Re: पछतावा
Posted: 20 Dec 2014 09:05
रामदास की कुल जमा तेरह साल की सेव अवधि थी। इस तरह तेरह साल में दो पदोन्नति हो चुकी थी। सहायक निरीक्षक से उप निरीक्षक बनने के लिए 6 माह का और समय था। रामदास का कार्य एवं गोपनीय चरित्रावली बहुत अच्छी रहती है। उत्कृष्ट श्रेणी होने के कारण पदोन्नति समिती द्वारा विचार क्षेत्र में लिया जाता है। पदोन्नति के योग्य पाया जाता है। रामदास थाने में बैठा कार्य निपटा रहा था। मनमोहन गाँव से कोरबा थाने पहुंचता है। भइया के चरण छूता है। रामदास पूछता है कि गाँव में चुगली-चारी, जुआ चित्ती, दारू मंद पीकर सब कोई बिगड़ गए हैं। एकदूसरे को नीचा दिखाने के लिए झूठमूठ के झगड़े लड़ाई में फंसा देते हैं। गाँव अब रहने लायक नहीं रह गया है। परंतु गाँव में पुश्तैनी घर, खेत, सम्पत्ति है। छोड़कर कहां जाए ? आपने अच्छा किया कि पुलिस विभाग की नौकरी में आ गए। मन मोहन बताता है – चाचा जी की तबीयत कुछ दिनों से खराब है। खाना-पीना बंद हो गया है। इसलिए आया हूं। स्कूलों में गर्मियों की छुट्टियां हो गई है। चाचा ने बच्चों को गांव बुलाया है। वे बच्चों को देखना चाहते हैं। रामदास थाना से निकलकर घर आता है और रामवती को बताता है। रामवती कहती है एक माह की छुट्टी ले लो। पिताजी की बीमारी के कारण अवकाश मिल जाएगा।
रामदास अर्जित अवकाश का फार्म भरकर कतलम साहब को दे देता है। कतलम साहब पिताजी की बीमारी का कारण जानकर अनुशंसा कर देता है और अवकास में जाने के लिए रवाना कर देता है। रामदास बच्चों सहित जीप में गाँव आ जाता है। रामदास को देखकर माँ भी खुश हो जाती है। रामवती, माधुरी, रामदास तीनों माँ के चरण छूकर प्रणाम करते हैं। चन्द्रशेखर को गोदी में लेकर चूमने लगती है। झालरदास परछी के खटिया में खोक, खोक कर रहा था। लेटा हुआ था। उठने की हिम्मत नहीं थी। रामदास, रामवती चरण छूकर प्रणाम करते हैं। वह पैर में हाथ लगने से जाग जाता है। कहता है – बेटा अच्छा हुआ आ गए। मैं तो कब मर जाऊं, भरोसा नहीं। माधुरी दादाजी के पास बैठकर प्रणाम करती है। शांति बाई चन्दू को लेकर पहुंच जाती है। रामदास पिताजी को सांत्वना देता है कि सब ठीक हो जाएगा। मस्तूरी से डॉक्टर बुलाऊंगा। डॉ. गुप्ता बढ़िया इलाज करता है। झालर दास कहता है – नहीं बेटा, अब मेरा जाने का समय आ गया है। खर्च मत करना। चन्दू को देखता है। झालरदास कहता है कि – बिल्कुल मेरे पिताजी के ऊपर गया है। चारों तरफ देखकर सोने का प्रयास करता है। शांति दवाई लाती है। रामवती, रामदास दोनों पकड़कर गोली को खिलाते हैं। गोली खाने से नींद आ जाती है। रामदास रामवती कपड़े बदलने अपने कमरे में चले जाते हैं।
रामवती रसोई में जाकर भोजन बनाती है। सब मिलकर परछी में बैठकर भोजन करते हैं। माधुरी को गाँव की सब्जी, दाल, भात बहुत अच्छा लगता है। दादी माधुरी के लिए पुराना अचार आम, नींबू के निकालती है। माधुरी चटकारे लेकर आम के अचार को काती है। चन्दू को भी दाल भात खिलाती है। भोजन करके रामदास सो जाते हैं। राउत, केवट पास पास के घरों के पास से मुर्गा बांगने की आवाज आती है – कुकडुकूं-कुकडूकूं। रामदास की नींद उचट जाती है। रामवती कहती है – आज तो सो जाओ, ड्यूटी में नहीं जाना है। यहां शांति से तो उठो। रामदास सुनकर सोने का प्रयास करता है परंतु नींद नहीं आती। प्रातः उठकर रामदास लोटा में पानी लेकर नहर पार की ओर चला जाता है। दो किलोमीटर पैदल चलकर शौच के लिए जाता है। शौच से निपटकर तालाब के घाट में आ जाता है। तालाब का दृश्य देखकर अवाक रह जाता है। तालाब में कोई कमल का फूल पत्ती न चिड़ियों कलरव। तालाब के चारों ओर की अमराई को देखता है। सभी वीराना। सभी मीठे आक के पेड़ों को दुष्ट जमींदार ने रहने नहीं दिया था, बल्कि उसे खेत में बदल दिया था। सौ से दो सौ वर्षों के पेड़ों को कटवा दिया था। सभी खाली-खाली दिख रहा था। तालाब के उस पार जमींदार ने एक झोंपड़ी बनवा ली थी। घाट के सामने झोंपड़ी, पशुओं के लिए मकान। अच्छा नहीं लग रहा था। अब वह रामदास के सपनों का आदर्श गाँव नहीं था। बहुत परिवर्तन हो गया था। गाँव एकदम परायालगने लगा था। घाट में रामदास कुछ सोच रहा था। तालाब में नहाने के लिए उतरापर जरा भी मन नहीं लगा। तालाब का पानी मछली मारने के कारण गंदा हो गया था। मछली