वर्ष २०१२ जिला धौलपुर की एक घटना - thriller adventure story

Horror stories collection. All kind of thriller stories in English and hindi.
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Re: वर्ष २०१२ जिला धौलपुर की एक घटना - thriller adventure st

Unread post by novel » 30 Oct 2015 08:16

मित्रगण!
कोई महीना बीतने को था! और गंगा का अब स्वास्थ्य जवाब देने लगा था, सोच सोच कर, उसके मस्तिष्क में भी शिथिलता आने लगी थी, अपने आप से ही बातें करने लगी थी! माला से कभी बोली, न बोली, जमुना को झिड़क दिया करती थी, माँ और बाप से कन्नी काट लेती थी! कुँए पर भी आना जाना बंद सा ही हो चला था! अपने आप में मग्न सी रहने लगी थी! माला कभी बात करने की कोशिश करती और माला को घूरती रहती! न बात करती! न पहनने का होश, न अपना ध्यान रखने का होश! बेसुध रहने लगी थी! बुरा हाल हो गया था उस बेचारी गंगा का! वो निर्मल गंगा शांत और स्थिर थी, प्रवाह कुंद हो चला था! बीच बीच में, यादों और आशंकाओं के टापू दिखाई देने लगे थे! ये हाल हुआ था उस गंगा का!
एक रात,
गंगा अपनी यादों के धागों में उलझी हुई थी! उसको पहला दिन याद आया, जब दो घुड़सवार आये थे! और फिर आखिरी, जब उसका पाँव टूट गया था, वो दुपट्टा बाँधा था उसने! उसको बिठाया था उसके घोड़े पर उन्होंने! वो चला गया था ये कह कर कि वो आएगा जल्दी! लेकिन तीन महीने बीत चुके थे! नहीं आया था वो वापिस! और अब, किस हाल में होगा वो! बहन का ब्याह कर पाया या नहीं! भूदेव! बहुत याद आया उसको! उसकी आवाज़! सब याद आ गयी उसे! और रुलाई फूट पड़ी उसकी! कराह निकली थी, वही कराह! और उसी कराह में, सुध खो बैठी! और बेहोश हो गयी! झूल गए दोनों हाथ बिस्तर से नीचे!
और तब!
कोई आया कमरे में!
"गंगा?" बोला कोई!
गंगा बेहोश!
"गंगा?" बोला कोई फिर से!
गंगा न बोली कुछ!
"गंगा? ओ गंगा?" बोला कोई!
गंगा बेहोश थी! कुछ बोल न सकी!
"चल जाग!" बोला कोई!
"हूँ?" बोली वो!
बेहोशी में ही! जाग गयी थी, लेकिन अंतर्चेतना में ही!
"दुखी है?" पूछा किसी ने!
न बोली कुछ! बोले भी तो क्या?
"बता?" पूछा किसी ने!
न बोली! बस एक सुबकी!
"गंगा?" बोला कोई!
"हूँ?" वो बोली!
"तुझे तेजराज पसंद नहीं?" पूछा किसी ने!
"नहीं" बोली वो!
"कौन पसंद है?" पूछा उस से!
आंसू टपक गए उसके!
"वो, भूदेव?" पूछा किसी ने!
होंठ बंद कर, रुलाई रोकी गंगा ने!
"अच्छा!" बोला कोई!
"गंगा?" बोला कोई!
न बोली कुछ!
"कुछ छोड़ के जा रहा हूँ मैं, देख लेना" बोला वो!
और तभी आँख खुली गंगा की! उसके पेट पर, कुछ रखा था! गंगा झट से उठी! वो जो रखा था, उठाया, ये कपड़ा था, देखा उसे गौर से! ये! ये तो वही दुपट्टा है! वही! जो बाँधा था उस भूदेव के पाँव में उसने! उसने उठाया उसे, लगा लिया छाती से अपनी, और आंसू बह चले! तभी कुछ ध्यान आया! कौन आया था??
खिड़की की तरफ भागी वो!!
पर्दा पूरा हटा दिया खिड़की से!
