एक भयानक आदमी – Indian Sex Thriller
एक भयानक आदमी – Indian Sex Thriller
निधी उसे बहुत देर से देख रही थी. वो शाम ढलते ही होटेल मे प्रवेश किया था और अब 7 बाज रहे थे. समंदर की तरफ से आने वाली हवाएँ कुच्छ बोझल सी हो गयी तीन.
जब वो होटेल मे दाखिल हुआ था तब निधी की मेज़ के अलावा सारी मेज़ें खाली पड़ी तीन. लेकिन अब होटेल मे तिल धरने की जगह नहीं थी.
वो एक हॅंडसम और वाले ड्रेस्ड नौजवान था. लेकिन ये कोई ऐसी ख़ास बात नहीं थी जिस के कारण निधी उस की तरफ अट्रॅक्ट होती. इसी होटेल मे उस ने अब से पहले दर्जनों हंडसों आदमियों के साथ सैकड़ों रातें बिठाई तीन……और उस की ये फीलिंग कभी की फ़ना हो चुकी थी जो ओपपॉसित सेक्स की सुंदराता की तरफ आकर्षित होने के लिए उकसाती.
निधी एक आंग्लो-बरमेसए लड़की थी. कभी वो एक खिलती काली थी…..लेकिन अब वो बहुत पूरेानी बात हो चुकी. ये उस समय की बात थी जब सिंगापूरे पर जापानियों ने बोम्बारी की थी…..और जिधर जिसका सींग समाया भाग निकला था. ऋषि एक टीनेजर लड़की थी. उसका बाप सिंगपूरे का एक बहुत बड़ा बिज़्नेसमॅन था. लेकिन बहुत बड़े बिज़्नेसमॅन की बेटी होने का ये मतलब तो नहीं की निधी 3 दीनो की भूकि होने के बाद एक कप चाय के बदले अपनी वर्जिनिटी नहीं खो देती. हो सकता है की उस के बाप को एक कप चाय भी नहीं मिल पाई हो…..क्यों की उस मे लड़की से औरात बनने की च्चामता तो थी नहीं.
एनीवे निधी अपने बाप के अंजम से आज तक अंजान थी. और अब वो एक 25 साल की वाले मेट्यूर्ड लेडी थी. लेकिन अब वो…..वो निधी नहीं थी. चाय का वो कप उसे आज भी याद था. और वो अब तक दर्जनों आदमियों को एक एक कप चाय के लिए मुहताज कर चुकी थी.
अब उस के पास एक डेलूक्ष टाइप वाले डेकरेटेड फ्लॅट था. दुनिया की सारी सुख सुविधा उसके पास थी और उसे विश्वास था की अब कभी वो भूकि नहीं रहेगी.
ये होटेल उस के कारोबार के लिए बहुत मुनासिब था और वो अधिक तार रातें यहीं गुज़ाराती थी. ये होटेल कारोबार के लिए ऐसे मुनासिब था की बंदरगाह यहाँ से करीब था…..और दिन रात यहाँ विदेशियों का ताँता बँधा रहता था. इन मे अधिक तार सफेद नस्ल के होते थे. और ये होटेल चलता भी उनहीं के दम से था. वरना आम शहरी इधर का रुख़ भी नहीं करते थे. मगर निधी इस कारण भी उस नौजवान मे इंटेरेस्ट नहीं ले रही थी…..की वो कोई विदेशी या कोई नाविक नहीं था.
बात वास्तव मे ये थी की वो जब से आया था….कदम कदम पे उस से मूरखटाएँ हो रही तीन. जैसे ही वेटर ने हाथ उठा कर उसे सलाम किया…..उस ने भी उसी तरीका से ना केवल उस के सलाम का जवाब दिया बल्कि बड़ी विनम्राता से खड़े हो कर उस से हाथ भी मिलाने लगा और काफ़ी देर तक उस के बाल बचों की हाल चाल पुचहता रहा.
पहले उस ने चाय मँगवाई…..और चुप बैठा रहा….यहाँ तक की चाय ठंडी हो गयी. फिर एक घूँट ले कर बुरा सा मुहह बनाने के बाद उस ने चाय वापस कर के कॉफी का ऑर्डर दिया.
कॉफी शायद ठंडी चाय से अधिक बाद-मज़ा लगी…..और उस ने कुच्छ इस तरह मुहह बनाया जैसे उबकाई रोक रहा हो. फिर उस ने कॉफी भी वापस कर दी…..और ठंडे पानी के काई ग्लास एक के बाद एक चढ़ा गया.
अंधेरा फैल गया और होटेल की लाइट्स जल गयी…..लेकिन उस मूरख नौजवान ने शायद वहाँ से ना उठने की कसम खा ली थी.
निधी की दिलचस्पी बढ़ती रही. वो भी अपनी जगह पे जम सी गयी.
डिन्नर टाइम होने से पहले ही टेबल क्लॉत्स चेंज कर दिए गये और मेज़ों पे तरो-ताज़ा फूलों के गुलदस्तों(फ्लवर पोत) के साथ ही ऐसे ग्लास भी रखे गये जिन मे नॅपकिन्स डाले हुए थे.
उस बेवकूफ़ नौजवान ने अपनी चेर पिच्चे खिसका ली थी और एक वेटर उसकी मेज़ भी ठीक कर रहा था. वेटर के हट‚ते ही वो एक गुलाब, फ्लवर पोत से निकाल कर सूंघने लगा. वो अपनी सोचों मे खोया हुआ सा लग रहा था और उस ने एक बार भी अपने आस पास नज़र डालने का कष्ट नहीं किया था. शायद वो खुद को वहाँ अकेला समझ रहा था.
निधी उसे देखती रही और अब वो ना जाने क्यों उस मे ख़ास तरह का अट्रॅक्षन महसूस करने लगी थी. उस ने काई बार वहाँ से उतना भी चाहा लेकिन उठ ना सकी.
डिन्नर टाइम होने पर नौजवान ने डिन्नर का ऑर्डर दिया. गुलाब अब भी उसकी उंगलियों मे दबा हुआ था…..जिसे वो कभी सूंघने लगता और कभी आँखें बंद कर के इस तरह उस से अपने गाल सहलाता.
खाना मेज़ पर आ चुका…..लेकिन वो वैसे ही खामोश शांत बैठा रहा. वो अब भी कुच्छ सोच रहा था. और ऐसा लग रहा था जैसे वेटर के आने और खाना लग जाने का उस को पता ही ना हो.
अचानक निधी ने देखा की वो गुलाब का फूल करी या डाल मे डुबो रहा है और फिर वो उसे चबा भी गया. लेकिन दूसरे ही पल उस ने इतना बुरा सा मूह बनाया की निधी को अनायास हँसी आ गयी. उस के मुहह से कुचले हुए फूल के टुकड़े फिसल फिसल कर गिर रहे थे.
“बॉय…” उस ने रो देने जैसे ढंग से वेटर को पुकारा…..और काई लोग चौंक कर उसे देखने लगे. डाइनिंग हॉल अब काफ़ी भर चुका था.
“सब चौपट….” उस ने रुँधे हुए स्वर मे कहा….”सब ले जाओ…..बिल लाओ.”
“बात क्या है सिर….?” वेटर ने बड़े आदर से पुचछा.
“बात कुच्छ नहीं…..सब मुक़द्दर की खराबी है. आज किसी चीज़ मे भी मज़ा नहीं मिल रहा.” नौजवान ने दुखी स्वर मे कहा “बिल लाओ.”
वेटर बर्तन समेत कर वापस चला गया…..फिर बिल ले कर वापस लौटा. नौजवान ने प्लेट मे रखे बिल पर निगाह डाली और अपनी जेबें टटोलने लगा.
फिर देखते ही देखते उसकी जेबों से नोटों की काई गद्दियाँ निकल आईं….जिन्हें वो मेज़ पर डालता हुआ खड़ा हो गया और अब वो अपनी भीतरी जेबें टटोल रहा था.
अंत मे उस ने एक खुली हुई गद्दी निकाली और उस मे से कुच्छ नोट खींच कर प्लेट मे डाल दिया.
