पछतावा

Horror stories collection. All kind of thriller stories in English and hindi.
Jemsbond
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Re: पछतावा

Unread post by Jemsbond » 20 Dec 2014 08:59

रामदास मेहनत व लगन से कार्य कर रहा था। रामदास मुंशी से सभी लिखा-पढ़ी, रिपोर्ट दर्ज करना, केस खाता करने, जन्म-मृत्यु को दर्ज करना अपराधी की गणना करना सभी प्रकार के प्रतिवेदन भेजना, केस डायरी न्यायालय में भेजना। पोस्टमार्टम रिपोर्ट को भेजना, हत्या के अपराध की प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करना। सभी प्रकार के कार्य पद्धति रामदास बहुत जल्दी सीख गया था। दरोगा साहब रामदास को ही काम बताता था एवं साथ में रखते थे। ममुंगेली थाने में रामदास एक ईमानदार एवं व्यवहारकुशल आरक्षक के रूप में जाने जाने लगे थे। रामदास की पदस्थापना से थाने की इज्जत में बढ़ोतरी हो रही थी। सभी लोग रामदास को ही पूछते थे। थाने परिसर में कोई गरीब रिपोर्ट लिखाने आते थे, कोई किसान गांव वाले सभी लोगों को रामदास बैठाते थे। पानी पिलाने के बाद तकलीफ को पूछते थे। बड़े सम्मान के साथ पूछते थे। एफआईआर दर्ज कर लेते थे। किसी प्रकार का भय नहीं दिखाते थे। शहर के व्यापारी वर्ग भी खुश थे। आम नागरिकों में रामदास की लोकप्रियता बढ़ गई। रामदास किसी से रुपए नहीं मांते थे। जबरदस्ती ही कोई भेंट के रूप में कुछ दे जाते थे। उसे भी वे बहुत मुश्किल से लेते थे। सुरी घाट के पास गाँव के एक किसान की हत्या दिन-दहाड़े सुधा यादव व साथियों द्वारा कर दी जाती है। गाँव में आतंक व्याप्त था। गाँव के दरवाजे बंद हो गए थे। हत्यारे लोग घर-घर जाकर दरवाजा ठोककर गवाही देने वालों को जान से मारने की धमकी देकर फरसा, लाठी घुमाते हुए जंगल की ओर भाग गए थे। मुंशी संतोष मिश्रा तुरंत दरोगा साहब को सूचना देते हैं। दरोगा साहब आकर प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने के लिए कहते हैं। रामदास एफआईआर दर्ज करता है। सिंह साहब कोटवार को कहता है हम लोग आ रहे हैं, आप लोग चलिए। साथ में तीन सिपाही ले जाते हैं। गाँव में हत्या की दहशत से आतंक का वातावरण रहता है। दरोगा साहब, रामदास लाश को देखते हैं। फरसे से वार कर सर धड़ से अलग, पैर को भी काट दिए रहतेहैं। हत्या मनोहर सिंह बघेल नाम के किसान की कर दी जाती है। हत्यार जबरन रुपए ऐंठने के चक्कर मे हत्या कर देते हैं। पुराने खेत का झगड़ा रहता है। पुरानी रंजिश के कारण दिन-दहाड़े हत्या होती है। रामदास पोस्टमार्टम के लिए पत्र तैयार कर, दरोगा साहब से हस्ताक्षकर कराकर शासकीय अस्पताल मुंगेली भिजवा देता है। डॉ. एम.एल. डहरिया लाश का पोस्टमार्टम कर रिपोर्ट रात तक दे देता है। दरोगा साहब गवाहों के बयान लेता है। मानसिंह समाद, मंगल, दल्लू, मूरतराम के बयान लेते हैं। सभी लोगों ने हत्या करने देखने की बात लिखाते हैं। रामदास को एक लड़का जो पास के गाँव से आ रहा था, नाले के किनारे कुछ लोगों को सशस्त्र बैठे दारू पीने की बात बताता है। रामदास सिंह साहब को जानकारी देते हैं। सिंह साहब, तीन बंदूकधारी सिपाही, रामदास पैदल सर्च के लिए चल देते हैं। नाले के किनारे बेठे रहतेहैं। एक हत्यारा पुलिस वालों को देख लेता है। सुधा राउत को कहता है भागो पुलिस वाले आ रहे हैं। सुधा राउत व चार साथी खेतों में भागने लगते हैं। अरहर के खेतों मे जाकर छिप जाते हैं। रामदास व साथी बहुत ढूंढते हैं। लगभग एक घंटे के बाद रामदास को सुधा राउत दिख जाता है।

रामदास कहता है – सुधा, तुम पुलिस के हवाले कर दो नहीं तो तुम्हें गाँव वाले मार डालेंगे। सुधा तब भी भागता रहता है। रामदास भागने बहुत तेज था। रामदास अकेले दौड़कर खूंखार अपराधी सुधा राउत को पकड़ लेता है। सुधा राउत फरसों से रामदास पर वार करता है। परन्तु फरसा अरहर पेड़ में फंस जाता है। रामदास छलांग लगाकर फरसा से छुड़ा लेता है। रामदास फरसा की बैठ से दो लाठी उसकी पीठ में मारता है। सुधा गिर जाता है। रामदास सीने चढ़कर दनादन घूंसे से मार-मार कर उसे अधमरा कर देता है। तब तक तीन सिपाही आ जाते हैं। सभी लोग लात-बट से मार-मार कर हालत खराब कर देते हैं। रामदास हत्या कबूल करवा लेता है। सिंह साहब हथकड़ी लगाकर थाना के लॉकअप मे बंद कर देते हैं। सिंह साहब सुधा राउत का बयान लेते हैं। उसके चार अन्य साथियों को रात मे रामदास पकड़कर हवालात में बंद करा देता है। सिंह साहब रामदास की बहादुरी के लिए पाँच सौ रुपए का इनाम देते हं। दूसरे दिन सभी अखबारों में रामदास की फोटो सहित खूंखार अपराधी सुधा राउत पकडा गया। दस से अधिक हत्याओं के अपराधी को जो आज तक नहीं पकड़ गया था वीर जांबाज सिपाही रामदास का पाँच सौ रुपए इनाम दिया गया है। रामदास की शौर्यकीर्ति में अतिवृद्धि हो रही थी।

रामदास के साहस और शौर्य की चर्चा सारे अखबारों में होती है। कई संस्थानों द्वारा सम्मानित भी किया जाता है। रामदास की कर्तव्यपरायणता, सद्व्यवहार, सद्चरित्रता के लिए पुलिस अधीक्षक द्वारा पुरस्कृत किया जाता है। रामदास का एक वर्ष का कार्यकाल बढ़िया कब बीत गया पता नहीं चला। दलगंज सिंहसाहब का प्रमोशन दुर्ग में उप पुलिस अधीक्षक के पद पर हो जाता है। रामदास दुर्ग तक सामान के साथ जाता है। रामदास सिंह साहब की बिदाई में शानदार पार्टी देता है। रामदास बिदाई के समय रो पड़ता है। उसके लिए सिंह साहब पिता के समान थे। सिंह साहब के कार्यकाल में अपराध घट गए थे। रामदास जैसे सहयोगी कहां मिलेगा ? रामदास के पिताजी झालरदास मुंगेली बच्चों को देखने के लिए आते हैं। झालरदास का सभी बहुत आदर सत्कार करते हैं। कहते हैं रामदास जैसे वीर सपूत के पिताजी हैं। झालरदास लड़के के साहस, ईमानदारी, बहादुरी, व्यवहराकुशलता, न्यायप्रिय सुनकर गद्गद हो गए। कोई भूखे भिखारी दरवाजे से बिना अन्न दिए खाली नहीं भेजते थे। भूखे को खाना भी खिलाते थे। रामवती बाबूजी की बहुत सेवा सत्कार कर रही थी। माधुरी दादा जी के पास खेल रही थी। माधुरी दो वर्ष की हो गई थी। दादाजी-दादाजी कहते आंगन घर थाने को एक कर रही थी। झालरदास आनन्द से कुछ दिन रहे। फिर रामदास ने माँ के लिए साड़ी, धोती कुर्ता-लुंगी, कुछ खेती किसानी के लिए रुपए देकर शिवरीनारायण वाले बस में मस्तूरी के लिए बिठा देता है। झालरदास मस्तूरी से गाँव पैदल चल कर आ जाते हैं।

मुंगेली थाने में नए थानेदार प्रेमसिंह डहरिया की पदस्थापना होती है। सिंह साहेब ने रामदास के बारे जानकारी दे दी थी। रामदास जोगी, दरोगा साहब के सेल्यूट कर जयहिंद सर कहता है। रामदास आदर से खड़े रहता है। नए अफसर से डरता है। रामदास बैठो। मैं तुम्हारे बारे में सब जानता हूँ। मैं मस्तूरी थाने प्रभारी था। तो नवभारत में तुम्हारे शौर्य की कथा छपी थी। मैं तुम्हारे घर भी गया हूँ। तुम्हारे पिताजी से भी मिला था। बहुत भले आदमी हैं। वैसे टिकारी गाँव बहुत बड़ा है। हमारे समाज वाले बहुत पढ़े लिखे अफसर और कर्मचारी हैं। आसपास के गाँव में इतने लोग शिक्षित नहीं है। रामदास बैठ जाता है। इतना नए अफसर जान गए । अच्छा हुआ नहीं तो मैं परेशान हो जाता। रामदास कुछ देर बैठकर संतोष मिश्रा के पास चला जाता है। मिश्रा कहता है – रामदास तुम्हारे तो पहचान वाले अधिकारी आ रहे हैं। रामदास कहता है – नहीं मिश्रा जी मैं तो पहली बार मिल रहा हूँ। साहब मस्तूरी थाने में थे। इसलिए मेरे गाँव को जानते हैं। रामदास घर खाना खाने चला जाता है। रामवती को नए अफसर केआने की जानकारी देता है। रामवती कहती है कि साहब को भी भोजन करने के लिए बुला लो। रामदास डहरिया साहब से भोजन के लिए आग्रह करता है। साहब सज्जन आदमी थे। साहब स्वीकार कर घर जाने को तैयार हो जाते हैं।

रामवती दूबराज चावल के भात, अरहर दाल, लाल भाजी की साग और टमाटर की चटनी पकाती है। जमीन में चटाई बिझाकर परछी में बैठकर भोजन करते हैं। बड़ा स्वादिष्ट भोजन घी डालकर खिलाती है। साहब भोजन से बहुत खुश हो जाता है। रामवती को धन्यवाद देता है। माधुरी नए साहब को देखती है। दोनों हाथ जोड़कर चरण छूकर प्रणाम करती है। माधुरी को गोदी में उठा लेता है। माधुरी हंसते हुए उतर जाती है। डहरिया साहब कहते हैं – बड़ी प्यारी बच्ची है। भोजन करने के बाद थाने में चले जाते हैं। रामदास थाने में सब समझाता है। मुंशी भी सभि रिकॉर्ड की जानकारी देते हैं। डहरिया साहब रेस्ट हाउस में रुक जाते हैं। जब तक दरोगा साहब का सामान दुर्ग न चले जावे।

