Re: एक भयानक आदमी – Indian Sex Thriller
Posted: 06 Oct 2015 11:15
अहमाक़ ने जेब से रिवॉलव निकाल कर निधी की तरफ बढ़ा दिया……और निधी बे-तहाशा हँसने लगी. रिवॉलव की चन्यू एअर मे पटाखों की रील चढ़ि हुई थी…….और वो साढ़े चार रुपये वाला टॉय रिवॉलव था.
“तोते….” उस ने गंभीराता से कहा “मेरी समझ मे नहीं आता की तुम आदमियों के किस रेवड़ से संबंध रखते हो.”
“देखो तुम बहुत बढ़ी जा रही हो.” अहमाक़ ने गुस्से से कहा. “अभी तक तुम मुझे तोता कहती रही हो. लेकिन मैं कुच्छ नहीं बोला था…..लेकिन अब जानवर कह रही हो.”
“नहीं मैं ने जानवर तो नहीं कहा.”
“फिर रेवड़ का क्या अर्थ होता है. भैंस मेरे डॅडी की कमज़ोरी है मेरी नहीं.”
“फिर भी तुम तोते से बहुत मिलते जुलते हो.” निधी ने उसे च्छेदने वाले ढंग से कहा.
“नहीं हूँ….तुम झूती हो. तुम इसे साहबित नहीं कर सकती की मैं तोते जैसी शकल वाला हूँ.”
“फिर कभी साहबित कर दूँगी. ये बताओ की तूमम…………………….”
बात पूरी कहने से पहले ही वो अचानक चीख पड़ी थी. बराबर से गुज़राती हुई एक कार से फिरे हुआ था.
“रोको……..ड्राइवर रोको…………” अहमाक़ चीखा.
कार एक झटके के साथ रुक गयी. दरिवेर पहले ही भयभीत हो गया था.
दूसरी कार फ़र्राटे भाराती हुई अंधेरे मे गायब हो चुकी थी. अहमाक़ निधी पर झुका हुआ था.
“औरात…..ए….औरात……अर्र्ररर….लड़की, आए लड़की….” वो उसे झंझोड़ रहा था. निधी की आँखें खुली हुई तीन और वो इस तरह हाँफ रही थी जैसे घोंसले से गिरा हुआ चिड़िया का बच्चा हांफता है.
उस के झंझोड़ने पर भी उस के मूह से आवाज़ ना निकली.
“अरे कुच्छ बोलो भी. क्या गोली लगी है?”
निधी ने इनकार मे सर हिला दिया.
ये सच था की वो केवल भयभीत हो गयी थी. उस ने करीब से गुज़राती हुई कार की खिड़की मे शोले की लपक देखी थी…..और फिर फिरे की आवाज़. वरना गोली तो शायद टॅक्सी की चाट पर फिसलती हुई दूसरी तरफ निकल गयी थी.
“ये क्या था साहब?” ड्राइवर ने सहमी हुई आवाज़ मे पुचछा.
“पटाखा….” अहमक सर हिला कर बोला. “मेरे एक नटखट दोस्त ने मज़ाक किया है. चलो आगे बाधाओ….हन, …लेकिन भीतर की लाइट बुझा दो……वरना वो फिर मज़ाक करेगा.”
“फिर वो निधी का कंधा तपकते हुए बोला “घर का पता बताओ……ताकि तुम्हें वहाँ पहुँचा दूं.”
“निधी संभाल कर बैठ गयी. उस की साँसें अब भी चढ़ि हुई तीन.
“क्या ये वही हो सकता है?” अहमक ने धीरे से पुचछा.
“पता नहीं.” निधी हाँफती हुई बोली.
“तो अब ये पर्मनेंट्ली पिच्चे पर्ड गया.” अहमक ने बड़े भोले पं से पुचछा.
“श….तोते…..अब मेरी ज़िंदगी भी ख़तरे मे है.”
“अरे…….तुम्हारी क्यों?”
“वो पागल है. जिस के भी पिच्चे प़ड़ जाता है हर हाल मे मार डालता है. ऐसे केस भी हो चुके हैं की काई लोग उस के पहले हमले मे बच जाने के बाद दूसरे हमले मे मार दिए गये हैं.”
“आख़िर वो है कोन? और क्या चाहता है? रुपये तो छ्चीन चुका….फिर अब क्या चाहिए?”
“मैं नहीं जानती की वो कोन है और क्या चाहता है. लेकिन ये सब कुच्छ तुम्हारी हिमाकत के कारण हुआ है.”
“यानी की तुम चाहती हो की मैं चुप छाप मार जाता.” अहमाक़ ने बड़ी सादगी से पुचछा.
“नहीं तोते……तुम्हें इस तरह अपनी धनी होने का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए था.”
