वर्ष २०१२ जिला धौलपुर की एक घटना - thriller adventure story
Posted: 30 Oct 2015 08:08
वर्ष २०१२ जिला धौलपुर की एक घटना
धौलपुर! राजस्थान! इतिहास थामे आज भी खड़ा है ये एक सुंदर सा शहर! पग पग में इतिहास समेटे ये शहर, कई किस्से, कथाओं की जननी रहा है! कुछ ऐसी, जो इतिहास के सफ़ों पर दर्ज़ हैं, और कुछ ऐसी, जो लोगों की जुबां पर दर्ज़ हैं! और कुछ ऐसी, जो अब भूली-बिसरी हैं! जो, भुला दी गयी हैं, अब कोई जानता भी नहीं उनके बारे में! जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रहा हूँ, वो भी एक ऐसी ही भूली बिसरी कहानी है, जिसका नाम इतिहास में कहीं नहीं! लोगों की ज़ुबाँ पर कहीं नहीं! जिसके बारे में आज चंद लोग ही जानते हैं! बस चंद लोग! उम्मीद है, इस कहानी को, अब कुछ और लोग भी जानेंगे! कहानी में कोई शक्ति नहीं, कोई चमत्कार नहीं! बस, एक कहानी, जो मुझे याद है आज भी! और उस कहानी के बस दो ही ततसमय-साक्षी शेष हैं, एक वो कुआँ, जिसे, अँधा हुआ कहा जाता है, और वो गाँव, जो अब आधुनिक हो चला है! पक्के मकान हैं अब वहां!
बात शुरू होती है, एक आयोजन से! धौलपुर में एक आयोजन था, कुछ लोग आये हुए थे, और मेरा भी निमंत्रण था वहाँ! अतः मैं भी शर्म अजी के साथ उस स्थान के लिए रवाना हुआ था! शहर से वो स्थान काफी दूर था, हमें एक जीप लेनी पड़ी थी, जीप ली, और पहुँच गए थे उस स्थान पर! मुझे बाबा कुंदन ने बुलाया था, उन्हें कुछ प्राप्त हुआ था, एक पौत्र! बस, यही आयोजन था! आयोजन बहुत बढ़िया रहा! वहां आये हुए कई लगों से मैं मिला, कई लोगों से, और उन्ही लोगों में, मुझे एक वृद्धा स्त्री भी मिली! कि सत्तर-अस्सी साल की रही होंगी वो अम्मा जी! अम्मा जी, वहीँ रहती हैं, बाबा कुंदन उनका ख़याल रखते हैं! अम्मा लगती नहीं हैं अस्सी बरस की! अभी भी दमखम है अम्मा में! सारा काम खुद ही कर लेती हैं! झाड़ू-बुहारी, बर्तन चौका सब! अब बुज़ुर्गों से आशीर्वाद मिलने के लिए मैं सदैव अग्रणी रहता हूँ! अम्मा के चरण छुए, तो उनका आशीर्वाद मिला! खुश हुईं अम्मा! खाने आदि के बारे में पूछी उन्होंने! खाना तो खा ही चुके थे हम! अम्मा से कह दिया कि खाना तो खा ही चुके हैं, वे खा लें अब! तो बोलीं, बाद में खा लेंगी वो!
उसी रात की बात होगी, हम खा-पी रहे थे, मेरी नज़र, खिड़की से बाहर गयी, बाहर, एक कक्ष में, शायद लालटेन जली थी, बत्ती नहीं थी उस समय, हमारे यहाँ भी हंडे ही जल रहे थे! तभी उस लालटेन वाले कक्ष से वो अम्मा बाहर आयीं, कुछ लेकर, फिर वो एक जगह रखा और चली गयीं, इस उम्र में भी उनको अच्छा-खास दीख पड़ता था! मुझे बहुत अच्छा लगा!! जब हम फारिग हुए, तो न जाने मेरा मन उनसे मिलने को हुआ! मैं शर्मा जी को संग ले, उनके कक्ष के सामने पहुंचा, दरवाज़ा खुला था, अम्मा कुछ कपड़े, उलट पुलट रही थीं! मैंने दरवाज़े को दस्तक दी! अम्मा ने देखा! खड़ी हुईं, आयीं बाहर! मुझे देखा!
"आओ बेटा!" बोली अम्मा!
"अभी तक सोयी नहीं अम्मा?" मैंने पूछा,
"नहीं बेटा" बोली वो!
"क्या बात है?" मैंने पूछा,
"कुछ नहीं, कुछ कपड़े सुंधा लूँ, सोचा" वो बोलीं,
हम चारपाई पर बैठ गए थे!
और अम्मा नीचे, अपने कपड़े सुंधा रही थीं!
