एक भयानक आदमी – Indian Sex Thriller

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Re: एक भयानक आदमी – Indian Sex Thriller

Unread post by sexy » 06 Oct 2015 11:15

अहमाक़ ने जेब से रिवॉलव निकाल कर निधी की तरफ बढ़ा दिया……और निधी बे-तहाशा हँसने लगी. रिवॉलव की चन्यू एअर मे पटाखों की रील चढ़ि हुई थी…….और वो साढ़े चार रुपये वाला टॉय रिवॉलव था.

“तोते….” उस ने गंभीराता से कहा “मेरी समझ मे नहीं आता की तुम आदमियों के किस रेवड़ से संबंध रखते हो.”

“देखो तुम बहुत बढ़ी जा रही हो.” अहमाक़ ने गुस्से से कहा. “अभी तक तुम मुझे तोता कहती रही हो. लेकिन मैं कुच्छ नहीं बोला था…..लेकिन अब जानवर कह रही हो.”

“नहीं मैं ने जानवर तो नहीं कहा.”

“फिर रेवड़ का क्या अर्थ होता है. भैंस मेरे डॅडी की कमज़ोरी है मेरी नहीं.”

“फिर भी तुम तोते से बहुत मिलते जुलते हो.” निधी ने उसे च्छेदने वाले ढंग से कहा.

“नहीं हूँ….तुम झूती हो. तुम इसे साहबित नहीं कर सकती की मैं तोते जैसी शकल वाला हूँ.”

“फिर कभी साहबित कर दूँगी. ये बताओ की तूमम…………………….”

बात पूरी कहने से पहले ही वो अचानक चीख पड़ी थी. बराबर से गुज़राती हुई एक कार से फिरे हुआ था.

“रोको……..ड्राइवर रोको…………” अहमाक़ चीखा.

कार एक झटके के साथ रुक गयी. दरिवेर पहले ही भयभीत हो गया था.

दूसरी कार फ़र्राटे भाराती हुई अंधेरे मे गायब हो चुकी थी. अहमाक़ निधी पर झुका हुआ था.

“औरात…..ए….औरात……अर्र्ररर….लड़की, आए लड़की….” वो उसे झंझोड़ रहा था. निधी की आँखें खुली हुई तीन और वो इस तरह हाँफ रही थी जैसे घोंसले से गिरा हुआ चिड़िया का बच्चा हांफता है.

उस के झंझोड़ने पर भी उस के मूह से आवाज़ ना निकली.

“अरे कुच्छ बोलो भी. क्या गोली लगी है?”

निधी ने इनकार मे सर हिला दिया.

ये सच था की वो केवल भयभीत हो गयी थी. उस ने करीब से गुज़राती हुई कार की खिड़की मे शोले की लपक देखी थी…..और फिर फिरे की आवाज़. वरना गोली तो शायद टॅक्सी की चाट पर फिसलती हुई दूसरी तरफ निकल गयी थी.

“ये क्या था साहब?” ड्राइवर ने सहमी हुई आवाज़ मे पुचछा.

“पटाखा….” अहमक सर हिला कर बोला. “मेरे एक नटखट दोस्त ने मज़ाक किया है. चलो आगे बाधाओ….हन, …लेकिन भीतर की लाइट बुझा दो……वरना वो फिर मज़ाक करेगा.”

“फिर वो निधी का कंधा तपकते हुए बोला “घर का पता बताओ……ताकि तुम्हें वहाँ पहुँचा दूं.”

“निधी संभाल कर बैठ गयी. उस की साँसें अब भी चढ़ि हुई तीन.

“क्या ये वही हो सकता है?” अहमक ने धीरे से पुचछा.

“पता नहीं.” निधी हाँफती हुई बोली.

“तो अब ये पर्मनेंट्ली पिच्चे पर्ड गया.” अहमक ने बड़े भोले पं से पुचछा.

“श….तोते…..अब मेरी ज़िंदगी भी ख़तरे मे है.”

“अरे…….तुम्हारी क्यों?”

“वो पागल है. जिस के भी पिच्चे प़ड़ जाता है हर हाल मे मार डालता है. ऐसे केस भी हो चुके हैं की काई लोग उस के पहले हमले मे बच जाने के बाद दूसरे हमले मे मार दिए गये हैं.”

“आख़िर वो है कोन? और क्या चाहता है? रुपये तो छ्चीन चुका….फिर अब क्या चाहिए?”

“मैं नहीं जानती की वो कोन है और क्या चाहता है. लेकिन ये सब कुच्छ तुम्हारी हिमाकत के कारण हुआ है.”

“यानी की तुम चाहती हो की मैं चुप छाप मार जाता.” अहमाक़ ने बड़ी सादगी से पुचछा.

“नहीं तोते……तुम्हें इस तरह अपनी धनी होने का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए था.”

“मुझे क्या पता था की यहाँ के लोग पचास हज़ार जैसी तुकछ राशि पर भी निगाह गाड़ा सकते हैं.”

“तुम उसे तुकच्छ राशि कहते हो…..!!” निधी ने हैरात से कहा. “अरे मैं ने अपनी सारी ज़िंदगी मे इतनी रकम एक साथ नहीं देखी. तोते……..तुम आदमी हो या टकसाल?”