“मुझे क्या पता था की यहाँ के लोग पचास हज़ार जैसी तुकछ राशि पर भी निगाह गाड़ा सकते हैं.”
“तुम उसे तुकच्छ राशि कहते हो…..!!” निधी ने हैरात से कहा. “अरे मैं ने अपनी सारी ज़िंदगी मे इतनी रकम एक साथ नहीं देखी. तोते……..तुम आदमी हो या टकसाल?”
“छोड़ो इस बात को. तुम कह रही थी की तुम खुद को ख़तरे मे महसूस कर रही हो?”
“हन……ये हक़ीकत है.”
“कहो तो मैं ये रात तुम्हारे ही साथ गुज़ारुन?”
“ऑश…..तोते….ज़रूर ज़रूर. एक बात मैं ने ज़रूर मार्क की है. तुम बिल्कुल तोते होने के बाद भी लापरवाह और निडर हो. लेकिन तुम्हारा ये रिवॉलव अभी तक मेरी समझ मे नहीं आया.”
“अच्छा तो फिर मैं तुम्हारे साथ ही चल रहा हूँ. लेकिन क्या तुम्हारे घर पर कुच्छ खाने को मिल सकेगा?”
***
“देखो ये रहा मेरा छ्होटा सा फ्लॅट.” निधी ने कहा.
वो दोनों फ्लॅट मे दाखिल हो चुके थे और अहमाक़ इतने आराम से एक सोफे मे गिर गया था जैसे वो हमेशा से यहीं रहता आया हो.
“ये फ्लॅट मुझे उस हालत मे और अधिक अच्छा लगेगा अगर खाने को कुच्छ मिल जाए.” अहमाक़ ने गंभीराता से कहा.
“उस के लिए तुम्हें मेरा हाथ बठाना होगा. मैं यहाँ अकेली रहती हूँ.”
लगभग एक घंटे बाद वो डाइनिंग टेबल पर थे और अहमाक़ बढ़ बढ़ कर हाथ मार रहा था.
“अब मज़ा आ रहा है.” वो मूह चलता हुआ बोला. “उस होटेल के खाने बड़े वाहियात होते हैं.”
“तोते…..क्या तुम वास्तव मे वैसे ही हो जैसे दिखाई देते हो?” वो उसे गौर से देखते हुए बोली.
“मैं समझा नहीं.”
“कुच्छ नहीं…..मैं ने अभी तक तुम्हारा नाम तो पुचछा ही नहीं.”
“तो पुच्छ लो…..ये कौन सी बड़ी बात है. लेकिन मुझे अपना नाम बिल्कुल पसंद नहीं.”
“क्या नाम है?”
“इमरान……….अली इमरान.”
“क्या करते हो?”
“खर्च कराता हूँ. जब पैसे नहीं होते तो सबर कराता हूँ.”
“पैसे आते कहाँ से हैं?”
“ओवव…” इमरान ठंडी साँस ले कर बोला. “ये बड़ा बे-धाब सवाल है. अगर किसी इंटरव्यू मे पुच्छ लिया जाए तो मुझे नौकरी से मायूस होना पड़े. मैं बचपन से यही सोचता आया हूँ की पैसे कहाँ से आते हैं लेकिन अफ़सोस आज तक इस का जवाब पैदा नहीं कर सका. बचपन मे सोचा कराता था की कालाफ-दार रुपये बिस्कट के पककेटों से निकलते हैं.”
“ह्म….ओक….तुम अपने बड़े मे कुच्छ बठाना नहीं चाहते.”
“अपने बड़े मे मैं ने सब कुच्छ बता दिया है. लेकिन तुम अधिकतर ऐसी ही बातें पुच्छ रही हो जिन का संबंध मुझ से नहीं बल्कि मेरे डॅडी से हो.”
“समझ गयी….यानी की तुम खुद कोई काम नहीं करते हो.”
“अफ….ऑश….ठीक….बिल्कुल ठीक. कभी कभी मेरा दिमाग़ आब्सेंट होता है…..शायद मुझे तुम्हारे सवाल का यही जवाब देना था……अच्छा तुम्हारा क्या नाम है?”
“निधी.”
“वाक़ई….तुम सूरात से ही निधी लगती हो.”
“क्या मतलब?”
“फिर वही मुश्किल सवाल. जो कुच्छ मेरे मूह से निकलता है उसे मैं समझा नहीं सकता. बस यूँ ही पता नहीं क्या बात है. शायद मुझे ये कहना चाहिए था की तुम्हारा नाम भी तुम्हारी ही तरह है. अच्छा बताओ क्या कहेंगे……बड़ी मुश्किल है……अभी वो वर्ड मेरे दिमाग़ मे था……अब गायब हो गया…..” इमरान बेबसी से अपनी पेशानी रगड़ता हुआ बोला.