सामने देखा!! सामने ही, खड़ा था वो तेजराज! मुस्कुराता हुआ! आया खिड़की की तरफ! और हुआ खड़ा वहीँ!
"गंगा!" बोला वो!
गंगा चुप! चुप ही देखे उसे!
"तुझे हँसते नहीं देखा बहुत दिनों से! हंस के दिखा ज़रा!" बोला वो!
कहाँ से हँसे! कोई चाल तो नहीं ये?
"गंगा? कभी तो मेरी बात माना कर?" बोला वो!
नहीं मानी!
पर्दा सरका दिया उसने!
"गंगा?" बोला वो!
नहीं सुना!
"ओ गंगा?" बोला फिर से वो!
नहीं सुना!
"सुन न?" बोला वो!
"गंगा! ये रख ले!" बोला वो!
गंगा ने पर्दा हटाया! देखा, तो वही पोटली!
"रख ले! मान जा!" बोला वो!
नहीं देखा उस पोटली को गंगा ने!
"इतनी ज़िद्दी न बन गंगा?" बोला वो!
ज़िद्दी तो बहुत थी गंगा!
"मान जा?" बोला वो!
नहीं मानी!
"अछा, चल माफ़ी मांगता हूँ मैं! उस दिन गुस्सा हुआ तुझसे! ले कान पकड़ लिए!" बोला वो!
गंगा ने देखा!
कान पकड़े, उट्ठक-बैठक लगा रहा था वो!
"बस? अब ठीक? मान ली गलती!" बोला वो!
नहीं रिझा सका वो!
गंगा ऐसे नहीं रीझती!
"गंगा?" बोला वो!
"मान ले, रख ले!" बोला वो!
नहीं मानी फिर से!
"ये तेरा ही दुपट्टा है न?" बोला वो,
गंगा ने हाथ में लिए दुपट्टे को देखा! और लगा लिया छाती से!
"मैं लाया ये! तेरा दुपट्टा!" बोला वो!
ओह! गंगा का दिल दरका!! कांच पर खरोंच पड़ीं! भाग ली बाहर, जहां खड़ा था वो! साँसें थामीं!!
"तू वहीँ से आया है?" पूछा गंगा ने!
"हाँ!" बोला वो!"
"कैसे हैं वो?" पूछा गंगा ने! आंसू भरी आँखों और याचना के स्वर से! जो न भी पिघले, तो भी पिघल जाए! ऐसा स्वर!
"नहीं पता" बोला वो! हँसते हुए!
टूट गयी! बेचारी! बैठ गयी नीचे! लेकिन दुपट्टा छाती से लगाये रखा!
रोने लगी!
"न, गंगा न! रो मत!" बोला वो!
गंगा रोये जाए!
"न! मान मेरी! मान, मत रो!" बोला वो!
और आंसू बह निकले गंगा के!
"न! न गंगा न!" बोला वो! खुद भी रोने के स्वर में बोला!
गंगा की आँखें बहाती रहीं पानी!!! लगातार!
खड़ा हुआ वो!
गुस्से में पाँव पटके!
"गंगा! मैंने बहुत रुलाया तुझे! बाहर रुलाया! माफ़ कर दे! माफ़ कर दे! गंगा! माफ़ कर दे!" गिड़गिड़ा गया वो!
गंगा ने आंसू पोंछे! उठी! और जाने लगी!
"रुक? रुक गंगा?" बोला वो!
"मेरी एक बात मानेगी?" बोला वो!
गंगा चुप देखे उसे!
"मानेगी?" पूछा उस से!
गंगा चुप!
"बोल? मानेगी?" बोला वो!
नहीं बोली कुछ!
"आँखें बंद कर अपनी?" बोला वो!
नहीं कीं आँखें बंद!
"कर न?" नहीं की!
"एक बार, गंगा! एक बार!" बोला वो!
नहीं कीं! और जाने लगी!
"मान जा! मान जा गंगा! मान जा! मुझे मत तड़पा! मान जा!" गिड़गिड़ाया वो!
