Re: वर्ष २०१२ जिला धौलपुर की एक घटना - thriller adventure st
Posted: 30 Oct 2015 08:13
अब मन में भय बैठ चला था गंगा के! और कुछ आशंकाएं भी! भटकाव के रास्ते में आ चुकी थी! भटक रही थी! दिल, दिमाग सब भटकाव में था! वो फूल, वो आवाज़ें! वो 'मेरी गंगा!' कहना! भय की बात तो थी ही! आशंका ये, कि कहीं कुछ अनहोनी तो नहीं हो गयी उस भूदेव के संग? अब हुआ मुंह कड़वा गंगा का! गंगा के किनारे, कटने लगे, पानी मटमैला हो गया, आशंकाओं की मिट्टी मिलने से! बहुत मनाती दिल को, कि कुछ नहीं हुआ होगा उस भूदेव के संग, लेकिन दिल, फिर वही तूती बजाता! प्रश्नों की तूती! उसी शाम की बात होगी, वैसे साँझ हुई नहीं थी, साँझ होने में अभी देर थी, घर में लगे एक पेड़ का गुद्दा, अड़ता था बार बार, सोचा गंगा के पिता जी ने, कि काट ही दिया जाए वो, गुद्दा था भी बड़ा ही, और ऊंचा भी था, तो उसके नीचे से सारी वस्तुएं हटा ली गयीं, यही सोचा कि पहले गुद्दे की शाखें काटी जाएँ, और फिर गुद्दा, यही ठीक था और तरीका भी यही था! तय ये हुआ कि पहले पिता जी काटेंगे शाखें, जब थक जाएंगे तो उदयचंद काटेगा! दोनों मामा-भांजे, हुए तैयार! पहले पिता जी चढ़े पेड़ पर! काटी शाखें, फिर उदयचंद चढ़ा, काटीं बड़ी शाखें, नीचे लडकिया, वे शाखे उठा लेटी थीं, रख देती थीं एक तरफ! बार बार वे उतरते रहे और चढ़ते रहे! गुद्दा मज़बूत था, जितना सोचा था उस से कहीं अधिक मज़बूत! थक गए! पानी पिया! और साँझ भी होने को आई! उस समय पेड़ पर चढ़ा वो उदयचंद कुल्हाड़ी चला रहा था! कि गुद्दा टूटा, गुद्दे से अड़ा उसका पाजामा, और धड़ाम नीचे! उदयचंद गिरा नीचे, और गुद्दा उसके ऊपर! उदयचंद चिल्लाया, सभी भागे उसकी तरफ, उदयचंद ने उठने की कोशिश की और फिर बेहोश!
घर में तो चीख-पुकार मच गयी! सभी लड़कियां रोने लगीं! गंगा भागी भागी गयी पानी लेने, मुंह पर छींटे मारे, लेकिन होश नहीं आया उसको! बदहवास से भागे राम किशोर बाहर, वैद्य को बुलाने, घर में मच गया था कोहराम, गुद्दा तो हटा दिया था, लेकिन उदयचंद चेतनाशून्य हो गया था! कोई दस मिनट के बाद वैद्य आये, तब तक चारपाई पर लिटा दिया गया था उसे, नाड़ी की जांच की, उसकी, वैद्य साहब ने बताया कि हालत नाज़ुक है, हृदयगति गिरती जा रही है, यदि शीघ्र ही कुछ न किया गया तो, प्राण भी जा सकते हैं, सलाह दी उन्होंने, कि अस्पताल ले जाया जाए उसको, बस, और कोई तरीका नहीं! ये सुन तो सभी के कलेजे फट पड़े! इस समय कैसे ले जाएँ? ऊँट-गाड़ी कहाँ से मिले? और शहर तक तो सुबह हो जायेगी, राम किशोर भी आँखों में आंसू भर लाये! गंगा का बुरा हाल, गंगा की माँ का बुरा हाल! जमना अपने भाई को बार बार हिलाये! माला, बार बार छींटे दे! राम किशोर चले गए बाहर! ऊँट-गाड़ी देखने, देर भली न थी, कोई भी अनहोनी हो सकती थी उस समय!
"गंगा! मेरी गंगा!" आवाज़ आई गंगा को!
गंगा चौंकी!
आसपास देखा!