"कौन से गाँव की हो अम्मा?" मैंने पूछा,
अम्मा ने गाँव का नाम बता दिया! मेरे लिए तो नया ही नाम था, सुना ही नहीं था मैंने!
"घर में कौन कौन हैं?" मैंने पूछा,
अम्मा चुप थी! चुप रहीं!
मैंने फिर से पूछा!!
"थे, सब थे, लेकिन अब कोई नहीं" बोलीं वो,
दुःख झलका था उनकी आवाज़ में, मुझे मेरा प्रश्न, अटपटा सा लगा था तब!
"ओह..." मैंने कहा,
"एक पुत्री थी, ब्याह दी, एक पुत्र था, ब्याह दिया था, मेरे पति तो मेरे पुत्र के पैदा होते ही, चल बसे थे, बीमार रहते थे बहुत" वो बोलीं,
ओह...संघर्षपूर्ण जीवन रहा अम्मा का, दुःख हुआ..
"और आपका पुत्र?" मैंने पूछा,
"नहीं रहा, कि संतान नहीं थी उसके, बीमार हुआ, और चल बसा" वो बोलीं,
मुझे दुःख हुआ ये सुनकर,
"पुत्री?" मैंने पूछा,
"सुना था पागल हो गयी थी, कभी नहीं ठीक हुई, कोई औलाद नहीं थी, वो भी पूरी हो गयी" वे बोलीं,
अब रह गयी थीं अम्मा अकेली.............
कैसा काटता है एक मनुष्य जीवन अपना, अकेला............
"कि भाई बहन?" मैंने पूछा,
अब कपड़े सुंधाना छोड़ दिया!
हमें देखा!
"थी एक बहन मेरी" वो बोलीं!
"अच्छा, कौन?" मैंने पूछा,
सोचा थोड़ा दुःख हल्का हो जाए उनका!
"गंगा" वो बोलीं!
गंगा! कितना पावन नाम है! मैंने तो हाथ भी जोड़े नाम लेते हुए! माँ हैं गंगा! गंगा माँ!
"अच्छा अम्मा!" मैंने कहा,
"कितना बजा?" पूछा उन्होंने,
"बारह" मैंने कहा,
"सो जाओ फिर बेटा" बोली वो!
"नहीं अम्मा! तेरे पास जी लग रहा है, मन नहीं सोने का!" मैंने कहा!
"अम्मा? गंगा कहाँ है?" मैंने पूछा,
"वो भी चली गयी मुझे छोड़ कर" वो बोलीं!
"ओह, छोटी थी या बड़ी?" मैंने पूछा,
"बड़ी" वो बोलीं,
"उनका कोई बाल-बच्चा?" मैंने पूछा,
अब बाहर झाँका उन्होंने! खड़ी हुईं,
और बाहर चली गयीं, कुछ देर बाद आयीं,
हाथ में कुछ लिए, एक झोला सा था, गुदड़ी सी लिए!
"ये, ये देखो" वो बोलीं,
ये एक तस्वीर थी! जिसमे दो लड़कियां थीं, नाव सहारे फोटो खींची गयी थी, श्याम-श्वेत तस्वीर थी! किसी मेले की सी लगती थी!
"ये, गंगा" वो बोलीं,
एक सुंदर सी अठारह उन्नीस बरस की लड़की! छरहरी सी! घाघरा पहने, श्रृंगार सा किये! अल्हड़ सी! तीखे नैन-नक्श थे उसके! हाथ में, कोई लकड़ी सी थी उसके!
"और ये?" मैंने पूछा,
"ये मैं" वो बोली,
पतली सी! सुंदर सी! तेज, नटखट सी एक लड़की!! नाक बहुत तीखी थी उसकी! नैन-नक्श भी तीखे ही थे उसके!
"अम्मा! तुम तो बहुत सुंदर थीं!" मैंने कहा,
मेरे शब्द, प्रभावित न कर सके उन्हें!
मैंने तस्वीर दे दी वापिस उनको!
उन्होंने में रख ली, लेकिन रखने से पहले, उसको देखा! साफ़ किया, अपने हाथ से!
और बैठ गयीं!
"आपके पिता जी?" मैंने पूछा,
"व्यापारी थे" वो बोलीं!
"अच्छा!" मैंने कहा,
व्यापारी! उस ज़माने में!
"और माता जी?" मैंने पूछा,
"मेरी माँ बहुत अच्छी थी, बहुत अच्छी, सभी मान करते थे उसका, सभी!" वो बोलीं!
"अच्छा अम्मा!" मैंने कहा,
अम्मा लेट गयी थीं, बुज़ुर्ग थीं, सोचा अब तंग न किया जाए उन्हें! मैं खड़ा हुआ,
"कल आना बेटा, अगर वक़्त हो तो" बोली अम्मा!
"हाँ अम्मा! हाँ!" बोला मैं!