ठेकेदार जाल डालकर मछली मार लेता था। पानी एकदम खराब हो गया। रामदास का मन खिन्न हो जाता है। कैसं गाँव का विकास हो। सोचने लगता है। ग्राम पंचायत का सरपंच भी खाने पीने में मस्त था। गाँव के विकास से उसे कोई मतलब नहीं था। पूरन और मनमोहन घाट में आ जाते हैं। पूरन दरोगासाहब को नमस्कार करता है। रामदास हाथ मिलाकरबात करताहै। रामदास बदलावों के बारे में पूछता है। वह रामदास को गनी अमराई के ठण्डी जुड़ छांव के उजड़ जाने की सारी कहानी बताता है। तालाब के चारों ओर मीठे-मीठे आम के बड़े-बड़े पेड़ किसी पुण्यात्मा ने ही लगाए थे। जमींदार ने उस सार्वजनिक जमीन को अपने नाम पटवारी अभिलेख में रुपए देकर चढ़वा लिया। फर्जी दस्तावेज के आधार पर पटवारी ने नाम दर्ज कर दिया। गाँव वालों ने बहुत विरोध किया। परंतु उसने बांदा से लठिया मैनेजर रखकर अमराई को काट डाला। जमीन किसानों को बेच दिया। रामदास सुनकर दंग रह जाता है। साले लोग सारी भूमि बेचकर अपनी तिजोरी भर लिए। और अब गाँव छोड़कर भाग गए। रामदास और मनमोहन स्नान कर घर आ जाते हैं। रामवती और माधुरी चाय पीकर रामदास का इंतजार कर रहे थे। रामदास को पीने के लिए गाय का एक गिलास दूध दिया। साथ में चीला रोटी ती, धनिया, मिर्च-लहसुन, टमाटर की चटनी परोसी। बहुत स्वादिष्ट लग रहा था। बहुत दिनों के बाद चीला रोटी खाया था। दूबराज के चावल की सुगंध से ही आधा पेट भर गया था। रामदास गरम-गरम रोटी खा रहा था। रामवती रोटी पका रही थी। सुबह का नाश्ता हो गया था। चन्दू को भी एक दो कौर रोटी खिलाया कपड़ पहनाकर परछी में बैठा दिया, तभी चार सयाने वृद्ध लोग आ जाते हैं। रामदास सभी को नमस्कारकरता है। एक वृद्ध मुनकूराम पूछता है – बेटा कहां रहते हो ? रामदास ने बताया – दादाजी, आजकल कोरबा में रहता हूँ। पिताजी की बीमारी के कारण एक महीने की छुट्टी लेकर आया हूँ। मुनकूराम – अच्छा-अच्छा। झालर बहुत अच्छा आदमी है। बेटा ठीक से इलाज करवा दे। पिता केरहने से घर द्वार ठीक रहता है। कम से कम चौकीदारी तो करता है। रामदास कहता है – मैं तो उन्हें कोरबा बुलाया था। माँ-पिताजी को अपने साथ रखने के लिए बोला था। झालरदास कहता है - कुछ दिन रहने के बाद बोरियत महसूस करने लगा। फिर कुछ दिन के बाद गाँव आया हूँ। मैं क्या करूं ? गाँव का मोह नहीं छूटता। फिर गाँव में खेती किसानी है। गाँव का मान सम्मान वहां कहां मिलेगा। इसलिए गाँव आ गया। झालर महंत अब धीरे-धीरे ठीक होने लगता है। सात दिन में पूर्ण स्वस्थ होकर बाहर-भीतर चल लेता है। गाँव के लफंगे बदमाश लड़के लोग दारू पीकर हुल्लड़ करते दरवाजे के पास आकर गाली बकने लगते हैं। आपस में झगड़ने लगते हैं। गाँव में जुआ का जोर था। आसपास के लोग जुआ खेलने आते हैं। जीतने वाले से दारू के पैसे लेकर पीते थे। गाँव में सूदखोरी बढ़ गई थी। कई किसान के लड़के उधर जुए में हार गए थे। सूदखोर लोग एक हजार रुपए के आठ दिन में पन्दह सौ लेते थे। आठ दिन में नहीं चुकाने पर चवन्नी ब्याज लगाते थे। दो महीने में पाँच हजार रुपए हो जाता था। दस हजार रुपए का तीन माह में तीस हजार रुपए लेता था। कई किसान अपनी जमीन बेचकर कर्ज को चुकाता था। कई किसान भूमिहीन हो गए थे। गाँव में चोरी बढ़ गई थी। सूने मकानों में से धान, बर्तन-भांडे, गहने चुराकर जुआ खेलते थे। गाँव में अभी भी ताले नहीं लगाते थे। परन्तु चोरी के डर स ताला लगाने लगे हैं।जो सम्पन्न किसान थे, उनके दरवाजों में ताला लगा रहता था। छोटे किसान एवं मजदूरों के यहां ताला नहीं लगाते थे। बड़े विश्वास से एक दूसरे की मदद करते थे। कुछ वर्षों से शहर की आबोहवा सिनेमा देखकर बिगड़ गए थे। रामदास गाँव में न रहकर कभी बिलासपुर, कभी मस्तूरी, कभी सेंदरी जाकर समय बिता रहा था। रामवती, माधुरी भी गाँव में ऊब रहे थे। माधुरी कक्षा नवमी की पुस्तक ले आई थी। बेठे-बैठे पढ़ती रहती थी। आसपास के सम्पन्न किसानों को पता जलता है कि जोगी दरोगा साहब के यहां शादी योग्य लड़की है, देखने के लिए आते। रामदास ने रामवती से कहाकि माधुरी को पढ़ा-लिखा कर जज साहब बनाएंगे। इधर माधुरी भी शादी नहीं करना चाहती थी। परछी में बैठकर रामवती माधुरी के सिर में जुए निकाल रही थी। गाँव के तालाब में नहाने से माधुरी के सिर के बालों में जुए अधिक भर गए थे। उसके लंबे-लंबे