“छोड़ो इस बात को. तुम कह रही थी की तुम खुद को ख़तरे मे महसूस कर रही हो?”

“हन……ये हक़ीकत है.”

“कहो तो मैं ये रात तुम्हारे ही साथ गुज़ारुन?”

“ऑश…..तोते….ज़रूर ज़रूर. एक बात मैं ने ज़रूर मार्क की है. तुम बिल्कुल तोते होने के बाद भी लापरवाह और निडर हो. लेकिन तुम्हारा ये रिवॉलव अभी तक मेरी समझ मे नहीं आया.”

“अच्छा तो फिर मैं तुम्हारे साथ ही चल रहा हूँ. लेकिन क्या तुम्हारे घर पर कुच्छ खाने को मिल सकेगा?”

***

“देखो ये रहा मेरा छ्होटा सा फ्लॅट.” निधी ने कहा.

वो दोनों फ्लॅट मे दाखिल हो चुके थे और अहमाक़ इतने आराम से एक सोफे मे गिर गया था जैसे वो हमेशा से यहीं रहता आया हो.

“ये फ्लॅट मुझे उस हालत मे और अधिक अच्छा लगेगा अगर खाने को कुच्छ मिल जाए.” अहमाक़ ने गंभीराता से कहा.

“उस के लिए तुम्हें मेरा हाथ बठाना होगा. मैं यहाँ अकेली रहती हूँ.”

लगभग एक घंटे बाद वो डाइनिंग टेबल पर थे और अहमाक़ बढ़ बढ़ कर हाथ मार रहा था.

“अब मज़ा आ रहा है.” वो मूह चलता हुआ बोला. “उस होटेल के खाने बड़े वाहियात होते हैं.”

“तोते…..क्या तुम वास्तव मे वैसे ही हो जैसे दिखाई देते हो?” वो उसे गौर से देखते हुए बोली.

“मैं समझा नहीं.”

“कुच्छ नहीं…..मैं ने अभी तक तुम्हारा नाम तो पुचछा ही नहीं.”

“तो पुच्छ लो…..ये कौन सी बड़ी बात है. लेकिन मुझे अपना नाम बिल्कुल पसंद नहीं.”

“क्या नाम है?”

“इमरान……….अली इमरान.”

“क्या करते हो?”

“खर्च कराता हूँ. जब पैसे नहीं होते तो सबर कराता हूँ.”

“पैसे आते कहाँ से हैं?”

“ओवव…” इमरान ठंडी साँस ले कर बोला. “ये बड़ा बे-धाब सवाल है. अगर किसी इंटरव्यू मे पुच्छ लिया जाए तो मुझे नौकरी से मायूस होना पड़े. मैं बचपन से यही सोचता आया हूँ की पैसे कहाँ से आते हैं लेकिन अफ़सोस आज तक इस का जवाब पैदा नहीं कर सका. बचपन मे सोचा कराता था की कालाफ-दार रुपये बिस्कट के पककेटों से निकलते हैं.”

“ह्म….ओक….तुम अपने बड़े मे कुच्छ बठाना नहीं चाहते.”

“अपने बड़े मे मैं ने सब कुच्छ बता दिया है. लेकिन तुम अधिकतर ऐसी ही बातें पुच्छ रही हो जिन का संबंध मुझ से नहीं बल्कि मेरे डॅडी से हो.”

“समझ गयी….यानी की तुम खुद कोई काम नहीं करते हो.”

“अफ….ऑश….ठीक….बिल्कुल ठीक. कभी कभी मेरा दिमाग़ आब्सेंट होता है…..शायद मुझे तुम्हारे सवाल का यही जवाब देना था……अच्छा तुम्हारा क्या नाम है?”

“निधी.”

“वाक़ई….तुम सूरात से ही निधी लगती हो.”

“क्या मतलब?”

“फिर वही मुश्किल सवाल. जो कुच्छ मेरे मूह से निकलता है उसे मैं समझा नहीं सकता. बस यूँ ही पता नहीं क्या बात है. शायद मुझे ये कहना चाहिए था की तुम्हारा नाम भी तुम्हारी ही तरह है. अच्छा बताओ क्या कहेंगे……बड़ी मुश्किल है……अभी वो वर्ड मेरे दिमाग़ मे था……अब गायब हो गया…..” इमरान बेबसी से अपनी पेशानी रगड़ता हुआ बोला.

निधी उसे अजीब नज़रों से देख रही थी. उसकी समझ मे नहीं आ रहा था की उसे क्या समझे. अर्ध-पागल या कोई बहुत बड़ा मक्कार. मगर मक्कार समझने के लिए कोई मुनासिब तर्क उसके पास नहीं था. अगर वो मक्कार होता तो इतनी बड़ी रकम वो इस तरह कैसे गँवा बैठता.

“अब धीरे धीरे मुझे सारी बात समझ मे आ रही हैं.” इमरान ठंडी साँस ले कर बोला. “वो लड़की जो वेटिंग रूम मे मिली थी…..उस बदमाश की एजेंट रही होगी……हन और क्या…….वरना वो मुझे उस होटेल मे क्यों बुलाती…..मगर जूषी…….अर्रर….क्या नाम है तुम्हारा….श निधी…..निधी…..वो लड़की मुझे अच्छी लगती थी……और अब ना जाने क्यों तुम भी अच्छी लगने लगी हो. मुझे बहुत दुख है की मैं ने तुम्हारे कहने के अनुसार नहीं किया……क्या तुम अब मेरी मदद नहीं करोगी?”

