वर्ष २०१२ जिला धौलपुर की एक घटना - thriller adventure story

Horror stories collection. All kind of thriller stories in English and hindi.
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Re: वर्ष २०१२ जिला धौलपुर की एक घटना - thriller adventure st

Unread post by novel » 30 Oct 2015 08:13

अब मन में भय बैठ चला था गंगा के! और कुछ आशंकाएं भी! भटकाव के रास्ते में आ चुकी थी! भटक रही थी! दिल, दिमाग सब भटकाव में था! वो फूल, वो आवाज़ें! वो 'मेरी गंगा!' कहना! भय की बात तो थी ही! आशंका ये, कि कहीं कुछ अनहोनी तो नहीं हो गयी उस भूदेव के संग? अब हुआ मुंह कड़वा गंगा का! गंगा के किनारे, कटने लगे, पानी मटमैला हो गया, आशंकाओं की मिट्टी मिलने से! बहुत मनाती दिल को, कि कुछ नहीं हुआ होगा उस भूदेव के संग, लेकिन दिल, फिर वही तूती बजाता! प्रश्नों की तूती! उसी शाम की बात होगी, वैसे साँझ हुई नहीं थी, साँझ होने में अभी देर थी, घर में लगे एक पेड़ का गुद्दा, अड़ता था बार बार, सोचा गंगा के पिता जी ने, कि काट ही दिया जाए वो, गुद्दा था भी बड़ा ही, और ऊंचा भी था, तो उसके नीचे से सारी वस्तुएं हटा ली गयीं, यही सोचा कि पहले गुद्दे की शाखें काटी जाएँ, और फिर गुद्दा, यही ठीक था और तरीका भी यही था! तय ये हुआ कि पहले पिता जी काटेंगे शाखें, जब थक जाएंगे तो उदयचंद काटेगा! दोनों मामा-भांजे, हुए तैयार! पहले पिता जी चढ़े पेड़ पर! काटी शाखें, फिर उदयचंद चढ़ा, काटीं बड़ी शाखें, नीचे लडकिया, वे शाखे उठा लेटी थीं, रख देती थीं एक तरफ! बार बार वे उतरते रहे और चढ़ते रहे! गुद्दा मज़बूत था, जितना सोचा था उस से कहीं अधिक मज़बूत! थक गए! पानी पिया! और साँझ भी होने को आई! उस समय पेड़ पर चढ़ा वो उदयचंद कुल्हाड़ी चला रहा था! कि गुद्दा टूटा, गुद्दे से अड़ा उसका पाजामा, और धड़ाम नीचे! उदयचंद गिरा नीचे, और गुद्दा उसके ऊपर! उदयचंद चिल्लाया, सभी भागे उसकी तरफ, उदयचंद ने उठने की कोशिश की और फिर बेहोश!
घर में तो चीख-पुकार मच गयी! सभी लड़कियां रोने लगीं! गंगा भागी भागी गयी पानी लेने, मुंह पर छींटे मारे, लेकिन होश नहीं आया उसको! बदहवास से भागे राम किशोर बाहर, वैद्य को बुलाने, घर में मच गया था कोहराम, गुद्दा तो हटा दिया था, लेकिन उदयचंद चेतनाशून्य हो गया था! कोई दस मिनट के बाद वैद्य आये, तब तक चारपाई पर लिटा दिया गया था उसे, नाड़ी की जांच की, उसकी, वैद्य साहब ने बताया कि हालत नाज़ुक है, हृदयगति गिरती जा रही है, यदि शीघ्र ही कुछ न किया गया तो, प्राण भी जा सकते हैं, सलाह दी उन्होंने, कि अस्पताल ले जाया जाए उसको, बस, और कोई तरीका नहीं! ये सुन तो सभी के कलेजे फट पड़े! इस समय कैसे ले जाएँ? ऊँट-गाड़ी कहाँ से मिले? और शहर तक तो सुबह हो जायेगी, राम किशोर भी आँखों में आंसू भर लाये! गंगा का बुरा हाल, गंगा की माँ का बुरा हाल! जमना अपने भाई को बार बार हिलाये! माला, बार बार छींटे दे! राम किशोर चले गए बाहर! ऊँट-गाड़ी देखने, देर भली न थी, कोई भी अनहोनी हो सकती थी उस समय!
"गंगा! मेरी गंगा!" आवाज़ आई गंगा को!
गंगा चौंकी!
आसपास देखा!
"जा, कमरे में जा, फूल उठा, रख दे इसके सीने पर, जा!" आवाज़ आई!