केश थे। कमर तक आ गए थे। मादुरी दोनो वेणी में लाल फीते बांधकर चलती थी। तितली के समान उड़ती चलती थी। बहुत सुन्दर, गोरी रंगत, पाँच फीट ऊंचाई। देखने वाले एक ही नजर में उसे पसंद कर लेते थे। माधुरी को माहवारी भी शुरू हो गई थी। इसलिए रामवती विवाह करवाना चाहती थी। कुछ ऊंच-नीच न हो जाए। हर माँ अपनी पुत्री को विवाह करके सुखी जीवन की कामना करती है। परन्तु रामदास माधुरी को जज बनाना चाहता था। माधुरी भी पढ़ना चाहती थी। रामवती पढ़ी-लिखी थी। इसलिए लड़की को गाँव में नहीं देना चाहती थी। एक माह का अवकाश अच्छे ढंग से बीत रहा था। आब मात्र चार दिन बाकी थे। मनमोहन जुए में पचास हजार रुपए हार गया था। रोजाना चार-पाँच लोग गाली गलौज कर रहे थे। धमकी भी दे रहे थे। मनमोहन रामदास के बड़े पिताजी का लड़का था। उसके घर का दरवाजा आमने-सामने था। रामदास को बहुत बुरा लग रहा था। परन्तु क्या करता ? मनमोहन को समझाया कि तुम उधार इन लोगों से क्यों लिए ? दूसरे दिन सामलदास नामक बदमाश लठैत, चार लठैत लेकर, दारू पीकर गाली गलौज करने लगा। माँ-बहन कीगाली देने लगे। मनमोहन चुपचाप सुन रहा था। मनमोहन को गर से निकाल कर फिर लाठियों से पीटने लगे, तब रामदास ने मना किया। परंतु दारू के नशे में वे रामदास को ही पीटने लगे। रोकने बचाने पर वे भाग गए। रामदास गुस्से में आगबबूला हो गया। आँखें लाल हो गईं। वह गुस्से में कांपने लगा। रामवती रोककर बोली – तुम्हें क्या करना है ? रामदास क्रोध में पागल हो गया। घर से एक हाथ में लाठी, दूसरे हाथ में तलवार लेकर निकल पड़ा। रामवती गली तक पीछे-पीछे दौड़ती रही परन्तु रामदास दौड़ते हुए दूर जा चुका था। उधर रामदास ललकरता है कि रुको सालों, मुझे मारे हो। मैं दैख लूंग। सामलदास भागने लगता है। कुछ दूरी पर रामदास उसे पकड़ लेता है। सामलदास एवं रामदास में झूमा झटकी होती है। लाठियों से वे एक दूसरे पर वार करते हैं। रामदास घायल हो जाता है। रामदास क्रोध से आगबबूला हो जाता है। तलवार की मूठ पकड़कर एक वार गले पर करता है। सामलदास का गला कटकर अलग हो जाता है। कटा धड़ और सिर तड़पने लगता है। वहां पर खून की धार पहने लगती है। रामदास के कपड़ों में खून के धब्बे लग जाते हैं। रामदास नंगी तलवार खून से सनी लेकर गाँव में घूमने लगता है। रामदास पागलों की तरह हरकत करने लगता है। सामलदास को मार डाला कहकर जोर से अट्टहास करने लगता है। गाँव वाले सभी अपने दरवाजे बंद कर लेते हैं। सामलदास की हत्या हो जाती है। रामदास घर जाता है। रामवती से पानी मांगता है। रामवती बहुत रोती है। माधुरी, शांति, झालरदास भी रोने लगते हैं। यह तूने क्या किया बेटा ? एक मरे हुए को मारकर हत्या का अपराध कर डाला तूने ? जरा चन्दू की ओर ध्यान दिया होता। अब रामवती और माधुरी का क्या होगा ? रामदास का क्रोध शांत होता है। हत्या के अपराधबोध से रोने लगता है। माँ मैंने क्या कर डाला ? हत्या करने के बाद बहुत पछताता है। पर अब पछताने से क्या फायदा ? हत्या तो हो ही गई थी। माँ, अब बच्चों का पालन-पोषण कर शादी कर देना। मेरी किस्मत में यही लिखा था। मैं अपने कर्मों के फल अब जेल जाकर भुगत लूंगा।
रामदास आँखों में आंसू लिए नंगी तलवार और लाठी लिए घर से निकल पड़ता है। गाँव में सभी दरवाजे बंद मिले। कोई देखकर बात नहीं करता बल्कि दरवाजे को बंद कर लेते हैं। एक खूंखार हत्यारे को देखकर सभी भाग खड़े होते हैं। गाँव में सामलदास की हत्या की खबर आग की तरहफैल जाती है। सभीलोग देखने के लिए चल पड़त हैं। वहां सिर और धड़ अलग पड़े थे। जमीन में खून बह रहा थआ। वहां काली मिट्टी लाल हो गई थी। सामलदास की पत्नी और बच्चे व परिवार वाले चिल्ला-चिल्ला कर दहाड़ मारकर रो रहे थे। परिवार के सारे सदस्य रो रहे थे। गाँव वाले सांत्वना दे रहे थे। सामलदास की उम्र लगभग 45 वर्ष रही होगी। सामलदास नम्बरी बदमाश था। निहत्थे लोगों को मारना, पीटना, सूदखोरी, शराब बेचना उसका धंधा था। गाँव में सामलदास का आतंक था। गाँव के लोग दबे जुबान कह रहे थे कि अच्छा हुआ जो उस बदमाश को मार डाला। बेचारा रामदास जबरदस्ती फंस गया। मर्डर हो गया। उसका परिवार बर्बाद हो जाएगा। गाँव का कोटवार सायकिल से मस्तूरी थाना जाकर सामलदास की हत्या की जानकारी देता है। थानेदार बलवान सिंह 302 का