निधी उसे अजीब नज़रों से देख रही थी. उसकी समझ मे नहीं आ रहा था की उसे क्या समझे. अर्ध-पागल या कोई बहुत बड़ा मक्कार. मगर मक्कार समझने के लिए कोई मुनासिब तर्क उसके पास नहीं था. अगर वो मक्कार होता तो इतनी बड़ी रकम वो इस तरह कैसे गँवा बैठता.
“अब धीरे धीरे मुझे सारी बात समझ मे आ रही हैं.” इमरान ठंडी साँस ले कर बोला. “वो लड़की जो वेटिंग रूम मे मिली थी…..उस बदमाश की एजेंट रही होगी……हन और क्या…….वरना वो मुझे उस होटेल मे क्यों बुलाती…..मगर जूषी…….अर्रर….क्या नाम है तुम्हारा….श निधी…..निधी…..वो लड़की मुझे अच्छी लगती थी……और अब ना जाने क्यों तुम भी अच्छी लगने लगी हो. मुझे बहुत दुख है की मैं ने तुम्हारे कहने के अनुसार नहीं किया……क्या तुम अब मेरी मदद नहीं करोगी?”
निधी बड़े मनमोहक ढंग से मुस्कुराइ.
“मैं किस तरह मादा कर सकती हूँ?”
“देखो निधी…..निधी…..सच मच ये नाम बड़ा अच्छा है…..ऐसा लगता है जैसे ज़ुबान की नोक मिस्री की डाली से जा लगी हो……निधी…..वाह वा….हन तो निधी मैं अपनी खोई हुई रकम वापस लेना चाहता हूँ.”
“नामुमकिन है…..तुम बिल्कुल बच्चों जैसी बातें कर रहे हो. तुम ने वो रकम बॅंक मे नहीं रखवाई थी की वापस मिल जाएगी.”
“कोशिश करे इंसान तो क्या हो नहीं सकता…..आहा….आहाआ…..क्या तुम ने नेपोलियन की ज़िंदगी के हालात नहीं पढ़े?”
“मेरे तोते….” निधी हंस कर बोली “तुम इतनी जल्दी पालने से बाहर क्यों आ गये?”
“मैं मज़ाक के मूड मे नहीं हूँ.” इमरान किसी ज़िद्दी बच्चे की तरह झल्ला कर बोला.
निधी की हँसी तेज़ हो गयी. वो बिल्कुल इसी तरह हंस रही थी जैसे किसी नासमझ बच्चे को चिढ़ा रही हो.
“अच्छा….तो मैं जा रहा हूँ.” इमरान बिगड़ कर उठता हुआ बोला.
“ठहरो…..ठहरो….” वो एका-एक गंभीर हो गयी. “चलो बताओ क्या कह रहे थे.”
“नहीं बताता….” इमरान बैठता हुआ बोला. “मैं किसी से मशविरा लिए बिना ही निबट लूँगा.”
“नहीं…..मुझे बताओ की तुम क्या करना चाहते हो.”
“कितनी बार हलाक फादुन की मैं उस से अपने रुपये वसूल करना चाहता हूँ.”
“खाँ ख़याली है….बचपाना है….” निधी कुच्छ सोचते हुए बोली. “इस इलाक़े मे पुलिस की भी डाल नहीं गली. अंत मे तक हार कर वहाँ ख़तरे का बोर्ड लगाना पड़ा.”
“क्या होटेल वाले भी उस के बड़े मे कुच्छ नहीं जानते?”
“मैं विश्वास से कुच्छ नहीं कह सकती.”
“पुलिस ने उन्हें भी टटोला होगा?”
“क्यों नहीं…..बहुत दिनों तक उस होटेल में पुलिस की एक कॅंप दिन रात तैनात रही है. लेकिन इस के बाद भी वो ख़तरनाक आदमी काम कर ही गुज़राता था.”
“निधी……निधी…..तुम मुझे नहीं रोक सकतीं….” इमरान फिल्आंटी जैसे डाइयलोग बोलने लगा. “मैं उसका सत्यानाश किए बिना यहाँ से नहीं जवँगा.”
“बकवास मत करो.” निधी झुंझला गयी. फिर उस ने कहा “जाओ…..उस कमरे मे सो जाओ. बेड केवल एक है. मैं यहाँ सोफे पर सो जवँगी.”
“नहीं….तुम अपने बेड पर सो जाओ. मैं यहाँ सोफे पर सो जवँगा.” इमरान ने कहा.
