ही रहना चाहिए. डीटेल आप को कल सुबह मालूम हो जाएगा…..ओक….गुड नाइट.”

इमरान रिसीवर रख कर निधी के पास आ गया.

निधी की हालत अच्छी नहीं थी. इमरान ने खाने से पहले उसे शेरी पिलवाई…..परिणाम किसी हद तक अच्छा ही निकला. निधी के चेहरे पर ताज़गी के लक्षण दिखाई देने लगे. लेकिन फिर भी खाना उसके गले से नीचे नहीं उतार रहा था. वो इमरान को हैरात से देख रही थी……जो खाने पर इस तरह टूट पड़ा था जैसे काई दिन से भूका हो. उसके चेहरे पर वोही हिमाकत च्चाई हुई थी.

“तुम बहुत खामोश हो….?” इमरान ने सर उठाए बिना निधी से कहा.

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Re: एक भयानक आदमी – Indian Sex Thriller

Unread post by sexy » 06 Oct 2015 11:17

निधी कुच्छ ना बोली. कुच्छ देर बाद इमरान ने फिर कहा “रामबा की क्या रही…..मैं डॅन्स के मूड मे हूँ.”

“प्लीज़ मुझे परेशन ना करो.”

“तुम लड़की हो या…….ज़रा मुझे बताओ….क्या मैं उन के हाथों मारा जाता. वो हमें कहीं ले जा कर चतनी बना देते.”

“मैं उस टॉपिक पर बात नहीं करना चाहती.” निधी ने अपनी पेशानी रगड़ती हुई बोली.

“मैं खुद नहीं करना चाहता था. खुद च्छेदती हो और फिर ऐसा लगता है जैसे मुझे खा जाओगी.” “इमरान डियर………..सोचो तो अब क्या होगा.”

“दूसरा भी मार जाएगा……और दो चार दिन बाद लाशों की बदबू फैलेगी तो गर्रगे का टाला थोड़ा जाएगा……और फिर वो पकड़ा जाएगा जिसकी वो कार होगी…..हहा….”

“और जो तुम उन्हें अपनी शकल दिखा आए हो?” निधी भिन्ना कर बोली.

“गर्रगे वालों को….?” इमरान ने पुचछा और निधी ने हाँ मे सर हिला दिया.

इमरान ने कहा….”मगर वो लोग तुम्हारी शकल नहीं देख सके थे. तुम सेफ रहोगी.”

“मैं तुम्हारे लिए कह रही हूँ….” निधी झपट पड़ी.

“मेरी चिंता मत करो……मैं पठान आदमी हूँ. जब तक उस नमलूम आदमी का सफ़ाया ना कर लूँ….इस शहर से नहीं जवँगा……वैसे अब मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकता.”

“क्यों….?” निधी उसे घूर्ने लगी.

“तुम बात बात पर मेरा इन्सल्ट कराती हो…..मूरख पागल और ना जाने क्या क्या कहती रहती हो. खुद बोर होती हो और मुझे भी बोर कराती हो.”

निधी के होंतों पर फीकी सी मुस्कुराहट दिखाई दी.

“तुम मेरे साथ रामबा नचोगी?” इमरान एक एक शब्द पर ज़ोर डालता हुआ बोला.

“हुन्न…..अच्छा…” निधी उठती हुई बोली. “चलो….! लेकिन ये याद रखना…..तुम मुझे आज बहुत परेशन कर रहे हो.”

वो दोनों रिकरियेशन हॉल मे दाखिल हुए. दर्जनों जोड़े डॅन्स कर रहे थे. इमरान और निधी भी उनकी भीड़ मे गायब हो गये.

***

दूसरे दिन इमरान सिब के स्प के ऑफीस मे बैठा हुआ था.