गंगा भागी अंदर! न सोचा कि आवाज़ किसने दी! उदयचंद, मौत के मुंह में जाने वाला था, अब क्या सोचे! कमरे में गयी, तो बिस्तर पर फूल पड़े थे! करीब आठ-दस! एक फूल उठाया उसने! और रख दिया उदयचंद के सीने पर! माँ को अटपटा सा लगा! लेकिन तभी! तभी खांसता हुआ उठा उदयचंद! प्राण बच गए थे उसके! तत्क्षण ही! अब तो सभी चिपट गए उस से! उदयचंद खड़ा हो गया! मामा के बारे में पूछा, वो सही था, बस खरोंचें थीं!! सीने पर!
तभी राम किशोर आये! उदयचंद को देखा! तो लिपट पड़े! आंसू बहा बैठे! राम किशोर के साथ तीन लोग और आ गए थे सहायता करने! जब उसको ठीक देखा तो चले गए! उस उदयचंद से हाल पूछ कर उसका! अब माँ ने सारी बात बतायी! कि कैसे ठीक हुआ वो उदयचंद! पिता जी गंगा को ले, कमरे में पहुंचे! फूल पड़े थे बिस्तर पर! नहीं समझे कि कहाँ से आये वे फूल! लेकिन, गंगा! गंगा की आशंकाएं अब आसमान छूने लगी थीं!
उस सारी रात गंगा सो न सकी! किसकी आवाज़ है वो? कौन है वो? किसने मदद की उसकी जान बचाने में उस उदयचंद की? अब ऐसे ऐसे सवाल उसके दिमाग में घूमने लगे!
मित्रगण! रोज सुबह, फूल मिलते उसको अपने बिस्तर पर! लेकिन आवाज़ नहीं आती थी अब! बस फूल! गंगा उलझी थी बहुत! बहुत! जब भी अंधे कुँए पर जाती, बैठ जाती, सोचती रहती, ताकती रहती रास्ता! लेकिन वो आवाज़, नहीं आई थी उस दिन के बाद से!
और फिर महीना बीता!
अब तो सीने में क़ैद दिल बाहर को आये! ऐसे ऐसे सवाल करे कि जिनका जवाब बेचारी गंगा के पास था ही नहीं! अंदर ही अंदर घुले जा रही थी गंगा!
और फिर आया वो दिन!
जिस दिन गंगा, चली कुँए पर पानी लेने! हिसाब से तो, आज आना चाहिए था उसको! बैठी जाकर अंधे कुँए पर, बिछा दीं निगाहें रास्ते पर! और हुआ अब शुरू इंतज़ार! दिल ऐसे धड़के कि जैसे सीना ही फाड़ देगा! सर ऐसे घूमे कि अभी गिरी और अभी गिरी!
"गंगा!" आवाज़ आई!
वो घबराई!
आसपास देखा!
कोई नहीं!
"मेरी गंगा! प्रेम करता हूँ तुझसे मैं!" आवाज़ आई!
गंगा भागी वहाँ से, और जैसे ही रास्ते में आई, नज़र पीछे गयी, रास्ते पर! कोई आ रहा था! तेज घोड़ा दौड़ाते हुए! दिल में बजती सारंगी, शहनाई में बदली! माथे पर पड़ी शिकन, चमक में बदलीं! दिल जो सवाल किया करता था बेकार के, अब शांत हुआ था! आशंकाएं फिर से आत्महत्या करने चली गयीं! और कुछ ही देर में, आ गया था वो! गंगा कुँए की तरफ बढ़ी! वो घोड़े से उतरा! लगाम पकड़ी, मुंह खोला घोड़े का और छोड़ दिया पानी पीने के लिए! आया गंगा के पास!
"पानी!" बोला वो!
गंगा के बदन में, मन में हिलोरें उठी थीं!
सारी आशंकाएं मिल गयीं थीं धूल में!
पानी पिलाया गंगा ने उसे! उसने पानी पिया! और अपना चेहरा साफ़ किया! फिर हाथ पोंछे! गंगा! अंदर ही अंदर गल रही थी! कैसे बताये कि पूरा महीना, कैसे काटा! कैसे एक एक पल काटा! तिल तिल घुट घुट कर! कैसे एक एक लम्हे से लड़ी वो! आँखों में आंसू आये उसके! पोंछती तो पता चला जाता सभी को! खासतौर पर उस भूदेव को! इसीलिए, सर नीचे किये हुए, खड़ी रही!
"कैसी है गंगा तू?" पूछा उसने!
सैलाब टूटा! जज़्बातों का अब्र फूटा!
