Re: पछतावा
Posted: 20 Dec 2014 08:57
आषाढ़ माह में किसान फसल को देखते हैं। किसी-किसी दिन बादल थोड़ा बहुत पानी बरस जाता था। परन्तु एकदम झकझोर कर पानी नही गिर रहा था। आषाढ़ महिना ऍसे सुखा बित गया, जो किसाने खेतों में बीज बो दिए थे बीज अंकुरित होकर चल गए। मणिदास झालर द्वारा बड़े चिंतित हैं कि इस वर्ष कैसे खेती किसानी करें। खेती किसानी पिछड़ती जा रही थी। सावन मास में कुछ पानी बरसा जिससे कुछ किसानों ने धान बो दिया। झालर ने भी खेतों में धान बो दिए। बीज उगने के बाद सिर्फ एक-दो दिन ही पानी बरसा। खेत नही भर पाये। सिंचाई विभाग ने चाहा कि नहर में पानी छोड़ें। ताकि खेतों में पानी भर जाए। धान की वियाई-विदाई हो जाए।
मणिदास ने रामदास को बिलासपुर के मिशन स्कूल में कक्षा 9वीं में भर्ती करा दिया। रामदास को मिशन होस्टल में रहने के लिए जगह भी मिल गई। रामदास मन लगाकर पढ़ने लगा। रामदास ने कक्षा 9वीं पास कर लिया। इस वर्ष पानी कम गिरने से धाने की फसल ज्यादा बर्बाद हुई उपज कम हुई। बड़ी मुश्किल से झालर को बाज के लिए धान मिला। छत्तीसगढ़ में किसानों के लिए महाअकाल पड़ गया। इस अकाल से किसानों के चुल हिल गये। छत्तीसगढ़ के सारे किसाने बड़े-बड़े शहरों में खाने-कमाने दिल्ली, कलकत्ता, इलाहाबाद, लखनऊ, आसाम, ढ़ाका चले गए। गाँव में मात्र झालर दास का परिवार रह गया। घर देखने के लिए बड़े-बूढ़े लोग बचे। उन्हें दिन में एक जून की रोटी भी नही मिल पाती थी। गाँव वाले मणिदास के पास जा पुराना धान था उसी से गुजर-बसर कर रहे थे।
रामदास कक्षा 9वीं पास कर कक्षा 10वीं में पढ़ने लगता है। रामदास किशोर से जवानी में प्रवेश कर रहा था। वह कक्षा 10वीं में द्वितीय श्रेणी मे उत्तीर्ण हो जाता है। रामदास पढ़ने-लिखने में बचपन से होशियार था। उसके संग पढ़ने वाले उत्तमदास, मनहरण, रामसहाय, पूरन लाल, मनोहर, तृतीय श्रेणी में पास हुए। गर्मी की छुट्टी में सभी साथी गाँव आ गए। वेदवती मणिदास से कहती हैं कि – रामवती जवान हो गई है गौना कराकर ले आओ। मणिदास झालर से कहता है कि –बेटा रामदास भी जवान हो गया है। बहू का गौना कराकर ले आओ। तुम कल सेंदरी गाँव जाकर आसकरण दास से कहो ...। झालर सेंदरी जाकर मंगलीबाई आसकरण दास से कहता है- कि बहू का गौना कराकर ले जाना चाहते हैं। तब तक रामवती आठवीं पास हो गई थी। रामवती मस्त गोल-गोल मांसल तन वाली जवान हो रही थी। देखने में बहुत खूबसूरत, छरहरी बदन की किशोरी लगती थी। मंगली आसकरण दास से बोली समधी जी आए हैं। रामवती के गौना कराने के कह रहें हैं। मंगली कहती है- आजकल के बच्चों का क्या भरोसा । कुछ ऊंच-नीच हो जाए तो बदनामी होगी। इसलिए तुम कह दो। अक्ती के दिने गौना कराकर ले जांए। अपनी बहू को।
झालर ने अपने घर आकर मणिदास को बतलाता है कि अक्ती का दिने तय हुआ है। चलो एक माह अभी समय है सभी तैयारियां कर लो। मणिदास अपने नाते रिश्तेदारों को एवं आसपास गाँव के मुखिया, पटेलों को गौना के बरात में चलने के लिए निमंत्रण देते हैं। बस में बैठकर मणिदास गौना की बारात सेंदरी गांव जाता है। अक्ती (अक्षय तृतीया) के सुबह बारात सेंदरी पहुँच जाती है। साथ में गड़वा बाजा भी ले जाते हैं। बाजा वाला बढ़िया फिल्मी धुनों में परी नाचती हैं। गाँव में हजारों आदमियों की भीड़ इकट्ठी हो जाती है। आसकरण दास बरातियों को चाय, नास्ता कराते हैं। सुबह दस बजे आंगन में धान का चौक पूरकर कलश जला कर रामदास रामवती को नए वस्त्र पहनाकर घर से विदा करते हैं। आंगन में सभी महिला पुरूष, दादा-दादी, नाना-नानी, चाचा-चाची, मामा-मामी पिताजी सभी चूमा लेते हैं। विदाई के समय सभी लोगों की आंखों में आंसू छलक जाते हैं। माँ, भाभी, पिताजी सभी रामदास व परिवार के सदस्यों को अपनी माँ, बाप समझने एवं सेवा करने के लिए समझाते हैं। माँ मंगलीबाई से रामवती गले मिलकर खूब रोती है। मंगलीबाई कहती है बेटी आज तुम पराई बन गई हो। ससुराल ही तुम्हारा असली घर है। माँ-बाप पाल-पोसकर बड़ा कर देते हैं, परन्तु जीवन भर के लिए सास-ससुर ही माँ-बाप होते हैं। रामवती, नानी, दादी, मामी सखियों से मिलकर खूब रोती हैं। पास में खड़े रामदास के आंसू टपक जाते हैं। मन में ग्लानि होने लगती है कि लड़की ससुराल जाते ही पराई हो जाती है। यह कैसा रिवाज है। माँ-बाप, भाई-बहन, सभी पराये हो जाते हैं। घर से कुछ दूर सड़क कर जाकर वर-वधू की विदाई करते हैं। आसकरण दोनों हाथ जोड़कर मणिदास, झालरदास, जगतारणदास से विनती करता है कि मेरी बच्ची से कोई गलती हो तो माफ कर देना। अभी बहुत छोटी है। गौना में मिले चांवल, रूपए, पैसे को बस के ऊपर लादकर गाँव ले आते हैं।
वेदवती, शांतिबाई, केजा, मनोरमा सभी घर की महिलाएं द्वार पर आरती उतारकर वधू को घर में लाते हैं। आंगने में सभी बड़ों को प्रणाम और चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेते हैं। सभी बरातियों को शाम का भोजन कराते हैं। सभी मेहमान अपने-अपने घर चले जाते हैं। मनोरमा उस रात एक कमरे की साफ-सफाई पलंग बिछा देती है। खाना खाने के बाद मनोरमा रामवती को (सुहागरात) घर देने की बात बताती है और वहां ले जाती है। उधर दोनो गप मारते रहते हैं। वह रामदास को लेकर आती हैं। सुहागरात सफल हो.... कहकर मनोरमा वापस अपने कमरे में आ जाती है। रामवती पलंग से उठकर रामदास के पहले चरण स्पर्श करती है। रामदास रामवती के मना करने के बाद भी पोटार के कस के दबा लेता है। रामवती ए..माँ.. कहकर बोलती है, तुम तो ऍसा दबाए कि मेरी हड्डी टूट जाए। दोनों एक दूसरे को चुमते हैं। कुछ समय तक गप बाजी होती है। फिर लालटेन बुझाकर एक दूसरे में खो जाते हैं। रामदास रामवती दो शरीर-एक प्राण बन जाते हैं। सुहागरात की यादें दोनो के स्मृति में अंकित हो जाती है। सभी मेहमान घर चले जाते हैं। मणिदास और वेदवती बहू के हाथों से भोजन करके तृप्त हो जाते हैं। वेदवती कहती है कि अब यदि हम मर जाएंगे तो भी कुछ नही होगा। ऋण से छुटकारा हो गया है। झालर और शांतिबाई रामवती को पुत्री के समान रखती हैं। रामदास रामवती की जोड़ी खूब फबती है। रामदास झालर के संग खेती किसानी में साथ देता है। सावन के महिने में रामवती गर्भवती हो जाती है। जब दादा मणिदास और दादी वेदवती को यह पता चलता है तो वें खुशी से झूम जाते हैं। मणिदास कहता है कि, अब तो नाती के बेटा-बेटी को देख कर ही मरूंगा। चौथी पीढ़ी का सदस्य आने वाला है।
रामवती को खाने-पाने की चीजें पसंद नही आती है रामदास शहर से फल ला-लाकर खिलाता है। परन्तु रामवती नही खा पाती। रामदास आसकरण दास को बताता है कि रामवती गर्भवती है। खाना अच्छा नही लग रहा है। मंगलीबाई सात प्रकार (संधोरी) रोटियां बनाकर ले जाती हैं। साथ में इमली, नींबू का अचार, आम का अचार, खट्टे-मिठे सूखे बेर भी ले जाती है। रामवती मां को देखकर खुश हो जाती है। रामवती पहले से कमजोर हो गई थी। मंगली ने समझाया कि बेटी इस समय कुछ अच्छा नही लगता। पेट में जो आ रहा है, उसके कारण अच्छा नही लग रहा। रामवती को इमली, आम-नींबू का अचार अच्छा लगता है। रामवती शांतिबाई कुछ काम नही करने देते । मंगली घर के कामों में हाथ बंटाती थी। दोनो समधिन मिलकर घर के कामों को कर लेते थे। कुछ दिन बाद रामवती खाना-खाने लगती हैं। शरीर भरता जाता है, पेट बाहर निकलता जाता है। मंगली कुछ दिन रहकर अपने घर लौट जाती है। रामवती नौ माह बाद एक स्वस्थ बच्ची को जन्म देती हैं। रामदास, मणिदास, झालरदास सभी खुश हो जाते हैं। घर में एक खिलौना आ गया था। मणिदास ने पूरे गांव भर को कंकेपानी एवं भोजन कराया। मस्तूरी से लाउडस्पीकर लाए। फिल्मी गाने , छत्तीसगढ़ी गीत बजवाए। मणिदास और वेदवती की खुशियों का ठिकाना न था। इस वर्ष फसल भी अच्छी हुई। बच्ची के जन्म होने से घर धन-धान्य से भर गया। रामदास बच्ची का नाम माधूरी रखता है। वह अति सुंदर रहती है।
