Re: एक भयानक आदमी – Indian Sex Thriller
Posted: 06 Oct 2015 11:16
“नहीं…….पड़ोस मे है और फिने भी है.”
“ज़रा लाओ तो डाइरेक्टरी?” इमरान ने कहा.
“तुम भी साथ चलो.”
“श……….चलो.”
वो दोनों बाहर निकले. निधी बराबर वाले फ्लॅट मे चली गयी और इमरान बाहर उस का इंतेज़ार कराता रहा.
5 मिनूट बाद निधी बाहर आई.
वापसी पर भी निधी ने बहुत सतर्कता से दरवाज़ा बंद किया. डाइरेक्टरी मे सिक्स नोट की तलाश शुरू हो गयी. ये नंबर कहीं ना मिला.
“मुझे तो ये बकवास ही लगता है.” निधी बोली “हो सकता है की ये लेटर किसी और ने मुझे डराने के लिए भेजा हो.”
“मगर इन घतनाओं से और कोन वाकिफ़ है?”
“क्यों………..कल जब तुम पर हमला हुआ था तो होटेल मे दर्जनों आदमी मौजूद थे……और ज़ाहिर है की तुम ही मुझे अपने कंधे पर उठा कर होटेल तक ले गये थे. तुम मेरे ही पास से उठ कर कसीनो मे भी गये थे.”
इमरान खामोश रहा और कुच्छ सोच रहा था. फिर कुच्छ पल बाद उस ने कहा “हम रात का खाना किसी शानदार होटेल मे खाएँगे.”
“फिर वही पागलपन. नहीं हम इस समय कहीं नहीं जाएँगे.” निधी ने कठोराता से कहा.
“तुम्हें चलना पड़ेगा…….वरना मुझे रात भर नींद नहीं आएगी.”
“क्यों…..नींद क्यों नहीं आएगी?”
“कुच्छ नहीं….” इमरान गंभीराता से बोला “बस यही सोच कर कुढता रहूँगा की तुम मेरी हो कोन……जो मेरा कहा मन लॉगी.”
निधी उसे गौर से देखने लगी. “क्या सच मच तुम्हें इस से दुख पहुँचेगा?” उस ने धीरे से पुचछा.
“जब मेरी कोई इच्छा पूरी नहीं होती तो मेरा दिल चाहता है की फूट फूट कर रोऊँ.” इमरान ने बड़ी मासूमियत से कहा.
निधी फिर उसे गौर से देखने लगी. इमरान के चेहरे पर मूरखता फैल गयी थी.
“ओक……मैं चलूंगी.” निधी ने धीरे से कहा और इमरान की आँखें मसरूर बच्चों की आँखों की तरह चमकने लगी.
थोड़ी देर बाद निधी तैयार हो कर निकली और इमरान को इस तरह देखने लगी जैसे हुस्न की अंकल माँग रही हो.
इमरान ने बुरा सा मूह बना कर कहा “तुम से अच्छा मेक-उप तो मैं कर सकता हूँ.”
“तूमम्म….!!”
“हन…..क्यों नहीं. अच्छा फिर कभी. अब हमें बाहर चलना चाहिए.”
“तुम बेमतलब मुझे चिढ़ाते हो.” निधी झुंझला कर बोली.
“अफ़सोस की तुम्हें उर्दू नहीं आती वरना मैं कहता….. उन को आता है प्यार पर गुस्सा; हम ही कर बैठे थे ग़ालिब पेश दस्ती एक दिन.”
[दोस्तो…….यहाँ इमरान ने ग़ालिब की शायरी की ऐसी तैसी कर डाली है.]
“चलो बकवास मत करो.” वो इमरान को दरवाज़े की तरफ धकेलते हुए बोली.
निधी इस समय सच मच हसीन लग रही थी. इमरान ने नीचे उतार कर एक टॅक्सी की और वो दोनों “वाइट मार्बल” के लिए निकल पड़े. ये यहाँ का सब से बड़ा और शानदार होटेल था.
