Re: वर्ष २०१२ जिला धौलपुर की एक घटना - thriller adventure st
Posted: 30 Oct 2015 08:16
मित्रगण!
कोई महीना बीतने को था! और गंगा का अब स्वास्थ्य जवाब देने लगा था, सोच सोच कर, उसके मस्तिष्क में भी शिथिलता आने लगी थी, अपने आप से ही बातें करने लगी थी! माला से कभी बोली, न बोली, जमुना को झिड़क दिया करती थी, माँ और बाप से कन्नी काट लेती थी! कुँए पर भी आना जाना बंद सा ही हो चला था! अपने आप में मग्न सी रहने लगी थी! माला कभी बात करने की कोशिश करती और माला को घूरती रहती! न बात करती! न पहनने का होश, न अपना ध्यान रखने का होश! बेसुध रहने लगी थी! बुरा हाल हो गया था उस बेचारी गंगा का! वो निर्मल गंगा शांत और स्थिर थी, प्रवाह कुंद हो चला था! बीच बीच में, यादों और आशंकाओं के टापू दिखाई देने लगे थे! ये हाल हुआ था उस गंगा का!
एक रात,
गंगा अपनी यादों के धागों में उलझी हुई थी! उसको पहला दिन याद आया, जब दो घुड़सवार आये थे! और फिर आखिरी, जब उसका पाँव टूट गया था, वो दुपट्टा बाँधा था उसने! उसको बिठाया था उसके घोड़े पर उन्होंने! वो चला गया था ये कह कर कि वो आएगा जल्दी! लेकिन तीन महीने बीत चुके थे! नहीं आया था वो वापिस! और अब, किस हाल में होगा वो! बहन का ब्याह कर पाया या नहीं! भूदेव! बहुत याद आया उसको! उसकी आवाज़! सब याद आ गयी उसे! और रुलाई फूट पड़ी उसकी! कराह निकली थी, वही कराह! और उसी कराह में, सुध खो बैठी! और बेहोश हो गयी! झूल गए दोनों हाथ बिस्तर से नीचे!
और तब!
कोई आया कमरे में!
"गंगा?" बोला कोई!
गंगा बेहोश!
"गंगा?" बोला कोई फिर से!
गंगा न बोली कुछ!
"गंगा? ओ गंगा?" बोला कोई!
गंगा बेहोश थी! कुछ बोल न सकी!
"चल जाग!" बोला कोई!
"हूँ?" बोली वो!
बेहोशी में ही! जाग गयी थी, लेकिन अंतर्चेतना में ही!
"दुखी है?" पूछा किसी ने!
न बोली कुछ! बोले भी तो क्या?
"बता?" पूछा किसी ने!
न बोली! बस एक सुबकी!
"गंगा?" बोला कोई!
"हूँ?" वो बोली!
"तुझे तेजराज पसंद नहीं?" पूछा किसी ने!
"नहीं" बोली वो!
"कौन पसंद है?" पूछा उस से!
आंसू टपक गए उसके!
"वो, भूदेव?" पूछा किसी ने!
होंठ बंद कर, रुलाई रोकी गंगा ने!
"अच्छा!" बोला कोई!
"गंगा?" बोला कोई!
न बोली कुछ!
"कुछ छोड़ के जा रहा हूँ मैं, देख लेना" बोला वो!
और तभी आँख खुली गंगा की! उसके पेट पर, कुछ रखा था! गंगा झट से उठी! वो जो रखा था, उठाया, ये कपड़ा था, देखा उसे गौर से! ये! ये तो वही दुपट्टा है! वही! जो बाँधा था उस भूदेव के पाँव में उसने! उसने उठाया उसे, लगा लिया छाती से अपनी, और आंसू बह चले! तभी कुछ ध्यान आया! कौन आया था??
खिड़की की तरफ भागी वो!!
पर्दा पूरा हटा दिया खिड़की से!