मणिदास का भरा-पूरा परिवार सुखी और सम्पन्न कृषक था। मणिदास की ख्याति भले और ईमानदार व्यक्तियों में गिनी जाती थी। झालरदास ने रामदास से कहा- बेटा, अब आगे पढ़ाई मत करो। घर की खेती किसानी को देखो। गाँव में कहावत है कि- लड़का बी. ए. पास होना मानो परदेशी बाबू बन जाना कहते हैं। देश-दुनियां, खेती-किसानी, गांव से संबंध उसका टूट जाता है। न वह शहर का हो पाता है, न गांव का किसान बन पाता । इसलिए बेटा, बढ़िया खेती-किसानी करो। तु्म्हारे लिए पूर्वजों ने बहुत धन संपत्ति रखा है। उधर रामवती भी रामदास को समझाता है, बाबूजी ठीक कह रहे हैं। फिर बच्ची भी अभी छोटी है। माधूरी बहुत रोती है। तुम्हारी गोद के लिए रोती है। पिता का प्यार-दुलार बच्ची पहचान गई है। मां शांति बाई, वेदवती सभी समझाते हैं। रामदास के साथ पढ़ने वाले सभी साथी कालेज नही पढ़ पाते। रामदास परिवर्तन को भांपते हुए कालेज नही जा पाता।
मणिदास सावन मास के बीतते भादो मास के शुरूवात में खेत देखने गया। खेत में मेड़ पर चल रहा था कि.. पैर में एक केकड़े आकार के बिच्छु ने आकर काट लिया। मणिदास बिच्छु के काटने से बुरी तरह से कराह उठा। बहुत पुरानी बिच्छु रहा। एक बार के काटने से ही आदमी मर जाए। मणिदास ने तब गमछे से नाड़ी को पकड़के कस कर बांध दिए। जल्दी-जल्दी घर आया। जैसे ही बरामदे में पहुंचा, मणिदास चिल्लाये... वेदवती, शांति, रामदास यहां आओ। लोटे में पानी लाओ। रामवती दौड़े-दौड़े एक लोटे पानी लाई। अपने हाथो से पानी पिलाई। मणिदास पसिने से लथपथ हो गया। शरीर में विष फैलने लगा। मुंह से झाग निकलने लगा। वह धीरे-धीरे बेहोश होने लगा मणिदास जमीन पर लेट गया। घर में रोना शुरू हो गया। मणिदास विष से तड़पने लगा। रामदास आसपास के बैगा, गुनिया से झाड़, फूंक कराया। परन्तु बिच्छु का जहर नही उतर पाया। झालर ने कहा रामदास नौकर से कहकर बैलगाड़ी फंदवाओ। इसे धर्म अस्पताल मस्तुरी ले जाते हैं। मणिदास का शरीर विष से नीला पड़ गया। मुंह से झाग बराबर निकल रहा था। मणिदास को बेहोश हुए दो घंटे हो गए। वेदवती शांतिबाई के आंसू नही थम रहे थे। बैलगाड़ी से शासकीय अस्पताल मस्तुरी ले गए। डा. गुप्ता ने देखकर कहा कि जल्दी क्यों नही लाए। शरीर में पूरा विष फैल गया है। मैं प्रयास करता हूँ। डा. गुप्ता ने सिस्टर मार्टिन को बुलाया। तत्काल ग्लूकोज से स्लाइन लगाओ। मणिदास को स्लाइन चढ़ाया गया। दो बोतल चढ़ाये। परन्तु मणिदास की बेहोशी नही कटी। सात घंटे तक लगातार बोतल विषमारक इंजेक्सन लगाते रहे परन्तु विष खत्म नही हुआ मणिदास के मस्तिस्क में जहर पहुंच चुका था। डा. गुप्ता ने जहर उतारने के लिए अथक प्रयास किए परन्तु, जहर नही उतरा। रात आठ बजे मणिदास प्राण पखेरू उड़ने से पहले जोर से चिल्लाए। हाथ पैर को पीटने लगे। सिस्टर मार्टिन, झालर, रामदास जोर से दबाकर हाथ पैर को पकड़े । मणिदास ने अंतिम बार आंखें खोली। रामदास को पास बुलाया। सिर पर हाथ रखा। वेदवती, झालर, को सबको एक नजर घुमाकर देखा। सब परिवार के सदस्यों को देखने के बाद अंतिम सांसे ली। सिर एक तरफ लु़ड़क गया। रामदास के सिर से उनका हाथ गिर गया। रामदास, वेदवती, झालर ने रोना शुरू कर दिया। सभी की आंखों से झर-झर आंसू बहने लगे। मणिदास एक नेक इंसाने थे। संसार में एक महामानव बनकर आए थे। मणिदास की आत्मा ब्रम्ह में समा गई। डा. गुप्ता ने पोस्ट मार्टम रिपोर्ट बनाकर लास रामदास को सौंप दिए। डा. गुप्ता ने पुलिस थाना मस्तुरी में सर्प बिच्छु काटने का मामला दर्ज करा दिया। मर्ग कायम करके प्रकरण पंजीबध्द कर दिया।
प्राथमिक स्वास्थ केन्द्र मस्तुरी से लाश को बैलगाड़ी, में भरकर गांव टिकारी ले गए। जैसे ही गांव वालों को पता चला। महंत जी नही रहें, देखने वालों का तांता लग गया। रामदास वेदवती चुप कराते थे, परन्तु वेदवती रोती जाती थी। कहती- बेटा अब इस शरीर में क्या रखा है। मेरे प्राण तो चले गए। मैं जी के क्या करूंगी। शांति, झालर, रामवती सभी समझाते परन्तु वेदवती रात भर विलाप करती रही। लाश से लिपट-लिपटकर रोती रही। रामदास ने सभी रिश्तेदारों को आजमी भेजकर जानकारी दी। आस-पास के सभी रिश्तेदार दस बजे के आसपास जमा हो गए। सेंदरी में रामसनेही महंत, आसकरण, मंगलीबाई बारह बजे दिन को पहूँच पाए। मणिदास के लाश को बढ़िया नहलाए, तेल हरदी, नए वस्त्र पहनाए। उसी समय वेदवती मूर्छित होकर गिर पड़ती है। वेदवती को रामदास पानी छिड़कता है। मुंह में पानी डालता है, पानी मुंह में नही जाता। बाहर निकल जाता है। रामदास के गोदी में ही सती वेदवती प्राण त्याग देती है। घर में हा-हाकार मच जाता है। एक साथ दो लोगों की मृत्यु। झालर दादा शांति खूब रोते हैं। रामवती बहुत रोती है। जगतारण दास केजा बाई मनमोहन सभी परिवार के दुखी सदस्यों को चुप कराते हैं। कहते हैं दोनों जीवन साथी साथ जीने, साथ मरने की कसमें खाए थे। भगवान दोनों को शांति प्रदान करे।
वेदवती के लाश को शांति, केजा, रामवती, स्नान कराकर नए साड़ी तेल हल्दी लगाकर माथे में सिंदूर, पैर में महावर, टिकली, फुंद्दी, एक सुहागन नारी के सुहाग पनाकर पत्नी-पति को एक साथ मुक्तिधाम ले जाने के लिए शव यात्रा निकलती है। गाँव-गाँव में शोर मच जाता है, कि पति-पत्नी एक साथ मर गए। साथ में दाह संस्कार किया। गाँव-गाँव से आदमी माटी देने के लिए आने लगे थे। शवयात्रा में रामदास झालर दोनों सामने जगतारण मनमोहन पीछे मयाने के पकड़े हुए थे। मयाना को एक-एक करके सब कंधा दे रहे थे। हजारों आदमियों की भीड़ इकट्ठी हो गई थी। रामदास ने गाँव के तिहार, समक्ष, नौकर वेदराम को गड्ढा घोतने के लिए भेज दिए थे। बोधराम ने दोनों के लिए बड़े गड्ढे तैयार करा लिए थे। लाशों को पीपल पेड़ के नीचे उतारा गया। लाश के पास में जगतारण, झालरदास, रामदास बैठे थे। अगरब7त्ती जलाई। फूल मालाओं से लाशें ढंकी थी। अंतिम दर्शन के लिए मणिदास, वेदवती के मुँह को खोले। रामदास ने गंगा जल मुँह में डाल दिया। परिवार के सदस्यों ने अंतिम दर्शन कर गंगा जल पिलाया। दोनों की लाशें एक साथ गड्ढे में दफनाई गई। सभी लोगों ने पाँच-पाँच मुट्ठी मिट्टी डाली। बोधराम ने पत्थर से ऊपर उठी मिट्टी को पीटकर बराबर किया। सभी स्नान के लिए तालाब की ओर प्रस्थान किए। लाश के लिए नए वस्त्रों के ढेर लग गए थे। लगभग 100 साड़ियां और धोतियाँ चढ़ी थीं। सभी कपड़ों को सड़क के किनारे बबूल के पेड़ में लटका दिए। जिसे दीन-हीन लोग उपयोग में ला सकें।
तालाब के घाट में सभी स्नान किए। बोधराम ने उरई के पौधे को किनारे लगा दिए। जिसे झालर, जगतारण ने पाँच बार पानी दिया। बाद में सभी लोगों ने वैसा ही किया। स्नान के बाद सभी रामदास के घर आए। द्वार पर खड़े होकर सभी लोगों को प्रणाम किए एवं धन्यवाद दिया। महिलाएं सभी स्नान करके पहले आ गई थी। गाँव में अजीब सा सन्नाटा था। घर में तो और अधिक। क्योंकि दोनों सदस्यों की गमी हो गई थी। जगतारण की बहू लताबाई ने सब लोगों के लिए भोजन बनाया था। रामदास रामवती फूट-फूट के रो रहे थे। आँखों से आसूं थम नहीं रहे थे। झालर, शांति, मंगलीबाई बहुत समझा रहे थे। रामदास के सिर से दादा-दादी की छांव हट गई थी। जिसने पढ़ा-लिखाकर बड़ा किया था। बड़े प्यार-दुलार से बड़ा किया था। उसी के सहारे जीते थे। रामवती रामदास को समझाता है कि अभी बाबूजी और माँ जीवित हैं, क्यों घबराते हो। सभी लोगों ने रामदास को ढाढस बंधाए। सभी मनुष्यों को एक दिन तो मरना है। किसी तरह रामदास को भोजन कराते हैं। सभी मेहमान शाम को अपने-अपने घर चले जाते हैं। बच जाते हैं मनोरमा और मंगलीबाई।