निधी की आँखें हैरात से फैल गयी तीन और वो नौजवान बड़ी लापरवाही से मेज़ पर पड़ी हुई नोटों की गद्दियों को कोट की जेबों मे ठूंस रहा था.
निधी ने चारों तरफ नज़र दौड़ाई और उस ने देखा की डाइनिंग हॉल के सारे लोग उस अहमक को बुरी तरह घूर रहे हैं…..और उसे वहाँ कुच्छ बुरे लोग भी दिखाई दिए जो ललचाई हुई निगाहों से उसे देख रहे थे.
निधी अपनी जगह से उठी और धीरे धीरे चलती हुई उस अहमाक़ की मेज़ के निकट पहुँच गयी. वो जानती थी की उस का क्या अंजम होने वाला है. डाइनिंग हॉल के बाद दूसरे ही कमरे मे बहुत ही बड़े पैमाने पर जुवा होता था. वो जानती थी की अभी 2-3 दलाल उसे घेर कर उस कमरे मे ले जाएँगे और कुच्छ ही घंटों के बाद वो कौड़ी कौड़ी का मुहताज हो जाएगा.
“कहो तोते……अच्छे तो हो….” निधी ने नौजवान के कंधे पर हाथ रख कर बहुत ही फ्री ढंग से कहा…..जैसे वो ना केवल उसे जानती हो बल्कि दोनों गहरे दोस्त भी हों.
नौजवान चौंक कर उसे मूरखों की तरह देखने लगा. उस के होन्ट खुले हुए थे…..और आँखें हैरात से फैल गयी तीन.
“अब तुम कहोगे की मैं ने तुम्हें पहचाना नहीं.” निधी इठला कर बोली और चेर खींच कर बैठ गयी. दूसरी तरफ कसीनो के दलाल एक दूसरे को देख कर मुस्कुरा रहे थे.
“आहा…..क्या तुम्हें बोलना नहीं आता?” निधी फिर बोली.
“एमेम….व्व…वो….हॅप….” नौजवान हकला कर रह गया.
“तुम शायद पागल हो.” वो मेज़ पर कोहनियाँ टेक कर आगे झुकती हुई धीरे से बोली “इस ख़तरनाक इलाक़े मे अपने धनी होना दिखाने का यही मतलब हो सकता है.”
“ख़तरनाक इलाक़ा….!” नौजवान आँखें फाड़ कर कुर्दी की बॅक से टिक गया.
“हन….मेरे तोते……….क्या तुम पहली बार यहाँ आए हो?”
नौजवान से हाँ मे सर हिलाया.
“क्या करते हो?”
“उस ने यहीं मिलने का वादा किया था.” नौजवान ने शर्मा कर कहा. “किस ने….? क्या कोई लड़की है?”
नौजवान ने फिर सर हिला दिया. लेकिन इस बार उस ने शर्म के मारे उस से आँखें नहीं मिलाई. वो किसी ऐसी कुँवारी लड़की की तरह लाजा रहा था जिस के सामने उस की शादी की चर्चा च्छेद दिया गया हो.”
निधी ने उस पर रहम भारी निगाह डाली.
एक भयानक आदमी – 1
जब वो होटेल मे दाखिल हुआ था तब निधी की मेज़ के अलावा सारी मेज़ें खाली पड़ी तीन. लेकिन अब होटेल मे तिल धरने की जगह नहीं थी.
वो एक हॅंडसम और वाले ड्रेस्ड नौजवान था. लेकिन ये कोई ऐसी ख़ास बात नहीं थी जिस के कारण निधी उस की तरफ अट्रॅक्ट होती. इसी होटेल मे उस ने अब से पहले दर्जनों हंडसों आदमियों के साथ सैकड़ों रातें बिठाई तीन……और उस की ये फीलिंग कभी की फ़ना हो चुकी थी जो ओपपॉसित सेक्स की सुंदराता की तरफ आकर्षित होने के लिए उकसाती.
निधी एक आंग्लो-बरमेसए लड़की थी. कभी वो एक खिलती काली थी…..लेकिन अब वो बहुत पूरेानी बात हो चुकी. ये उस समय की बात थी जब सिंगापूरे पर जापानियों ने बोम्बारी की थी…..और जिधर जिसका सींग समाया भाग निकला था. ऋषि एक टीनेजर लड़की थी. उसका बाप सिंगपूरे का एक बहुत बड़ा बिज़्नेसमॅन था. लेकिन बहुत बड़े बिज़्नेसमॅन की बेटी होने का ये मतलब तो नहीं की निधी 3 दीनो की भूकि होने के बाद एक कप चाय के बदले अपनी वर्जिनिटी नहीं खो देती. हो सकता है की उस के बाप को एक कप चाय भी नहीं मिल पाई हो…..क्यों की उस मे लड़की से औरात बनने की च्चामता तो थी नहीं.
एनीवे निधी अपने बाप के अंजम से आज तक अंजान थी. और अब वो एक 25 साल की वाले मेट्यूर्ड लेडी थी. लेकिन अब वो…..वो निधी नहीं थी. चाय का वो कप उसे आज भी याद था. और वो अब तक दर्जनों आदमियों को एक एक कप चाय के लिए मुहताज कर चुकी थी.
अब उस के पास एक डेलूक्ष टाइप वाले डेकरेटेड फ्लॅट था. दुनिया की सारी सुख सुविधा उसके पास थी और उसे विश्वास था की अब कभी वो भूकि नहीं रहेगी.
ये होटेल उस के कारोबार के लिए बहुत मुनासिब था और वो अधिक तार रातें यहीं गुज़ाराती थी. ये होटेल कारोबार के लिए ऐसे मुनासिब था की बंदरगाह यहाँ से करीब था…..और दिन रात यहाँ विदेशियों का ताँता बँधा रहता था. इन मे अधिक तार सफेद नस्ल के होते थे. और ये होटेल चलता भी उनहीं के दम से था. वरना आम शहरी इधर का रुख़ भी नहीं करते थे. मगर निधी इस कारण भी उस नौजवान मे इंटेरेस्ट नहीं ले रही थी…..की वो कोई विदेशी या कोई नाविक नहीं था.
बात वास्तव मे ये थी की वो जब से आया था….कदम कदम पे उस से मूरखटाएँ हो रही तीन. जैसे ही वेटर ने हाथ उठा कर उसे सलाम किया…..उस ने भी उसी तरीका से ना केवल उस के सलाम का जवाब दिया बल्कि बड़ी विनम्राता से खड़े हो कर उस से हाथ भी मिलाने लगा और काफ़ी देर तक उस के बाल बचों की हाल चाल पुचहता रहा.
पहले उस ने चाय मँगवाई…..और चुप बैठा रहा….यहाँ तक की चाय ठंडी हो गयी. फिर एक घूँट ले कर बुरा सा मुहह बनाने के बाद उस ने चाय वापस कर के कॉफी का ऑर्डर दिया.
कॉफी शायद ठंडी चाय से अधिक बाद-मज़ा लगी…..और उस ने कुच्छ इस तरह मुहह बनाया जैसे उबकाई रोक रहा हो. फिर उस ने कॉफी भी वापस कर दी…..और ठंडे पानी के काई ग्लास एक के बाद एक चढ़ा गया.
अंधेरा फैल गया और होटेल की लाइट्स जल गयी…..लेकिन उस मूरख नौजवान ने शायद वहाँ से ना उठने की कसम खा ली थी.
निधी की दिलचस्पी बढ़ती रही. वो भी अपनी जगह पे जम सी गयी.
डिन्नर टाइम होने से पहले ही टेबल क्लॉत्स चेंज कर दिए गये और मेज़ों पे तरो-ताज़ा फूलों के गुलदस्तों(फ्लवर पोत) के साथ ही ऐसे ग्लास भी रखे गये जिन मे नॅपकिन्स डाले हुए थे.
उस बेवकूफ़ नौजवान ने अपनी चेर पिच्चे खिसका ली थी और एक वेटर उसकी मेज़ भी ठीक कर रहा था. वेटर के हट‚ते ही वो एक गुलाब, फ्लवर पोत से निकाल कर सूंघने लगा. वो अपनी सोचों मे खोया हुआ सा लग रहा था और उस ने एक बार भी अपने आस पास नज़र डालने का कष्ट नहीं किया था. शायद वो खुद को वहाँ अकेला समझ रहा था.