निधी बड़े मनमोहक ढंग से मुस्कुराइ.

“मैं किस तरह मादा कर सकती हूँ?”

“देखो निधी…..निधी…..सच मच ये नाम बड़ा अच्छा है…..ऐसा लगता है जैसे ज़ुबान की नोक मिस्री की डाली से जा लगी हो……निधी…..वाह वा….हन तो निधी मैं अपनी खोई हुई रकम वापस लेना चाहता हूँ.”

“नामुमकिन है…..तुम बिल्कुल बच्चों जैसी बातें कर रहे हो. तुम ने वो रकम बॅंक मे नहीं रखवाई थी की वापस मिल जाएगी.”

“कोशिश करे इंसान तो क्या हो नहीं सकता…..आहा….आहाआ…..क्या तुम ने नेपोलियन की ज़िंदगी के हालात नहीं पढ़े?”

“मेरे तोते….” निधी हंस कर बोली “तुम इतनी जल्दी पालने से बाहर क्यों आ गये?”

“मैं मज़ाक के मूड मे नहीं हूँ.” इमरान किसी ज़िद्दी बच्चे की तरह झल्ला कर बोला.

निधी की हँसी तेज़ हो गयी. वो बिल्कुल इसी तरह हंस रही थी जैसे किसी नासमझ बच्चे को चिढ़ा रही हो.

“अच्छा….तो मैं जा रहा हूँ.” इमरान बिगड़ कर उठता हुआ बोला.

“ठहरो…..ठहरो….” वो एका-एक गंभीर हो गयी. “चलो बताओ क्या कह रहे थे.”

“नहीं बताता….” इमरान बैठता हुआ बोला. “मैं किसी से मशविरा लिए बिना ही निबट लूँगा.”

“नहीं…..मुझे बताओ की तुम क्या करना चाहते हो.”

“कितनी बार हलाक फादुन की मैं उस से अपने रुपये वसूल करना चाहता हूँ.”

“खाँ ख़याली है….बचपाना है….” निधी कुच्छ सोचते हुए बोली. “इस इलाक़े मे पुलिस की भी डाल नहीं गली. अंत मे तक हार कर वहाँ ख़तरे का बोर्ड लगाना पड़ा.”

“क्या होटेल वाले भी उस के बड़े मे कुच्छ नहीं जानते?”

“मैं विश्वास से कुच्छ नहीं कह सकती.”

“पुलिस ने उन्हें भी टटोला होगा?”

“क्यों नहीं…..बहुत दिनों तक उस होटेल में पुलिस की एक कॅंप दिन रात तैनात रही है. लेकिन इस के बाद भी वो ख़तरनाक आदमी काम कर ही गुज़राता था.”

“निधी……निधी…..तुम मुझे नहीं रोक सकतीं….” इमरान फिल्आंटी जैसे डाइयलोग बोलने लगा. “मैं उसका सत्यानाश किए बिना यहाँ से नहीं जवँगा.”

“बकवास मत करो.” निधी झुंझला गयी. फिर उस ने कहा “जाओ…..उस कमरे मे सो जाओ. बेड केवल एक है. मैं यहाँ सोफे पर सो जवँगी.”

“नहीं….तुम अपने बेड पर सो जाओ. मैं यहाँ सोफे पर सो जवँगा.” इमरान ने कहा.

इस पर दोनों मे बहस होने लगी. अंत-तह कुच्छ देर बाद इमरान ही को बेडरूम मे जाना पड़ा. निधी वहीं सोफे पर लेट गयी. हल्की सर्दियों का ज़माना था. इसलिए उस ने एक हल्का सा ब्लंकेट अपने पैरों पर डाल लिया. वो अब भी इमरान के बड़े मे ही सोच रही थी. लेकिन उस ख़तनाक और अग्यात आदमी का ख़ौफ़ उस के दिमाग़ पर हावी था.

वो आदमी कोन था…..इस का जवाब शादाब नगर की पुलिस के पास भी नहीं था. उस ने अब तक दर्जनों वारदातें की तीन. लेकिन पुलिस उस तक पहुँचने मे नाकाम रही थी. और फिर सब से अजीब बात ये की एक विशेष एरिया ही उसकी हरकतों का शिकार था. शहर के दूसरे हिस्सों की तरफ वो शायद ही कभी निशाना बनता था.

निधी उस के बड़े मे सोचती रही और उंघति रही. उसे भय था की कहीं वो इधर ही का रुख़ ना करे. इसी लिए उस ने लाइट भी नहीं बुझाई थी. उस के दिमाग़ पर जब भी नींद का झोंका आने लगता उसे ऐसा महसूस होता की उस के कान के पास किसी ने गोली चलाई हो. वो चौंक कर आँख खोल देती.

वॉल क्लॉक 2 बजा रहे थे. अचानक वो बौखला कर उठ बैठी. पता नहीं क्यों उसे लग रहा था जैसे वो ख़तरे मे हो.

वो कुच्छ पल भयभीत निगाहों से इधर उधर देखती रही. फिर सोफे से उठ कर पंजों के बाल चलती हुई उस कमरे के दरवाज़े तक आई जहाँ इमरान सो रहा था.

