Re: वर्ष २०१२, नॉएडा की एक घटना (सुरभि और जिन्न फ़ैज़ान का इ
Posted: 24 Dec 2015 21:22
वो चली तेज! क़दम तेज हो चले थे उसके!
फ़ैज़ान, नज़र में ही बना हुआ था उसके!
लेकिन, जितना भी वो आगे बढ़ती, लगता उसे कि,
उतना ही पीछे खिसक गयी है वो!
वो दौड़ पड़ी!
तेज, बहुत तेज!
लेकिन नहीं!
वो दूरी कम न हुई!
फ़ैज़ान, पूरब की ओर मुंह कर,
हाथ बांधे, जैसे घूरे जा रहा था कहीं!
वो फिर से भागी!
कभी ज़मीन को देखती,
और कभी फ़ैज़ान को!
हांफने लगी थी वो!
लेकिन रुकी नहीं! भागती रही!
भागती रही! और थक गयी!
रुकना पड़ा! क्या करती!
दिल, दिल तो पहले से ही रफ़्तार पकड़े था,
अब तो जैसे बेलग़ाम हो गया!
अपनी धड़कन,
कानों में सुनाई पड़े उसे!
हलक़ सूख चला,
थूक निगलना भारी पड़ने लगा!
मुंह से, हांफने की आवाज़ें आने लगीं!
नथुने, फड़कने लगे थे!
अब घबराई वो! घबरा गयी थी!
कि फ़ैज़ान तक, वो क्यों नहीं पहुँच रही?
और फ़ैज़ान?
जैसे पत्थर की मूर्ती बन गया था!
माशा भर भी, नहीं हिल रहा था!
क्या करती?
फिर से भागी!
तेज, और तेज!
हाँफते हुए!
दौड़ते हुए!
बदन का संतुलन गड़बड़ाया!
और धम्म से गिरी घास पर!
कमाल था!
तब भी न देखा फ़ैज़ान ने?
वो उठी, कोशिश की,
टांगें, कांपने लगी थीं!
अब बसकी न था दौड़ पाना, नहीं तो फिर गिर जाती!
आँखों में, नमी सी आई!
सांसें, बेकाबू तो थीं ही पहले,
अब साथ छोड़ने लगीं!
और तब!
"फ़ैज़ान!!" चिल्ला के बोली वो,
बैठे बैठे ही!
"फ़ैज़ान?" फिर से चिल्लाई!
लेकिन फ़ैज़ान?
न सुने!
न देखे!
कोई असर ही न पड़े!
जो आवाज़, पहले ज़ोर से लगाई थी,
उसमे ज़ोर था!
और धीरे धीरे वो ज़ोर, अब, कमज़ोर पड़ने लगा था!
और एक वक़्त ऐसा भी आया,
कि मुंह से, 'फ़ैज़ान' निकला ही नहीं!
बस दिल ही दिल में, उसका नाम ले, चीखती रही!
आंसू, निकल आये उसके!
झिलमिला गया सारा नज़रा वहां का!
सिसकियाँ फूट पड़ीं!
अलफ़ाज़, 'फ़ैज़ान' टूट-टूट कर निकलने लगा मुंह से!
रोती जाये, और दिल ही दिल में,
चीखती जाए उसका नाम!
"फ़ैज़ान? हमें मुहब्बत है आपसे! आप देखें हमें! हम पुकार रहे हैं आपको! हमसे नहीं रहा जाता अब! हमें देखो! देखो हमें! हम, यहां रो रहे हैं! आपने क़ौल लिया था हमें न रुलाने का! देखो हमें, इतना तो हम, कभी न रोये! फ़ैज़ान, देखो हमें! देखो! फ़ैज़ान! देखो हमने!" बोली दिल में,
और रुलाई फूटी!
और फ़ैज़ान, जस का तस, वहीँ खड़ा रहा!
रोते रोते, सर नीचे जा लगा!
और तभी, किसी के पाँव दिखे उसे,
उसने सर उठाया अपना,
ह'ईज़ा और अशुफ़ा थीं वो,
झुकी एक साथ, आंसू पोंछे उसके,
गल से लगाया उसे,
खुद में नहीं थी आज सुरभि!
उनसे लग, रो पड़ी, रहा सहा भी न शेष बचा आँखों का पानी!
"वो, फ़ैज़ान, नहीं सुन रहे हमें, नहीं देख रहे!" बोली वो सिसकियाँ लेते लेते!
एक शिक़ायत भरा लहजा!
एक इल्तज़ा से भरा लहजा!
"सुरभि?" बोली ह'ईज़ा!
देखा ह'ईज़ा को उसने, बेखुदी में,
"जाओ! जाओ अपने फ़ैज़ान के पास! जाओ!" बोली ह'ईज़ा!
अपना फ़ैज़ान!
दौड़ पड़ी वो!
और तब, दूरी कम होने लगी!
फ़ैज़ान घूमा!
सुरभि को देखा आते हुए,
लपक कर आगे बढ़ा,
बाजू खुल गए उसके,
और तब! तब अपनी मज़बूत बाजुओं में, जकड़ लिया सुरभि को!