निधी उसे देखती रही और अब वो ना जाने क्यों उस मे ख़ास तरह का अट्रॅक्षन महसूस करने लगी थी. उस ने काई बार वहाँ से उतना भी चाहा लेकिन उठ ना सकी.
डिन्नर टाइम होने पर नौजवान ने डिन्नर का ऑर्डर दिया. गुलाब अब भी उसकी उंगलियों मे दबा हुआ था…..जिसे वो कभी सूंघने लगता और कभी आँखें बंद कर के इस तरह उस से अपने गाल सहलाता.
खाना मेज़ पर आ चुका…..लेकिन वो वैसे ही खामोश शांत बैठा रहा. वो अब भी कुच्छ सोच रहा था. और ऐसा लग रहा था जैसे वेटर के आने और खाना लग जाने का उस को पता ही ना हो.
अचानक निधी ने देखा की वो गुलाब का फूल करी या डाल मे डुबो रहा है और फिर वो उसे चबा भी गया. लेकिन दूसरे ही पल उस ने इतना बुरा सा मूह बनाया की निधी को अनायास हँसी आ गयी. उस के मुहह से कुचले हुए फूल के टुकड़े फिसल फिसल कर गिर रहे थे.
“बॉय…” उस ने रो देने जैसे ढंग से वेटर को पुकारा…..और काई लोग चौंक कर उसे देखने लगे. डाइनिंग हॉल अब काफ़ी भर चुका था.
“सब चौपट….” उस ने रुँधे हुए स्वर मे कहा….”सब ले जाओ…..बिल लाओ.”
“बात क्या है सिर….?” वेटर ने बड़े आदर से पुचछा.
“बात कुच्छ नहीं…..सब मुक़द्दर की खराबी है. आज किसी चीज़ मे भी मज़ा नहीं मिल रहा.” नौजवान ने दुखी स्वर मे कहा “बिल लाओ.”
वेटर बर्तन समेत कर वापस चला गया…..फिर बिल ले कर वापस लौटा. नौजवान ने प्लेट मे रखे बिल पर निगाह डाली और अपनी जेबें टटोलने लगा.
फिर देखते ही देखते उसकी जेबों से नोटों की काई गद्दियाँ निकल आईं….जिन्हें वो मेज़ पर डालता हुआ खड़ा हो गया और अब वो अपनी भीतरी जेबें टटोल रहा था.
अंत मे उस ने एक खुली हुई गद्दी निकाली और उस मे से कुच्छ नोट खींच कर प्लेट मे डाल दिया.
निधी की आँखें हैरात से फैल गयी तीन और वो नौजवान बड़ी लापरवाही से मेज़ पर पड़ी हुई नोटों की गद्दियों को कोट की जेबों मे ठूंस रहा था.
निधी ने चारों तरफ नज़र दौड़ाई और उस ने देखा की डाइनिंग हॉल के सारे लोग उस अहमक को बुरी तरह घूर रहे हैं…..और उसे वहाँ कुच्छ बुरे लोग भी दिखाई दिए जो ललचाई हुई निगाहों से उसे देख रहे थे.
निधी अपनी जगह से उठी और धीरे धीरे चलती हुई उस अहमाक़ की मेज़ के निकट पहुँच गयी. वो जानती थी की उस का क्या अंजम होने वाला है. डाइनिंग हॉल के बाद दूसरे ही कमरे मे बहुत ही बड़े पैमाने पर जुवा होता था. वो जानती थी की अभी 2-3 दलाल उसे घेर कर उस कमरे मे ले जाएँगे और कुच्छ ही घंटों के बाद वो कौड़ी कौड़ी का मुहताज हो जाएगा.
“कहो तोते……अच्छे तो हो….” निधी ने नौजवान के कंधे पर हाथ रख कर बहुत ही फ्री ढंग से कहा…..जैसे वो ना केवल उसे जानती हो बल्कि दोनों गहरे दोस्त भी हों.
नौजवान चौंक कर उसे मूरखों की तरह देखने लगा. उस के होन्ट खुले हुए थे…..और आँखें हैरात से फैल गयी तीन.
“अब तुम कहोगे की मैं ने तुम्हें पहचाना नहीं.” निधी इठला कर बोली और चेर खींच कर बैठ गयी. दूसरी तरफ कसीनो के दलाल एक दूसरे को देख कर मुस्कुरा रहे थे.
“आहा…..क्या तुम्हें बोलना नहीं आता?” निधी फिर बोली.
“एमेम….व्व…वो….हॅप….” नौजवान हकला कर रह गया.
“तुम शायद पागल हो.” वो मेज़ पर कोहनियाँ टेक कर आगे झुकती हुई धीरे से बोली “इस ख़तरनाक इलाक़े मे अपने धनी होना दिखाने का यही मतलब हो सकता है.”
“ख़तरनाक इलाक़ा….!” नौजवान आँखें फाड़ कर कुर्दी की बॅक से टिक गया.
“हन….मेरे तोते……….क्या तुम पहली बार यहाँ आए हो?”
नौजवान से हाँ मे सर हिलाया.
“क्या करते हो?”
“उस ने यहीं मिलने का वादा किया था.” नौजवान ने शर्मा कर कहा. “किस ने….? क्या कोई लड़की है?”
नौजवान ने फिर सर हिला दिया. लेकिन इस बार उस ने शर्म के मारे उस से आँखें नहीं मिलाई. वो किसी ऐसी कुँवारी लड़की की तरह लाजा रहा था जिस के सामने उस की शादी की चर्चा च्छेद दिया गया हो.”
निधी ने उस पर रहम भारी निगाह डाली.
एक भयानक आदमी – 1
Re: एक भयानक आदमी – Indian Sex Thriller
“अगर उस ने यहाँ मिलने का वादा किया था तो वो कोई अच्छी लड़की नहीं हो सकती.”
“क्यों?” नौजवान चौंक कर बोला.
“लेकिन ये तो बताओ की तुम इतने रुपये क्यों साथ लिए घूम रहे हो?” निधी ने उस के सवाल को इग्नोर करते हुए पुचछा.
“जब तक इतनी रकम मेरी जेब मे ना हो……मैं घर से बाहर नहीं निकलता.”
अचानक एक दलाल ने निधी को इशारा किया. शायद उस इशारे का यही मतलब था की उसे कसीनो मे ले चलो. लेकिन निधी ने उसकी तरफ से मूह फेर लिया.
“तब तो हो सकता है की ये तुम्हारी ज़िंदगी की आखड़ी रात हो.” निधी ने नौजवान से कहा.
“क्यों….खमखा डरा रही हो?” नौजवान डारी डारी सी आवाज़ मे बोला. “मैं वैसे ही बहुत बाद-नसीब आदमी हूँ. पेट भर कर खाना नहीं खा सकता. कोई चीज़ ठंडी लगती है और कोई चीज़ कड़वी. बड़ा थर्ड क्लास होटेल है. मेरे नाना के गाव वाली सराई मे यहाँ से लाख दर्जा अच्छा खाना मिलता है.”
निधी अजीब निगाहों से उसे देख रही थी. कुच्छ देर खामोशी रही फिर वो उठता हुआ बोला “अच्छा अब मैं जवँगा.”
“शायद तुम इस शहर के ही नहीं हो.” निधी ने चिंतित स्वर मे कहा.
वो फिर बैठ गया.
“यहाँ से निकालने के बाद तुम्हें सड़क तक पहुँचने के लिए एक वीरना टाई करना पड़ेगा.” निधी कहा. “हो सकता है की तुम चीख भी ना सको और कटी इंच लंबा ठंडा लोहा तुम्हारे जिस्म मे उतार जाए.”
“मैं समझा नहीं.”
“तुम बाहर मार डाले जाओगे बुद्धू.” निधी दाँत पीस कर बोली “क्या तुम ने इस इलाक़े की भयानक घतनाओं के बड़े मे अख़बारों मे नहीं पढ़ा?”
“मैं कुच्छ नहीं जानता.” नौजवान ने बेचैनी से पहलू बदलते हुए कहा.
