Re: कानपुर की एक घटना
Posted: 15 Dec 2014 17:04
मै और शर्मा जी आराम करने लगे और आगे कि योजना बनाने लगे, जो वस्तुएं हम लाये थे अपने साथ अपने बैग से निकाल लीं, और तैयार कर लीं, और फिर हम दोनों ही सो गए, करीब ७ बजे मेरी नींद खुली, शर्मा जी पहले ही जाग चुके थे, वो ध्यान मुद्रा में बैठे थे और मंत्रोच्चारण कर रहे थे, मै भी अपना मुंह धोने बाथरूम गया और वापिस आया, अपनी अभिमंत्रित मालाएं धारण कि कमरबंद बाँधा और अपने को और शर्मा जी को स्व-रक्षा मंत्र से बाँधा, मुझे ये काम रात ९ बजे से शुरू करना था, ८ बज चुके थे, मैंने रमेश जी के घर कि दहलीज को मन्त्रों से बाँधा,ताकि कोई भी बुरी ताक़त न तो वहाँ से बाहर ही जाये और न ही कोई अन्दर आये, मैंने उनके घर के चारों कोने मन्त्रों से बांधे, अब समय हो चुका था कि शिवानी के कमरे में जाया जाए, मै एक बार फिर से उनके कमरे में आया और रमेश जी, उनकी पत्नी और बेटे को कहा कि आप में से कोई भी बाहर न निकले जब तक कि मै न कहूँ, इतना कहने के बाद में कमरे से बाहर निकला और शर्मा जी के साथ शिवानी कि कमरे कि तरफ बढा, शिवानी का दरवाज़ा आधा खुला था, मैंने दरवाज़ा खटखटाया, अन्दर से आवाज़ आई "कौन"
मै वहीँ खड़े-खड़े बोला,"बाहर आके देखले के कौन!"
"ठीक है, मै आता हूँ, मै ही आता हूँ, शिवानी ने कहा,
जैसे ही शिवानी ने मुझे देखा मैंने अपने साथ लायी हुई भस्म उसके जिस्म पे दे मारी, उसके होश उड़ गए, उसने बार-बार चारों तरफ देखा, और लम्बी-लम्बी साँसें लेने लगी,
"आजा तू भी आजा, तुझे भी देख लेता हूँ मै, तू आ तो गया है लेकिन अबी तू यहाँ से जिंदा नहीं जाएगा!" उसने बिस्तर पर चढ़के ऐसा कहा,
मै जोर से हंसा, और बोला,
"तेरे जैसे मैंने कई अपने यहाँ पाल रखे हैं, अब तेरी बारी है, तुझे भी २५ साल तक ज़मीन में दफ़न करके रखूँगा" मैंने अपना पाँव उसके बिस्तर पे रख के कहा,
"वाह, बड़ी हिम्मत है तेरे में, चल एक काम कर, तू यहाँ से चला जा , क्यूँ बेमौत मरने चला आया है तू दिल्ली से यहाँ" उसने अपना एक हाथ अपने दुसरे हाथ में मारते हुए ऐसा कहा.....
"मै तो जाऊँगा ही, लेकिन तेरे को भी साथ लेके जाऊँगा, क्यूँ नौकरी नहीं करेगा मेरी? मैंने हँसते हुए ऐसा कहा,
"तो सुन, तू मुझे जानता नहीं है, मेरा नाम अशफाक है, मै बहेड़ी का रहने वाला हूँ, जिन्न हूँ, कद्दावर जिन्न. इसीलिए कह रहा हूँ, कि चला जा यहाँ से, क्यूँ मरने आ गया है यहाँ!" वो हँसते हुए बोली,
"तो तू भी सुन, मैंने तेरे को बड़े प्यार से कहा, लेकिन लातों के भूत बातों से नहीं मानते, देख मै अब भी कह रहा हूँ, इसको छोड़ दे, नहीं तो मै तुझे यहीं भस्म कर दूँगा" मैंने ये बात बहुत तेज़ लहजे में कही थी,
"क्या सोचा तूने, जा रहा है या करेगा २-२ हाथ!"
मै हंस के बोला,
अब शिवानी ने आँखें बंद कि और तेज़ तेज़ अरबी आयतें पढने लग गयी, मैंने शर्मा जी को कहा, कि वो बैग में से वो राख मुझे दें, जो मैंने तैयार कि थी, शर्मा जी ने वो राख कि पोटली मेरे हाथ में थमा दी, मैंने मंत्र पढ़ते हुए वो राख अपने हाथ पे निकाली और शिवानी कि तरफ बढा, शिवानी ठिठक गयी और बिस्तर पे पीछे कि ओर हो गयी, साफ़ था वो इस राख से डर गयी है, वो मेरे हाथ कि तरफ देखती रही घूर घूर के,
"बोल लगाऊं तेरा पलीता" मै बोला,
"रुक जा, रुक जा, मुझे सोचने दे" वो बोली,
"ठीक है सोच ले, और जल्दी बता "
वो ७-८ मिनट तक लेट गयी फिर खड़ी हो गयी, अब उसकी आवाज़ बदल गयी थी, अब उसके गले में से एक भारी मर्दाना आवाज़ आने लगी थी, वो बोला,
"इसके बाप को बुलाओ, मै बात करना चाहता हूँ" वो बोला,
मैंने कहा कि ठीक है, और शर्मा जी से रमेश जी को बुलाने के लिए कहा, रमेश जी और शर्मा जी फ़ौरन ही आ गए,
"बता, क्या बात करना चाहता है तू?" मैंने कहा, और इस बीच मन्त्रों से बंधे फूल मैंने उसके बिस्तर पे डाल दिए, वो और सिकुड़ गयी, और फिर अशफाक बोला,
"सुन, मैंने तेरी लड़की को पसंद किया है, मै इस से मुहब्बत करता हूँ, तू इसकी शादी मेरे से करा दे, बदले में तू जो चाहेगा वो मै तुझे दूँगा,"
रमेश जी ने घबरा के मेरी तरफ देखा.....