प्रेमसिंह डहरिया साहब मस्तूरी थाने में थे। इसलिए परिवार अभी मस्तूरी में था। बच्चे सभी बिलासपुर में किराए के मकान में रहते थे। सभी बच्चों को पढ़ा-लिखा रहे थे। डहरिया साहब मुंगेली से सप्ताह में आ जाते थे। दलगंजसिंह साहब का सामान ट्रक से लदकर दुर्ग के लिए चला जाता है। रामदास सामान पहुंचाकर आता है। प्रेमसिंह यादव चार कोटवार बुलाकर घर की साफ-सफाई कराते हैं। चार दिन बाद मस्तूरी से सामान ट्रक से लदकर आ जाता है। रामदास सभी सामान उतरवाता है। रामवती सभी रसोई के सामान को जमाती है। मिसेज प्रेमसिंह हेमलता बहुत खुश हो जाती है। माधुरी भी दादी-दादी कहकर गोदी में बैठकर खेलने लगती है। सभी सामान जम जाते हैं। रामवती की बाई जी से अच्छी बोलचाल हो गई थी। नए अफसर के आते एक नवयुवती के अंधे कत्ल की सूचना मिलती है। बाजार का दिन था। शहर में चहल-पहल थी। सभी अपनी-अपनी जरूरत की सामग्री खरीद बेच रहे थे। बाजार में अंधे कत्ल की सनसनी फैल जाती है। इसकी सूचना एक राहगीर द्वारा थाने में जाकर दी जाती है। दरोगा साहब रामदास व साथी मिलकर घटनास्थल की ओर जल्दी जाते हैं।

आगर गहरी नदी में लाश पानी में तैरती रहती है। देखने वालों की भीड़ इकट्ठी हो जाती है। रामदास एक स्वीपर को लाश निकालने के लिए कहता है। लाश खींचकर किनारे ले आता है। साश देखकर रामदास कहता है सर, हत्या बलात्कार का मामला जान पड़ता है। फोटोग्राफर सभी तरफ से फोटो लेता है। लाश का पंचनामा बनाकर शव परीक्षण के लिए शासकीय अस्पताल के चीरघर में भेज दिया जाता है। नवयुवती की पतासाजी की जाती है। पता नहीं चलता। दूसरे दिन समाचार पत्रों में अंधे कत्ल का समाचार फोटो सहित प्रकाशित होता है। सभी बड़े अधिकारी थाने में जमा हो जाते हैं। आरक्षकों को शहर के अपने-अपने मुखबिरों से पतासाजी का काम किया जाता है। परन्तु कोई पता नहीं चलता। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पहले बलात्कर कर बाद में हत्या करने के जख्म मिलते हैं। सभी अधिकारियों ने रामदास से कहा कि रामदास कुछ भी करो। हत्यारों को सजा मिलनी ही चाहिए।

रामदास – जी सर, कहकर प्रयास शुरू कर देता है। रामदास पास के गाँव में पतासाजी के लिए जाता है। गाँव का कोटवार जानकारी देता है – सर रमेश साहू की लड़की दो दिन से गायब है। नाम निर्मला साहू। रामदास कोटवार को डांटता है कि गुमशुदा की रिपोर्ट क्यों नहीं लिखाई ? उसने कहा – रमेश आज ही बता रहा था कि मेरी लड़की दो दिन से घर नहीं आई है। मुंगेली के मिशन स्कूल में कक्षा आठवीं में पढ़ती थी। रामदास रमेश को लेकर थाना पहुंचता है। रमेश मृतक युवती का फोटो देखकर पहचान लेता है। मेरी बेटी निर्मला है। रमेश दहाड़ मार-मारकर थाने में रोने लगता है। सभी की आँखों में आंसू आ जाते हैं। होनहार लड़की की हत्या हो जाती है। रामदास पानी पिलाकर रोने से शांत कराता है। दरोगा साहब पूछता है – रमेश, कभी किसी ने छेड़छाड़ की शिकायत तो नहीं की थी ? रमेश – निर्मला ने कभी इसकी शिकायत नहीं की थी सर। दरोगा – कुछ दो बताओ। एक दो आवारा लड़कों के नाम तो बताओ, जो आसपास लड़कियां छेड़ने का काम करते थे। पर रमेश किसी का नाम नहीं बता पाता। रामदास मिशन स्कूल के कक्षा आठवीं की शिक्षिका मालिनी मसीह से निर्मला के बारे में पूछताछ करता है। हाजिरी पंजी में निर्मला का नाम दसवें क्रम में रहता है। निर्मला प्रतिदिन स्कूल आती थी। परन्तु दो दिन से नहीं आ रही है। रामदास उसकी हत्या हो जाने की खबर देता हा। हत्या की खबर मिलते ही स्कूल की छुट्टी कर शोकसभा आयोजित कर दी जाती है। सभी शिक्षक हत्यारों को कड़ी से कड़ी सजा देने की मांग करते हैं। रामदास दो-चार बदमाश लड़कों के नाम लिखकर ले आता है। दरोगा साहब को पूरी जानकारी बता देता है। तीसरे दिन गाँव के बीस लोग हत्यारों को पकड़ने के लिए अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक को ज्ञापन देते हैं। मंडावी साहब शीघ्र पकड़ने का आश्वासन देते हैं। प्रेमसिंह साहब की गले की हड्डी बन जाता है। थाने प्रथम केस दर्ज रहता है। दरोगा साहब चिंतित हो जाता है। अच्छा भला था, आते ही ओले पड़ गए। रामदास को बुलाता है, कहता है – तुम अच्चे आदमी हो। तुम्हारा नाम अपराध पकड़ने में अच्छा है। रामदास कहता है – सर, सतनाम की कृपा बनी रहे। आप पर कोई बट्टा नहीं लगने दूँगा। दरोगा साहब ने बताया, पुलिस अधीक्षक, डीआईजी साहब, कलेक्टर साहब भी आज आने वाले हैं। शहर में अशांति फैलने का डर है। पुलिस अधीक्षक, कलेक्टर साहब, डीआईजी साहब सभी थाने में बैठकर चर्चा करते हैं। उसी समय मिशन स्कूल के लड़के-लड़कियों का जुलूस ज्ञापन देने के लिए आ जाता है। लेक्टर साहब पाँच प्रमुख लोगों को बुलाकर चर्चा कर ज्ञापन ले लेते हैं और लड़कों से कुछ बदमाश लड़कों के नाम पूछता है। एक लड़की बताती है – सर, एक बदमाश लड़का राजेन्द्र मसीह प्रतिदिन स्कूल के पास मंडराते रहता था। परन्तु तीन दिन से गायब है। राजेन्द्र मसीह का पता मिशन अस्पताल के पास बताते हैं। सभी आरक्षकों को सब रामदास को शहर के सभी ठिकानों पर घर को खोजने के लिए पुलिस अधीक्षक ने निर्देश दिए। सभी लड़के-लड़कियां सभी स्कूल-कॉलेज बंद करवा दिए। मुंगेली बाजार भी पूर्णतः बंद रहा। कलेक्टर साहब ने धारा 144 लगा दिया। शांति व्यवस्था भंग न हो। बाजार बंद शांतिपूर्वक निपट जाताहै। सभी अधिकारी शाम को बिलासपुर आवश्यक निर्देश देकर लौट जाते हैं।

प्रेमसिंह साहब की वर्दी शान के खिलाफ अंगुली उछने लगी। सिंह साहब ने राजेन्द्र मसीह के घर में दबिश दी। माँ ने बताया कि तीन दिन से बिलासपुर गया हुआ है। माँ राजेन्द्र की फोटो ले लेता है। राजेन्द्र के रिश्तेदारों के नाम पते भी ले लेता है। रामदास और जानकारी लेकर थाने आ जाता है। रामदास को बिलासपुर भेज कर पतासाजी करने को कहता है। परन्तु राजेन्द्र मसीह बिलासपुर से पेंड्रारोड चला जाता है। बिलासपुर से पेंड्रारोड ट्रेन से रामदास पहुंच जाता है। वहां अपनी बहन के घर ज्योतिपुर में रहने लगता है। ज्योतिपुर जाकर राजेन्द्र मसीह का पता उसकी बहन से पूछता है। सिपाही देखकर पूछती है क्या हो गया है भाई साहब। रामदास को बैठाकर चाय पिलाती है। चाय पीते-पीते रामदास बताता है – बहनजी, मुंगेली में एक युवती की हत्या हो गई है। हत्यारा पकड़ा नहीं गया है। राजेन्द्र का नाम बदमाशों में से है। बहन बोलती है – राजेन्द्र ऐसी गलती नहीं कर सकता। रामदास कहता है कि – बहनजी मिशन स्कूल छात्राओं ने नाम बताया है कि राजेन्द्र को स्कूल के आसपास मंडराता देखा गया था। राधा मसीह कहती है – भइया राजेन्द्र तो सुबह से अमरकंटक घूमने गया है। रामदास को निराशा ही हाथ लगी। पेंड्रारोज थाने में हत्या के बारे में थानेदार साहब को बता देता है। वहीं से टेलीफोन से मुंगेली दरोगा साहब को जानकारी देता है कि राजेन्द्र अमरकंटक गया है। डहरिया साहब निर्देश देता है कि अमरकंटक जाकर पकड़कर लाओ। रामदास जी सर, कहकर टेलीफोन रख देता है।

