पछतावा

Horror stories collection. All kind of thriller stories in English and hindi.
Jemsbond
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Re: पछतावा

Unread post by Jemsbond » 20 Dec 2014 09:07

जेल अधीक्षक, रायपुर द्वारा अपनी अनुशंसा सहित नोटशीट एवं आवेदन जिला मजिस्ट्रेट के पास स्वीकृति हेतु भेजता है। रामदास एवं दो अन्य कैदियों को अच्छे चाल-चलन और आठ वर्ष तक सजा भुगतने के बाद 15 दिन के पैरोल पर घर जाने के लिए स्वीकृति प्रदान कर दी जाती है। रामदास को नए कपड़े एवं आने-जाने के ट्रेन, बस किराए के रूप में एक हजार रुपए विभाग से मिलते हैं। शिल्पी के रूप में एकत्र जो भी रुपए जेलर साहब रामदास को देता है। रामदास केन्द्रीय जेल से प्रातः आठ बजे छूट जाता है। रामदास सबसे पहले पास के बजरंगबली मंदिर में मत्था टेकता है। जेलर साहब को नमस्कार करके रायगढ़ जाने के लिए रिक्शे से बाजार चला जाता है। वहां से माँ के लिए साड़ी, रामवती के लिए साड़ी, चन्द्रशेखर के लिए पैंट-शर्ट खरीद कर अपने लिए पैंट-शर्ट लेकर रेलवे स्टेशन रायपुर से मेल में बैटकर रायगढ़ पहुंच जाता है। रायगढ़ रेल्वे स्टेशन से रिक्शा में बैठकर चक्रधर नगर के बंगलों में दाखिल हो जाता है। रामवती और माँ की खुशी का ठिकाना नहीं रहता। माधूरी भी खुशी-खुशी पिताजी के चरण स्पर्श करती है। रामदास माँ के चरण छूकर प्रणाम करता है। शांति बाई खुशी के आंसू बहाती है। कहती है बेटा, देखने के लिए आँखें पथरा रही थीं। चन्द्रशेखर भी रायगढ़ में रहता है। सभी एक जगह मिल जाते हैं। पूरा परिवार एक साथ बैठकर जमीन पर भोजन करते हैं। रामदास सबके कपड़े निकाल कर देता है। माधुरी कहती है इसकी क्या जरूरत थी, बाबूजी क्यों लाए। रामदास कहता है – बेटी मुझ गरीब अपराधी बाप के पास और कुछ नहीं था। मेरी बुद्धि के अनुसार खरीद लाया हूं। मेरा छोटी सी भेंट। माँ, रामवती और माधुरी को साड़ी बहुत पसंद आती है। माधुरी माँ पिताजी के लिए अलग कमरे बिस्तर लगा देती है। दादी के साथ माधुरी सो जाती है। रामवती दस वर्ष के बाद पति के साथ सोती है। पति सुख पाकर रामवती निहाल हो जाती है। अपनी अतृप्त इच्छाओं को पूरा करती है। रात भर दोनों बातचीत करते गुजार देते हैं। सुबह एकाएक दोनों की गहरी नींद लग जाती है।

माधुरी सुबह उठकर सबके लिए चाय बनाकर लाती है। दादी, चन्द्रशेखर बैठकर चाय पीते हैं। मम्मी-पापा के उठने का इंतजार करते हैं। रामदास ने बहुत दिनों के बाद पत्नीसुख पाया था। एकसंग सोने के कारण बहुत रात तक नींद नहीं आई। सुबह दस बजे तक सोते रहे। माधुरी जब नाश्ता बनाकर कार्यालय जाने की तैयारी करती है। रामवती जल्दी-जल्दी उठती है, घड़ी देखती है दिन के दस बज रहे थे। रामवती शरमा जाती है। माधुरी ने सारा काम निपटा लिया था। भोजन पकाकर रख देती है। रामवती मुँह धोकर बेटी के लिए तैयारी करती है। माधुरी स्नान करके जल्दी-जल्दी चावल, दाल, सब्जी खाकर आफिस जाने के लिए तैयार होती है। फिर अन्य जजों के साथ जीप में न्यायालय चली जाती है।

इधर रामवती रामदास के लिए चाय बनाकर लाती है। रामदास प्रश्न करके चाय पीता है। रामवती के हाथ की चाय का अलग स्वाद रहता है। चन्द्रशेखर और शांतिबाई जेल के बारे में रामदास से कई बातें पूछते हैं। रामदास सबकुछ जानकारी देता है। एक से बढ़कर एक खूंखार अपराधियों के बारे में बताता है। रामवती स्नान करके रसोई में चली जाती है। दिन के बारह बजे सब मिल बैठकर भोजन करते हैं। माधुरी, रामदास, माँ, दादी को चन्द्रशेखर को जीप में बैठाकर गौरीशंकर मंदिर दर्शन कराने ले जाता है। रामदास मंदिर देखकर बहुत खुश होता है। रामवती फूल, अगरबत्ती, नारियल चढ़ाती है। माधुरी भी पूजा-अर्चना करती है। रामदास करीब एक सप्ताह तक रायगढ़ मे रहता है। रामवती को लेकर गाँव चला जाता है। दो दिन गाँव में रहते हैं। फिर गाँव से अपनी ससुराल सेंदरी गाँव चले जाते हैं।