झालरदास दशकर्म के लिए रिश्तेदारों को काँव वालों को निमंत्रण देता है। दशकर्म शनिवार के दिन होगा। रामदास झालरदास दशकर्म के लिए चावल, दाल, तेल हल्दी, मिर्च मसाले बाजार से ले आता है। दूबराज धान के दस बोरा चावल मस्तूरी से कुटा कर ले आते हैं। दाल के लिए दो बोरे अरहर, उड़द, तीवरा, दराकर ले आते हैं। मालपुआ बनाने के लिए पाँच टिन घी, पाँच चक्की गुड़, नारियल, लौंग, इलायची बिलासपुर से खरीदकर बैलगाड़ी से भरकर ले आते हैं। तीन दिन में तीज नहावन करते हैं एवं दस दिन में दशकर्म। सभी मेहमान एक दिन जहलने के लिए आ जाते हैं। घर मेहमानों से भरा रहता है। पूरे घर की साफ-सफाई कराते हैं। घर के कपड़े बिस्तर धुलवाते हैं। दशकर्म के दिन रामदस शहर से लाए नाई से बाल उतरवाता है। झालरदास, जगतारा, मनमोहन मुक्तावन दास परिवार, गाँव के अन्य सदस्य सिर के बाल उतरवाते हैं। दोपहर दो बजे तक नाई दाढ़ी बाल काटते रहते हैं।
घर की एवं गाँव की सभी महिलाएं नहावन में तालाब जाती हैं। सभी महिलाएं पाँच बार पानी देते हैं। स्नान करके लाईन से घर आ जाती हैं। द्वार में रखेपानी से पैर धोती हैं। आंगन में खड़े होकर गाँव के सारे लोग अपने घर चले जाते हैं। शेष मेहमान रह जाते हैं। महिलाएं कपड़े पहनकर तैयार हो जाती हैं। पुरुष लोग महिलाओं के आने के बाद स्नान करने जाते हैं। लगभग हजार आदमियों से अधिक लोग स्नान करते हैं और पाँच-पाँच बार पानी अंतिम रूप से देते हैं। लाईन से सभी घर आ जाते हैं। द्वरा में पानी रखे रहते हैं। पैर-हाथ धोकर आंगन में जाते हैं। रामदास, झालरदास, हावन द्वार में खड़े होकर सभी लोगों को प्रणाम करते हैं। एवं भोजन ग्रहण करने के लिए निवेदन करते हैं। सभी पुरुष कपड़े पहनकर तैयार होते हैं।
खलिहान में दस गुण्डे के चूल (चूल्हा) जलते रहते हैं, जिसमें चावल दाल सब्जी पकाते हैं। सभी मेहमानों को भोजन पंक्ति में कराते हैं। रामदास झालरदास दोना पत्तल में भोजन लेकर द्वार में रख आते हैं। पानी पत्तल में रख देता है। ऐसा कहा जाता है कि मरे हुए व्यक्ति आकर भोजन पाते हैं। इसके बाद ही सभी लोग भोजन करते हैं।
शाम के पाँच बजे कगे बाद ही घर के आंगन के साफ-सफाई करके चौके पूरते हैं। चावल के आटे से फेंक फुरते हैं। फेंक चारों ओर चादर बिछाकर फैलाकर लोग बैठते हैं। आंगन में दरी बिछा देते हैं। अजीत महंत मंत्र पढ़कर कलश की स्थापना करते हैं। सभी गुरू गद्दी की स्थापना के बाद बैठ जाते हैं। फेकर आरती का कार्यक्रम शुरू होता है। तबला, हारमोनियम, झांझर, मंजीरा से मंगल गीत प्रारंभ करते हैं। सबसे पहले गुरूजी को प्रणाम करते हैं।
दोहा –
गुरुजी को पहुंचे कोट कोट प्रणाम
कष्ट भींग जीव तारिहो, गुरुकरि हो संत समाज।
शब्द नाम – हरिहर गोबर निरमल पानी।
चौका पोतो सत सुकूत ज्ञानी।।
सतनाम को करे जोहारा।
एक लाख के पास करे भाई।
नरतन छोड़ स्वर्ग में स्थान पाई।।
मंगलगीत –
अहो बाबा अंगना ल झार बहार डरा हो।
तन उरमीत देहो हो निकाल
कर्र लेहा पुरन कमाई संत घर ला पाईहा हो।
महंत अजीतदास एवं साथियों द्वारा दो घण्टे तक चौका आरती के कार्यक्रम करते हैं। मंगलगी. शब्द सारवी, दोहा आदि सुनकर कई महिलाओं को संत गुरू घासीदास चढ़ जाते हैं। झूमने नाचने लगते हैं। मंगलगीत के धुन से मन प्रसन्न हो जाता है। मन के क्लेश, काम, क्रोध, मद लोभ समाप्त हो जाता है। गुरूजी के ध्यान में ही मन लगा रहता है। हजारों आदमी इसे देखते हैं। अजीत महंत द्वारा आरती उतारकर पानी छिड़ककर संत गुरू घासीदास का नाम लेकर शांत कर देते हैं।
शब्द –
सार नाम सत गुरू, वानी,
सार नाम बिरले कोई जानी
सार नाम अधि अंश समाना।
सत है गरजीन गंयी तास।
सतनाम के मेहीन माला
सतनाम के जपे जू पाए
कोटिन काल मए जर धारा,
हीरा हंस लिए उबारा।
साहेब गुरु सतनाम।।
अजीत दास महंत द्वारा पान प्रसाद सुपारी कलश के चारों ओर चारों गुरू को चढ़ाते हैं। घर से आरती लेकर महिलाएं आती हैं। पान, प्रसाद, रोटी, लड्डू, नारियल, मालपुआ, शक्कर, फल मेवा, मिष्ठान, बूंदी रखती है। अजीत दास मंगल आरती गाता है।
आरती मंगल
पहली आरती जगमग ज्योती
हीरा पदारथ बारे ला मोती
होत आरती सतनाम साहेब की
कंचन धार कपूर लगे बाती
भव भव आरती उतारे बहु माती
आरती हो सतनाम साहेब के।
तीजे आरती त्रिभुवन जग मोहे
रतन सिंहासन गुरूजी सा सोहे।
चौथे आरती निर्मल शरीरा,
आरती गावै गुहू घासीदासा हो।
जप आरती जो नर गावे,
चढ़ के निमग सुरलोक सिंघावे
छठे आरती दया दर्शन होए
लख चौरासी के बद छुड़ाए
हो आरती सतना साहेब के।
सतई आरती सतनामी घर होवे
हंसा ला उवार के सत लोक पठाए
होत आरती सतनाम साहेब के।
रामवती, मनोरमा, शांति ले जा आरती को महंत को देते हैं। आरती को प्रणाम कर बीच में रख देते हैं। सभी महिलाएं कलश को प्रणाम करके चली जाती हैं। अशोक नाम पढ़ता है।
नाम
बिना बीज के वृक्ष है,
बिना शब्द के नाम
बिना शब्द के रहन सहन
है उन्हीं तोल समान
राई जैसे पत्र अघराई ऐसे फूल,
शारदा पत्र उनके नहीं
अ,ठ कंवल निज मूल।
सुनो पुत्र गिरधारी सुनो पुत्र बिहारी
जब रहित साहेब आपी आपा
तज साहेब घर छूटे पसेऊ
भर भादो जस बरसाय भेई
बईठत धरती उठत आकाश
सतनाम के सुमखन मोरी
अष्ट कलश हो आशा
गगन मंदिर पर जोत पुरुष हैं
जहां तुम्हारो वासा
सात दीप नव खण्ड धरती
सोलह खण्ड आकाशा, चौदह भुवन
दस सौ दिग पाला
जहाँ ठाढ़े रहिन, अथरे रहवासा,
कंचन काया पुरुष रहवासा,
अहो नाम तुम कहां से आए,
कौन नाम से जीव निरमाए,
अनह ऊपर अनहत बसाए,
सिक्का नाम से जीव जीव निरमाए,
चारों गुरू पांचों नाम साहेब गुरू सतनाम
पदमन द्वारा साखी कहा जाता है।
“साखी – गुरू हमारे बानिया नाम लाद करिन व्यापार, नहीं ताजी न ही तासूरी, गुरू तोल तिन्ह संसार।’ अंतिम मंगल अजीत साथी द्वारा गाते हैं।
मंगलगीत
गुरू कहवा मैं पावो आरुग फुलवा
गुरू तोला में चढावे कवन फुलवा हो।
सभी तो फूल ता साहेब मोरा जूठारे है
तेला कइसे तोला मैं चढ़ावों।।
हाँ चाल चलन के चम्पा मन कर मोंगरा
प्रेम के हरवा बनबो हो
नदिया के पानी, मीन जूठारे हे,
कौ जल मा नहवात हो
गंगा जमुना दोनों नैना केहे नदिया
आंसुअन के धार में नहावावो हो
गईया के दूध ला बछरा जुठारे हे,
कामा तोरे चरण पखारों हो।
शुद्ध मन सत्यवप्रत गोरस
एईमा तोर चरण पखार न हो।
भाव भगती कर भोग लगाऊं
सत गुरू के सेवा ल बजाऊ हो
अजीत महंत द्वारा नारियल भेंट, झालर, रामदास, जगतारण को करातेहैं। सभी चौक मंत्र पढ़कर नारियल भेंट करतेहैं। नारियल सेपानी, गुड़, मिठाई, रोटी मांग कराकर अजीत दास नारियल तोड़ते हैं। सभी नारियल बीच से टुकड़े हो जाते हैं। सभी महंत मिलकर नारियल, कुड़, शक्कर, रोटियां, लड्डू, फल दूध के प्रसाद बनाते हैं। रामदास को दो दोने के मणिदास वेदवती के लिए प्रथम भोग देते हैं। बाद में सभी महिलाएं एवं पुरुषों को प्रसाद वितरण करते हैं। आंगन में बैठ जाते हैं. खलिहान, बरामदे, गली, किली, घर, आंगन लगभ तीन हजार पुरुष महिलाओं को बूंदी, सेवब, खीर, शक्कर, घी, पूड़ी मालपुआ परोसी जाती है। लगभग पचास लोग परोसने वाले। दालभात, सब्जी, घी, अचार, सभी को किलाते हैं। सभी भर पेट खाकर मणिदास वेदवती के आत्मा को शांति पहुंचाते हैं। भोजन एक पूरी रात्रि तक चलता है। गाँव वाले अपने घर चले जाते हैं। मेहमान लोग रात में आंगन खलिहान बरामदे में सोकर बिताते हैं। ऐसा भोजन आसपास के गाँव में किसी ने नहीं खिलाया था। झालरदास की वाहवाही हो जाती है।