जिस समय वो यहाँ प्रवेश किया था उस के चेहरे पर घनी दाढ़ी थी और चेहरे पर कुच्छ ऐसी पवित्राता की झलक थी की वो कोई नेक दिल पादरी लग रहा था. आँखों पर डार्क ग्लास वाला चश्मा था. दाढ़ी अब भी मौजूद थी लेकिन चश्मा उतार दिया गया था.

स्प वो रिपोर्ट पढ़ रहा था जो इमरान ने पिच्छली रात की घतनाओं के बड़े मे तैयार की थी.

“लेकिन सिर….” स्प ने थोड़ी देर बाद कहा “वो कार चोरी की है. उस की चोरी की रिपोर्ट एक हफ़्ता पहले कोतवाली मे दर्ज कराई गयी थी.”

“ठीक है.” इमरान सर हिला कर बोला. “इस तरह की वारदातों मे ऐसी ही करें इस्तेमाल की जाती हैं. मेरा ख़याल है की यहाँ आए दिन करें चुराई जाती होंगी.”

“आप का ख़याल सही है. लेकिन वो कहीं ना कहीं मिल भी जाती हैं. लेकिन ऐसी किसी कार के साथ किसी आदमी का पकड़ा जाना पहली बार हुआ है.”

“ड्राइवर से आप ने क्या पता किया?” इमरान ने पुचछा.

“कुच्छ भी नहीं. वो कहता है की कल शाम ही को उसकी सेवा ली गयी थी. वो वास्तव मे एक टॅक्सी ड्राइवर है……और उसे केवल टीन घंटे काम करने के लिए 300 रूपीए अड्वान्स दिए गये थे.” (50-60 साल पहले का 300)

“ह्म….तो इस का ये मतलब है की जिस से कुच्छ मालूम होने की आशा की जा सकती थी वो ख़त्म ही हो गया. ओक…..लेकिन ये तो पता किया ही जा सकता है की मरने वाला कोन था. कहाँ रहता था….किस तरह की सोसाइटी से उस का संबंध था.”

“जॉड इस पर काम कर रहा है और मुझे उम्मीद है की वो कामयाब होगा.”

“ओक…..क्या आप ये बात जानते हैं…….मगर नहीं…………खैर……..मैं अभी क्या कह रहा था…” इमरान खामोश हो कर अपने माथे पर उंगली से ठोकर मारने लगा…..वो असल मे स्प से फोन नंबर सिक्स नोट***** के बड़े मे बात करने जा रहा था…..लेकिन कुच्छ सोच कर रुक गया था.

“क्या आप कुच्छ ख़ास बात कहने वाले थे?” स्प ने पुचछा.

“वो भी भूल गया.” इमरान ने सीरियस्ली कहा. फिर उस के चेहरे पर ना जाने कहाँ का गम टूट पड़ा…..और वो ठंडी साँस ले कर दर्दनाक लहजे मे बोला “मैं नहीं जानता की ये कोई बीमारी है या मानसिक कमज़ोरी……अचानक इस तरह दिमागी ट्रॅक बहकति है की मैं कुच्छ देर के लिए सब कुच्छ भूल जाता हूँ. हो सकता है की थोड़ी देर बाद वो बात याद आ ही जाए जो मैं आप से कहना चाहता था.”

स्प उसे टटोलने वाली नज़र से देखने लगा…..लेकिन वो इमरान ही क्या जिस के चेहरे से कोई उसके दिल की हालत जान सके.

फिर उस केस के बड़े मे दोनों मे काफ़ी देर तक बातें होती रहीं. स्प ने उसे बताया की एबीसी होटेल के टीन आदमी जाली नोटों समेत पकड़े गये हैं. इमरान ने नोटों के नंबर माँगे. स्प ने लिस्ट निकाल कर दी.

“नहीं….” इमरान सर हिला कर बोला “इन मे केवल वही नंबर हैं जो मैं होटेल मे हारा था. एक भी ऐसा नंबर दिखाई नहीं देता जो उस आदमी वाले पककेटों से संबंध रखता हो.”

