वर्ष २०१२ जिला धौलपुर की एक घटना - thriller adventure story

Horror stories collection. All kind of thriller stories in English and hindi.
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Re: वर्ष २०१२ जिला धौलपुर की एक घटना - thriller adventure st

Unread post by novel » 30 Oct 2015 08:15

शेष रात, टुकड़ों में काटी गंगा ने! कभी वो अंगूठी देखती, पहन लेती, उतार देती, हाथ में जकड़ लेती, आंसू आते तो पोंछती भी नहीं, बह जाएँ ज़्यादा से ज़्यादा, तो सुकून मिल जाता है, इसीलिए! खाना भी छूट सा ही चला था गंगा का, माँ जानती थी सबकुछ, लेकिन क्या करे वो, किसी तरह से, वो और माला, खिला ही देती थीं उसे खाना, गंगा, गंगा में जैसे विराम लगा था! स्थिर हो चुकी थी गंगा! भूदेव और भूदेव, बस! चिंता थी उसको भूदेव की! अब तो कोई अमीन के यहां से भी कोई नहीं आ रहा था, कम से कम मालूमात तो हो जाती उस से, पता तो चल जाता उस भूदेव के बारे में! कोई नहीं आया था अभी तक! अजीब से दोराहे पे आ खड़ी हुई थी गंगा! क्या करे और क्या न करे! किसको भेजे, किसको कहे, किस से खबर निकलवाए!
उस दोपहर में, गंगा तैयार हुई जाने के लिए कुँए! पानी लाना तो अब बस बहाना ही था उसके लिए, उसके दिल में जो आग जल रही थी, उसको कोई पानी नहीं बुझा सकता था, कोई तर्क नहीं था जो उस से अलग हो! वो तो सूख रही थी, सूखा पड़ा हुआ था उसके अंदर, अब बस वो भूदेव ही तर करे उसे तो कुछ हो! कुँए पहुंची दोनों, और गंगा, चली उस अंधे कुँए की तरफ, जैसे ही पहुंची, उसकी नज़र उस रास्ते पर पड़ी, कोई आ रहा था उस तरफ! आँखें चौड़ी हो गयीं! दिल धड़का सीने में! कलेजे में जैसे छेद हुआ, बदन में जुम्बिश दौड़ी! साँसें, बदहवास हुईं उसकी! वो उस अंधे कुँए से थोड़ा सा दूर थी, पलक झपका कर, देखा कुँए को उसने! और फिर सामने, क़दम खुद ही आगे बढ़ चले, होंठ सूख गए, होंठों के किनारे, सिकुड़ गए थे, दुपट्टा सर पर धरे देखे जा रही थी! उधर रास्ते के पार, माला भी यही देख रही थी, कुआँ छोड़ आई थी वो, और रास्ते पर अ खड़ी हुई थी, कोई बुक्कल मारे चेहरे पर आ रहा था! कौन है ये? क्या परीक्षा खत्म? क्या भूदेव है ये? कौन है??
और थोड़ी ही देर में उस घुड़सवार का घोड़ा धीमा हुआ, आ रहा था धीरे धीरे, बुक्कल हटाया उस घुड़सवार ने! नहीं, ये भूदेव नहीं था! गंगा के सीने में, बड़ा सा पत्थर पेट में गिरा! दिल, रो पड़ा! आँखें, अनुस से अब भीगें या तब, कुछ पता नहीं था! वो घुड़सवार आ गया था कुँए तक! होंठ चिपक गए गंगा के! गला बंद हो गया उसका! आंसू आने से आँखों में, सामने का दृश्य धुंधला हो चला! वो घुड़सवार गुजरा गंगा के सामने से, नज़र न मिली, फिर वो घुड़सवार कुँए की तरफ चला, माला वहीँ चली! वो उतरा, चेहरा पोंछा, और आया माला के पास,
"पानी पिला दो" बोला वो, और झुक के खड़ा हो गया!
गंगा को जैसे काठ सा मारा! पाँव चिपक गए ज़मीन से, भूदेव के वो शब्द, जो वो अक्सर बोला करता था 'पानी!' याद आ गए! कैसे पानी पिलाया करती थी वो उसे! वो कैसे पानी पिया करता था, सामने की ओर, गंगा की आँखों की झलक पाने के लिए! गंगा का नज़रें चुराना उस से, सब याद आ गया पल भर में!