"जा, कमरे में जा, फूल उठा, रख दे इसके सीने पर, जा!" आवाज़ आई!
गंगा भागी अंदर! न सोचा कि आवाज़ किसने दी! उदयचंद, मौत के मुंह में जाने वाला था, अब क्या सोचे! कमरे में गयी, तो बिस्तर पर फूल पड़े थे! करीब आठ-दस! एक फूल उठाया उसने! और रख दिया उदयचंद के सीने पर! माँ को अटपटा सा लगा! लेकिन तभी! तभी खांसता हुआ उठा उदयचंद! प्राण बच गए थे उसके! तत्क्षण ही! अब तो सभी चिपट गए उस से! उदयचंद खड़ा हो गया! मामा के बारे में पूछा, वो सही था, बस खरोंचें थीं!! सीने पर!
तभी राम किशोर आये! उदयचंद को देखा! तो लिपट पड़े! आंसू बहा बैठे! राम किशोर के साथ तीन लोग और आ गए थे सहायता करने! जब उसको ठीक देखा तो चले गए! उस उदयचंद से हाल पूछ कर उसका! अब माँ ने सारी बात बतायी! कि कैसे ठीक हुआ वो उदयचंद! पिता जी गंगा को ले, कमरे में पहुंचे! फूल पड़े थे बिस्तर पर! नहीं समझे कि कहाँ से आये वे फूल! लेकिन, गंगा! गंगा की आशंकाएं अब आसमान छूने लगी थीं!
उस सारी रात गंगा सो न सकी! किसकी आवाज़ है वो? कौन है वो? किसने मदद की उसकी जान बचाने में उस उदयचंद की? अब ऐसे ऐसे सवाल उसके दिमाग में घूमने लगे!
मित्रगण! रोज सुबह, फूल मिलते उसको अपने बिस्तर पर! लेकिन आवाज़ नहीं आती थी अब! बस फूल! गंगा उलझी थी बहुत! बहुत! जब भी अंधे कुँए पर जाती, बैठ जाती, सोचती रहती, ताकती रहती रास्ता! लेकिन वो आवाज़, नहीं आई थी उस दिन के बाद से!
और फिर महीना बीता!
अब तो सीने में क़ैद दिल बाहर को आये! ऐसे ऐसे सवाल करे कि जिनका जवाब बेचारी गंगा के पास था ही नहीं! अंदर ही अंदर घुले जा रही थी गंगा!
और फिर आया वो दिन!
जिस दिन गंगा, चली कुँए पर पानी लेने! हिसाब से तो, आज आना चाहिए था उसको! बैठी जाकर अंधे कुँए पर, बिछा दीं निगाहें रास्ते पर! और हुआ अब शुरू इंतज़ार! दिल ऐसे धड़के कि जैसे सीना ही फाड़ देगा! सर ऐसे घूमे कि अभी गिरी और अभी गिरी!
"गंगा!" आवाज़ आई!
वो घबराई!
आसपास देखा!
कोई नहीं!
"मेरी गंगा! प्रेम करता हूँ तुझसे मैं!" आवाज़ आई!
गंगा भागी वहाँ से, और जैसे ही रास्ते में आई, नज़र पीछे गयी, रास्ते पर! कोई आ रहा था! तेज घोड़ा दौड़ाते हुए! दिल में बजती सारंगी, शहनाई में बदली! माथे पर पड़ी शिकन, चमक में बदलीं! दिल जो सवाल किया करता था बेकार के, अब शांत हुआ था! आशंकाएं फिर से आत्महत्या करने चली गयीं! और कुछ ही देर में, आ गया था वो! गंगा कुँए की तरफ बढ़ी! वो घोड़े से उतरा! लगाम पकड़ी, मुंह खोला घोड़े का और छोड़ दिया पानी पीने के लिए! आया गंगा के पास!
"पानी!" बोला वो!
गंगा के बदन में, मन में हिलोरें उठी थीं!
सारी आशंकाएं मिल गयीं थीं धूल में!