वहां एक दिन रहकर बिलासपुर से रायगढ़ चले जाते हैं। रामवती पति को पुनः पाकर खिल गई थी। रामवती को मालूम था कि रामदास पन्द्रह दिनों के बाद फिर जेल चला जाएगा। रामदास चौदह दिन बढ़िया परिवार के साथ गुजारता है। रामदास सोलहवें दिन मेल से रायगढ़ से रायपुर चला जाता है। पेरोल का समय बीत जाता है। सुबह 11 बजे जेल में आकर जेलर साहब को उपस्थिति देता है और रामदास की जेल की दिनचर्या पहले जैसी चलने लगती है।

रामदास के अच्छे चाल-चलन के कारण आजीवन सजा दस वर्ष में पूरी हो जाती है। दो वर्ष की सजा और काटकर रामदास अपने गाँव आ जाता है। कुछ दिन गाँव में रहने लगता है। रामदास की उम्र पचास वर्ष हो गई थी। मनमोहन कुछ दिन तक अपने घर में खइलाता है। फिर रामदास माधुरी के पास रायगढ़ चला जाता है। रामवती, शांति, चन्द्रशेखर कुछ दिन रायगढ़ में रहते हैं। चन्द्रशेखर बी.ए. पास कर लेता है। माधुरी अपने पास रायगढ़ में रखकर पढ़ाती है। चन्द्रशेखर पिताजी के समान 6 फीट लम्बा तगड़ जवान हो गया था। माधुरी भाई को भी नौकरी से लगा देना चाहती थी।

माधुरी का प्रमोशन प्रथम श्रेणी जज के रूप में रायपुर में हो जाता है। माधुरी को बंगला कलेक्टरेट के पीछे मिलता है। पूरा सामान लेकर माधुरी रायपुर आ जाती है। चन्द्रशेखर, रामवती, शांति सभी रायपुर आ कर कुछ महीने रहते हैं। रामवती कहती है कि बाबूजी पुलिस विभाग में तुम्हारी जीपीएफ की राशि जमा होगी। उसे निकलवा लो। जितनी हो। रामदास बिलासपुर पुलिस अधीक्षक से मिलता है। मसीह बाबू जब भर्ती हुआ था तब छोटे बाबू थे। उसने रामदास के शौर्य और साहस को सुना था। रामदास आवेदन बनाकर पुलिस अधीक्षक से मिलता है। अपना परिचय देता है – सर, मैं पुलिस विभाग में सहायक उपनिरीक्षक था, कुछ छोटी सी गलती के कारण मेरे हाथ से एक बदमाश की हत्या हो गई थी। जिसके कारण मुझे आजीवन कारावास की सजा हुई थी। दो माह हुए जेल से छूटा हूं। पुलिस अधीक्षक बैठने के लिए बोलते हैं। कहते हैं – रामदास तुम्हारे साहस एवं शौर्य के किस्से मैंने अभिलेख में देखे हैं। तुम्हारी जांबाजी साहस के लिए पुलिस विभाग गर्व करती है। नियति का खेल है, क्या करोगे। चपरासी चाय लेकर आ जाता है। रामदास चाय पीने लगता है। पुलिस अधीक्षक मसीह बाबू को बुलाता है। कहता है – बड़े बाबू आज ही पूरा हिसाब करके रामदास को चेक दे दो। रामदास कहता है – सर, जब भी आप बुलाएं मैं आ जाऊंगा। मेरी पुत्री प्रथम श्रेणी सिविल जज रायपुर में है सर। मैं वहीं कुछ दिनों से रह रहा हूं। एस.पी. साहब एक सप्ताह बाद रामदास को बुलाते हैं। मसीह बाबू पुराने अभिलेख निकालकर अस्सी हजार रुपए निकालता है। सभी अभिलेख, सेवा पुस्तिका, जीपीएफ पास बुक व्यक्तिगत सिफारिश के लिए टेबल पर रख देता है। पुलिस अधीक्षक स्वीकृत कर देता है। अंतिम भुगतान हेतु व्हाउचर बनाकर ट्रेजरी में भेज देता है। रामदास बिलासपुर से गाँव चला जाता है। गाँव में पाँच एकड़ केत खरीदने के लिए सौदा करता है। बढ़िया सिंचित खेत रहता है। गाँव के किनारे सड़क के पास रहता है। पचास हजार रुपए में पाँच एकड़ खेत लेता है। शेष दस हजार रुपए बीज, खाद, निंदाई, गुड़ाई के लिए। रामदास के पास आठ एकड़ भूमि हो जाती है। एक नौकर भी खेत में काम करने के लिए रख लेता है। गाँव के पुराने घर की मरम्मत कराता है। रामदास गाँव में रहने लगता है। रामवती और माँ को भी गाँव ले आता है। चन्द्रशेखर रायपुर में रहकर पढ़ने लगता है।