जुर्म दर्ज कर एफआईआर रामदास जोगी के विरुद्ध दर्ज कर लेता है। और सूचना बताती है कि हत्या करने के बाद रामदास जोगी गाँव से ईटवा गाँव फिर अरपा नदी की ओर जाते लोगों ने देखा है। थानेदार तुरंत मोटरसाइकिल से पीछे सिपाही बिठाकर टिकारी गाँव तफ्तीश के लिए जाते हैं। गली में लाश पड़ी रहती है। भीड़ इकट्ठा रहती है। थानेदार को देखकर गाँव वाले वहां से खिसक जाते हैं। मात्र परिवार के सदस्य खड़े रहते हैं। कोटवार पास के घर से खाट मांकर ले आता है। मुख्य साक्ष्य में उनकी पत्नी और बच्चों का बयान लेता है। गाँव वाले कोई गवाही नहीं देते। पटवारी से स्थल का नक्शा तैयार कराता है। लाश को पोस्टमार्टम के लिए मस्तूरी शासकीय अस्पताल ले जाने के लिए कोटवार को बोलता है। बैलगाड़ी से लाश को मस्तूरी ले जाते हैं। एक घण्टे के भीतर लाश का पोस्टमार्टम कर थाने में आकर गुप्ता दे देता है। धारदार तलवार से सिर को धड़ से अलग करने की रिपोर्ट देता है। हत्या का पूरा प्रकरण बन जाता है। रामदास गाँव से ईटवा गाँव की ओर जाता है। एक घण्टे चलने के बाद वह अरपा नदी में पहुंचता है। नदी में तलवार लाठी फेंक देता है। अंधेरे तलवार नदी में गहरे डूब जाती है। लाठी धारा में बहने लगती है। रामदास पूरे कपड़े सहित नदी की धारा में मुँह डुबाकर स्नान करता है। एक घण्टे स्नान करते-करते अपने किए पर पछताता है। फिर जोर-जोर से दहाड़ें मारकर रोने लगता है। जितना क्रोध बढ़ाया उसे आंसुओं में बहाकर नदी में प्रवाहित कर देता है। स्नान करने से क्रोध शांत हो जाता है। फिर जीवन के बारे में परिवार की याद आने लगती है। फिर पुलिस का डर सताने लगता है। बहुत सोच विचार कर अन्त में तय कर पाया कि कहां जाया जाए। क्या किया जाए। पुलिस थाने में जाकर आत्म समर्पण किया जाए। अपराध तो हो गया है। क्षणिक उत्तेजना में क्रोध के कारण हत्या हो गई थी। रामदास बहुत पछताता है और अपने किए पर रोता है। क्या करे, कहां जाए – बार-बार दिमाग में उधेड़बुन चल रही थी। उधर रात का अंधेरा बढ़ रहा था। रामदास का मन स्थिर हुआ। बहुत समय बीतने के बाद याद आया चलो आज की रात नगाराडीह में बिताया जाए। सभी कपड़ों को साफ धोकर और सुखाते-सुखाते गाँव की ओर चला गया। कहां थानेदारी की नौकरी। कितने अपराधियों को पकड़ने के ईनाम मिले थे। आज अपराधी बनकर भाग रहा है। रामदास मन में सोचता है क्यों न फांसी लगाकर आत्महत्या कर लूं। परंतु रामवती, माधुरी और चन्द्रशेखर का क्या होगा सोचकर आत्महत्या का विचार छोड़ देता है। गाँव पास में था। जल्दी पहुंच गया। रामदास रात दस बजे दरवाजे को खटखटाता है। दरवाजा मनराखन सिंह खोलता है। रामदास के चरण स्पर्श करता है। रामदास भइया के चेहरे के रूप रंग को देखकर घबरा जाता है। पूछता है – कहां से आ रहे हो रात में ? नदी में नहाकर गाँव से ही आ रहा हूँ। लोटा में पानी पैर धोने के लिए लाता है। रामदास पैर धोकर एक लोटा पानी पीने के लिए मांगता है। रामदास की मूछें हमेशा ऊपर रहती थी। रामदास हट्ट-कट्टा था। चेरहे पर मूछें अच्छी लगती थी। अब पश्चाताप की लहरें चेहरे पर स्पष्ट झलक रही थी। भोजन करके रामदास सोने का प्रयास किया परंतु रात भर नंगी तलवार और कटा सिर बार-बार स्मृति में आ जाता था। रात भर अपराधबोध में खाट में इधर से उधर पलटता रहा। सुबह मनराखन ने पूछा – भइया रात भर सो नहीं पाए क्या कारण है ? रामदास मन के बोझ को हल्का करने करने के लिए हत्या करने की जानकारी दे देता है। रामदास ये भी कहता है – मैं कल मस्तूरी थाना जाकर आत्म समर्पण कर दूंगा। जीवन भर अपराधियों को पकड़ता रहा। आज मैं अपराधी बनकर भाग रहा हूं। रामदास सुबह पानी पीकर गाँव टिकारी के लिए चल पड़ता है। खलिहान की ओर से घर में जाता है। रामवती पूछती है – रात में कहां थे ? रामदास बताता है – मैं रात में नगाराडीह में था। रात भर सो नहीं पाया। रामवती कहती है – कल थानेदार साहब आए थे। गवाहों के बयान लेकर गए हैं। रामवती कहती है खाना खा लो और थाने जाकर अपना जुर्म कबूलकर लो। रामदास कुछ भोजन करता है। मनमोहन को कहता है कि भाई साइकिल में मस्तूरी ले चल। मनमोहन साइकिल में बिठाकर थाने ले जाता है। रामदास हत्या का जुर्म कबूल कर लेता है। थानेदार चालान बनाकर न्यायालय में प्रस्तुत करता है। रामदास को जेल भेजने