कल फिर आना....
Posted: 20 Dec 2014 09:35
कल फिर आना....
“देखो रीमा, मैं अब पचास का हो चला हूं। मेरे लिये अब औरत के जिस्म का कोई मतलब नहीं रह गया।.... अब तुम मुझसे कोई उम्मीद न रखना।”
कबीर के ये शब्द रीमा के दिल की धड़कन को गड़बड़ा देने के लिये काफ़ी थे। कुछ पल की चुप्पी के बाद उसने मुंह खोला, “कबीर आप पचास के हो गये तो इसमें मेरा क्या कुसूर है? मैं तो अभी सैंतीस की ही हूं।.... आप कहना चाहते हैं कि हमारी शादीशुदा ज़िन्दगी बस आपके एक वाक्य से ख़त्म हो गई?.... जिस तरह पेट को भूख लगती है, कबीर, जिस्म को भी वैसे ही भूख महसूस होती है। वैसे पेट की भूख शांत करने के तो कई तरीके हैं। मगर जिस्म........ ” ।
रीमा को अपनी बात बीच में ही बन्द करनी पड़ गई। कबीर के बेसुरे ख़र्राटे कमरे में गूंजने लगे।
रीमा को वहम है कि 13 की संख्या उसके लिये दुर्भाग्य लेकर आती है। यदि 13 तारीख़ को शुक्रवार हो तो वह घर से बाहर ही नहीं निकलती। और आज तो उसके विवाह को 13 वर्ष पूरे हुए हैं और 13 तारीख़ वाला शुक्रवार भी है। आज कबीर ने यह वाक्य बोल कर रीमा के दिल में 13 के आंकड़े के प्रति भावनाओं को जैसे आधार दे दिया है। क्या अब उसके बाकी जीवन का हर दिन 13 तारीख़ वाला शुक्रवार बनने वाला है?
शिमला के रिट्ज़ होटल की वो रात! हनीमून के बारे में बस सुन रखा था। उस रात की यादें सच में ब्लो हॉट ब्लो कोल्ड वाली यादें हैं। कबीर ने ज़बरदस्ती उसे संतरे के रस में वोदका डाल कर पिलाई थी। रात दस बजे से तीन बजे तक कबीर ने अपने आपको पांच बार सुख दिया था। और वहम की मारी रीमा हर बार अपना शरीर धोने के लिये बाथरूम में जाती थी। होटल में पावर की समस्या चल रही थी इसलिये रात को गरम पानी उपलब्ध नहीं था। पहली बार तो किसी तरह ठण्डे पानी से हिना नहा ली। बाक़ी के चार बार तो उसने केवल अपने गुप्तांग धोये और बग़लों को गीले तौलिये से पौंछ लिया। एक रात में पांच बार करने वाला कबीर अचानक संत कैसे हो गया?
क्या दो बच्चे पैदा करने के बाद उसके शरीर में नमक नहीं बचा? अपने देश में बिताए तीन साल कबीर की बाहों में बीते थे। मगर यहां लन्दन में आकर बसने के बाद से दोनों के बीच एक अजीब से ठण्डी से दूरी बढ़ती जाने लगी। लन्दन का ठण्डा मौसम शायद उनके रिश्तों में गहरा पैठने लगा था।
अपने मां बाप की तेरहवीं संतान रीमा; अपने पति से तेरह वर्ष छोटी रीमा; अपने विवाह के तेरह वर्ष बाद सोचने को मजबूर है कि आख़िर उसका अपने पति के साथ रिश्ता क्या है। उसका अपना जीवन क्या है। अब बच्चे इतने छोटे भी नहीं कि उन्हें हर काम के लिये मां की ज़रूरत पड़े और इतने बड़े भी नहीं हैं कि पूरी तरह से आत्मनिर्भर हों।
फिर भी रीमा के कुछ काम तो तय हैं कि वह अपने बच्चों को सुबह तैयार करती है, नाश्ता बनाती है, खिलाती है, फिर उन्हें कार पर बैठा कर स्कूल छोड़ने जाती है। दोनों बच्चे पार्क हाई में पढ़ते हैं। रीमा को प्राइवेट स्कूलों में बच्चों को पढ़ाना पसन्द नहीं। इसलिये बच्चे स्टेट स्कूल में ही जाते हैं। कबीर के अहंकार को बुरा लगता है कि इतनी बड़ी एअरलाईन के अधिकारी के बच्चे स्टेट स्कूल में पढ़ें। मगर रीमा की सोच अलग है।
रीमा ने सोचते सोचते दो साल और बिता दिये हैं। अब उसने रातों को रोना बन्द कर दिया है। कितनी रातें वह सज-धज कर डाइनिंग टेबल पर कबीर का इंतज़ार करती। वह ग्यारह बजे रात आता और आसानी से कह देता कि उसने तो खाना दफ़्तर में ही खा लिया है। और रीमा बिना खाना खाये और बिना टेबल साफ़ किये वहां से उठकर कबीर के साथ बेडरूम की तरफ़ चल देती। कबीर वहीं लाउंज में बैठ जाता, और टीवी के सामने ऊंधने लगता और वहीं सो रहता। उसके मुंह से व्हिस्की की महक आती रहती। बेडरूम में वह अकेली तड़पती रहती और उन हसीन रातों को याद करती जब कबीर को उसके शरीर में रुचि थी।
“आप आज रात फिर बेडरूम में नहीं आए?”