माधुरी अकेली पड़ जाती है। माधुरी रामदास को प्रतिमाह पाँच हजार रुपए भेज देती थी। रामदास की स्थिति अच्छी हो जाती है। गाँव में गरीब लोगों को रुपए उधार में बीस हजार रुपए देता है। इस वर्ष फसल भी अच्छी होती है। रामदास के घर में रखने के लिए जगह नहीं रहता है। किसान लोग धान काटने के बाद ब्याज सहित रुपए वापस कर देते हैं। रामदास कुछ रुपए मिलाकर दो एकड़ जमीन और खरीद लेता है। रामदास रामवती का मन पहले जैसा लगा रहता है। दादा मणिदास की तर्ज में चलकर कोई भूखा नंगा दरवाजे से खाली हाथ नहीं जा पाता था। गाँव में भाईचारा, प्रेम-व्यवहार बनाकर वह चल रहा था।

रामवती माधुरी को देखने रायपुर जाती है। रामदास, रामवती दोनों विचार कर माधुरी को विवाह के लिए राजी कर लेते हैं। रामदास कहता है कि तुम अपने मनपसंद वर से शादी कर लो। समाज को मारो गोली। सड़े समाज में क्या रखा है। आजकल सभी समाजों में पढ़े-लिखे लड़कों की कमी नहीं है। परन्तु मेरे कारण सामाजिक बहिष्कार हो गया है। इसका बहुत पछतावा है। मैंने दादाजी के नाम को बदनाम कर दिया। मुझे मर जाना चाहिए। माधुरी कहती है – मरने की बात क्यों करते हो बाबूजी। मुझे समाज की कोई परवाह नहीं है। मैं अब शादी अपने मन से करूंगी। एक माह में मेरा शादी हो जाएगी। रामवती, रामदास बहुत प्रसन्न हो जाते हैं। माधुरी को चन्द्रशेखर की नौकरी लगाने के लिए कहते हैं। उसी समय रायपुर पुलिस विभाग में आरक्षक की भर्ती शुरू हो जाती है। चन्द्रशेखर लाइन में खड़े होकर नापतौल करवाता है। माधुरी डी.जे. साहब से निवेदन कर पुलिस अधीक्षक रायपुर को फोन करा देती है। चन्द्रशेखर पुलिस विभाग में आरक्षक के पद पर प्रशिक्षण रायपुर माना केम्प में लेने लगता है। माधुरी भाई की नौकरी लगाकर निश्चिंत हो जाती है। रामवती और रामदास भी कुछ दिन वहां रहकर अपने गाँव वापस चले जाते हैं।

माधुरी अपना विवाह अपने साथी प्रथम श्रेणी के जज संजय सिंह ठाकुर से करने तैयार हो जाती है। दोनों एक-दूसरे के करीब आ जाते हैं। फिर विधिवत कलेक्टर के यहां आवेदन लगा देते हैं। एक माह बाद रामदास, रामवती, चन्द्रशेखर साक्ष्य बनकर कलेक्टर के समक्ष हस्ताक्षर कर देते हैं। कलेक्टर साहब माधुरी सिंह एवं संजय सिंह के विवाह की बधाई देते हैं। एक-दूसरे को फूल माला पहनाकर पति-पत्नी स्वीकार कर लेते हैं। संजय सिंह के पिताजी भी उपस्थित रहते हैं। संजय सिंह के पिताजी जबलपुर के नामी वकील थे। बेटे की खुशी में अपनी खुशी समझकर सहमत हो जाते हैं। वकील साहब आधुनिक विचारधारा के व्यक्ति थे। जाति-पाति में विश्वास नहीं करते थे।

मानवता को मानव का धर्म मानते थे। इंसानियत से बड़ी कोई चीज दुनिया में नहीं है। रामदास का रूद्रप्रताप सिंह समधी भेंट करता है। दोनों गले मिलकर खुशी का इजहार करते हैं। माधुरी, संजय सिंह, माँ, बाबू जी, पिताजी के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेते हैं। कलेक्टर से विवाह का प्रमाण पत्र लेकर अपने निवास कलेक्ट्रेट के पीछे माधुरी के बंगले में आ जाते हैं।

संजय सिंह जज साहब दूसरे दिन रात्रि में शहर के गणमान्य नागरिकों, अधिकारियों, पत्रकारों, न्यायाधीशों को स्नेहभोज देते हैं। शहर के तमाम नेता, अधिकारी, कलेक्टर, कमिश्नर, डीआईजी, डीजे, पुलिस अधीक्षक लगभग पाँच हजार विशिष्ट व्यक्ति स्नेह भोज में आते हैं। वर-वधु को बधाई एवं शुभकामनाएं देते हैं। चन्द्रशेखर दौड़-दौड़कर लोगों को भोजन करा रहे थे। माधुरी एवं संजय की जोड़ी अच्छी जम रही थी। जितने लोगों ने देखा माधुरी की तारीफ करके गए।