उस ने दरवाज़े पर हाथ रख कर हल्का सा धक्का दिया. दरवाज़ा खुल गया. लेकिन साथ ही उस की आँखें हैरात से फैल गयीं. बेड खाली पड़ा था और लाइट जल रही थी. उस के दिल की धड़कनें तेज़ हो गयीं……और हलाक सूखने लगा.

अचानक बड़ी तेज़ी से एक ख़याल उस के दिमाग़ मे चकराने लगा. कहीं ये बेवकूफ़ नौजवान ही खौफनाक आदमी का कोई गुरगा ना रहा हो.

वो बेठहाशा बेड के पिच्चे सेफ की तरफ लपकी. उस का हॅंडल पकड़ कर खींचा. सेफ लॉक्ड था. लेकिन वो सोचने लगी…..कीस तो तकिये के नीचे ही रहती हैं. एक बार फिर उस की साँसें तेज़ हो गयीं. उस ने तकिया उलट दिया. कीस ज्यों की त्यों अपनी जगह पर न्यू एअर हुई तीन. लेकिन निधी को संतोष नहीं हुआ. वो सेफ को खोलने लगी. फिर धीरे धीरे उस का मानसिक बिखराव कम होता गया. उसकी सभी कीमती चीज़ें और काश सुरक्षित तीन.

फिर आख़िर वो गया कहाँ? सेफ लॉक कर के वो सीधी खड़ी हो गयी. पिच्चे का गाते खोल कर बाहर निकली तब उसे एहसास हुआ की वो उसी दरवाज़े से निकल गया होगा. दरवाज़ा लॉक्ड नहीं था. हॅंडल घुमाते ही खुल गया था. दूसरी तरफ की राहदारी मे अंधेरा था. वो बाहर निकालने की हिम्मत नहीं कर सकी.उस ने दरवाज़ा बंद कर के अंदर से लॉक कर दिया.

वो फिर उसी कमरे मे आ गयी जहाँ सोफे पर सोई थी. आख़िर वो मूरख इस तरह क्यों चला गया. वो सोचती रही. आख़िर इस तरह भागने की क्या ज़रूरात थी. वो उसे ज़बरदस्ती तो लाई नहीं थी. वो खुद ही आया था. लेकिन क्यों आया था? क्या मकसद था?

अचानक उसे लगा जैसे किसी ने बाहरी गाते पर हाथ मारा हो. वो चौंक कर मूडी मगर इतनी देर मे शीशे के टुकड़े च्चंच्छानाते हुए फर्श पर गिर चुके थे.

फिर टूटे हुए शीशे की जगह से एक हाथ घुस कर चितखनी तलाश करने लगा. बड़ा सा हाथ जो बालों से धक्का हुआ था. निधी के कंठ से एक दबी दबी सी चीख निकली. लेकिन दूसरे ही पल वो हाथ गायब हो गया…….और निधी को ऐसा लगा जैसे बाहर दो आदमी एक दूसरे से हाता पाई कर रहे हों.

निधी बैठी हाँफती रही. फिर उस ने एक दर्द भारी चीख सुनी साथ ही ऐसा लगा जैसे कोई बहुत भारी सी चीज़ ज़मीन पर गिरी हो.

एक भयानक आदमी – 4

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Re: एक भयानक आदमी – Indian Sex Thriller

Unread post by sexy » 06 Oct 2015 11:15

फिर भागते हुए कदआंटी की आवाज़ें सुनाई दी.

और अब एकदम सन्नाटा था. करीब या दूर कहीं से किसी तरह की आवाज़ नहीं आ रही थी. लेकिन निधी के दिमाग़ मे एक ना मितने वाली झाएँ झाएँ की आवाज़ गूँज रही थी. कंठ सुख रहा था और आँखों मे जलन सी होने लगी थी.

वो बिना हीले दुले सिमटी सिंताई सोफे पर बैठी रही. उस की समझ मे नहीं आ रहा था की क्या करे. थोड़ी देर बाद फिर किसी ने दरवाज़ा थपथपाया……और एक बार फिर उसे अपनी रूह शरीर से निकलती हुई महसूस हुई.

“फुशय….फुशय…..अर्ररर….निधी दरवाज़ा खोलो….मैं हूँ इमरान…..”

निधी उठ कर दरवाज़े पर झपटी. अगले ही पल इमरान उस के सामने खड़ा बुरे बुरे से मुहह बना रहा था. उस के चेहरे पर काई जगह हल्की हल्की सी खराशें तीन……और होंतों पर खून फैला हुआ था. निधी ने बेचैनी से उसे अंदर खींच कर दरवाज़ा बंद कर दिया.

“याइ…..ये क्या हुआ……तुम कहाँ थे?”

“टीन पॅकेट मैं ने वसूल कर लिए दो अभी बाकी हैं……फिर सही.” इमरान नोटों के टीन बंड्ल फर्श पर फेंकता हुआ बोला.

“क्या वही था?” निधी ने डरे हुए स्वर मे पुचछा.

“वही था………निकल गया…….दो पॅकेट अभी बाकी हैं.”

“तुम ज़ख़्मी हो गये हो………चलो बाथरूम मे.” निधी उसका हाथ पकड़ कर बाथरूम की तरफ खींचती हुई बोली.

