एक भयानक आदमी – Indian Sex Thriller
Posted: 06 Oct 2015 11:14
निधी उसे बहुत देर से देख रही थी. वो शाम ढलते ही होटेल मे प्रवेश किया था और अब 7 बाज रहे थे. समंदर की तरफ से आने वाली हवाएँ कुच्छ बोझल सी हो गयी तीन.
जब वो होटेल मे दाखिल हुआ था तब निधी की मेज़ के अलावा सारी मेज़ें खाली पड़ी तीन. लेकिन अब होटेल मे तिल धरने की जगह नहीं थी.
वो एक हॅंडसम और वाले ड्रेस्ड नौजवान था. लेकिन ये कोई ऐसी ख़ास बात नहीं थी जिस के कारण निधी उस की तरफ अट्रॅक्ट होती. इसी होटेल मे उस ने अब से पहले दर्जनों हंडसों आदमियों के साथ सैकड़ों रातें बिठाई तीन……और उस की ये फीलिंग कभी की फ़ना हो चुकी थी जो ओपपॉसित सेक्स की सुंदराता की तरफ आकर्षित होने के लिए उकसाती.
निधी एक आंग्लो-बरमेसए लड़की थी. कभी वो एक खिलती काली थी…..लेकिन अब वो बहुत पूरेानी बात हो चुकी. ये उस समय की बात थी जब सिंगापूरे पर जापानियों ने बोम्बारी की थी…..और जिधर जिसका सींग समाया भाग निकला था. ऋषि एक टीनेजर लड़की थी. उसका बाप सिंगपूरे का एक बहुत बड़ा बिज़्नेसमॅन था. लेकिन बहुत बड़े बिज़्नेसमॅन की बेटी होने का ये मतलब तो नहीं की निधी 3 दीनो की भूकि होने के बाद एक कप चाय के बदले अपनी वर्जिनिटी नहीं खो देती. हो सकता है की उस के बाप को एक कप चाय भी नहीं मिल पाई हो…..क्यों की उस मे लड़की से औरात बनने की च्चामता तो थी नहीं.
एनीवे निधी अपने बाप के अंजम से आज तक अंजान थी. और अब वो एक 25 साल की वाले मेट्यूर्ड लेडी थी. लेकिन अब वो…..वो निधी नहीं थी. चाय का वो कप उसे आज भी याद था. और वो अब तक दर्जनों आदमियों को एक एक कप चाय के लिए मुहताज कर चुकी थी.
अब उस के पास एक डेलूक्ष टाइप वाले डेकरेटेड फ्लॅट था. दुनिया की सारी सुख सुविधा उसके पास थी और उसे विश्वास था की अब कभी वो भूकि नहीं रहेगी.
ये होटेल उस के कारोबार के लिए बहुत मुनासिब था और वो अधिक तार रातें यहीं गुज़ाराती थी. ये होटेल कारोबार के लिए ऐसे मुनासिब था की बंदरगाह यहाँ से करीब था…..और दिन रात यहाँ विदेशियों का ताँता बँधा रहता था. इन मे अधिक तार सफेद नस्ल के होते थे. और ये होटेल चलता भी उनहीं के दम से था. वरना आम शहरी इधर का रुख़ भी नहीं करते थे. मगर निधी इस कारण भी उस नौजवान मे इंटेरेस्ट नहीं ले रही थी…..की वो कोई विदेशी या कोई नाविक नहीं था.
बात वास्तव मे ये थी की वो जब से आया था….कदम कदम पे उस से मूरखटाएँ हो रही तीन. जैसे ही वेटर ने हाथ उठा कर उसे सलाम किया…..उस ने भी उसी तरीका से ना केवल उस के सलाम का जवाब दिया बल्कि बड़ी विनम्राता से खड़े हो कर उस से हाथ भी मिलाने लगा और काफ़ी देर तक उस के बाल बचों की हाल चाल पुचहता रहा.
पहले उस ने चाय मँगवाई…..और चुप बैठा रहा….यहाँ तक की चाय ठंडी हो गयी. फिर एक घूँट ले कर बुरा सा मुहह बनाने के बाद उस ने चाय वापस कर के कॉफी का ऑर्डर दिया.
कॉफी शायद ठंडी चाय से अधिक बाद-मज़ा लगी…..और उस ने कुच्छ इस तरह मुहह बनाया जैसे उबकाई रोक रहा हो. फिर उस ने कॉफी भी वापस कर दी…..और ठंडे पानी के काई ग्लास एक के बाद एक चढ़ा गया.