लिपट गयी उस भूदेव से गंगा!
भूदेव हैरान! माला हैरान!
"गंगा? मेरी गंगा? क्या बात है?" पूछा उसने!
उसको हटाये, तो न हटे!
गंगा का चेहरा उसने अपनी ऊँगली से टटोला! और उसकी चिबुक से उठाया ऊपर! गंगा की आँखों में आंसू दिखे!
''क्या बात है गंगा? मुझे बता?? बता मुझे?? बता??" घबरा सा गया वो!
गंगा न छोड़े उसे! सिसकी ले!
"किसी ने कुछ कहा तुझे?" पूछा उसने!
न बोले कुछ!
"किसी ने देखा तुझे?" पूछा उसने!
नहीं बोली एक भी शब्द!
"किसी ने कुछ कहा गंगा? गर्दन उतार दूंगा उसकी धड़ से, बता मुझे? बता गंगा?" बोला वो!
नहीं बोले! नहीं छोड़े!
"ऐसे नहीं, ऐसे नहीं कर गंगा! गंगा! तेरी आँखों में आंसू अच्छे नहीं लगते! नहीं गंगा!" बोला वो!
और लिपटा लिया उसको अपने भीतर!
रख दी गंगा के सर पर अपनी चिबुक!
"मुझे बता गंगा? बता क्या हुआ?" बोला वो!
गिड़गिड़ाते हुए! याचना सी करते हुए!
गंगा हटी! अपनी आँखें पोंछती, इस से पहले रोका उसको भूदेव ने! आँखें देखीं! डबडबायी हुई आँखें! अपने कपड़े से, पोंछ दिए आंसू!
"आ! मेरे साथ आ!" बोला भूदेव!
हाथ पकड़ कर, ले चला!
वहीँ अंधे कुँए के पास!
"बैठ, यहाँ बैठ" कपड़ा बिछाते हुए बोला वो, पेड़ के नीचे, उस कुँए की मुंडेर पर!
"अब बता, क्या हुआ?" पूछा उसने!
और अब मित्रगण!
सब बता दिया गंगा ने!
वो आवाज़ें!
वो फूल!
वो उदयचंद वाली घटना!
सब बता दिया!
भूदेव का माथा ठनका!
"मेरी आवाज़ में?" पूछा उसने!
गंगा ने हाँ में सर हिलाया!
मामला गंभीर था!
"आवाज़ यहीं आई थी?" पूछा उसने!
"हाँ, यहीं" बोली वो!
अपने वस्त्र के अंदर हाथ डाला उसने! और निकाल लिया खंजर!
"कौन है यहां?" पूछा उसने!
कोई आवाज़ नहीं!
"कौन है? सामने आ? इसको आज के बाद तंग किया, तो ऐसी जगह भेजूंगा कि वापिस लौटना नामुमकिन होगा!" बोला गरज के वो!
और तभी!
तभी कुछ फूल गिरे! गंगा के सामने! गंगा से टकराते हुए!!
क्रमशः

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Re: वर्ष २०१२ जिला धौलपुर की एक घटना - thriller adventure st

Unread post by novel » 30 Oct 2015 08:13

फूल कहाँ से गिरे? उस मलेठ के पेड़ से? मलेठ का पेड़ नहीं गिरा सकता वो लाल फूल! मलेठ का जंगली फूल छोटा और पीले रंग का होता है! छोटा सा, ये देखा वे चौंक पड़े! गंगा ने सही कहा था, की कोई उसको आवाज़ें देता है, और तो और उसने उदयचंद की मदद भी की थी! गंगा घबरा गयी थी, तो उस भूदेव ने, फ़ौरन ही खींच लिया था उसको अपने अंदर, भुजाओं में भर लिया था, खंजर हाथ में था, कोई यदि सामने ये हिमाक़त करता तो अभी चीर के रख देता भूदेव! कलेजे वाला इंसान था भूदेव! दिन रात जंगलों से गुजरा करता था! भय रखने वाला होता, तो वो नौकरी ही नहीं कर पाता!
"गंगा! जा, तू कुँए पर जा!" बोला भूदेव!
"नहीं, आप भी चलो!" बोली वो!
"तू जा न?" बोला वो!
"नहीं!" वो बोला!
भूदेव ने फिर से भुजाओं में भरा उसको! आसपास देखा, उस पेड़ को भी देखा!
"हिम्मत है तो सामने आ! कौन है तू?" बोला भूदेव!
कोई नहीं आया!
"गंगा! मेरी गंगा!" आवाज़ आई!