रामदास थानेदार पेंड्रारोड को सेल्यूट कर जयहिंद कहकर चलने लगता है। दरोगा कहता है कि रामदास तुम्हारे साथ मोटरसाइकिल से हवलदार भेज देता हूं। जल्दी पहुंच जाओगे। रामदास मोटर साइकिल के पीछे बैठकर अमरकंटक की ओर चल पड़ते हैं। जंगली रास्ते से मोटर साइकिल पहाड़ों की चढ़ाई चढ़ने लगती है। अमरकंटक की घाटी बहुत प्रसिद्ध है। घुमावदार घाटी है। लगभग 1600 फुट की चढ़ाई चढ़ जाते हैं। एक अंधे मोड़ में कमांडर जीप पेड़ से टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी। हवलदार जगताप सिंह बताता है कि कल पाँच आदमियों की चालक सहित मृत्यु हो गई है। चालक को बड़ी मुश्किल से निकाला गया। वह सीट में फंस कर मर गया ।। अमरकंटक के बीहड़ घने वनों को द्खकर मन प्रसन्न हो जाता है। चारों ओर हरियाली ही हरियाली है। अमकंटक के वनों में अरबों-खरबों रुपए के इमारती लकड़ी का भण्डार भरा पड़ा है। रामदास अमरकंटक के दृश्यों को देखकर मोहित हो जाता है। क्योंकि पहली बार आए थे। रामदास जंगलराज के वासी नहीं थे। वे मैदानी इलाके के निवासी थे। जगताप सिंह मोटर साइकिल को मंदिर के सामने खड़ी कर देता है। रामदास को कहता है कि नर्मदा के उद्गम स्थान है। नर्मदा माँ के दर्शन कर चलते हैं। रामदास चारों ओर पैनी निगाह से देखता है, कहीं नजर नहीं आता। रामदास और जगताप नईमदा कुण्ड में स्नान करते हैं। कुण्ड का पानी अत्यधिक ठण्डा रहता है। रामदास डुबकी लगाकर नहाता है। कपड़े पहनकर माँ का दर्शन करता है। मंदिर के सामने एक हाथी की मूर्ति है। जगताप ने मूर्ति के के नीचे से जादू टोना, अस्वच्छ मन से कोई नहीं निकल सकता है। बहुत छोटी मूर्ति है। मूर्तिकार ने बहुत सोच-समझकर बनाया होगा। कई विदेशी महिलाएं उत्सुकतावश मूर्ति के नीचे से हंसते-हंसते निकलने का प्रयास करते हैं, परन्तु पेट के पास जाकर फंस जाते हैं। जगताप विदेशी युवतीके शरीर को तिरछा कर निकालने के लिए बताया। युवती परेशान हो जाती है। रामदास और जगताप दोनों आगे पीछे खींच कर निकालते हैं। सभी विदेशी रामदास जगताप के साथ फोटो खिंचाते हैं। एक फोटो तत्काल खींचकर रामदास को दे देते हैं। जगताप एवं रामदास माता के दर्शन कर प्रसाद नारियल चढ़ाकर मंदिर के बाहर आ जाते हैं। मंदिर के आसपास ढूंढते हैं। मंदिर से माई की बगिया, सोन नदी का उद्गम स्थान जाते हैं। कहीं नहीं मिलता। अमरकंटक के सभी धर्मशालाओं, कपिलधारा, जलप्रपात, सहस्रधारा, बालक नगर रोडवेज द्वारा बाक्साईट ले जा रहे हैं। वहाँ भी देखते हैं, परन्तु कहीं नहीं मिलता। रामदास अमरकंटक से पेंड्रारोड आने के लिए कहते हैं। जगताप सिंह मोटर साइकिल को सीधे कबीर चबूतरा के पास रोकते हैं। कबीर दासजी यहाँ भ्रमण करते हुए आए थे। यहां कुछ दिन संत कबीरदास जी एवं गुरू नानक देव जी की भेंट हुई थी। ऐसा जगताप ने रामदास को बताया। उसी समय बिलासपुर के लिए शहडोल वाली बस मिल जाती है। रामदास जगताप को धन्यवाद देता है। बस में बैठकर बिलासपुर आ जाता है। बिलासपुर से मुंगेली बस में आ जाता है। रामदास पहले थाना में जाकर दरोगा साहब को पूरा वाक्या की जानकारी देता है। सिंह साहब चिंतित हो जात है। रामदास को घर भेज देता है। रामवती तीन दिन से इंतजार करती है। रामदास दरवाजा खटखटाता है। माधुरी अंदर से दरवाजा खोलने का प्रयास करती है। पापा-पापा कहकर अंदर से चिल्लाती है। रामवती सिटकनी खोलती है। सामने रामदास का लटका चेहरा। फिर रामवती कहती है कि पकड़ नहीं सके तो क्या करोगे। आओ अंदर। रामवती बैग कोअंदर रखती है। रामदास माधुरी को गोदी में उठाकर प्यार करने लगता है। रामवती कहती है बच्चे को प्यार, माँ को नहीं। रामदास रामवती के गाल में एक चुम्मा लेता है। माधुरी भी पापा की नकल कर चुम्मा लेती है। माधुरी के दोनों गाल का चुम्मा माँ-बाप लेते हैं। माधुरी माँ, पिताजी के प्यार, स्नेह से खुश हो जाती है। रामदास बैग निकालकर एक खिलौना लड़की के लिए जिसे अमरकंटक में खरीदा था दे देता है।
रामदास को रामवती कहती है – क्या हुलिया बना कर रखा है। मजनूं से दिख रहे हो। रामदास रामवती को पूरी कहानी बताता है। अमरकंटक का वर्णन करता है। रामवती कहती है – अकेले-अकेले देखकर आ गए हमें कब दिखाओगे। रामदास को रामवती नहाने को कहती है। रामदास बाथरूम में जाकर स्नान करता है। रामदास पीठ में साबुन लगाने के लिए रामवती को बुलाता है। माधुरी आ जाती है पापा की पीठ में साबुन लगाती है। नन्हें-नन्हें हाथों के स्पर्श से गुदगुदी होने लगती है। रामदास हंसने लगता है। माधुरी अपने चेहरे हाथ पैर में भी साबुन लगाने लगती है। माधुरी पापा के ऊपर पानी डालने लगती है। रामदास माधुरी को भी नहलाता है। रामवती को पुकारता है। माधुरी को ले जाओ। पानी फैला रही है। रामवती रसोई से निकलकर माधुरी को टावेल से पोंछती है। माधुरी दूसरी बार नहाती है। रामवती माधुरी को कपड़े पहनाती है। रामदास भी कपड़े पहनकर खाना खाने के लिए बैठ जाता है। रामदास रामवती साथ बैठकर भोजन करते हैं। रामवती तीन दिनों से ठीक से भोजन नहीं कर पाई थी। दोनों बातें करते खाना खाते हैं, फिर सो जाते हैं।

रामदास सुबह उठकर राजेन्द्र मसीह की खोज में अस्पताल के पीछे क्वार्टर में जाकर पूछता है। राजेन्द्र मसीह घर में बेफिक्र सो रहा था। रामदास दरवाजा खटखटाकर पूछता है – राजेन्द्र कहां है ? माँ कहती है – सो रहा है। रामदास कहता है – ठीक है, अभी जगाओ। रामदास राजेन्द्र मसीह को साथ लेकर थाने पहुंच जाता है। रामदासडहरिया साहब को बताता है। शीघ्र कपड़े पहनकर थाने में आ जाते हैं। दरोगा साहब आते ही एक थप्पड़ राजेन्द्र मसीह को लगाता है। राजेन्द्र मूर्छित हो जाता है। रामदास उठाकर साहब के आगे खड़ा कर देता है। रामदास कहता है कि तुम सच-सच बता दोगे तो तुम्हें सरकारी गवाह बनाकर छोड़ देंगे। नहीं तो जिंदगी भर हत्या के जुर्म में जेल में सड़ते रहोगे। नहीं बताओगे तो इतनी मार पड़ेगी कि नानी याद जाएगी। रामप्रसाद साहू आरक्षक पीछे से एक लात मारता है। धम से नीचे गिर जाता है।
रामदास समझाता है कि बताओ। राजेन्द्र ना-नुकुर करता रहता है। मिश्रा मुंशी बेंत से पिटाई शुरू करता है। राजेन्द्र मार के मारे रोने लगता है। रामदास पानी लाकर पिलाता है। धीरे से रामदास पूछता है तुम भले आदमी हो। शक-सुबहे में क्यों मार खा रहे हो ? तुम्हारे साथियों ने सब कुछ बता दिया है। सभी तुम्हारा नाम ले रहे थे। तुम्हें फांसी की सजा निश्चित होगी। फांसी के डर से राजेन्द्र मसीह टूट जाता है। रामदास को बताता है कि हत्या मैंने नहीं की है । परन्तु हत्या करते देखा है। मुझे मारने के लिए ले गए थे। परन्तु मैं भाग गया था। घर में आकर मुझे धमकी दिए थे कि तुझे एवं तेरी माँ का कत्ल कर देंगे। तुम गवाही मत देना। मैं जान बचाकर भाग रहा था। रामदास कहता है – तुझे कुछ नहीं होगा। नाम तो बता।

रामदास दरोगा साहब को बुलाता है। दरोगा के समक्ष बोलता है कि मैंने हत्या नहीं की है। परन्तु मैंने हत्या करते देखा था। हमारे मुहल्ले के आनन्द मसीह, नूरखान, शेरसिंह ने बलात्कार करने के बाद हत्या की है। तीन अभियुक्तों को पकड़ने रामदास आरक्षक लेकर दरोगा साहब व रामदास जाते हैं। रामदास एक-एक करके तीनों अभियुक्तों को पकड़कर थाने में बंद कर देता है। रामदास सभी मुजरिमों से हत्या का अपराध कबूल करवा लेता है। बयान लेकर राजेन्द्र मसीह को गवाह बनाकर चालान कोर्ट में प्रस्तुत करते हैं। अभियुक्यों को बिलासपुर जेल भेज दिया जाता है। रामदास की कर्तव्यपरायणता में और वृद्धि हो गई।

मुंगेली थे में जितने भी हत्या के प्रकरण थे, सभी में आजीवन कारावास की सजा हो जाती है। रामदास की छवि दू-दूर तक सराही जा रही थी। रामवती रामदास के कार्यों से अति प्रसन्न होती है। अंधे कत्ल की गुत्थी सुलझ जाती है। डीआईजी साहब द्वारा रामदास को प्रमाण पत्र देकर सम्मानित करते हैं। समाचार पत्रों में छपे खबर को सुनकर आसकरणदास एवं मंगलीबाई मुंगेली आ जाते हैं। रामवती थाने से रामदास को बुला भेजती है। माधुरी बुलाकर ले आती है। नाना-नानी को पाकर माधुरी खुश हो जाती है। रामदास माँ-बाबूजी के चरण छूकर प्रणाम करता है। रामदास के गौरव से पूरा परिवार गौरवान्वित हो रहा था। आसकरणदास, माँ ने आशीर्वाद दिया। जल्दी से तरक्की हो जाए। रामदास चुपचाप सुनता रहता है। गाँव के हालचाल पूछता है। सभी ठीक बताते हैं। रात में खाना खाकर सो जाते हैं।

