Thriller अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म ) adultery Thriller
Re: Thriller अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म ) adultery Thriller
कार का पिछला दरवाजा खोले अंदर झुका सैनी कदमों की आहट सुनकर फौरन सीधा खड़ा हो गया।
आगंतुक राज था।
-“इसकी सांस चल रही है।” उसने पूछा।
शराब के प्रभाववंश सैनी के चेहरे पर उत्पन्न तमतमाहट खत्म हो चुकी थी।
-“हाँ, सांस चल रही है।” वह बोला- मेरे ख्याल से इसे अंदर नहीं ले जाना चाहिए। लेकीन अगर तुम कहते हो तो अंदर ले जाएंगे।”
-“सोच लीजिए, आप का कारपेट गंदा हो जाएगा।”
सैनी उसके पास आ गया। उसकी आँखें कठोर थीं।
-“बेकार की बातें मत करो। यह तुम्हें कहाँ मिला था?”
-“एयरफोर्स कैम्प से दक्षिण में कोई दो मील दूर खाई में।”
-“तुम इसे मेरे दरवाजे पर ही क्यों लाए?”
-“इसलिए कि मुझे यही पहली इमारत नजर आई थी।” राज शुष्क स्वर में बोला- “अगली बार ऐसी नौबत आने पर यहाँ रुकने की बजाय आगे चला जाऊंगा।”
-“मेरा यह मतलब नहीं था।”
-“फिर क्या था?”
-“मैं सोच रहा था, क्या यह महज इत्तिफाक है।”
-“क्यों? तुम इसे जानते हो?”
-“हाँ। यह मनोहर लाल है। बवेजा ट्रांसपोर्ट कंपनी का ट्रक ड्राइवर।”
-“अच्छी तरह जानते हो?”
-“नहीं। शहर के ज़्यादातर लोगों को जानना मेरे धंधे का हिस्सा है लेकिन मामूली ट्रक ड्राइवरों को मुँह मैं नहीं लगाता।”
-“अच्छा करते हो। इसे किसने शूट किया हो सकता है?”
-“तुम किस हक से सवाल कर रहे हो?”
-“यूँ ही।”
-“तुमने बताया नहीं तुम कौन हो?”
-“नहीं बताया।”
-“ऐसा तो नहीं है कि किसी वजह से तुमने ही इसे शूट कर दिया था?”
-“तुम बहुत होशियार हो। मैंने ही इसे शूट किया था और इसे यहाँ लाकर इस तरह भागने की कोशिश कर रहा हूँ।”
-“तुम्हारी शर्ट पर खून लगा देख कर मैंने यूँ पूछ लिया था।”
उसके चेहरे पर कुटिलतापूर्ण मुस्कराहट देखकर राज के जी में आया उसके दाँत तोड़ दे लेकिन अपनी इस इच्छा को दबाकर वह कार की दूसरी साइड में चला गया। डोम लाइट का स्विच ऑन कर दिया।
घायल मनोहर लाल के मुँह से अभी भी खून के छोटे-छोटे बुलबुले बाहर आ रहे थे। आँखें बंद थीं और सांसें धीमी।
एंबुलेंस आ पहुँची। मनोहर लाल को स्ट्रेचर पर डाल कर उसमें डाल दिया गया।
मात्र उत्सुकतावश राज अपनी कार में रहकर एंबुलेंस का पीछा करने लगा।
आगंतुक राज था।
-“इसकी सांस चल रही है।” उसने पूछा।
शराब के प्रभाववंश सैनी के चेहरे पर उत्पन्न तमतमाहट खत्म हो चुकी थी।
-“हाँ, सांस चल रही है।” वह बोला- मेरे ख्याल से इसे अंदर नहीं ले जाना चाहिए। लेकीन अगर तुम कहते हो तो अंदर ले जाएंगे।”
-“सोच लीजिए, आप का कारपेट गंदा हो जाएगा।”
सैनी उसके पास आ गया। उसकी आँखें कठोर थीं।
-“बेकार की बातें मत करो। यह तुम्हें कहाँ मिला था?”
-“एयरफोर्स कैम्प से दक्षिण में कोई दो मील दूर खाई में।”
-“तुम इसे मेरे दरवाजे पर ही क्यों लाए?”