एकदम भूदेव जैसी! भूदेव ने और कसा गंगा को,
"गंगा! भाग! जा यहां से?" बोला वो!
"नहीं, मैं नहीं जाउंगी!" बोली गंगा!
"मान गंगा! ये को प्रेत है, छलावा है, तू जा, कुँए पर जा!" बोला वो!
हटाया उसको अपने से, लेकिन छोड़े ही न वो! लिपट गयी थी उस से, आँखें बंद किये! तब भूदेव ही हटा पीछे, उसको उठाये हुए! आया रास्ते तक! खंजर तना था अभी तक हाथ में! देख रहा था अभी भी पेड़ को!
"तू यहां रह! मैं आया अभी!" कहते ही चल पड़ा भूदेव, उस पेड़ की ओर! गंगा चिल्लाती रही, पुकारती रही, लेकिन जीवट वाला वो भूदेव घबराया नहीं! नहीं घबराया! उसकी गंगा को तंग किया था किसी ने! और उसके होते हुए कोई गंगा को तंग करे, ये उसको कहाँ बर्दाश्त होता! चेहरा तमतमा गया उसका! नसें फड़क उठीं! रक्त-प्रवाह तेज हो गया उनमे! भुजाएं फड़क उठीं! कोई होता शरीरी तो उन मज़बूत भुजाओं में जकड़ा, दम ही तोड़ देता!
"कौन है? सामने आ?" बोला भूदेव!
"तू जा! छोड़ दे मेरी गंगा को! जा! छोड़ देता हूँ तुझे!" आवाज़ आई!
ये सुन, और भड़का भूदेव!
"सामने आ कर बात कर? तू समझता है मैं डर गया? सामने आ मेरे?" चीखा भूदेव!
और वहां गंगा, गंगा का वक्ष तेजी से ऊपर नीचे हो रहा था! क्या करे वो! असमंजस में थी वो! जब नहीं बना, तो भाग छूटी वहाँ से, और जा पहुंची भूदेव के पास! बाजू पकड़ ली भूदेव की उसने! भूदेव ने उसको अपने पीछे कर लिया, खुद सामने रह कर! एक हाथ से पकड़े रहा वो!
"हरामज़ादे! सामने तो आ? हिम्मत नहीं है? मेरी गंगा को कुछ भी हुआ, तू तेरा हाल तू ही जानेगा!" बोला भूदेव!
ठहाका गूंजा!!
"सामने तो आ? आ ज़रा?" दहाड़ा भूदेव!
तेज लू सी चली! अंधड़ सा! आँखें मिंच गयीं गंगा की, लेकिन वो बाकुंरा भूदेव, आदि था इसका! रोज ऐसे अंधड़ झेलता था वो! ऐसी ही चटक धूप में आना जाना रहता था उसका!
और सामने, उस कुँए की मुंडेर के पास, प्रकट हुआ वो! एक पच्चीस-छब्बीस बरस का जवान! राजपुताना सिपाही सा! अधफाड़ दाढ़ी थी उसकी! काले रंग की, काले रंग की मूंछें थीं, घनी मूंछें! सर पर साफ़ा बांधे, कमर में तलवार लटकाये! चंद्राकार तलवार थी उसकी! कमर में खंजर भी खोंसा हुआ था उसने! गोरा-चिट्टा! लम्बा-चौड़ा , ऊंची कद-काठी वाला था वो! हाथों में अंगूठियां पहने हुआ था! रत्नों की अंगूठियां! खड़ा खड़ा, मुस्कुरा रहा था!
गंगा उसको देख, सिहर गयी थी! लेकिन उस भूदेव के नथुने फड़क उठे थे! सीना फ़ैल गया था गरम श्वासों से!
"कौन है तू?" पूछा भूदेव ने!
"तेजराज!" बोला वो, हंसकर!
"क्या चाहता है?" बोला भूदेव!
"गंगा! मेरी गंगा!" बोला वो!
गंगा डरे! चिपक जाए उस से! और भूदेव! भूदेव सरंक्षण दे उसे!! अपने हाथ से थामे रहे उसे!
"आज के बाद, कभी गंगा के सामने आ मत जाना! कभी तंग नहीं करना! नहीं तो अंजाम बहुत बुरा होगा तेरा!" बोला भूदेव! खंजर दिखा कर उसे!
"तू अगर इसे प्यार नहीं होता, तो तेरे टुकड़े कर देता मैं, इसी समय! लेकिन मेरी गंगा, आंसू बहाये, ये मुझे बर्दाश्त नहीं, इसीलिए, छोड़ देता हूँ तुझे, जा, कभी नहीं आना!!" वो बोला!