और निकल आया बाहर! अम्मा से मिलकर, बहुत अच्छा लगा! बहुत अच्छा!
धौलपुर! राजस्थान! इतिहास थामे आज भी खड़ा है ये एक सुंदर सा शहर! पग पग में इतिहास समेटे ये शहर, कई किस्से, कथाओं की जननी रहा है! कुछ ऐसी, जो इतिहास के सफ़ों पर दर्ज़ हैं, और कुछ ऐसी, जो लोगों की जुबां पर दर्ज़ हैं! और कुछ ऐसी, जो अब भूली-बिसरी हैं! जो, भुला दी गयी हैं, अब कोई जानता भी नहीं उनके बारे में! जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रहा हूँ, वो भी एक ऐसी ही भूली बिसरी कहानी है, जिसका नाम इतिहास में कहीं नहीं! लोगों की ज़ुबाँ पर कहीं नहीं! जिसके बारे में आज चंद लोग ही जानते हैं! बस चंद लोग! उम्मीद है, इस कहानी को, अब कुछ और लोग भी जानेंगे! कहानी में कोई शक्ति नहीं, कोई चमत्कार नहीं! बस, एक कहानी, जो मुझे याद है आज भी! और उस कहानी के बस दो ही ततसमय-साक्षी शेष हैं, एक वो कुआँ, जिसे, अँधा हुआ कहा जाता है, और वो गाँव, जो अब आधुनिक हो चला है! पक्के मकान हैं अब वहां!
बात शुरू होती है, एक आयोजन से! धौलपुर में एक आयोजन था, कुछ लोग आये हुए थे, और मेरा भी निमंत्रण था वहाँ! अतः मैं भी शर्म अजी के साथ उस स्थान के लिए रवाना हुआ था! शहर से वो स्थान काफी दूर था, हमें एक जीप लेनी पड़ी थी, जीप ली, और पहुँच गए थे उस स्थान पर! मुझे बाबा कुंदन ने बुलाया था, उन्हें कुछ प्राप्त हुआ था, एक पौत्र! बस, यही आयोजन था! आयोजन बहुत बढ़िया रहा! वहां आये हुए कई लगों से मैं मिला, कई लोगों से, और उन्ही लोगों में, मुझे एक वृद्धा स्त्री भी मिली! कि सत्तर-अस्सी साल की रही होंगी वो अम्मा जी! अम्मा जी, वहीँ रहती हैं, बाबा कुंदन उनका ख़याल रखते हैं! अम्मा लगती नहीं हैं अस्सी बरस की! अभी भी दमखम है अम्मा में! सारा काम खुद ही कर लेती हैं! झाड़ू-बुहारी, बर्तन चौका सब! अब बुज़ुर्गों से आशीर्वाद मिलने के लिए मैं सदैव अग्रणी रहता हूँ! अम्मा के चरण छुए, तो उनका आशीर्वाद मिला! खुश हुईं अम्मा! खाने आदि के बारे में पूछी उन्होंने! खाना तो खा ही चुके थे हम! अम्मा से कह दिया कि खाना तो खा ही चुके हैं, वे खा लें अब! तो बोलीं, बाद में खा लेंगी वो!
उसी रात की बात होगी, हम खा-पी रहे थे, मेरी नज़र, खिड़की से बाहर गयी, बाहर, एक कक्ष में, शायद लालटेन जली थी, बत्ती नहीं थी उस समय, हमारे यहाँ भी हंडे ही जल रहे थे! तभी उस लालटेन वाले कक्ष से वो अम्मा बाहर आयीं, कुछ लेकर, फिर वो एक जगह रखा और चली गयीं, इस उम्र में भी उनको अच्छा-खास दीख पड़ता था! मुझे बहुत अच्छा लगा!! जब हम फारिग हुए, तो न जाने मेरा मन उनसे मिलने को हुआ! मैं शर्मा जी को संग ले, उनके कक्ष के सामने पहुंचा, दरवाज़ा खुला था, अम्मा कुछ कपड़े, उलट पुलट रही थीं! मैंने दरवाज़े को दस्तक दी! अम्मा ने देखा! खड़ी हुईं, आयीं बाहर! मुझे देखा!
"आओ बेटा!" बोली अम्मा!
"अभी तक सोयी नहीं अम्मा?" मैंने पूछा,
"नहीं बेटा" बोली वो!
"क्या बात है?" मैंने पूछा,
"कुछ नहीं, कुछ कपड़े सुंधा लूँ, सोचा" वो बोलीं,
हम चारपाई पर बैठ गए थे!
और अम्मा नीचे, अपने कपड़े सुंधा रही थीं!
"कौन से गाँव की हो अम्मा?" मैंने पूछा,
अम्मा ने गाँव का नाम बता दिया! मेरे लिए तो नया ही नाम था, सुना ही नहीं था मैंने!