नहीं मानी! और चली गयी वापिस! हाथ मलते हुए, वहीँ रह गया वो!

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Re: वर्ष २०१२ जिला धौलपुर की एक घटना - thriller adventure st

Unread post by novel » 30 Oct 2015 08:16

दो दिन और बीते! उस रात सो रही थी गंगा! कभी सोती और कभी जाग जाती थी! कभी रोती और कभी यादों में डूब जाती थी गंगा! उस रात कोई सुबह होने से पहले, गंगा को लगा कि जैसे उसके ऊपर किसी ने इत्र बिखेरा है! भीनी भीनी सुगंध फ़ैल उठी थी कमरे में! आँख खुल गयी उसकी! और उसको वही सुगंध आई नथुनों में! उसको समझ नहीं आया कुछ भी! खिड़की का पर्दा हटाया तो कोई नहीं था, बस तेजराज ही ऐसा कर सकता था! और अगर करता था, तो सामने नज़र भी आता था! लेकिन उस समय नहीं था वो वहाँ! वो फिर से लेट गयी! और कुछ देर बाद, आँख लग गयी उसकी! सुबह ज़रा देर से उठी, सूरज चढ़ आया था आकाश में! उसकी आँख खुली तो अब बाहर जाने के लिए जैसे ही बिस्तर से नीचे पाँव रखा, कुछ चुभा उसे! उसने पाँव हटाया अपना तभी! वो अंगूठी थी! उस भूदेव की दी हुई अंगूठी! उसने झुक कर झट से उठाया उसे! मुट्ठी में जकड़ लिया! ये, यहां कैसे आ गयी? ये तो ऊपर टांडी पर रखी थी? छिपा कर? कैसे आ गयी नीचे! सोच ही रही थी, कि माला आ गयी अंदर! गंगा को जो देखा उसने!! तो दंग रह गयी! गंगा का रूप निखर उठा था! ऐसी गंगा तो उसने कभी न देखी थी! गोरे वर्ण को चार चाँद लग गए थे! जैसे किसी ने घंटों साज-श्रृंगार किया हो उसका! अवाक थी माला! और तभी जमना भी आई अंदर! गंगा को देखा तो मुंह खुला रह गया! चाँद की चांदनी ने पूरा बदन ढक दिया था उसका! जमना भाग चली पीछे! और जब आई तो माँ साथ थी! माँ ने देखा तो माँ भी चौंकी! गंगा का रूप देख, माँ की आँखें खुली ही रह गयीं! वो सुगंध! कमरे में फैली थी! हैरत भरी माँ और जमना, वापिस चले गए! शायद पिता जी को बताने! इतने में माला, बिस्तर ठीक करने लगी वो! गंगा गुमसुम खड़ी थी! हाथ बंद किये अपना!
"क्या हुआ गंगा?" पूछा माला ने!
कुछ न बोली, ऐसे ही खड़ी रही!
आई सामने माला उसके!
"क्या है हाथ में गंगा?" पूछा माला ने!
नहीं बोली कुछ!
हाथ पकड़ा उसने गंगा का! गंगा हाथ न खोले! दोनों हाथ लगा दिए! और जब हाथ खुला तो अंगूठी थी वो, उस भूदेव की!
"गंगा!!" बोली माला!
गंगा से नज़रें मिलीं उस माला की तब!
और गंगा मुस्कुरा पड़ी!! ये देख माला की आँखों में पानी उतर आया, रुलाई फूट पड़ी माला की! और लग गयी गले गंगा के! आज कितने दिनों के बाद मुस्कुराई थी गंगा! जब हटी माला, तो खुश हुई! पुरानी गंगा मिल गयी थी उसे! लौट आई थी वो पुरानी, चंचल गंगा!! और तभी नज़र पड़ी उस दुपट्टे पर माला की! माला ने झट से उठाया वो!
"गंगा? ये तो वही है न?" पूछा माला ने!
"हाँ" बोली गंगा!
"इसका मतलब.....गंगा! गंगा!! आज चल! आज चल ज़रा कुँए पर!!" बोली माला खुश होकर!