-“इसलिए कि मुझे यही पहली इमारत नजर आई थी।” राज शुष्क स्वर में बोला- “अगली बार ऐसी नौबत आने पर यहाँ रुकने की बजाय आगे चला जाऊंगा।”
-“मेरा यह मतलब नहीं था।”
-“फिर क्या था?”
-“मैं सोच रहा था, क्या यह महज इत्तिफाक है।”
-“क्यों? तुम इसे जानते हो?”
-“हाँ। यह मनोहर लाल है। बवेजा ट्रांसपोर्ट कंपनी का ट्रक ड्राइवर।”
-“अच्छी तरह जानते हो?”
-“नहीं। शहर के ज़्यादातर लोगों को जानना मेरे धंधे का हिस्सा है लेकिन मामूली ट्रक ड्राइवरों को मुँह मैं नहीं लगाता।”
-“अच्छा करते हो। इसे किसने शूट किया हो सकता है?”
-“तुम किस हक से सवाल कर रहे हो?”
-“यूँ ही।”
-“तुमने बताया नहीं तुम कौन हो?”
-“नहीं बताया।”
-“ऐसा तो नहीं है कि किसी वजह से तुमने ही इसे शूट कर दिया था?”
-“तुम बहुत होशियार हो। मैंने ही इसे शूट किया था और इसे यहाँ लाकर इस तरह भागने की कोशिश कर रहा हूँ।”
-“तुम्हारी शर्ट पर खून लगा देख कर मैंने यूँ पूछ लिया था।”
उसके चेहरे पर कुटिलतापूर्ण मुस्कराहट देखकर राज के जी में आया उसके दाँत तोड़ दे लेकिन अपनी इस इच्छा को दबाकर वह कार की दूसरी साइड में चला गया। डोम लाइट का स्विच ऑन कर दिया।
घायल मनोहर लाल के मुँह से अभी भी खून के छोटे-छोटे बुलबुले बाहर आ रहे थे। आँखें बंद थीं और सांसें धीमी।
एंबुलेंस आ पहुँची। मनोहर लाल को स्ट्रेचर पर डाल कर उसमें डाल दिया गया।
मात्र उत्सुकतावश राज अपनी कार में रहकर एंबुलेंस का पीछा करने लगा।
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हास्पिटल में।
राज अपने बैग से साफ कमीज निकालकर बदलने के बाद एमरजेंसी वार्ड में पहुँचा।
मनोहर लाल एक ट्राली पर पड़ा था। चेहरा पीला था, आँखें बंद और होंठ खुले। उसके शरीर में कोई हरकत नहीं थीं।
एक डाक्टर उसका मुआयना करके पीछे हटा तो राज से टकरा गया।
-“आप मरीज हैं?”
-“नहीं। मैं ही इसे लेकर आया था।”
-“इसे जल्दी लाना चाहिए था।”
-“यह बच जाएगा, डाक्टर?”
-“यह मर चुका है। लगता है, काफी देर तक खून बहता रहा था।”
-“गोली लगने की वजह से?”
-“हाँ। यह आपका दोस्त था?”
-“नहीं। आपने पुलिस को इत्तला कर दी है?”
-“हाँ। पुलिस आपसे पूछताछ करना चाहेगी। यहीं रहना।”
-“ठीक है।”
मनोहर लाल की लाश को सफ़ेद चादर से ढँक दिया गया। राज वरांडे में बैंच पर बैठ कर इंतजार करने लगा।
राज अपने बैग से साफ कमीज निकालकर बदलने के बाद एमरजेंसी वार्ड में पहुँचा।
मनोहर लाल एक ट्राली पर पड़ा था। चेहरा पीला था, आँखें बंद और होंठ खुले। उसके शरीर में कोई हरकत नहीं थीं।
एक डाक्टर उसका मुआयना करके पीछे हटा तो राज से टकरा गया।
-“आप मरीज हैं?”
-“नहीं। मैं ही इसे लेकर आया था।”
-“इसे जल्दी लाना चाहिए था।”
-“यह बच जाएगा, डाक्टर?”
-“यह मर चुका है। लगता है, काफी देर तक खून बहता रहा था।”
-“गोली लगने की वजह से?”
-“हाँ। यह आपका दोस्त था?”
-“नहीं। आपने पुलिस को इत्तला कर दी है?”