"घर में कौन कौन हैं?" मैंने पूछा,
अम्मा चुप थी! चुप रहीं!
मैंने फिर से पूछा!!
"थे, सब थे, लेकिन अब कोई नहीं" बोलीं वो,
दुःख झलका था उनकी आवाज़ में, मुझे मेरा प्रश्न, अटपटा सा लगा था तब!
"ओह..." मैंने कहा,
"एक पुत्री थी, ब्याह दी, एक पुत्र था, ब्याह दिया था, मेरे पति तो मेरे पुत्र के पैदा होते ही, चल बसे थे, बीमार रहते थे बहुत" वो बोलीं,
ओह...संघर्षपूर्ण जीवन रहा अम्मा का, दुःख हुआ..
"और आपका पुत्र?" मैंने पूछा,
"नहीं रहा, कि संतान नहीं थी उसके, बीमार हुआ, और चल बसा" वो बोलीं,
मुझे दुःख हुआ ये सुनकर,
"पुत्री?" मैंने पूछा,
"सुना था पागल हो गयी थी, कभी नहीं ठीक हुई, कोई औलाद नहीं थी, वो भी पूरी हो गयी" वे बोलीं,
अब रह गयी थीं अम्मा अकेली.............
कैसा काटता है एक मनुष्य जीवन अपना, अकेला............
"कि भाई बहन?" मैंने पूछा,
अब कपड़े सुंधाना छोड़ दिया!
हमें देखा!
"थी एक बहन मेरी" वो बोलीं!
"अच्छा, कौन?" मैंने पूछा,
सोचा थोड़ा दुःख हल्का हो जाए उनका!
"गंगा" वो बोलीं!
गंगा! कितना पावन नाम है! मैंने तो हाथ भी जोड़े नाम लेते हुए! माँ हैं गंगा! गंगा माँ!
"अच्छा अम्मा!" मैंने कहा,
"कितना बजा?" पूछा उन्होंने,
"बारह" मैंने कहा,
"सो जाओ फिर बेटा" बोली वो!
"नहीं अम्मा! तेरे पास जी लग रहा है, मन नहीं सोने का!" मैंने कहा!
"अम्मा? गंगा कहाँ है?" मैंने पूछा,
"वो भी चली गयी मुझे छोड़ कर" वो बोलीं!
"ओह, छोटी थी या बड़ी?" मैंने पूछा,
"बड़ी" वो बोलीं,
"उनका कोई बाल-बच्चा?" मैंने पूछा,
अब बाहर झाँका उन्होंने! खड़ी हुईं,
और बाहर चली गयीं, कुछ देर बाद आयीं,
हाथ में कुछ लिए, एक झोला सा था, गुदड़ी सी लिए!
"ये, ये देखो" वो बोलीं,
ये एक तस्वीर थी! जिसमे दो लड़कियां थीं, नाव सहारे फोटो खींची गयी थी, श्याम-श्वेत तस्वीर थी! किसी मेले की सी लगती थी!
"ये, गंगा" वो बोलीं,
एक सुंदर सी अठारह उन्नीस बरस की लड़की! छरहरी सी! घाघरा पहने, श्रृंगार सा किये! अल्हड़ सी! तीखे नैन-नक्श थे उसके! हाथ में, कोई लकड़ी सी थी उसके!
"और ये?" मैंने पूछा,
"ये मैं" वो बोली,
पतली सी! सुंदर सी! तेज, नटखट सी एक लड़की!! नाक बहुत तीखी थी उसकी! नैन-नक्श भी तीखे ही थे उसके!
"अम्मा! तुम तो बहुत सुंदर थीं!" मैंने कहा,
मेरे शब्द, प्रभावित न कर सके उन्हें!
मैंने तस्वीर दे दी वापिस उनको!
उन्होंने में रख ली, लेकिन रखने से पहले, उसको देखा! साफ़ किया, अपने हाथ से!
और बैठ गयीं!
"आपके पिता जी?" मैंने पूछा,
"व्यापारी थे" वो बोलीं!
"अच्छा!" मैंने कहा,
व्यापारी! उस ज़माने में!
"और माता जी?" मैंने पूछा,
"मेरी माँ बहुत अच्छी थी, बहुत अच्छी, सभी मान करते थे उसका, सभी!" वो बोलीं!
"अच्छा अम्मा!" मैंने कहा,
अम्मा लेट गयी थीं, बुज़ुर्ग थीं, सोचा अब तंग न किया जाए उन्हें! मैं खड़ा हुआ,
"कल आना बेटा, अगर वक़्त हो तो" बोली अम्मा!
"हाँ अम्मा! हाँ!" बोला मैं!
और निकल आया बाहर! अम्मा से मिलकर, बहुत अच्छा लगा! बहुत अच्छा!