Jemsbond
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Re: पछतावा

Unread post by Jemsbond » 20 Dec 2014 09:00

मुंगेली क्षेत्र में 18 दिसम्बर गुरु घासीदास जयंती बड़े जोर-शोर से मनाते हैं। गाँव-गाँव, शहर-शहर में सफेद ध्वज जैतखाम में फहराते हैं है। सतनाम धर्म की धूम रहतीहै। पास के गाँव लालपुर में मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री कई मंत्रियों के आने की स्वीकृति स्थानीय कार्यकर्ता एवं सरकारी विभागों में आ जाते हैं। जयंती की जोरदार तैयारियां चलती हैं। आसकरण देखने के ले आए थे। रामदास जयंती समारोह के लिए चंदा एवं सहयोग तन-मन से करता है। डॉ. खेलनदास क्षेत्रीय विधायक थे। विधायक महोदय ने रामदास को मुख्य कार्यकर्ता बना दिया था। इधर पुलिस विभाग में ड्यूटी दोनों साथ-साथ कर रहा था। रामदास की मुलाकात विधायक के छोटे भाई खिलावन प्रसाद से हो जाती है। दोनों जी-जान लगाकर जयंती समारोह को सफल बनाने में लगे थे।
18 दिसम्बर के दिन माननीय मुख्यमंत्री जी, केंद्रीय मंत्री जी एवं मध्यप्रदेश शासन के कई मंत्री, सांसद, विधायक समारोह में उपस्थित रहते हैं। जैतखाम में सफेद ध्वज मुख्यमंत्री जी द्वारा पूजा अर्चना कर पंथी गीत, नृत्य के साथ जय सतनाम के नारे के साथ फरहाते हैं। जय सतनाम के नारे सा आकाश गूंज उठता है। लाखों नर-नारी जयंती समारोह में आते हैं। पचास पंथी पार्टियों द्वारा नृत्य गीत का प्रदर्शन किया जाता है। लालापुर को जयंती समारोह के गौरवपूर्ण आयोजन के लिए मुख्यमंत्री महोदय द्वारा विधायक महोदय को बधाई दी जाती है। मुख्यमंत्री एवं केंन्द्रीय मंत्री हेलीकॉप्टर से बिलासपुर जरहाभाठा के गुरू घासीदास जयंती समारोह के लिए उड़ जाते हैं। सभी लोग अपने-अपने घर चले जाते हैं। खिलावन एवं रामदास सभी टेण्ट, माइक सभी सामग्री पहुंचाने में मदद करते हैं। विधायक महोदय ने रामदास को बधाई एवं धन्यवाद दिया। विधायक महोदय गाँव-गाँव के समारोह में रामदास को साथ लेकर जाते थे। रामदास को गाँव-गाँव के लोग जानने लगे। रामदास की लोकप्रियता दिनों-दिन बढ़ रही थी। आसकरणदास जयंती देखकर फूलवारी गाँव अपने ससुराल चला जाता है। खिलावन प्रसाद को जानकारी होती है कि रामदास जी के ससुर हैं। बहुत खातिरदारी करता है। आसकरण दास गाँव के दामाद होने के कारण जीजा का रिश्ता निकल आता है। रामदास को भांजा-दामाद मानता है। रामवती भी मामा पाकर बहुत खुश होती है। रामदास हमेशा परिवार सहित फूलवारी गाँव आते-जाते बहुत लोकप्रिय हो रहे थे। आसकरण दास कुछ दिनों के बाद अपने गाँव चला जाता है।

रामदास एवं खिलावन लगभग सौ गाँव के गुरू घासीदास जयंती में शामिल होते हैं। रामदास के हाथों से सभी जैतखामों में सफेद ध्वज फहराए जाते हैं। रामदास महंत के नाम से विख्यात हो गया। यदि किसी गाँव में कोई झगड़ा, सामाजिक विवाद, जमीनी विवाद या छोटे-मोटे झगड़े का निपटारा चुटकी बजाते न्याय कर देता है। सामाजिक बुराई दूर करने, अंधविश्वास को दूर करने जारी शिक्षा पर जोर देने को कहता था। सभी छोटे-बड़े लोग रामदास को दामाद मानते थे। व्यवहारकुशल सामदास सभी लोगों के सुख-दुख का साथी बनते जा रहा था। रामदास दीन-दुखियों केआसरा बन गया था। पुलिस थाने में भी आये दिन छोटे अपराधों का पंजीयन बंद हो गया था। सिंह साहब रामदास को सामाजिक कार्य करने के लिए सहयोग किया करते थे। खिलावन रामदास के घर में रहकर कक्षा दसवीं की परीक्षा देता है और पास हो जाता है। दोनों में बहुत अच्छी मित्रता हो जाती है।

रामदास को मुंगेली थाने में पूरे तीन साल हो जाते हैं। किसी प्रकार की शिकायत अधिकारियों को नहीं मिलती थी। संतोष मिश्रा रामदास के कार्यों की प्रशंसा करते थे। इधर रामदास के पिताजी बीमार पड़ जाते हैं। घर में माँ सेवा करती है। परन्तु दवा, दारू न होने से ठीक नहीं हो पाता। पूरन को मुंगेली भेजकर रामदास को बुला भेजता है। टीबी की बीमारी से झालरदास एकदम कमजोर हो जाता है। रामदास बिलासपुर ले जाकर धर्म अस्पताल में दिखाता है। डॉक्टर आवश्यक जांच कर कुछ दिन के लिए भर्ती कर लेता है। धीरे-धीरे कुछ आराम मिलता है। टीबी का इलाज लम्बा और सालों चलता है। डॉक्टरों ने रामदास को सलाह दी कि सही ढंग से इलाजके लिए सिनेटोरियम पेंड्रारोड में हो सकता है। डॉक्टर पेंड्रा के लिए रिफर कर देता है। झालरदास के साथ वहां माँ रहती है। कुछ दिनों के बाद माँ गाँव आ जाती है। गाँव में घर की देखरेख के लिए कोई नहीं रहता। झालरदास दो वर्ष सिनेटोरियम में रहकर स्वस्थ होने लगता है। रामदास गाँव के सभी खेतों को अपने बड़े पिताजी जगतारण को दे देताहै। घर के देख-रेख मनमोहन करता था। एक प्रकार से सभी जानवर मर गए थे। घर में कुछ बचा नहीं था। झालर अपने इलाज के लिए बची पाँच एकड़ जमीन भी बेच देता है। रामदास इलाज का खर्चा वहन नहीं कर पाता। घर की आर्थिक स्थिति एकदम खराब हो गई थी। रामदास कर्ज में डूब गया था। रामवती बहुत सोच समझ कर खर्च करती थी।

झालरदास को सिनेटोरियम की आबोहवा अच्छी लगती थी। बढ़िया शांत स्वच्छ वातावरण टीबी मरीजों के लिए स्वर्ग था। झालरदास दो साल में ठीक होकर गाँव चला जाता है। रामदास अपने साथ रहने के लिए कहता है। परन्तु झालरदास को गाँव पसंद था। गाँव में एक बकरी लेकर उसके दूध को सुबह शाम पीते थे। अच्छा फायदा हो रहा था। शांति बाई पति की सेवा में लगी रहती थी। घर का धान, चांवल बेच-बेच कर दवाई खरीद रहे थे। झालरदास साल भर बकरी के दूथ से स्वस्थ हो जाता है। घर से तालाब नहर घाट तक धीरे-धीरे जाता है। झालरदास खानपान में पाँच एकड़ खेत बेच देता है। कुल मिलाकर झालरदास के पास दस एकड़ बच पाता है। छत्तीसगढ़ में महा अकाल एवं बीमारी के कारण किसान झालरदास विपन्न किसान बन जाता है। रामदास अपने वेतन से गुजारा करता है।
रामवती रामदास से कहती है माधुरी को कक्षा पहली में शिशु मंदिर में भर्ती करा दो। रामदास माधुरी को भर्ती करा देता है। माधुरी रोजाना रिक्शा से स्कूल जाने लगती है। रामवती रामदास का जीवन अच्छे ढंग से चलने लगता है। सामवती माधुरी को पढ़ाने-लिखाने में व्यस्त रहती है। शाम सबेरे, रोटी, चावल, सब्जी की रसोई कभी-कभी मेहमान आने पर सोंहारी खीर बन जाती है। माधुरी के लिए सुबह नाश्ता दूध बनाती है। माधुरी बहुत वाचाल और चंचल लड़की है। इनके पैर के नुपूर के झनझन आवाज से घर गूंज जाता है। रामवती माधुरी की पायल की चंचलता से प्रसन्न रहती थी। रामवती रामदास से भोजन करने को कहती है कि दूसरे सिपाही के घर में रेडियो, साइकिल, मोटरसाइकिल, सोने-चांदी के जेवरात हर महीने आते हैं। एक तुम हो पाँच साल हो गए एक नाक और एक कान के लिए झुमका तक नहीं खरीद पाए। सभी महिलाएं मुझ पर हंसती हैं। रामदास स्त्री चरित्र कोजानता था। रामवती थोड़ा आंसू टपका देती है। रामदास कहता है कि इस माह वेतन मिलने दो। दूसरे दिन जाकर तुम्हारे लिए खरीद दूंगा। रामवती के आंसू का असर रामदास पर खूब पड़ता है। रामदास ईमानदार सिपाही था। रामदास ने रामवती कोसमझाया कि मैं दूसरे जैसा भ्रष्टाचारी नहीं हूँ। तुम्हीं तो बोली थी, मेरे वीर सिपाही ईमानदारी से काम करना। सो मैं दादा जी के नाम को नहीं डूबा रहा हूँ। दादा जी होते, तो कितना खुश होते। रामदास के आंसू छलक जाते हैं।

रामदास कहता है – रामवती चरित्र बना लो, इज्जत कमा लो, या रुपए कमा लो। दोनों काम एक साथ नहीं हो सकता। फिर घर से कोई सहयोग नहीं मिलता। गाँव के सभी खेती खत्म होगई है। बाबूजी की बीमारी ने कहीं का नहीं छोड़ा है। मैं कुछ रुपए बाबूजी के लिए गाँव भी भेजता हूँ। रामदास कहता है कि जब मुजा पचासी रुपए मिलते थे तो मैं पचास रुपए तुम्हारे लिए भेजता था परन्तु आज मुझे सात सौ रुपए मिल रहे हैं, परन्तु पचास रुपए घर नहीं भेज पा रहा हूँ। रामवती जिस दिन मुझे वेतन मिलता है उसे तुम्हारे हाथ में सौंप देता हूँ। तुम बड़े अर्थशास्त्री बैंकर हो। कैसे घर चलाती हो मैं जानता हूँ। तुम एक नया पैसा बेकार में खर्चा नहीं करती। अपने लिए तुम रंग, मेहंदी, स्नो-पावडर, साड़ी तक नहीं लाती। इस वेतन से ही गुजारा करती हो। फिर यहां दो-चार मेहमान को भोजन कराना पड़ता है। रामदास कहता है – मैं तुझे सुख नहीं दे सका। पर कोई दुख भी तो नहीं दिया। तुम घर की रानी हो। राज कर रही हो। रामवती सिर झुका कर कहती है सब ठीक है परन्तु पड़ोसिन महिलाओं को कौन समझाए ? क्या हम लोग सम्पन्न घर के नहीं थे। गाँव में एक दिन में पचासों आदमियों के लिए भोजन बनाती खिलाती थी। आज तो हम एक गरीब आदमी को भी भोजन नहीं करा पा रहे हैं।

