Thriller अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म ) adultery Thriller
Re: Thriller अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म ) adultery Thriller
-“वह एयरफोर्स की उस बेस से कोई दो मील दूर सड़क के नीचे खाई में पड़ा था। वह घुटनों के बल उठा और हाथ हिलाकर मुझे कार रोकने का इशारा किया।”
-“यानि तब तक वह होश में था?”
-“ऐसा ही लगता है,”
-“उसने कुछ कहा था?”
-“नहीं। जब तक मैं कार से उतर कर उसके पास पहुँचा वह बेहोश हो चुका था। उसकी हालत को देखते हुए उसे वहाँ से उठाना तो मैं नहीं चाहता था लेकिन फोन करने या किसी को मदद के लिए बुलाने का कोई साधन वहाँ नहीं था। इसलिए उसे उठा कर अपनी कार की पिछली सीट पर डाला और पहली इमारत के पास पहुँचते ही एंबुलेंस के लिए फोन करा दिया।”
-“किस जगह से?”
-“सैनी डीलक्स मोटल से। सैनी पर इस की अजीब सी प्रतिक्रिया हुई। लगता है वह मनोहर लाल को जानता तो था लेकिन उसके जीने या मरने से कोई मतलब उसे नहीं था। एंबुलेंस के लिए उसकी पत्नि ने फोन किया था।”
-“मिसेज सैनी वहाँ क्या कर रही थी?”
-“रिसेप्शनिस्ट की तरह डेस्क पर मौजूद थी।”
-“सैनी की मैनेजर वहाँ नहीं थी?”
-“वह कौन है?”
-“मिस बवेजा।”
-“अगर वह वहाँ थी भी तो मैंने उसे नहीं देखा। क्या उससे कोई फर्क पड़ता है?”
-“नहीं।” इन्सपैक्टर अचानक तीव्र हो गए अपने स्वर को सामान्य बनाता हुआ बोला- “यह पहला मौका है- मैंने रजनी सैनी को वहाँ काम करती सुना है।”
एस. आई. ने अपनी नोट बुक से सर ऊपर उठाया।
-“इस हफ्ते वह रोज वहाँ काम करती रही है, सर।”
इन्सपैक्टर के चेहरे की मांसपेशियाँ खिंच गईं और आँखों में विचारपूर्ण भाव झाँकने लगे।
-“सैनी थोड़ा नशे की झोंक में था शायद इसीलिए वह कड़ाई से पेश आया था। उसने मुझसे पूछा मैंने ही तो उस आदमी को शूट नहीं कर दिया था।” राज ने कहा।
-“तुमने क्या जवाब दिया?”
-“यही की मैंने तो पहले कभी उसे देखा तक नहीं था। अगर उसने दोबारा ऐसी बकवास की तो मैं इसे अपने बयान में जोड़ दूँगा।”
-“हालात को देखते हुए आइडिया बुरा नहीं है।” इन्सपैक्टर ने कहकर पूछा- “क्या तुम साथ चल कर वो जगह दिखा सकते हो जहां महोहर लाल को पड़ा पाया था?”
-“जरूर?”
-“लेकिन उससे पहले मैं तुम्हारा ड्राइविंग लाइसेन्स और प्रेस कार्ड देखना चाहूँगा। तुम्हें एतराज तो नहीं है?”
-“नहीं।”
राज ने जेब से दोनों चीजें निकालकर उसे दे दीं।
इन्सपैक्टर ने देखकर वापस लौटा दीं।
-“यानि तब तक वह होश में था?”
-“ऐसा ही लगता है,”
-“उसने कुछ कहा था?”
-“नहीं। जब तक मैं कार से उतर कर उसके पास पहुँचा वह बेहोश हो चुका था। उसकी हालत को देखते हुए उसे वहाँ से उठाना तो मैं नहीं चाहता था लेकिन फोन करने या किसी को मदद के लिए बुलाने का कोई साधन वहाँ नहीं था। इसलिए उसे उठा कर अपनी कार की पिछली सीट पर डाला और पहली इमारत के पास पहुँचते ही एंबुलेंस के लिए फोन करा दिया।”
-“किस जगह से?”
-“सैनी डीलक्स मोटल से। सैनी पर इस की अजीब सी प्रतिक्रिया हुई। लगता है वह मनोहर लाल को जानता तो था लेकिन उसके जीने या मरने से कोई मतलब उसे नहीं था। एंबुलेंस के लिए उसकी पत्नि ने फोन किया था।”
-“मिसेज सैनी वहाँ क्या कर रही थी?”
-“रिसेप्शनिस्ट की तरह डेस्क पर मौजूद थी।”
-“सैनी की मैनेजर वहाँ नहीं थी?”
-“वह कौन है?”
-“मिस बवेजा।”
-“अगर वह वहाँ थी भी तो मैंने उसे नहीं देखा। क्या उससे कोई फर्क पड़ता है?”