मित्रगण! माला को न जाने क्या उम्मीद थी! न जाने क्या देखा था उसने!!
और फिर दोपहर बीती!
गंगा ने भी अपना घड़ा उठाया और माला ने भी! चल पड़ीं कुँए की तरफ! पहुंचीं वहां! माला ने झट से पानी खींचा कुँए से! और भरने लगी नांद! माला पता नहीं क्या सोच रही थी! बहुत खुश थी! बहुत खुश! और वो गंगा! कहीं खुश, कुछ उम्मीद सी बंधी थी उसे! और तभी नज़र रास्ते के पार, उस अंधे कुँए पर पड़ गयी! अँधा कुआँ, जैसे राह तकता था उसकी! और कोई तो आता नहीं था वहां! बस गंगा ही जाया करती थी उधर! सो चली गयी उधर!! बैठ गयी, उसी रास्ते पर, नज़रें गड़ा दीं! बिछा दिए नैन! तभी मन में न जाने क्या आया उसके!
"तेजराज?" बोली वो!
कोई उत्तर नहीं!
कोई हरकत नहीं!
"तेजराज?" उसने फिर से कहा!
कोई नहीं आया वहाँ!
"तेजराज?" वो उठ खड़ी हुई!
कोई आवाज़ नहीं!!
नहीं तो अब तक प्रकट हो जाता था वो तेजराज!
"कहाँ है तेजराज?" बोली वो!
कोई उत्तर नहीं!!
"तेजराज?" गुस्से से बोली वो इस बार!
"हाँ गंगा?" आवाज़ आई! पीछे से!
गंगा पीछे मुड़ी! कोई नहीं था!
"तेजराज?" फिर से बोली वो!
"हाँ गंगा! बोल?" बोला तेजराज!
"सामने क्यों नहीं आता तू?" पूछा उसने!
"आऊंगा गंगा! गुस्सा न हो!" बोला वो!
"सामने आ मेरे?" बोली वो!
"कहा न गंगा! आऊंगा मैं!" बोला वो!
"अभी आ?" बोली वो!
"नहीं, अभी मैं नहीं, कोई और आ रहा है!" बोला वो!
"कोइ और? कौन?" नहीं समझ सकी वो!
"तेरा भूदेव!" बोला वो!
गंगा के शरीर में तो जैसे समंदर लहरा गया! समूचा बदन ठंडा हो गया! कांपने लगी वो! आँखों में से जहर जहर आंसू निकलने लगे!
"जा गंगा! आ रहा है तेरा भूदेव! जा! बाट जोह उसकी! कुछ ही दूर है वो! जा गंगा! जा! मिल अपने भूदेव से!" बोला तेजराज!
भागी गंगा! बहुत तेज! बहुत तेज! जा पहुंची कुँए!!
"माला! माला! माला!" बोली गंगा! जोश में!!
"क्या हुआ गंगा?" माला ने पूछा,
"वो! वो भूदेव! आ रहे हैं!!" बोली गंगा! इशारा करके उस रास्ते की तरफ! दोनों भाग खड़ी हुईं उसी रास्ते पर! और बिछा दीं आँखें!!! साँसें ऐसी तेज कि धौंकनी की भी क्या बिसात!!
और मित्रगण!
कोई आ रहा था! आ रहा था कोई! घोड़े पर! दौड़ा दौड़ा! वही! वही भूदेव आ रहा था!! और करीब! और करीब! पल पल में और करीब! गंगा कांपने लगी थी! कहीं दिल बाहर ही न आ जाए सीने से! ऐसे धड़क रहा था! और फिर खुरों की आवाज़ कानों में पड़ी!
हाँ! ये वही था! वही भूदेव!!
घोड़ा धीमा हुआ!
और भाग चली गंगा उसकी तरफ!
बह गयी थी अपनी ही धार में!
प्रवाह प्रबल हो चला था!
अपने आपे से बाहर थी गंगा!
घोड़ा रुका, और वो भूदेव, कूद पड़ा घोड़े से!