“वो लड़की किस समय आएगी?”
“श…..अब तो आठ बाज गये. उस ने सात बजे मिलने का वादा किया था.”
“तुम उसे कब से जानते हो?”
“कल से….”
“क्या मतलब?”
“हन…..हन कल से. कल वो मुझे रेलवे वेटिंग रूम मे मिली थी.”
“और तुम आज यहाँ दौड़े आए. सच मच बुद्धू हो.”
“बात ये है सीसी…..की…….”
“फ़िज़ूल बातें मत करो. तुम्हारे लिए दोनों सिचुयेशन्स ख़तरनाक हैं. लेकिन एक मे जान जाने का दर नहीं…..लेकिन लूट ज़रूर जाओगे.”
“तुम्हारी कोई भी बात मेरी समझ मे नहीं आ रही.”
“बाहर फैले हुए अंधेरे पर एक ख़तरनाक आदमी की हुकूमत है…..और वो आदमी कभी कभी यूँ ही मज़े के लिए भी किसी ना किसी को ज़रूर क़ातल कर देता है. मगर तुम………तुम तो सोने की चिड़िया हो……इस लिए तुम्हें जान और माल दोनों से हाथ धोना होगा.”
“किस मुसीबत मे फँस गया….!” नौजवान ने रुँधे हुए स्वर मे कहा.
“जब तक मैं ना कहूँ…..चुप छाप यहीं बैठे रहो.”
“लेकिन तुम ने यहाँ भी किसी ख़तरे की बात कही थी.”
“यहाँ तुम लूट्ट जाओगे प्यारे तोते….” निधी ने मुस्कुरा कर पलकें झपकाते हुए कहा. “इधर जुवा होता है और कसीनो के दलाल तुम्हारी ताक मे हैं.”
“वाह….वा…..” अहमक ने हंस कर कहा “ये तो बड़ी अच्छी बात है. मैं जुवा खेलना पसंद करूँगा. तुम मुझे वहाँ ले चलो.”
“श…..मैं समझी तुम यहाँ जुवा खेलने आए हो.”
“नहीं…..ये बात नहीं है…..अफ….वो अभी तक नहीं आई…..अरे भाई कसम ले लो, जुवा खेलने की नियत से नहीं आया था. मगर अब खेलूँगा ज़रूर. ऐसे मौके रोज़ रोज़ नहीं मिलते.”
“मतलब तुम वास्तव मे जुवरि नहीं हो?”
“नहीं…….मैं ये भी नहीं जानता की जुवा खेला किस तरह जाता है?”
“तब फिर कैसे खेलोगे?”
“बस…..किसी तरह. केवल एक बार तजुर्बे के लिए खेलना चाहता हूँ. सच कहता हूँ ऐसा मौका फिर कभी नहीं मिलेगा.”
“कैसा मौका?”
“बात ये है….” मूरख आगे झुक कर राझडारी भरे ढंग से बोला “ना यहाँ डॅडी हैं ना मम्मी.”
निधी की हँसी छ्चुत गयी. लेकिन उस नौजवान के चेहरे पर मूरखता भारी गंभीराता देख कर खुद भी गंभीर हो गयी और ना जाने क्यों उस समय वो खुद को भी मूरख महसूस करने लगी थी.
“डॅडी और मम्मी….” नौजवान फिर बोला…”मुझे कड़ी पाबंदियों मे रखते हैं. मगर मैं दुनिया देखना चाहता हूँ. मैं अब बड़ा हो गया हूँ ना…..है की नहीं……देख लो वो अब तक नहीं आई.”
“मैं तुम्हें जुवा ना खेलने दूँगी……समझे.”
“क्यों…..? वाह जी…….अच्छी रही. तुम हो कौन मुझे रोकने वाली. मैं ने आज से पहले कभी तुम्हें देखा तक नहीं.”
“तुम जुवा नहीं खेलोगे.” निधी अपना उपरी होन्ट भींच कर बोली.
“देखता हूँ तुम कैसे रोकती हो.”
इतने मे कसीनो का एक दलाल अपनी जगह से उठ कर उन की मेज़ की तरफ बढ़ा. शकल से ही ख़तरनाक आदमी लग रहा था. चेहरे पर घनी मुच्छें तीन और हल्के से खुले हुए होंतों से उस के दाँत दिखाई देते थे. आँखों से दरिंदगी झाँक रही थी. वो एक कुर्सी खींच कर निधी के सामने बैठ गया.
“क्या तुम्हारे दोस्त हैं?” उस ने निधी से पुचछा.
“हन…” निधी के लहजे मे कड़वाहट थी.
“क्या पहली बार यहाँ आए हैं?”
“हन…..हन….” निधी झल्ला गयी.
“नाराज़ लग रही हो.” वो लगवत के ढंग से बोला.
“जाओ…..अपना धनदा देखो. ये जुवरि नहीं है.”
“मैं ज़रूर जुवा खेलूँगा.” मूरख ने मेज़ पर घूँसा मार कर कहा. “तुम मुझे नहीं रोक सकतीं…..समझी.”
“श…..ये बात है.” दलाल निधी को घूर्ने लगा. उस की आँखों मे निधी के लिए वॉर्निंग झलक रही थी. फिर वो अहमक की तरफ मूड कर बोला…..”नहीं मिसटर…….आप को कोई नहीं रोक सकता. आप जैसे लकी लोग यहाँ से हज़ारों रुपये जीत कर ले जाते हैं. और आपकी चौड़ी पेशानी खुश किस्मती और जीत की पहचान है. मेरे साथ आइए. मैं आप को यहाँ खेलने के गुर बतावँगा. जीत पर केवल 15% कमिशन. बोलिए ठीक है ना?”
“बिल्कुल ठीक है यार….” अहमक उस के फैले हुए हाथ पर हाथ माराता हुआ बोला. “उठो….”
निधी वहीं बैठी रह गयी और वो दोनों उठ कर कसीनो की तरफ चले गये. निधी बिना कारण बोर होती रही. उसे तकलीफ़ पहुँची थी. पता नहीं क्यों. वो जहाँ थी वहीं बैठी रही. उसके दिमाग़ मे आँधियाँ सी उठ रही तीन. बड़ी अजीब बात थी. आज उस से पहली मुलाकात थी. वो भी ज़बरदस्ती की. लेकिन इस के बाद भी वो महसूस कर रही थी जैसे उस अहमाक़ के रवैये के कारण बरसों पूरेानी दोस्ती टूट गयी हो. उस ने उस का कहना क्यों नहीं माना. उस की बात क्यों रद्द कर दी.
फिर उसे अपनी इस मूरखता पर हँसी आने लगी. आख़िर वो उसे माना करने वाली होती कोन है. पता नहीं वो कोन है? कहाँ से आया है? कल कहाँ होगा. ऐसे आदमी के लिए इस किस्म की भावना रखना मूरखता नहीं तो और क्या है.
इस से पहले सैकड़ों लोगों से मिल चुकी थी……और उन्हें अच्छी तरह लूट‚ते समय भी उस के दिल मे रहम की भावना नहीं पैदा हुई थी. लेकिन इस अहमाक़ नौजवान को दूसरों के हाथों लूट‚ते देख कर ना जाने क्यों उस की इंसानियत जाग उठी थी. उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसका कोई नालयक लड़का उस का दिल तोड़ गया हो.
“ऑश…..जहन्नुम मे जाए.” वो धीरे से बर्बदाई……और वेटर को बुला कर एक पेग विस्की का ऑर्डर दिया.
फिर उस ने इस तरह अपने सर को झटका दिया जैसे उस अहमाक़ की कल्पना से पिच्छा च्चुदाना चाहती हो.
एक भयानक आदमी – 2
“क्यों?” नौजवान चौंक कर बोला.
“लेकिन ये तो बताओ की तुम इतने रुपये क्यों साथ लिए घूम रहे हो?” निधी ने उस के सवाल को इग्नोर करते हुए पुचछा.
“जब तक इतनी रकम मेरी जेब मे ना हो……मैं घर से बाहर नहीं निकलता.”
अचानक एक दलाल ने निधी को इशारा किया. शायद उस इशारे का यही मतलब था की उसे कसीनो मे ले चलो. लेकिन निधी ने उसकी तरफ से मूह फेर लिया.