-“हाँ। पुलिस आपसे पूछताछ करना चाहेगी। यहीं रहना।”
-“ठीक है।”
मनोहर लाल की लाश को सफ़ेद चादर से ढँक दिया गया। राज वरांडे में बैंच पर बैठ कर इंतजार करने लगा।
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पुलिस इंसपैक्टर चालीसेक वर्षीय, ऊंचे कद और आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी था। उसके साथ बावर्दी एस. आई. भी था।
लाश का मुआयना करके दोनों बाहर निकले।
-“किसी औरत का चक्कर लगता है, सर।” एस. आई. कह रहा था- “आप तो जानते हैं मनोहर कैसा आदमी था।”
-“जानता हूँ।” इन्सपैक्टर बोला।
दोनों राज के पास आ गए।
-“तुम ही उसे यहाँ लाए थे?” इन्सपैक्टर ने पूछा।
राज खड़ा हो गया।
-“हाँ।”
-“तुम अलीगढ़ में ही रहते हो?”
-“नहीं विराट नगर में।”
-“आई सी।” इन्सपैक्टर ने सर हिलाया- “तुम्हारा नाम और पता?”
-“राज कुमार, 4C, पार्क स्ट्रीट, विराट नगर।”
एस. आई. ने नोट कर लिया।
-“मैं इन्सपैक्टर ब्रजेश्वर चौधरी हूँ। यह एस. आई. दिनेश जोशी है।” इन्सपैक्टर ने परिचय देकर पूछा- “तुम काम क्या करते हो?”
-“प्रेस रिपोर्टर हूँ।”
-“किस पेपर में?”
-“पंजाब केसरी।”
-“हाईवे पर क्या कर रहे थे?”
-“ड्राइविंग। अपनी कार में विशालगढ़ से विराट नगर लौट रहा था।”
-“लेकिन अब तुम्हें यहीं रुकना होगा। आजकल परोपकार करना महंगा पड़ता है। इस केस की इनक्वेस्ट में हमें तुम्हारी जरूरत पड़ेगी।”
-“जानता हूँ।”
-“क्या तुम दो-एक रोज यहाँ रुक सकते हो? आज वीरवार है.... शनिवार तक रुकोगे?”
-“अगर रुकना पड़ा तो रुकूँगा।”
-“गुड। अब यह बताओ, उस तक तुम कैसे पहुंचे?”
लाश का मुआयना करके दोनों बाहर निकले।
-“किसी औरत का चक्कर लगता है, सर।” एस. आई. कह रहा था- “आप तो जानते हैं मनोहर कैसा आदमी था।”
-“जानता हूँ।” इन्सपैक्टर बोला।
दोनों राज के पास आ गए।
-“तुम ही उसे यहाँ लाए थे?” इन्सपैक्टर ने पूछा।
राज खड़ा हो गया।
-“हाँ।”
-“तुम अलीगढ़ में ही रहते हो?”
-“नहीं विराट नगर में।”
-“आई सी।” इन्सपैक्टर ने सर हिलाया- “तुम्हारा नाम और पता?”
-“राज कुमार, 4C, पार्क स्ट्रीट, विराट नगर।”
एस. आई. ने नोट कर लिया।
-“मैं इन्सपैक्टर ब्रजेश्वर चौधरी हूँ। यह एस. आई. दिनेश जोशी है।” इन्सपैक्टर ने परिचय देकर पूछा- “तुम काम क्या करते हो?”
-“प्रेस रिपोर्टर हूँ।”
-“किस पेपर में?”
-“पंजाब केसरी।”
-“हाईवे पर क्या कर रहे थे?”
-“ड्राइविंग। अपनी कार में विशालगढ़ से विराट नगर लौट रहा था।”
-“लेकिन अब तुम्हें यहीं रुकना होगा। आजकल परोपकार करना महंगा पड़ता है। इस केस की इनक्वेस्ट में हमें तुम्हारी जरूरत पड़ेगी।”
-“जानता हूँ।”
-“क्या तुम दो-एक रोज यहाँ रुक सकते हो? आज वीरवार है.... शनिवार तक रुकोगे?”
-“अगर रुकना पड़ा तो रुकूँगा।”
-“गुड। अब यह बताओ, उस तक तुम कैसे पहुंचे?”