सामने देखा!! सामने ही, खड़ा था वो तेजराज! मुस्कुराता हुआ! आया खिड़की की तरफ! और हुआ खड़ा वहीँ!
"गंगा!" बोला वो!
गंगा चुप! चुप ही देखे उसे!
"तुझे हँसते नहीं देखा बहुत दिनों से! हंस के दिखा ज़रा!" बोला वो!
कहाँ से हँसे! कोई चाल तो नहीं ये?
"गंगा? कभी तो मेरी बात माना कर?" बोला वो!
नहीं मानी!
पर्दा सरका दिया उसने!
"गंगा?" बोला वो!
नहीं सुना!
"ओ गंगा?" बोला फिर से वो!
नहीं सुना!
"सुन न?" बोला वो!
"गंगा! ये रख ले!" बोला वो!
गंगा ने पर्दा हटाया! देखा, तो वही पोटली!
"रख ले! मान जा!" बोला वो!
नहीं देखा उस पोटली को गंगा ने!
"इतनी ज़िद्दी न बन गंगा?" बोला वो!
ज़िद्दी तो बहुत थी गंगा!
"मान जा?" बोला वो!
नहीं मानी!
"अछा, चल माफ़ी मांगता हूँ मैं! उस दिन गुस्सा हुआ तुझसे! ले कान पकड़ लिए!" बोला वो!
गंगा ने देखा!
कान पकड़े, उट्ठक-बैठक लगा रहा था वो!
"बस? अब ठीक? मान ली गलती!" बोला वो!
नहीं रिझा सका वो!
गंगा ऐसे नहीं रीझती!
"गंगा?" बोला वो!
"मान ले, रख ले!" बोला वो!
नहीं मानी फिर से!
"ये तेरा ही दुपट्टा है न?" बोला वो,
गंगा ने हाथ में लिए दुपट्टे को देखा! और लगा लिया छाती से!
"मैं लाया ये! तेरा दुपट्टा!" बोला वो!
ओह! गंगा का दिल दरका!! कांच पर खरोंच पड़ीं! भाग ली बाहर, जहां खड़ा था वो! साँसें थामीं!!
"तू वहीँ से आया है?" पूछा गंगा ने!
"हाँ!" बोला वो!"
"कैसे हैं वो?" पूछा गंगा ने! आंसू भरी आँखों और याचना के स्वर से! जो न भी पिघले, तो भी पिघल जाए! ऐसा स्वर!
"नहीं पता" बोला वो! हँसते हुए!
टूट गयी! बेचारी! बैठ गयी नीचे! लेकिन दुपट्टा छाती से लगाये रखा!
रोने लगी!
"न, गंगा न! रो मत!" बोला वो!
गंगा रोये जाए!
"न! मान मेरी! मान, मत रो!" बोला वो!
और आंसू बह निकले गंगा के!
"न! न गंगा न!" बोला वो! खुद भी रोने के स्वर में बोला!
गंगा की आँखें बहाती रहीं पानी!!! लगातार!
खड़ा हुआ वो!
गुस्से में पाँव पटके!
"गंगा! मैंने बहुत रुलाया तुझे! बाहर रुलाया! माफ़ कर दे! माफ़ कर दे! गंगा! माफ़ कर दे!" गिड़गिड़ा गया वो!
गंगा ने आंसू पोंछे! उठी! और जाने लगी!
"रुक? रुक गंगा?" बोला वो!
"मेरी एक बात मानेगी?" बोला वो!
गंगा चुप देखे उसे!
"मानेगी?" पूछा उस से!
गंगा चुप!
"बोल? मानेगी?" बोला वो!
नहीं बोली कुछ!
"आँखें बंद कर अपनी?" बोला वो!
नहीं कीं आँखें बंद!
"कर न?" नहीं की!
"एक बार, गंगा! एक बार!" बोला वो!
नहीं कीं! और जाने लगी!
"मान जा! मान जा गंगा! मान जा! मुझे मत तड़पा! मान जा!" गिड़गिड़ाया वो!