इतना कह लोप हो गया वो!
और गंगा, सिमट गयी भूदेव की बाहों में! डर गयी थी! घबरा गयी थी, बदन से कंपकंपी छूट रही थी!
"न! न गंगा न! मत घबरा! मत डर! इसका इंतज़ाम करता हूँ मैं! मत घबरा! तू जा, पानी भर, मैं छोड़ के आता हूँ तुझे! मत डर! बोला वो!
और ले चला, उठाकर उसे! माला को कुछ समझा नहीं आया था, कि क्या हुआ, क्या हो रहा था वहां!
"चल माला, पानी भर और चल यहां से" बोला भूदेव!
माला ने पानी भरा, गंगा ने भी भरा, और भूदेव चला उनको छोड़ने! गाँव आया, तो मुड़ा,
"सुन गंगा! कल नहीं आना तू पानी भरने, मैं आऊंगा, उसका इंतज़ाम करता हूँ, डरना नहीं! घबराना नहीं!" बोला वो,
और लगा दी एड़ घोड़े को अपनी! और दौड़ पड़ा!
जब कुँए के पास से गुजरा, तो वही तेजराज, खड़ा था उसी अंधे कुँए के पास! तलवार निकले, घूरते हुए उस आते हुए भूदेव को! भूदेव का घोडा हिनहिनाया! और भूदेव ने लगाम कस लीं घोड़े की आया वहीँ कुँए तक, उस तेजराज को देखा, घोड़े से उतरा और चला उसकी तरफ ही!
आ गया उसके पास ही! बस कोई चार फ़ीट दूर!
"फिर मरने चला आया?" बोला तेजराज!
"अरे तेरी क्या औकात मुझे मारने की तेजराज!" बोला भूदेव!
हंसा! तेजराज हंसा! ये सुनते ही!
"तू छोड़ दे उसका पीछा तेजराज!" बोला भूदेव!
"गंगा मेरी है!" चीख के बोला!
"गंगा मेरी है, ये तू भी जानता है!" बोला भूदेव!
"नहीं, मेरी है वो!" गुस्से में आँखें पीली करते हुए बोला वो!
"तो तू ऐसे नहीं मानेगा?" बोला भूदेव!
"तेरे बसकी जो हो, कर ले, गंगा मेरी है है!" बोला तेजराज!
कोई शरीरी होता, तो इतनी बात पर, काट के चार टुकड़े कर देता वो भूदेव! और डाल देता उसी कुँए में!
"करूँगा! ज़रूर करूँगा!" बोला वो!
और मुड़ा वो पीछे!
आया घोड़े तक! बैठा और चल दिया वापिस!
तेजराज झट से लोप हुआ!
वहां घर में, तबीयत बिगड़ गयी थी गंगा की, भय बैठ गया था, और सबसे बड़ा भय ये की कहीं वो नुकसान न पहुंचा दे उस भूदेव को! पिता जी घर में थे, गंगा का माथा छुआ, तो तीव्र ज्वर था, गए बाहर तभी, और कुछ देर बाद, ले आये वैद्य को, वैद्य ने जांच की, और कुछ दवा दे दी, दवा क्या असर करती, बस ये कि नींद आ गयी उसको बस!
उस रात!
सोयी हुई थी गंगा! ज्वर टूटा नहीं था अभी तक, माँ और माला, वहीँ बैठे थे, उसके सर पर पट्टियाँ बदलते हुए ठंडे पानी की, आँख लगी गंगा की, और उसने एक सपना देखा, सपना कि पिता जी कहीं बाहर गए हुए हैं, बाहर, ऊँट-गाड़ी फिसल गयी रास्ते से, पिता जी गिरे, और गिरते ही उनकी गर्दन टूट गयी, घर आई उनके तो केवल उनकी लाश! चिल्ला के उठी गंगा!
पिताजी, पिता जी, पिता जी को बुलाओ?" चीखी वो!
चीख पिता जी ने भी सुनी, दौड़े आये!
"क्या हुआ?" पूछा,
"आप नहीं जाना कहीं कल बाहर, नहीं जाना!" बोली वो! बोलती रही!
अटपटा सा लगा पिता जी को!
गंगा कभी ऐसा नहीं बोला करती!
शायद तबीयत खराब है, इसीलिए ऐसा बोल रही है!
"नहीं जाऊँगा" बोले वो!
अब तसल्ली हुई गंगा को! रात गहराई, तो नींद आई, सो गयी!
सुबह हुई!