कुच्छ देर बाद वो फिर सोफे पर बैठे एक दूसरे को घूर रहे थे.

“तुम बाहर क्यों चले गये थे?” निधी ने पुचछा.

“मैं तुम्हारी सुरक्षा के लिए आया था ना…..मैं जानता था की वो ज़रूर आएगा. वो आदमी जो बीच सड़क पर फिरे कर सकता है वो मकान के अंदर आने मे क्यों हिचकेगा.”

“क्या तुम वास्तव मे बेवकूफ़ हो?” निधी ने हैरात से पुचछा.

“पता नहीं…..मैं तो खुद को अफ़लातून का अंकला समझता हूँ. मगर दूसरे कहते हैं की मैं बेवकूफ़ हूँ. कहने दो. अपना क्या जाता है. अगर मैं अकल्मंद हूँ तो अपने लिए और अहमाक़ हूँ तो अपने लिए.”

“तो अब वो अग्यात आदमी मेरा भी दुश्मन हो गया.” निधी सूखे होंतों पर ज़ुबान फेराती हुई बोली.

“ज़रूर हो जाएगा. तुम ने क्यों मेरी जान बचाने की कोशिश की थी.”

“श….मगर मैं क्या करूँ. क्या तुम हर समय मेरी हिफ़ाज़त करते रहोगे?”

“दिन को वो इधर का रुख़ ही ना करेगा. रात की ज़िम्मेदारी मैं लेता हूँ.”

“मगर कब तक?”

“जब तक की मैं उसे जान से ना मार दूं.” इमरान बोला.

“तुम……तुम…..आख़िर हो क्या बाला?”

“मैं बाला हूँ….?” इमरान बुरा मन गया.

“ऑश….डियर तुम समझे नहीं.”

“डियर…..यानी की तुम मुझे डियर कह रही हो…..” इमरान खुशी भारी आवाज़ मे चीखा.

“हन….क्यों क्या हर्ज है. क्या हम गहरे दोस्त नहीं हैं.” निधी मुस्कुरा कर बोली.

“मुझे आज तक किसी लड़की ने डियर नहीं कहा.” इमरान दुख भरे स्वर मे कहा.

****

सिब के शादाब नगर ऑफीस मे सब इनस्पेक्टर(सी) जॉड की ख़ासी धाक बैठी हुई थी. वो एक जीनियस नौजवान ऑफीसर था. उसका संबंध तो इन्वेस्टिगेशन डिपार्टमेंट से था. लेकिन उस के करीबी दोस्त अक्सर उसे थानेदार कहा करते थे. कारण ये था की दिमाग़ के साथ साथ वो डंडे का इस्तेमाल को बहुत वॅल्यू देता था. उस का कहना था की आज तक डंडे से अधिक ख़ौफ़-नाक इन्वेस्टिगेटर कोई पैदा नहीं हुआ.

अक्सर शक के आधार पर मुलज़िआंटी की ऐसी मरम्मत कराता की उन्हें च्चती का दूध याद आ जाता.

वो काफ़ी लंबा चौड़ा व्यक्ति था. कितने तो उस की शकल ही देख कर एकबाल-ए-जुर्म कर लेते थे. मगर वो शादाब नगर के उस मुजरिम की शकल भी नहीं देख पाया था जिस ने बंदरगाह एरिया मे बसने वालों की नींद हराम कर न्यू एअर थी.

उस समय सी जॉड अपने डेप्ट्ट. के सूपरिंटेंडेंट के ऑफीस मे बैठा हुआ शायद इस बात का इंतेज़ार कर रहा था की सुप्र. अपना काम ख़त्म कर के उस की तरफ ध्यान दे.

सूपरिंटेंडेंट सर झुकाए कुच्छ लिख रहा था. थोड़ी देर बाद पेन रख कर उस ने एक लंबी अंगड़ाई ली और जॉड की तरफ देख कर मुस्कुराने लगा.

“मैं ने तुम्हें इस लिए बुलाया है की तुम्हें इमरान साहब को असिस्ट करना होगा. इस से बड़ी बेबसी और क्या होगी की हमें सेंट्रल वालों से हेल्प माँगनी पड़ी है.”

“इमरान साहब…..!” जॉड ने हैरात से कहा. “वही ली योका वाले केस से फेमस.”

“वही…..वही….” सूपरिंटेंडेंट सर हिला कर बोला. “वो श्रीमान यहाँ परसों पधर चुके हैं और अभी तक उनकी शकल भी नहीं दिखाई दी है. ये सेंट्रल वाले बड़े चालाक होते हैं. इस का ख़याल रहे की डिपार्टमेंट की बदनामी ना कराना. यहाँ तुम्हारे अलावा और किसी पर मुझे भरोसा नहीं.”

“आप निसचिंत रहें सिर…..मैं पूरी कोशिश करूँगा.”

“खुद से किसी मामले मे आगे नहीं बढ़ना…..जो कुच्छ वो कहे…..करना.”

“ऐसा ही होगा.”

फोन की घंटी बाजी और सूपरिंटेंडेंट ने रेसीएवेर उठाया.

“श…..आप हैं…..जी जी….ओक….रुकिये एक सेकेंड.”