दूसरे दिन गुरू एवं भांजे भांजी की दक्षिणा लेकर पूजा अर्चना कर नए वस्त्र कमीज धोती, साड़ी, छाता, धान, चावल, रुपए पैसे देकर विदाई करते हैं, जिस घर में मृतक सोते थे उस घर में कटोरी में आटा रख दिया जाता है। दो कटोरियों में आटा रखा गया था। घर के सभी मेहमान, महिला पुरुष घर को खाली छोड़कर बिदाई करने चले जाते हैं। एक बुजुर्ग महिला द्वार से घर की रखवाली करते हैं। कटोरी के आटे मं अंगुलियों के निशान स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं। शांति, झालर, रामदास, रामवती, मनोरमा, मंगली बाई, श्यामबाई बिदा करके रोते हुए आतेहैं। अंतिम बिदाई के समय घर से अंतिम बिदाई होती है। सभी मेहमान एक-क करके घर चले जाते हैं। रामदास, झालर, शांति, रामवती और माधुरी घर में बच जाते हैं। एक सुखी परिवार में दुख के बादल छा जाते हैं।
झालर, रामदास मिलकर खेती किसानी करने लगते हैं। इस वर्ष वहां फसल अच्छी नहीं होती। अकाल पड़ जाता है। धान की फसलों को डंकी, माहो, कटुवा, फाफूत, टिड्डी नुकसान पहुंचाते हैं। यहां तक बीज के लिए भी धान नहीं मिलता। सभी नौकर खाने कमाने इलाहाबाद चले जाते हैं। पूरा छत्तीसगढ़ अकाल की चपेट में आ जाता है। गाँव के गाँव किसान रोजी-रोटी के लिए पलायन कर जाते है। जिस किसान के पचास एकड़ जमीन होती है, वह भी एक बीजा धान नहीं पाता है। रामदास, झालरदास पुराने बचे कोठी को खोलते हैं और अपने सीमित परिवार का पेट भरते हैं। गाय भैंस के लिए चारे की कमी हो जाती है। सभी तालाब, नदी सूखने लगे थे। पशुओं में महामारी फैल जाती है। वैसे हीखारे पानी से कभी बीमारी से घर की गायें, बैल, भैंस एक-एक कर एक ही माह के भीतर सभी जानवर मर जाते हैं। घरम एक भी पशु नहीं बचता। बच्चों के लिए दूध की कमी होने लगती है। चरवाहे राउत से बच्ची के लिए दूध लेने लगे। मणिदास की मृत्यु धन सम्पत्ति कम होने लगी थी। झालर महंत चिंतित होने लगे कि अगले वर्ष खेती किसानी कैसे होगी। इधर घर में खाने के लिए अन्न नहीं बचता। उधर बीज बोने के लिए धान नहीं है। जोतने के लिए बैल नहीं है। क्या करें किसान। अकाल से किसानों की कमर टूट गई थी। किसी प्रकार रामदास अपने परिवार के पालन पोषण करता है।
झालरदास रामदास से कहता है कि – बेटा इतनी जमीन का क्या करोगे। फिर खेती-किसानी के लिए कम से कम तीन जोड़ी बैल या भैंस लेना पड़ेगा। बीच के लिए धान। खेती निंदाई गुड़ाई के लिए धान सजिया पैसा लगभग पच्चीस हजार रुपए से अधिक चाहे। यदि तुम्हारा मन आ जाए, तो पाँच एकड़ जमीन को परसदा खार की बेच देते हैं। वहाँ अघरिया किसान नए आए हैं। दो पाँच हजार रुपए एकड़ में सौदा तय कर आया। चौथे दिन बिलासपुर जाकर जमीन की रजिस्ट्री अघरिया किसान नन्दू पटेल के नाम से कर दी। नन्दू पटेल गाँव जाकर पच्चीस हजार रुपए पहले दे आया था। झालरदास रामदास बैल खरीदने के लिए काम कनेरी बाजार पशु हाट जाते हैं। दो जोड़ी बैल पाँच हजार रुपए एवं एक जोड़ी भैंसा तीन हजार में खरीद लाते हैं। रामदास झालरदास से कहता है – बाबूजी कोठा अभ सूना है। देहाती गाय ही खरीद लेते हैं। झालरदास बाजार में घूम-घूम कर देखते हैं। एक काली गाय को बछिया समेत एक सौ पचास रुपए में खरीद लेते हैं। कनेरी बाजार से सभीपशुओं को घर लाते हैं। द्वार के सामने रामवती शांतिबाई लोटे में पानी लेकर गाय की पूजा और आरती करती हैं। भगवान पहले जैसे कोठा को भर देना। खलिहान के कोठा में बैल, भैंसा और गाय को पानी चारा खिलाकर बांध देतेहैं। शांति माधुरी को गाय की बछिया दिखाती है। माधुरी हंस-हंस कर खेलने लगती है। सुबह खेलावत राउत को पता चलता है कि किसान के यहां गाय, बैल खरीद लाए हैं। गाय के आधा किलो दूध रखकर दे देते हैं। शांतिबाई दूध को गोरसी के आग में गरम करने लगती है। गाय बैल भैंसा को चराने के लिए राउत जंगल खार ले जाता है। दोपहर में ले आता है।
रामदास झालरदास दोनों सहकारी समिती से खाद बीच लेते हैं। लगभग दस हजार रुपए के ऋण लेते हैं। सनेही किसानी के लिए एक नौकर सहेत्तर से रख लेते हैं। तीन नागर जोतना रहता है। एक नागर रामदास, दूसरे को झालरदास, तीसरे को नौकर सहेत्तर जोतता है। लगभग एक महीने में सभी खेतों में धान बो देते हैं। पानी समय पर बरस रहा था। बादल रुक-रुक के झड़ी कर हरहरा कर गिर रहा था। सभी खेत खार नदी नाले तालाब भर गए थे। इस वर्ष कुछ अच्छी फसल होने की उम्मीद थी। भादो मास में तीजा त्यौहार मनाने के लिए आसकरणदास रामवती को लेने आए। शांति ने कहा बहू पिताजी आए हैं, कुछ दिन के लिए मायके चली जा। मन बहल जाएगा। जब से आई हो मायके नहीं गई हो। झालरदास रामदास को कहता है कि बहू को कुछ दिन के लिए मायके भेज दो। रामवती अपने माँ भाई से मिलकर आ जाएगी। रामदास बैलगाड़ी से मस्तूरी तक रामवती, माधुरी, आसकरणदास को छोड़ देता है। मस्तूरी से बस में बैठकर बिलासपुर, बिलासपुर से सेंथरी गांव टांगे में बैठकर चले जाते हैं। घर पहुंचते ही मंगलीबाई माधुरी को पाकर खुश होजाती है। माधुरी अब आदमी पहचानने लगी थी।
माधुरी नाना, नानी की गोद में खेलने लगती है। रामवती हाथ पैर धोकर हालचाल पूछती है। कन कौन सहेली तीजा मनाने आई हैं। मंगली कहती है कि बेटी इस साल के दुकाल (अकाल) से सभी अनाथ हो गए हैं। किसी के पास खाने के लिए दाने नहीं है। रामसनेही महंत तुम्हारे बड़े पिताजी चम्पाबाई को लेने मुंगेली गए हैं।
शायद शाम तक आ जाएंगे घर की हालत भी कोई अच्छी नहीं थी। अरपा नदी में साग सब्जी कोचई लगाए थे। कुछ फायदा हो गया है। इसी से गुजर-बसर कर रहे हैं। नहीं तो हम लोग भी भूखे मर गए होते। खेतों में धान नहीं उगाई। रामवती मंगली माँ को बताती है कि हमारे घर का तो कुछ हाल है। पाँच एकड़ खेत बेचकर, बैल जोड़ी, एक भैंस जोड़ी, एक गाय खरीदे हैं। सहकारी सोसायटी से बीज,खाद उधार में लिए हैं। किसी प्रकार इस वर्ष खेत-किसानी हुआ है।
तीजा के दिन नदी किनारे पीपल के पेड़ में झालर रामवती के छोटे भाई दिलहरण बांध देते हैं। सभी सहेली रामवती के पास आते हैं। माधुरी को गोदी में लेकर खिलाने लगतेहैं। बहुत सुन्दर बेबी थी। जिसने देख लिए उसी के गोद में चली जाती थी। रामवती की छोटी बहन कलावती माधुरी को पकड़कर ले जाती है। आठ दस सहेलियां झूला झूलने बाग में चली जाती हैं। सभी सहेलियां हंसी मजाक गीत गाते मजे करते हुए कुछ सहेलियां माधुरी को झूलाती हैं। जोर जोर से झूला झूलने लगता है। रामवती अधिक झूलाने को मना कर देती है।
गीत –
सावन महीना रे मन भावन रे,
तीजा बड़े तिहार।
आओ सखी मेहंदी लगाएं,
रंग में रंग जाए तन मन हमार।
रामवती शाम चार बजे बेबी को लेकर अपने घर पहुंचती है। मंगलीबाई इंतजार करती रहती है। साथ में बैठकर भोजन करती हैं। माधुरी को दूध-पिलाकर सुला देती है। आसकरणदास शहर से रामवती के लिए साड़ी, पेटीकोट, ब्लाउज खरीदकर लाया रहता है। रामवती की पहली तीजा था। रामवती बाबूजी को कहती है बाबूजी अकाल पड़ा है। काहे के लिए खर्च कर रहे हो। बाबूजी कहते हैं बेटी पहली बार मायके आई हो। माता-पिता का फर्ज है बेटी की खुशी के लिए कुछ तो दें। भले ही तुम्हारे घर में कोई कमी नहीं है। परन्तु नेग है, इसे करना पड़ेगा। रामवती के आंसू बह जाते हैं। मा-बापू के प्यार में रामवती निहाल हो जात है। माधुरी नाना, नानी, मौसी से हिल-मिल जाती है। दो-तीन दिन रहकर रामवती रामदस के संग गाँव चली जाती है।