“निधी क्यों ना मैं उसे फोन करूँ.” इमरान बोला.
“मगर डाइरेक्टरी मे नंबर कहाँ मिला. नहीं डियर……किसी ने मज़ाक किया है मुझ से.”
“मैं ऐसा नहीं समझता.”
“तुम्हारी समझ ही कब इस लायक है…..की कुच्छ समझ सको.”
“मैं कहता हूँ सिक्स नोट ***** पर डाइयल करो. अगर जवाब ना मिले तो अपने कान उखाड़ लेना…..अरे नहीं…..मेरे कान.”
“मगर मैं कहूँगी क्या?”
“सुनो…….रास्ते मे किसी पब्लिक बूत से फोन करेंगे. तुम कहना की वो एक पागल रईस-ज़डा है. कहीं बाहर से आया है. लेकिन आज एक मुश्किल मे फँस गया है. रिश्वत दे कर किसी तरह से जान च्चुदाई. उस के पास ग़लती से कुच्छ जाली नोट आ गये हैं……..जिन्हें चलता हुआ आज पकड़ा गया था.”
“जाली नोट…..!” निधी ने घबरा कर कहा.
“हन निधी ये सही है….” इमरान ने दर्द भारी आवाज़ मे कहा “आज मैं बाल बाल बचा…..वरना जैल मे होता. मेरे नोटों मे कुच्छ जाली नोट मिक्स हो गये हैं. मैं नहीं जानता की वो कहाँ से आए हैं.”
“लेकिन कहीं वो उनहीं पॅकेट्स के तो नहीं जो तुम ने उस से पिच्छली रात छ्चीने थे.”
“पता नहीं.” इमरान निराश स्वर मे बोला “मुझ से हिमाकत ये हुई की मैं ने उन नोटों को दूसरे नोटों मे मिला दिया है.”
“तुम मुझे सच क्यों नहीं बताते की तुम कोन हो?” निधी भिन्ना कर बोली.
“मैं ने सब कुच्छ बता दिया है निधी.”
“यानी तुम सच मच अहमक हो….”
“तुम बात बात पर मेरी तौहीन कराती हो.” इमरान बिगड़ गया.
“अरे नहीं नहीं….” निधी उस के सर पर हाथ फेराती हुई बोली “अच्छा जाली नोटों का क्या मामला है?”
“मैं तो कहता हूँ की ये उसी लड़की की हरकत है जो मुझे रेलवे स्टेशन के वेटिंग रूम मे मिली थी. उस ने असली नोटों के पॅकेट्स गायब कर के जाली नोट रख दिए और फिर मुझे एबीसी होटेल मे मिलने केलिए बुलाया. मेरा दावा है की वो उसी अग्यात आदमी की एजेंट थी. और अब मैं ये सोच रहा हूँ की पिच्छली रात मैं ने जो पॅकेट छ्चीने हैं वो वास्तव मे मैं ने छ्चीने नहीं बल्कि वो खुद ही मेरे हवाले कर गया है. जानती हो इस का क्या मतलब हुआ. यानी जो पॅकेट अब भी उस के पास हैं वो असली नोटों के हैं. इसका मतलब वो फिर मुझ से असली ही नोट ले गया है और जाली मेरे सर तोप गया.”
“अच्छा वो नोट जो तुम जुवे मे हारे थे….” निधी ने पुचछा.
उन के बड़े मे भी मैं कुच्छ नहीं कह सकता. हो सकता है की जाली हों……या उन मे भी कुच्छ असली नोट चले गये हों. अब तो असली और नकली मिक्स हो कर रह गये हैं. मेरी हिम्मत नहीं पड़ती की उन मे से किसी नोट को हाथ लगओन.”
“मगर उस लड़की ने तुम्हारे नोट किस तरह उसाए होंगे?”
“श….” इमरान की आवाज़ फिर दर्दनाक हो गयी. “मैं बड़ा बाद-नसीब आदमी हूँ……..बल्कि अब मुझे विश्वास हो गया है की मूरख भी हूँ. तुम ठीक कहती हो………हन तो कल सुबह ठंडक ज़्यादा थी ना……मैं ने जॅकेट पहन रखा था और 15-20 पॅकेट्स उस की जेबों मे ठूंस रखे थे.”