भागा! तेज! और जा लिपटा उस गंगा से!
तब तक माला भी आ गयी थी वहां!
मित्रगण! अब कौन से शब्द लाऊँ मैं उस पल का बखान करने के लिए!!
कोई लेखक होता! तो अवश्य ही लिखता!!
मैं नहीं लिख सकता! बस जो बन पड़ा! लिख रहा हूँ!
जैसे दो प्रबल जल धाराएं, नदियां मिल कर एक हो जाती हैं, वैसे ही भूदेव और गंगा! एक हो गए थे! बिरहा के दिन, घंटे, पल, अब विदाई ले चुके थे! गंगा को भींच रखा था उस भूदेव ने अपनी मज़बूत भुजाओं में! और गंगा! मोम सी कुची पड़ी थी उसकी बाजुओं में! जैसे किसी साँचे में मोम कुछ जाता है! गंगा के सर को, माथे को, चेहरे को, उन आंसुओं को चूमे जा रहा था वो भूदेव! और गंगा! कसे खड़ी थी उस भूदेव को!! और माला, खड़े खड़े आंसू बहा रही थी!
"कैसी है तू मेरी गंगा?" बोला वो, रोते रोते! आवाज़ में न जाने कितने ठहराव थे!
कुछ न बोल सकी गंगा!!
गंगा की तो एक एक मांस-पेशी में मद आ चढ़ा था जैसे!
एक एक पेशी कुंद पड़ी थी!
बस आँखें उस भूदेव को देख रही थीं!
भुजाएं, उसको जकड़े खड़ी थीं! जैसे सर्प-लताएँ किसी वृक्ष को जकड़ लेती हैं!
उस भूदेव के स्पर्श ने गंगा को आल्हादित कर दिया था!
रोम रोम आल्हादित था!
"कैसी ही गंगा तू?" पूछा फिर से भूदेव ने!
"मर जाती गंगा तुम्हारी" बोली टुकड़ों में!
एक एक टुकड़े पर, भूदेव की जान रिस जाती!
अपने आंसू छोड़, गंगा के आंसू पोंछता वो!
"पल पल घुट के जिया हूँ मैं गंगा! घुट घुट के! तेरे बिना!" बोला वो!
आंसू पोंछते हुए! अपने!
गंगा ने फिर से सुबकी ली! और फिर से भींच लिया उस गंगा को उसने!
फिर हटे वो! हाथ पकड़े, गंगा का, चला कुँए की तरफ, उसका घोड़ा भी चला अब! माला सामने ही थी! रो रही थी, आंसू पोंछ रही थी!
"कैसी है माला?" बोला वो!
"आप कैसे हो?" माला ने ही पूछा लिया!
"मैं अच्छा हूँ माला! तेरी याद ने भी रुलाया मुझे माला, मेरी बहन!" बोला वो!
और चल पड़े कुँए तक!

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Re: वर्ष २०१२ जिला धौलपुर की एक घटना - thriller adventure st

Unread post by novel » 30 Oct 2015 08:16

"पानी पिला माला!" बोला भूदेव!
माला ने झट से कुँए में डाल थी टोकनी! और भूदेव का घोड़ा, आ गया था नांद के पास! वो भी नहीं भूला था उस नांद को! पानी था ही उसमे, तो पानी पीने लगा!
माला ने पानी निकाला और ले आई भूदेव के पास! भूदेव ने झुक आकर, ओख से पानी पिया! अभी भी हाथ थामे हुआ था उस गंगा का उसने! पानी पी लिया उसने! और चेहरा भी धो लिया!
"आ गंगा!" बोला वो!
और ले चला वो उसको रास्ते के पार! उस अंधे कुँए की तरफ! गंगा न समझ सकी कुछ! रुकी, तो भूदेव मुस्कुराया!
"आ, चल गंगा!" बोला वो! गंगा चल दी!
आ गए वे दोनों कुँए के पास तक!
"गंगा! आवाज़ दे उस तेजराज को! बुला!" बोला भूदेव!