“तब तो हो सकता है की ये तुम्हारी ज़िंदगी की आखड़ी रात हो.” निधी ने नौजवान से कहा.
“क्यों….खमखा डरा रही हो?” नौजवान डारी डारी सी आवाज़ मे बोला. “मैं वैसे ही बहुत बाद-नसीब आदमी हूँ. पेट भर कर खाना नहीं खा सकता. कोई चीज़ ठंडी लगती है और कोई चीज़ कड़वी. बड़ा थर्ड क्लास होटेल है. मेरे नाना के गाव वाली सराई मे यहाँ से लाख दर्जा अच्छा खाना मिलता है.”
निधी अजीब निगाहों से उसे देख रही थी. कुच्छ देर खामोशी रही फिर वो उठता हुआ बोला “अच्छा अब मैं जवँगा.”
“शायद तुम इस शहर के ही नहीं हो.” निधी ने चिंतित स्वर मे कहा.
वो फिर बैठ गया.
“यहाँ से निकालने के बाद तुम्हें सड़क तक पहुँचने के लिए एक वीरना टाई करना पड़ेगा.” निधी कहा. “हो सकता है की तुम चीख भी ना सको और कटी इंच लंबा ठंडा लोहा तुम्हारे जिस्म मे उतार जाए.”
“मैं समझा नहीं.”
“तुम बाहर मार डाले जाओगे बुद्धू.” निधी दाँत पीस कर बोली “क्या तुम ने इस इलाक़े की भयानक घतनाओं के बड़े मे अख़बारों मे नहीं पढ़ा?”
“मैं कुच्छ नहीं जानता.” नौजवान ने बेचैनी से पहलू बदलते हुए कहा.
“वो लड़की किस समय आएगी?”
“श…..अब तो आठ बाज गये. उस ने सात बजे मिलने का वादा किया था.”
“तुम उसे कब से जानते हो?”
“कल से….”
“क्या मतलब?”
“हन…..हन कल से. कल वो मुझे रेलवे वेटिंग रूम मे मिली थी.”
“और तुम आज यहाँ दौड़े आए. सच मच बुद्धू हो.”
“बात ये है सीसी…..की…….”
“फ़िज़ूल बातें मत करो. तुम्हारे लिए दोनों सिचुयेशन्स ख़तरनाक हैं. लेकिन एक मे जान जाने का दर नहीं…..लेकिन लूट ज़रूर जाओगे.”
“तुम्हारी कोई भी बात मेरी समझ मे नहीं आ रही.”
“बाहर फैले हुए अंधेरे पर एक ख़तरनाक आदमी की हुकूमत है…..और वो आदमी कभी कभी यूँ ही मज़े के लिए भी किसी ना किसी को ज़रूर क़ातल कर देता है. मगर तुम………तुम तो सोने की चिड़िया हो……इस लिए तुम्हें जान और माल दोनों से हाथ धोना होगा.”
“किस मुसीबत मे फँस गया….!” नौजवान ने रुँधे हुए स्वर मे कहा.
“जब तक मैं ना कहूँ…..चुप छाप यहीं बैठे रहो.”
“लेकिन तुम ने यहाँ भी किसी ख़तरे की बात कही थी.”
“यहाँ तुम लूट्ट जाओगे प्यारे तोते….” निधी ने मुस्कुरा कर पलकें झपकाते हुए कहा. “इधर जुवा होता है और कसीनो के दलाल तुम्हारी ताक मे हैं.”
“वाह….वा…..” अहमक ने हंस कर कहा “ये तो बड़ी अच्छी बात है. मैं जुवा खेलना पसंद करूँगा. तुम मुझे वहाँ ले चलो.”
“श…..मैं समझी तुम यहाँ जुवा खेलने आए हो.”
“नहीं…..ये बात नहीं है…..अफ….वो अभी तक नहीं आई…..अरे भाई कसम ले लो, जुवा खेलने की नियत से नहीं आया था. मगर अब खेलूँगा ज़रूर. ऐसे मौके रोज़ रोज़ नहीं मिलते.”
“मतलब तुम वास्तव मे जुवरि नहीं हो?”
“नहीं…….मैं ये भी नहीं जानता की जुवा खेला किस तरह जाता है?”
“तब फिर कैसे खेलोगे?”
“बस…..किसी तरह. केवल एक बार तजुर्बे के लिए खेलना चाहता हूँ. सच कहता हूँ ऐसा मौका फिर कभी नहीं मिलेगा.”
“कैसा मौका?”
“बात ये है….” मूरख आगे झुक कर राझडारी भरे ढंग से बोला “ना यहाँ डॅडी हैं ना मम्मी.”
निधी की हँसी छ्चुत गयी. लेकिन उस नौजवान के चेहरे पर मूरखता भारी गंभीराता देख कर खुद भी गंभीर हो गयी और ना जाने क्यों उस समय वो खुद को भी मूरख महसूस करने लगी थी.
“डॅडी और मम्मी….” नौजवान फिर बोला…”मुझे कड़ी पाबंदियों मे रखते हैं. मगर मैं दुनिया देखना चाहता हूँ. मैं अब बड़ा हो गया हूँ ना…..है की नहीं……देख लो वो अब तक नहीं आई.”
“मैं तुम्हें जुवा ना खेलने दूँगी……समझे.”
“क्यों…..? वाह जी…….अच्छी रही. तुम हो कौन मुझे रोकने वाली. मैं ने आज से पहले कभी तुम्हें देखा तक नहीं.”
“तुम जुवा नहीं खेलोगे.” निधी अपना उपरी होन्ट भींच कर बोली.
“देखता हूँ तुम कैसे रोकती हो.”
इतने मे कसीनो का एक दलाल अपनी जगह से उठ कर उन की मेज़ की तरफ बढ़ा. शकल से ही ख़तरनाक आदमी लग रहा था. चेहरे पर घनी मुच्छें तीन और हल्के से खुले हुए होंतों से उस के दाँत दिखाई देते थे. आँखों से दरिंदगी झाँक रही थी. वो एक कुर्सी खींच कर निधी के सामने बैठ गया.
“क्या तुम्हारे दोस्त हैं?” उस ने निधी से पुचछा.
“हन…” निधी के लहजे मे कड़वाहट थी.
“क्या पहली बार यहाँ आए हैं?”
“हन…..हन….” निधी झल्ला गयी.
“नाराज़ लग रही हो.” वो लगवत के ढंग से बोला.
“जाओ…..अपना धनदा देखो. ये जुवरि नहीं है.”
“मैं ज़रूर जुवा खेलूँगा.” मूरख ने मेज़ पर घूँसा मार कर कहा. “तुम मुझे नहीं रोक सकतीं…..समझी.”
“श…..ये बात है.” दलाल निधी को घूर्ने लगा. उस की आँखों मे निधी के लिए वॉर्निंग झलक रही थी. फिर वो अहमक की तरफ मूड कर बोला…..”नहीं मिसटर…….आप को कोई नहीं रोक सकता. आप जैसे लकी लोग यहाँ से हज़ारों रुपये जीत कर ले जाते हैं. और आपकी चौड़ी पेशानी खुश किस्मती और जीत की पहचान है. मेरे साथ आइए. मैं आप को यहाँ खेलने के गुर बतावँगा. जीत पर केवल 15% कमिशन. बोलिए ठीक है ना?”
“बिल्कुल ठीक है यार….” अहमक उस के फैले हुए हाथ पर हाथ माराता हुआ बोला. “उठो….”
निधी वहीं बैठी रह गयी और वो दोनों उठ कर कसीनो की तरफ चले गये. निधी बिना कारण बोर होती रही. उसे तकलीफ़ पहुँची थी. पता नहीं क्यों. वो जहाँ थी वहीं बैठी रही. उसके दिमाग़ मे आँधियाँ सी उठ रही तीन. बड़ी अजीब बात थी. आज उस से पहली मुलाकात थी. वो भी ज़बरदस्ती की. लेकिन इस के बाद भी वो महसूस कर रही थी जैसे उस अहमाक़ के रवैये के कारण बरसों पूरेानी दोस्ती टूट गयी हो. उस ने उस का कहना क्यों नहीं माना. उस की बात क्यों रद्द कर दी.