सूपरिंटेंडेंट ने पेन उठा कर अपनी डाइयरी मे कुच्छ लिखा. कुच्छ देर बाद उस ने कहा “तो आप मिल कब रहे हैं…..जी…….अच्छा अच्छा…..ऑल रिघ्त….” उस ने रेसीएवेर रखा और कुच्छ सोचने लगा.

“देखो जॉड…” वो थोड़ी देर बाद बोला…”इमरान साहब का फोन था. उन्होने कुच्छ जाली नोटों के नंबर लिखाए हैं और कहा है की उन नुंबेरों पर कड़ी नज़र न्यू एअर जाए. जिस के पास भी उन नुंबेरों का कोई नोट दिखाई दे उसे तुरंत गिरफ्तार कर लिया जाए. इन नुंबेरों को लिख लो. मगर इस का मतलब क्या है……ये मैं भी नहीं जानता.”

“वो यहाँ कब आएँगे?” जॉड ने पुचछा.

“एक बाज कर दरह मिनूट पर…भाई समझ मे नहीं आता की ये किस किस्म का आदमी है. वैसे जानते हो की ये ‘ऑफीसर ऑन स्पेशल ड्यूटीस‚ है और इस ने अपना सेक्षन बिल्कुल अलग बनाया है……जो डाइरेक्ट ड्ज से संबंध रखता है.”

“मैं ने सुन है की ड्ज साहब उनके पिता हैं.”

“ठीक सुना है लेकिन ये क्या मूरखता है…..एक बाज कर दरह मिनूट.” इमरान रेलवे स्टेशन पर टहल रहा था. उसे अपने अधीनस्थ ऑफीसर हुड-हुड के आने का इंतेज़ार था. हुड-हुड जो हकला कर बोलता था….और बात चीत के दौरान बड़े बड़े शब्द बोलने का शौकीन था.

ट्रेन आई…….और निकल भी गयी. लेकिन हुड-हुड का कहीं पता ना था. इमरान गाते के पास आ कर खड़ा हो गया. भीड़ अधिक थी इसलिए हुड-हुड काफ़ी देर बाद दिखाई दे सका.

“इधर आओ….” इमरान उस का हाथ पकड़ कर वेटिंग रूम की तरफ खींचता हुआ बोला.

हुड-हुड उस के साथ घिसट‚ता चला जा रहा था. वेटिंग रूम मे पहुँच कर उस ने कहा.

“एमेम….मेरे ह….हवास्स ड्ड….दुरुस्त नहीं टीटी…थे….श्रीमान….इसलिए अब….आदाब बजा लाता हूँ….” उस ने बड़े ही आदर भाओ से झुक कर ‘फर्शी-सलाम‚ किया.

“जीते रहो!” इमरान उस के सर पर हाथ फेराता हुआ बोला “क्या तुम इस शहर से परिचित हो?”

“ज्ज….जी हन….एमेम…मेरे बिरादर-ए-निसबती (जोरू का भाई ) का वातन-ए-मालूफ (प्यारा वातन) है.”

“मेरे पास टाइम कम है वरना तुम से बिरादार-ए-निसबती और वातन-ए-मालूफ का अर्थ पुचहता. एनीवे…….तुम यहाँ मच्चलियों के शिकार खेलने के लिए आए हो.”

जीिइई…..!!” हुड-हुड हैरात से आँखें फाड़ता हुआ बोला….”इस बात का एमेम….मतलब एमेम….मेरे ज़हन नासहीन नहीं हुआ…..”

“तुम यहाँ बंदरगाहर्ेआ मे मच्चलियों का शिकार खेलोगे. तुम्हारा स्टे एबीसी होटेल मे होगा. मार्केट से हंटिंग का समान ख़रीदो और चुप छाप वहीं चले जाओ……जाओ और शिकार खेलो.”

“माफ़ कीजिएगा…..ये एमेम….मेरे लिए नामुमकिन है.”

“नामुमकिन क्यों है?” इमरान उसे घूर्ने लगा.

“वालिद-ए-मरहूम की वसीयत…..फ….फरमाते थे ‘शिकार-ए-माही कार-ए-बेकार अस्त.'” (मच्चली का शिकार बेकार लोगों का काम है….(फ़ारसी) )

“मतलब क्या हुआ……मुझे अरबिक नहीं आती.”

“फ….फ़ारसी है ज्ज….जनाब….इस का मतलब हुआ की मच्चली का शिकार खेलना बेकार आदमियों का काम है.”

“अच्छी बात है……….मैं तुम्हें इसी समय नौकरी से डिसमिस किए देता हूँ ताकि तुम आराम से मच्चली का शिकार खेल सको.”

“श…..आप को….सीसी….किस तरह समझाओन.” हुड-हुड ने कहा. फिर समझने की कोशिश मे बहुत देर तक हकलाता रहा. इमरान भी वास्तव मे जल्दी मे नहीं था…..वरना वो इस तरह टाइम बर्बाद नहीं कराता.

“चलो अब जाओ.” वो उसे दरवाज़े की तरफ धकेलटा हुआ बोला. “ये सरकारी काम है. और काम ज़रूरात पड़ने पर बताया जाएगा. भूलना नहीं…..बंदरगाह एरिया मे ही एबीसी होटेल है. तुम्हें वहीं ठहरना है. शिकार का घाट वहाँ से दूर नहीं है. लेकिन खबरदार शाम को 7 बजे के बाद उधर हरगिज़ नहीं जाना.”

