Re: वर्ष २०१२ जिला धौलपुर की एक घटना - thriller adventure st
Posted: 30 Oct 2015 08:15
शेष रात, टुकड़ों में काटी गंगा ने! कभी वो अंगूठी देखती, पहन लेती, उतार देती, हाथ में जकड़ लेती, आंसू आते तो पोंछती भी नहीं, बह जाएँ ज़्यादा से ज़्यादा, तो सुकून मिल जाता है, इसीलिए! खाना भी छूट सा ही चला था गंगा का, माँ जानती थी सबकुछ, लेकिन क्या करे वो, किसी तरह से, वो और माला, खिला ही देती थीं उसे खाना, गंगा, गंगा में जैसे विराम लगा था! स्थिर हो चुकी थी गंगा! भूदेव और भूदेव, बस! चिंता थी उसको भूदेव की! अब तो कोई अमीन के यहां से भी कोई नहीं आ रहा था, कम से कम मालूमात तो हो जाती उस से, पता तो चल जाता उस भूदेव के बारे में! कोई नहीं आया था अभी तक! अजीब से दोराहे पे आ खड़ी हुई थी गंगा! क्या करे और क्या न करे! किसको भेजे, किसको कहे, किस से खबर निकलवाए!
उस दोपहर में, गंगा तैयार हुई जाने के लिए कुँए! पानी लाना तो अब बस बहाना ही था उसके लिए, उसके दिल में जो आग जल रही थी, उसको कोई पानी नहीं बुझा सकता था, कोई तर्क नहीं था जो उस से अलग हो! वो तो सूख रही थी, सूखा पड़ा हुआ था उसके अंदर, अब बस वो भूदेव ही तर करे उसे तो कुछ हो! कुँए पहुंची दोनों, और गंगा, चली उस अंधे कुँए की तरफ, जैसे ही पहुंची, उसकी नज़र उस रास्ते पर पड़ी, कोई आ रहा था उस तरफ! आँखें चौड़ी हो गयीं! दिल धड़का सीने में! कलेजे में जैसे छेद हुआ, बदन में जुम्बिश दौड़ी! साँसें, बदहवास हुईं उसकी! वो उस अंधे कुँए से थोड़ा सा दूर थी, पलक झपका कर, देखा कुँए को उसने! और फिर सामने, क़दम खुद ही आगे बढ़ चले, होंठ सूख गए, होंठों के किनारे, सिकुड़ गए थे, दुपट्टा सर पर धरे देखे जा रही थी! उधर रास्ते के पार, माला भी यही देख रही थी, कुआँ छोड़ आई थी वो, और रास्ते पर अ खड़ी हुई थी, कोई बुक्कल मारे चेहरे पर आ रहा था! कौन है ये? क्या परीक्षा खत्म? क्या भूदेव है ये? कौन है??
और थोड़ी ही देर में उस घुड़सवार का घोड़ा धीमा हुआ, आ रहा था धीरे धीरे, बुक्कल हटाया उस घुड़सवार ने! नहीं, ये भूदेव नहीं था! गंगा के सीने में, बड़ा सा पत्थर पेट में गिरा! दिल, रो पड़ा! आँखें, अनुस से अब भीगें या तब, कुछ पता नहीं था! वो घुड़सवार आ गया था कुँए तक! होंठ चिपक गए गंगा के! गला बंद हो गया उसका! आंसू आने से आँखों में, सामने का दृश्य धुंधला हो चला! वो घुड़सवार गुजरा गंगा के सामने से, नज़र न मिली, फिर वो घुड़सवार कुँए की तरफ चला, माला वहीँ चली! वो उतरा, चेहरा पोंछा, और आया माला के पास,
"पानी पिला दो" बोला वो, और झुक के खड़ा हो गया!
गंगा को जैसे काठ सा मारा! पाँव चिपक गए ज़मीन से, भूदेव के वो शब्द, जो वो अक्सर बोला करता था 'पानी!' याद आ गए! कैसे पानी पिलाया करती थी वो उसे! वो कैसे पानी पिया करता था, सामने की ओर, गंगा की आँखों की झलक पाने के लिए! गंगा का नज़रें चुराना उस से, सब याद आ गया पल भर में!
माला ने पानी पिला दिया उसे!
"रोशन सेठ का गाँव यही है?" उसे घुड़सवार ने पूछा, सामने गाँव को देखते हुए,
"हाँ, यही है" बोली माला,
"अच्छा, इसी गाँव की है तू?" पूछा उसने,
"हाँ" बोली माला,
"अच्छा" बोला वो!