अंधेरा फैल गया और होटेल की लाइट्स जल गयी…..लेकिन उस मूरख नौजवान ने शायद वहाँ से ना उठने की कसम खा ली थी.
निधी की दिलचस्पी बढ़ती रही. वो भी अपनी जगह पे जम सी गयी.
डिन्नर टाइम होने से पहले ही टेबल क्लॉत्स चेंज कर दिए गये और मेज़ों पे तरो-ताज़ा फूलों के गुलदस्तों(फ्लवर पोत) के साथ ही ऐसे ग्लास भी रखे गये जिन मे नॅपकिन्स डाले हुए थे.
उस बेवकूफ़ नौजवान ने अपनी चेर पिच्चे खिसका ली थी और एक वेटर उसकी मेज़ भी ठीक कर रहा था. वेटर के हट‚ते ही वो एक गुलाब, फ्लवर पोत से निकाल कर सूंघने लगा. वो अपनी सोचों मे खोया हुआ सा लग रहा था और उस ने एक बार भी अपने आस पास नज़र डालने का कष्ट नहीं किया था. शायद वो खुद को वहाँ अकेला समझ रहा था.
निधी उसे देखती रही और अब वो ना जाने क्यों उस मे ख़ास तरह का अट्रॅक्षन महसूस करने लगी थी. उस ने काई बार वहाँ से उतना भी चाहा लेकिन उठ ना सकी.
डिन्नर टाइम होने पर नौजवान ने डिन्नर का ऑर्डर दिया. गुलाब अब भी उसकी उंगलियों मे दबा हुआ था…..जिसे वो कभी सूंघने लगता और कभी आँखें बंद कर के इस तरह उस से अपने गाल सहलाता.
खाना मेज़ पर आ चुका…..लेकिन वो वैसे ही खामोश शांत बैठा रहा. वो अब भी कुच्छ सोच रहा था. और ऐसा लग रहा था जैसे वेटर के आने और खाना लग जाने का उस को पता ही ना हो.
अचानक निधी ने देखा की वो गुलाब का फूल करी या डाल मे डुबो रहा है और फिर वो उसे चबा भी गया. लेकिन दूसरे ही पल उस ने इतना बुरा सा मूह बनाया की निधी को अनायास हँसी आ गयी. उस के मुहह से कुचले हुए फूल के टुकड़े फिसल फिसल कर गिर रहे थे.
“बॉय…” उस ने रो देने जैसे ढंग से वेटर को पुकारा…..और काई लोग चौंक कर उसे देखने लगे. डाइनिंग हॉल अब काफ़ी भर चुका था.
“सब चौपट….” उस ने रुँधे हुए स्वर मे कहा….”सब ले जाओ…..बिल लाओ.”
“बात क्या है सिर….?” वेटर ने बड़े आदर से पुचछा.
“बात कुच्छ नहीं…..सब मुक़द्दर की खराबी है. आज किसी चीज़ मे भी मज़ा नहीं मिल रहा.” नौजवान ने दुखी स्वर मे कहा “बिल लाओ.”
वेटर बर्तन समेत कर वापस चला गया…..फिर बिल ले कर वापस लौटा. नौजवान ने प्लेट मे रखे बिल पर निगाह डाली और अपनी जेबें टटोलने लगा.
फिर देखते ही देखते उसकी जेबों से नोटों की काई गद्दियाँ निकल आईं….जिन्हें वो मेज़ पर डालता हुआ खड़ा हो गया और अब वो अपनी भीतरी जेबें टटोल रहा था.
अंत मे उस ने एक खुली हुई गद्दी निकाली और उस मे से कुच्छ नोट खींच कर प्लेट मे डाल दिया.
निधी की आँखें हैरात से फैल गयी तीन और वो नौजवान बड़ी लापरवाही से मेज़ पर पड़ी हुई नोटों की गद्दियों को कोट की जेबों मे ठूंस रहा था.
निधी ने चारों तरफ नज़र दौड़ाई और उस ने देखा की डाइनिंग हॉल के सारे लोग उस अहमक को बुरी तरह घूर रहे हैं…..और उसे वहाँ कुच्छ बुरे लोग भी दिखाई दिए जो ललचाई हुई निगाहों से उसे देख रहे थे.