गंगा न समझी कुछ! इसी तेजराज के कारण ही तो बिछड़ गए थे वे दोनों!
"बुला गंगा!" बोला भूदेव!
नहीं बुलाया गंगा ने!
"गंगा! मुझे फ़ालिज पड़ी थी! जब मेरा पाँव टूटा था वो, कोई रग दब गयी थी मेरी, वो फ़ालिज इस तेजराज ने नहीं मारी थी, हाँ, परसों आया था मेरे पास! मुझे ठीक किया उसने! उसने कहा था, कि गंगा तड़प रही है तेरे लिए भूदेव! जैसे तू तड़प रहा है! अब तुम दोनों नहीं तड़पो! दुख होता है मुझे तुम्हारा हाल देख कर! भूदेव, परसो जाना तुम वहाँ! इंतज़ार कर रही है तेरा वो गंगा! और हाँ, वही ले गया था वो दुपट्टा जो तूने मेरे पाँव में बाँधा था!" बोला भूदेव!
गंगा हैरान! सन्न! वो तो सोचती थी कि तेजराज ने ही डाली फ़ालिज! क्या क्या नहीं कहा उसने तेजराज को! और वो तेजराज, चुपचाप सुनता रहता था! नहीं बोलता था कुछ!
"गंगा!ये तेजराज नहीं होता, तो शायद ही हम दुबारा मिल पाते!" बोला भूदेव!
आँखों में आंसू आ गए गंगा के! बह चले आंसू!
"आवाज़ दे गंगा!" बोला भूदेव, उसके आंसू पोंछते हुए!
गंगा ने संभाला अपने आपको!
"तेजराज!" बोली वो!
"हाँ गंगा!" बोला वो!
"सामने आ!" बोली वो!
"आता हूँ, लेकिन गुस्से से मत देखना! वचन?" बोला वो!
"वचन!" बोली गंगा! रुलाई रोकते रोकते!
और आ गया तेजराज! कुँए की मुंडेर के पास खड़ा हो गया था! मुस्कुराते हुए!
"बोल गंगा?" बोला तेजराज!
क्या बोलती! रुलाई फूट पड़ी!
"नहीं गंगा! नहीं! देख! भूदेव आ गया है! तेरे लिए!! अब न रो! न रो! अब हंसा कर! हंसा कर गंगा!" बोला तेजराज!
नहीं रुक सकी उसकी रुलाई!
"चुप होजा अब गंगा! रोने के दिन चुक गए! बहुत रुलाया न मैंने तुझे?" बोला वो!
कुछ न बोल सकी! रुलाई रोक, न में सर हिलाती रही!
"भूदेव! कभी नहीं रुलाना इस गंगा को! तू बहुत भागवान(भाग्यवान) है भूदेव! तुझे गंगा मिली है! उसका प्रेम मिला है! इसे कभी नहीं रुलाना!" बोला तेजराज!
गले लग गयी वो भूदेव के!
"गंगा?" बोला तेजराज!
देखा उसे गंगा ने!
"तूने मेरी कोई बात नहीं मानी न आज तक?" बोला वो!
गंगा चुप!! भूदेव चुप!
"आज मानेगी?" बोला तेजराज!
"बोलो तेजराज!" बोला भूदेव!
"ये! ये ले ले गंगा!" बोला वो!
वो! वही पोटली! ज़ेवरों की!
गंगा ने नहीं ली!
"ले गंगा!" बोला तेजराज!
"जा! ले ले गंगा!" बोला भूदेव!
भूदेव की आँखों में झाँका उसने!
"अच्छा गंगा! चल मैं ही हारा! भूदेव?" बोला वो!
"हाँ तेजराज?" बोला भूदेव!
"तू आ इधर!" बोला तेजराज!
गया भूदेव उधर, उसके पास!
"ले भूदेव, मैंने तुझे दी, तू गंगा को दे दे!" बोला वो!
भूदेव ने ली, और पलटा! आया गंगा के पास!
"ले गंगा!" बोला भूदेव!