“तुम मूरख से भी कुच्छ अधिक लगते हो.” निधी झल्ला कर बोली.
“नहीं सुनो तो. मैं ने अपने हिसाहब से बड़ी अकल्मंदी की थी. एक बार की बात है मेरे चाचा सफ़र कर रहे थे. उनके पास 15 हज़ार रुपये थे…..जो उन्हों ने सूट-केस मे रख छोड़े थे. सूट-केस रास्ते मे कहीं गायब हो गया. तब से मेरी ये आदत है की हमेशा सफ़र मे सारी रकम अपने पास ही रखता हूँ. पहले कभी ऐसा धोका नहीं खाया…..ये पहली चोट है.”
“लेकिन आख़िर उस लड़की ने तुम पर किस तरह हाथ सॉफ किया?”
“ये मत पुच्च्ो…..मैं बिल्कुल उल्लू हूँ.”
“मैं जानती हूँ की तुम उल्लू हो…..लेकिन मैं ज़रूर पुच्हूँगी.”
“अरे…..उस ने मुझे उल्लू बनाया था. कहने लगी तुम्हारी शकल मेरे दोस्त से बहुत मिलती है जो पिच्छले साल एक दुर्घतना का शिकार हो कर मार गया. मैं उसे बहुत चाहती थी…..बस पंद्रह मिनूत्स मे बेठाकल्लूफ हो गयी. मैं कुच्छ तका सा था. कहने लगी क्या तुम बीमार हो. मैं ने कहा नहीं सर मे दर्द है. बोली लाओ चम्पी कर दूं……चम्पी समझती हो?”
“नहीं मैं नहीं जानती.” निधी ने कहा.
इमरान उस के सर पर चम्पी करने लगा.
“हटो….मेरे बाल बिगाड़ रहे हो.” निधी उस का हाथ झटक कर बोली.
“हन तो वो चम्पी कराती रही और मैं वेटिंग रूम की ईज़ी चेर पर सो गया. फिर शायद आधे गहनते बाद आँख खुली. वो बराबर चम्पी किए जा रही थी. सच कहता हूँ उस समय वो मुझे बहुत अच्छी लग रही थी और मेरा दिल चाह रहा था की वो इसी तरह सारी ज़िंदगी चम्पी किए जाए….फिर एबीसी होटेल मे मिलने का वादा कर के मुझ से हमेशा के लिए जुड़ा हो गयी.”
इमरान की आवाज़ काँपने लगी थी. ऐसा लग रहा था जैसे वो अब रो देगा.
“हाएन्न…….बुद्धू…..तुम उसके लिए रो रहे हो जिस ने तुम्हें लूट लिया.” निधी हंस पड़ी.
“श…..मैं रो रहा हूँ.” इमरान अपने दोनों गालों पर थप्पड़ माराता हुआ बोला, “नहीं मैं गुस्से मे हूँ. जहाँ वो मिली उस का गला घोंट दूँगा.”
“बस करो मेरे शेर……..बस करो.” निधी उस का कंधा तपकते हुए बोली.
“अब तुम मेरा मज़ाक उसा रही हो.” इमरान बिगड़ गया.
“नहीं……मुझे तुम से हमदर्दी है. लेकिन मैं सोच रही हूँ की अगर जुवे मे भी तुम जाली नोट हारे हो तो अब वहाँ जाना भी कठिन होगा. हुच्छ आश्चर्या नहीं की मुझे उसके लिए भी भुगतना पड़े.”
“नहीं…..तुम परवाह ना करो. तुम्हारा कोई बाल भी बाका नहीं कर सकता. मैं लाखों रुपये खर्च कर दूँगा.”
निधी कुच्छ ना बोली. वो कुच्छ सोच रही थी.
“मेरी समझ से यहाँ एक टेलिफोन बूत है.” इमरान ने कहा और ड्राइवर से बोला “गाड़ी रोक दो.”