निधी अपनी जगह से उठी और धीरे धीरे चलती हुई उस अहमाक़ की मेज़ के निकट पहुँच गयी. वो जानती थी की उस का क्या अंजम होने वाला है. डाइनिंग हॉल के बाद दूसरे ही कमरे मे बहुत ही बड़े पैमाने पर जुवा होता था. वो जानती थी की अभी 2-3 दलाल उसे घेर कर उस कमरे मे ले जाएँगे और कुच्छ ही घंटों के बाद वो कौड़ी कौड़ी का मुहताज हो जाएगा.
“कहो तोते……अच्छे तो हो….” निधी ने नौजवान के कंधे पर हाथ रख कर बहुत ही फ्री ढंग से कहा…..जैसे वो ना केवल उसे जानती हो बल्कि दोनों गहरे दोस्त भी हों.
नौजवान चौंक कर उसे मूरखों की तरह देखने लगा. उस के होन्ट खुले हुए थे…..और आँखें हैरात से फैल गयी तीन.
“अब तुम कहोगे की मैं ने तुम्हें पहचाना नहीं.” निधी इठला कर बोली और चेर खींच कर बैठ गयी. दूसरी तरफ कसीनो के दलाल एक दूसरे को देख कर मुस्कुरा रहे थे.
“आहा…..क्या तुम्हें बोलना नहीं आता?” निधी फिर बोली.
“एमेम….व्व…वो….हॅप….” नौजवान हकला कर रह गया.
“तुम शायद पागल हो.” वो मेज़ पर कोहनियाँ टेक कर आगे झुकती हुई धीरे से बोली “इस ख़तरनाक इलाक़े मे अपने धनी होना दिखाने का यही मतलब हो सकता है.”
“ख़तरनाक इलाक़ा….!” नौजवान आँखें फाड़ कर कुर्दी की बॅक से टिक गया.
“हन….मेरे तोते……….क्या तुम पहली बार यहाँ आए हो?”
नौजवान से हाँ मे सर हिलाया.
“क्या करते हो?”
“उस ने यहीं मिलने का वादा किया था.” नौजवान ने शर्मा कर कहा. “किस ने….? क्या कोई लड़की है?”
नौजवान ने फिर सर हिला दिया. लेकिन इस बार उस ने शर्म के मारे उस से आँखें नहीं मिलाई. वो किसी ऐसी कुँवारी लड़की की तरह लाजा रहा था जिस के सामने उस की शादी की चर्चा च्छेद दिया गया हो.”
निधी ने उस पर रहम भारी निगाह डाली.
एक भयानक आदमी – 1
जब वो होटेल मे दाखिल हुआ था तब निधी की मेज़ के अलावा सारी मेज़ें खाली पड़ी तीन. लेकिन अब होटेल मे तिल धरने की जगह नहीं थी.
वो एक हॅंडसम और वाले ड्रेस्ड नौजवान था. लेकिन ये कोई ऐसी ख़ास बात नहीं थी जिस के कारण निधी उस की तरफ अट्रॅक्ट होती. इसी होटेल मे उस ने अब से पहले दर्जनों हंडसों आदमियों के साथ सैकड़ों रातें बिठाई तीन……और उस की ये फीलिंग कभी की फ़ना हो चुकी थी जो ओपपॉसित सेक्स की सुंदराता की तरफ आकर्षित होने के लिए उकसाती.
निधी एक आंग्लो-बरमेसए लड़की थी. कभी वो एक खिलती काली थी…..लेकिन अब वो बहुत पूरेानी बात हो चुकी. ये उस समय की बात थी जब सिंगापूरे पर जापानियों ने बोम्बारी की थी…..और जिधर जिसका सींग समाया भाग निकला था. ऋषि एक टीनेजर लड़की थी. उसका बाप सिंगपूरे का एक बहुत बड़ा बिज़्नेसमॅन था. लेकिन बहुत बड़े बिज़्नेसमॅन की बेटी होने का ये मतलब तो नहीं की निधी 3 दीनो की भूकि होने के बाद एक कप चाय के बदले अपनी वर्जिनिटी नहीं खो देती. हो सकता है की उस के बाप को एक कप चाय भी नहीं मिल पाई हो…..क्यों की उस मे लड़की से औरात बनने की च्चामता तो थी नहीं.
एनीवे निधी अपने बाप के अंजम से आज तक अंजान थी. और अब वो एक 25 साल की वाले मेट्यूर्ड लेडी थी. लेकिन अब वो…..वो निधी नहीं थी. चाय का वो कप उसे आज भी याद था. और वो अब तक दर्जनों आदमियों को एक एक कप चाय के लिए मुहताज कर चुकी थी.