माला ने पानी पिला दिया उसे!
"रोशन सेठ का गाँव यही है?" उसे घुड़सवार ने पूछा, सामने गाँव को देखते हुए,
"हाँ, यही है" बोली माला,
"अच्छा, इसी गाँव की है तू?" पूछा उसने,
"हाँ" बोली माला,
"अच्छा" बोला वो!
चेहरा और हाथ पोंछ लिए थे उसे, अब बस जाने को ही था,
"सुनो?" बोली माला,
"हाँ, बोलो?" वो रुका और बोला,
"क्या आप अमीन के यहाँ से आये हैं?" पूछा माला ने,
"हाँ, वहीँ से" बोला वो,
"क्या भूदेव वहीँ है?" पूछा माला ने,
वो आगे आया,
"भूदेव?" पूछा उसने,
"हाँ भूदेव" बोली माला,
"भूदेव का दो महीने से कुछ पता नहीं चला था, बाद में खबर हुई की उसकी फ़ालिज पड़ी है" बोला वो!
फ़ालिज?
जी में कड़वाहट घुल गयी माला के!
जी किया, पूछ ले पता भूदेव का!
"तू कैसे जानती है भूदेव को?" पूछा उसने,
"वो आया करता था इसी गाँव" बोली वो,
"हाँ, अच्छा, अब मैं हूँ उसकी जगह" बोला वो,
"अच्छा" बोली माला,
अब घुड़सवार आगे बढ़ा, घोड़े पर बैठा और हाँक दिया घोड़ा आगे! और माला, भागी गयी गंगा के पास!
"गंगा? गंगा?" बोली वो!
गंगा ने देखा उसको!
"भूदेव ज़िंदा है!" बोली वो!
कमल खिल उठे! सिकुड़े होंठ फ़ैल गए! हाँ, आंसू नहीं रोक पायी! लिपट गयी माला से, रोते रोते! बुरी तरह से रोई वो!
और जब चुप हुई, तो माला ने सब कुछ बता दिया, भूदेव को फ़ालिज पड़ी है, घर कहाँ है उसका, ये नहीं पूछा था माला ने!
गंगा भागी! उस अंधे कुँए की तरफ!
जा खड़ी हुई उधर ही!
"तेजराज? तेजराज?" चीखी वो!
और तेजराज प्रकट हुआ!
वो पोटली लिए हुए!
घबराया हुआ सा!
"तूने फ़ालिज मारी उन्हें?" बोली गंगा!
कुछ न बोला वो! आँखें नीची!
"बोल?" बोली माला,
कुछ न बोले!
"बोल?" चीखी वो!
तेजराज सहमा! थोड़ा दूर हुआ उस से!
"तू इसे प्रेम कहता है? मुझसे मेरा प्रेम छीनता है? छीन लेगा ऐसे?" बोली गंगा!
"गंगा?" बोला वो,
"मत ले अपने मुंह से मेरा नाम!" चिल्ला के बोली गंगा!
डर गया तेजराज!
"मत ले मेरा नाम!" फिर से बोली,
"नहीं लूँगा, अब कभी नहीं लूँगा" बोला धीरे से,
"तूने किया न ये सब?" पूछा गंगा ने!
"हाँ, किया, कितना दुःख है न तुझे उसके लिए, क्योंकि वो ज़िंदा है, इसलिए न? काश मेरे लिए भी तुझे दुःख हुआ होता, भले ही पल भर के लिए, लेकिन तू तो नफरत करती है मुझे, बहुत नफरत, जानता हूँ, ऐसे ही, मैं उस भूदेव से नफरत करता हूँ, वो मेरा दुश्मन है" बोला तेजराज!
गंगा को गुस्सा आया बहुत! बहुत गुस्सा! भाग पड़ी उसको नोंचने के लिए! जानते हुए भी की वो एक प्रेत है! वो आई तो तेजराज पीछे हुए! लेकिन डर गया था!
"लानत है तुझ पर!" बोली गंगा!
चुप तेजराज!
"लानत है तेरे प्रेम पर!" बोली गंगा!
अब सर उठाया उसने!
"न! ऐसा न बोल! तुझे बहुत प्रेम किया है मैंने, हाथ जोड़ता हूँ, न बोल ऐसा, न बोल, मैं टूटा हुआ हूँ, टूटा हुआ, मुझे बस तेरा प्रेम ही जोड़े बैठा है, सिर्फ तेरा प्रेम" बोला वो, गिड़गिड़ाते हुए!