का आदेश न्यायाधीश दे देता है। शाम को रामदास बिलासपुर जेल में हत्या के अपराध में बंद हो जाता है। रामदास विचाराधीन कैदियों के बीच में रहता है। कैदियों के कपड़े, कम्बल, चादर लेता है। उसके मुरझाए चेहरे को देखकर सभी समझाते हैं कि रामदास भोजन कर लो। परंतु उस रात वह भोजन नहीं कर पाता। पानी पीकर रात बिताता है। वहां के कैदियों को बताता है कि एक छोटी सी भूल क्रोध के कारण एक की हत्या हो गई मेरे हाथ से। मैं सहायक उपनिरीक्षक पुलिस विभाग में था। एक से बढ़कर एक अपराधियों को पकड़-पकड़ कर जेल भेज दिया करता था। आज मैं कैदी स्वयं हूं और एक अपराधी बनकर यहां आया हूं।
रामदास अर्जित अवकाश का फार्म भरकर कतलम साहब को दे देता है। कतलम साहब पिताजी की बीमारी का कारण जानकर अनुशंसा कर देता है और अवकास में जाने के लिए रवाना कर देता है। रामदास बच्चों सहित जीप में गाँव आ जाता है। रामदास को देखकर माँ भी खुश हो जाती है। रामवती, माधुरी, रामदास तीनों माँ के चरण छूकर प्रणाम करते हैं। चन्द्रशेखर को गोदी में लेकर चूमने लगती है। झालरदास परछी के खटिया में खोक, खोक कर रहा था। लेटा हुआ था। उठने की हिम्मत नहीं थी। रामदास, रामवती चरण छूकर प्रणाम करते हैं। वह पैर में हाथ लगने से जाग जाता है। कहता है – बेटा अच्छा हुआ आ गए। मैं तो कब मर जाऊं, भरोसा नहीं। माधुरी दादाजी के पास बैठकर प्रणाम करती है। शांति बाई चन्दू को लेकर पहुंच जाती है। रामदास पिताजी को सांत्वना देता है कि सब ठीक हो जाएगा। मस्तूरी से डॉक्टर बुलाऊंगा। डॉ. गुप्ता बढ़िया इलाज करता है। झालर दास कहता है – नहीं बेटा, अब मेरा जाने का समय आ गया है। खर्च मत करना। चन्दू को देखता है। झालरदास कहता है कि – बिल्कुल मेरे पिताजी के ऊपर गया है। चारों तरफ देखकर सोने का प्रयास करता है। शांति दवाई लाती है। रामवती, रामदास दोनों पकड़कर गोली को खिलाते हैं। गोली खाने से नींद आ जाती है। रामदास रामवती कपड़े बदलने अपने कमरे में चले जाते हैं।
रामवती रसोई में जाकर भोजन बनाती है। सब मिलकर परछी में बैठकर भोजन करते हैं। माधुरी को गाँव की सब्जी, दाल, भात बहुत अच्छा लगता है। दादी माधुरी के लिए पुराना अचार आम, नींबू के निकालती है। माधुरी चटकारे लेकर आम के अचार को काती है। चन्दू को भी दाल भात खिलाती है। भोजन करके रामदास सो जाते हैं। राउत, केवट पास पास के घरों के पास से मुर्गा बांगने की आवाज आती है – कुकडुकूं-कुकडूकूं। रामदास की नींद उचट जाती है। रामवती कहती है – आज तो सो जाओ, ड्यूटी में नहीं जाना है। यहां शांति से तो उठो। रामदास सुनकर सोने का प्रयास करता है परंतु नींद नहीं आती। प्रातः उठकर रामदास लोटा में पानी लेकर नहर पार की ओर चला जाता है। दो किलोमीटर पैदल चलकर शौच के लिए जाता है। शौच से निपटकर तालाब के घाट में आ जाता है। तालाब का दृश्य देखकर अवाक रह जाता है। तालाब में कोई कमल का फूल पत्ती न चिड़ियों कलरव। तालाब के चारों ओर की अमराई को देखता है। सभी वीराना। सभी मीठे आक के पेड़ों को दुष्ट जमींदार ने रहने नहीं दिया था, बल्कि उसे खेत में बदल दिया था। सौ से दो सौ वर्षों के पेड़ों को कटवा दिया था। सभी खाली-खाली दिख रहा था। तालाब के उस पार जमींदार ने एक झोंपड़ी बनवा ली थी। घाट के सामने झोंपड़ी, पशुओं के लिए मकान। अच्छा नहीं लग रहा था। अब वह रामदास के सपनों का आदर्श गाँव नहीं था। बहुत परिवर्तन हो गया था। गाँव एकदम परायालगने लगा था। घाट में रामदास कुछ सोच रहा था। तालाब में नहाने के लिए उतरापर जरा भी मन नहीं लगा। तालाब का पानी मछली मारने के कारण गंदा हो गया था। मछली ठेकेदार जाल डालकर मछली मार लेता था। पानी एकदम खराब हो गया। रामदास का मन खिन्न हो जाता है। कैसं गाँव का विकास हो। सोचने लगता है। ग्राम पंचायत का सरपंच भी खाने पीने में मस्त था। गाँव के विकास से उसे कोई मतलब नहीं था। पूरन और मनमोहन घाट में आ जाते हैं। पूरन दरोगासाहब को नमस्कार करता है। रामदास हाथ मिलाकरबात करताहै। रामदास बदलावों के बारे में पूछता है। वह रामदास को गनी अमराई के ठण्डी जुड़ छांव के उजड़ जाने की सारी कहानी बताता है। तालाब के चारों ओर मीठे-मीठे आम के बड़े-बड़े पेड़ किसी पुण्यात्मा ने ही लगाए थे। जमींदार ने उस सार्वजनिक जमीन को अपने नाम