इस पर दोनों मे बहस होने लगी. अंत-तह कुच्छ देर बाद इमरान ही को बेडरूम मे जाना पड़ा. निधी वहीं सोफे पर लेट गयी. हल्की सर्दियों का ज़माना था. इसलिए उस ने एक हल्का सा ब्लंकेट अपने पैरों पर डाल लिया. वो अब भी इमरान के बड़े मे ही सोच रही थी. लेकिन उस ख़तनाक और अग्यात आदमी का ख़ौफ़ उस के दिमाग़ पर हावी था.
वो आदमी कोन था…..इस का जवाब शादाब नगर की पुलिस के पास भी नहीं था. उस ने अब तक दर्जनों वारदातें की तीन. लेकिन पुलिस उस तक पहुँचने मे नाकाम रही थी. और फिर सब से अजीब बात ये की एक विशेष एरिया ही उसकी हरकतों का शिकार था. शहर के दूसरे हिस्सों की तरफ वो शायद ही कभी निशाना बनता था.
निधी उस के बड़े मे सोचती रही और उंघति रही. उसे भय था की कहीं वो इधर ही का रुख़ ना करे. इसी लिए उस ने लाइट भी नहीं बुझाई थी. उस के दिमाग़ पर जब भी नींद का झोंका आने लगता उसे ऐसा महसूस होता की उस के कान के पास किसी ने गोली चलाई हो. वो चौंक कर आँख खोल देती.
वॉल क्लॉक 2 बजा रहे थे. अचानक वो बौखला कर उठ बैठी. पता नहीं क्यों उसे लग रहा था जैसे वो ख़तरे मे हो.
वो कुच्छ पल भयभीत निगाहों से इधर उधर देखती रही. फिर सोफे से उठ कर पंजों के बाल चलती हुई उस कमरे के दरवाज़े तक आई जहाँ इमरान सो रहा था.
उस ने दरवाज़े पर हाथ रख कर हल्का सा धक्का दिया. दरवाज़ा खुल गया. लेकिन साथ ही उस की आँखें हैरात से फैल गयीं. बेड खाली पड़ा था और लाइट जल रही थी. उस के दिल की धड़कनें तेज़ हो गयीं……और हलाक सूखने लगा.
अचानक बड़ी तेज़ी से एक ख़याल उस के दिमाग़ मे चकराने लगा. कहीं ये बेवकूफ़ नौजवान ही खौफनाक आदमी का कोई गुरगा ना रहा हो.
वो बेठहाशा बेड के पिच्चे सेफ की तरफ लपकी. उस का हॅंडल पकड़ कर खींचा. सेफ लॉक्ड था. लेकिन वो सोचने लगी…..कीस तो तकिये के नीचे ही रहती हैं. एक बार फिर उस की साँसें तेज़ हो गयीं. उस ने तकिया उलट दिया. कीस ज्यों की त्यों अपनी जगह पर न्यू एअर हुई तीन. लेकिन निधी को संतोष नहीं हुआ. वो सेफ को खोलने लगी. फिर धीरे धीरे उस का मानसिक बिखराव कम होता गया. उसकी सभी कीमती चीज़ें और काश सुरक्षित तीन.
फिर आख़िर वो गया कहाँ? सेफ लॉक कर के वो सीधी खड़ी हो गयी. पिच्चे का गाते खोल कर बाहर निकली तब उसे एहसास हुआ की वो उसी दरवाज़े से निकल गया होगा. दरवाज़ा लॉक्ड नहीं था. हॅंडल घुमाते ही खुल गया था. दूसरी तरफ की राहदारी मे अंधेरा था. वो बाहर निकालने की हिम्मत नहीं कर सकी.उस ने दरवाज़ा बंद कर के अंदर से लॉक कर दिया.
वो फिर उसी कमरे मे आ गयी जहाँ सोफे पर सोई थी. आख़िर वो मूरख इस तरह क्यों चला गया. वो सोचती रही. आख़िर इस तरह भागने की क्या ज़रूरात थी. वो उसे ज़बरदस्ती तो लाई नहीं थी. वो खुद ही आया था. लेकिन क्यों आया था? क्या मकसद था?
अचानक उसे लगा जैसे किसी ने बाहरी गाते पर हाथ मारा हो. वो चौंक कर मूडी मगर इतनी देर मे शीशे के टुकड़े च्चंच्छानाते हुए फर्श पर गिर चुके थे.
फिर टूटे हुए शीशे की जगह से एक हाथ घुस कर चितखनी तलाश करने लगा. बड़ा सा हाथ जो बालों से धक्का हुआ था. निधी के कंठ से एक दबी दबी सी चीख निकली. लेकिन दूसरे ही पल वो हाथ गायब हो गया…….और निधी को ऐसा लगा जैसे बाहर दो आदमी एक दूसरे से हाता पाई कर रहे हों.