गंगा गुस्से में थी, पीछे मुड़ी!
"रुक, रुक! रुक जा!" बोला वो!
रुक गयी!
"तूने मेरा नाम लिया आज, मुझे ख़ुशी हुई बहुत! ले, ये रख ले" बोला वो,
गंगा ने देखा उसको, गुस्से से!
"रख ले!" बोला वो!
गंगा फिर से पीछे चल पड़ी!
"सुन! सुन! रुक!" बोला वो!
रुक गयी!
फिर पीछे देखा!
"तूने अच्छा नहीं किया तेजराज, अच्छा नहीं किया" बोली वो,
"जानता हूँ गंगा, विवश हूँ मैं" बोला वो,
"कैसे विवश?" पूछा गंगा ने, पीछे लौटते हुए!
"तेरे प्रेम से विवश" बोला वो,
"झूठ बोलता है तू?" बोली वो,
"झूठ काहे बोलूंगा?" बोला वो,
"सब झूठ बोलता है तू" बोली गंगा, तुनक कर,
"माई की सौगंध, सच बोल रहा हूँ" सर पर हाथ धरे बोला वो!
गंगा लौट पड़ी!
दो भाव एक साथ कैसे संभाले उसने!
एक प्रेम! और एक नफरत!
वाह गंगा! तेरी कहानी भी अजीब है! बहुत अजीब!
गंगा लौटी, कुँए पर आई, सामने देखा, तो लौट रहा था वो घुड़सवार वहीँ!
वे पानी भरते भरते रुक गयीं!

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Re: वर्ष २०१२ जिला धौलपुर की एक घटना - thriller adventure st

Unread post by novel » 30 Oct 2015 08:15

वो घुड़सवार आया उधर कुँए पर, उसने गंगा को देखा, अजीब सी निगाहों से, गंगा झेंप गयी थी, स्त्री मर्दों की निगाह के पीछे के आशय को पल भर में समझ लेती है! तो समझ गयी थी गंगा भी, निगाह नीचे कर ली थी उसने! वो घुड़सवार अपने घोड़े पर बैठा गंगा को ही निहारने लगा था, गंगा की देह वैसे भी आकर्षक थी! कोई भी पुरुष होता तो उसको दो बार तो कम से कम देखता ही, और पलटे के तो निश्चय ही!
"क्या नाम है तेरा?" पूछा उस घुड़सवार ने!
कुछ नहीं बोली गंगा!
घुड़सवार उतर गया घोड़े से अपने!
"बताया नहीं तूने?" पूछा उसने,
"चल अब" बोली गंगा माला से!
"हाँ चल" बोली माला,
वे चलने लगीं, तो घुड़सवार ने रास्ता रोक लिया! नीयत कोरी न थी उसकी!
"तेरे से नाम ही तो पूछा है, तेरे घर का पता नहीं!" बोला वो घुड़सवार गंगा से!
गंगा तो काँप गयी! सिहर गयी! ऐसा कभी न देखा था उसने! सुना तो था, लेकिन देखा नही था!
"रास्ता छोडो हमारा!" बोली माला,
"नाम बता इसका पहले?" बोला वो!
"क्यों?" पूछा माला ने,
"इसकी खूबसूरती लाजवाब है! सोना है सोना! इसीलिए पूछा! अब बता!" बोला वो!
और तभी पीछे से आवाज़ आई! एक घुड़सवार था! सैनिक! घोड़े पर! बुककल मारे! तलवार म्यान से बाहर थी उसकी! आ गया उधर ही! मज़बूत देह थी उसकी! मांसपेशियां वस्त्रों से ही नज़र आ रही थीं उसकी!
"क्या कर रहा है तू?" वो घुड़सवार बोला उस घुड़सवार से!
"कु....कुछ नही" बोला वो!
"रास्ता क्यों रोका है इनका?" पूछा उसने,
"पता पूछ रहा था" बोला वो,
"ऐसे?" वो उतरते हुए बोला!
"गलती हो गयी" बोला वो,
अब आ गया था वो घुड़सवार करीब! उस घुड़सवार के कंधे पर हाथ रखा उसने, और दिया धक्का पीछे, गिरते गिरते बचा वो!