रात्रि भोजन के बाद सुहागरात के लिए चन्द्रशेखर एक कमरे को सजा कर रखता है। माधुरी, संजय सुहागरात में दो शरीर एक जान हो जाते हैं। माधुरी व संजय सिंह प्रसन्न रहते हैं। संजय सिंह को पाकर माधुरी धन्य हो जाती है। घर में दोनों जज साहब, माधुरी और संजय का सुखी जीवन प्रारंभ होता है।

रामवती और रामदासकुछ दिन वहां रहने के बाद गाँव लौट जाते हैं। सभी मेहमान अपने-अपने निवास लौट जाते हैं। बच जाते हैं माधुरी एवं संजय सिंह। जीवन में परम आनन्द और सुख से रहने लगते हैं। भगवान का शुक्रिया अदा करते हैं। भगवान ने पैदा किया है तो वह जोड़ी अवश्य बनाता है।

Jemsbond
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Re: पछतावा

Unread post by Jemsbond » 20 Dec 2014 09:08

रामदास एक सम्पन्न किसान बन रहा था। रामवती भी खेती-किसानी का काम सम्हाल रही है। रामदास दादाजी को स्मृति पटल पर अंकित पाता है कि कभी उसके घर पर भी धन धान्य भरा पड़ा रहता था। सैकड़ों आदमी प्रतिदिन भोजन करते थे। मणिदास की मृत्यु के बाद धन सम्पत्ति कहां चली गई। माँ, रामवती, माधुरी, चन्द्रशेखर को दो जून का भोजन भी पर्याप्त नहीं मिल पाता था। रामवती ने किसानों के खेतों में मजदूरी करके बच्चों का पालन-पोषण किया और पढ़ाया-लिखाया था। रामदास कहता है – धन्य हो भारतीय नारी, रामवती साक्षात देवी हो तुम। लोगों के ताने, जलालत सहकर बच्चों को बड़ा किया। मेरे सात जन्म में भी रामवती पत्तनी बने सतनाम साहेब से यही प्रार्थना करूंगा। रामदास की आँखों से आंसू बहने लगते हैं। रामवती यह देख-सुनकर रो पड़ती है। रामदास के चरणों में सिर रख देती है। जब तु हो, तो मैं हूं। जब तुम नहीं थे, तो मैं भी नहीं थी। मैं तो एक लाश की तरह जीती थी। रामवती बताती है – धन्य है मेरी सास शांति बाई। मेरी माँ से ज्यादा देखभाल करती रही है। मजाल है कि रात के सूने घर में कोई मरद आ जाए। लाठी से पीट-पीट कर घायल करना पसंद था। माँ के संबल से ही मैं यहां गाँव में रह पाई। यहां सूने घर में बदमाशों की गिद्ध दृष्टि रही। फिर मैं जवान स्त्री कहां से परुष का मुकाबला कर पाती। इस माँ के कारण ही पुरुष के समान रही हूं। मैंने इसी डर से नसबंदी करा ली थी। कोई ऊंच-नीच न हो जाए। प्रतिदिन मैं डर-डर के जीती थी। भले मैं भूख से मर जाती थी। परन्तु किसी लालच में नहीं पड़ी। खेतों में काम करने जाऊं तो वहां भी भेड़िये बैठे थे। किसी प्रकार आबरू बचाकर जीती रही हूं। रामदास कहता है – रामवती मैंने तुझे तो दूसरा विवाह करने को कहा था। तुम्हारी लाख गलतियों को माफ कर देता। मैं भी तो इंसान हूं। औरत जात भी इंसान है। उसकी भी अपनी आवश्यकताएं हैं। स्त्री-पुरुष दोनों की आवश्यकताएं होती हैं जानकर मैं इंसानी जजबात को समझता हूं। फिर तो मैं जेल में था, जो कभी बाहर नहीं निकल सकता था। रामवती बीते दिनों को याद कर रोने लगती है। घर में एक बीजा चावल नहीं था। उधर चन्द्रशेखर बार-बार खाने को मांगता था। मैं तो पानी पीकर पेट भर लेती थी। परन्तु बच्चे को तो भोजन चाहिए था। मनमोहन ने बहुत साथ दिया। वक्त बेवक्त सहायता कर देते थे। चन्द्रशेखर को गोद में लेकर बाजार, गली में घुमाता था।