गंगा की नींद देर से खुली, ज्वर अभी भी था, बदन टूटा हुआ था, माला पास ही बैठी थी उसके, पंखा झलती हुई!
"कैसी है तू अब?" पूछा माला ने,
"ठीक हूँ" बोली गंगा,
हाथ लगा के देखा माला ने, ज्वर बहुत था अभी भी!
"कहाँ चली?" पूछा उसने,
"अभी आई" बोली वो!
चली गयी बाहर, फिर लौट के आई कुछ देर में, बैठ गयी,
"पिता जी कहाँ हैं?" पूछा उसने,
"गए हैं" बोली माला,
"क्या? कहाँ?" पूछा उसने,
"अपने व्यापार के सिलसिले में" बोली माला,
अब घबराई वो! उठी, भागी माँ के पास!
"पिता जी कहाँ हैं?" पूछा उसने,
"वो तो गए?" बोली माँ!
बैठ गयी वहीँ, सर पकड़ कर! रोने लगी!
माँ परेशान! पूछा माँ ने बहुत!
सपना! वो सपना!
रोई बहुत गंगा.........आशंकाओं में घिर गयी थी........
लेट गयी वहीँ, रोते रोते...............
गंगा, बेचारी, कहाँ फंसी.............

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Re: वर्ष २०१२ जिला धौलपुर की एक घटना - thriller adventure st

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वो दिन, बहुत बेचैनी से कटा, एक तो वो सपना, पिता जी की कुशलता, और वो भूदेव, मना कर के गया था उसे, की कल गंगा नहीं आये वहाँ, और भूदेव ही इंतज़ाम कर लेगा उसका! और भूदेव ने इंतज़ाम भी कर लिया था, भूदेव के एक जानकार थे, छिंदा, छिंदा के एक गुरु थे, बाबा बिन्ना, भूदेव सुबह ही चला गया था उनके पास, छिंदा से मिला वो, और छिंदा ले गया भूदेव को बाबा बिन्ना के पास, बाबा बिन्ना ने सारी बात सुनी, और आश्वासन दिया कि वो प्रेत तेजराज, पकड़ लिया जाएगा, और फिर कभी तंग नहीं करेगा किसी को भी, लगता था कि बहुत समय सोने के बाद अब जाग गया था वो, और अगर वो अब गंगा को प्रेम करने लगा है, तो मामला गंभीर है, और सबसे अधिक खतरा इस समय भूदेव को ही है, भूदेव ने बाबा बीनना से यही कहा, कि चाहे कुछ भी करना पड़े, चाहे कुछ भी, उस प्रेत तेजराज को पकड़ना अत्यंत ही आवश्यक है! बाबा बिन्ना ने सारी बात समझ ली और फिर अभिमंत्रित भस्म दी भूदेव को, उसको वो भस्म उसी स्थान पर बिखेर देनी थी, बाकी का काम बाबा बिन्ना ने कर ही देना था! भूदेव वो भस्म लेकर दौड़ पड़ा! जानता था कि गंगा भी खतरे में है, भरी धूप में चलना था उसे, वो चलता रहा! और दोपहर बाद तक पहुँच गया वो उस जगह! कुआं खाली था! कोई नहीं था वहां, चिलचिलाती धूप थी यहां, घोड़े को ले गया कुँए के पास, नांद में पानी भरा था, अक्सर औरतें नांद को भर ही दिया करती थीं, जानवर, मवेशी पानी पी लिया करते थे वहाँ से, इसीलिए, घोड़ा भी पीने लगा पानी, अब, चला भूदेव वो भस्म लेकर उस अंधे कुँए की तरफ! और वो पुड़िया खोल, बिखेर दी भस्म वहीँ! तीन बार चीख की आवाज़ें उठीं! और फिर सब शांत! भूदेव हंसा! और चिल्ला चिल्ला के उसको पुकारा! कोई नहीं आया! शायद बाबा बिन्ना ने पकड़ लिया था उसको! आज आना नहीं था उस गंगा को, तो अपना घोड़ा लिया, और चल पड़ा वापिस! उसकी मंजिल थी, बाबा बिन्ना! वहीँ जाकर मालूमात होती अब! बियाबान और उस सुनसान को लांघता चल पड़ा था! जीवट वाला था वो भूदेव!
उधर, गंगा की तबीयत खराब थी, ज्वर टूटे नहीं टूट रहा था, औषधियां ले रही थी, लेकिन ज्वर, बदन तोड़े दे रहा था उसका, ऊपर से वो सपना, और पिता की सकुशलता, सताए जा रही थी उसे! रह रह कर ध्यान आता उसे उस भूदेव का! भूदेव की हिम्मत के कारण टिकी हुई थी अभी तक, नहीं तो बिखर ही जाती कांच के मानिंद!