रामदास कहता है – दादा जी की किस्मत से हम लो खा पी रहे हैं। पं. मणिदास महंत जब तक जिंदा ते, घर धनधान्य से भरा था। उसके जाने के बाद घर खाली हो गया है। शायद बड़े बुजुर्ग लोग ठीक ही कहते हैं कि आदमी के सत्कर्म का फल यहीं मिलता है। दादा जी महान आत्मा थे। जहां जाते थे, आदर सत्कार खूब होता था।

भगवान उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे। रामवती कहती है कि मेरा बेटा बनकर वे मेरी कोख में आ जाते। मैं खुश रहूंगी। रामवती और रामदास की आँखों में आंसू झरने लगते हैं। बड़ा शोक मनाते हैं। माधुरी जग जाती है। मम्मी-पापा को रोते देख स्वयं रोने लगती है। रामवती चुप कराती है – नहीं माधुरी हम लोग तो गप मार रहे थे। तुम्हारे दादा जी के बारे में बातें कर रहे थे। माधुरी पूछती है – क्या नाम था ? रामदास कहता है – पंडित मणिदास महंत, दादी का नाम वेदवती था। माधुरी कहती है कि उनके पिता-माता ने कितना बढ़िया नाम रखा था। रामवती माधुरी को सुलाकर स्वयं सोने का प्रयास करती है। परन्तु नींद नहीं आ रही थी। माधुरी सो जाती है। रामवती धीरे से रामदासको पूछती है – कुछ लेना-देना तो नहीं। रामदास कहता है – दादा जी बहुत याद आ रहे हैं।

मुंगेली तहसील में बरसात के मौसम में बड़ी पीड़ादयक स्थिति रहती है। काली मिट्टी ऊपर से बबूल के कांटे। चिक्कट मिट्टी, हमेशा पैर फिसलने का डर रहता है। बरसात के मौसम भर वहां के लोग सजा काटते हैं। बरसात के बाद मौसम खुशगवार हो जाता है। सभी किसान अपने-अपने खेतों को जोतने-बोने में लग जाते हैं। चना, गेहूं, धनिया, सरसों, मूंग, अलसी, तिवरा, लाखड़ी की बोवाई करते हैं। बीच-बीच में गन्ने की खेती। किसान बड़े समृद्ध हैं। व्यापारिक फसल होने के कारण अधिक अनाज अधिक कीमत में बेचते हैं। धनिया चना सरसों गेहूं अधिक भाव पर बिकता है। हर एक किसान लाखों रुपए के चने, गेहूं, लाखड़ी बेचते हैं। बड़े किसानों के पास ट्रेक्टर भी है। ट्यूबवेल भी कई किसान खुदवा लिए हैं। जनवरी माह में सरसों, गेहूं, दाल, अरहर, धनिया की ळसल देखने लायक रहती है। सरसों फूल से पीली-पीली धरा नजर आती है। धनिया के फूलों की सुगंध सोंधी महक बिखेरती है।

रामदास को खिलावन अपने धनिया, चना के खेत दिखाता है। लगभग सौ एकड़ में रबी फसल बोए रहता है। गेहूं की बाली पकने को तैयार रहती है। फरवरी के अंतिम में सभी फसल पकने लगती है। सभी किसान गेहूं, धनिया, चना की फसल की देखरेख में लगे रहते हैं। खलिहान में फसल को इकट्ठा करते हैं। फागुन मास में पुरवाई चलती है। फागुन के जाते ही चैत माह के आते ठण्डी पुरवाई चलती है। कुछ किसान अपनी फसलों को मिंजकर घर की कोठी में डालते हैं। कुछ फसलों को मुंगेली मंडी में बेच आते हैं। सभी किसानो के हाथों में रुपयों की थैलियां रहती हैं। मुंगेली के लिए आगर एक गंगा सी नदिया जीवनदायिनी है।

खिलावन फसल को मिंजवाने फूलवारी गया था। कुछ फसल को मिंजवाकर घर के कोठी में रख जाते थे। डॉ. खेतान राम विधानसभा सत्र में भोपाल गए थे। गाँव में बड़े भाई परिवार सहित रहते थे। शॉर्ट सर्किट से फसल में आग लग जाती है। सभी फसलें जलकर नष्ट हो जाती है। खलिहान के पास घर में आग पकड़ लेती है। सभी लोग आग बुझाने घर से बाहर रहते हैं। घर में भी भयंकर आग पकड़ लेती है। देखते ही देखते पूरा घर खलिहान धू-धूकर जल जाताहै। एक घण्टे के भीतर सभी लोग उजड़कर आसमान के नीचे आ जाते हैं। सर छिपाने के लिए छत नहीं रहता। खिलावन बहुत रोता है। परिवार के सभी सदस्य जीवित बच जाते हैं। घर में एक बीज अनाज का नहीं बच पाता है। ईश्वर ऐसी विपदा किसी को न दे। रामदास सुनकर तुरंत फूलवारी आता है। साथ में कुछ कपड़े, खाना ले आता है। बच्चों को खाना खिलाता है। गाँव में भयावह स्थिति हो जाती है। टेलीफोन से विधायक महोदय को भोपाल सूचना भिजवाते हैं। विधायक महोदय सब छोड़कर छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस से बिलासपुर आ जाते हैं। बिलासपुर से टैक्सी से मुंगेली होकर गाँव पहुंच जाते हैं। घर की स्थिति देखकर दिल दहल जाता है। कल तक गाँव के सम्पन्न किसान बड़े-बड़े घर के मालिक आज पेड़ की छांव में बैठे हैं। आसमान ही सहारा है। विधायक महोदय की आँखों से आंसू बहने लगते हैं। रामदास सांत्वना देता है – मामा जी, सब ठीक हो जाएगा।

रामदास मुंगेली से तालपत्री, पन्नी कुछ बारदाना भरकर टैक्सी से गाँव ले जाता है। घर के बचे ठूंठ लकड़ी से टेंट जैसे झोंपड़ी बनाते हैं। दो-तीन झोंपडियां बनाकर बच्चों को छाया देते हैं। खिलावन व डॉ. साहब सोचते हैं कैसे मकान पुनः बनाया जाए ? खिलावन ने सुझाव दिए कि बगल वाले गाँव की दस एकड़ जमीन को बेच देते हैं। एक लाख रुपए से गाँव में ईटों के मकान बनवाना शुरू करते हैं। जल्दी से तीन माह में चार कमरों का एक मकान बनकर तैयार हो जाता है। मुंगेली में भी विधायक महोदय मकान बनवा लेते हैं। बचे कुछ रुपयों से गेहूं, धान, तिवरा, अरहर खरीद लेते हैं। रामदास खिलावन को अपने घर रखकर पढ़ाता-लिखाता है। खेती किसानी के लिए भूमि विकास बैंक से एक लाख रुपए का ऋण, बीज, खाद, बैला-भैंसा के लिए लेते हैं। इस प्रकार इससे पुनः खेती प्रारंभ कर देते हैं। नए वर्ष में फसल अच्छी होने से घर धनधान्य से भर जाता है। भूमि विकास बैंक का कर्ज धनिया, चना, गेहूं बेचक रचुका देते हैं। परिवार फिर खुशहाल हो जाता है।
रामदास अधिकांशतः थाने में मुंशी का ही काम करने लगा। संतो, मिश्रा ने पूरा काम रामदास को सिखा दिया। सामदास लिख-पढ़ी में पहले से होशियार था ही। फिर रामदास हव्लदार की विभागीय परीक्षा में बैठता है। हजारों सिपाहियों में रामदास प्रथम आता है। वह दो फीते वाला हवलदार बन जाता है। पदोन्नति भी मुंगेली में मिल जाती है। रामदास थाने को घर जैसा चमका कर रखता था। मुंगेली थाने को आदर्श थाना बना दिया था। सभी क्षेत्रों में मुंगेली थाने का नाम ऊपर था। पुलिस अधीक्षक द्वारा सर्वोत्तम कार्य के लिए 15 अगस्त के परेड में उसे पुरस्कृत किया जाता है।

मुंशी रामदास की लोकप्रियता दिनों-दिन बढ़ रही थी। इधर मामा ससुर विधायक डर काहे का ? दरोगा तक रामदास से डरते थे। रामदास अपने अफसरों का उचित सम्मान करते थे। इसलिए सभी लोग खुश रहते थे। वहां के गाँवों यदि कोई विवाद हुआ, रामदास को ही बुलावा आता था। गाँव की बैठक में रामदास दोनों पक्षों को सुनकर न्याय के पक्ष में निर्णय देता था। रामदास एक नारियल सतनाम के नाम से लेकर जैतखाम में फोड़ता था। फिर सबको प्रसाद बांटता था। इसलिए गाँवों के छोटे-छोटं अपराधों का एफआईआर दर्ज नहीं होता था। रामदास का नाम लेते ही अन्यायी डर जाया करते थे।

रामदास अक्सर रामवती को बाजार घुमाने ले जाता रहता है। रामवती के पुराने गहनों को बदलकर वह नए गहने भी बनवा देता है। रामवती गहनों में चमकने लगी थी। सभी महिलाएं उसके गहने देखकर तारीफ करती थीं। रामवती ने अपने कानों के कर्ण फूल, चांदी के पाय, सोने की चैन, नाक की लौंग, सोने की दो चूड़ियां, उधारी कर कुछ नगद कर गहने खरीद लिए थे। रामवती बहुत खुश है। जब भी गहने पहनकर निकलती थी, तो मॉडल या हीरोइन जैसी दिखती थी। एक बच्ची की माँ होने के बाद भी वह नवविवाहिता सी लगती थी। गहने से उसके चेहरे में निखार आ जाता है। रामदास चेहरा देखकर खुश हो जाता है। रामवती बिना खिले नहीं रह पाती।