फिर उसे अपनी इस मूरखता पर हँसी आने लगी. आख़िर वो उसे माना करने वाली होती कोन है. पता नहीं वो कोन है? कहाँ से आया है? कल कहाँ होगा. ऐसे आदमी के लिए इस किस्म की भावना रखना मूरखता नहीं तो और क्या है.
इस से पहले सैकड़ों लोगों से मिल चुकी थी……और उन्हें अच्छी तरह लूट‚ते समय भी उस के दिल मे रहम की भावना नहीं पैदा हुई थी. लेकिन इस अहमाक़ नौजवान को दूसरों के हाथों लूट‚ते देख कर ना जाने क्यों उस की इंसानियत जाग उठी थी. उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसका कोई नालयक लड़का उस का दिल तोड़ गया हो.
“ऑश…..जहन्नुम मे जाए.” वो धीरे से बर्बदाई……और वेटर को बुला कर एक पेग विस्की का ऑर्डर दिया.
फिर उस ने इस तरह अपने सर को झटका दिया जैसे उस अहमाक़ की कल्पना से पिच्छा च्चुदाना चाहती हो.
एक भयानक आदमी – 2
Re: एक भयानक आदमी – Indian Sex Thriller
उस ने सोचा की पे चूकने के बाद यहाँ से उठ ही जाएगी. हाँ ज़रूर उठ जाएगी.
लेकिन उठ जाने का पक्का निश्चय कर लेने के बाद भी वो वहीं बैठी रही…..सोचती रही…….उसी अहमाक़ नौजवान के बड़े मे. एक घंटा बीट गया……तब फिर वो उसे दुबारा दिखाई दिया.
वो कसीनो के गाते पर खड़ा अपने चेहरे से पसीना पोच्च रहा था. दोनों की निगाहें मिली. और वो तीर की तरह उसी टेबल पर आया.
“तुम ठीक कहती तीन.” वो एक कुर्सी पर बैठ कर हांफता हुआ बोला. “मैं ने टीन हज़ार रुपये खो दिया. (अब से 50 साल पहले 3 हज़ार )
“निधी उसे घूराती रही फिर दाँत पीस कर बोली “जाओ……..चले जाओ…..वरना उल्टा हाथ मार बैठूँगी….”
“नहीं……मैं नहीं जवँगा. तुम ने कहा था की बाहर ख़तरा है.”
निधी खामोश हो गयी. वो कुच्छ सोच रही थी.
“बताओ……मैं क्या करूँ?” मूरख नौजवान ने फिर कहा.
“गो तो हेल….”
“मैं भी कितना गढ़ा हूँ.” अहमाक़ खुद से बोला “भला ये बेचारी क्या बताएगी.”
अहमाक़ कुर्सी से उठ गया. निधी बुरी तरह झल्लाई हुई थी. उस ने थोड़ी सी भी परवाह नहीं की . वो उसे बाहर जाते देखती रही. यहाँ तक की वो मैं गाते से गुज़र गया.
अचानक उस की सोच की दिशा पलटी…….और वो फिर उसके लिए बेचैन हो गई. उस के मस्तिस्क मे बाहर के अंधेरे की कल्पना रेंगने लगी और वो व्याकुल सी होकर खड़ी हो गयी. वो फिर उस अहमाक़ के बड़े मे सोच रही थी. उस ने केवल 3 हज़ार गँवाए थे. लेकिन इसके बाद भी उसकी जेबों मे काफ़ी रकम होगी. वो बड़े नोटों की काई गद्दियाँ तीन. निश्चित रूप से 40-50 हज़ार हो सकता है या उस से भी अधिक.
उस ने बड़ी तेज़ी से अपना पर्स उठाया और होटेल से निकल गयी. बाहर अंधेरे का साम्राज्या था. काफ़ी दूरी पर उसे एक काली सी परचाय दिखाई दे रही थी. गतिशील परच्चायं. जो उस अहमक से साइवा दूसरा नहीं हो सकता था. सामने छ्होटे छ्होटे टीले थे……और बाईं तरफ घनी झाड़ियों का सिलसिला मीलों तक फैला हुआ था. सड़क पर पहुँचने के लिए उन टीलों के बीच से गुज़रना ज़रूरी था. लेकिन प्रेज़ेंट सिचुयेशन्स को देखते हुए ये समय इसके लिए मुनासिब नहीं था. खुद पुलिस भी इस इलाक़े को ख़तरनाक घोषित कर चुकी थी.
निधी दिल ही दिल मे खुद को बुरा भला कह रही थी. क्यों ना उस ने उस को उधर जाने से रोका. उस ने उसे वो रास्ता क्यों ना बताया जो बंदरगाह की तरफ जाता था.
अब वो इस उलझन मे प़ड़ गयी थी की वो उसे किस तरह आवाज़ दे. वो उसका नाम भी नहीं जानती थी.
अचानक उसे कुच्छ ही दूरी पर एक दूसरा साया भी दिखाई दिया……जो पहले साए के पिच्चे था……और अचानक किसी टीले को ओट से निकला था. फिर उस ने उसे अगले साए पर झपट‚ते देखा. और वो अपने मुहह से अचानक निकालने वाली चीख को ना दबा सकी थी. उसकी चीख सन्नाटे मे लहराती चली गयी थी.
दोनों साए एक दूसरे से गुठे हुए ज़मीन पर गिरे. फिर एक फिरे हुआ और एक साया उच्छल कर झाड़ियों की तरफ भागा.
निधी बाद-हवासी मे सीधी दौड़ती चली गयी.
उस ने तारों की छ्चाओं मे एक आदमी को ज़मीन पर पड़े देखा. दूसरा गायब हो चुका था.
उसे विश्वास था की वो अहमक आदमी के साइवा कोई ना होगा.
“क्या हुआ….?” वो बौखलाए हुए ढंग से उस पर झुक पड़ी.
“नींद आ रही है….” अहमाक़ ने भरराय हुई आवाज़ मे कहा.
“उठो….” वो उसे झंझोड़ने लगी. “भागो पूरी ताक़त से होटेल की तरफ भागो.”
अहमाक़ उच्छल कर खड़ा हो गया……और फिर उस ने बड़ी फुर्ती से निधी को कंधे पर लाद कर होटेल की तरफ भागना शुरू कर दिया. निधी “अरे अरे” ही कराती रह गयी.
फिर थोड़ी देर बाद दोनों एक दूसरे के सामने खड़े हाँफ रहे थे. दोनों होटेल के मैं गाते के करीब थे. फिरे और चीख की आवाज़ सुन कर यहाँ पहले ही से भीड़ जमा हो गयी थी.
“कहीं चोट तो नहीं आई?” निधी ने उस से पुचछा.
“चोट आई नहीं बल्कि चोट हो गयी. मैं इस समय कौड़ी कौड़ी का मुहताज हूँ.”
“होटेल का मॅनेजर उन्हें अंदर लाया और सीधा अपने कमरे मे लेता चला गया.
“आप ने बड़ी ग़लती की है.” उस ने अहमाक़ नौजवान से कहा.
“अरे श्रीमान मैं शाम को उधर ही से आया था.”
“क्या आप ने सड़क के किनारे लगे बोर्ड को नहीं देखा था जिस पर लिखा हुआ है की ‘7 बजे के बाद इस तरफ से जाने वालों की जान माल की सुरक्षा नहीं की जा सकती. ये बोर्ड पुलिस डिपार्टमेंट की तरफ से लगाया गया है.”
“मैं ने नहीं देखा था.”
“कितनी रकम गयी?” मॅनेजर ने पुचछा.
“47 हज़ार.”
“मी गोद….!” मॅनेजर की आँखें हैरात से फैल गयीं.
“और टीन हज़ार आप के कसीनो मे हार गया.”
“सॉरी….” मॅनेजर ने दुख भरे स्वर मे कहा “लेकिन जुवा तो किस्मत का खेल है…..हो सकता है की कल आप 6 हज़ार की जीत मे रहें.”
“उठो यहाँ से.” निधी अहमाक़ का हाथ पकड़ कर खींचती हुई बोली.