सुरभि फिर से रोये!
फ़ैज़ान के बदन से, बेल की तरह चिपके!
फ़ैज़ान के कंधे से भी नीची थी वो,
फ़ैज़ान, उसको बांधे खड़ा था!
आँखें बंद किया!
चार बरस पहले का कच्चा फल, आज पका था!
ह'ईज़ा और अशुफ़ा, चली गयीं थीं!
"अब न रोओ सुरभि, हमारी जान जाती है...." बोला वो,
न माने सुरभि!
उसकी जान लेने पर आमादा हो!
वो बार बार समझाये, बुझाए!
न माने, रोये वो!
चिपके, कस दे उसे!
और नज़ारा बदला!
ये एक खूबसूरत पहाड़ी थी!
झरने बह रहे थे!
ख़ुश्बू ही ख़ुश्बू फैली थी!
तितलियाँ उड़ रही थीं!
और तब,
तब हट सुरभि उसके सीने से!
मुस्कुराया फ़ैज़ान!
"सुरभि!" बोला वो,
आँखों में झाँका, गहराई तक!
"हमारी सुरभि!" बोला वो,
और न रोक पाया अपने आपको!
लगा लिया गले उसे!
और जब हटाया,
तो फिर से देखा उसे!
"हम एहसानमंद हुए आपके सुरभि!" बोला वो,
सुरभि सुने सब!
कहे कुछ नहीं!
"आपकी मुहब्बत के हम, एहसानमंद हो गए आज!" बोला वो,
और सुरभि का हाथ पकड़ा,
हाथ चूम लिया सुरभि का!
सुरभि के बदन में अंगार फूट पड़े!
आँखें बंद हुईं,
खुलीं तब,
जब फ़ैज़ान ने,
उसका माथा चूमा!
"सुरभि!" बोला वो,
सुरभि ने देखा उसे!
"हमने इंतज़ार किया आपका!" बोला वो,
सुरभि ज़रा सा मुस्कुराई!
इतना ही बहुत था फ़ैज़ान के लिए!
"आइये सुरभि!" बोला वो,
और उसको साथ ले,
जैसे ही पलटा,
सामने, एक खूबसूरत इमारत थी!
बेहतरीन और चमकीले नीले रंग से,
त'आमीर हुई थी!
धूप पड़ थी उस पर,
और आसपास,
सारा और सबकुछ, नीले रंग से झिलमिला रहा था!
"आइये!" बोला वो,
और ले चला उसको संग अपने,
उसी चाल से, जिस चाल से सुरभि चल रही थी!
फ़ैज़ान, नज़र में ही बना हुआ था उसके!
लेकिन, जितना भी वो आगे बढ़ती, लगता उसे कि,
उतना ही पीछे खिसक गयी है वो!
वो दौड़ पड़ी!
तेज, बहुत तेज!
लेकिन नहीं!
वो दूरी कम न हुई!
फ़ैज़ान, पूरब की ओर मुंह कर,
हाथ बांधे, जैसे घूरे जा रहा था कहीं!
वो फिर से भागी!
कभी ज़मीन को देखती,
और कभी फ़ैज़ान को!
हांफने लगी थी वो!
लेकिन रुकी नहीं! भागती रही!
भागती रही! और थक गयी!
रुकना पड़ा! क्या करती!
दिल, दिल तो पहले से ही रफ़्तार पकड़े था,
अब तो जैसे बेलग़ाम हो गया!
अपनी धड़कन,
कानों में सुनाई पड़े उसे!
हलक़ सूख चला,
थूक निगलना भारी पड़ने लगा!
मुंह से, हांफने की आवाज़ें आने लगीं!
नथुने, फड़कने लगे थे!
अब घबराई वो! घबरा गयी थी!
कि फ़ैज़ान तक, वो क्यों नहीं पहुँच रही?
और फ़ैज़ान?
जैसे पत्थर की मूर्ती बन गया था!
माशा भर भी, नहीं हिल रहा था!
क्या करती?
फिर से भागी!
तेज, और तेज!
हाँफते हुए!
दौड़ते हुए!
बदन का संतुलन गड़बड़ाया!
और धम्म से गिरी घास पर!
कमाल था!
तब भी न देखा फ़ैज़ान ने?
वो उठी, कोशिश की,
टांगें, कांपने लगी थीं!
अब बसकी न था दौड़ पाना, नहीं तो फिर गिर जाती!
आँखों में, नमी सी आई!
सांसें, बेकाबू तो थीं ही पहले,
अब साथ छोड़ने लगीं!
और तब!
"फ़ैज़ान!!" चिल्ला के बोली वो,
बैठे बैठे ही!
"फ़ैज़ान?" फिर से चिल्लाई!
लेकिन फ़ैज़ान?
न सुने!
न देखे!
कोई असर ही न पड़े!
जो आवाज़, पहले ज़ोर से लगाई थी,
उसमे ज़ोर था!