“ दफ़्तर के कामों में इतना थक जाता हूं कि बस यहीं टीवी के सामने ही नींद आ जाती है।”
“कबीर मेरा भी तो जी चाहता है कि कभी आप मुझ से भी प्यार की दो बातें करें।... भला मेरा क्या कुसूर है कि मैं अकेली बिस्तर पर करवटें बदलती रहूं?”
“भई देखो रीमा, अब मैंने तुम्हारे आराम के लिये सब इन्तज़ाम कर दिये हैं। घर में तमाम सहूलियत मौजूद हैं। और तुम्हें क्या चाहिये?”
हां, रीमा को और कुछ चाहने का हक़ कहां है। शरीर की भूख की मांग भला औरत कैसे रख सकती है। अपने जीवन के ऐसे मोड़ पर खड़ी है रीमा जब शरीर और अधिक मांगता है। तभी उसे पता चलता है कि बस उसका साथी थक गया है। मगर यह सब हुआ कैसे। सच्ची बात है कि अचानक तो नहीं ही हुआ है। लन्दन आने के बाद आहिस्ता आहिस्ता ही आया है यह बदलाव।
जब कबीर की पहली सेक्रेटरी ऐनेट आई थी तो कबीर ने घर देर से आना शुरू कर दिया था। ऐनेट स्कॉटलेण्ड से आई थी। उसकी भाषा कभी भी रीमा को समझ नहीं आती थी। मगर उसके शरीर की भाषा शायद कबीर को पूरी तरह समझ आ गई थी। कबीर जब घर आता तो चेहरा निचुड़ा हुआ सा लगता। बस किसी तरह खाना खाता और सो जाता।
रीमा को अच्छी तरह याद है कि जब उसका और कबीर का शारीरिक रिश्ता सक्रिय था तो संभोग के बाद वह कितनी गहरी नींद सोती थी। अब... गहरी नींद कबीर सोता है और संभोग के लिये तड़पने का काम करती है रीमा । रीमा को महसूस होने लगा कि कबीर के कपड़ों से दूसरी औरत के शरीर की गन्ध आने लगी है।
“क्या बकती हो तुम? इस तरह का गन्दा इल्ज़ाम लगाती हो मुझ पर? इतनी बेहूदा बात तुम कह कैसे गईं ?.... ” और कबीर के ग़ुस्से ने रीमा को दहला दिया था। मगर रीमा अपने पति को खोना नहीं चाहती थी। सिर नीचा किये सब सुनती रही। शायद कहीं यह डर भी था कि उसे घर से निकाल ही न दें। आर्थिक स्तर पर कबीर पर ही आश्रित थी। यदि महिला आर्थिक रूप से स्वतन्त्र न हो तो भला अपने मन की बात कैसे कह सकती है।
एक शाम यह हुआ भी था, कि शाम की तन्हाई से तंग आकर रीमा एअरलाईन की एक मुलाज़िम के घर चली गई थी। सीमा काउण्टर पर यात्रियों को चेक-इन करने की ड्यूटी करती थी। कबीर को बिल्कुल पसन्द नहीं था कि उसकी पत्नी छोटे अधिकारियों के साथ कोई सम्बन्ध रखे। मगर अकेलापन रीमा को इस क़दर परेशान कर रहा था कि उससे घर में बैठना मुश्किल हो रहा था। बच्चों को खाना खिलाया और सीमा को फ़ोन किया। सीमा अभी डिनर करने का सोच ही रही थी। आज उसका पति भी घर पर था। पति विमान परिचारक है। रीमा चली गई।
और कबीर उसी दिन कुछ जल्दी घर लौट आया। उसकी तबीयत कुछ ख़राब हो गई थी। हल्का हल्का बुख़ार महसूस हो रहा था। घर में रीमा को न पा कर उसकी ज़मींदाराना प्रकृति को बहुत तेज़ झटका लगा। परेशान घर में घूमता रहा। फिर घर को भीतर से अच्छी तरह बन्द कर दिया ताकि रीमा बाहर से चाबी लगा कर खोल न सके। टीवी के सामने बैठा और सो गया। रात जब रीमा वापिस आई तो दरवाज़ा खुला ही नहीं क्योंकि बच्चे ऊपर अपने बेडरूम में बेख़बर सो रहे थे और कबीर को तो अपनी पत्नी को कुछ साबित करना था। बाहर अन्धेरी ठण्डी रात में रीमा अकेली अपनी कार स्टार्ट करके, हीटिंग चला कर बिना किसी रज़ाई या कम्बल के पड़ी रही।