“तब तो हमें मन लेना पड़ेगा की एबीसी वालों का उस से कोई संबंध नहीं. ज़ाहिर है की वो अगर होशियार हो गया था तो उसे एबीसी वालों को भी नोटों के इस्तेमाल से रोक देना चाहिए था.”

“नहीं……..इस के बड़े मे तो कुच्छ कहा ही नहीं जा सकता.” इमरान ने कहा “हो सकता है की संबंध प्रकट ना होने के लिए ही उस ने जान बुझ कर उन लोगों को पुलिस के चंगुल मे दे दिया हो.”

“जी हन….ये भी संभव है.”

“अभी हमें एबीसी वालों को इग्नोर कर देना चाहिए.” इमरान ने कहा.

“लेकिन अब आप क्या करेंगे?”

“ये बठाना बहुत मुश्किल है. मैं पहले से कोई स्कीम नहीं बनता. बस टाइम पर जो सूझ जाए. पिच्छली रात की घतना का रिक्षन क्या होता है…..अब उसी का इंतेज़ार है.”

इस के बाद इमरान वहाँ अधिक देर नहीं बैठा…..क्यों की एक नया विचार उस के दिमाग़ मे सर उभार रहा था. वो वहाँ से निकल कर एक तरफ चलने लगा. लेकिन साथ साथ ये भी चेक कर रहा था की कहीं कोई उसका पिच्छा तो नहीं कर रहा.

उस ने आज भी स्प से निधी की चर्चा नहीं किया था. वो उसे पर्दे के पिच्चे ही रखना चाहता था.

कुच्छ दूर चल कर वो एक टेलिफोन बूत के पास रुक गया. उस ने मूड कर देखा. दूर दूर तक किसी का पता नहीं था. सड़क ज़्यादा चालू नहीं थी. कभी कभार एकाध गाड़ी गुज़र जाती थी या कोई पैदल राही दिखाई दे देता था.

इमरान बूत का दरवाज़ा खोल कर अंदर गया और फिर भीतर से बोल्ट कर के इन्स्ट्रुमेंट मे काय्न डाला. अगले ही पल वो सिक्स ज़ीरो**** डाइयल कर रहा था.

“हेलो….” दूसरी तरफ से एक भारी आवाज़ आई.

“मैं निधी बोल रही हूँ.” इमरान ने मौत पीस मे कहा. अगर इस समय निधी यहाँ मौजूद होती तो उस पर इमरान के मूह से अपनी आवाज़ सुन कर बेहोशी ज़रूर च्छा जाती.

“निधी.”

“हन…..मैं बहुत परेशन हूँ.”

“क्यों?”

“उस ने पिच्छली रात एक आदमी को मार डाला है……वो हमारी टॅक्सी के दिक्क़ी मे चुप गया था. फिर एक जगह उस ने पिच्छला शीशा तोड़ कर हमें रिवॉलव दिखाया. मैं नहीं कह सकती की उसे उस ने किस तरह नीचे गिरा दिया.” इमरान ने पूरी घतना बताते हुए कहा “मैं बहुत परेशन थी. मैं ने उस से कहा की पुलिस को इनफॉर्म कर दे मगर उस ने इनकार कर दिया. मेरी समझ मे नहीं आ रहा था की क्या करूँ. एनीवे……मैं ने घबराहट मे पुलिस को फोन कर दिया की इस नंबर के गर्रगे मे एक लाश है. लेकिन मैं ने ये नहीं बताया की मैं कोन हूँ.”

“उसे पता है की तुम ने पुलिस को इनफॉर्म किया है?”

“नहीं…….मैं ने उसे नहीं बताया. मैं बहुत परेशन हूँ. वो कोई ख़तरनाक आदमी लगता है……..कोन है……..ये मैं नहीं जानती.”

“तुम इस समय कहाँ से बोल रही हो?”

“ये नहीं बतावुँगी. मुझे टीटी….तुम से ब दर लगता है.”