Jemsbond
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Re: पछतावा

Unread post by Jemsbond » 20 Dec 2014 09:01

खिलावन मेट्रिक पास होकर रायपुर में बीएससी करने चला जाता है। रामदास अब अकेला रह जाता है। एक अभिन्न मित्र चला जाता है। वह रामदास को पत्र लिखता है कि मैं गिरौदपुरी मेला देखने जा रहा हूँ। यदि आप चलो तो टैक्सी-जीप लेकर आ जाता हूँ। खिलावन रायपुर से जीप लेकर मुंगेली आ जाता है। रामवती, माधुरी व रामदास पहले से तैयार बैठे रहते हैं। रामदास तीन दिन की छुट्टी ले लेता है। खिलावन को भोजन खिलाकर मुंगेली से गिरौदपुरी धाम के लिए जीप चल पड़ती है। बिलासपुर में रुककर पानी पीते हैं। बिलासपुर से कुछ खाने पीने की चीजें रख लेता है। जीप नब्बे की रफ्तार से चलती है। शाम चार बजे गरौदपुरी शिवरीनारायण होकर पहुंचते हैं। जीप को सड़क के किनारे खड़ी कर दर्शन करने चल पड़ते हैं। चार किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। क्योंकि सड़क के किनारे दोनों ओर मेला में सामान बेचने वालों की दूकानें लगी रहतीहैं। आदमियों का रेला लगा रहता है। लाखों की भीड़ रहती है। रामदास पुलिस की वर्दी मे रहता है। इसलिए घंटे भर में दर्शन कर लेते हैं। रुक कर जैतखाम में अगरबत्ती जलाते हैं। नारियल को तोड़ते हैं। दोनो हाथ जोड़कर प्रणाम करते हैं। माधुरी का मत्था टिकाती है। रामवती पूजा करती है। लाइन में अपार आदमी। लगभग तीन से चार घंटे बाद संत गुरू घासीदास जी के ररण पादुका (खड़ाऊ) के दर्शन होते हैं। खिलावन जैतखाम के बालाजी का स्मरण करता है। खिलावन को बाबाजी चढ़ जाते हैं। खिलावन भूमि पर लोटने लगता है। झूमने-नाचने लगता है। आदि दर्शनार्थियों की भीड़ में रामदास उठाता है। खिलावन जोर-जोर से चिल्लाता है। बाबा जी की जय हो। सतनाम साहिब की जय हो। सभी सतनामी भाई मन, गुरूजी के संदेश को नहीं मान रहे हो। मांस मदिरा बंद नहीं कर रहे हो, बीड़ी तम्बाकू खा रहे हो। सबका ध्यान खिलावन पर केंद्रित हो जाता है। रामदास उसे पकड़कर अगरबत्ती से पूजा कराता है। अमृतजल छिड़ककर शांत किया जाता है। एकाएक खिलावन को होश आ जाता है। जोड़ा जैतखामा में नारियल फोड़कर पूजा करता है। मंदिर के पास पेड़ मे एक पेड़ में सफेद साँप दुधिया रंग के पेड़ की शाखा में इधर-उधर घूमने लगता है। सभी दर्शनार्थी बाबाजी के रूप में उसे प्रणाम करते हैं। सभी लोग एक दूसरे को बता रहे थे। लोगों में विश्वास है कि सर्प के रूप मे बाबा जी ही दर्शन देते हैं। सामवती माधुरी को सांप दिखाती है। माधुरी देख लेती है। खिलावन अपने कपड़ों से धूल झाड़कर ठीक करता है। दर्शनों के बाद रामदास भोजन बनाने के लिए महराजी गाँव की ओर चल पड़ते हैं। गाँव में एक परछी में भोजन पकाने के बर्तन रामवती उतारती है। पकाने के लिए सभी सामान मौजूद होता है। हेम्डपम्प से पानी लेकर भोजन बनाया जाता है। खिलावन भी तब तक हेण्डपम्प से स्नान करके आ जाता है। रामदास और माधुरी रामवती को सहयोग देते हैं। दाल, भात, सब्जी बनाती है। सब्जी पक रही थी तो खिलावन कहता है कि तुम लोग भी हाथ-पांव धोकर आ जाओ। रामवती, रामदास और माधुरी हाथ-पांव धोते हैं। रात लगभग आठ से अधिक हो जाता है। वहां पर कई दर्शनार्थी दुर्ग, भिलाई, रायपुर से आए रहते हैं। भोजन बनाकर खा पी रहे थे। महराजी मार्ग से छाता पहाड़ जाने का रास्ता है। रामवती चादर बिछाकर रामदास, खिलावन, माधुरी, सुरेश ड्राइवर को भोजन कराती है। आखिरी में भोजन के बाद मोटर सायकल से डी.एस.पात्रे रेंजर साहब पत्नी के साथ आ जाते हैं। रामवती दोनों को भोजन बनाकर खिलाती है। पिकनिक जैसा लगता है। रात उसी परछी में सो कर गुजारते हैं।

गिरौदपुरी मेला में रात्रि कई सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। संत गुरू घासीदास जी के पंथी गोला नृत्य, चौका आरती, नाटक, प्रवचन, पंडवानी, गुरूजी का चरित्र वर्णन विभिन्न शैलियों में कर रहे थे। संत महंत गुरूजी परिवारों द्वारा निःशुल्क भण्डारा खोला गया था। आदमियों का जत्था इतना आ गया था कि सभी पण्डालों में भोज्य सामग्री और पानी खत्म हो गया। पानी के लिए लोग प्यासे ही भटक रहे थे। शासन द्वारा पानी की व्यवस्था थी। परन्तु पर्याप्त नहीं थी। करुणा माता ने सरकारी मेला प्रभारी एसडीएम बलौदा बाजार के घर शिकायत की तब कहीं दूसरे दिन पानी की विशेष व्यवस्था हो सकी। रेस्ट हाउस में विशिष्टजन रुकते हैं। शासन द्वारा मेला समिति बनाई जाती है। उसी के द्वारा सारी व्यवस्था सम्पन्न कराई जाती है। मेला समिति में मुख्यमंत्री द्वारा सम्मानित प्रमुख,सांसद, विधायक और अन्य सामाजिक व्यक्तियों को सदस्य बनाया गया था। रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, राजनांदगांव, रायगढ़ के जन समिति के सदस्य थे। मेला में लाखों रुपए का चढ़ावा चढ़ता है। इसे मेला समिति अपने बैंक में जमा करा देती है।

गिरौदपूरी मेला में लाखों नर-नारी गुरू दर्शन के ले आते हैं। बस, जीप, ट्रक, ट्रैक्टर, बैलगाड़ी, पैदल, जिस व्यक्ति को जो भी सुविधा मिल जावे। उसी में बैठकर धर्मालु जन जय सतनाम कहते चले आते हैं। गिरौदपुरी एवं आसपास के गाँवं में जय सतनाम की गूंज से आकाश गुंजायमान हो जाता है। इस पवित्र भूमि की धूल को चंदन समझकर माथे में लगाते एवं शरीर में लगाते हैं। जहां-जहां गुरूजी के चरण पड़े थे, उस माटी की पूजा जन समुदाय करते हैं। ऐसा मेला पूरे छत्तीसगढ़ में कहीं नहीं भरता है। जहां देखो वहां नर-नारियों की भीड़ भक्ती के गीत भजन गाते झूमते रहते हैं। मंदिर के बाहर पहाड़ी पथरीली जगहों पर रुककर भोजन बनाते, खाते और सोते पड़े रहते हैं। वहां की ऊँच-नीच, छोटा-बड़ा, अमीर-गरीब नहीं होता है। यदि किसी व्यक्ति को खाने का सामान नहीं मिलता है तो किसी भी दर्शनार्थी के पास जाकर निःशुल्क भोजन ग्रहण कर सकता है। गुरूजी की विशेष कृपा होती है कि वहां कोई व्यक्ति भूखा नहीं सोता। कहीं न कहीं भोजन मिलता अवश्य है।

रामदास व खिलाव जीप में बैठकर जोंक में स्नान करने जाते हैं। शौच कर के जोंक नदी के स्वच्छ निर्मल धारा में स्नान करते हैं। माधुरी दौड़-दौड़कर पानी में उछल-कूद रही थी। रेती से खेल रही थी। रामवती भी दूर जाकर शौच एवं स्नान करती है। नदी से बाल्टी में साफ पानी भोजन बनाने के लिए लाते हैं। वहां हजारों लोग भोजन बनाने के लिए तैयारी करते रहते हैं। खिलावन जंगल से लकड़ी ले आता है। तीन पत्थर रखकर चूल्हा बना लेते हैं। फिर एक आम पेड़ के नीचे चादर बिछाकर बैठ जाते हैं। पहले भोजन करते हैं, बाद में बर्तन साफ करके जीप में रख लेते हैं।

रामदास खिलावन परिवार सहित जोंक नदी से महराजी होते हुए छाता पहाड़ जाते हैं। जीप को नाले के किनारे बने पार्किंग स्थल में रख देते हैं। वहां से पैदल दो किलोमीटर घने साल के वनों से जाते हैं। वहां सूर्य प्रकाश भूमि पर नहीं पड़ता। सब पेड़ों की छाया में चलते हैं। नाले के पास एक पड़े विशाल चट्टान में गुरूजी ने बैठकर सत्य का ज्ञान प्रत्यक्ष प्राप्त किया था। बाबाजी उस विशाल पत्थर के ऊपर बाबाजी कैसे चढ़े होंगे ? फिर चारों ओर कई ट्रक लकड़ी इकट्ठी करके उसमें आग लगाई गई थी और आग के बीच ध्यान मुद्रा में बैठकर सतपुरुष सतनाम साहब का ध्यान साधा था। अग्नि की ज्वाला से बाबा जी का शरीर तपने लगा होगा। व्याकुल हो गए होंगे। आग की तीव्रता ने पूरे जंगल में हाहाकर मच गया होगा। सभी पशु, पक्षी, शेर, चीता, हिरण, सियार, गाय, बैल, भैंस जंगल छोड़कर भागने लगे होंगे। किसी कु कुछ समझ आया रहा हो या नहीं पर बाब जी तब तक ध्यान में बैठे रह गए थे जब तक उन्हें ज्ञान के दर्शन नहीं हुए। उन्होंने कहा – भले मर जाऊँ। आग से नहीं डरूंगा। अन्त में बाबाजी को सत्य ज्ञान की अनुभूति हुई। कहते हैं इसी समय आकाश में बादल छाए और घनघोर वर्षा हुई। बाबाजी के शरीर में पानी की तेज बूंदों के गिरने से कुछ ठंडा हुआ। चारों ओर की भीषण आग पानी से बुझ गई। बाबा जी ध्यान-मुद्रा छोड़कर नीचे उतर आए और सघन वनों से होकर गाँव गिरौदपुरी में प्रकट हुए। सभि संतों को वहां हजारों नर नारी गुरू दर्शन के लिए खड़े थे। गुरूजी ने सत्य का संदेश जय सतनाम साहब के पाँच नाम का उपदेश दिए। जय सतनाम के आवाज से आकाश गुंजायमान हो गया। गिरौदपुरी के एक-एक कंकड़, पत्थरर, पेड़, पौदे, मिट्टी में गुरूजी का ज्ञान समाया हुआ है।