रामवती आंसू पोंछते हुए बताती है – मनमोहन से उसके अवैध संबंध हैं कहकर महिलाएं ताने देती थीं। उसकी पत्नी भी शक किया करती थी। देवर-भाभी में सांठगांठ है। परन्तु मनमोहन ने कभी आँख उठाकर नहीं देखा है। कहां पर टिकुली लगी है। भइया मेरे कारण सजा भुगत रहा है, इसलिए मेरी जवाबदारी है आप लोगों की देखभाल करना। मनमोहन, जगतारण दास बड़े ससुर बहुत देखभाल करते रहे हैं। दस वर्ष तक मैं अकेली महिला कैसे दरिंदों के से लड़ती। मैं तो कब की मर गई होती। चन्द्रशेखर, माधुरी के कारण जीवित हूं। रामदास रामवती को बिसरे दिनों को भूल जाने के लिए बोलता है। रामवती का आलिंगन करता है। रामवती भी उसकी बाहों में झूल जाती है। रामदास रामवती को छेड़ता है कि पचास साल की उमर में तुम्हारे गाल सेब के समान हैं। भरापूरा शरीर है। कौन नहीं आकर्षित होगा। कामदेव भी ललचा जाए, ये तो गाँव के छोकरे हैं। रामवती शरमा कर कहती है क्यों छेड़ते हो जी। भला इस उमर में भी कोई पूछेगा ? रामदास कहता है – मैं तो तुम्हारा दीवाना हूं। रामवती कहती है आप तो बचपन से लट्टू कक बराबर घूम रहे हो और दूसरा तो नहीं है। लगातार मैं दस वर्षों से अपनी मन की इच्छा को मार रही हूं। इसी कारण मैंने नसबंदी करा दी थी। भगवान ने ऐसा कुछ नहीं किया। भगवान ने मेरे दोनों बच्चों को नौकरी पर लगा दिया है। अब मैं मर जाऊं तो कोई चिंता नहीं रहेगी। रामदास रामवती से कहता है – मेरी छोटी सी भूल – एक क्रोध के कारण हत्या हो गई थी। यदि मैंने तुम्हारी बात मान ली होती तो ये दिन देखने नहीं पड़ते। रामवती कहती है क्रोध आदमी को शैतान बना देता है। मैं हत्या करने के बाद गाँव नगाराडीह चला गया था। बीच में अरपा नदी के पानी की धार में तीन घण्टे रोता रहा। मन हुआ की पानी में डूब कर मर जाऊं। परन्तु माधुरी, चन्द्रशेखर के मोह ने मुझे मौत के मुँह से बचा लिया। तलवार लाठी को गहरा बहाव पानी में फेंक दिया। तलवार रात के अंधेरे में कहां गया मुझे नहीं मालूम। गीले कपड़े मे मैं नगाराडीह चला गया।

रामवती विगत दस वर्ष के बीते दिनों को याद करके पछतावा कर रहे थे। मनमोहन उसी समय आकर बताता है कि भइया सरपंच का चुनाव आप लड़ो। समाज के मुखिया तो बन गए हो। परन्तु रामदास चुनाव लड़ने से मना कर देता है। हठ करके मनमोहन फार्म को पकड़ा देता है। रामवती भौजी को समझाने को कहकर चला जाता है। रामदास परछी में आकर चार-पाँच लोगों से पूछता है कि किसको सरपंच बना रहे हो। सभी उसे सरपंच का चुनाव लड़ने के लिए आग्रह करते हैं। रामदास रामवती से पूछकर बताऊंगा कहता है। उधर रामवती रामदास को चुनाव लड़ने के लिए सहमति दे देती है। रामदास सरपंच पद हेतु फार्म भर देता है। रामदास के विरुद्ध सामलदास का लड़का हिंछाराम फार्म भरकर चुनाव में खड़ा हो जाता है। गाँव दो भागों में बंट जाता है। रामदास का प्रचार-प्रसार मनमोहन कर रहा था। रामदास बीस हजार रुपए खर्च कर चुका था। विरोधी लोगों ने पचास हजार खर्च करके सारे वोट खरीद लिए थे। गाँव में प्रचार किया गया। एक हत्यारा को सरपंच बनाओगे तो गाँव में गुण्डागर्दी बढ़ जाएगी। सजायाफ्ता अपराधी को वोट देना आत्महत्या होगी। इस प्रकार के नारे घरों की दीवारों पर गेरू से लिखे गए। रामदास की साख में गिरावट आई। एक प्रकार से रामदास का सामाजिक बहिष्कार कर एक तरफा वोट हिंछाराम को देकर सरपंच चुनाव जिता दिया। रामदास को अपराद के कारण चुनाव हारना पड़ा। वह बहुत मायूस होकर गाँव से माधुरी के पास रायपुर चला गया। रामदास को बहुत पछतावा हो रहा था। माधुरी ने बहुत समझाया – पिताजी क्या कमी है ? क्या जरुरत थी चुनाव लड़ने की। गाँव के लोग हमसे जलते हैं। गाँव को आप अपना समझते हो। गाँव तो अब राजनीति का अखाड़ा बन गया है। जबसे पंचायती राज आया है तब से सरपंच का पद बहुत महत्वपूर्ण हो गया है। न्यायालयों में बेतहाशा मामलों की वृद्धि हुई है। निपटारा नहीं हो पा रहा है।माधुरी कहती है कि पिताजी आप रायपुर में मेरे साथ ही रहिए। आप जेल में अच्छा काम कर रहे थे। रायपुर में रहकर छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के आंदोलन में भाग ले सकते हो। लगभग दस बारह साल तो लग जाएंगे। संजय सिंह भी बाबूजी को समझाता है। अब शेष जीवन मानव कल्याण, भजन, पूजा, कीर्तन में लगाइए। समाज अभी पिछड़ा और अशिक्षित है। इसलिए शिक्षा का प्रसार गाँव में नहीं हुआ है। इसलिए गाँव में शिक्षित चुनाव नहीं जीत सकते। गाँव वालों को साथ में रहने वाला सरपंच ही चाहिए। रामदास हां, हूं करता है। रामवती भी समझाती है, परन्तु रामदास नहीं मानता।