पानी पिलाया गंगा ने उसे! उसने पानी पिया! और अपना चेहरा साफ़ किया! फिर हाथ पोंछे! गंगा! अंदर ही अंदर गल रही थी! कैसे बताये कि पूरा महीना, कैसे काटा! कैसे एक एक पल काटा! तिल तिल घुट घुट कर! कैसे एक एक लम्हे से लड़ी वो! आँखों में आंसू आये उसके! पोंछती तो पता चला जाता सभी को! खासतौर पर उस भूदेव को! इसीलिए, सर नीचे किये हुए, खड़ी रही!
"कैसी है गंगा तू?" पूछा उसने!
सैलाब टूटा! जज़्बातों का अब्र फूटा!
लिपट गयी उस भूदेव से गंगा!
भूदेव हैरान! माला हैरान!
"गंगा? मेरी गंगा? क्या बात है?" पूछा उसने!
उसको हटाये, तो न हटे!
गंगा का चेहरा उसने अपनी ऊँगली से टटोला! और उसकी चिबुक से उठाया ऊपर! गंगा की आँखों में आंसू दिखे!
''क्या बात है गंगा? मुझे बता?? बता मुझे?? बता??" घबरा सा गया वो!
गंगा न छोड़े उसे! सिसकी ले!
"किसी ने कुछ कहा तुझे?" पूछा उसने!
न बोले कुछ!
"किसी ने देखा तुझे?" पूछा उसने!
नहीं बोली एक भी शब्द!
"किसी ने कुछ कहा गंगा? गर्दन उतार दूंगा उसकी धड़ से, बता मुझे? बता गंगा?" बोला वो!
नहीं बोले! नहीं छोड़े!
"ऐसे नहीं, ऐसे नहीं कर गंगा! गंगा! तेरी आँखों में आंसू अच्छे नहीं लगते! नहीं गंगा!" बोला वो!
और लिपटा लिया उसको अपने भीतर!
रख दी गंगा के सर पर अपनी चिबुक!
"मुझे बता गंगा? बता क्या हुआ?" बोला वो!
गिड़गिड़ाते हुए! याचना सी करते हुए!
गंगा हटी! अपनी आँखें पोंछती, इस से पहले रोका उसको भूदेव ने! आँखें देखीं! डबडबायी हुई आँखें! अपने कपड़े से, पोंछ दिए आंसू!
"आ! मेरे साथ आ!" बोला भूदेव!
हाथ पकड़ कर, ले चला!
वहीँ अंधे कुँए के पास!
"बैठ, यहाँ बैठ" कपड़ा बिछाते हुए बोला वो, पेड़ के नीचे, उस कुँए की मुंडेर पर!
"अब बता, क्या हुआ?" पूछा उसने!
और अब मित्रगण!
सब बता दिया गंगा ने!
वो आवाज़ें!
वो फूल!
वो उदयचंद वाली घटना!
सब बता दिया!
भूदेव का माथा ठनका!
"मेरी आवाज़ में?" पूछा उसने!
गंगा ने हाँ में सर हिलाया!
मामला गंभीर था!
"आवाज़ यहीं आई थी?" पूछा उसने!
"हाँ, यहीं" बोली वो!
अपने वस्त्र के अंदर हाथ डाला उसने! और निकाल लिया खंजर!
"कौन है यहां?" पूछा उसने!
कोई आवाज़ नहीं!
"कौन है? सामने आ? इसको आज के बाद तंग किया, तो ऐसी जगह भेजूंगा कि वापिस लौटना नामुमकिन होगा!" बोला गरज के वो!
और तभी!
तभी कुछ फूल गिरे! गंगा के सामने! गंगा से टकराते हुए!!
क्रमशः
घर में तो चीख-पुकार मच गयी! सभी लड़कियां रोने लगीं! गंगा भागी भागी गयी पानी लेने, मुंह पर छींटे मारे, लेकिन होश नहीं आया उसको! बदहवास से भागे राम किशोर बाहर, वैद्य को बुलाने, घर में मच गया था कोहराम, गुद्दा तो हटा दिया था, लेकिन उदयचंद चेतनाशून्य हो गया था! कोई दस मिनट के बाद वैद्य आये, तब तक चारपाई पर लिटा दिया गया था उसे, नाड़ी की जांच की, उसकी, वैद्य साहब ने बताया कि हालत नाज़ुक है, हृदयगति गिरती जा रही है, यदि शीघ्र ही कुछ न किया गया तो, प्राण भी जा सकते हैं, सलाह दी उन्होंने, कि अस्पताल ले जाया जाए उसको, बस, और कोई तरीका नहीं! ये सुन तो सभी के कलेजे फट पड़े! इस समय कैसे ले जाएँ? ऊँट-गाड़ी कहाँ से मिले? और शहर तक तो सुबह हो जायेगी, राम किशोर भी आँखों में आंसू भर लाये! गंगा का बुरा हाल, गंगा की माँ का बुरा हाल! जमना अपने भाई को बार बार हिलाये! माला, बार बार छींटे दे! राम किशोर चले गए बाहर! ऊँट-गाड़ी देखने, देर भली न थी, कोई भी अनहोनी हो सकती थी उस समय!