चेहरा और हाथ पोंछ लिए थे उसे, अब बस जाने को ही था,
"सुनो?" बोली माला,
"हाँ, बोलो?" वो रुका और बोला,
"क्या आप अमीन के यहाँ से आये हैं?" पूछा माला ने,
"हाँ, वहीँ से" बोला वो,
"क्या भूदेव वहीँ है?" पूछा माला ने,
वो आगे आया,
"भूदेव?" पूछा उसने,
"हाँ भूदेव" बोली माला,
"भूदेव का दो महीने से कुछ पता नहीं चला था, बाद में खबर हुई की उसकी फ़ालिज पड़ी है" बोला वो!
फ़ालिज?
जी में कड़वाहट घुल गयी माला के!
जी किया, पूछ ले पता भूदेव का!
"तू कैसे जानती है भूदेव को?" पूछा उसने,
"वो आया करता था इसी गाँव" बोली वो,
"हाँ, अच्छा, अब मैं हूँ उसकी जगह" बोला वो,
"अच्छा" बोली माला,
अब घुड़सवार आगे बढ़ा, घोड़े पर बैठा और हाँक दिया घोड़ा आगे! और माला, भागी गयी गंगा के पास!
"गंगा? गंगा?" बोली वो!
गंगा ने देखा उसको!
"भूदेव ज़िंदा है!" बोली वो!
कमल खिल उठे! सिकुड़े होंठ फ़ैल गए! हाँ, आंसू नहीं रोक पायी! लिपट गयी माला से, रोते रोते! बुरी तरह से रोई वो!
और जब चुप हुई, तो माला ने सब कुछ बता दिया, भूदेव को फ़ालिज पड़ी है, घर कहाँ है उसका, ये नहीं पूछा था माला ने!
गंगा भागी! उस अंधे कुँए की तरफ!
जा खड़ी हुई उधर ही!
"तेजराज? तेजराज?" चीखी वो!
और तेजराज प्रकट हुआ!
वो पोटली लिए हुए!
घबराया हुआ सा!
"तूने फ़ालिज मारी उन्हें?" बोली गंगा!
कुछ न बोला वो! आँखें नीची!
"बोल?" बोली माला,
कुछ न बोले!
"बोल?" चीखी वो!
तेजराज सहमा! थोड़ा दूर हुआ उस से!
"तू इसे प्रेम कहता है? मुझसे मेरा प्रेम छीनता है? छीन लेगा ऐसे?" बोली गंगा!
"गंगा?" बोला वो,
"मत ले अपने मुंह से मेरा नाम!" चिल्ला के बोली गंगा!
डर गया तेजराज!
"मत ले मेरा नाम!" फिर से बोली,
"नहीं लूँगा, अब कभी नहीं लूँगा" बोला धीरे से,
"तूने किया न ये सब?" पूछा गंगा ने!
"हाँ, किया, कितना दुःख है न तुझे उसके लिए, क्योंकि वो ज़िंदा है, इसलिए न? काश मेरे लिए भी तुझे दुःख हुआ होता, भले ही पल भर के लिए, लेकिन तू तो नफरत करती है मुझे, बहुत नफरत, जानता हूँ, ऐसे ही, मैं उस भूदेव से नफरत करता हूँ, वो मेरा दुश्मन है" बोला तेजराज!
गंगा को गुस्सा आया बहुत! बहुत गुस्सा! भाग पड़ी उसको नोंचने के लिए! जानते हुए भी की वो एक प्रेत है! वो आई तो तेजराज पीछे हुए! लेकिन डर गया था!
"लानत है तुझ पर!" बोली गंगा!
चुप तेजराज!
"लानत है तेरे प्रेम पर!" बोली गंगा!
अब सर उठाया उसने!
"न! ऐसा न बोल! तुझे बहुत प्रेम किया है मैंने, हाथ जोड़ता हूँ, न बोल ऐसा, न बोल, मैं टूटा हुआ हूँ, टूटा हुआ, मुझे बस तेरा प्रेम ही जोड़े बैठा है, सिर्फ तेरा प्रेम" बोला वो, गिड़गिड़ाते हुए!
गंगा गुस्से में थी, पीछे मुड़ी!
"रुक, रुक! रुक जा!" बोला वो!
रुक गयी!
"तूने मेरा नाम लिया आज, मुझे ख़ुशी हुई बहुत! ले, ये रख ले" बोला वो,
गंगा ने देखा उसको, गुस्से से!
"रख ले!" बोला वो!
गंगा फिर से पीछे चल पड़ी!
"सुन! सुन! रुक!" बोला वो!
रुक गयी!
फिर पीछे देखा!
"तूने अच्छा नहीं किया तेजराज, अच्छा नहीं किया" बोली वो,
"जानता हूँ गंगा, विवश हूँ मैं" बोला वो,
"कैसे विवश?" पूछा गंगा ने, पीछे लौटते हुए!