वो दोनों मॅनेजर के कमरे से बाहर निकल आए. एक बार फिर लोग उनके पास जमा हो गये थे…..लेकिन निधी उसे उन की भाड़ से निकाल ले गयी. वो दूसरी तरफ के गाते से बंदरगाह वाली सड़क पर जा रहे थे.
“क्यों तोते…..अब क्या ख़याल है?” निधी ने पुचछा.
“अब ख़याल ये है की मैं अपने रुपये वसूल किए बिना यहाँ से नहीं जवँगा. 50 हज़ार की रकम थोड़ी नहीं होती.”
“लेकिन तुम इतनी रकम ले कर आए ही क्यों थे?”
“मुझे 50 भैंसें(बफ्लॉस) ख़रीदनी थी.”
“भैंसें….?”
“हन…..भैंसें. और मैं उन भैंसॉं के बिना वापस नहीं जा सकता. क्यों की मेरे डॅडी थोड़ा करोधी टाइप के आदमी हैं.”
“क्या वो भैंसॉं का बिज़्नेस करते हैं?”
“नहीं…..उन्हें भैंसॉं से इश्क़ है.” अहमाक़ ने गंभीर स्वर मे कहा और निधी अनायास हंस पड़ी.
“हानेन्न्…..तुम मज़ाक समझती हो?” अहमाक़ ने हैरात से कहा “ये हक़ीकत है की वो अपने आस पास अधिक से अधिक भैंसें देख कर बहुत खुश होते हैं.”
“वो और क्या करते हैं…..मतलब इनकम के श्रोत क्या हैं?”
“ये तो मुझे नहीं पता.”
“तुम पागल तो नहीं हो?”
“पता नहीं….”
अब तुम्हारे पास कितनी रकम है?”
“शायद एक चवँनी……रकम की चिंता मत करो. मैं एक एक पायी वसूल कर लूँगा.”
“किस से?”
“जिस ने छ्चीनी है उस से.”
“तोते…..तुम एकदम गढ़े हो.” निधी हँसने लगी. पता नहीं ज़िंदा कैसे हो. वो आदमी अपने शिकारों को ज़िंदा नहीं छोड़ता.”
“वो आख़िर है कोन?”
“कोई नहीं जानता. पुलिस वाले इस इलाक़े मे कदम रखते हुए तर्राटे हैं. वो अब तक ना जाने कितने ओफ्फिसेरोन को जान से मार चुका है.”
“हो सकता है…………मगर मैं अपने रुपये वसूल कर लूँगा.”
“किस तरह बुद्धू तोते?”
“कल शाम से ही उन झाड़ियों मे चुप जवँगा.”
रयशी हँसने लगी.
“तोते तुम सच मच पागल हो.” उस ने कहा. “ये बताओ तुम ठहरे कहा हो?”
“होटेल बरस्का मे….”
“लेकिन अब तुम्हारी जेबें खाली हो चुकी हैं. वहाँ कैसे रहोगे?”
“उस की चिंता नहीं. वहाँ से किसी चॅरिटी धरामशाला मे चला जवँगा. लेकिन भैंसॉं के बिना वापसी नामुमकिन है.”
निधी खामोश हो गयी. बंदरगाह के निकट पहुँच कर उस ने एक टॅक्सी रुकवाई.
“चलो बैठो.”
“मुझे भुख लग रही है.”
“तो अब तुम चाहते हो की मैं तुम्हें खाना भी खिलओन?” निधी उसे टॅक्सी मे धकेल्टी हुई बोली. वो दोनों बैठ गये और टॅक्सी चल पड़ी.
“तुम ये ना समझो की मैं कंगाल हूँ. मैं ने ये कहा था की मेरी जेब मे केवल एक चवँनी है. लेकिन मैं उल्लू नहीं हूँ. परदेश मे अपना सारा माल एक जगह नहीं रखता.”
अहमाक़ खामोश हो कर अपने जूते का फीता खोलने लगा. उस ने दोनों जूते उतार दिए और उन्हें उल्टा कर के झटके देने लगा. दूसरे ही पल उस के हाथ पर नोटों की 2 गद्दियाँ तीन.
“ये ढाई हज़ार हैं.” अहमाक़ ने बड़ी सादगी से कहा.
“अगर अब मैं इन्हें हथिया लॅंड तो?” निधी मुस्कुरा कर बोली.
“तुम ऐसा कर ही नहीं सकतीं. मैं तुम्हें डरा दूँगा.”
“डरा दोगे……?”
“हन….मेरे पास रिवॉलव है और मैं ने उस आदमी पर भी फिरे किया था.”
“क्या तुम्हारे पास लाइसेन्स है?”
“मैं लाइसेन्स फिसेँसे की परवाह नहीं कराता……ये देखो मैं झूट नहीं कह रहा.”
एक भयानक आदमी – 3
लेकिन उठ जाने का पक्का निश्चय कर लेने के बाद भी वो वहीं बैठी रही…..सोचती रही…….उसी अहमाक़ नौजवान के बड़े मे. एक घंटा बीट गया……तब फिर वो उसे दुबारा दिखाई दिया.
वो कसीनो के गाते पर खड़ा अपने चेहरे से पसीना पोच्च रहा था. दोनों की निगाहें मिली. और वो तीर की तरह उसी टेबल पर आया.
“तुम ठीक कहती तीन.” वो एक कुर्सी पर बैठ कर हांफता हुआ बोला. “मैं ने टीन हज़ार रुपये खो दिया. (अब से 50 साल पहले 3 हज़ार )
“निधी उसे घूराती रही फिर दाँत पीस कर बोली “जाओ……..चले जाओ…..वरना उल्टा हाथ मार बैठूँगी….”
“नहीं……मैं नहीं जवँगा. तुम ने कहा था की बाहर ख़तरा है.”
निधी खामोश हो गयी. वो कुच्छ सोच रही थी.
“बताओ……मैं क्या करूँ?” मूरख नौजवान ने फिर कहा.
“गो तो हेल….”
“मैं भी कितना गढ़ा हूँ.” अहमाक़ खुद से बोला “भला ये बेचारी क्या बताएगी.”
अहमाक़ कुर्सी से उठ गया. निधी बुरी तरह झल्लाई हुई थी. उस ने थोड़ी सी भी परवाह नहीं की . वो उसे बाहर जाते देखती रही. यहाँ तक की वो मैं गाते से गुज़र गया.
अचानक उस की सोच की दिशा पलटी…….और वो फिर उसके लिए बेचैन हो गई. उस के मस्तिस्क मे बाहर के अंधेरे की कल्पना रेंगने लगी और वो व्याकुल सी होकर खड़ी हो गयी. वो फिर उस अहमाक़ के बड़े मे सोच रही थी. उस ने केवल 3 हज़ार गँवाए थे. लेकिन इसके बाद भी उसकी जेबों मे काफ़ी रकम होगी. वो बड़े नोटों की काई गद्दियाँ तीन. निश्चित रूप से 40-50 हज़ार हो सकता है या उस से भी अधिक.
उस ने बड़ी तेज़ी से अपना पर्स उठाया और होटेल से निकल गयी. बाहर अंधेरे का साम्राज्या था. काफ़ी दूरी पर उसे एक काली सी परचाय दिखाई दे रही थी. गतिशील परच्चायं. जो उस अहमक से साइवा दूसरा नहीं हो सकता था. सामने छ्होटे छ्होटे टीले थे……और बाईं तरफ घनी झाड़ियों का सिलसिला मीलों तक फैला हुआ था. सड़क पर पहुँचने के लिए उन टीलों के बीच से गुज़रना ज़रूरी था. लेकिन प्रेज़ेंट सिचुयेशन्स को देखते हुए ये समय इसके लिए मुनासिब नहीं था. खुद पुलिस भी इस इलाक़े को ख़तरनाक घोषित कर चुकी थी.
निधी दिल ही दिल मे खुद को बुरा भला कह रही थी. क्यों ना उस ने उस को उधर जाने से रोका. उस ने उसे वो रास्ता क्यों ना बताया जो बंदरगाह की तरफ जाता था.