अब उस के पास एक डेलूक्ष टाइप वाले डेकरेटेड फ्लॅट था. दुनिया की सारी सुख सुविधा उसके पास थी और उसे विश्वास था की अब कभी वो भूकि नहीं रहेगी.
ये होटेल उस के कारोबार के लिए बहुत मुनासिब था और वो अधिक तार रातें यहीं गुज़ाराती थी. ये होटेल कारोबार के लिए ऐसे मुनासिब था की बंदरगाह यहाँ से करीब था…..और दिन रात यहाँ विदेशियों का ताँता बँधा रहता था. इन मे अधिक तार सफेद नस्ल के होते थे. और ये होटेल चलता भी उनहीं के दम से था. वरना आम शहरी इधर का रुख़ भी नहीं करते थे. मगर निधी इस कारण भी उस नौजवान मे इंटेरेस्ट नहीं ले रही थी…..की वो कोई विदेशी या कोई नाविक नहीं था.
बात वास्तव मे ये थी की वो जब से आया था….कदम कदम पे उस से मूरखटाएँ हो रही तीन. जैसे ही वेटर ने हाथ उठा कर उसे सलाम किया…..उस ने भी उसी तरीका से ना केवल उस के सलाम का जवाब दिया बल्कि बड़ी विनम्राता से खड़े हो कर उस से हाथ भी मिलाने लगा और काफ़ी देर तक उस के बाल बचों की हाल चाल पुचहता रहा.
पहले उस ने चाय मँगवाई…..और चुप बैठा रहा….यहाँ तक की चाय ठंडी हो गयी. फिर एक घूँट ले कर बुरा सा मुहह बनाने के बाद उस ने चाय वापस कर के कॉफी का ऑर्डर दिया.
कॉफी शायद ठंडी चाय से अधिक बाद-मज़ा लगी…..और उस ने कुच्छ इस तरह मुहह बनाया जैसे उबकाई रोक रहा हो. फिर उस ने कॉफी भी वापस कर दी…..और ठंडे पानी के काई ग्लास एक के बाद एक चढ़ा गया.
अंधेरा फैल गया और होटेल की लाइट्स जल गयी…..लेकिन उस मूरख नौजवान ने शायद वहाँ से ना उठने की कसम खा ली थी.
निधी की दिलचस्पी बढ़ती रही. वो भी अपनी जगह पे जम सी गयी.
डिन्नर टाइम होने से पहले ही टेबल क्लॉत्स चेंज कर दिए गये और मेज़ों पे तरो-ताज़ा फूलों के गुलदस्तों(फ्लवर पोत) के साथ ही ऐसे ग्लास भी रखे गये जिन मे नॅपकिन्स डाले हुए थे.
उस बेवकूफ़ नौजवान ने अपनी चेर पिच्चे खिसका ली थी और एक वेटर उसकी मेज़ भी ठीक कर रहा था. वेटर के हट‚ते ही वो एक गुलाब, फ्लवर पोत से निकाल कर सूंघने लगा. वो अपनी सोचों मे खोया हुआ सा लग रहा था और उस ने एक बार भी अपने आस पास नज़र डालने का कष्ट नहीं किया था. शायद वो खुद को वहाँ अकेला समझ रहा था.
निधी उसे देखती रही और अब वो ना जाने क्यों उस मे ख़ास तरह का अट्रॅक्षन महसूस करने लगी थी. उस ने काई बार वहाँ से उतना भी चाहा लेकिन उठ ना सकी.
डिन्नर टाइम होने पर नौजवान ने डिन्नर का ऑर्डर दिया. गुलाब अब भी उसकी उंगलियों मे दबा हुआ था…..जिसे वो कभी सूंघने लगता और कभी आँखें बंद कर के इस तरह उस से अपने गाल सहलाता.
खाना मेज़ पर आ चुका…..लेकिन वो वैसे ही खामोश शांत बैठा रहा. वो अब भी कुच्छ सोच रहा था. और ऐसा लग रहा था जैसे वेटर के आने और खाना लग जाने का उस को पता ही ना हो.
अचानक निधी ने देखा की वो गुलाब का फूल करी या डाल मे डुबो रहा है और फिर वो उसे चबा भी गया. लेकिन दूसरे ही पल उस ने इतना बुरा सा मूह बनाया की निधी को अनायास हँसी आ गयी. उस के मुहह से कुचले हुए फूल के टुकड़े फिसल फिसल कर गिर रहे थे.