"जाओ, जाओ अपने गाँव!" बोला वो सैनिक!
और तभी उसका बुक्कल हट गया! पहचान गयी वो उस सैनिक को! वो तेजराज था! आ गया था मदद करने! निकल आया था अपने अंधे कुँए से!
"जाओ, गाँव जाओ आराम से, यहीं खड़ा हूँ मैं" बोला वो,
और पलटा पीछे, उस घुड़सवार को घोड़े पर चढ़ने को कहा, वो चढ़ गया, अब कुछ भद्दा सा कह कर, उसको जाने के लिए कह दिया! उसने तो ऐसी दौड़ लगाई की पूछो ही मत! वे दोनों चली गयीं थी, अब बीच रास्ते में थीं, गंगा ने पीछे मुड़कर देखा, कोई नहीं था वहाँ! लोप हो गया था वो, और उसका घोड़ा!
माला भी घबरा गयी थी! लेकिन पहचान न सकी थी उस सैनिक को! जा पहुंचीं घर, और पानी रख दिया आले में, सीधा अपने कमरे में पहुंची, और भूदेव के ख्यालों में डूब गयी!
उस रात, गंगा जाएगी, लगा कोई है कमरे में! उठ गयी, आसपास देखा, कोई नहीं था, फिर बाहर झाँका, खिड़की से पर्दा हटा कर, तो वही बैठा था! गंगा को देख खड़ा हो गया! वो पोटली दिखाई उसे, गंगा ने पर्दा ढक दिया, और चली बाहर की तरफ, वो उनके अहाते में ही था उस समय, पीछे की तरफ, एक पेड़ के पास, रात आधी हो चुकी ही, बाहर गाँव में श्वान भौंक रहे थे! चांदनी ही थी वहां, और कोई प्रकाश नहीं! वो जा पहुंची उसके पास, वो गंगा को देखते ही खड़ा हो गया! और बहुत खुश हुआ!
गंगा आ गयी थी उसके पास! वो थोड़ा पीछे हट गया था! वो पोटली, ज़मीन पर रख दी थी उसने! फिर खड़ा हुआ!
"मन्नी(मेहँदी) लाया हूँ तेरे लिए!" बोला वो!
और कर दी एक और छोटी सी पोटली आगे!
गंगा ऐसे ही खड़ी रही! मन्नी की पोटली भी नहीं देखी उसने!
"तेजराज?" बोली गंगा!
"हाँ! हाँ?" बोला वो!
"तू क्यों मुझे तंग करता है?" पूछा गंगा ने,
चौंक पड़ा!
"कैसे?" पूछा उसने!
"तेरी कोई चीज़ नहीं लूंगी मैं, जानता है?" बोली वो!
घबरा गया!
"क्यों?" बोला वो, वो मन्नी की पोटली पीछे करते हुए!
"तूने फ़ालिज मारी न उन्हें?" बोली वो!
चुप, चुप देखे गंगा को!
और गंगा, हारी हुई सी, थकी हुई सी, बात करे उस से!
"तुझे प्रेम नहीं करती में, मैंने एक को ही प्रेम किया है, जी-जान से, बस भूदेव" बोली गंगा!
क्रोध में फफक उठा वो! भूदेव के नाम से जलता था वो! दुश्मन था भूदेव उसका!
"हा तेजराज, अब कभी न आना" बोली गंगा!
"न! ऐसा न कह, मैं नहीं रह सकता तेरे बिना" बोला वो,
''और मैं भूदेव के बिना" बोली गंगा!
चुप हो गया!!
"जा! अब न आना कभी" बोली वो,
"जाता हूँ, नहीं आऊंगा, लेकिन ये, ये रख ले" बोला वो,
"नहीं" बोली गंगा!
"रख ले" बोला वो,
"नहीं" बोली गंगा!
"कोई हर लेगा" बोला वो,
"हरने दे" बोली वो,
"ऐसा न बोल" बोला वो,
"फिर क्या बोलूं?'' बोली गंगा,
"मेरा प्रेम स्वीकार ले" बोला वो,
"नहीं" बोली गंगा,
"मान जा" बोला वो,
"न, अब जा" बोली वो,
"सुन?" बोला वो,
"बोल?" बोली वो,
"तुझे तरस नहीं आता?" बोला वो,
"तुझे आया?" पूछा,
चुप वो!