पटवारी अभिलेख में रुपए देकर चढ़वा लिया। फर्जी दस्तावेज के आधार पर पटवारी ने नाम दर्ज कर दिया। गाँव वालों ने बहुत विरोध किया। परंतु उसने बांदा से लठिया मैनेजर रखकर अमराई को काट डाला। जमीन किसानों को बेच दिया। रामदास सुनकर दंग रह जाता है। साले लोग सारी भूमि बेचकर अपनी तिजोरी भर लिए। और अब गाँव छोड़कर भाग गए। रामदास और मनमोहन स्नान कर घर आ जाते हैं। रामवती और माधुरी चाय पीकर रामदास का इंतजार कर रहे थे। रामदास को पीने के लिए गाय का एक गिलास दूध दिया। साथ में चीला रोटी ती, धनिया, मिर्च-लहसुन, टमाटर की चटनी परोसी। बहुत स्वादिष्ट लग रहा था। बहुत दिनों के बाद चीला रोटी खाया था। दूबराज के चावल की सुगंध से ही आधा पेट भर गया था। रामदास गरम-गरम रोटी खा रहा था। रामवती रोटी पका रही थी। सुबह का नाश्ता हो गया था। चन्दू को भी एक दो कौर रोटी खिलाया कपड़ पहनाकर परछी में बैठा दिया, तभी चार सयाने वृद्ध लोग आ जाते हैं। रामदास सभी को नमस्कारकरता है। एक वृद्ध मुनकूराम पूछता है – बेटा कहां रहते हो ? रामदास ने बताया – दादाजी, आजकल कोरबा में रहता हूँ। पिताजी की बीमारी के कारण एक महीने की छुट्टी लेकर आया हूँ। मुनकूराम – अच्छा-अच्छा। झालर बहुत अच्छा आदमी है। बेटा ठीक से इलाज करवा दे। पिता केरहने से घर द्वार ठीक रहता है। कम से कम चौकीदारी तो करता है। रामदास कहता है – मैं तो उन्हें कोरबा बुलाया था। माँ-पिताजी को अपने साथ रखने के लिए बोला था। झालरदास कहता है - कुछ दिन रहने के बाद बोरियत महसूस करने लगा। फिर कुछ दिन के बाद गाँव आया हूँ। मैं क्या करूं ? गाँव का मोह नहीं छूटता। फिर गाँव में खेती किसानी है। गाँव का मान सम्मान वहां कहां मिलेगा। इसलिए गाँव आ गया। झालर महंत अब धीरे-धीरे ठीक होने लगता है। सात दिन में पूर्ण स्वस्थ होकर बाहर-भीतर चल लेता है। गाँव के लफंगे बदमाश लड़के लोग दारू पीकर हुल्लड़ करते दरवाजे के पास आकर गाली बकने लगते हैं। आपस में झगड़ने लगते हैं। गाँव में जुआ का जोर था। आसपास के लोग जुआ खेलने आते हैं। जीतने वाले से दारू के पैसे लेकर पीते थे। गाँव में सूदखोरी बढ़ गई थी। कई किसान के लड़के उधर जुए में हार गए थे। सूदखोर लोग एक हजार रुपए के आठ दिन में पन्दह सौ लेते थे। आठ दिन में नहीं चुकाने पर चवन्नी ब्याज लगाते थे। दो महीने में पाँच हजार रुपए हो जाता था। दस हजार रुपए का तीन माह में तीस हजार रुपए लेता था। कई किसान अपनी जमीन बेचकर कर्ज को चुकाता था। कई किसान भूमिहीन हो गए थे। गाँव में चोरी बढ़ गई थी। सूने मकानों में से धान, बर्तन-भांडे, गहने चुराकर जुआ खेलते थे। गाँव में अभी भी ताले नहीं लगाते थे। परन्तु चोरी के डर स ताला लगाने लगे हैं।जो सम्पन्न किसान थे, उनके दरवाजों में ताला लगा रहता था। छोटे किसान एवं मजदूरों के यहां ताला नहीं लगाते थे। बड़े विश्वास से एक दूसरे की मदद करते थे। कुछ वर्षों से शहर की आबोहवा सिनेमा देखकर बिगड़ गए थे। रामदास गाँव में न रहकर कभी बिलासपुर, कभी मस्तूरी, कभी सेंदरी जाकर समय बिता रहा था। रामवती, माधुरी भी गाँव में ऊब रहे थे। माधुरी कक्षा नवमी की पुस्तक ले आई थी। बेठे-बैठे पढ़ती रहती थी। आसपास के सम्पन्न किसानों को पता जलता है कि जोगी दरोगा साहब के यहां शादी योग्य लड़की है, देखने के लिए आते। रामदास ने रामवती से कहाकि माधुरी को पढ़ा-लिखा कर जज साहब बनाएंगे। इधर माधुरी भी शादी नहीं करना चाहती थी। परछी में बैठकर रामवती माधुरी के सिर में जुए निकाल रही थी। गाँव के तालाब में नहाने से माधुरी के सिर के बालों में जुए अधिक भर गए थे। उसके लंबे-लंबे केश थे। कमर तक आ गए थे। मादुरी दोनो वेणी में लाल फीते बांधकर चलती थी। तितली के समान उड़ती चलती थी। बहुत सुन्दर, गोरी रंगत, पाँच फीट ऊंचाई। देखने वाले एक ही नजर में उसे पसंद कर लेते थे। माधुरी को माहवारी भी शुरू हो गई थी। इसलिए रामवती विवाह करवाना चाहती थी। कुछ ऊंच-नीच न हो जाए। हर माँ अपनी पुत्री को विवाह करके सुखी जीवन की कामना करती है। परन्तु रामदास माधुरी को जज बनाना चाहता था। माधुरी भी पढ़ना चाहती थी। रामवती पढ़ी-लिखी थी। इसलिए लड़की को गाँव में नहीं देना चाहती थी। एक माह का अवकाश अच्छे ढंग से बीत रहा था। आब मात्र चार दिन बाकी थे। मनमोहन