निधी बैठी हाँफती रही. फिर उस ने एक दर्द भारी चीख सुनी साथ ही ऐसा लगा जैसे कोई बहुत भारी सी चीज़ ज़मीन पर गिरी हो.
एक भयानक आदमी – 4
“तोते….” उस ने गंभीराता से कहा “मेरी समझ मे नहीं आता की तुम आदमियों के किस रेवड़ से संबंध रखते हो.”
“देखो तुम बहुत बढ़ी जा रही हो.” अहमाक़ ने गुस्से से कहा. “अभी तक तुम मुझे तोता कहती रही हो. लेकिन मैं कुच्छ नहीं बोला था…..लेकिन अब जानवर कह रही हो.”
“नहीं मैं ने जानवर तो नहीं कहा.”
“फिर रेवड़ का क्या अर्थ होता है. भैंस मेरे डॅडी की कमज़ोरी है मेरी नहीं.”
“फिर भी तुम तोते से बहुत मिलते जुलते हो.” निधी ने उसे च्छेदने वाले ढंग से कहा.
“नहीं हूँ….तुम झूती हो. तुम इसे साहबित नहीं कर सकती की मैं तोते जैसी शकल वाला हूँ.”
“फिर कभी साहबित कर दूँगी. ये बताओ की तूमम…………………….”
बात पूरी कहने से पहले ही वो अचानक चीख पड़ी थी. बराबर से गुज़राती हुई एक कार से फिरे हुआ था.
“रोको……..ड्राइवर रोको…………” अहमाक़ चीखा.
कार एक झटके के साथ रुक गयी. दरिवेर पहले ही भयभीत हो गया था.
दूसरी कार फ़र्राटे भाराती हुई अंधेरे मे गायब हो चुकी थी. अहमाक़ निधी पर झुका हुआ था.
“औरात…..ए….औरात……अर्र्ररर….लड़की, आए लड़की….” वो उसे झंझोड़ रहा था. निधी की आँखें खुली हुई तीन और वो इस तरह हाँफ रही थी जैसे घोंसले से गिरा हुआ चिड़िया का बच्चा हांफता है.
उस के झंझोड़ने पर भी उस के मूह से आवाज़ ना निकली.
“अरे कुच्छ बोलो भी. क्या गोली लगी है?”
निधी ने इनकार मे सर हिला दिया.
ये सच था की वो केवल भयभीत हो गयी थी. उस ने करीब से गुज़राती हुई कार की खिड़की मे शोले की लपक देखी थी…..और फिर फिरे की आवाज़. वरना गोली तो शायद टॅक्सी की चाट पर फिसलती हुई दूसरी तरफ निकल गयी थी.
“ये क्या था साहब?” ड्राइवर ने सहमी हुई आवाज़ मे पुचछा.
“पटाखा….” अहमक सर हिला कर बोला. “मेरे एक नटखट दोस्त ने मज़ाक किया है. चलो आगे बाधाओ….हन, …लेकिन भीतर की लाइट बुझा दो……वरना वो फिर मज़ाक करेगा.”
“फिर वो निधी का कंधा तपकते हुए बोला “घर का पता बताओ……ताकि तुम्हें वहाँ पहुँचा दूं.”
“निधी संभाल कर बैठ गयी. उस की साँसें अब भी चढ़ि हुई तीन.
“क्या ये वही हो सकता है?” अहमक ने धीरे से पुचछा.
“पता नहीं.” निधी हाँफती हुई बोली.
“तो अब ये पर्मनेंट्ली पिच्चे पर्ड गया.” अहमक ने बड़े भोले पं से पुचछा.
“श….तोते…..अब मेरी ज़िंदगी भी ख़तरे मे है.”
“अरे…….तुम्हारी क्यों?”
“वो पागल है. जिस के भी पिच्चे प़ड़ जाता है हर हाल मे मार डालता है. ऐसे केस भी हो चुके हैं की काई लोग उस के पहले हमले मे बच जाने के बाद दूसरे हमले मे मार दिए गये हैं.”
“आख़िर वो है कोन? और क्या चाहता है? रुपये तो छ्चीन चुका….फिर अब क्या चाहिए?”
“मैं नहीं जानती की वो कोन है और क्या चाहता है. लेकिन ये सब कुच्छ तुम्हारी हिमाकत के कारण हुआ है.”
“यानी की तुम चाहती हो की मैं चुप छाप मार जाता.” अहमाक़ ने बड़ी सादगी से पुचछा.
“नहीं तोते……तुम्हें इस तरह अपनी धनी होने का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए था.”
“मुझे क्या पता था की यहाँ के लोग पचास हज़ार जैसी तुकछ राशि पर भी निगाह गाड़ा सकते हैं.”