टॅक्सी रुक गयी. निधी और इमरान नीचे उतार गये.
बूत खाली था. निधी ने एक बार फिर इमरान से पुचछा की उसे क्या कहना है. इमरान ने इस बड़े मे कुच्छ देर पहले कहे हुए सेंटेन्स दुहरा दिए. निधी फोन मे काय्न्स डाल कर नंबर डाइयल करने लगी और फिर इमरान ने उस के चेहरे पर हैरात के भाव देखे.
वो एक ही साँस मे वो सब दुहरा गयी जो इमरान ने बताया था. फिर खामोश हो कर शायद दूसरी तरफ से बोलने वाले की बात सुनने लगी.
“देखिए….” उस ने थोड़ी देर बाद मौत पीस मे कहा “मुझे जो कुच्छ भी मालूम था मैं ने बता दिया. इस से अधिक मैं कुच्छ भी नहीं जानती. वैसे मुझे भी उस के बड़े मे चिंता है….की उस की असलियत क्या है. प्रकट मे तो वो मूरख और पागल लगता है.”
“आया कहाँ से है?” दूसरी तरफ से आवाज़ आई.
“वो कहता है की दिलावरपूरे से आया हूँ.”
“क्या वो इस समय तुम्हारे पास मौजूद है?”
“नहीं…..बाहर टॅक्सी मे है. मैं एक पब्लिक बूत से बोल रही हूँ. उस से बहाना कर के आई हूँ की अपनी एक फ्रेंड को एक खबर देनी है.”
“कल रात से पहले भी उस से कभी मुलाकात हुई थी?”
“नहीं……कभी नहीं.”
“क्या उसे मेरा लेटर दिखाया था?”
“नहीं….क्या दिखा दूं?” निधी ने पुच्छ लेकिन इस का कोई जवाब नहीं मिला.
दूसरी तरफ से फोन काट चुका था. निधी ने रिसीवर रख दिया. इमरान ने फ़ौरन इनक़ुआरी के नंबर डाइयल किए.
एक भयानक आदमी – 7
“ज़रा लाओ तो डाइरेक्टरी?” इमरान ने कहा.
“तुम भी साथ चलो.”
“श……….चलो.”
वो दोनों बाहर निकले. निधी बराबर वाले फ्लॅट मे चली गयी और इमरान बाहर उस का इंतेज़ार कराता रहा.
5 मिनूट बाद निधी बाहर आई.
वापसी पर भी निधी ने बहुत सतर्कता से दरवाज़ा बंद किया. डाइरेक्टरी मे सिक्स नोट की तलाश शुरू हो गयी. ये नंबर कहीं ना मिला.
“मुझे तो ये बकवास ही लगता है.” निधी बोली “हो सकता है की ये लेटर किसी और ने मुझे डराने के लिए भेजा हो.”
“मगर इन घतनाओं से और कोन वाकिफ़ है?”
“क्यों………..कल जब तुम पर हमला हुआ था तो होटेल मे दर्जनों आदमी मौजूद थे……और ज़ाहिर है की तुम ही मुझे अपने कंधे पर उठा कर होटेल तक ले गये थे. तुम मेरे ही पास से उठ कर कसीनो मे भी गये थे.”
इमरान खामोश रहा और कुच्छ सोच रहा था. फिर कुच्छ पल बाद उस ने कहा “हम रात का खाना किसी शानदार होटेल मे खाएँगे.”
“फिर वही पागलपन. नहीं हम इस समय कहीं नहीं जाएँगे.” निधी ने कठोराता से कहा.
“तुम्हें चलना पड़ेगा…….वरना मुझे रात भर नींद नहीं आएगी.”
“क्यों…..नींद क्यों नहीं आएगी?”
“कुच्छ नहीं….” इमरान गंभीराता से बोला “बस यही सोच कर कुढता रहूँगा की तुम मेरी हो कोन……जो मेरा कहा मन लॉगी.”