माधुरी से बोलकर चन्द्रशेखर को बुलवाता है। रायपुर पुलिस लाइन में पदस्थापना थी। चन्द्रशेखर शाम को आ जाता है। चन्द्रशेखर के विवाह की चिंता सताती है। परन्तु उसके समाज वाले लड़की देने से इंकार कर देते हैं। रामदास को पछतावा होता है। रामदास बहुत दुखी मन से इस दुनिया को छोड़ने का निर्णय ले लेता है। मेरे एक अपराध के कारण कोई अपनी लड़की नहीं देना चाहता है। इसलिए मैं बच्चों के सुखी जीवन में विष नहीं घोलना चाहता। चन्द्रशेखर, माधुरी, संजय को रुक-रुक कर देखता है। जी भर कर देखता है। मन भर जाने के बाद संजय सिहं को कहता है – बेटा चन्द्रशेखर का ध्यान रखना। इसका विवाह भी किसी गरीब लड़की से करा देना। संजय कहता है – बाबूजी मेरी बुआ की लड़की है, अच्छी है। इसके लिए ब्याह दूंगा। बुआ इंकार नहीं करेगी। कटनी में बुआ रहती हैं। फूफाजी हाई स्कूल में प्राचार्य हैं। रामदास कहता है – जो मिले, शादी करा देना। रामवती, रामदासकुछ दिन रहकर गाँव चले जाते हैं। रामदास को पता चलता है कि गाँव के लोग बस द्वारा गिरौदपुरी मेला जा रहे हैं। मनमोहन भी अपनी पत्नी बच्चों के साथ जा रहे हैं। रामवती से कहता है – चलो हम लोग भी तीनों माँ के साथ मेला देखने जाते हैं। गिरौदपुरी का मेला प्रमुख तीर्थ स्थल है। दूसरे दिन बस से रामदास गिरौदपुरी मेला पहुंच जाते हैं। सभी दर्शनार्थी लाइन में लगकर बाबाजी के चरण पादुका, जोड़ा जैतखाम, दुधिया सांप के दर्शन करते हैं। तीन घण्टे बाद दर्शन कर पाते हैं। लाखों की भीड़। रामवती अगरबत्ती, नारियल चढ़ाकर पूजा करती है। जोड़ा जैतखाम के पुराने ध्वज को फर-फर फहराते देखती है। अच्छा लगता है। शांति बाई को दिखाते हैं। सभी लोग अमृतकुण्ड के दर्शन करते जाते हैं। अपार जनसमूह की भीड़ रहती है। पैर रखने की जगह भी नहीं होती है।

चन्द्रशेखर की मेला ड्यूटी लगी रहती है। तीन दिन पहले आया रहता है। अमृतकुण्ड के पास ड्यूटी लगी होती है। शांति, रामवती, रामदास के चरण स्पर्श करता है। कुएं के आसपास सैकड़ों आदमियों की भीड़ थी। बच्चे कुएं में झांक कर देख रहे थे। स्वच्छ निर्मल पानी भरा था। सभी लोग गुरू की कृपा समझकर पानी पी रहे थे। बाल्टी से निकाल-निकाल कर पानी पीकर तृप्त हो रहे थे। रामदास का परिवार कुएं के चारों ओर परिक्रमा कर रहा था। चन्द्रशेखर उन्हें सब कुछ दिखा रहा था। कुएं की दीवार भारी भीड़ के कारण अचानक धसक जाती है। सभी यात्री मिट्टी-पत्थर के ढेर के साथ सहसा कुएं में दब जाते हैं। रामदास गले तक मिट्टी में धंस जाता है। साथ में शांति, रामवती, चन्द्रशेखर भी मिट्टी के ढेर में डूब जाते हैं। लगभग पचीस आदमी दबे रहते हैं। रामदास दबे रहने के बाद भी अपने हाथों से पाँच बच्चों को गड्ढे से बहर फेंक देता है। उधर मेला में कुण्ड के धसकने की जानकारी मिल जाती है। इधर रामदास कुएं में मिट्टी के ढेर के साथ अंदर समा जाता है। रामदास का पूरा परिवार कुएं में मिट्टी के ढेर के साथ अंदर समा जाता है। रामदास मरते वक्त देखने वाले लोगों से दोनों हाथ जोड़कर जय सतनाम एवं जय छत्तीसगढ़ के नारे लगाता हुआ काल कवलित हो जाता है। मनमोहन एवं गांव वाले सभी इस हादसे से बहुत रोते हैं। मनमोहन मेला अधिकारी को घटना की रिपोर्ट देता है। पुलिस एसडीओ को बताता है कि मृतक रामदास की बेटी श्रीमती माधुरी और संजय सिंह दोनों जज रायपुर में ही पदस्थ हैं। वायरलेस से जानकारी दे दीजिए। एसडीओपी ने तत्काल कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक को इसकी खबर दी। कलेक्टर ने माधुरी सिंह को घटना की जानकारी दी। माधुरी, संजय सिंह तत्काल छुट्टी लेकर कार से घटनास्थल में रोते हुए आए। इस हादसे में पूरे परिवार के लोग मारे गए। बची थी तो सिर्फ माधुरी सिंह।