वो रात बीती, बहुत कष्टकारी रात थी, माला, साये की तरह साथ थी, ज्वर कुछ हल्का अवश्य ही था, लेकिन टूटा नहीं था, मुंह कड़वा था उसका, कुछ खाए नहीं बन रहा था, चेहरा मुरझा सा गया था बेचारी का!
दोपहर बीती और वे चलीं कुँए की तरफ, किसी तरह से, हाँफते हाँफते पहुंची थी वो उधर, बैठ गए थी, लेकिन आज उस अंधे कुँए पर नहीं, उस कुँए की मुंडेर पर ही, कुछ ही देर में आने वाला था वो भूदेव! नज़रें बिछा दीं उसने, कोई आ रहा था! घोड़े पर, भागता हुआ, वो भूदेव ही था! खड़ी हुई वो गंगा, और आयी रास्ते पर, बीचोंबीच! आ गया था भूदेव! घोड़ा हांफता हुआ, रुक गया था, उसकी लगाम छोड़ी भूदेव ने, तो घोड़ा पानी पीने के लिए, नांद की तरफ मुड़ गया!
भूदेव ने चेहरा देखा उस गंगा का! पानी भी नहीं माँगा उसने! गंगा के पास आया, गंगा को देखा, आँखों से बूँदें छलक आयीं आसुओं की! न देखा गया उस से! जा चिपटा उस से! भर लिया सीने में! सर पर हाथ फेरा! भींच लिया अपने अंदर!
"क्या बात है गंगा?" घबरा के पूछा गंगा से!
गंगा ने आंसू पोंछे अपने!
और बता दी सारी बात सपने की!
"न घबरा! कुछ नहीं होगा पिता जी को! कुछ नहीं होगा! अब सब खत्म है, वो नहीं करेगा तंग! पकड़ लिया है उसको! कर दिया है इंतज़ाम!" बोला भूदेव!
कुछ हिम्मत बंधी गंगा की!
"आ, उधर आ! बोला भूदेव!
चली गंगा साथ उसके!
आये उस अंधे कुँए के पास!
और तभी फूल बरस गए गंगा के ऊपर!
गंगा चौंकी! भूदेव चौंका! आसपास देखा, गंगा को चक्कर सा आया, संभाला भूदेव ने! गंगा नहीं सम्भल सकी, बेहोश हो गयी थी गंगा! माला फ़ौरन, उसको गिरते देख, भागी आई वहां! घबराई हुई सी, आँखें फाड़े, बार बार गंगा का नाम पुकारते हुए, हिलाती रही उसको! आसपास देखा भूदेव ने! तो कुँए से थोड़ा दूर, खड़ा था तेजराज! आव देखा न ताव! भूदेव अपना खंजर लिए, दौड़ पड़ा उसकी तरफ! हवा थी! क्या करता! कई वार किये! कुछ न हुआ!
"मुझे बंधवाने गया था तू?" बोला तेजराज!
बौखलाया सा खड़ा था वो भूदेव!
"मुझे बंधवाने गया था न?" बोला वो!
"हाँ! तुझे बंधवा के ही छोड़ूंगा!" बोला भूदेव!
हंसा! ठहाका मारा उसने!
"तुझे कहा था मैंने, चला जा, तू नहीं माना! नहीं माना न?" बोला तेजराज!
"मानूंगा भी नहीं हरामज़ादे!" बोला भूदेव!
फिर क्या था! हवा में उठा लिए भूदेव को उसने! और फेंक के मारा उसको पत्थर पर! भूदेव के जिस्म में जान थी, गिरा लेकिन उठ गया, फिर से हवा में उठाया, और फिर से फेंका! इस बार एक दीवार पर गिरा, अबकी चोट लगी भूदेव को! और जैसे ही उठने की कोशिश की, गिरेबान से पकड़ लिया उस भूदेव को उसने! भूदेव का गला घुटता इस से पहले ही आवाज़ आई गंगा की!
"ठहरो!" गंगा भागती हुई आई, होश आ गया था उसे!
"छोड़ दो इन्हे!" गिड़गिड़ाते हुए बोली गंगा!
छोड़ दिया! भूदेव, बेहोशी की कगार पर था!
"छोड़ दिया गंगा! तेरे कहने पर! आज के बाद ये कभी इधर आया, तो जान से मार दूंगा इसे! समझा दे इसे गंगा! और समझ ले, तू मेरी है, मेरी ही रहेगी!" बोला तेजराज! पीछे हटा और लोप हुआ!