"तुझे आया तरस? एक निष्पाप को तूने फ़ालिज दी, तुझे आया?" पूछा गंगा ने!
"मेरा दुश्मन है वो" बोला वो,
"मैं भी हूँ, मार दे मुझे!" बोली गंगा!
चुप! डंक सा मारा उसको!
"मार दे तेजराज! मार दे मुझे!" बोली गंगा!
और गंगा ने हाथ जोड़ दिए इस बार!
तेजराज पीछे हुआ! मन्नी की पोटली गिर गयी नीचे!
"न! तू हाथ न जोड़! मेरा जी फटता है, न जोड़!" बोला वो!
"मैं मर ही जाउंगी उनके बिना तेजराज, मर जाउंगी!" बोला वो!
"न, तू नहीं मरेगी" बोला वो!
"मर जाउंगी, मर जाउंगी" कहते कहते बैठ गयी नीछे!
वो भी बैठा!
"सुन? न बोल, ऐसा न बोल!" बोला वो!
गंगा ने चेहरा उठाया! आंसुओं की धाराएं, गालों से होती हुईं, गर्दन तक जा पहुंची!
आँखों के आंसुओं में, जैसे चाँद स्वयं उतर आये! झिलमिला रहे थे आंसू!
तेजराज, न देख स्का वो!
आँखें हटा लीं वहाँ से!
"खड़ी हो" बोला वो,
नहीं हुई खड़ी!
"खड़ी हो जा" बोला वो,
नहीं हुई!
अब वो खड़ा हुआ!
"खड़ी हो जा" बोला वो!
गंगा ने चेहरा नीचे कर लिया अपना!
"मेरे जी पर ज़ोर पड़ता है, खड़ी हो!" बोला वो!
नहीं हुई खड़ी गंगा!!
"चल, खड़ी हो!" बोला वो!
नहीं हुई! बस, एक नज़र उस तेजराज को देखा, नफरत से!

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"चल उठ जा अब! उठ जा!" बोला वो!
नहीं उठी, या फिर उठ नहीं सकी! जान शेष न थी उसमे अब!
"उठ जा, उठ तो सही?" बोला वो!
गंगा ने ऊपर देखा, उस तेजराज को,
"उठ जा!" बोला वो!
हल्का सा हिली, और बैठ गयी, दोनों कोहनियां अपने घुटने पर रखे!
तेजराज, फिर से बैठ गया, थोड़ा सा दूर,
"ले, रख ले, इसे तो ले ले!" बोला वो, उस मन्नी की पोटली को आगे सरकाते हुए!
गंगा ने देखा उस पोटली को, लेकिन छुआ नहीं!
"रख ले, कभी तो कहना मान लिया कर मेरा?" बोला वो!
नहीं सुना, अनसुना कर दिया!
"इतनी ज़िद मत किया कर मेरे से, मुझे दुःख होता है, एक तू ही है, जिस से मैंने इन बरसों में बात की है जी की, तू ही ऐसा करेगी, तो मैं कहाँ जाऊँगा?" बोला तेजराज!
गंगा ने देखा उसे, एक अजीब से भाव से! तेजराज ने भाव भांपा, और आँखें नीचे कर लीं अपनी!
"जा तेजराज, तू जा, अब लौट के न आना कभी, मैं नहीं मिलना चाहती तुझे!" बोला गंगा ने ऐसा!
तेजरज खड़ा हुआ, वो मन्नी की पोटली उठायी,
"ठीक है, तू ऐसा चाहती है, तो ऐसा ही सही, तूने तेरा नाम लेने से मना किया, मैंने नहीं लिया, जाने को कह रही है, ठीक है, अब नहीं आऊंगा मैं, तो लाख बुलाएगी, तब भी नहीं आऊंगा मैं, जा रहा हूँ मैं, अब नहीं आऊंगा, तुझसे जोत जली, तूने नहीं मानी, मेरे जी को तू भाई, नहीं मानी, ठीक है, जा रहा हूँ, अभी " बोला वो, और चला पीछे, एक बार देखा गंगा को, और लोप हो गया!