और धीरे धीरे वो ज़ोर, अब, कमज़ोर पड़ने लगा था!
और एक वक़्त ऐसा भी आया,
कि मुंह से, 'फ़ैज़ान' निकला ही नहीं!
बस दिल ही दिल में, उसका नाम ले, चीखती रही!
आंसू, निकल आये उसके!
झिलमिला गया सारा नज़रा वहां का!
सिसकियाँ फूट पड़ीं!
अलफ़ाज़, 'फ़ैज़ान' टूट-टूट कर निकलने लगा मुंह से!
रोती जाये, और दिल ही दिल में,
चीखती जाए उसका नाम!
"फ़ैज़ान? हमें मुहब्बत है आपसे! आप देखें हमें! हम पुकार रहे हैं आपको! हमसे नहीं रहा जाता अब! हमें देखो! देखो हमें! हम, यहां रो रहे हैं! आपने क़ौल लिया था हमें न रुलाने का! देखो हमें, इतना तो हम, कभी न रोये! फ़ैज़ान, देखो हमें! देखो! फ़ैज़ान! देखो हमने!" बोली दिल में,
और रुलाई फूटी!
और फ़ैज़ान, जस का तस, वहीँ खड़ा रहा!
रोते रोते, सर नीचे जा लगा!
और तभी, किसी के पाँव दिखे उसे,
उसने सर उठाया अपना,
ह'ईज़ा और अशुफ़ा थीं वो,
झुकी एक साथ, आंसू पोंछे उसके,
गल से लगाया उसे,
खुद में नहीं थी आज सुरभि!
उनसे लग, रो पड़ी, रहा सहा भी न शेष बचा आँखों का पानी!
"वो, फ़ैज़ान, नहीं सुन रहे हमें, नहीं देख रहे!" बोली वो सिसकियाँ लेते लेते!
एक शिक़ायत भरा लहजा!
एक इल्तज़ा से भरा लहजा!
"सुरभि?" बोली ह'ईज़ा!
देखा ह'ईज़ा को उसने, बेखुदी में,
"जाओ! जाओ अपने फ़ैज़ान के पास! जाओ!" बोली ह'ईज़ा!
अपना फ़ैज़ान!
दौड़ पड़ी वो!
और तब, दूरी कम होने लगी!
फ़ैज़ान घूमा!
सुरभि को देखा आते हुए,
लपक कर आगे बढ़ा,
बाजू खुल गए उसके,
और तब! तब अपनी मज़बूत बाजुओं में, जकड़ लिया सुरभि को!
सुरभि फिर से रोये!
फ़ैज़ान के बदन से, बेल की तरह चिपके!
फ़ैज़ान के कंधे से भी नीची थी वो,
फ़ैज़ान, उसको बांधे खड़ा था!
आँखें बंद किया!
चार बरस पहले का कच्चा फल, आज पका था!
ह'ईज़ा और अशुफ़ा, चली गयीं थीं!
"अब न रोओ सुरभि, हमारी जान जाती है...." बोला वो,
न माने सुरभि!
उसकी जान लेने पर आमादा हो!
वो बार बार समझाये, बुझाए!
न माने, रोये वो!
चिपके, कस दे उसे!
और नज़ारा बदला!
ये एक खूबसूरत पहाड़ी थी!
झरने बह रहे थे!
ख़ुश्बू ही ख़ुश्बू फैली थी!
तितलियाँ उड़ रही थीं!
और तब,
तब हट सुरभि उसके सीने से!
मुस्कुराया फ़ैज़ान!
"सुरभि!" बोला वो,
आँखों में झाँका, गहराई तक!
"हमारी सुरभि!" बोला वो,
और न रोक पाया अपने आपको!
लगा लिया गले उसे!
और जब हटाया,
तो फिर से देखा उसे!
"हम एहसानमंद हुए आपके सुरभि!" बोला वो,
सुरभि सुने सब!
कहे कुछ नहीं!
"आपकी मुहब्बत के हम, एहसानमंद हो गए आज!" बोला वो,
और सुरभि का हाथ पकड़ा,
हाथ चूम लिया सुरभि का!
सुरभि के बदन में अंगार फूट पड़े!
आँखें बंद हुईं,
खुलीं तब,
जब फ़ैज़ान ने,
उसका माथा चूमा!
"सुरभि!" बोला वो,
सुरभि ने देखा उसे!
"हमने इंतज़ार किया आपका!" बोला वो,
सुरभि ज़रा सा मुस्कुराई!
इतना ही बहुत था फ़ैज़ान के लिए!
"आइये सुरभि!" बोला वो,
और उसको साथ ले,
जैसे ही पलटा,
सामने, एक खूबसूरत इमारत थी!
बेहतरीन और चमकीले नीले रंग से,
त'आमीर हुई थी!
धूप पड़ थी उस पर,
और आसपास,
सारा और सबकुछ, नीले रंग से झिलमिला रहा था!
"आइये!" बोला वो,
और ले चला उसको संग अपने,
उसी चाल से, जिस चाल से सुरभि चल रही थी!