निधी उसे गौर से देखने लगी. “क्या सच मच तुम्हें इस से दुख पहुँचेगा?” उस ने धीरे से पुचछा.
“जब मेरी कोई इच्छा पूरी नहीं होती तो मेरा दिल चाहता है की फूट फूट कर रोऊँ.” इमरान ने बड़ी मासूमियत से कहा.
निधी फिर उसे गौर से देखने लगी. इमरान के चेहरे पर मूरखता फैल गयी थी.
“ओक……मैं चलूंगी.” निधी ने धीरे से कहा और इमरान की आँखें मसरूर बच्चों की आँखों की तरह चमकने लगी.
थोड़ी देर बाद निधी तैयार हो कर निकली और इमरान को इस तरह देखने लगी जैसे हुस्न की अंकल माँग रही हो.
इमरान ने बुरा सा मूह बना कर कहा “तुम से अच्छा मेक-उप तो मैं कर सकता हूँ.”
“तूमम्म….!!”
“हन…..क्यों नहीं. अच्छा फिर कभी. अब हमें बाहर चलना चाहिए.”
“तुम बेमतलब मुझे चिढ़ाते हो.” निधी झुंझला कर बोली.
“अफ़सोस की तुम्हें उर्दू नहीं आती वरना मैं कहता….. उन को आता है प्यार पर गुस्सा; हम ही कर बैठे थे ग़ालिब पेश दस्ती एक दिन.”
[दोस्तो…….यहाँ इमरान ने ग़ालिब की शायरी की ऐसी तैसी कर डाली है.]
“चलो बकवास मत करो.” वो इमरान को दरवाज़े की तरफ धकेलते हुए बोली.
निधी इस समय सच मच हसीन लग रही थी. इमरान ने नीचे उतार कर एक टॅक्सी की और वो दोनों “वाइट मार्बल” के लिए निकल पड़े. ये यहाँ का सब से बड़ा और शानदार होटेल था.
“निधी क्यों ना मैं उसे फोन करूँ.” इमरान बोला.
“मगर डाइरेक्टरी मे नंबर कहाँ मिला. नहीं डियर……किसी ने मज़ाक किया है मुझ से.”
“मैं ऐसा नहीं समझता.”
“तुम्हारी समझ ही कब इस लायक है…..की कुच्छ समझ सको.”
“मैं कहता हूँ सिक्स नोट ***** पर डाइयल करो. अगर जवाब ना मिले तो अपने कान उखाड़ लेना…..अरे नहीं…..मेरे कान.”
“मगर मैं कहूँगी क्या?”
“सुनो…….रास्ते मे किसी पब्लिक बूत से फोन करेंगे. तुम कहना की वो एक पागल रईस-ज़डा है. कहीं बाहर से आया है. लेकिन आज एक मुश्किल मे फँस गया है. रिश्वत दे कर किसी तरह से जान च्चुदाई. उस के पास ग़लती से कुच्छ जाली नोट आ गये हैं……..जिन्हें चलता हुआ आज पकड़ा गया था.”
“जाली नोट…..!” निधी ने घबरा कर कहा.
“हन निधी ये सही है….” इमरान ने दर्द भारी आवाज़ मे कहा “आज मैं बाल बाल बचा…..वरना जैल मे होता. मेरे नोटों मे कुच्छ जाली नोट मिक्स हो गये हैं. मैं नहीं जानता की वो कहाँ से आए हैं.”
“लेकिन कहीं वो उनहीं पॅकेट्स के तो नहीं जो तुम ने उस से पिच्छली रात छ्चीने थे.”
“पता नहीं.” इमरान निराश स्वर मे बोला “मुझ से हिमाकत ये हुई की मैं ने उन नोटों को दूसरे नोटों मे मिला दिया है.”
“तुम मुझे सच क्यों नहीं बताते की तुम कोन हो?” निधी भिन्ना कर बोली.
“मैं ने सब कुच्छ बता दिया है निधी.”
“यानी तुम सच मच अहमक हो….”
“तुम बात बात पर मेरी तौहीन कराती हो.” इमरान बिगड़ गया.