“तुम उसे तुकच्छ राशि कहते हो…..!!” निधी ने हैरात से कहा. “अरे मैं ने अपनी सारी ज़िंदगी मे इतनी रकम एक साथ नहीं देखी. तोते……..तुम आदमी हो या टकसाल?”
“छोड़ो इस बात को. तुम कह रही थी की तुम खुद को ख़तरे मे महसूस कर रही हो?”
“हन……ये हक़ीकत है.”
“कहो तो मैं ये रात तुम्हारे ही साथ गुज़ारुन?”
“ऑश…..तोते….ज़रूर ज़रूर. एक बात मैं ने ज़रूर मार्क की है. तुम बिल्कुल तोते होने के बाद भी लापरवाह और निडर हो. लेकिन तुम्हारा ये रिवॉलव अभी तक मेरी समझ मे नहीं आया.”
“अच्छा तो फिर मैं तुम्हारे साथ ही चल रहा हूँ. लेकिन क्या तुम्हारे घर पर कुच्छ खाने को मिल सकेगा?”
***
“देखो ये रहा मेरा छ्होटा सा फ्लॅट.” निधी ने कहा.
वो दोनों फ्लॅट मे दाखिल हो चुके थे और अहमाक़ इतने आराम से एक सोफे मे गिर गया था जैसे वो हमेशा से यहीं रहता आया हो.
“ये फ्लॅट मुझे उस हालत मे और अधिक अच्छा लगेगा अगर खाने को कुच्छ मिल जाए.” अहमाक़ ने गंभीराता से कहा.
“उस के लिए तुम्हें मेरा हाथ बठाना होगा. मैं यहाँ अकेली रहती हूँ.”
लगभग एक घंटे बाद वो डाइनिंग टेबल पर थे और अहमाक़ बढ़ बढ़ कर हाथ मार रहा था.
“अब मज़ा आ रहा है.” वो मूह चलता हुआ बोला. “उस होटेल के खाने बड़े वाहियात होते हैं.”
“तोते…..क्या तुम वास्तव मे वैसे ही हो जैसे दिखाई देते हो?” वो उसे गौर से देखते हुए बोली.
“मैं समझा नहीं.”
“कुच्छ नहीं…..मैं ने अभी तक तुम्हारा नाम तो पुचछा ही नहीं.”
“तो पुच्छ लो…..ये कौन सी बड़ी बात है. लेकिन मुझे अपना नाम बिल्कुल पसंद नहीं.”
“क्या नाम है?”
“इमरान……….अली इमरान.”
“क्या करते हो?”
“खर्च कराता हूँ. जब पैसे नहीं होते तो सबर कराता हूँ.”
“पैसे आते कहाँ से हैं?”
“ओवव…” इमरान ठंडी साँस ले कर बोला. “ये बड़ा बे-धाब सवाल है. अगर किसी इंटरव्यू मे पुच्छ लिया जाए तो मुझे नौकरी से मायूस होना पड़े. मैं बचपन से यही सोचता आया हूँ की पैसे कहाँ से आते हैं लेकिन अफ़सोस आज तक इस का जवाब पैदा नहीं कर सका. बचपन मे सोचा कराता था की कालाफ-दार रुपये बिस्कट के पककेटों से निकलते हैं.”
“ह्म….ओक….तुम अपने बड़े मे कुच्छ बठाना नहीं चाहते.”
“अपने बड़े मे मैं ने सब कुच्छ बता दिया है. लेकिन तुम अधिकतर ऐसी ही बातें पुच्छ रही हो जिन का संबंध मुझ से नहीं बल्कि मेरे डॅडी से हो.”
“समझ गयी….यानी की तुम खुद कोई काम नहीं करते हो.”
“अफ….ऑश….ठीक….बिल्कुल ठीक. कभी कभी मेरा दिमाग़ आब्सेंट होता है…..शायद मुझे तुम्हारे सवाल का यही जवाब देना था……अच्छा तुम्हारा क्या नाम है?”
“निधी.”
“वाक़ई….तुम सूरात से ही निधी लगती हो.”
“क्या मतलब?”
“फिर वही मुश्किल सवाल. जो कुच्छ मेरे मूह से निकलता है उसे मैं समझा नहीं सकता. बस यूँ ही पता नहीं क्या बात है. शायद मुझे ये कहना चाहिए था की तुम्हारा नाम भी तुम्हारी ही तरह है. अच्छा बताओ क्या कहेंगे……बड़ी मुश्किल है……अभी वो वर्ड मेरे दिमाग़ मे था……अब गायब हो गया…..” इमरान बेबसी से अपनी पेशानी रगड़ता हुआ बोला.