छाता पहाड़ में जोड़ा जैतखाम संतों ने गड़ाए हैं। बाबा के आकार के विशाल शिलाखंड को भक्तगण पूजते हैं। भक्तगण चट्टान के किनारे-किनारे दरारों में बची हुई राख को ढूंढते हैं। राख को बाबाजी का प्रसाद समझकर दिलक लगाते हैं। रामदास भी माधुरी को गोद में लेकर चढ़ाई चढ़ता है। रामवती नारियल अगरबत्ती लिए धीरे-धीरे पत्थरों को पार करती चट्टान के पास पहुंचती है। हजारों की भीड़, नर-नारी नारियल अगरबत्ती जलाकर पूजा-अर्चना करते हैं। जय गुरू घासीदास बाबा की जय। जय सतनाम साहेब की। पास में जोड़ा जैतखाम में ज्योति कलश जलाती है। रामदास, माधुरी सभी मत्था टेकते हैं। खिलावन जैसे ही जैतखाम के पास पहुंचता है। खिलावन कांपने लगता है और वहीं पर गिर जाता है। सिर और पैर कोपीटने लगता है। गायक दल पंथी-गीत मांदर की थाप पर गाते रहते हैं। जैसे-जैसे मांदर की धुन बजती जाती है उतना ही ज्यादा वह झूमने लगता है। खिलावन को रामदास पकड़ता है परन्तु पकड़ नहीं पाता। रामदास एक संत को बुलाता है। संत खिलावन पर पानी छिड़कता है। अगरबत्ती जलाकर हाथ में पकड़ाकर पूजा कराता है, पूजा करते ही वह शांत हो जाता है। खिलवान एक शिलाखंड पर बैठकर पसीने को पोंछता है। रामदास गमछा से हवा करता है। थोड़ा ठीक लगने पर विशाल शिलाखंड की परिक्रमा कर रामवती, माधुरी, रामदास और खिलावन नीचे उतर जाते हैं। छाता पहाड़ घने सघन वन में स्थित है। संत गुरु घासीदास जी को सत्यज्ञान की प्राप्ति 1820 में हुआ था। आज से दो सौ साल पहले उस घने जंगल में कोई व्यक्ति नहीं जा पाता रहा होगा। वहां अनेक हिंसक पशुओं का निवास था। ऐसे ही निर्जन स्थान को बाबा जी ने अपने तप स्थल बनाया था। यह आज भी पहुंचविहीन है। वन विभाग गो चाहिए कि वह इसको पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित कर दे। आश्चर्य है कि यहां के हिंसक पशु किसी भी दर्शनार्थी को तंग नहीं करते। रामदास, खिलावन जीप से मंदिर के पास आ जाते हैं। जीप को सड़क के किनारे खड़ी कर देते हैं। वहां से पैदल चलकर मंदिर पहुंचते हैं। मेला में गुरुदर्शन के लिए आसाम, बिहार, जमशेदपुर, कलकत्ता, नागपुर, भोपाल, दिल्ली, उड़ीसा, बंगाल, आंध्रप्रदेश, दुर्ग, राजनांदगांव, रायपुर, बस्तर, सरगुजा, रायगढ़ बिलासपुर जिले से लाखों लोग आए थे। भीड़ की भीड़ दर्शन के लिए आ रही थी। रामदास, रामवती, माधुरी, खिलावन मंदिर के पीछे से अमृतकुण्ड के दर्शन के लिए जाते हैं। एक किलोमीटर की दूरी पर एक कुआं बना हुआ है। उसे रायपुर के तत्कालीन कलेक्टर श्री अजीत जोकी ने पक्का बनवा दिया है। कुएं का पानी शीतल एवं मीठा है। इसे सभी दर्शनार्थी पीते हैं एवं शीशी में भरकर अमृत समझकर ले जाते हैं। रामवती भी बोतल में भरकर पानी रखती है। माधुरी को प्यास लगी रहती है। पानी पीती है। बहुत अच्छा लगता है। पानी पीने से थकान दूर हो जाती है। वहां से एक किलोमिटर की दूरी पर जंगल के भीतर झरने में एक छोटा आकार का कुआं बना हुआ है। वहां बाबा जी स्नान किया करते थे। दो सौ साल पहले पानी का अपार स्थल रहा होगा, परन्तु आज इतना पानी नहीं है। आज भी वहां पर साधु संत बैठकर जाप, ध्यान करते रहते हैं। माधुरी देखकर बहुत प्रभावित होती है। वापस मंदिर के पास बने पंडाल के मंच में श्री देवीदास बंजारे एवं साथियों का पंथी नृत्य हो रहा था। पंथी गीत गाते हुए देवदास धोती, जनेऊ पहने खुला बदन निकलते हैं। एक ताल एवं लय से चीता के चपत चाल झूम-झूम कर नाचन्न मांदर के धुन में नामन्न। रामदास, माधुरी, खिलावन का मन झूमने नाचने लगता है। वह बड़े मोहक ढंग से प्रस्तुति कराता है।

गीत
मंदिरवा मा का करे जइवो।
अपन घर के देवला मनइबो।।
पथरा के देवता हालत न डोलत ऐ
काबर मुड़ पर कहतो।
मंदिरवा म का करे जइवो।।

देवदास द्वारा तीन गीत एक घण्टे में प्रस्तुत किया जाता है। लाखों लोग झूम रहे होते हैं। देवदास लगभग एक सौ साठ देशों में पंथी नृत्य का प्रदर्शन कर सतनाम के ध्वज को विश्व में फहरा चुका है। जय सतनाम के उद्घोष को आकाश में गुंजायमान कर चुका है। देवदास जन्मजात लोक कलाकार हैं। जब वह मंच से चला जाता है तब लाखों की भीड़ तालियों की ध्वनि से स्वागत करती है। श्री पुराणिक लाल चेलक साथियों द्वारा पंथी नृत्य प्रस्तुत करते हैं। लगभग पचास-साठ पंथी पार्टियों द्वारा अपनी-अपनी कलाओं का वृहत प्रदर्शन किया जाता है। दोपहर दो बजे जोड़ा जैतखाम में विजय गुरु द्वारा ध्वजारोहण किया दाता है। संत गुरु घासीदास की जयघोष से आकाश गूंज जाता है। सभी संत, महंत, अधिकारी, गुरु परिवार एकत्र रहते हैं। जय सतनाम का नारा लगाते हैं। गुरु दर्शन करने के बाद मेला की समाप्ति हो जाती है। सभी दर्शनार्थी जैसे आए थे वैसे जाने लगते है। रामदास, खिलावन, माधुरी, रामवती अपने पहचान के गाँव वाले रामसनेही महंत, राजमहंत डी.पी. धृतलहरे, श्री धनेश परला, डॉ. खेलनराम, देवचरण, मधुकर, श्री परसराम, सांसद नरसिंह मंडल, डॉ. विनय पाठक, पूर्व सांसद केयूर भूषण, के.पी. खण्डे, बहादुर सिंह, दलगंजनसिंह एवं अन्य गणमान्य लोगों से मिलते हैं। खिलावन सभी लोगों से परिचय करते हैं। रामदास सभी लोगों को जय सतनाम कहते हैं। रामवती को सबसे मिलकर अच्छा लगता है। रामवती के पिताजी आसकरणदास जी से भी मेले में भेंट हो जाती है। माधुरी नाना के पास हो लेती है और गोद से उतरती नहीं है। रामदास, खिलावन, रामवती सभी जीप में बैठकर शिवरीनारायण महानदी को पारकर आ जाते हैं। महानदी में हाथ पैर धोकर वहां के प्राचीन मंदिर में भगवान जगन्नाथ, समुद्र, बलराम के दर्शन करते हैं। शिवरीनारायण का प्राचीन रामायणकाल से प्रसिद्ध है। महानदी के पावन तट पर बसा शिवरीनारायम भगवान राम शबरी के नाम से पड़ा है। इसी स्थान में वनवास काल में भगवान राम को शबरी ने झूठे बेर खिलाए थे। राम-लक्ष्मण सीता शबरी आश्रम में कुछ दिन ठहरे थे। यहां से कुछ दूरी पर महानदी के ऊपरी क्षेत्र में महर्षि वाल्मीकि का आश्रम था। तुरतुरिया नामक स्थान में वाल्मीकि जी ने रामायण की रचना की थी। सीता वनवास, लव एवं कुश की शिक्षा-दीक्षा वहीं हुई थी। इसलिए शिवरीनारायण रामायण, महाभारत काल से प्रसिद्ध है। रामदास खिलावन को बताता है कि यहां से आठ किलोमीटर की दूरी पर खरोद नाम के नगर में लखेश्वर महादेव मंदिर है। जहां शिवलिंग में एकलाख छिद्र हैं। वहां एक लाख चावलके दाने चढ़ते हैं। बहुत प्राचीन मंदिर है। रामदास जीप से मस्तूरी, मस्तूरी से गाँव टिकारी अपने घर आ जाता है। घर के परछी में बैठकर झालर गाँव वाले लड़कों को कथा कहानी सुना रहे थ। सबी लड़के चुपचाप कान लगाकर सुन रहे थे। रात के आठ बजे झालर ने कथा पूरने की बात कही, उसी समय रामदास पहुंच जाता है। जीप दरवाजे में रुकती है। जीप की आवाज सुनकर सभी लड़के पास आ जाते हैं। रामदास, माधुरी, रामवती, खिलावन, आसकरण दास उतरते हैं। लड़के लोग चिल्लाते हैं। मनमोहन भइया के पैर पड़ता है। रामवती माधुरी दरनाजे के पास झालर के चरण स्पर्श कर प्रणाम करती है। माधुरी को झालर चूम लेता है। माधुरी की पायल की आवाज रुनझुन-रुनझुन छमछमाछम करती है। रामवती, माधुरी घर के अंदर चली जाती हैं। शांति भोजन पकाने के लिए सेमी को साफ करती रहती है। माधुरी दादी-दादी चिल्लाकर गोदी में बैठ जाती है। रामवती माँ को चरण छूकर प्रणाम करती है। शांति आशीर्वाद देती है – दूधो नहाओ, पूतो फलो। रामवती हंस देती है। सामवती कहती है माता जी चार लोग और आए हैं। रामवती हाथ-पैर धोकर रसोई बनाने की तैयारी में लग जाती है। शांति लोटे में पानी लेकर दरवाजे के पास रख देती है। रामदास, खिलावन बाबूजी को प्रणाम करके बैठे रहते हैं। झालर आसकरण दास जी से समधी भेंट करते हैं। एक-दूसरे के गले मिलते हैं। रामदास माँ का प्रणाम पैर छूकर करता है। खिलावन दूर से नमस्कार करता है। आसकरण जी दूर से दोनों हाथ जोड़कर जमीन पर बैठ कर प्रणाम करता है। शांति समधीजी को उचित सम्मान देती है। रामदास लोटे के पानी को खिलावन, आसकरणदास जी को पांव धोने के लिए देता है। मेहमान का आदर सत्कार यहीं से शुरु होता है। रामदास ससुर एवं खिलावन को आंगन के परछी में खाट बिछाकर बैठाता है। रामवती लोटे गिलास में पानी पीने के लिए देती है। खिलावन पानी पीता है। एक कमरे में ले जाकर कपड़े उतार लुंगी पहनकर तालाब जाने के लिए तैयार होते हैं। माधुरी दादा जी के पास बैठकर मेला के बारे में बताती है। रामदास टॉर्च लेकर तालाब के घाट में पहुंच जाता है। लोटे में पानी लेकर शौच के लिए अमराई की ओर चले जाते हैं। शौच से निपटकर घाट में आ जाते हैं। खिलावन बड़े तालाब में कमल के फूलों को देखकर खुश हो जाता है। तालाब में मस्त हो, सिर डुबाकर स्नान करते हैं। तालाब से आने तक रामवती दाल, भात, सब्जी, चटनी पकाकर रखती है। रामदास जैसे ही आंगन में आते हैं, रामवती कहती है – भोजन तैयार है। झालर, आसरकरण, रामदास, खिलावन परछी मे बैठकर एक साथ भोजन करते हैं। माधुरी नाना और दादा के साथ भोजन करती है। शांति, रामवती एक साथ बैठकर भोजन करते हैं। शांति पूछती है कि बहू माधुरी को पांच साल हो गए। अब कुछ नहीं दिखता। रामवती कहती है – माँ अभी नहीं है। रामदास और मुझे दादाजी सपने में आकर मुझसे पीने के लिए पानी मांग रहे थे। माँ जी शायद दादा जी की आत्मा भटक रही है। शांति कहती है बहू तेरा बेटा बनकर आने वाला है। इसलिए पानी पीने के लिए मांग रहा था। रात में खाना खाकर सो जाते हैं।