अब वो इस उलझन मे प़ड़ गयी थी की वो उसे किस तरह आवाज़ दे. वो उसका नाम भी नहीं जानती थी.
अचानक उसे कुच्छ ही दूरी पर एक दूसरा साया भी दिखाई दिया……जो पहले साए के पिच्चे था……और अचानक किसी टीले को ओट से निकला था. फिर उस ने उसे अगले साए पर झपट‚ते देखा. और वो अपने मुहह से अचानक निकालने वाली चीख को ना दबा सकी थी. उसकी चीख सन्नाटे मे लहराती चली गयी थी.
दोनों साए एक दूसरे से गुठे हुए ज़मीन पर गिरे. फिर एक फिरे हुआ और एक साया उच्छल कर झाड़ियों की तरफ भागा.
निधी बाद-हवासी मे सीधी दौड़ती चली गयी.
उस ने तारों की छ्चाओं मे एक आदमी को ज़मीन पर पड़े देखा. दूसरा गायब हो चुका था.
उसे विश्वास था की वो अहमक आदमी के साइवा कोई ना होगा.
“क्या हुआ….?” वो बौखलाए हुए ढंग से उस पर झुक पड़ी.
“नींद आ रही है….” अहमाक़ ने भरराय हुई आवाज़ मे कहा.
“उठो….” वो उसे झंझोड़ने लगी. “भागो पूरी ताक़त से होटेल की तरफ भागो.”
अहमाक़ उच्छल कर खड़ा हो गया……और फिर उस ने बड़ी फुर्ती से निधी को कंधे पर लाद कर होटेल की तरफ भागना शुरू कर दिया. निधी “अरे अरे” ही कराती रह गयी.
फिर थोड़ी देर बाद दोनों एक दूसरे के सामने खड़े हाँफ रहे थे. दोनों होटेल के मैं गाते के करीब थे. फिरे और चीख की आवाज़ सुन कर यहाँ पहले ही से भीड़ जमा हो गयी थी.
“कहीं चोट तो नहीं आई?” निधी ने उस से पुचछा.
“चोट आई नहीं बल्कि चोट हो गयी. मैं इस समय कौड़ी कौड़ी का मुहताज हूँ.”
“होटेल का मॅनेजर उन्हें अंदर लाया और सीधा अपने कमरे मे लेता चला गया.
“आप ने बड़ी ग़लती की है.” उस ने अहमाक़ नौजवान से कहा.
“अरे श्रीमान मैं शाम को उधर ही से आया था.”
“क्या आप ने सड़क के किनारे लगे बोर्ड को नहीं देखा था जिस पर लिखा हुआ है की ‘7 बजे के बाद इस तरफ से जाने वालों की जान माल की सुरक्षा नहीं की जा सकती. ये बोर्ड पुलिस डिपार्टमेंट की तरफ से लगाया गया है.”
“मैं ने नहीं देखा था.”
“कितनी रकम गयी?” मॅनेजर ने पुचछा.
“47 हज़ार.”
“मी गोद….!” मॅनेजर की आँखें हैरात से फैल गयीं.
“और टीन हज़ार आप के कसीनो मे हार गया.”
“सॉरी….” मॅनेजर ने दुख भरे स्वर मे कहा “लेकिन जुवा तो किस्मत का खेल है…..हो सकता है की कल आप 6 हज़ार की जीत मे रहें.”
“उठो यहाँ से.” निधी अहमाक़ का हाथ पकड़ कर खींचती हुई बोली.
वो दोनों मॅनेजर के कमरे से बाहर निकल आए. एक बार फिर लोग उनके पास जमा हो गये थे…..लेकिन निधी उसे उन की भाड़ से निकाल ले गयी. वो दूसरी तरफ के गाते से बंदरगाह वाली सड़क पर जा रहे थे.
“क्यों तोते…..अब क्या ख़याल है?” निधी ने पुचछा.
“अब ख़याल ये है की मैं अपने रुपये वसूल किए बिना यहाँ से नहीं जवँगा. 50 हज़ार की रकम थोड़ी नहीं होती.”
“लेकिन तुम इतनी रकम ले कर आए ही क्यों थे?”
“मुझे 50 भैंसें(बफ्लॉस) ख़रीदनी थी.”
“भैंसें….?”
“हन…..भैंसें. और मैं उन भैंसॉं के बिना वापस नहीं जा सकता. क्यों की मेरे डॅडी थोड़ा करोधी टाइप के आदमी हैं.”
“क्या वो भैंसॉं का बिज़्नेस करते हैं?”
“नहीं…..उन्हें भैंसॉं से इश्क़ है.” अहमाक़ ने गंभीर स्वर मे कहा और निधी अनायास हंस पड़ी.
“हानेन्न्…..तुम मज़ाक समझती हो?” अहमाक़ ने हैरात से कहा “ये हक़ीकत है की वो अपने आस पास अधिक से अधिक भैंसें देख कर बहुत खुश होते हैं.”
“वो और क्या करते हैं…..मतलब इनकम के श्रोत क्या हैं?”
“ये तो मुझे नहीं पता.”
“तुम पागल तो नहीं हो?”
“पता नहीं….”
अब तुम्हारे पास कितनी रकम है?”
“शायद एक चवँनी……रकम की चिंता मत करो. मैं एक एक पायी वसूल कर लूँगा.”
“किस से?”
“जिस ने छ्चीनी है उस से.”
“तोते…..तुम एकदम गढ़े हो.” निधी हँसने लगी. पता नहीं ज़िंदा कैसे हो. वो आदमी अपने शिकारों को ज़िंदा नहीं छोड़ता.”
“वो आख़िर है कोन?”
“कोई नहीं जानता. पुलिस वाले इस इलाक़े मे कदम रखते हुए तर्राटे हैं. वो अब तक ना जाने कितने ओफ्फिसेरोन को जान से मार चुका है.”
“हो सकता है…………मगर मैं अपने रुपये वसूल कर लूँगा.”
“किस तरह बुद्धू तोते?”
“कल शाम से ही उन झाड़ियों मे चुप जवँगा.”
रयशी हँसने लगी.
“तोते तुम सच मच पागल हो.” उस ने कहा. “ये बताओ तुम ठहरे कहा हो?”
“होटेल बरस्का मे….”
“लेकिन अब तुम्हारी जेबें खाली हो चुकी हैं. वहाँ कैसे रहोगे?”
“उस की चिंता नहीं. वहाँ से किसी चॅरिटी धरामशाला मे चला जवँगा. लेकिन भैंसॉं के बिना वापसी नामुमकिन है.”
निधी खामोश हो गयी. बंदरगाह के निकट पहुँच कर उस ने एक टॅक्सी रुकवाई.
“चलो बैठो.”
“मुझे भुख लग रही है.”
“तो अब तुम चाहते हो की मैं तुम्हें खाना भी खिलओन?” निधी उसे टॅक्सी मे धकेल्टी हुई बोली. वो दोनों बैठ गये और टॅक्सी चल पड़ी.
“तुम ये ना समझो की मैं कंगाल हूँ. मैं ने ये कहा था की मेरी जेब मे केवल एक चवँनी है. लेकिन मैं उल्लू नहीं हूँ. परदेश मे अपना सारा माल एक जगह नहीं रखता.”
अहमाक़ खामोश हो कर अपने जूते का फीता खोलने लगा. उस ने दोनों जूते उतार दिए और उन्हें उल्टा कर के झटके देने लगा. दूसरे ही पल उस के हाथ पर नोटों की 2 गद्दियाँ तीन.
“ये ढाई हज़ार हैं.” अहमाक़ ने बड़ी सादगी से कहा.
“अगर अब मैं इन्हें हथिया लॅंड तो?” निधी मुस्कुरा कर बोली.
“तुम ऐसा कर ही नहीं सकतीं. मैं तुम्हें डरा दूँगा.”
“डरा दोगे……?”
“हन….मेरे पास रिवॉलव है और मैं ने उस आदमी पर भी फिरे किया था.”
“क्या तुम्हारे पास लाइसेन्स है?”
“मैं लाइसेन्स फिसेँसे की परवाह नहीं कराता……ये देखो मैं झूट नहीं कह रहा.”
एक भयानक आदमी – 3