निधी उसे अजीब नज़रों से देख रही थी. उसकी समझ मे नहीं आ रहा था की उसे क्या समझे. अर्ध-पागल या कोई बहुत बड़ा मक्कार. मगर मक्कार समझने के लिए कोई मुनासिब तर्क उसके पास नहीं था. अगर वो मक्कार होता तो इतनी बड़ी रकम वो इस तरह कैसे गँवा बैठता.
“अब धीरे धीरे मुझे सारी बात समझ मे आ रही हैं.” इमरान ठंडी साँस ले कर बोला. “वो लड़की जो वेटिंग रूम मे मिली थी…..उस बदमाश की एजेंट रही होगी……हन और क्या…….वरना वो मुझे उस होटेल मे क्यों बुलाती…..मगर जूषी…….अर्रर….क्या नाम है तुम्हारा….श निधी…..निधी…..वो लड़की मुझे अच्छी लगती थी……और अब ना जाने क्यों तुम भी अच्छी लगने लगी हो. मुझे बहुत दुख है की मैं ने तुम्हारे कहने के अनुसार नहीं किया……क्या तुम अब मेरी मदद नहीं करोगी?”
निधी बड़े मनमोहक ढंग से मुस्कुराइ.
“मैं किस तरह मादा कर सकती हूँ?”
“देखो निधी…..निधी…..सच मच ये नाम बड़ा अच्छा है…..ऐसा लगता है जैसे ज़ुबान की नोक मिस्री की डाली से जा लगी हो……निधी…..वाह वा….हन तो निधी मैं अपनी खोई हुई रकम वापस लेना चाहता हूँ.”
“नामुमकिन है…..तुम बिल्कुल बच्चों जैसी बातें कर रहे हो. तुम ने वो रकम बॅंक मे नहीं रखवाई थी की वापस मिल जाएगी.”
“कोशिश करे इंसान तो क्या हो नहीं सकता…..आहा….आहाआ…..क्या तुम ने नेपोलियन की ज़िंदगी के हालात नहीं पढ़े?”
“मेरे तोते….” निधी हंस कर बोली “तुम इतनी जल्दी पालने से बाहर क्यों आ गये?”
“मैं मज़ाक के मूड मे नहीं हूँ.” इमरान किसी ज़िद्दी बच्चे की तरह झल्ला कर बोला.
निधी की हँसी तेज़ हो गयी. वो बिल्कुल इसी तरह हंस रही थी जैसे किसी नासमझ बच्चे को चिढ़ा रही हो.
“अच्छा….तो मैं जा रहा हूँ.” इमरान बिगड़ कर उठता हुआ बोला.
“ठहरो…..ठहरो….” वो एका-एक गंभीर हो गयी. “चलो बताओ क्या कह रहे थे.”
“नहीं बताता….” इमरान बैठता हुआ बोला. “मैं किसी से मशविरा लिए बिना ही निबट लूँगा.”
“नहीं…..मुझे बताओ की तुम क्या करना चाहते हो.”
“कितनी बार हलाक फादुन की मैं उस से अपने रुपये वसूल करना चाहता हूँ.”
“खाँ ख़याली है….बचपाना है….” निधी कुच्छ सोचते हुए बोली. “इस इलाक़े मे पुलिस की भी डाल नहीं गली. अंत मे तक हार कर वहाँ ख़तरे का बोर्ड लगाना पड़ा.”
“क्या होटेल वाले भी उस के बड़े मे कुच्छ नहीं जानते?”
“मैं विश्वास से कुच्छ नहीं कह सकती.”
“पुलिस ने उन्हें भी टटोला होगा?”
“क्यों नहीं…..बहुत दिनों तक उस होटेल में पुलिस की एक कॅंप दिन रात तैनात रही है. लेकिन इस के बाद भी वो ख़तरनाक आदमी काम कर ही गुज़राता था.”
“निधी……निधी…..तुम मुझे नहीं रोक सकतीं….” इमरान फिल्आंटी जैसे डाइयलोग बोलने लगा. “मैं उसका सत्यानाश किए बिना यहाँ से नहीं जवँगा.”
“बकवास मत करो.” निधी झुंझला गयी. फिर उस ने कहा “जाओ…..उस कमरे मे सो जाओ. बेड केवल एक है. मैं यहाँ सोफे पर सो जवँगी.”
“नहीं….तुम अपने बेड पर सो जाओ. मैं यहाँ सोफे पर सो जवँगा.” इमरान ने कहा.
इस पर दोनों मे बहस होने लगी. अंत-तह कुच्छ देर बाद इमरान ही को बेडरूम मे जाना पड़ा. निधी वहीं सोफे पर लेट गयी. हल्की सर्दियों का ज़माना था. इसलिए उस ने एक हल्का सा ब्लंकेट अपने पैरों पर डाल लिया. वो अब भी इमरान के बड़े मे ही सोच रही थी. लेकिन उस ख़तनाक और अग्यात आदमी का ख़ौफ़ उस के दिमाग़ पर हावी था.