मणिदास ने रामदास को बिलासपुर के मिशन स्कूल में कक्षा 9वीं में भर्ती करा दिया। रामदास को मिशन होस्टल में रहने के लिए जगह भी मिल गई। रामदास मन लगाकर पढ़ने लगा। रामदास ने कक्षा 9वीं पास कर लिया। इस वर्ष पानी कम गिरने से धाने की फसल ज्यादा बर्बाद हुई उपज कम हुई। बड़ी मुश्किल से झालर को बाज के लिए धान मिला। छत्तीसगढ़ में किसानों के लिए महाअकाल पड़ गया। इस अकाल से किसानों के चुल हिल गये। छत्तीसगढ़ के सारे किसाने बड़े-बड़े शहरों में खाने-कमाने दिल्ली, कलकत्ता, इलाहाबाद, लखनऊ, आसाम, ढ़ाका चले गए। गाँव में मात्र झालर दास का परिवार रह गया। घर देखने के लिए बड़े-बूढ़े लोग बचे। उन्हें दिन में एक जून की रोटी भी नही मिल पाती थी। गाँव वाले मणिदास के पास जा पुराना धान था उसी से गुजर-बसर कर रहे थे।
रामदास कक्षा 9वीं पास कर कक्षा 10वीं में पढ़ने लगता है। रामदास किशोर से जवानी में प्रवेश कर रहा था। वह कक्षा 10वीं में द्वितीय श्रेणी मे उत्तीर्ण हो जाता है। रामदास पढ़ने-लिखने में बचपन से होशियार था। उसके संग पढ़ने वाले उत्तमदास, मनहरण, रामसहाय, पूरन लाल, मनोहर, तृतीय श्रेणी में पास हुए। गर्मी की छुट्टी में सभी साथी गाँव आ गए। वेदवती मणिदास से कहती हैं कि – रामवती जवान हो गई है गौना कराकर ले आओ। मणिदास झालर से कहता है कि –बेटा रामदास भी जवान हो गया है। बहू का गौना कराकर ले आओ। तुम कल सेंदरी गाँव जाकर आसकरण दास से कहो ...। झालर सेंदरी जाकर मंगलीबाई आसकरण दास से कहता है- कि बहू का गौना कराकर ले जाना चाहते हैं। तब तक रामवती आठवीं पास हो गई थी। रामवती मस्त गोल-गोल मांसल तन वाली जवान हो रही थी। देखने में बहुत खूबसूरत, छरहरी बदन की किशोरी लगती थी। मंगली आसकरण दास से बोली समधी जी आए हैं। रामवती के गौना कराने के कह रहें हैं। मंगली कहती है- आजकल के बच्चों का क्या भरोसा । कुछ ऊंच-नीच हो जाए तो बदनामी होगी। इसलिए तुम कह दो। अक्ती के दिने गौना कराकर ले जांए। अपनी बहू को।
झालर ने अपने घर आकर मणिदास को बतलाता है कि अक्ती का दिने तय हुआ है। चलो एक माह अभी समय है सभी तैयारियां कर लो। मणिदास अपने नाते रिश्तेदारों को एवं आसपास गाँव के मुखिया, पटेलों को गौना के बरात में चलने के लिए निमंत्रण देते हैं। बस में बैठकर मणिदास गौना की बारात सेंदरी गांव जाता है। अक्ती (अक्षय तृतीया) के सुबह बारात सेंदरी पहुँच जाती है। साथ में गड़वा बाजा भी ले जाते हैं। बाजा वाला बढ़िया फिल्मी धुनों में परी नाचती हैं। गाँव में हजारों आदमियों की भीड़ इकट्ठी हो जाती है। आसकरण दास बरातियों को चाय, नास्ता कराते हैं। सुबह दस बजे आंगन में धान का चौक पूरकर कलश जला कर रामदास रामवती को नए वस्त्र पहनाकर घर से विदा करते हैं। आंगन में सभी महिला पुरूष, दादा-दादी, नाना-नानी, चाचा-चाची, मामा-मामी पिताजी सभी चूमा लेते हैं। विदाई के समय सभी लोगों की आंखों में आंसू छलक जाते हैं। माँ, भाभी, पिताजी सभी रामदास व परिवार के सदस्यों को अपनी माँ, बाप समझने एवं सेवा करने के लिए समझाते हैं। माँ मंगलीबाई से रामवती गले मिलकर खूब रोती है। मंगलीबाई कहती है बेटी आज तुम पराई बन गई हो। ससुराल ही तुम्हारा असली घर है। माँ-बाप पाल-पोसकर बड़ा कर देते हैं, परन्तु जीवन भर के लिए सास-ससुर ही माँ-बाप होते हैं। रामवती, नानी, दादी, मामी सखियों से मिलकर खूब रोती हैं। पास में खड़े रामदास के आंसू टपक जाते हैं। मन में ग्लानि होने लगती है कि लड़की ससुराल जाते ही पराई हो जाती है। यह कैसा रिवाज है। माँ-बाप, भाई-बहन, सभी पराये हो जाते हैं। घर से कुछ दूर सड़क कर जाकर वर-वधू की विदाई करते हैं। आसकरण दोनों हाथ जोड़कर मणिदास, झालरदास, जगतारणदास से विनती करता है कि मेरी बच्ची से कोई गलती हो तो माफ कर देना। अभी बहुत छोटी है। गौना में मिले चांवल, रूपए, पैसे को बस के ऊपर लादकर गाँव ले आते हैं।
वेदवती, शांतिबाई, केजा, मनोरमा सभी घर की महिलाएं द्वार पर आरती उतारकर वधू को घर में लाते हैं। आंगने में सभी बड़ों को प्रणाम और चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेते हैं। सभी बरातियों को शाम का भोजन कराते हैं। सभी मेहमान अपने-अपने घर चले जाते हैं। मनोरमा उस रात एक कमरे की साफ-सफाई पलंग बिछा देती है। खाना खाने के बाद मनोरमा रामवती को (सुहागरात) घर देने की बात बताती है और वहां ले जाती है। उधर दोनो गप मारते रहते हैं। वह रामदास को लेकर आती हैं। सुहागरात सफल हो.... कहकर मनोरमा वापस अपने कमरे में आ जाती है। रामवती पलंग से उठकर रामदास के पहले चरण स्पर्श करती है। रामदास रामवती के मना करने के बाद भी पोटार के कस के दबा लेता है। रामवती ए..माँ.. कहकर बोलती है, तुम तो ऍसा दबाए कि मेरी हड्डी टूट जाए। दोनों एक दूसरे को चुमते हैं। कुछ समय तक गप बाजी होती है। फिर लालटेन बुझाकर एक दूसरे में खो जाते हैं। रामदास रामवती दो शरीर-एक प्राण बन जाते हैं। सुहागरात की यादें दोनो के स्मृति में अंकित हो जाती है। सभी मेहमान घर चले जाते हैं। मणिदास और वेदवती बहू के हाथों से भोजन करके तृप्त हो जाते हैं। वेदवती कहती है कि अब यदि हम मर जाएंगे तो भी कुछ नही होगा। ऋण से छुटकारा हो गया है। झालर और शांतिबाई रामवती को पुत्री के समान रखती हैं। रामदास रामवती की जोड़ी खूब फबती है। रामदास झालर के संग खेती किसानी में साथ देता है। सावन के महिने में रामवती गर्भवती हो जाती है। जब दादा मणिदास और दादी वेदवती को यह पता चलता है तो वें खुशी से झूम जाते हैं। मणिदास कहता है कि, अब तो नाती के बेटा-बेटी को देख कर ही मरूंगा। चौथी पीढ़ी का सदस्य आने वाला है।
रामवती को खाने-पाने की चीजें पसंद नही आती है रामदास शहर से फल ला-लाकर खिलाता है। परन्तु रामवती नही खा पाती। रामदास आसकरण दास को बताता है कि रामवती गर्भवती है। खाना अच्छा नही लग रहा है। मंगलीबाई सात प्रकार (संधोरी) रोटियां बनाकर ले जाती हैं। साथ में इमली, नींबू का अचार, आम का अचार, खट्टे-मिठे सूखे बेर भी ले जाती है। रामवती मां को देखकर खुश हो जाती है। रामवती पहले से कमजोर हो गई थी। मंगली ने समझाया कि बेटी इस समय कुछ अच्छा नही लगता। पेट में जो आ रहा है, उसके कारण अच्छा नही लग रहा। रामवती को इमली, आम-नींबू का अचार अच्छा लगता है। रामवती शांतिबाई कुछ काम नही करने देते । मंगली घर के कामों में हाथ बंटाती थी। दोनो समधिन मिलकर घर के कामों को कर लेते थे। कुछ दिन बाद रामवती खाना-खाने लगती हैं। शरीर भरता जाता है, पेट बाहर निकलता जाता है। मंगली कुछ दिन रहकर अपने घर लौट जाती है। रामवती नौ माह बाद एक स्वस्थ बच्ची को जन्म देती हैं। रामदास, मणिदास, झालरदास सभी खुश हो जाते हैं। घर में एक खिलौना आ गया था। मणिदास ने पूरे गांव भर को कंकेपानी एवं भोजन कराया। मस्तूरी से लाउडस्पीकर लाए। फिल्मी गाने , छत्तीसगढ़ी गीत बजवाए। मणिदास और वेदवती की खुशियों का ठिकाना न था। इस वर्ष फसल भी अच्छी हुई। बच्ची के जन्म होने से घर धन-धान्य से भर गया। रामदास बच्ची का नाम माधूरी रखता है। वह अति सुंदर रहती है।