मै वहीँ खड़े-खड़े बोला,"बाहर आके देखले के कौन!"
"ठीक है, मै आता हूँ, मै ही आता हूँ, शिवानी ने कहा,
जैसे ही शिवानी ने मुझे देखा मैंने अपने साथ लायी हुई भस्म उसके जिस्म पे दे मारी, उसके होश उड़ गए, उसने बार-बार चारों तरफ देखा, और लम्बी-लम्बी साँसें लेने लगी,
"आजा तू भी आजा, तुझे भी देख लेता हूँ मै, तू आ तो गया है लेकिन अबी तू यहाँ से जिंदा नहीं जाएगा!" उसने बिस्तर पर चढ़के ऐसा कहा,
मै जोर से हंसा, और बोला,
"तेरे जैसे मैंने कई अपने यहाँ पाल रखे हैं, अब तेरी बारी है, तुझे भी २५ साल तक ज़मीन में दफ़न करके रखूँगा" मैंने अपना पाँव उसके बिस्तर पे रख के कहा,
"वाह, बड़ी हिम्मत है तेरे में, चल एक काम कर, तू यहाँ से चला जा , क्यूँ बेमौत मरने चला आया है तू दिल्ली से यहाँ" उसने अपना एक हाथ अपने दुसरे हाथ में मारते हुए ऐसा कहा.....
"मै तो जाऊँगा ही, लेकिन तेरे को भी साथ लेके जाऊँगा, क्यूँ नौकरी नहीं करेगा मेरी? मैंने हँसते हुए ऐसा कहा,
"तो सुन, तू मुझे जानता नहीं है, मेरा नाम अशफाक है, मै बहेड़ी का रहने वाला हूँ, जिन्न हूँ, कद्दावर जिन्न. इसीलिए कह रहा हूँ, कि चला जा यहाँ से, क्यूँ मरने आ गया है यहाँ!" वो हँसते हुए बोली,
"तो तू भी सुन, मैंने तेरे को बड़े प्यार से कहा, लेकिन लातों के भूत बातों से नहीं मानते, देख मै अब भी कह रहा हूँ, इसको छोड़ दे, नहीं तो मै तुझे यहीं भस्म कर दूँगा" मैंने ये बात बहुत तेज़ लहजे में कही थी,
"क्या सोचा तूने, जा रहा है या करेगा २-२ हाथ!"
मै हंस के बोला,
अब शिवानी ने आँखें बंद कि और तेज़ तेज़ अरबी आयतें पढने लग गयी, मैंने शर्मा जी को कहा, कि वो बैग में से वो राख मुझे दें, जो मैंने तैयार कि थी, शर्मा जी ने वो राख कि पोटली मेरे हाथ में थमा दी, मैंने मंत्र पढ़ते हुए वो राख अपने हाथ पे निकाली और शिवानी कि तरफ बढा, शिवानी ठिठक गयी और बिस्तर पे पीछे कि ओर हो गयी, साफ़ था वो इस राख से डर गयी है, वो मेरे हाथ कि तरफ देखती रही घूर घूर के,
"बोल लगाऊं तेरा पलीता" मै बोला,
"रुक जा, रुक जा, मुझे सोचने दे" वो बोली,
"ठीक है सोच ले, और जल्दी बता "
वो ७-८ मिनट तक लेट गयी फिर खड़ी हो गयी, अब उसकी आवाज़ बदल गयी थी, अब उसके गले में से एक भारी मर्दाना आवाज़ आने लगी थी, वो बोला,
"इसके बाप को बुलाओ, मै बात करना चाहता हूँ" वो बोला,
मैंने कहा कि ठीक है, और शर्मा जी से रमेश जी को बुलाने के लिए कहा, रमेश जी और शर्मा जी फ़ौरन ही आ गए,
"बता, क्या बात करना चाहता है तू?" मैंने कहा, और इस बीच मन्त्रों से बंधे फूल मैंने उसके बिस्तर पे डाल दिए, वो और सिकुड़ गयी, और फिर अशफाक बोला,
"सुन, मैंने तेरी लड़की को पसंद किया है, मै इस से मुहब्बत करता हूँ, तू इसकी शादी मेरे से करा दे, बदले में तू जो चाहेगा वो मै तुझे दूँगा,"
रमेश जी ने घबरा के मेरी तरफ देखा.....