“अरे नहीं नहीं….” निधी उस के सर पर हाथ फेराती हुई बोली “अच्छा जाली नोटों का क्या मामला है?”
“मैं तो कहता हूँ की ये उसी लड़की की हरकत है जो मुझे रेलवे स्टेशन के वेटिंग रूम मे मिली थी. उस ने असली नोटों के पॅकेट्स गायब कर के जाली नोट रख दिए और फिर मुझे एबीसी होटेल मे मिलने केलिए बुलाया. मेरा दावा है की वो उसी अग्यात आदमी की एजेंट थी. और अब मैं ये सोच रहा हूँ की पिच्छली रात मैं ने जो पॅकेट छ्चीने हैं वो वास्तव मे मैं ने छ्चीने नहीं बल्कि वो खुद ही मेरे हवाले कर गया है. जानती हो इस का क्या मतलब हुआ. यानी जो पॅकेट अब भी उस के पास हैं वो असली नोटों के हैं. इसका मतलब वो फिर मुझ से असली ही नोट ले गया है और जाली मेरे सर तोप गया.”
“अच्छा वो नोट जो तुम जुवे मे हारे थे….” निधी ने पुचछा.
उन के बड़े मे भी मैं कुच्छ नहीं कह सकता. हो सकता है की जाली हों……या उन मे भी कुच्छ असली नोट चले गये हों. अब तो असली और नकली मिक्स हो कर रह गये हैं. मेरी हिम्मत नहीं पड़ती की उन मे से किसी नोट को हाथ लगओन.”
“मगर उस लड़की ने तुम्हारे नोट किस तरह उसाए होंगे?”
“श….” इमरान की आवाज़ फिर दर्दनाक हो गयी. “मैं बड़ा बाद-नसीब आदमी हूँ……..बल्कि अब मुझे विश्वास हो गया है की मूरख भी हूँ. तुम ठीक कहती हो………हन तो कल सुबह ठंडक ज़्यादा थी ना……मैं ने जॅकेट पहन रखा था और 15-20 पॅकेट्स उस की जेबों मे ठूंस रखे थे.”
“तुम मूरख से भी कुच्छ अधिक लगते हो.” निधी झल्ला कर बोली.
“नहीं सुनो तो. मैं ने अपने हिसाहब से बड़ी अकल्मंदी की थी. एक बार की बात है मेरे चाचा सफ़र कर रहे थे. उनके पास 15 हज़ार रुपये थे…..जो उन्हों ने सूट-केस मे रख छोड़े थे. सूट-केस रास्ते मे कहीं गायब हो गया. तब से मेरी ये आदत है की हमेशा सफ़र मे सारी रकम अपने पास ही रखता हूँ. पहले कभी ऐसा धोका नहीं खाया…..ये पहली चोट है.”
“लेकिन आख़िर उस लड़की ने तुम पर किस तरह हाथ सॉफ किया?”
“ये मत पुच्च्ो…..मैं बिल्कुल उल्लू हूँ.”
“मैं जानती हूँ की तुम उल्लू हो…..लेकिन मैं ज़रूर पुच्हूँगी.”
“अरे…..उस ने मुझे उल्लू बनाया था. कहने लगी तुम्हारी शकल मेरे दोस्त से बहुत मिलती है जो पिच्छले साल एक दुर्घतना का शिकार हो कर मार गया. मैं उसे बहुत चाहती थी…..बस पंद्रह मिनूत्स मे बेठाकल्लूफ हो गयी. मैं कुच्छ तका सा था. कहने लगी क्या तुम बीमार हो. मैं ने कहा नहीं सर मे दर्द है. बोली लाओ चम्पी कर दूं……चम्पी समझती हो?”
“नहीं मैं नहीं जानती.” निधी ने कहा.
इमरान उस के सर पर चम्पी करने लगा.
“हटो….मेरे बाल बिगाड़ रहे हो.” निधी उस का हाथ झटक कर बोली.
