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Thriller अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म ) adultery Thriller

Posted: 05 Jul 2020 11:02
by admin

Thriller अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म ) adultery Thriller

तेज रफ्तार से दौड़ती फीएट की ड्राइविंग सीट पर मौजूद राज की निगाहें सामने हाईवे पर जमी थीं।
अचानक वह चौंका। एक्सीलेटर से पैर उठ गया और ब्रेक पैडल दबता चला गया।

सड़क से नीचे खाई में घुटनों के बल उठता एक आदमी बाँह ऊपर उठाए कार रोकने का इशारा कर रहा था। चेहरा पीला था और मुँह सर्कस के जोकर की भाँति लाल। उसका संतुलन अचानक बिगड़ा और वह औंधे मुँह गिर गया।

राज कार रोककर नीचे उतरा।

डेनिम की जीन्स और शर्ट पहने निश्चल पड़े उस आदमी की साँसों के साथ गले से खरखराती सी आवाज निकल रही थी। वह बेहोश था।

राज ने सावधानीपूर्वक उसे पीठ के बल उलट दिया। उसके मुँह से खून के छोटे-छोटे बुलबुले उबल रहे थे। खून से भीगी कमीज में छाती पर बने गोल सुराख से भी खून रिस रहा था।

गले से अपना मफलर निकाल कर राज ने उसकी छाती पर कसकर बांध दिया।

घायल के शरीर में हल्की सी हरकत हुई। मुँह से कराह निकली। पलकें हिलीं। बुझी सी आँखों की पुतलियाँ चढ़ने लगीं। स्पष्टत: तीसेक वर्षीय वह स्वस्थ युवक मरणासन्न हालत में था।

राज ने सड़क पर दोनों ओर निगाहें दौड़ाईं। दूर-दूर तक न तो कोई वाहन नजर आया और न ही कोई मकान। सूरज डूब चुका था। आस-पास के पहाड़ी इलाके में अजीब सी बोझिल निस्तब्धता व्याप्त थी।

राज ने उसे बाँहों में उठा लिया। कार के पास पहुँचकर उसे पिछली सीट पर लिटाया। उसका सर अपने बैग पर रखकर अपना ओवरकोट उसके ऊपर डाल दिया।

ड्राइविंग सीट पर बैठकर पुनः कार दौड़ानी आरंभ कर दी। रीयर व्यु मिरर इस ढंग से घुमा लिया की उसे देखता रह सके।

दो-तीन मील तक घायल उसी स्थिति में रहा। फिर उसका सर एक तरफ लुढ़क गया।

सामने हाईवे के साथ-साथ दूर तक तारों की ऊँची फैंस बनी नजर आ रही थी। उसके पीछे पुरानी सड़कों हैंगरों, जगह-जगह लगे बोर्डों वगैरा से जाहिर था बरसों पहले उस स्थान को एयरफोर्स के कैम्प के तौर पर इस्तेमाल किया जाता रहा था।

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Posted: 05 Jul 2020 11:02
by admin
बीस-पच्चीस मिनट पश्चात एक शहर की रोशनियाँ नजर आनी शुरू हो गईं।

शहर का नाम था- अलीगढ़।

पहली ही इमारत पर लगे नियोन साइन से बने अक्षर चमक रहे थे-सैनी डीलक्स मोटल। प्रवेश द्वार और लॉबी में दिन की भाँति प्रकाश फैला था।

ठीक सामने कार पार्क करके राज भीतर दाखिल हुआ।

रिसेप्शन डेस्क पर मौजूद सुंदर स्त्री ने सर से पाँव तक उसे देखा।

-“फरमाइए?” थकी सी आवाज में बोली।

-“मेरी कार में एक आदमी को मदद की सख्त जरूरत है।” राज ने कहा- “मैं उसे अंदर ले आता हूँ। आप डाक्टर को बुला दीजिये।”

स्त्री की आँखों में चिंता झलकने लगी।

-“बीमार है?”

-“उसे गोली लगी है।”

-“वह जल्दी से उठी और पीछे बना दरवाजा खोला।

-“सतीश, जरा बाहर आओ।”

-“उसे डाक्टर की जरूरत है।” राज ने कहा- “बातें करने का वक्त यह नहीं है।”

गवरडीन का सूट पहने एक लंबा-चौड़ा आदमी दरवाजे में प्रगट हुआ।

-“अब क्या हुआ? खुद कुछ भी नहीं संभाल सकतीं ?”

स्त्री की मुट्ठियाँ भींच गईं।

-“मेरे साथ तुम इस ढंग से पेश नहीं आ सकते।”

आदमी तनिक मुस्कराया। उसका चेहरा सुर्ख था।
-“मैं अपने घर में जो चाहूँ कर सकता हूँ।”

-“तुम नशे में हो सतीश।”

-“बको मत।”

डेस्क के पीछे थोड़ी सी जगह में वे दोनों एक-दूसरे के सामने तने खड़े थे।

-“देखिये बाहर एक आदमी को खून बह रहा है। उसकी हालत बहुत नाज़ुक है।” राज बोला- “अगर आप उसे अंदर नहीं लाने देना चाहते तो कम से कम एंबुलेंस ही बुला दीजिये।”

आदमी उसकी ओर पलटा।
-“कौन है वह?”

-“पता नहीं। साफ-साफ बताइए, आप लोग मदद करेंगे या नहीं?”

-“जरूर करेंगे।” स्त्री ने कहा।

आदमी दरवाजा बंद करके बाहर निकल गया।

स्त्री डेस्क पर रखे टेलीफोन का रिसीवर उठाकर नंबर डायल कर चुकी थी।

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Posted: 05 Jul 2020 11:03
by admin
-“सैनी डीलक्स मोटल।” वह बोली- “मैं मिसेज सैनी बोल रही हूँ। यहाँ एक घायल आदमी लाया गया है... नहीं, उसे गोली लगी है... हाँ, सीरियस है... यस एन एमरजेंसी।” रिसीवर यथास्थान रखकर बोली- “हास्पिटल से एंबुलेंस आ रही है।” फिर उसका स्वर धीमा हो गया- “मुझे खेद है। हमारी गलती से बेकार वक्त बर्बाद हुआ।”

-“इससे फर्क नहीं पड़ता।”

-“मुझे पड़ता है। आयम रीयली सॉरी। मैं कुछ और कर सकती हूँ?

पुलिस को सूचित कर दूँ।”

-“हास्पिटल वाले कर देंगे। मदद करने के लिए धन्यवाद, मिसेज सैनी।”

राज प्रवेश द्वार की ओर बढ़ गया।

स्त्री भी उसके साथ चल दी।

-“आप पर तो बहुत बुरी गुजर रही होगी। वह आपका दोस्त है?”

-“नहीं। मेरा कोई नहीं है। मुझे हाईवे पर पड़ा मिला था।”

अचानक स्त्री चौंकी और उसकी निगाहें राज के सीने पर केन्द्रित हो गईं जहां कमीज पर लगा दाग सूख गया था।

-“आपको भी चोट आई है?”

-“नहीं।” राज ने कहा-” यह उसी के खून का दाग है।” और बाहर निकल गया।