नहीं मानी! और चली गयी वापिस! हाथ मलते हुए, वहीँ रह गया वो!
कोई महीना बीतने को था! और गंगा का अब स्वास्थ्य जवाब देने लगा था, सोच सोच कर, उसके मस्तिष्क में भी शिथिलता आने लगी थी, अपने आप से ही बातें करने लगी थी! माला से कभी बोली, न बोली, जमुना को झिड़क दिया करती थी, माँ और बाप से कन्नी काट लेती थी! कुँए पर भी आना जाना बंद सा ही हो चला था! अपने आप में मग्न सी रहने लगी थी! माला कभी बात करने की कोशिश करती और माला को घूरती रहती! न बात करती! न पहनने का होश, न अपना ध्यान रखने का होश! बेसुध रहने लगी थी! बुरा हाल हो गया था उस बेचारी गंगा का! वो निर्मल गंगा शांत और स्थिर थी, प्रवाह कुंद हो चला था! बीच बीच में, यादों और आशंकाओं के टापू दिखाई देने लगे थे! ये हाल हुआ था उस गंगा का!
एक रात,
गंगा अपनी यादों के धागों में उलझी हुई थी! उसको पहला दिन याद आया, जब दो घुड़सवार आये थे! और फिर आखिरी, जब उसका पाँव टूट गया था, वो दुपट्टा बाँधा था उसने! उसको बिठाया था उसके घोड़े पर उन्होंने! वो चला गया था ये कह कर कि वो आएगा जल्दी! लेकिन तीन महीने बीत चुके थे! नहीं आया था वो वापिस! और अब, किस हाल में होगा वो! बहन का ब्याह कर पाया या नहीं! भूदेव! बहुत याद आया उसको! उसकी आवाज़! सब याद आ गयी उसे! और रुलाई फूट पड़ी उसकी! कराह निकली थी, वही कराह! और उसी कराह में, सुध खो बैठी! और बेहोश हो गयी! झूल गए दोनों हाथ बिस्तर से नीचे!
और तब!
कोई आया कमरे में!
"गंगा?" बोला कोई!
गंगा बेहोश!
"गंगा?" बोला कोई फिर से!
गंगा न बोली कुछ!
"गंगा? ओ गंगा?" बोला कोई!
गंगा बेहोश थी! कुछ बोल न सकी!
"चल जाग!" बोला कोई!
"हूँ?" बोली वो!
बेहोशी में ही! जाग गयी थी, लेकिन अंतर्चेतना में ही!
"दुखी है?" पूछा किसी ने!
न बोली कुछ! बोले भी तो क्या?
"बता?" पूछा किसी ने!
न बोली! बस एक सुबकी!
"गंगा?" बोला कोई!
"हूँ?" वो बोली!
"तुझे तेजराज पसंद नहीं?" पूछा किसी ने!
"नहीं" बोली वो!
"कौन पसंद है?" पूछा उस से!
आंसू टपक गए उसके!
"वो, भूदेव?" पूछा किसी ने!
होंठ बंद कर, रुलाई रोकी गंगा ने!
"अच्छा!" बोला कोई!
"गंगा?" बोला कोई!
न बोली कुछ!
"कुछ छोड़ के जा रहा हूँ मैं, देख लेना" बोला वो!
और तभी आँख खुली गंगा की! उसके पेट पर, कुछ रखा था! गंगा झट से उठी! वो जो रखा था, उठाया, ये कपड़ा था, देखा उसे गौर से! ये! ये तो वही दुपट्टा है! वही! जो बाँधा था उस भूदेव के पाँव में उसने! उसने उठाया उसे, लगा लिया छाती से अपनी, और आंसू बह चले! तभी कुछ ध्यान आया! कौन आया था??
खिड़की की तरफ भागी वो!!
पर्दा पूरा हटा दिया खिड़की से!
सामने देखा!! सामने ही, खड़ा था वो तेजराज! मुस्कुराता हुआ! आया खिड़की की तरफ! और हुआ खड़ा वहीँ!