गंगा न ले अभी भी!
"ले ले गंगा! तेरे लिए ही है ये!" बोला तेजराज!
"ले ले गंगा! मान जा!" बोला भूदेव!
और तब, ले ली गंगा ने! जैसे ही ली पोटली, तेजराज अपनी माँ को याद कर, भाई को याद कर, सुबक उठा! जिस पोटली को वो छिपाए-छिपाए घूम रहा था, आज उतर गया था बोझ! इसीलिए रोया था वो!
"एक एहसान और करना भूदेव मुझ पर!" बोला तेजराज!
"एहसान? कैसा एहसान?" बोला भूदेव!
"ब्याह के बाद, जब पहली बार घर आये गंगा, तो तू और गंगा मुझे मुक्त करवा देना! मैं अकेला हूँ! करवा दोगे न?" बोला तेजराज, याचना भरे स्वर से!
आगे गया भूदेव! और लगा लिया गले उस तेजराज को! तेजराज ने कस लिया उसे! रोते रोते! अपने बड़े भाई की तरह! उसी की याद में!
"करवा दूंगा! वचन!" बोला वो!
"गंगा!" बोला तेजराज!
"तुझे एक बार और दिखाई दूंगा! बस एक बार! आखिरी बार! फिर कभी नहीं!" बोला तेजराज!
भूदेव आ गया था वापिस गंगा के पास तब तक!
"भूदेव?" बोला तेजराज!
"बहन के लिए रिश्ता आ रहा है! तैयार रह!" बोला तेजराज!
"धिनमान!" बोला भूदेव! (शुक्रिया, धन्यवाद)
"गंगा! अब जा! भूदेव! अब जा! बहन को ब्याह! और उसके बाद गंगा से ब्याह कर! और हाँ, इसको रोज मिलना तू! रोज! तुम्हे खुश देख, मैं बहुत खुश होऊंगा! और गंगा! अब नहीं आना अंधे कुँए पर! मारा ये तो कहना मान ही लेना! जा अब, खबर कर घर में, कि लौट आया है तेरा भूदेव!" बोला तेजराज!
और इतना कह! लोप हो गया तेजराज!
गंगा ने आवाज़ें दीं उसे! कई बार! कई बार!
नहीं आया लौट के!
"चल गंगा!" बोला भूदेव!
मित्रगण!
पंद्रह दिन बाद ही भूदेव की बहन का ब्याह हो गया! भूदेव के बारे में बता दिया था घर में गंगा ने! गंगा खुश रहे, यही चाहते थे उसके परिवार वाले! भूदेव रोज आता था मिलने गंगा से! रोज! जैसे कोई नियम! और फिर कोई महीने बाद, अपनी माँ के संग आया भूदेव! रिश्ते के लिए! रिश्ता तय हो गया उनका!
और इस तरह से, एक दिन, वे ब्याह के बंधन में भी बंध गए! ब्याह हो गया उनका! और जिस दिन डोली उठी उस गंगा की, डोली कुँए तक ही जानी थी, उसके बाद घोड़ा-गाड़ी थी! तो जब डोली पहुंची कुँए तक, तो सभी थे साथ में, वो उदयचंद! वो माला! वो जमना! और!
और उनसे दूर खड़ा वो तेजराज!
नज़रें मिलीं तेजराज से उसकी!
और तेजराज!
हाथ जोड़े खड़ा था!
हाथ जोड़े! विदाई के लिए!
मुस्कुराते हुए!!
और गंगा!!
गंगा पहली बार मुस्कुराई उसको देख कर!
और चला फिर वो उसके पास के लिए!
दूसरी तरफ से!
आया, अपने वस्त्रों से एक पोटली निकाली!
और हाथ अंदर कर दिया अपना डोली में!
मन्नी! वो मेहँदी! वही थी!
"मैं कहा था न गंगा! एक बार और दिखूँगा! आज ही वक़्त है वो! तू खुश रह!" बोला वो!
और चला गया! लौट के नहीं देखा!
जाता रहा! और लोप हुआ!!

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