दूसरी तरफ से हल्के से क़हक़हे की आवाज़ आई और बोलने वाले ने कहा “तुम पब्लिक बूत नंबर 24 से बोल रही हो.”

और इमरान की आँखें हैरात से फैल गयीं.

“मैं जा रही हूँ.” उस ने घबराए हुए स्वर मे कहा.

“नहीं…….ठहरो….इसी मे तुम्हारी भलाई है. वरना जानती हो की क्या होगा? अगर पुलिस के हटते चढ़ गयीं तो………….मेरा तुम से कोई झगड़ा नहीं……बल्कि काई बार अंजाने मे तुम मेरे काम भी आ चुकी हो. मैं तुम्हें इस जंजाल से बचना चाहता हूँ. हाँ तो मैं कह रहा था की तुम बूत के बाहर ठहरो. आधे घंटे के अंदर मेरा आदमी वहाँ पहुँच जाएगा.”

“क्यों…….नहीं नहीं….” इमरान ने इनकार करने वाले स्वर मे कहा. “मैं बिल्कुल बे-कसूर हूँ. मैं क्या करूँ. वो यूँ ही मेरे गले प़ड़ गया है.”

“डरो नहीं निधी….” बोलने वाले ने उसे चुमकार कर कहा. “मैं तुम्हारी हेल्प करना चाहता हूँ. इसी मे तुम्हारी भलाई है.”

“इमरान ने तुरंत कोई जवाब नहीं दिया.

“हेलो….” दूसरी तरफ से आवाज़ आई.

“हेलो….” इमरान ने कपकापाती हुई आवाज़ मे कहा “अच्छा मैं इंतेज़ार करूँगी……लेकिन मुझे यकीन है की ये मेरी ज़िंदगी का आखड़ी दिन है.”

“बहुत दर गयी हो….” ठहाके के साथ बोला गया. “अर्रे….अगर मैं तुम्हें मारना चाहता तो तुम अब तक ज़िंदा ना होतीं. अच्छा तुम वहीं इंतेज़ार करो.”

फोन डिसकनेक्ट हो गया. इमरान बूत से निकल आया. उसके होंतों पर शरारात भारी मुस्कान थी….और दाढ़ी के साथ ये मुस्कुराहट ना जाने क्यों ख़तरनाक लग रही थी.

आधे घंटे तक उसे इंतेज़ार करना था. वो टहलता हुआ सड़क के दूसरी तरफ चला गया. इधर कुच्छ च्चाया-दार पेड़ थे.

निधी का इंतेज़ाम उस ने पिच्छली रात ही कर कर लिया था. वो इस समय एक साधारण से होटेल के एक कमरे मे ठहरी हुई थी…….और इमरान ने पिच्छली रात उसी के फ्लॅट मे गुज़ारी थी.

वो पेड़ों के नीचे टहलता रहा. बार बार उस की निगाह रिस्ट वॉच की तरफ उठ जाती थी. 20 मिनूत्स बीते. अब वो फिर बूत की तरफ जा रहा था.

अधिक देर नहीं बीती थी की उस ने महसूस किया की एक कार निकट ही उस के पिच्चे आ कर रुकी है.

अचानक इमरान पर खांसियों का दौरा पड़ा. वो पेट दबाए हुए झुक कर खाँसने लगा. फिर सीधा खड़ा हो कर बूत की तरफ मुक्का लहराता हुआ करोध भरे स्वर मे कहा “साली……कभी तो बाहर निकलोगी.”

“क्या बात है श्रीमान?” किसी ने पिच्चे से पुचछा.

इमरान चौंक कर मुड़ा. उस से टीन या चार फीट की दूरी पर एक आदमी खड़ा था और सड़क पर एक खाली कार खड़ी थी.