मेला में भगदड़ मच जाती है। सौ आदमी दब कर मर गए। पुलिस वाले कुएं के आसपास को अपने घेरे में ले लेते हैं। देखने के लिए आदमियों की भीड़ कुण्ड की ओर आने लगी। हजारों लोगों की भीड़ ने देखा। पुलिस शांति व्यवस्था बना रही थी। आखिर उस क्षेत्र को प्रतिबंधित कर दिया गया। भीड़ को इधर-उधर भेजा गया। लोग अपने रिश्तेदारों को खोज रहे थे जो परिसर में भगदड़ के कारण भागे जा रहे थे, एक-दूसरे से जानकारी ले रहे थे। कलेक्टर, कमिश्नर, पुलिस अधीक्षक दल-बल सहित चार बजे शाम को आते हैं। मलमा, मिट्टी हटाने का काम एसडीएम ने शुरू करवा दिया था। गाँव वाले भी सहयोग कर रहे थे। कलेक्टर स्वयं देख-रेख कर रहे थे। मिट्टी हटाना खतरे से खाली नहीं था। धीरे-धीरे मिट्टी धंस रही थी। रायपुर से होमगार्ड के जवान भी बुलाए गए थे। गाँव वाले एवं होमगार्ड के जावानों ने एक-एक करके पच्चीस लाशें निकाली। लाशों में एक सिपाही चन्द्रशेखर जोगी भी था। मनमोहन ने चारों लाशों को पहचान कर अलग कर लिया था। लाश पहचानने के लिए हजारों की भीड़ उमड़ रही थी। कलेक्टर, कमिश्नर तुरंत मुख्यमंत्री को सूचना देते हैं। माधुरी सिंह रोते-रोते लाश के पास आती है। सब लाशों को देखकर वह जोर से रो पड़ती है। मनमोहन एवं गाँव वाले समझाते हैं, संजय सिंह कलेक्टर को कहता है कि ये मेरे सास-ससुर एवं साले की लाश है। खाकी वर्दी में चन्द्रशेखर की लाश पड़ी थी। पुलिस अधीक्षक सिपाही की मृत्यु से दुखी थे। साथ में माँ-पिताजी, दादी के शव। वहां पर हृदय विदारक करुण क्रंदनमय दृश्य बन गया था। सभी लोगों के नेत्रों से अश्रु धारा बह रही थी। गमगीन माहौल था. कलेक्टर, कमिश्नर शांति व्यवस्था भंग न हो कहकर, मेडिकल आफिसर से पोस्टमार्टम रिपोर्ट लेकर शवों को सुपुर्द कर देते हैं। जिन लाशों की शिनाख्त नहीं हो पाई थी उसे पुलिस वाले दफनाने की कार्यवाही करती है। मनमोहन और माधुरी सिंह ने सोचा कि गाँव ले जाकर क्या करेंगे, यहीं सम्मान के साथ लाखों लोगों के साथ दफना देते हैं। कलेक्टर, कमिश्नर, पुलिस अधीक्षक, सभी अधिकारी, समाज के हजारों लोग उन मृतकों को मिट्टी देते हैं। जंगल के भीतर दफनाने के लिए दस गड्ढे खोदते हैं। एक-एक कर दस लाशों पर मिट्टी डालते हैं। माधुरी सिंह का पूरा परिवार दफन हो गया। सभी अधिकारी माधुरी संजय सिंह को बार-बार सांत्वना देते हैं।

रामसनेही महंत सतनाम साहेब के नाम मंत्र पढ़कर लाशों को दफनाते हैं। रामसनेही महंत कहता है कि बेटी रामवती मेरे छेटे भाई आसकरणदास की बेटी थी। तुम तो मेरी नातिन हो। मत रोओ, माधुरी मत रोओ। रुंधे गले से माधुरी ने अंतिम मिट्टी डाली। शांति, रामवती, रामदास चन्द्रशेखर पंचतत्व में विलीन हो गए। रामसनेही ने कहा – जब तक गुरूजी का नाम रहेगा, जोगी परिवार को मेला के वक्त लोग याद करते रहेंगे।

माधुरी निःसहाय बैठी रो रही थी। संजय सिंह माधुरी को सम्हालने में लगा है। रात्रि में मनमोहन एवं उसके साथी गाँव चले जाते हैं। गाँव में समाचार सुनकर हा-हाकार मच जाता है। शोक की लहर फैल जाती है। तीसरे दिन के मेले में माननीय मुख्यमंत्री, श्री धनेश पाटिला जी, डीजी धृतलहरे, मंत्री सांसद परसराम भारद्वाज, डॉ. खेतानराम, सांसद केयूर भूषण, पवन दीवान, बंशीलाल धृतलहरे वरिष्ठ कांग्रेसजन आते हैं। सभी मृतकों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। मुख्यमंत्री सभी मृतकों के परिजनों को एक-एक लाख रुपए अनुदान देने की घोषणा करते हैं। मुख्यमंत्री जी रायपुर कलेक्टर को भुगतान करने के निर्देश देते हैं। गिरौदपुरी के विकास हेतु बीस लाख रुपए देने की घोषणा करते हैं। मेला शोक में डूबारहता है। कोई उत्साह नहीं रहता है। सभी मेला समाप्ति पर अपने-अपने घर चले जाते हैं। माधुरी संजय सिंह को मुख्यमंत्री, मंत्रीगण सांत्वना देते हैं। भगवान की लीला को अपरंपार बताते हैं। माधुरी सिंह रायपुर अपने निवास आ जाती है।