मणिदास का भरा-पूरा परिवार सुखी और सम्पन्न कृषक था। मणिदास की ख्याति भले और ईमानदार व्यक्तियों में गिनी जाती थी। झालरदास ने रामदास से कहा- बेटा, अब आगे पढ़ाई मत करो। घर की खेती किसानी को देखो। गाँव में कहावत है कि- लड़का बी. ए. पास होना मानो परदेशी बाबू बन जाना कहते हैं। देश-दुनियां, खेती-किसानी, गांव से संबंध उसका टूट जाता है। न वह शहर का हो पाता है, न गांव का किसान बन पाता । इसलिए बेटा, बढ़िया खेती-किसानी करो। तु्म्हारे लिए पूर्वजों ने बहुत धन संपत्ति रखा है। उधर रामवती भी रामदास को समझाता है, बाबूजी ठीक कह रहे हैं। फिर बच्ची भी अभी छोटी है। माधूरी बहुत रोती है। तुम्हारी गोद के लिए रोती है। पिता का प्यार-दुलार बच्ची पहचान गई है। मां शांति बाई, वेदवती सभी समझाते हैं। रामदास के साथ पढ़ने वाले सभी साथी कालेज नही पढ़ पाते। रामदास परिवर्तन को भांपते हुए कालेज नही जा पाता।
मणिदास सावन मास के बीतते भादो मास के शुरूवात में खेत देखने गया। खेत में मेड़ पर चल रहा था कि.. पैर में एक केकड़े आकार के बिच्छु ने आकर काट लिया। मणिदास बिच्छु के काटने से बुरी तरह से कराह उठा। बहुत पुरानी बिच्छु रहा। एक बार के काटने से ही आदमी मर जाए। मणिदास ने तब गमछे से नाड़ी को पकड़के कस कर बांध दिए। जल्दी-जल्दी घर आया। जैसे ही बरामदे में पहुंचा, मणिदास चिल्लाये... वेदवती, शांति, रामदास यहां आओ। लोटे में पानी लाओ। रामवती दौड़े-दौड़े एक लोटे पानी लाई। अपने हाथो से पानी पिलाई। मणिदास पसिने से लथपथ हो गया। शरीर में विष फैलने लगा। मुंह से झाग निकलने लगा। वह धीरे-धीरे बेहोश होने लगा मणिदास जमीन पर लेट गया। घर में रोना शुरू हो गया। मणिदास विष से तड़पने लगा। रामदास आसपास के बैगा, गुनिया से झाड़, फूंक कराया। परन्तु बिच्छु का जहर नही उतर पाया। झालर ने कहा रामदास नौकर से कहकर बैलगाड़ी फंदवाओ। इसे धर्म अस्पताल मस्तुरी ले जाते हैं। मणिदास का शरीर विष से नीला पड़ गया। मुंह से झाग बराबर निकल रहा था। मणिदास को बेहोश हुए दो घंटे हो गए। वेदवती शांतिबाई के आंसू नही थम रहे थे। बैलगाड़ी से शासकीय अस्पताल मस्तुरी ले गए। डा. गुप्ता ने देखकर कहा कि जल्दी क्यों नही लाए। शरीर में पूरा विष फैल गया है। मैं प्रयास करता हूँ। डा. गुप्ता ने सिस्टर मार्टिन को बुलाया। तत्काल ग्लूकोज से स्लाइन लगाओ। मणिदास को स्लाइन चढ़ाया गया। दो बोतल चढ़ाये। परन्तु मणिदास की बेहोशी नही कटी। सात घंटे तक लगातार बोतल विषमारक इंजेक्सन लगाते रहे परन्तु विष खत्म नही हुआ मणिदास के मस्तिस्क में जहर पहुंच चुका था। डा. गुप्ता ने जहर उतारने के लिए अथक प्रयास किए परन्तु, जहर नही उतरा। रात आठ बजे मणिदास प्राण पखेरू उड़ने से पहले जोर से चिल्लाए। हाथ पैर को पीटने लगे। सिस्टर मार्टिन, झालर, रामदास जोर से दबाकर हाथ पैर को पकड़े । मणिदास ने अंतिम बार आंखें खोली। रामदास को पास बुलाया। सिर पर हाथ रखा। वेदवती, झालर, को सबको एक नजर घुमाकर देखा। सब परिवार के सदस्यों को देखने के बाद अंतिम सांसे ली। सिर एक तरफ लु़ड़क गया। रामदास के सिर से उनका हाथ गिर गया। रामदास, वेदवती, झालर ने रोना शुरू कर दिया। सभी की आंखों से झर-झर आंसू बहने लगे। मणिदास एक नेक इंसाने थे। संसार में एक महामानव बनकर आए थे। मणिदास की आत्मा ब्रम्ह में समा गई। डा. गुप्ता ने पोस्ट मार्टम रिपोर्ट बनाकर लास रामदास को सौंप दिए। डा. गुप्ता ने पुलिस थाना मस्तुरी में सर्प बिच्छु काटने का मामला दर्ज करा दिया। मर्ग कायम करके प्रकरण पंजीबध्द कर दिया।
प्राथमिक स्वास्थ केन्द्र मस्तुरी से लाश को बैलगाड़ी, में भरकर गांव टिकारी ले गए। जैसे ही गांव वालों को पता चला। महंत जी नही रहें, देखने वालों का तांता लग गया। रामदास वेदवती चुप कराते थे, परन्तु वेदवती रोती जाती थी। कहती- बेटा अब इस शरीर में क्या रखा है। मेरे प्राण तो चले गए। मैं जी के क्या करूंगी। शांति, झालर, रामवती सभी समझाते परन्तु वेदवती रात भर विलाप करती रही। लाश से लिपट-लिपटकर रोती रही। रामदास ने सभी रिश्तेदारों को आजमी भेजकर जानकारी दी। आस-पास के सभी रिश्तेदार दस बजे के आसपास जमा हो गए। सेंदरी में रामसनेही महंत, आसकरण, मंगलीबाई बारह बजे दिन को पहूँच पाए। मणिदास के लाश को बढ़िया नहलाए, तेल हरदी, नए वस्त्र पहनाए। उसी समय वेदवती मूर्छित होकर गिर पड़ती है। वेदवती को रामदास पानी छिड़कता है। मुंह में पानी डालता है, पानी मुंह में नही जाता। बाहर निकल जाता है। रामदास के गोदी में ही सती वेदवती प्राण त्याग देती है। घर में हा-हाकार मच जाता है। एक साथ दो लोगों की मृत्यु। झालर दादा शांति खूब रोते हैं। रामवती बहुत रोती है। जगतारण दास केजा बाई मनमोहन सभी परिवार के दुखी सदस्यों को चुप कराते हैं। कहते हैं दोनों जीवन साथी साथ जीने, साथ मरने की कसमें खाए थे। भगवान दोनों को शांति प्रदान करे।
वेदवती के लाश को शांति, केजा, रामवती, स्नान कराकर नए साड़ी तेल हल्दी लगाकर माथे में सिंदूर, पैर में महावर, टिकली, फुंद्दी, एक सुहागन नारी के सुहाग पनाकर पत्नी-पति को एक साथ मुक्तिधाम ले जाने के लिए शव यात्रा निकलती है। गाँव-गाँव में शोर मच जाता है, कि पति-पत्नी एक साथ मर गए। साथ में दाह संस्कार किया। गाँव-गाँव से आदमी माटी देने के लिए आने लगे थे। शवयात्रा में रामदास झालर दोनों सामने जगतारण मनमोहन पीछे मयाने के पकड़े हुए थे। मयाना को एक-एक करके सब कंधा दे रहे थे। हजारों आदमियों की भीड़ इकट्ठी हो गई थी। रामदास ने गाँव के तिहार, समक्ष, नौकर वेदराम को गड्ढा घोतने के लिए भेज दिए थे। बोधराम ने दोनों के लिए बड़े गड्ढे तैयार करा लिए थे। लाशों को पीपल पेड़ के नीचे उतारा गया। लाश के पास में जगतारण, झालरदास, रामदास बैठे थे। अगरब7त्ती जलाई। फूल मालाओं से लाशें ढंकी थी। अंतिम दर्शन के लिए मणिदास, वेदवती के मुँह को खोले। रामदास ने गंगा जल मुँह में डाल दिया। परिवार के सदस्यों ने अंतिम दर्शन कर गंगा जल पिलाया। दोनों की लाशें एक साथ गड्ढे में दफनाई गई। सभी लोगों ने पाँच-पाँच मुट्ठी मिट्टी डाली। बोधराम ने पत्थर से ऊपर उठी मिट्टी को पीटकर बराबर किया। सभी स्नान के लिए तालाब की ओर प्रस्थान किए। लाश के लिए नए वस्त्रों के ढेर लग गए थे। लगभग 100 साड़ियां और धोतियाँ चढ़ी थीं। सभी कपड़ों को सड़क के किनारे बबूल के पेड़ में लटका दिए। जिसे दीन-हीन लोग उपयोग में ला सकें।
तालाब के घाट में सभी स्नान किए। बोधराम ने उरई के पौधे को किनारे लगा दिए। जिसे झालर, जगतारण ने पाँच बार पानी दिया। बाद में सभी लोगों ने वैसा ही किया। स्नान के बाद सभी रामदास के घर आए। द्वार पर खड़े होकर सभी लोगों को प्रणाम किए एवं धन्यवाद दिया। महिलाएं सभी स्नान करके पहले आ गई थी। गाँव में अजीब सा सन्नाटा था। घर में तो और अधिक। क्योंकि दोनों सदस्यों की गमी हो गई थी। जगतारण की बहू लताबाई ने सब लोगों के लिए भोजन बनाया था। रामदास रामवती फूट-फूट के रो रहे थे। आँखों से आसूं थम नहीं रहे थे। झालर, शांति, मंगलीबाई बहुत समझा रहे थे। रामदास के सिर से दादा-दादी की छांव हट गई थी। जिसने पढ़ा-लिखाकर बड़ा किया था। बड़े प्यार-दुलार से बड़ा किया था। उसी के सहारे जीते थे। रामवती रामदास को समझाता है कि अभी बाबूजी और माँ जीवित हैं, क्यों घबराते हो। सभी लोगों ने रामदास को ढाढस बंधाए। सभी मनुष्यों को एक दिन तो मरना है। किसी तरह रामदास को भोजन कराते हैं। सभी मेहमान शाम को अपने-अपने घर चले जाते हैं। बच जाते हैं मनोरमा और मंगलीबाई।