सुबह को उसका मोबाइल फ़ोन बजा। बेटे को चिन्ता थी। नाश्ते के लिये मां की ज़रूरत थी ....
घर का दरवाज़ा खुला। नज़रें नीची किये रीमा भीतर दाख़िल हुई।
“आ गईं हिरोइन हमारे घर की ! मैं पूछता हूं कि मुझसे इजाज़त लिये बिना तुम्हारे कदम घर से बाहर निकले तो कैसे निकले ! अब तुम्हारी इतनी मजाल हो गई है कि तुम मुझसे बिना पूछे बाहर घूमने लगी हो ! ... तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ? ”
“जी बस सीमा के घर तक गई थी। मैं घर में अकेले बैठे बैठे बोर हो जाती हूं। ”
“मैं नहीं चाहता कि तुम छोटे लोगों के साथ मेलजोल रखो। आई बात समझ में?”
रीमा को समझ में आ गया था कि इस वक़्त बात करके बात को बिगाड़ा ही जा सकता है। वह एकदम चुप्पी ओढ़े बच्चों का काम करने लगी।
विवाहित जीवन की यादों में कुछ भी सकारात्मक क्यों याद नहीं आता ? क्यों वह हमेशा किसी अन्धेरी सुरंग के बीच जा कर कहीं खो जाती है ? एक शाम अपने अकेलेपन को दूर करने के प्रयास की सज़ा सारी रात कार में अकेले बिताना ! कबीर अपने आपको दिल्लीवाला कहता है। मगर व्यवहार तो किसी गांव के अनपढ़ ज़मींदार सा है। बेचारी रीमा! अभी तक बरेली की मासूम मानसिकता से नहीं उबर पा रही।
जब लन्दन आई थी तो अंग्रेज़ी भी ठीक से नहीं बोल पाती थी रीमा । कबीर पहले आ गया था नौकरी शुरू करने। क़रीब चार महीने बाद रीमा आ गई थी अपने पुत्र के साथ। अयान क़रीब साल भर का था। कबीर जैसे पगलाया पड़ा था रीमा के लिये। कबीर है बहुत बड़ा प्लैनर। पूरी सूझ बूझ से रीमा को शुक्रवार की फ़्लाइट से लन्दन बुलाया था। शुक्रवार और शनिवार की रातें आज भी रीमा के दिल को गुदगुदा जाती हैं। उसका सारा शरीर लव-बाइट्स के नीले काले निशानों से भर गया था। बस उसके बाद जब कबीर सोमवार को काम पर गया तो आज तक वापिस ही नहीं आया। उसका घिसटता हुआ शरीर घर सोने ज़रूर आता है। किन्तु वह शरीर रीमा के पति का नहीं होता। वह कभी ऐनेट का प्रेमी हो जाता है तो कभी काली शर्ली का।
लन्दन आने के बाद कबीर ने चार सेक्रेटरी बदली हैं। रीमा ने महसूस किया कि शायद उन सेक्रेटेरियों की मुख्य काबिलियत उनके बड़े बड़े वक्ष ही थे। बड़े वक्ष कबीर की कमज़ोरी थे। विवाह के चार दिन बाद ही जब कबीर रीमा के साथ उसके मायके हो कर आया तो रास्ते में ही बेहयाई से कहा था, “भई तुम्हारे भाई के बहुत मज़े हैं।”
“क्या मतलब?” रीमा को कबीर की बात समझ नहीं आई थी।
“तुम्हारी भाभी के ख़ज़ाने देखे कितने बड़े बड़े हैं!” कबीर की आंखों की गन्दगी उसके होठों की लार बन कर टपक रही थी। शर्म की मारी रीमा बस चुप्पी साध कर रह गई थी। रात को नाइटी पहनते समय उसने अपनी छातियों को देखा था। कोई छोटी तो नहीं थी उसकी छातियां। हां भाभी का पांच साल का बेटा है। वो भरी पूरी औरत हैं। ज़ाहिर है कि उनका बदन भी उतना ही गदराया हुआ था। भला कोई भी शरीफ़ आदमी अपने रिश्तेदारों के बारे में इतनी हल्की बात कर सकता है!