जुए में पचास हजार रुपए हार गया था। रोजाना चार-पाँच लोग गाली गलौज कर रहे थे। धमकी भी दे रहे थे। मनमोहन रामदास के बड़े पिताजी का लड़का था। उसके घर का दरवाजा आमने-सामने था। रामदास को बहुत बुरा लग रहा था। परन्तु क्या करता ? मनमोहन को समझाया कि तुम उधार इन लोगों से क्यों लिए ? दूसरे दिन सामलदास नामक बदमाश लठैत, चार लठैत लेकर, दारू पीकर गाली गलौज करने लगा। माँ-बहन कीगाली देने लगे। मनमोहन चुपचाप सुन रहा था। मनमोहन को गर से निकाल कर फिर लाठियों से पीटने लगे, तब रामदास ने मना किया। परंतु दारू के नशे में वे रामदास को ही पीटने लगे। रोकने बचाने पर वे भाग गए। रामदास गुस्से में आगबबूला हो गया। आँखें लाल हो गईं। वह गुस्से में कांपने लगा। रामवती रोककर बोली – तुम्हें क्या करना है ? रामदास क्रोध में पागल हो गया। घर से एक हाथ में लाठी, दूसरे हाथ में तलवार लेकर निकल पड़ा। रामवती गली तक पीछे-पीछे दौड़ती रही परन्तु रामदास दौड़ते हुए दूर जा चुका था। उधर रामदास ललकरता है कि रुको सालों, मुझे मारे हो। मैं दैख लूंग। सामलदास भागने लगता है। कुछ दूरी पर रामदास उसे पकड़ लेता है। सामलदास एवं रामदास में झूमा झटकी होती है। लाठियों से वे एक दूसरे पर वार करते हैं। रामदास घायल हो जाता है। रामदास क्रोध से आगबबूला हो जाता है। तलवार की मूठ पकड़कर एक वार गले पर करता है। सामलदास का गला कटकर अलग हो जाता है। कटा धड़ और सिर तड़पने लगता है। वहां पर खून की धार पहने लगती है। रामदास के कपड़ों में खून के धब्बे लग जाते हैं। रामदास नंगी तलवार खून से सनी लेकर गाँव में घूमने लगता है। रामदास पागलों की तरह हरकत करने लगता है। सामलदास को मार डाला कहकर जोर से अट्टहास करने लगता है। गाँव वाले सभी अपने दरवाजे बंद कर लेते हैं। सामलदास की हत्या हो जाती है। रामदास घर जाता है। रामवती से पानी मांगता है। रामवती बहुत रोती है। माधुरी, शांति, झालरदास भी रोने लगते हैं। यह तूने क्या किया बेटा ? एक मरे हुए को मारकर हत्या का अपराध कर डाला तूने ? जरा चन्दू की ओर ध्यान दिया होता। अब रामवती और माधुरी का क्या होगा ? रामदास का क्रोध शांत होता है। हत्या के अपराधबोध से रोने लगता है। माँ मैंने क्या कर डाला ? हत्या करने के बाद बहुत पछताता है। पर अब पछताने से क्या फायदा ? हत्या तो हो ही गई थी। माँ, अब बच्चों का पालन-पोषण कर शादी कर देना। मेरी किस्मत में यही लिखा था। मैं अपने कर्मों के फल अब जेल जाकर भुगत लूंगा।
रामदास आँखों में आंसू लिए नंगी तलवार और लाठी लिए घर से निकल पड़ता है। गाँव में सभी दरवाजे बंद मिले। कोई देखकर बात नहीं करता बल्कि दरवाजे को बंद कर लेते हैं। एक खूंखार हत्यारे को देखकर सभी भाग खड़े होते हैं। गाँव में सामलदास की हत्या की खबर आग की तरहफैल जाती है। सभीलोग देखने के लिए चल पड़त हैं। वहां सिर और धड़ अलग पड़े थे। जमीन में खून बह रहा थआ। वहां काली मिट्टी लाल हो गई थी। सामलदास की पत्नी और बच्चे व परिवार वाले चिल्ला-चिल्ला कर दहाड़ मारकर रो रहे थे। परिवार के सारे सदस्य रो रहे थे। गाँव वाले सांत्वना दे रहे थे। सामलदास की उम्र लगभग 45 वर्ष रही होगी। सामलदास नम्बरी बदमाश था। निहत्थे लोगों को मारना, पीटना, सूदखोरी, शराब बेचना उसका धंधा था। गाँव में सामलदास का आतंक था। गाँव के लोग दबे जुबान कह रहे थे कि अच्छा हुआ जो उस बदमाश को मार डाला। बेचारा रामदास जबरदस्ती फंस गया। मर्डर हो गया। उसका परिवार बर्बाद हो जाएगा। गाँव का कोटवार सायकिल से मस्तूरी थाना जाकर सामलदास की हत्या की जानकारी देता है। थानेदार बलवान सिंह 302 का जुर्म दर्ज कर एफआईआर रामदास जोगी के विरुद्ध दर्ज कर लेता है। और सूचना बताती है कि हत्या करने के बाद रामदास जोगी गाँव से ईटवा गाँव फिर अरपा नदी की ओर जाते लोगों ने देखा है। थानेदार तुरंत मोटरसाइकिल से पीछे सिपाही बिठाकर टिकारी गाँव तफ्तीश के लिए जाते हैं। गली में लाश पड़ी रहती है। भीड़ इकट्ठा रहती है। थानेदार को देखकर गाँव वाले वहां से खिसक जाते हैं। मात्र परिवार के सदस्य खड़े रहते हैं। कोटवार पास के घर से खाट मांकर ले आता है। मुख्य साक्ष्य में उनकी पत्नी और बच्चों का बयान लेता है। गाँव वाले कोई गवाही नहीं देते। पटवारी से स्थल का नक्शा तैयार कराता