"तेरे प्रेम से विवश" बोला वो,
"झूठ बोलता है तू?" बोली वो,
"झूठ काहे बोलूंगा?" बोला वो,
"सब झूठ बोलता है तू" बोली गंगा, तुनक कर,
"माई की सौगंध, सच बोल रहा हूँ" सर पर हाथ धरे बोला वो!
गंगा लौट पड़ी!
दो भाव एक साथ कैसे संभाले उसने!
एक प्रेम! और एक नफरत!
वाह गंगा! तेरी कहानी भी अजीब है! बहुत अजीब!
गंगा लौटी, कुँए पर आई, सामने देखा, तो लौट रहा था वो घुड़सवार वहीँ!
वे पानी भरते भरते रुक गयीं!
उस दोपहर में, गंगा तैयार हुई जाने के लिए कुँए! पानी लाना तो अब बस बहाना ही था उसके लिए, उसके दिल में जो आग जल रही थी, उसको कोई पानी नहीं बुझा सकता था, कोई तर्क नहीं था जो उस से अलग हो! वो तो सूख रही थी, सूखा पड़ा हुआ था उसके अंदर, अब बस वो भूदेव ही तर करे उसे तो कुछ हो! कुँए पहुंची दोनों, और गंगा, चली उस अंधे कुँए की तरफ, जैसे ही पहुंची, उसकी नज़र उस रास्ते पर पड़ी, कोई आ रहा था उस तरफ! आँखें चौड़ी हो गयीं! दिल धड़का सीने में! कलेजे में जैसे छेद हुआ, बदन में जुम्बिश दौड़ी! साँसें, बदहवास हुईं उसकी! वो उस अंधे कुँए से थोड़ा सा दूर थी, पलक झपका कर, देखा कुँए को उसने! और फिर सामने, क़दम खुद ही आगे बढ़ चले, होंठ सूख गए, होंठों के किनारे, सिकुड़ गए थे, दुपट्टा सर पर धरे देखे जा रही थी! उधर रास्ते के पार, माला भी यही देख रही थी, कुआँ छोड़ आई थी वो, और रास्ते पर अ खड़ी हुई थी, कोई बुक्कल मारे चेहरे पर आ रहा था! कौन है ये? क्या परीक्षा खत्म? क्या भूदेव है ये? कौन है??
और थोड़ी ही देर में उस घुड़सवार का घोड़ा धीमा हुआ, आ रहा था धीरे धीरे, बुक्कल हटाया उस घुड़सवार ने! नहीं, ये भूदेव नहीं था! गंगा के सीने में, बड़ा सा पत्थर पेट में गिरा! दिल, रो पड़ा! आँखें, अनुस से अब भीगें या तब, कुछ पता नहीं था! वो घुड़सवार आ गया था कुँए तक! होंठ चिपक गए गंगा के! गला बंद हो गया उसका! आंसू आने से आँखों में, सामने का दृश्य धुंधला हो चला! वो घुड़सवार गुजरा गंगा के सामने से, नज़र न मिली, फिर वो घुड़सवार कुँए की तरफ चला, माला वहीँ चली! वो उतरा, चेहरा पोंछा, और आया माला के पास,
"पानी पिला दो" बोला वो, और झुक के खड़ा हो गया!
गंगा को जैसे काठ सा मारा! पाँव चिपक गए ज़मीन से, भूदेव के वो शब्द, जो वो अक्सर बोला करता था 'पानी!' याद आ गए! कैसे पानी पिलाया करती थी वो उसे! वो कैसे पानी पिया करता था, सामने की ओर, गंगा की आँखों की झलक पाने के लिए! गंगा का नज़रें चुराना उस से, सब याद आ गया पल भर में!
माला ने पानी पिला दिया उसे!
"रोशन सेठ का गाँव यही है?" उसे घुड़सवार ने पूछा, सामने गाँव को देखते हुए,
"हाँ, यही है" बोली माला,
"अच्छा, इसी गाँव की है तू?" पूछा उसने,
"हाँ" बोली माला,
"अच्छा" बोला वो!
चेहरा और हाथ पोंछ लिए थे उसे, अब बस जाने को ही था,
"सुनो?" बोली माला,
"हाँ, बोलो?" वो रुका और बोला,
"क्या आप अमीन के यहाँ से आये हैं?" पूछा माला ने,
"हाँ, वहीँ से" बोला वो,
"क्या भूदेव वहीँ है?" पूछा माला ने,
वो आगे आया,
"भूदेव?" पूछा उसने,
"हाँ भूदेव" बोली माला,
"भूदेव का दो महीने से कुछ पता नहीं चला था, बाद में खबर हुई की उसकी फ़ालिज पड़ी है" बोला वो!
फ़ालिज?
जी में कड़वाहट घुल गयी माला के!
जी किया, पूछ ले पता भूदेव का!