"गंगा! मेरी गंगा!" आवाज़ आई गंगा को!
गंगा चौंकी!
आसपास देखा!
"जा, कमरे में जा, फूल उठा, रख दे इसके सीने पर, जा!" आवाज़ आई!
गंगा भागी अंदर! न सोचा कि आवाज़ किसने दी! उदयचंद, मौत के मुंह में जाने वाला था, अब क्या सोचे! कमरे में गयी, तो बिस्तर पर फूल पड़े थे! करीब आठ-दस! एक फूल उठाया उसने! और रख दिया उदयचंद के सीने पर! माँ को अटपटा सा लगा! लेकिन तभी! तभी खांसता हुआ उठा उदयचंद! प्राण बच गए थे उसके! तत्क्षण ही! अब तो सभी चिपट गए उस से! उदयचंद खड़ा हो गया! मामा के बारे में पूछा, वो सही था, बस खरोंचें थीं!! सीने पर!
तभी राम किशोर आये! उदयचंद को देखा! तो लिपट पड़े! आंसू बहा बैठे! राम किशोर के साथ तीन लोग और आ गए थे सहायता करने! जब उसको ठीक देखा तो चले गए! उस उदयचंद से हाल पूछ कर उसका! अब माँ ने सारी बात बतायी! कि कैसे ठीक हुआ वो उदयचंद! पिता जी गंगा को ले, कमरे में पहुंचे! फूल पड़े थे बिस्तर पर! नहीं समझे कि कहाँ से आये वे फूल! लेकिन, गंगा! गंगा की आशंकाएं अब आसमान छूने लगी थीं!
उस सारी रात गंगा सो न सकी! किसकी आवाज़ है वो? कौन है वो? किसने मदद की उसकी जान बचाने में उस उदयचंद की? अब ऐसे ऐसे सवाल उसके दिमाग में घूमने लगे!
मित्रगण! रोज सुबह, फूल मिलते उसको अपने बिस्तर पर! लेकिन आवाज़ नहीं आती थी अब! बस फूल! गंगा उलझी थी बहुत! बहुत! जब भी अंधे कुँए पर जाती, बैठ जाती, सोचती रहती, ताकती रहती रास्ता! लेकिन वो आवाज़, नहीं आई थी उस दिन के बाद से!
और फिर महीना बीता!
अब तो सीने में क़ैद दिल बाहर को आये! ऐसे ऐसे सवाल करे कि जिनका जवाब बेचारी गंगा के पास था ही नहीं! अंदर ही अंदर घुले जा रही थी गंगा!
और फिर आया वो दिन!
जिस दिन गंगा, चली कुँए पर पानी लेने! हिसाब से तो, आज आना चाहिए था उसको! बैठी जाकर अंधे कुँए पर, बिछा दीं निगाहें रास्ते पर! और हुआ अब शुरू इंतज़ार! दिल ऐसे धड़के कि जैसे सीना ही फाड़ देगा! सर ऐसे घूमे कि अभी गिरी और अभी गिरी!
"गंगा!" आवाज़ आई!
वो घबराई!
आसपास देखा!
कोई नहीं!
"मेरी गंगा! प्रेम करता हूँ तुझसे मैं!" आवाज़ आई!