झालरदास दशकर्म के लिए रिश्तेदारों को काँव वालों को निमंत्रण देता है। दशकर्म शनिवार के दिन होगा। रामदास झालरदास दशकर्म के लिए चावल, दाल, तेल हल्दी, मिर्च मसाले बाजार से ले आता है। दूबराज धान के दस बोरा चावल मस्तूरी से कुटा कर ले आते हैं। दाल के लिए दो बोरे अरहर, उड़द, तीवरा, दराकर ले आते हैं। मालपुआ बनाने के लिए पाँच टिन घी, पाँच चक्की गुड़, नारियल, लौंग, इलायची बिलासपुर से खरीदकर बैलगाड़ी से भरकर ले आते हैं। तीन दिन में तीज नहावन करते हैं एवं दस दिन में दशकर्म। सभी मेहमान एक दिन जहलने के लिए आ जाते हैं। घर मेहमानों से भरा रहता है। पूरे घर की साफ-सफाई कराते हैं। घर के कपड़े बिस्तर धुलवाते हैं। दशकर्म के दिन रामदस शहर से लाए नाई से बाल उतरवाता है। झालरदास, जगतारा, मनमोहन मुक्तावन दास परिवार, गाँव के अन्य सदस्य सिर के बाल उतरवाते हैं। दोपहर दो बजे तक नाई दाढ़ी बाल काटते रहते हैं।
घर की एवं गाँव की सभी महिलाएं नहावन में तालाब जाती हैं। सभी महिलाएं पाँच बार पानी देते हैं। स्नान करके लाईन से घर आ जाती हैं। द्वार में रखेपानी से पैर धोती हैं। आंगन में खड़े होकर गाँव के सारे लोग अपने घर चले जाते हैं। शेष मेहमान रह जाते हैं। महिलाएं कपड़े पहनकर तैयार हो जाती हैं। पुरुष लोग महिलाओं के आने के बाद स्नान करने जाते हैं। लगभग हजार आदमियों से अधिक लोग स्नान करते हैं और पाँच-पाँच बार पानी अंतिम रूप से देते हैं। लाईन से सभी घर आ जाते हैं। द्वरा में पानी रखे रहते हैं। पैर-हाथ धोकर आंगन में जाते हैं। रामदास, झालरदास, हावन द्वार में खड़े होकर सभी लोगों को प्रणाम करते हैं। एवं भोजन ग्रहण करने के लिए निवेदन करते हैं। सभी पुरुष कपड़े पहनकर तैयार होते हैं।
खलिहान में दस गुण्डे के चूल (चूल्हा) जलते रहते हैं, जिसमें चावल दाल सब्जी पकाते हैं। सभी मेहमानों को भोजन पंक्ति में कराते हैं। रामदास झालरदास दोना पत्तल में भोजन लेकर द्वार में रख आते हैं। पानी पत्तल में रख देता है। ऐसा कहा जाता है कि मरे हुए व्यक्ति आकर भोजन पाते हैं। इसके बाद ही सभी लोग भोजन करते हैं।
शाम के पाँच बजे कगे बाद ही घर के आंगन के साफ-सफाई करके चौके पूरते हैं। चावल के आटे से फेंक फुरते हैं। फेंक चारों ओर चादर बिछाकर फैलाकर लोग बैठते हैं। आंगन में दरी बिछा देते हैं। अजीत महंत मंत्र पढ़कर कलश की स्थापना करते हैं। सभी गुरू गद्दी की स्थापना के बाद बैठ जाते हैं। फेकर आरती का कार्यक्रम शुरू होता है। तबला, हारमोनियम, झांझर, मंजीरा से मंगल गीत प्रारंभ करते हैं। सबसे पहले गुरूजी को प्रणाम करते हैं।
दोहा –
गुरुजी को पहुंचे कोट कोट प्रणाम
कष्ट भींग जीव तारिहो, गुरुकरि हो संत समाज।
शब्द नाम – हरिहर गोबर निरमल पानी।
चौका पोतो सत सुकूत ज्ञानी।।
सतनाम को करे जोहारा।
एक लाख के पास करे भाई।
नरतन छोड़ स्वर्ग में स्थान पाई।।
मंगलगीत –
अहो बाबा अंगना ल झार बहार डरा हो।
तन उरमीत देहो हो निकाल
कर्र लेहा पुरन कमाई संत घर ला पाईहा हो।
महंत अजीतदास एवं साथियों द्वारा दो घण्टे तक चौका आरती के कार्यक्रम करते हैं। मंगलगी. शब्द सारवी, दोहा आदि सुनकर कई महिलाओं को संत गुरू घासीदास चढ़ जाते हैं। झूमने नाचने लगते हैं। मंगलगीत के धुन से मन प्रसन्न हो जाता है। मन के क्लेश, काम, क्रोध, मद लोभ समाप्त हो जाता है। गुरूजी के ध्यान में ही मन लगा रहता है। हजारों आदमी इसे देखते हैं। अजीत महंत द्वारा आरती उतारकर पानी छिड़ककर संत गुरू घासीदास का नाम लेकर शांत कर देते हैं।
शब्द –
सार नाम सत गुरू, वानी,
सार नाम बिरले कोई जानी
सार नाम अधि अंश समाना।
सत है गरजीन गंयी तास।
सतनाम के मेहीन माला
सतनाम के जपे जू पाए
कोटिन काल मए जर धारा,
हीरा हंस लिए उबारा।
साहेब गुरु सतनाम।।
अजीत दास महंत द्वारा पान प्रसाद सुपारी कलश के चारों ओर चारों गुरू को चढ़ाते हैं। घर से आरती लेकर महिलाएं आती हैं। पान, प्रसाद, रोटी, लड्डू, नारियल, मालपुआ, शक्कर, फल मेवा, मिष्ठान, बूंदी रखती है। अजीत दास मंगल आरती गाता है।
आरती मंगल
पहली आरती जगमग ज्योती
हीरा पदारथ बारे ला मोती
होत आरती सतनाम साहेब की
कंचन धार कपूर लगे बाती
भव भव आरती उतारे बहु माती
आरती हो सतनाम साहेब के।
तीजे आरती त्रिभुवन जग मोहे
रतन सिंहासन गुरूजी सा सोहे।
चौथे आरती निर्मल शरीरा,
आरती गावै गुहू घासीदासा हो।
जप आरती जो नर गावे,
चढ़ के निमग सुरलोक सिंघावे
छठे आरती दया दर्शन होए
लख चौरासी के बद छुड़ाए
हो आरती सतना साहेब के।
सतई आरती सतनामी घर होवे
हंसा ला उवार के सत लोक पठाए
होत आरती सतनाम साहेब के।
रामवती, मनोरमा, शांति ले जा आरती को महंत को देते हैं। आरती को प्रणाम कर बीच में रख देते हैं। सभी महिलाएं कलश को प्रणाम करके चली जाती हैं। अशोक नाम पढ़ता है।
नाम
बिना बीज के वृक्ष है,
बिना शब्द के नाम
बिना शब्द के रहन सहन
है उन्हीं तोल समान
राई जैसे पत्र अघराई ऐसे फूल,
शारदा पत्र उनके नहीं
अ,ठ कंवल निज मूल।
सुनो पुत्र गिरधारी सुनो पुत्र बिहारी
जब रहित साहेब आपी आपा
तज साहेब घर छूटे पसेऊ
भर भादो जस बरसाय भेई
बईठत धरती उठत आकाश
सतनाम के सुमखन मोरी
अष्ट कलश हो आशा
गगन मंदिर पर जोत पुरुष हैं
जहां तुम्हारो वासा
सात दीप नव खण्ड धरती
सोलह खण्ड आकाशा, चौदह भुवन
दस सौ दिग पाला
जहाँ ठाढ़े रहिन, अथरे रहवासा,
कंचन काया पुरुष रहवासा,
अहो नाम तुम कहां से आए,
कौन नाम से जीव निरमाए,
अनह ऊपर अनहत बसाए,
सिक्का नाम से जीव जीव निरमाए,
चारों गुरू पांचों नाम साहेब गुरू सतनाम
पदमन द्वारा साखी कहा जाता है।
“साखी – गुरू हमारे बानिया नाम लाद करिन व्यापार, नहीं ताजी न ही तासूरी, गुरू तोल तिन्ह संसार।’ अंतिम मंगल अजीत साथी द्वारा गाते हैं।
मंगलगीत
गुरू कहवा मैं पावो आरुग फुलवा
गुरू तोला में चढावे कवन फुलवा हो।
सभी तो फूल ता साहेब मोरा जूठारे है
तेला कइसे तोला मैं चढ़ावों।।
हाँ चाल चलन के चम्पा मन कर मोंगरा
प्रेम के हरवा बनबो हो
नदिया के पानी, मीन जूठारे हे,
कौ जल मा नहवात हो
गंगा जमुना दोनों नैना केहे नदिया
आंसुअन के धार में नहावावो हो
गईया के दूध ला बछरा जुठारे हे,
कामा तोरे चरण पखारों हो।
शुद्ध मन सत्यवप्रत गोरस
एईमा तोर चरण पखार न हो।
भाव भगती कर भोग लगाऊं
सत गुरू के सेवा ल बजाऊ हो
अजीत महंत द्वारा नारियल भेंट, झालर, रामदास, जगतारण को करातेहैं। सभी चौक मंत्र पढ़कर नारियल भेंट करतेहैं। नारियल सेपानी, गुड़, मिठाई, रोटी मांग कराकर अजीत दास नारियल तोड़ते हैं। सभी नारियल बीच से टुकड़े हो जाते हैं। सभी महंत मिलकर नारियल, कुड़, शक्कर, रोटियां, लड्डू, फल दूध के प्रसाद बनाते हैं। रामदास को दो दोने के मणिदास वेदवती के लिए प्रथम भोग देते हैं। बाद में सभी महिलाएं एवं पुरुषों को प्रसाद वितरण करते हैं। आंगन में बैठ जाते हैं. खलिहान, बरामदे, गली, किली, घर, आंगन लगभ तीन हजार पुरुष महिलाओं को बूंदी, सेवब, खीर, शक्कर, घी, पूड़ी मालपुआ परोसी जाती है। लगभग पचास लोग परोसने वाले। दालभात, सब्जी, घी, अचार, सभी को किलाते हैं। सभी भर पेट खाकर मणिदास वेदवती के आत्मा को शांति पहुंचाते हैं। भोजन एक पूरी रात्रि तक चलता है। गाँव वाले अपने घर चले जाते हैं। मेहमान लोग रात में आंगन खलिहान बरामदे में सोकर बिताते हैं। ऐसा भोजन आसपास के गाँव में किसी ने नहीं खिलाया था। झालरदास की वाहवाही हो जाती है।