चला गया था वापिस! वहीँ अपने अंधे कुँए में! जहां से आया था, वहीँ चला गया था! गंगा उठी, और चली वापिस, अपने कमरे में आई, कमरे में आते ही देखा, सारे फूल गायब थे! अब कुछ नहीं था वहां! वो लेट गयी बिस्तर पर! मिट्टी लगी थी कपड़ों में, हाथों पर, पांवों पर, नहीं ध्यान आया कुछ ऐसा! आँखें बंद कीं उसने, गला रुँधा हुआ था, कोई छेड़ता तो आंसू निकल ही आते!
मित्रगण!
पंद्रह दिन बीत गए, ऐसे ही तड़पते हुए, छटपटाते हुए, ये दिन काटे थे गंगा ने! वो कभी जाती कुँए और कभी नहीं, घर में दो रिश्ते भी आये थे, लेकिन मना कर दिया था गंगा ने, गंगा तो अब गंगा रही न थी! किसी से बात न करती, माला से ही कुछ बतियाती तो बतियाती! घंटों बैठी रहती अकेले में, माँ-बाप दुखी रहते उसको इस हाल में देख कर!
एक रोज, गंगा कुँए पर गयी थी! पानी भरने, न जाने मन में क्या आई, कि अंधे कुँए की तरफ चल पड़ी वो! न चाहते हुए भी! पता नहीं, क्या कारण था! वो जा बैठी वहां! सोच में डूब गयी! घंटे से ऊपर बैठे रही वहाँ, और फिर जब दर्द बढ़ गया, तो मुस्कुरा गयी! कहते हैं न! जब दर्द हद से ज़्यादा बढ़ जाता यही तो हंसी आने लगती है! वही हुआ, और फिर जब हंसी बंद होती है, तो दिल से ऐसी कराह निकलती है कि आंसू भी साथ नहीं दे पाते उस कराह का! यही हुआ गंगा के साथ! दिल से कराह निकली! मुंह से न जाने क्या क्या शब्द निकले! पता नहीं क्या क्या! गंगा भी नहीं जान पायी थी उनका मतलब! बस इतना कि एक एक शब्द, वाबस्ता था उस भूदेव से! अब नहीं बर्दाश्त हो पा रहा था उस से! वो रो पड़ी, फट पड़ी आंसू बह चले! आंसू, ऐसे कि थमने का नाम न लें!
और तब!
तब कुँए की मुंडेर की दूसरी तरफ, प्रकट हुआ वो तेजराज! दुखी सा!
"न! न! मत रो! मत रो तू! मेरा जी उचटता है! मुझे माफ़ करना तू, मैं वचन नहीं निभा सका अपना, आ गया मैं, तेरे सामने आ गया! माफ़ करना! माफ़ करना तू मुझे!" खुद भी रोते हुए बोला तेजराज!
गंगा ने उसे देखा!
और नज़र फेर ली अपनी!
तेजराज कोई मायने नहीं रखता था उसकी कराह के लिए!
"मत रो! न! मत रो!" अपने सीने का कपड़ा पकड़ते हुए बोला वो!
गंगा न सुने!
"मत रो! मत सता मुझे, मत सता!" बोला वो, हाथ जोड़ के!
गंगा के आंसू, और बहने लगे!
न रोक सकी गंगा अपने आपको!
तेजराज आगे आया! दुखी सा!
"सुन?" बोला वो,
गंगा ने देखा उसे! आँखों में आंसू लिए हुए,
"एक वचन और तोड़ूंगा मैं, इत्र नाम लूँगा मैं!" बोला वो!
पाषाण सी बनी रही गंगा!
"गंगा! गंगा! मैं टूट गया! मैं टूट गया गंगा! आज टूट गया मैं!" सिसकियाँ लेते हुए बोला तेजराज!
गंगा उसको देखे!
"गंगा! हार गया मैं! आज हार गया! पहले ज़िंदगी से हारा मौत से हारा आज तुझसे भी हार गया! तेरे आंसुओं ने हरा दिया मुझे! मैं हार गया! गंगा, मैं हार गया!" बोला वो!
बैठ गया उसी मुंडेर पर!