"पानी ला माला?" बोली गंगा!
माला भागी! ले आई पानी, पानी पिलाया भूदेव को! पानी पिया भूदेव ने! खड़ा किया उसे, सहारा देकर, भूदेव खड़ा हुआ, और गंगा, लग गयी गले उसके!
"नहीं घबरा गंगा! तुझे कोई अलग नहीं कर सकता मुझसे!" बोला वो!
गंगा रोये! आंसू बहाये!
और वो घायल भूदेव, हिम्मत बंधाये उसकी!
"मत रो गंगा! मेरे दिल में टीस उठती है" बोला भूदेव!
माला, सब देख रही थी, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था!
"गंगा, गंगा, एक काम कर, अब जा तू, सुन, मेरी बात सुन!" बोला वो!
चलन एकी कोशिश की, तो एक पाँव मुड़ गया था पूरा! शायद हड्डी टूटी गया थी जोड़ से भूदेव की, ये देख गंगा रो पड़ी, बुरी तरह से!
"मत रो गंगा! गंगा, मत रो" बोला पीड़ा बर्दाश्त करते हुए भूदेव!
गंगा सहारा दे उसे, खड़ा किया, फिर भी, अपने एक पाँव पर टिका रहा भूदेव!
"सुन, मेरी बात सुन, तू घर जा अपने, अब आऊंगा तेरे घर, तेरा हाथ मांगने गंगा! और तुझे, इस बला से मुक्त करवाऊंगा सबसे पहले, एक काम कर, कपड़ा बांड दे मेरे पाँव पर, बिठा दे घोड़े पर, चल गंगा!" बोला वो!
गंगा ने बिठाया उसे!
पाँव में अपना दुपट्टा बाँध दिया! पीड़ा बहुत थी, करता रहा बर्दाश्त!
"मुझे घोड़े पर बिठा दे" बोला वो!
माला और गंगा ने, घोड़े पर बिठाया उसको! मुस्कुराया, अपने हाथ से गंगा के आंसू पोंछे, गंगा, बहुत जल्दी, बहुत जल्दी आऊंगा तेरे पास, इत्र हाथ मांगे, तू अपना ख़याल रखना, ठीक है?" बोला वो!
सर हिलाकर हाँ कही गंगा ने!
"जा गंगा, जा, माला पानी भर ले, और ले जा इसे" बोला वो,
पानी भर लिया उन्होंने!
"चल, चल अब गंगा" बोला वो,
वे चल दीं, वापिस, बीच बीच में रुक जाती गंगा, भूदेव, हाथ से आगे चलते रहने का इशारा करता, जब चली गयीं, तो घोड़े को एक पाँव से लगाई एड़, और दौड़ा दिया घोड़ा उसने!
आ गयीं वो घर, अब माला को सब बता दिया गंगा ने, माला के होश उड़ गए! माला ने पूछा कि क्या माँ को बता दूँ ये बात? तो मना कर दिया गंगा ने!
मित्रगण!
चार दिन बीते! इन चार दिनों में, कोई फूल नहीं दिखा!
और पिता जी आये, संग उदयचंद के! सकुशल! गंगा की आशंकाएं गायब हो गयीं!
बैठे पिता जी, माला पानी लायी! गंगा भी संग खड़ी थी उनके!
"अरे इस बार कमाल हो गया!" बोले पिता जी,
"कैसा कमाल?" पूछा माँ ने!
"ऊँट-गाडी, वापसी में खिसक गयी सड़क से, और सब नीचे, मेरी गदन आ गयी जुए के बीच, लेकिन कमाल हुआ!" बोले वो!
"क्या?" माँ ने पूछा!
"जैसे ही मैं गिरा, वो जुआ पकड़ लिया एक आदमी ने! आदमी दमदार था! और निकाल लिया उसने मुझे उसमे से! उदयचंद को भी उठा लिया! एक खरोंच भी नहीं लगी हमें, हाँ, दूसरों की अस्थियां टूट गयीं!" वे बोले!
"कौन था वो आदमी?" पूछा माँ ने!
"एक सिपाही! तेजराज नाम था उसका!" वे बोले!
तेजराज!
नाम सुन, माला और गंगा पलटीं पीछे, धीरे धीरे!
आयीं अपने कमरे तक, कांपती हुईं, और क्या देखा!
बिस्तर पर, फूल पड़े थे, गुड़हल के ताज़ा फूल!
सजाये हुए, एक कतार में!!

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