"गंगा!" बोला वो!
गंगा चुप! चुप ही देखे उसे!
"तुझे हँसते नहीं देखा बहुत दिनों से! हंस के दिखा ज़रा!" बोला वो!
कहाँ से हँसे! कोई चाल तो नहीं ये?
"गंगा? कभी तो मेरी बात माना कर?" बोला वो!
नहीं मानी!
पर्दा सरका दिया उसने!
"गंगा?" बोला वो!
नहीं सुना!
"ओ गंगा?" बोला फिर से वो!
नहीं सुना!
"सुन न?" बोला वो!
"गंगा! ये रख ले!" बोला वो!
गंगा ने पर्दा हटाया! देखा, तो वही पोटली!
"रख ले! मान जा!" बोला वो!
नहीं देखा उस पोटली को गंगा ने!
"इतनी ज़िद्दी न बन गंगा?" बोला वो!
ज़िद्दी तो बहुत थी गंगा!
"मान जा?" बोला वो!
नहीं मानी!
"अछा, चल माफ़ी मांगता हूँ मैं! उस दिन गुस्सा हुआ तुझसे! ले कान पकड़ लिए!" बोला वो!
गंगा ने देखा!
कान पकड़े, उट्ठक-बैठक लगा रहा था वो!
"बस? अब ठीक? मान ली गलती!" बोला वो!
नहीं रिझा सका वो!
गंगा ऐसे नहीं रीझती!
"गंगा?" बोला वो!
"मान ले, रख ले!" बोला वो!
नहीं मानी फिर से!
"ये तेरा ही दुपट्टा है न?" बोला वो,
गंगा ने हाथ में लिए दुपट्टे को देखा! और लगा लिया छाती से!
"मैं लाया ये! तेरा दुपट्टा!" बोला वो!
ओह! गंगा का दिल दरका!! कांच पर खरोंच पड़ीं! भाग ली बाहर, जहां खड़ा था वो! साँसें थामीं!!
"तू वहीँ से आया है?" पूछा गंगा ने!
"हाँ!" बोला वो!"
"कैसे हैं वो?" पूछा गंगा ने! आंसू भरी आँखों और याचना के स्वर से! जो न भी पिघले, तो भी पिघल जाए! ऐसा स्वर!
"नहीं पता" बोला वो! हँसते हुए!
टूट गयी! बेचारी! बैठ गयी नीचे! लेकिन दुपट्टा छाती से लगाये रखा!
रोने लगी!
"न, गंगा न! रो मत!" बोला वो!
गंगा रोये जाए!
"न! मान मेरी! मान, मत रो!" बोला वो!
और आंसू बह निकले गंगा के!
"न! न गंगा न!" बोला वो! खुद भी रोने के स्वर में बोला!
गंगा की आँखें बहाती रहीं पानी!!! लगातार!
खड़ा हुआ वो!
गुस्से में पाँव पटके!
"गंगा! मैंने बहुत रुलाया तुझे! बाहर रुलाया! माफ़ कर दे! माफ़ कर दे! गंगा! माफ़ कर दे!" गिड़गिड़ा गया वो!
गंगा ने आंसू पोंछे! उठी! और जाने लगी!
"रुक? रुक गंगा?" बोला वो!
"मेरी एक बात मानेगी?" बोला वो!
गंगा चुप देखे उसे!
"मानेगी?" पूछा उस से!
गंगा चुप!
"बोल? मानेगी?" बोला वो!
नहीं बोली कुछ!
"आँखें बंद कर अपनी?" बोला वो!
नहीं कीं आँखें बंद!
"कर न?" नहीं की!
"एक बार, गंगा! एक बार!" बोला वो!
नहीं कीं! और जाने लगी!
"मान जा! मान जा गंगा! मान जा! मुझे मत तड़पा! मान जा!" गिड़गिड़ाया वो!
नहीं मानी! और चली गयी वापिस! हाथ मलते हुए, वहीँ रह गया वो!