दूसरे दिन गुरू एवं भांजे भांजी की दक्षिणा लेकर पूजा अर्चना कर नए वस्त्र कमीज धोती, साड़ी, छाता, धान, चावल, रुपए पैसे देकर विदाई करते हैं, जिस घर में मृतक सोते थे उस घर में कटोरी में आटा रख दिया जाता है। दो कटोरियों में आटा रखा गया था। घर के सभी मेहमान, महिला पुरुष घर को खाली छोड़कर बिदाई करने चले जाते हैं। एक बुजुर्ग महिला द्वार से घर की रखवाली करते हैं। कटोरी के आटे मं अंगुलियों के निशान स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं। शांति, झालर, रामदास, रामवती, मनोरमा, मंगली बाई, श्यामबाई बिदा करके रोते हुए आतेहैं। अंतिम बिदाई के समय घर से अंतिम बिदाई होती है। सभी मेहमान एक-क करके घर चले जाते हैं। रामदास, झालर, शांति, रामवती और माधुरी घर में बच जाते हैं। एक सुखी परिवार में दुख के बादल छा जाते हैं।
झालर, रामदास मिलकर खेती किसानी करने लगते हैं। इस वर्ष वहां फसल अच्छी नहीं होती। अकाल पड़ जाता है। धान की फसलों को डंकी, माहो, कटुवा, फाफूत, टिड्डी नुकसान पहुंचाते हैं। यहां तक बीज के लिए भी धान नहीं मिलता। सभी नौकर खाने कमाने इलाहाबाद चले जाते हैं। पूरा छत्तीसगढ़ अकाल की चपेट में आ जाता है। गाँव के गाँव किसान रोजी-रोटी के लिए पलायन कर जाते है। जिस किसान के पचास एकड़ जमीन होती है, वह भी एक बीजा धान नहीं पाता है। रामदास, झालरदास पुराने बचे कोठी को खोलते हैं और अपने सीमित परिवार का पेट भरते हैं। गाय भैंस के लिए चारे की कमी हो जाती है। सभी तालाब, नदी सूखने लगे थे। पशुओं में महामारी फैल जाती है। वैसे हीखारे पानी से कभी बीमारी से घर की गायें, बैल, भैंस एक-एक कर एक ही माह के भीतर सभी जानवर मर जाते हैं। घरम एक भी पशु नहीं बचता। बच्चों के लिए दूध की कमी होने लगती है। चरवाहे राउत से बच्ची के लिए दूध लेने लगे। मणिदास की मृत्यु धन सम्पत्ति कम होने लगी थी। झालर महंत चिंतित होने लगे कि अगले वर्ष खेती किसानी कैसे होगी। इधर घर में खाने के लिए अन्न नहीं बचता। उधर बीज बोने के लिए धान नहीं है। जोतने के लिए बैल नहीं है। क्या करें किसान। अकाल से किसानों की कमर टूट गई थी। किसी प्रकार रामदास अपने परिवार के पालन पोषण करता है।
झालरदास रामदास से कहता है कि – बेटा इतनी जमीन का क्या करोगे। फिर खेती-किसानी के लिए कम से कम तीन जोड़ी बैल या भैंस लेना पड़ेगा। बीच के लिए धान। खेती निंदाई गुड़ाई के लिए धान सजिया पैसा लगभग पच्चीस हजार रुपए से अधिक चाहे। यदि तुम्हारा मन आ जाए, तो पाँच एकड़ जमीन को परसदा खार की बेच देते हैं। वहाँ अघरिया किसान नए आए हैं। दो पाँच हजार रुपए एकड़ में सौदा तय कर आया। चौथे दिन बिलासपुर जाकर जमीन की रजिस्ट्री अघरिया किसान नन्दू पटेल के नाम से कर दी। नन्दू पटेल गाँव जाकर पच्चीस हजार रुपए पहले दे आया था। झालरदास रामदास बैल खरीदने के लिए काम कनेरी बाजार पशु हाट जाते हैं। दो जोड़ी बैल पाँच हजार रुपए एवं एक जोड़ी भैंसा तीन हजार में खरीद लाते हैं। रामदास झालरदास से कहता है – बाबूजी कोठा अभ सूना है। देहाती गाय ही खरीद लेते हैं। झालरदास बाजार में घूम-घूम कर देखते हैं। एक काली गाय को बछिया समेत एक सौ पचास रुपए में खरीद लेते हैं। कनेरी बाजार से सभीपशुओं को घर लाते हैं। द्वार के सामने रामवती शांतिबाई लोटे में पानी लेकर गाय की पूजा और आरती करती हैं। भगवान पहले जैसे कोठा को भर देना। खलिहान के कोठा में बैल, भैंसा और गाय को पानी चारा खिलाकर बांध देतेहैं। शांति माधुरी को गाय की बछिया दिखाती है। माधुरी हंस-हंस कर खेलने लगती है। सुबह खेलावत राउत को पता चलता है कि किसान के यहां गाय, बैल खरीद लाए हैं। गाय के आधा किलो दूध रखकर दे देते हैं। शांतिबाई दूध को गोरसी के आग में गरम करने लगती है। गाय बैल भैंसा को चराने के लिए राउत जंगल खार ले जाता है। दोपहर में ले आता है।
रामदास झालरदास दोनों सहकारी समिती से खाद बीच लेते हैं। लगभग दस हजार रुपए के ऋण लेते हैं। सनेही किसानी के लिए एक नौकर सहेत्तर से रख लेते हैं। तीन नागर जोतना रहता है। एक नागर रामदास, दूसरे को झालरदास, तीसरे को नौकर सहेत्तर जोतता है। लगभग एक महीने में सभी खेतों में धान बो देते हैं। पानी समय पर बरस रहा था। बादल रुक-रुक के झड़ी कर हरहरा कर गिर रहा था। सभी खेत खार नदी नाले तालाब भर गए थे। इस वर्ष कुछ अच्छी फसल होने की उम्मीद थी। भादो मास में तीजा त्यौहार मनाने के लिए आसकरणदास रामवती को लेने आए। शांति ने कहा बहू पिताजी आए हैं, कुछ दिन के लिए मायके चली जा। मन बहल जाएगा। जब से आई हो मायके नहीं गई हो। झालरदास रामदास को कहता है कि बहू को कुछ दिन के लिए मायके भेज दो। रामवती अपने माँ भाई से मिलकर आ जाएगी। रामदास बैलगाड़ी से मस्तूरी तक रामवती, माधुरी, आसकरणदास को छोड़ देता है। मस्तूरी से बस में बैठकर बिलासपुर, बिलासपुर से सेंथरी गांव टांगे में बैठकर चले जाते हैं। घर पहुंचते ही मंगलीबाई माधुरी को पाकर खुश होजाती है। माधुरी अब आदमी पहचानने लगी थी।
माधुरी नाना, नानी की गोद में खेलने लगती है। रामवती हाथ पैर धोकर हालचाल पूछती है। कन कौन सहेली तीजा मनाने आई हैं। मंगली कहती है कि बेटी इस साल के दुकाल (अकाल) से सभी अनाथ हो गए हैं। किसी के पास खाने के लिए दाने नहीं है। रामसनेही महंत तुम्हारे बड़े पिताजी चम्पाबाई को लेने मुंगेली गए हैं।
शायद शाम तक आ जाएंगे घर की हालत भी कोई अच्छी नहीं थी। अरपा नदी में साग सब्जी कोचई लगाए थे। कुछ फायदा हो गया है। इसी से गुजर-बसर कर रहे हैं। नहीं तो हम लोग भी भूखे मर गए होते। खेतों में धान नहीं उगाई। रामवती मंगली माँ को बताती है कि हमारे घर का तो कुछ हाल है। पाँच एकड़ खेत बेचकर, बैल जोड़ी, एक भैंस जोड़ी, एक गाय खरीदे हैं। सहकारी सोसायटी से बीज,खाद उधार में लिए हैं। किसी प्रकार इस वर्ष खेत-किसानी हुआ है।
तीजा के दिन नदी किनारे पीपल के पेड़ में झालर रामवती के छोटे भाई दिलहरण बांध देते हैं। सभी सहेली रामवती के पास आते हैं। माधुरी को गोदी में लेकर खिलाने लगतेहैं। बहुत सुन्दर बेबी थी। जिसने देख लिए उसी के गोद में चली जाती थी। रामवती की छोटी बहन कलावती माधुरी को पकड़कर ले जाती है। आठ दस सहेलियां झूला झूलने बाग में चली जाती हैं। सभी सहेलियां हंसी मजाक गीत गाते मजे करते हुए कुछ सहेलियां माधुरी को झूलाती हैं। जोर जोर से झूला झूलने लगता है। रामवती अधिक झूलाने को मना कर देती है।
गीत –
सावन महीना रे मन भावन रे,
तीजा बड़े तिहार।
आओ सखी मेहंदी लगाएं,
रंग में रंग जाए तन मन हमार।
रामवती शाम चार बजे बेबी को लेकर अपने घर पहुंचती है। मंगलीबाई इंतजार करती रहती है। साथ में बैठकर भोजन करती हैं। माधुरी को दूध-पिलाकर सुला देती है। आसकरणदास शहर से रामवती के लिए साड़ी, पेटीकोट, ब्लाउज खरीदकर लाया रहता है। रामवती की पहली तीजा था। रामवती बाबूजी को कहती है बाबूजी अकाल पड़ा है। काहे के लिए खर्च कर रहे हो। बाबूजी कहते हैं बेटी पहली बार मायके आई हो। माता-पिता का फर्ज है बेटी की खुशी के लिए कुछ तो दें। भले ही तुम्हारे घर में कोई कमी नहीं है। परन्तु नेग है, इसे करना पड़ेगा। रामवती के आंसू बह जाते हैं। मा-बापू के प्यार में रामवती निहाल हो जात है। माधुरी नाना, नानी, मौसी से हिल-मिल जाती है। दो-तीन दिन रहकर रामवती रामदस के संग गाँव चली जाती है।