"जब तू आती थी न यहां, गुनगुनाते हुए, तो तुझे देखता था मैं! बहुत प्रेम हुआ तुझसे, तेरे भोलेपन से, तेरी चंचलता से! तेरे पाँव के नीचे कंकड़ भी नहीं आने देता था मैं, हटा देता था मैं उसे! तेरे पांवों की मिट्टी में तेरी ख़ुश्बू होती थी, मुझे बहुत अच्छी लगती थी वो ख़ुश्बू! मैं जानता था की मैं प्रेत हूँ, लेकिन गंगा, जी के आगे विवश हो गया था मैं! मुझे माफ़ कर दे गंगा! एक प्रेत की प्रीत का कोई मोल नहीं! की मोल नहीं!" रोते रोते बोला वो!
उठा, दौड़ा, उस दीवार तक गया, छिप गया, छिप छिप के देखता किसी को! हाथ में तलवार लिए! फिर दौड़ आता गंगा के पास! दुखी सा! फिर दौड़ जाता, लेट जाता ज़मीन पर! फिर बैठता! कुँए में कूद जाता, बाहर आता, पोटली लिए, फिर पोटली अपनी कमर में खोंस लेता! कभी लोप होता! कभी प्रकट! एक साथ दो जीवन जीने लगता था वो तेजराज! फिर आया गंगा के पास!
"गंगा! बस ये है मेरी दुनिया!" बोला वो!
गंगा चुप!
"बरसों से, यहीं भटक रहा हूँ, किसी से प्रीत कर बैठा, गलती कर दी मैंने!" हंस के बोला अब!
गंगा उठ गयी! सही से बैठी! तो दुपट्टा गिर गया कंधे से, हाथ बढ़ा दिया तेजराज ने, उसको उठाने के लिए, और फिर हाथ पीछे कर लिया! आँखों ही आँखों में कुछ जवाब दे ही गया था तेजराज उस पल!
"मैंने कभी किसी के साथ बुरा नहीं किया गंगा! किसी के साथ नहीं!" बोला वो!
फिर थोड़ा करीब आया!
"लेकिन, तेरे साथ किया मैंने!" बोला वो!
हँसते हुए!
"तेरे साथ किया मैंने बुरा! बहुत बुरा! बुरा हूँ मैं! तेजराज बुरा है! सुनो! तेजराज बुरा है!" बोला वो! चिल्ला चिल्ला कर!
"गंगा! तू पावन है!!" बोला वो!
सामने बैठते हुए!
"तेरा जी, तेरा मन, सब पावन है, मैं बुरा हूँ!" बोला, अब रोया वो!
हाथों में मिट्टी लिए, रोया बहुत!!
"मैंने अपने जी की मान ली गंगा! बस, यही गलती हुई!!" बोला वो!
गंगा सब सुने! आज तेजराज गंभीर था!
"मुझे माफ़ करना गंगा! माफ़ करना!" बोला वो!
फिर से दौड़ कर गया वापिस!!
उसी दीवार के पास!
तलवार लिए, झांके वहाँ से!! पोटली बगल में दबाये!
आया फिर भागता भागता!
आसपास देखा, झुका और पोटली फेंक दी कुँए में!
फिर खुद कूद गया! आया बाहर!
पोटली बगल में लिए! और हाथों में,
वो गुड़हल के फूल!!
गंगा के पांवों में डाल दिए फूल! वो सारे के सारे!
"अब जा गंगा! जा!" बोला वो!
न खड़ी हुई गंगा!
"गंगा?" अब गुस्से से बोला वो!
बेहद गुस्से से! आँखें लाल किये हुए!
"खड़ी हो?" चिल्ला के बोला!!
गंगा अब डर गयी थी! सहम गया थी! नज़रें न हटा सकी उस से! वो गंभीर था, गुस्से में! बहुत गुस्से में!
प्रेत था वो! कब क्या कर गुजरे, पता नहीं!
गंगा खड़ी हो गयी!
"जा! अब जा यहां से, यहां नहीं आना अब कभी भी!" बोला ऊँगली दिखा कर!
गंगा भागी वहाँ से! दौड़ पड़ी! पीछे वो भी दौड़ा!
"अब नहीं आना यहां! कभी नहीं, मैं अकेला था, रहूँगा! जा!" गुस्से से बोला वो!
गंगा आ गयी कुँए पर! घबराई हुई सी!
वो खड़ा रास्ते के पार!!
"जा अब? जा? नहीं आना अब! वहां, उस अंधे कुँए पर नहीं आना तू कभी! जा! नहीं आना! नहीं आना!" बोला वो! अंतिम दो शब्द, 'नहीं आना' रो कर बोला था! रुंधे हुए गले से!

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