-“नहीं।” इन्सपैक्टर अचानक तीव्र हो गए अपने स्वर को सामान्य बनाता हुआ बोला- “यह पहला मौका है- मैंने रजनी सैनी को वहाँ काम करती सुना है।”
एस. आई. ने अपनी नोट बुक से सर ऊपर उठाया।
-“इस हफ्ते वह रोज वहाँ काम करती रही है, सर।”
इन्सपैक्टर के चेहरे की मांसपेशियाँ खिंच गईं और आँखों में विचारपूर्ण भाव झाँकने लगे।
-“सैनी थोड़ा नशे की झोंक में था शायद इसीलिए वह कड़ाई से पेश आया था। उसने मुझसे पूछा मैंने ही तो उस आदमी को शूट नहीं कर दिया था।” राज ने कहा।
-“तुमने क्या जवाब दिया?”
-“यही की मैंने तो पहले कभी उसे देखा तक नहीं था। अगर उसने दोबारा ऐसी बकवास की तो मैं इसे अपने बयान में जोड़ दूँगा।”
-“हालात को देखते हुए आइडिया बुरा नहीं है।” इन्सपैक्टर ने कहकर पूछा- “क्या तुम साथ चल कर वो जगह दिखा सकते हो जहां महोहर लाल को पड़ा पाया था?”
-“जरूर?”
-“लेकिन उससे पहले मैं तुम्हारा ड्राइविंग लाइसेन्स और प्रेस कार्ड देखना चाहूँगा। तुम्हें एतराज तो नहीं है?”
-“नहीं।”
राज ने जेब से दोनों चीजें निकालकर उसे दे दीं।
इन्सपैक्टर ने देखकर वापस लौटा दीं।
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पुलिस दल सहित राज उस स्थान पर पहुँचा।
पुलिश कारों की हैडलाइट्स और टार्चों की रोशनी में खाई का निरीक्षण किया गया। वहाँ सूखा खून फैला होने और एक मानव शरीर के पड़ा रहा होने के स्पष्ट चिन्ह मौजूद थे।
एक और पुलिस कार आ पहुँची।
भारी कंधों, मजबूत जिस्म और कठोर चेहरे वाले एक एस. आई. ने नीचे उतरकर इन्सपैक्टर को सैल्यूट मारा।
-“बवेजा से बात हो गई, सर। मनोहर लाल ड्यूटी पर था। लेकिन जिस ट्रक को वह चला रहा था वो गायब है।
-“ट्रक में क्या था?” इन्सपैक्टर ने पूछा।
-“यह बवेजा ने नहीं बताया। इस बारे में आपसे बाते करना चाहता है।” एस. आई. का कठोर चेहरा एकाएक और ज्यादा कठोर हो गया- “जिस हरामजादे ने यह किया है जब वह मेरे हाथ पड़ जाएगा....” और उसकी निगाहें राज पर जम गईं।
इन्सपैक्टर ने एस. आई. के कंधे पर हाथ रखा।
-“शांत हो जाओ, सतीश। मैं जानता हूँ, तुम लोग रिश्तों को बहुत ज्यादा मानते हो। मनोहर लाल तुम्हारा कजिन था न?”
-“हाँ। मौसी का लड़का।”
-“हम उसके हत्यारे को जरूर पकड़ लेंगे।”
एस. आई. की निगाहें पूर्ववत राज पर जमी थीं।
-“यह आदमी...।”
-“इसका मनोहर की मौत से कोई वास्ता नहीं है। मनोहर इसे यहाँ पड़ा मिला था। यह उसे उठाकर ले गया और हास्पिटल पहुंचवा दिया।”
-“यह इसने कहा है?”
-“इसी ने बताया है।” इन्सपैक्टर ने कहा फिर उसका स्वर अधिकारपूर्ण हो गया- “बवेचा अब कहाँ है?”
-“अपनी ट्रांसपोर्ट कंपनी में।”
-“तुम पुलिस स्टेशन जाओ और ट्रक के बारे में जानकारी हासिल करो। बवेजा से कहना मैं बाद में आकर मिलूंगा। ट्रक के बारे में सभी थानों और चैक पोस्टों को सतर्क कर दो। यहाँ से बाहर जाने वाली तमाम सड़कें ब्लॉक करा दो। समझ गए?”
-“यस, सर।”
एस. आई. सतीश अपनी कार की ओर दौड़ गया।
इन्सपैक्टर और उसके शेष आदमी बारीकी से खाई की जाँच करने लगे।
पुलिश कारों की हैडलाइट्स और टार्चों की रोशनी में खाई का निरीक्षण किया गया। वहाँ सूखा खून फैला होने और एक मानव शरीर के पड़ा रहा होने के स्पष्ट चिन्ह मौजूद थे।
एक और पुलिस कार आ पहुँची।
भारी कंधों, मजबूत जिस्म और कठोर चेहरे वाले एक एस. आई. ने नीचे उतरकर इन्सपैक्टर को सैल्यूट मारा।
-“बवेजा से बात हो गई, सर। मनोहर लाल ड्यूटी पर था। लेकिन जिस ट्रक को वह चला रहा था वो गायब है।
-“ट्रक में क्या था?” इन्सपैक्टर ने पूछा।
-“यह बवेजा ने नहीं बताया। इस बारे में आपसे बाते करना चाहता है।” एस. आई. का कठोर चेहरा एकाएक और ज्यादा कठोर हो गया- “जिस हरामजादे ने यह किया है जब वह मेरे हाथ पड़ जाएगा....” और उसकी निगाहें राज पर जम गईं।
इन्सपैक्टर ने एस. आई. के कंधे पर हाथ रखा।
-“शांत हो जाओ, सतीश। मैं जानता हूँ, तुम लोग रिश्तों को बहुत ज्यादा मानते हो। मनोहर लाल तुम्हारा कजिन था न?”