गंगा भागी वहाँ से, और जैसे ही रास्ते में आई, नज़र पीछे गयी, रास्ते पर! कोई आ रहा था! तेज घोड़ा दौड़ाते हुए! दिल में बजती सारंगी, शहनाई में बदली! माथे पर पड़ी शिकन, चमक में बदलीं! दिल जो सवाल किया करता था बेकार के, अब शांत हुआ था! आशंकाएं फिर से आत्महत्या करने चली गयीं! और कुछ ही देर में, आ गया था वो! गंगा कुँए की तरफ बढ़ी! वो घोड़े से उतरा! लगाम पकड़ी, मुंह खोला घोड़े का और छोड़ दिया पानी पीने के लिए! आया गंगा के पास!
"पानी!" बोला वो!
गंगा के बदन में, मन में हिलोरें उठी थीं!
सारी आशंकाएं मिल गयीं थीं धूल में!
पानी पिलाया गंगा ने उसे! उसने पानी पिया! और अपना चेहरा साफ़ किया! फिर हाथ पोंछे! गंगा! अंदर ही अंदर गल रही थी! कैसे बताये कि पूरा महीना, कैसे काटा! कैसे एक एक पल काटा! तिल तिल घुट घुट कर! कैसे एक एक लम्हे से लड़ी वो! आँखों में आंसू आये उसके! पोंछती तो पता चला जाता सभी को! खासतौर पर उस भूदेव को! इसीलिए, सर नीचे किये हुए, खड़ी रही!
"कैसी है गंगा तू?" पूछा उसने!
सैलाब टूटा! जज़्बातों का अब्र फूटा!
लिपट गयी उस भूदेव से गंगा!
भूदेव हैरान! माला हैरान!
"गंगा? मेरी गंगा? क्या बात है?" पूछा उसने!
उसको हटाये, तो न हटे!
गंगा का चेहरा उसने अपनी ऊँगली से टटोला! और उसकी चिबुक से उठाया ऊपर! गंगा की आँखों में आंसू दिखे!
''क्या बात है गंगा? मुझे बता?? बता मुझे?? बता??" घबरा सा गया वो!
गंगा न छोड़े उसे! सिसकी ले!
"किसी ने कुछ कहा तुझे?" पूछा उसने!
न बोले कुछ!
"किसी ने देखा तुझे?" पूछा उसने!
नहीं बोली एक भी शब्द!
"किसी ने कुछ कहा गंगा? गर्दन उतार दूंगा उसकी धड़ से, बता मुझे? बता गंगा?" बोला वो!
नहीं बोले! नहीं छोड़े!
"ऐसे नहीं, ऐसे नहीं कर गंगा! गंगा! तेरी आँखों में आंसू अच्छे नहीं लगते! नहीं गंगा!" बोला वो!
और लिपटा लिया उसको अपने भीतर!
रख दी गंगा के सर पर अपनी चिबुक!
"मुझे बता गंगा? बता क्या हुआ?" बोला वो!
गिड़गिड़ाते हुए! याचना सी करते हुए!
गंगा हटी! अपनी आँखें पोंछती, इस से पहले रोका उसको भूदेव ने! आँखें देखीं! डबडबायी हुई आँखें! अपने कपड़े से, पोंछ दिए आंसू!
"आ! मेरे साथ आ!" बोला भूदेव!
हाथ पकड़ कर, ले चला!
वहीँ अंधे कुँए के पास!
"बैठ, यहाँ बैठ" कपड़ा बिछाते हुए बोला वो, पेड़ के नीचे, उस कुँए की मुंडेर पर!
"अब बता, क्या हुआ?" पूछा उसने!
और अब मित्रगण!
सब बता दिया गंगा ने!
वो आवाज़ें!
वो फूल!
वो उदयचंद वाली घटना!
सब बता दिया!
भूदेव का माथा ठनका!
"मेरी आवाज़ में?" पूछा उसने!
गंगा ने हाँ में सर हिलाया!
मामला गंभीर था!
"आवाज़ यहीं आई थी?" पूछा उसने!
"हाँ, यहीं" बोली वो!
अपने वस्त्र के अंदर हाथ डाला उसने! और निकाल लिया खंजर!
"कौन है यहां?" पूछा उसने!
कोई आवाज़ नहीं!
"कौन है? सामने आ? इसको आज के बाद तंग किया, तो ऐसी जगह भेजूंगा कि वापिस लौटना नामुमकिन होगा!" बोला गरज के वो!
और तभी!
तभी कुछ फूल गिरे! गंगा के सामने! गंगा से टकराते हुए!!
क्रमशः