वो आदमी कोन था…..इस का जवाब शादाब नगर की पुलिस के पास भी नहीं था. उस ने अब तक दर्जनों वारदातें की तीन. लेकिन पुलिस उस तक पहुँचने मे नाकाम रही थी. और फिर सब से अजीब बात ये की एक विशेष एरिया ही उसकी हरकतों का शिकार था. शहर के दूसरे हिस्सों की तरफ वो शायद ही कभी निशाना बनता था.
निधी उस के बड़े मे सोचती रही और उंघति रही. उसे भय था की कहीं वो इधर ही का रुख़ ना करे. इसी लिए उस ने लाइट भी नहीं बुझाई थी. उस के दिमाग़ पर जब भी नींद का झोंका आने लगता उसे ऐसा महसूस होता की उस के कान के पास किसी ने गोली चलाई हो. वो चौंक कर आँख खोल देती.
वॉल क्लॉक 2 बजा रहे थे. अचानक वो बौखला कर उठ बैठी. पता नहीं क्यों उसे लग रहा था जैसे वो ख़तरे मे हो.
वो कुच्छ पल भयभीत निगाहों से इधर उधर देखती रही. फिर सोफे से उठ कर पंजों के बाल चलती हुई उस कमरे के दरवाज़े तक आई जहाँ इमरान सो रहा था.
उस ने दरवाज़े पर हाथ रख कर हल्का सा धक्का दिया. दरवाज़ा खुल गया. लेकिन साथ ही उस की आँखें हैरात से फैल गयीं. बेड खाली पड़ा था और लाइट जल रही थी. उस के दिल की धड़कनें तेज़ हो गयीं……और हलाक सूखने लगा.
अचानक बड़ी तेज़ी से एक ख़याल उस के दिमाग़ मे चकराने लगा. कहीं ये बेवकूफ़ नौजवान ही खौफनाक आदमी का कोई गुरगा ना रहा हो.
वो बेठहाशा बेड के पिच्चे सेफ की तरफ लपकी. उस का हॅंडल पकड़ कर खींचा. सेफ लॉक्ड था. लेकिन वो सोचने लगी…..कीस तो तकिये के नीचे ही रहती हैं. एक बार फिर उस की साँसें तेज़ हो गयीं. उस ने तकिया उलट दिया. कीस ज्यों की त्यों अपनी जगह पर न्यू एअर हुई तीन. लेकिन निधी को संतोष नहीं हुआ. वो सेफ को खोलने लगी. फिर धीरे धीरे उस का मानसिक बिखराव कम होता गया. उसकी सभी कीमती चीज़ें और काश सुरक्षित तीन.
फिर आख़िर वो गया कहाँ? सेफ लॉक कर के वो सीधी खड़ी हो गयी. पिच्चे का गाते खोल कर बाहर निकली तब उसे एहसास हुआ की वो उसी दरवाज़े से निकल गया होगा. दरवाज़ा लॉक्ड नहीं था. हॅंडल घुमाते ही खुल गया था. दूसरी तरफ की राहदारी मे अंधेरा था. वो बाहर निकालने की हिम्मत नहीं कर सकी.उस ने दरवाज़ा बंद कर के अंदर से लॉक कर दिया.
वो फिर उसी कमरे मे आ गयी जहाँ सोफे पर सोई थी. आख़िर वो मूरख इस तरह क्यों चला गया. वो सोचती रही. आख़िर इस तरह भागने की क्या ज़रूरात थी. वो उसे ज़बरदस्ती तो लाई नहीं थी. वो खुद ही आया था. लेकिन क्यों आया था? क्या मकसद था?
अचानक उसे लगा जैसे किसी ने बाहरी गाते पर हाथ मारा हो. वो चौंक कर मूडी मगर इतनी देर मे शीशे के टुकड़े च्चंच्छानाते हुए फर्श पर गिर चुके थे.
फिर टूटे हुए शीशे की जगह से एक हाथ घुस कर चितखनी तलाश करने लगा. बड़ा सा हाथ जो बालों से धक्का हुआ था. निधी के कंठ से एक दबी दबी सी चीख निकली. लेकिन दूसरे ही पल वो हाथ गायब हो गया…….और निधी को ऐसा लगा जैसे बाहर दो आदमी एक दूसरे से हाता पाई कर रहे हों.
निधी बैठी हाँफती रही. फिर उस ने एक दर्द भारी चीख सुनी साथ ही ऐसा लगा जैसे कोई बहुत भारी सी चीज़ ज़मीन पर गिरी हो.
एक भयानक आदमी – 4