“क्या बताओन भाई….” इमरान इस तरह बोला जैसे खांसियों के दौरे पर कॉंटरोले पाने के चक्कर मे साँसें फूल रही हों. वो कुच्छ पल हांफता रहा फिर बोला “एक घंटे से अंदर बैठी हुई है. मुझे भी एक ज़रूरी फोन करना था. काई बात दरवाज़ा खटखटा चुका हूँ. हर बार यही कह रही है…..एक मिनूट रुकिये. एक मिनूट की ऐसी की तैसी…..एक घंटा हो गया.”

“श…..ठहरिए….मैं देखता हूँ.” आगंतुक आगे बढ़ता हुआ बोला. उस ने हॅंडल घुमा कर दरवाज़ा खोला लेकिन फिर उसे मुड़ना नसीब नहीं हुआ. इमरान का हाथ उस की गर्दन दबोच चुका था. उस ने उसे बूत के अंदर धक्का दे दिया……और खुद भी तूफान की तरह उसे छ्चाप लिया.

बूत का दूर ऑटोमॅटिक था. इस लिए उसे बंद करने की ज़रूरात भी नहीं थी. वो उन दोनों के गुस्ते ही बंद हो चुका था.

फिर ठप्पाड़ों….घूँसों और लातों का तूफान.

हाथ पैर के साथ ही साथ इमरान की ज़ुबान भी चल रही थी.

“मैं निधी, तुम्हारी तुकाई कर रही हूँ मेरी जान. अपने बुलडोग से कह देना की मेरे बाकी के नोट मुझे वापस कर दे वरना एक दिन उसे भी किसी चूहे-दान मे बंद कर के मारूँगा. और वो साली निधी……वो भी मुझे धोका दे गयी. कल रात से गायब है. और बेटा कल रात मैं ने तुम्हारे एक साथी की कमर तोड़ दी है.”

इमरान उस पर अचानक ऐसे टूट पड़ा था की उसे कुच्छ सोचने समझने का मौका ही नहीं मिल सका. फिर ऐसी हालत मे चुप छाप मार खाते रहने के अलावा और क्या हो सकता था.

कुच्छ ही देर मे उस ने हाथ पैर डाल दिए.

इमरान ने उसे कॉलर पकड़ कर उठाया. लेकिन उस के पैर ज़मीन पर टिक नहीं रहे थे.

“देखो बेटा अपने बुलडोग से कह देना की आज रात को मेरे बाकी नोट वापस मिल जाने चाहिए. वो जाली हैं. मैं अभी उन्हें बाज़ार मे नहीं लाना चाहता था. मगर उस कुत्ते के कारण मेरा खेल खराब हो गया. आख़िर वो दूसरों के मामलों मे टाँग अदाने वाला होता कौन है? उसे कहो आज रात मुझे नोट वापस मिलने चाहिए. मैं निधी ही के फ्लॅट मे हूँ. वो मुझ से दर कर कहीं चुप गयी है…….आज रात को………..भूलना मत. मैं निधी के फ्लॅट मे ही मिलूँगा. और ये भी कह देना उस चिड़ीमार से की एबीसी होटेल मे एक पुलिस ऑफीसर मच्चलियों के शिकार के बहाने ठहरा हुआ है. होशियार रहना.”

फिर उस ने उसे खींच कर बूत से बाहर निकाला.

सड़क वीरान पड़ी थी. आगंतुक अगर चाहता तो खुली जगह मे उस से अच्छी तरह निबट सकता था. मगर वास्तविकता ये थी की अब उस मे संघर्ष की शक्ति नहीं रह गयी थी.

इमरान ने उसे स्टेआरिंग के सामने बैठा दिया.

“जाओ……अब दफ़ा हो जाओ.” इमरान ने कहा. “वरना हो सकता है की मुझे तुम पर फिर प्यार आने लगे. अपने बुलडोग तक मेरा संदेश ज़रूर पहुँचा देना. नहीं तो फिर जान लो मुझे…..जहाँ भी अगर अंधेरे या उजाले मे मिल गये……..तुम्हारा ओमलेट बना कर रख दूँगा.”

एक भयानक आदमी – 9

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