“हन तो वो चम्पी कराती रही और मैं वेटिंग रूम की ईज़ी चेर पर सो गया. फिर शायद आधे गहनते बाद आँख खुली. वो बराबर चम्पी किए जा रही थी. सच कहता हूँ उस समय वो मुझे बहुत अच्छी लग रही थी और मेरा दिल चाह रहा था की वो इसी तरह सारी ज़िंदगी चम्पी किए जाए….फिर एबीसी होटेल मे मिलने का वादा कर के मुझ से हमेशा के लिए जुड़ा हो गयी.”
इमरान की आवाज़ काँपने लगी थी. ऐसा लग रहा था जैसे वो अब रो देगा.
“हाएन्न…….बुद्धू…..तुम उसके लिए रो रहे हो जिस ने तुम्हें लूट लिया.” निधी हंस पड़ी.
“श…..मैं रो रहा हूँ.” इमरान अपने दोनों गालों पर थप्पड़ माराता हुआ बोला, “नहीं मैं गुस्से मे हूँ. जहाँ वो मिली उस का गला घोंट दूँगा.”
“बस करो मेरे शेर……..बस करो.” निधी उस का कंधा तपकते हुए बोली.
“अब तुम मेरा मज़ाक उसा रही हो.” इमरान बिगड़ गया.
“नहीं……मुझे तुम से हमदर्दी है. लेकिन मैं सोच रही हूँ की अगर जुवे मे भी तुम जाली नोट हारे हो तो अब वहाँ जाना भी कठिन होगा. हुच्छ आश्चर्या नहीं की मुझे उसके लिए भी भुगतना पड़े.”
“नहीं…..तुम परवाह ना करो. तुम्हारा कोई बाल भी बाका नहीं कर सकता. मैं लाखों रुपये खर्च कर दूँगा.”
निधी कुच्छ ना बोली. वो कुच्छ सोच रही थी.
“मेरी समझ से यहाँ एक टेलिफोन बूत है.” इमरान ने कहा और ड्राइवर से बोला “गाड़ी रोक दो.”
टॅक्सी रुक गयी. निधी और इमरान नीचे उतार गये.
बूत खाली था. निधी ने एक बार फिर इमरान से पुचछा की उसे क्या कहना है. इमरान ने इस बड़े मे कुच्छ देर पहले कहे हुए सेंटेन्स दुहरा दिए. निधी फोन मे काय्न्स डाल कर नंबर डाइयल करने लगी और फिर इमरान ने उस के चेहरे पर हैरात के भाव देखे.
वो एक ही साँस मे वो सब दुहरा गयी जो इमरान ने बताया था. फिर खामोश हो कर शायद दूसरी तरफ से बोलने वाले की बात सुनने लगी.
“देखिए….” उस ने थोड़ी देर बाद मौत पीस मे कहा “मुझे जो कुच्छ भी मालूम था मैं ने बता दिया. इस से अधिक मैं कुच्छ भी नहीं जानती. वैसे मुझे भी उस के बड़े मे चिंता है….की उस की असलियत क्या है. प्रकट मे तो वो मूरख और पागल लगता है.”
“आया कहाँ से है?” दूसरी तरफ से आवाज़ आई.
“वो कहता है की दिलावरपूरे से आया हूँ.”
“क्या वो इस समय तुम्हारे पास मौजूद है?”
“नहीं…..बाहर टॅक्सी मे है. मैं एक पब्लिक बूत से बोल रही हूँ. उस से बहाना कर के आई हूँ की अपनी एक फ्रेंड को एक खबर देनी है.”
“कल रात से पहले भी उस से कभी मुलाकात हुई थी?”
“नहीं……कभी नहीं.”
“क्या उसे मेरा लेटर दिखाया था?”
“नहीं….क्या दिखा दूं?” निधी ने पुच्छ लेकिन इस का कोई जवाब नहीं मिला.
दूसरी तरफ से फोन काट चुका था. निधी ने रिसीवर रख दिया. इमरान ने फ़ौरन इनक़ुआरी के नंबर डाइयल किए.
एक भयानक आदमी – 7