दूसरे दिन सुबह उठकर रामदास और दोनों मेहमान शौच के लिए नहर पार की ओर जाते हैं। नहर में पानी बहता रहता है। गेहूं के खेत में सिंचाई के लिए पानी छोड़ा गया रहता है। एक किलोमीटर सुबह टहलते-टहलते चले जाते हैं। दूर जाकर नहर के किनारे शौच करते हैं। पुलिया के पास नहर में हाथ मिट्टी से धोते हैं। नहर के किनारे आम के अमराई देखते-देखते तालाब के घाट में आ जाते हैं। भोजवा तालाब बहुत बड़ा तालाब है। तालाब कमल फूलों से पटा रहता है। बतख, ऐरी, बगुला, कई प्रकार की छोटी पनडुब्बी चिड़िया चहक रही थीं। चींची बगुले की कर्र-कर्र आवाज गूंज रही थी। भौरों के दल के दल कमल के फूलों पर मंडरा कर गुन-गुन गीत सुना रहे थे। बहुत ही मनोरम दृश्य था। खिलावन देखकर खुश हो जाता है। आम की अमराई से कोयल, पपीहे की मधुर आवाज सुनाई दे रही थी। शांत वातावरण अतिप्रिय लग रहा था। रामदास घाट पर आकर रुक जाता है। पीपल पेड़ के नीचे बैठ जाता है। पचरी घाट में दातून ब्रश करते हैं। रामदास के पुराने साथी दो-चार आ जाते हैं। रामदास धीरे-धीरे सीढ़ी उतरने के लिए बोलता है। सीढ़ी में काई जमी है। खिलावन के पैर फिसल जाते हैं। वह एकदम गहरे पानी में पहुंच जाता है। रामदास पचरी घाट से धड़ाम से पानी में कूदकर खिलावन को पकड़ लेता है। खिलावन तैरने लगता है। रामदास दोनों तालाब में दूर तक तैरते चले जाते हैं। कमल फूल के कांटे तैरने में लगते थे। पानी कटीले भी बहुत थे और कांटों सेतैरने में तकलीफ होती है। रामदास दूर से कमल फूल माधुरी के लिए लेकर आता है। स्नान करके घर को लौटते हैं। रामवती भी माधुरी के साथ नहाने घाट पर आती है। माधुरी अपने हाथों में पानी लेकर सीढ़ी पर ही नहाने लगती है। रामवती चार सीढ़ी उतरकर नहाती है। रामवती के रूपरंग में निखार आया रहता है। सभी महिलाएं रामवती से पूछती हैं कि और कितने बच्चे हैं ? रामवती कहती है – बस यही एक लड़की है। हमारे लिए लड़का भी है यही है। इसे खूब पढ़ाना है। अफसर, मजिस्ट्रेट, जज साहब बनाना है। आजकल बेटा-बेटी एक बराबर माने गए हैं। आजकल बेटा होने का भी क्या फायदा है। एक बूढ़ी महिला ने कहा – नहीं रामवती वंश चलाने के लिए एक पुत्र तो होना ही चाहिए। कम से कम एक पुत्र जो मरने पर एक मुट्ठी माटी दे। पाँच चुरु का उरई को पानी दे। रामवती ग्रामीण महिलाओं से बहस नहीं करना चाहती। रामवती कहती है – दाई सभीलोग अपनी-अपनी टुरी (पुत्री) टुरा को पढ़ाएं-लिखाएं इसी में भलाई है। मैं पढ़ी-लिखी हूँ। इसीलिए घर को ठीक ढंग से चलाती हूँ। सभी महिलाएं सुनती रहती हैं। रामवती के जेवर, गहनों के देखती रहती हैं। रामवती की पायल छम छम छमाछम कर रही थी। जैसे ही पैर रखती पायल बोल पड़ती थी। रामवती माधुरी को लेकर घर आ जाती है। कपड़े पहनकर रसोई में भोजन बनाने लग जाती है।

रामदास बाड़ी में खिलावन को पेड़-पौधे दिखाने ले जाते हैं। बाड़ी में किनारे-किनारे मुनका, सीताफल, नीम, आम के पेड़ लगे थे। कुएं के पास भुसावली केले के कई घेर (फूल) उतरे थे। माधुरी पापा से पूछती है – पपा क्या है ? रामदास बताता है – केला है बेटी। बाड़ी में भटा, मूली, गोभी, लाल भाजी, लौकी, करेला, सेमी इत्यादि लगाए थे। कुएं से पानी निकालकर सिंचाई की जाती थी। घर में माँ हीसब करती है। पिताजी तो बीमार हैं, टीबी की बीमारी ने उन्हें कमजोर बना दिया है। खेती है उसे अधिया पर दे दिया है।

रामवती दाल, चावल चढ़ाकर, साड़ी में लाल भाजी तोड़ने चली जाती है। धनिया पत्ती, लाल भाजी जल्दी-जल्दी तोड़ती है। बाड़ी से हरी मिर्च तोड़ लाती है। टमाटर भी खूब लगे रहते हैं। पके-पके टमाटरों को तोड़ती है। रामवती जल्दी से भोजन पका लेती है। आठ बजे रामदास, खिलावन, आसकरण और माधुरी भोजन करने बैठ जाते हैं। रामवती भोजन परोसती है। रामदास दाल में घी डलवाता है। दाल, चावल, लाल-भाजी का साग, टमाटर की चटनी खाने में खिलावन को मजा आ जाता है। रामदास कहता है – रामवती के हाथ का भोजन खाने में मजा आता है। मैं तो भर पेट छककर खाता हूँ। रामवती माधुरी को भोजन कराती है। कपड़े पहनकर खिलावन को मल्हार दिखाने ले जाता है। साथ में आसकरण, रामवती और माधुरी जीप में बैठकर धूल उड़ाते चले जाते हैं। टिकारी से बकरकूदा, सेचकरबेड़ा फिर मल्हार पड़ता है। पाँच किलोमीटर की दूरी आधे घण्टे में ही पहुंच जाते हैं। रामदास सबसे पहले डिड़ीनदाई डिडनेश्वरी देवी के दर्शन करने जाते हैं। जीप को मंदिर के किनारे खड़ी कर देते है। नारियल, अगरबत्ती, प्रसाद लेकर देवी में चढ़ाते हैं। रामदास, खिलावन, रामवती अगरबत्ती जलाकर पूजा करते हैं। पूजा-अर्चना के बाद मंदिर से निकलकर खईयां तालाब को देखते हैं। जीप रोककर मेला ग्राउंड में जवालेश्वर महादेव मंदिर में पूजा करते हैं। पुरातत्व विभाग द्वारा निकाली गई विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्ति को देखते हैं। 11वीं से लेकर 6वीं शताब्दी मूर्तियां रखी हुई हैं। खिलावन देखकर खुश हो जाता है। एक विशाल पत्थर पर अठारह हाथ लम्बा चौपहला भवन के लिए किसी समय लाया गया होगा। बीस टन से अधिक वजन से जड़ा हुआ है। बाद में पुरातत्व विभाग द्वारा खुदाई की गई। मंदिर के भग्नावशेष दिखते हैं। खुदी के पहले एक नीम पेड़ के नीचे मंदिर के खंडहर दिखते हैं। टीले के रूप में था। पुरातत्ववेत्ता ने गिरे हुए पत्थरों को हटवाया। वहां विशाल मंदिर का गर्भगृह मिला। आज दर्शनीय स्थल है। मल्हार गाँव में जगह-जगह घर-घर में देवी देवताओं के मंदिर हैं। यह प्राचीन नगरी है। किसी समय में समृद्ध राजधानी थी।

खिलावन को मल्हार दर्शन कराकर घर आ जाते हैं। दोपहर का भोजन करने के बाद रामदास, रामवती, माधुरी, बाबूजी माँ से छुट्टी लेकर जीप से मुंगेली रात को आठ बजे पहुंच जाते हैं। खिलावन कहता है – रामदास मेरी परीक्षाएं नजदीक हैं। मैं रायपुर जा रहा हूं। रामदास, माधुरी, आसकरण, रामवती तीन दिन से थके रहते हैं, थोड़ा आराम करते हैं। रामवती भोजन पकाती है। भोजन करने के बाद सभी सो जाते हैं। रामदास रात में ही थाने जाकर मुंशी से कुशल मंगल पूछते हैं। मुंशी बताता है सब ठीक है। रामदास इत्मीनान से बेंच पर सो जाता है। सुबह सात बजे ही जगता है। सुबह की परेड में हाजिर हो जाता है। थानेदार सबको ड्यूटी पर भेज देता है। जब सभी अपने काम पर चले जाते हैं तब रामदास अपने मुंशी का काम करने लगता है।

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