"तू कैसे जानती है भूदेव को?" पूछा उसने,
"वो आया करता था इसी गाँव" बोली वो,
"हाँ, अच्छा, अब मैं हूँ उसकी जगह" बोला वो,
"अच्छा" बोली माला,
अब घुड़सवार आगे बढ़ा, घोड़े पर बैठा और हाँक दिया घोड़ा आगे! और माला, भागी गयी गंगा के पास!
"गंगा? गंगा?" बोली वो!
गंगा ने देखा उसको!
"भूदेव ज़िंदा है!" बोली वो!
कमल खिल उठे! सिकुड़े होंठ फ़ैल गए! हाँ, आंसू नहीं रोक पायी! लिपट गयी माला से, रोते रोते! बुरी तरह से रोई वो!
और जब चुप हुई, तो माला ने सब कुछ बता दिया, भूदेव को फ़ालिज पड़ी है, घर कहाँ है उसका, ये नहीं पूछा था माला ने!
गंगा भागी! उस अंधे कुँए की तरफ!
जा खड़ी हुई उधर ही!
"तेजराज? तेजराज?" चीखी वो!
और तेजराज प्रकट हुआ!
वो पोटली लिए हुए!
घबराया हुआ सा!
"तूने फ़ालिज मारी उन्हें?" बोली गंगा!
कुछ न बोला वो! आँखें नीची!
"बोल?" बोली माला,
कुछ न बोले!
"बोल?" चीखी वो!
तेजराज सहमा! थोड़ा दूर हुआ उस से!
"तू इसे प्रेम कहता है? मुझसे मेरा प्रेम छीनता है? छीन लेगा ऐसे?" बोली गंगा!
"गंगा?" बोला वो,
"मत ले अपने मुंह से मेरा नाम!" चिल्ला के बोली गंगा!
डर गया तेजराज!
"मत ले मेरा नाम!" फिर से बोली,
"नहीं लूँगा, अब कभी नहीं लूँगा" बोला धीरे से,
"तूने किया न ये सब?" पूछा गंगा ने!
"हाँ, किया, कितना दुःख है न तुझे उसके लिए, क्योंकि वो ज़िंदा है, इसलिए न? काश मेरे लिए भी तुझे दुःख हुआ होता, भले ही पल भर के लिए, लेकिन तू तो नफरत करती है मुझे, बहुत नफरत, जानता हूँ, ऐसे ही, मैं उस भूदेव से नफरत करता हूँ, वो मेरा दुश्मन है" बोला तेजराज!
गंगा को गुस्सा आया बहुत! बहुत गुस्सा! भाग पड़ी उसको नोंचने के लिए! जानते हुए भी की वो एक प्रेत है! वो आई तो तेजराज पीछे हुए! लेकिन डर गया था!
"लानत है तुझ पर!" बोली गंगा!
चुप तेजराज!
"लानत है तेरे प्रेम पर!" बोली गंगा!
अब सर उठाया उसने!
"न! ऐसा न बोल! तुझे बहुत प्रेम किया है मैंने, हाथ जोड़ता हूँ, न बोल ऐसा, न बोल, मैं टूटा हुआ हूँ, टूटा हुआ, मुझे बस तेरा प्रेम ही जोड़े बैठा है, सिर्फ तेरा प्रेम" बोला वो, गिड़गिड़ाते हुए!
गंगा गुस्से में थी, पीछे मुड़ी!
"रुक, रुक! रुक जा!" बोला वो!
रुक गयी!
"तूने मेरा नाम लिया आज, मुझे ख़ुशी हुई बहुत! ले, ये रख ले" बोला वो,
गंगा ने देखा उसको, गुस्से से!
"रख ले!" बोला वो!
गंगा फिर से पीछे चल पड़ी!
"सुन! सुन! रुक!" बोला वो!
रुक गयी!
फिर पीछे देखा!
"तूने अच्छा नहीं किया तेजराज, अच्छा नहीं किया" बोली वो,
"जानता हूँ गंगा, विवश हूँ मैं" बोला वो,
"कैसे विवश?" पूछा गंगा ने, पीछे लौटते हुए!
"तेरे प्रेम से विवश" बोला वो,
"झूठ बोलता है तू?" बोली वो,
"झूठ काहे बोलूंगा?" बोला वो,
"सब झूठ बोलता है तू" बोली गंगा, तुनक कर,
"माई की सौगंध, सच बोल रहा हूँ" सर पर हाथ धरे बोला वो!
गंगा लौट पड़ी!
दो भाव एक साथ कैसे संभाले उसने!
एक प्रेम! और एक नफरत!
वाह गंगा! तेरी कहानी भी अजीब है! बहुत अजीब!
गंगा लौटी, कुँए पर आई, सामने देखा, तो लौट रहा था वो घुड़सवार वहीँ!
वे पानी भरते भरते रुक गयीं!