-“हाँ। मौसी का लड़का।”
-“हम उसके हत्यारे को जरूर पकड़ लेंगे।”
एस. आई. की निगाहें पूर्ववत राज पर जमी थीं।
-“यह आदमी...।”
-“इसका मनोहर की मौत से कोई वास्ता नहीं है। मनोहर इसे यहाँ पड़ा मिला था। यह उसे उठाकर ले गया और हास्पिटल पहुंचवा दिया।”
-“यह इसने कहा है?”
-“इसी ने बताया है।” इन्सपैक्टर ने कहा फिर उसका स्वर अधिकारपूर्ण हो गया- “बवेचा अब कहाँ है?”
-“अपनी ट्रांसपोर्ट कंपनी में।”
-“तुम पुलिस स्टेशन जाओ और ट्रक के बारे में जानकारी हासिल करो। बवेजा से कहना मैं बाद में आकर मिलूंगा। ट्रक के बारे में सभी थानों और चैक पोस्टों को सतर्क कर दो। यहाँ से बाहर जाने वाली तमाम सड़कें ब्लॉक करा दो। समझ गए?”
-“यस, सर।”
एस. आई. सतीश अपनी कार की ओर दौड़ गया।
इन्सपैक्टर और उसके शेष आदमी बारीकी से खाई की जाँच करने लगे।
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एस. आई. दिनेश जोशी ने राज के जूते की छाप लेकर उसे खाई में मौजूद पद चिन्हों से मिलाया। राज के अलावा किसी और के पैरों के निशान वहाँ नहीं मिले। खाई के सिरे के आसपास किसी वाहन के टायरों के निशान भी नहीं थे।
-“ऐसा लगता है, मनोहर को किसी कार या उसके ट्रक से ही नीचे धकेल दिया गया था।” इन्सपैक्टर चौधरी बोला- “वाहन जो भी रहा था सड़क से नीचे वो नहीं उतरा।”
उसने राज की ओर गरदन घुमाई- “तुमने कोई कार या ट्रक देखा था?”
-“नहीं।”
-“कुछ भी नहीं।”
-“नहीं।”
-“मुमकिन है, जिस वाहन से मनोहर को धकेला गया था वो रुका ही नहीं।” उन लोगों ने उसे नीचे गिराया और मरने के लिए छोड़ दिया। और मनोहर खुद ही रेंगकर खाई में पहुँच गया।”
-“आपका अनुमान सही है सर।” सड़क की साइड में खड़ा दिनेश जोशी बोला- “यहाँ खून के धब्बे मौजूद हैं जो खाई तक गए हुए हैं।”
इन्सपैक्टर अपने मातहतों सहित कुछ देर और जांच करता रहा। लेकिन कोई क्लू या नई बात पता नहीं लग सकी।
-“तुम सतीश सैनी से मिल चुके हो न?” अंत में उसने पूछा।
-“हाँ।” राज ने जवाब दिया।
-“दोबारा उससे मिलना चाहोगे?”
-“जरूर।”
-“ऐसा लगता है, मनोहर को किसी कार या उसके ट्रक से ही नीचे धकेल दिया गया था।” इन्सपैक्टर चौधरी बोला- “वाहन जो भी रहा था सड़क से नीचे वो नहीं उतरा।”
उसने राज की ओर गरदन घुमाई- “तुमने कोई कार या ट्रक देखा था?”
-“नहीं।”
-“कुछ भी नहीं।”
-“नहीं।”
-“मुमकिन है, जिस वाहन से मनोहर को धकेला गया था वो रुका ही नहीं।” उन लोगों ने उसे नीचे गिराया और मरने के लिए छोड़ दिया। और मनोहर खुद ही रेंगकर खाई में पहुँच गया।”
-“आपका अनुमान सही है सर।” सड़क की साइड में खड़ा दिनेश जोशी बोला- “यहाँ खून के धब्बे मौजूद हैं जो खाई तक गए हुए हैं।”
इन्सपैक्टर अपने मातहतों सहित कुछ देर और जांच करता रहा। लेकिन कोई क्लू या नई बात पता नहीं लग सकी।
-“तुम सतीश सैनी से मिल चुके हो न?” अंत में उसने पूछा।
-“हाँ।” राज ने जवाब दिया।
-“दोबारा उससे मिलना चाहोगे?”
-“जरूर।”