हुड-हुड थोड़ी देर तक खड़ा सोचता रहा फिर बोला. “अच्छा जनाब…..मैं जा रहा हूँ….ल्ल…लेकिन मैं नहीं जानता की मच्चलियों के शिकार सीसी…..के लिए मुझे क्या खड़ीदनपडेगा.”

इमरान उसे समान का डीटेल बताता रहा.
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Re: एक भयानक आदमी – Indian Sex Thriller

Unread post by sexy » 06 Oct 2015 11:16

इमरान ठीक एक बाज कर दरह मिनूट पर स्प के ऑफीस मे दाखिल हुआ…….और स्प अपने सामने एक कम उमर नौजवान को खड़ा देख कर हैरात से पलकें झपकाने लगा.

“तशरीफ़ रखिए……….तशरीफ़ रखिए…..” उस ने कहा.

“थॅंक यू….” इमरान बैठता हुआ बोला. इस समय उस के चेहरे पर हिमाकत नहीं बरस रही थी. वो एक अच्छे अट्रॅक्टिव पर्सनॅलिटी का मालिक लग रहा था.

“बौट इंतेज़ार कराया आप ने.” स्प ने उस की तरफ सिगरेट केस बढ़ाते हुवे कहा.

“थॅंक्स…..मैं सिग का आदि नहीं हूँ.” इमरान ने कहा “देर से मिलने का कारण ये है की मैं व्यस्त था. अब तक अपने हिसाहब से सिचुयेशन का निरीक्षण कर रहा हूँ.”

“मैं पहले ही समझ रहा था.” स्प हँसने लगा.

“न्ोंटों के बड़े मे कुच्छ पता चला?”

“अभी तक तो कोई रिपोर्ट नहीं मिली……….लेकिन…..”

“उन नोटों के बड़े मे पुच्छना चाहते हैं आप?” इमरान मुस्कुरा कर बोला.

“हाँ….मैं अपनी जानकारी केलिए जानना चाहता हूँ.”

“उस आदमी के पास जाली नोटों के दो पॅकेट्स हैं और ये मेरे ही द्वारा उस के पास पहुँचे हैं.”

“आप के द्वारा?” स्प की आँखें हैरात से फैल गयीं.

“जी हन….मैं जान बुझ कर कल रात को उस ख़तरनाक एरिया मे गया था….और मेरी जेबों मे जाली नोटों के पॅकेट्स थे.”

“अर्रे….तो क्या आज के अख़बार मे आप ही के बड़े मे खबर थी?”

“शायद…”

“लेकिन ये एक ख़तरनाक कदम था.”

“हन…..लेकिन कभी कभी इसके बिना काम भी नहीं चलता. मगर उस से टकराने के बाद अब मैं ने अपना ख़याल बदल दिया है. जाली नोट मार्केट मे नहीं आ सकेंगे. वो तो बस यूँ ही सावधानी-वॉश मैं ने आप को सूचित कर दिया था. वो बहुत चालक है और इस किस्म के डाओ उस पर काम नहीं करेंगे.”

स्प खामोशी से इमरान की शकल देख रहा था.

“सवाल ये है की रात के समय वो इलाक़ा ख़तरनाक क्यों हो जाता है?” इमरान बर्बदाया. “ज़ाहिर है की सरकारी टॉर पर वहाँ सड़क पर ही ‘डेंजर एरिया‚ वाला बोर्ड लगाया गया है. इस लिए जनरली वो रास्ता बंद ही हो गया है. लेकिन इसके बाद भी मुझ जैसे भूले भटके आदमी पर हमला किया गया. इसका मतलब यही हुआ की पूरी रात वहाँ उस आदमी का साम्राज्या रहता है.”

“जी हन…..बिल्कुल यही बात है…….और इसी लिए वहाँ ख़तरे का बोर्ड लगाया गया है.”

“लेकीं मकसद श्रीमान? आख़िर उस उजाड़ इलाक़े मे है क्या? अगर ये कहा जाए की वो उजाड़ इलाक़ा लुटेरों का अड्डा है तो ये सोचना पड़ेगा की एबीसी होटेल पर कभी हमला क्यों नहीं होता? वहाँ डेली हज़ारों रुपये का जुवा होता है.”

“शक तो हमें भी है की एबीसी वालों का उस से कोई ना कोई संबंध ज़रूर है. लेकिन हम अभी तक उन के खिलाफ कोई सबूत नहीं जुटा सके हैं.”

इमरान कुच्छ ना बोला. उस ने जेब से चेवींगुँ का पॅकेट निकाला और उस का व्रापेर फाड़ कर एक स्प को भी ऑफर किया जो बौखलाहट मे ‘थॅंक्स‚ के साथ आक्सेप्ट कर लिया गया. लेकिन स्प के चेहरे पर शर्मिंदगी की हल्की सी लाली दौड़ गयी और वो झेंप कर दूसरी तरफ देखने लगा.

उसके विपरीत इमरान बड़ी निश्चिंतता से उसे अपने दांतो मे कुचल रहा था.

थोड़ी देर बाद उस ने कहा. “उस घतना की चर्चा आप तक ही सीमित रहे तो बेहतर है.”

“शुवर….” स्प ने कहा.

उस ने चेवींगुँ को इमरान की नज़र बचा कर मेज़ के ड्रॉयर मे डाल दिया था.