संजय सिंह रायपुर में तीन दिन में क्रियाकर्म कर हजारों लोगों को भोजन कराते हैं। सभी गणमान्य लोग सम्मिलित होते हैं। रायपुर कलेक्टर माधुरी सिंह को चार लाख रुपए का चेक प्रदान करते हैं। संजय माधुरी विचार करते हैं, क्यों न गाँव में कन्या स्कूल रामवती रामदास प्राथमिक पाठशाला खोल दिया जाए। मनमोहन गाँव में दशकर्म करता है। माधुरी संजय सिंह लिवाकर ले जाता है। दशनहा वन में आसपास के हजारों व्यक्ति शामिल होते हैं। रात्रि में पांच हजार लोग भोज में भोजन ग्रहण करते हैं। माधुरी ने दिल खोलकर खर्च किया। एक लाख रुपए खर्च करने की योजना थी।

माधुरी संजय सिंह ने स्कूल खोलने एवं समस्त संपत्ति, मकान, खलिहान को स्कूल में दान कर देती है। पाँच लाख रुपए से भवन का निर्माण के लिए देती है। समस्त उपस्थित लोगों ने माधुरी सिंह की भूरि-भूरि प्रशंसा की। भोज ग्रहण करने के बाद सभी मेहमान चले जाते हैं। मनमोहन सभी रिश्तेदारों को पगड़ी रस्म के लिए रोक कर रखता है। दूसरे दिन गुरू एवं भांजा को दक्षिणा देकर बिदा कर देते हैं। बिदा के बाद माधुरी घर में आ जाती है। रामदास माधुरी के शरीर में प्रवेश कर बोलता है। माधुरी अर्धचेतना में रहती है। रामदास कहता है – मेरी छोटी सी भूल आवेश में आकर क्रोध की ज्वाला में जलकर मैं हत्या कर डाला। मुझे जीवन भर पछतावा रहा। मेरे अपराध के कारण मेरा परिवार बर्बाद हो गया था। मेरे मरने के बाद ही मुझे शांति मिली है। मैं संत पुरुष साहेब की गोद में सोया हूं। मुझे असीम शांति मिल रही है। बेटी अब दुख मत मनाना। अपना काम में मन लगाकर करना। मैं अब जा रहा हूं। रामदास सभी परिवार के सदस्यों को माधुरी के माध्यम से देखकर तृप्त हो गया। रामदास की अतृप्त आत्मा तृप्त होकर सतनाम साहेब के पास चली गई।

माधुरी होश में आती है। संजय पानी पिलाता है। माधुरी पसीने-पसीने हो जाती है। माधुरी एवं सभी सदस्य बहुत रोते हैं। सबको संजय चुप कराता है। आंसू पोंछते हुए माधुरी बताती है – पिताजी आए थे। सबको देखकर चले गए। माधुरी स्कूल बनाने के लिए पाँच लाख रुपए एवं मकान, खेत की देखभाल मनमोहन को देकर चली जाती है। माधुरी स्कूल निर्माण समिति की अध्यक्ष एवं मनमोहन को उपाध्यक्ष, पूरन, उत्तमदास, पद्मन को सदस्य मनमोहन को भार सौंपकर रायपुर चली जाती है। मनमोहन साल भर में स्कूल भवन बनवा देता है। इसका उद्घाटन माधुरी संजय सिंह अपने हाथों से 1 जुलाई को करती है। गाँव के पाँच लड़कों को शिक्षक बना देते हैं। गाँव एवं आसपास की बालिकाएं आकर पढ़ती हैं। गाँव एवं आसपास की सभी लड़कियों में शिक्षा का विकास होने लगता है। स्कूल अच्छा चलने लगता है। लड़कियां वहां से पढ़ाई कर बिलासपुर पढ़ने चली जाती हैं।

माधुरी बीच-बीच में गाँव जाकर देखभाल करती रहती थी। रामदास की आत्मा को शांति मिल गई थी। रामदास जीवनभर अपराध के बोझ से दबा रहा। जीवनभर पछताता रहा। मरने के बाद भी पछताया। अब इससे उसे मोक्ष मिल गया था। सतनाम साहेब ने एक जांबाज वीर सिपाही, सच्चे देशभक्त, एक सच्चा इंसान, दीनदुखियों के साथी, भूखे नंगे के हमदर्द रामदास को अपने महान महाआत्मा में विलीन कर लिया।
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समाप्त
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