है। लाश को पोस्टमार्टम के लिए मस्तूरी शासकीय अस्पताल ले जाने के लिए कोटवार को बोलता है। बैलगाड़ी से लाश को मस्तूरी ले जाते हैं। एक घण्टे के भीतर लाश का पोस्टमार्टम कर थाने में आकर गुप्ता दे देता है। धारदार तलवार से सिर को धड़ से अलग करने की रिपोर्ट देता है। हत्या का पूरा प्रकरण बन जाता है। रामदास गाँव से ईटवा गाँव की ओर जाता है। एक घण्टे चलने के बाद वह अरपा नदी में पहुंचता है। नदी में तलवार लाठी फेंक देता है। अंधेरे तलवार नदी में गहरे डूब जाती है। लाठी धारा में बहने लगती है। रामदास पूरे कपड़े सहित नदी की धारा में मुँह डुबाकर स्नान करता है। एक घण्टे स्नान करते-करते अपने किए पर पछताता है। फिर जोर-जोर से दहाड़ें मारकर रोने लगता है। जितना क्रोध बढ़ाया उसे आंसुओं में बहाकर नदी में प्रवाहित कर देता है। स्नान करने से क्रोध शांत हो जाता है। फिर जीवन के बारे में परिवार की याद आने लगती है। फिर पुलिस का डर सताने लगता है। बहुत सोच विचार कर अन्त में तय कर पाया कि कहां जाया जाए। क्या किया जाए। पुलिस थाने में जाकर आत्म समर्पण किया जाए। अपराध तो हो गया है। क्षणिक उत्तेजना में क्रोध के कारण हत्या हो गई थी। रामदास बहुत पछताता है और अपने किए पर रोता है। क्या करे, कहां जाए – बार-बार दिमाग में उधेड़बुन चल रही थी। उधर रात का अंधेरा बढ़ रहा था। रामदास का मन स्थिर हुआ। बहुत समय बीतने के बाद याद आया चलो आज की रात नगाराडीह में बिताया जाए। सभी कपड़ों को साफ धोकर और सुखाते-सुखाते गाँव की ओर चला गया। कहां थानेदारी की नौकरी। कितने अपराधियों को पकड़ने के ईनाम मिले थे। आज अपराधी बनकर भाग रहा है। रामदास मन में सोचता है क्यों न फांसी लगाकर आत्महत्या कर लूं। परंतु रामवती, माधुरी और चन्द्रशेखर का क्या होगा सोचकर आत्महत्या का विचार छोड़ देता है। गाँव पास में था। जल्दी पहुंच गया। रामदास रात दस बजे दरवाजे को खटखटाता है। दरवाजा मनराखन सिंह खोलता है। रामदास के चरण स्पर्श करता है। रामदास भइया के चेहरे के रूप रंग को देखकर घबरा जाता है। पूछता है – कहां से आ रहे हो रात में ? नदी में नहाकर गाँव से ही आ रहा हूँ। लोटा में पानी पैर धोने के लिए लाता है। रामदास पैर धोकर एक लोटा पानी पीने के लिए मांगता है। रामदास की मूछें हमेशा ऊपर रहती थी। रामदास हट्ट-कट्टा था। चेरहे पर मूछें अच्छी लगती थी। अब पश्चाताप की लहरें चेहरे पर स्पष्ट झलक रही थी। भोजन करके रामदास सोने का प्रयास किया परंतु रात भर नंगी तलवार और कटा सिर बार-बार स्मृति में आ जाता था। रात भर अपराधबोध में खाट में इधर से उधर पलटता रहा। सुबह मनराखन ने पूछा – भइया रात भर सो नहीं पाए क्या कारण है ? रामदास मन के बोझ को हल्का करने करने के लिए हत्या करने की जानकारी दे देता है। रामदास ये भी कहता है – मैं कल मस्तूरी थाना जाकर आत्म समर्पण कर दूंगा। जीवन भर अपराधियों को पकड़ता रहा। आज मैं अपराधी बनकर भाग रहा हूं। रामदास सुबह पानी पीकर गाँव टिकारी के लिए चल पड़ता है। खलिहान की ओर से घर में जाता है। रामवती पूछती है – रात में कहां थे ? रामदास बताता है – मैं रात में नगाराडीह में था। रात भर सो नहीं पाया। रामवती कहती है – कल थानेदार साहब आए थे। गवाहों के बयान लेकर गए हैं। रामवती कहती है खाना खा लो और थाने जाकर अपना जुर्म कबूलकर लो। रामदास कुछ भोजन करता है। मनमोहन को कहता है कि भाई साइकिल में मस्तूरी ले चल। मनमोहन साइकिल में बिठाकर थाने ले जाता है। रामदास हत्या का जुर्म कबूल कर लेता है। थानेदार चालान बनाकर न्यायालय में प्रस्तुत करता है। रामदास को जेल भेजने का आदेश न्यायाधीश दे देता है। शाम को रामदास बिलासपुर जेल में हत्या के अपराध में बंद हो जाता है। रामदास विचाराधीन कैदियों के बीच में रहता है। कैदियों के कपड़े, कम्बल, चादर लेता है। उसके मुरझाए चेहरे को देखकर सभी समझाते हैं कि रामदास भोजन कर लो। परंतु उस रात वह भोजन नहीं कर पाता। पानी पीकर रात बिताता है। वहां के कैदियों को बताता है कि एक छोटी सी भूल क्रोध के कारण एक की हत्या हो गई मेरे हाथ से। मैं सहायक उपनिरीक्षक पुलिस विभाग में था। एक से बढ़कर एक अपराधियों को पकड़-पकड़ कर जेल भेज दिया करता था। आज मैं कैदी स्वयं हूं और एक अपराधी बनकर यहां आया हूं।