“आप का स्टे कहाँ है?” उस ने इमरान से पुचछा.

“किसी होटेल मे ठहरा हुआ हूँ.” इमरान ने जवाब दिया.

स्प ने फिर कुच्छ पुच्छना मुनासिब नहीं समझा.

कुच्छ पल खामोशी रही फिर स्प बोला “आप को असिस्ट करने के लिए मैं ने एक आदमी का सेलेक्षन किया है. कहिए तो अभी मिलवा दूं.”

“नहीं….अभी तो ज़रूरात नहीं. आप मुझे नाम और पता लिखवा दीजिए. पता ऐसा होना चाहिए जहाँ उस से हर समय संपर्क किया जा सके. वैसे मेरी कोशिश यही रहेगी की आप लोगों को अधिक कष्ट ना दूं.”

अंतिम बात शायद स्प को बुरी लगी थी. लेकिन वो कुच्छ बोला नहीं.

इमरान कुच्छ देर यूँ ही टाँगें हिलाता रहा फिर हाथ बढ़ता हुआ बोला “अच्छा बहुत बहुत शुकरिया.”

“श…..अच्छा….लेकिन अगर आज डिन्नर मेरे साथ लें तो अच्छा होता.”

“ज़रूर ख़ौँगा.” इमरान मुस्कुरा कर बोला. “मगर आज नहीं. वैसे मुझे आप के हेल्प की बहुत ज़रूरात होगी.”

“हमारी तरफ से आप निसचिंत रहें.”

“ओक…..अब अनुमति दीजिए.” इमरान कमरे से निकल गया.

स्प बड़ी देर तक खामोश बैठा सर हिलाता रहा. फिर उस ने मेज़ की दराज़ खोल कर इमरान की दी हुई चेवींगुँ निकाली और इधर उधर देख कर उसे मूह मे डाल लिया. 7 बजे इमरान निधी के फ्लॅट मे पहुँचा. वो शायद उसी का इंतेज़ार कर रही थी. इमरान को देख कर उस ने बुरा सा मूह बनाया और झल्लाए हुए लहजे मे बोली “अब आए हो………..सुबह के गये हुए…..मैं ने लंच पर तुम्हारा इंतेज़ार किया. शाम को काफ़ी देर तक टी लिए बैठी रही.”

“मैं दूसरी रोड की एक बिल्डिंग पर तुम्हारा फ्लॅट खोज रहा था.” इमरान ने सर खुजाते हुए कहा.

“दिन भर कहाँ रहे?”

“उसी मरदूद को तलाश कराता रहा जिस से अभी 2 पॅकेट वसूल करने हैं.”

“अपनी ज़िंदगी ख़तरे मे मत डालो. मैं तुम्हें किस तरह समझाओन.”

“मेरा ख़याल है की वो एबीसी होटेल मे ज़रूर आता होगा.”

“बकवास नहीं बंद करोगे तुम….!” निधी उठ कर उसे झंझोड़ती हुई बोली. “तुम होटेल से अपना समान क्यों नहीं लाए?”

“समान……….देखा जाएगा. चलो कहीं घूमने चलती हो?”

“मैने आज दरवाज़े से बाहर कदम भी नहीं निकाला.”

“क्यों?”

“दर लगता है.”

इमरान हँसने लगा. फिर उस ने कहा “वो केवल नाइट किंग लगता है…..दिन का नहीं.”

“कुच्छ भी हो….मगर….” निधी कुच्छ कहते कहते रुक गयी. उस ने पलट कर सहमी हुई निगाहों से दरवाज़े की तरफ देखा और धीरे से बोली “दूर लॉक कर दो.”

“ओो….बड़ी डरपोक हो तुम.” इमरान फिर हँसने लगा.

“तुम बंद तो कर दो………फिर मैं तुम्हें एक ख़ास बात बतावुँगी.”

इमरान ने दूर लॉक्ड कर दिया. निधी ने अपने ब्लाउस के गले मे हाथ डाल कर एक इनवालेोप निकाला और इमरान की तरफ बढ़ाती हुई बोली “आज 3 बजे एक लड़का लाया था…..फिर लिफाफ खोलने से पहले ही वो भाग गया.”

इमरान ने लिफाफ से लेटर निकाल लिया. इंग्लीश मे टाइप किया हुआ था………..

“निधी….!

तुम मुझे नहीं जानती होगी. लेकिन मैं तुम्हें अच्छी तरह जानता हूँ. अगर तुम अपनी भलाई चाहती हो तो मुझे उस के बड़े मे सब कुच्छ बता दो जो पिच्छली रात तुम्हारे साथ था. वो कोन है? कहाँ से आया है? क्यों आया है? तुम ये सब कुच्छ मुझे फोन पर बता सकती हो. मेरा फोन नंबर ****** है. मैं तुम्हें माफ़ कर दूँगा.

टेरर”

“बहुत खूब.” इमरान सर हिला कर बोला. “फोन पर बात करेगा.”

“मगर सुनो तो. मैं ने पूरी टेलिफोन डाइरेक्टरी छ्चान मारी लेकिन मुझे ये नंबर कहीं ना मिला.”

“तुम्हारे पास है डाइरेक्टरी…..?” इमरान ने पुचछा.

एक भयानक आदमी – 6

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