“बॉय…” उस ने रो देने जैसे ढंग से वेटर को पुकारा…..और काई लोग चौंक कर उसे देखने लगे. डाइनिंग हॉल अब काफ़ी भर चुका था.
“सब चौपट….” उस ने रुँधे हुए स्वर मे कहा….”सब ले जाओ…..बिल लाओ.”
“बात क्या है सिर….?” वेटर ने बड़े आदर से पुचछा.
“बात कुच्छ नहीं…..सब मुक़द्दर की खराबी है. आज किसी चीज़ मे भी मज़ा नहीं मिल रहा.” नौजवान ने दुखी स्वर मे कहा “बिल लाओ.”
वेटर बर्तन समेत कर वापस चला गया…..फिर बिल ले कर वापस लौटा. नौजवान ने प्लेट मे रखे बिल पर निगाह डाली और अपनी जेबें टटोलने लगा.
फिर देखते ही देखते उसकी जेबों से नोटों की काई गद्दियाँ निकल आईं….जिन्हें वो मेज़ पर डालता हुआ खड़ा हो गया और अब वो अपनी भीतरी जेबें टटोल रहा था.
अंत मे उस ने एक खुली हुई गद्दी निकाली और उस मे से कुच्छ नोट खींच कर प्लेट मे डाल दिया.
निधी की आँखें हैरात से फैल गयी तीन और वो नौजवान बड़ी लापरवाही से मेज़ पर पड़ी हुई नोटों की गद्दियों को कोट की जेबों मे ठूंस रहा था.
निधी ने चारों तरफ नज़र दौड़ाई और उस ने देखा की डाइनिंग हॉल के सारे लोग उस अहमक को बुरी तरह घूर रहे हैं…..और उसे वहाँ कुच्छ बुरे लोग भी दिखाई दिए जो ललचाई हुई निगाहों से उसे देख रहे थे.
निधी अपनी जगह से उठी और धीरे धीरे चलती हुई उस अहमाक़ की मेज़ के निकट पहुँच गयी. वो जानती थी की उस का क्या अंजम होने वाला है. डाइनिंग हॉल के बाद दूसरे ही कमरे मे बहुत ही बड़े पैमाने पर जुवा होता था. वो जानती थी की अभी 2-3 दलाल उसे घेर कर उस कमरे मे ले जाएँगे और कुच्छ ही घंटों के बाद वो कौड़ी कौड़ी का मुहताज हो जाएगा.
“कहो तोते……अच्छे तो हो….” निधी ने नौजवान के कंधे पर हाथ रख कर बहुत ही फ्री ढंग से कहा…..जैसे वो ना केवल उसे जानती हो बल्कि दोनों गहरे दोस्त भी हों.
नौजवान चौंक कर उसे मूरखों की तरह देखने लगा. उस के होन्ट खुले हुए थे…..और आँखें हैरात से फैल गयी तीन.
“अब तुम कहोगे की मैं ने तुम्हें पहचाना नहीं.” निधी इठला कर बोली और चेर खींच कर बैठ गयी. दूसरी तरफ कसीनो के दलाल एक दूसरे को देख कर मुस्कुरा रहे थे.
“आहा…..क्या तुम्हें बोलना नहीं आता?” निधी फिर बोली.
“एमेम….व्व…वो….हॅप….” नौजवान हकला कर रह गया.
“तुम शायद पागल हो.” वो मेज़ पर कोहनियाँ टेक कर आगे झुकती हुई धीरे से बोली “इस ख़तरनाक इलाक़े मे अपने धनी होना दिखाने का यही मतलब हो सकता है.”
“ख़तरनाक इलाक़ा….!” नौजवान आँखें फाड़ कर कुर्दी की बॅक से टिक गया.
“हन….मेरे तोते……….क्या तुम पहली बार यहाँ आए हो?”
नौजवान से हाँ मे सर हिलाया.
“क्या करते हो?”
“उस ने यहीं मिलने का वादा किया था.” नौजवान ने शर्मा कर कहा. “किस ने….? क्या कोई लड़की है?”
नौजवान ने फिर सर हिला दिया. लेकिन इस बार उस ने शर्म के मारे उस से आँखें नहीं मिलाई. वो किसी ऐसी कुँवारी लड़की की तरह लाजा रहा था जिस के सामने उस की शादी की चर्चा च्छेद दिया गया हो.”
निधी ने उस पर रहम भारी निगाह डाली.
एक भयानक आदमी – 1