और वो शर्ली! वो तो एक बार कबीर और परिवार को हीथ्रो हवाई अड्डे तक छोड़ने भी आई थी। बेशर्म किस तरह कबीर को कस कर गले मिली थी। रीमा को समझ ही नहीं आता था कि कबीर को क्या पसन्द है। क्या वह गोरी अंग्रेज़ औरतों को पसन्द करता है या फिर काली अफ़्रीकनों को। मगर माइ लैन ली तो चीन से थी। ओह! यानि सभी तरह के स्वाद चख रहा है।
इसी लिये तो सीमा के घर जाने पर इतना हंगामा खड़ा कर दिया था और रात बाहर कार में बिताने को मजबूर कर दिया था। क्योंकि सीमा ने कबीर के सम्बन्धों के बारे में खुल कर हिना से बातें की थीं। एक बार तो कबीर ने सीमा पर भी अपने पद का इस्तेमाल करने का प्रयास किया था। मगर सीमा ने किसी भी तरह अपना दामन बचा लिया था। फिर उसका पति भी एअरलाईन में परसर है। शायद उससे डर गया होगा कबीर की बदनामी होगी। एक बार फ़ोन पर किसी से बात करते हुए रीमा ने भी सुन लिया था। किसी महिला के वक्ष और नितम्बों का ज़िक्र हो रहा था। मगर तब भी कबीर बात को टाल गया था। कबीर को हमेशा डर रहता है कि यदि रीमा एअरलाइन के कर्मचारियों से दोस्ती रखेगी तो उसकी अपनी पोल खुल जाने की पूरी संभावना है।
एक बार तो रीमा बेहयाई पर उतर आई, “कबीर चलिये न बिस्तर पर। टी.वी. कल देख लीजियेगा।”
बेबस सा कबीर साथ हो लिया रीमा के। रीमा ने आज कबीर का पसन्दीदा परफ़्यूम पैलोमा पिकासो लगाया था। अपनी नाइटी को हलका सा ऐसा ट्विस्ट दिया कि उसके वक्ष बस जैसे बाहर आने ही वाले थे। मगर कबीर जैसे मुर्दा जिस्म की तरह पड़ा रहा। उसमें कोई हरकत नहीं हुई। रीमा ने हिम्मत की और कबीर के नाइट सूट के पजामें में हाथ डाल दिया। काफ़ी देर तक मेहनत करती रही। मगर कबीर के ख़र्राटों ने रीमा को समझा दिया कि बात उसकी पहुंच से बाहर जी चुकी है।
रीमा उठ कर किचन में गई और वहां दराज़ से बड़ा सा चाकू निकाल लाई। पहले सोचा कि कबीर की हत्या कर दे। बिस्तर तक चल कर आई भी। मगर उस मांस के लिजलिजे लोथड़े को पड़ा देख उसे घिन आने लगी। ऐसी लाश को मार कर क्या हासिल होगा उसे?
रीमा को समझ नहीं आता था कि कबीर बी.बी.सी. या आई.टी.वी. की ख़बरें क्यों नहीं देखता। फिर स्काई न्यूज़ है सी.एन.एन. है, इन चैनलों को क्यों नकार रखा है। भला देसी चैनलों से देस की ख़बर रख कर हासिल क्या होगा। जिस देश में रह रहे हैं, उसके बारे में तो कुछ मालूम नहीं, लालू प्रसाद और मायावती के बारे में पढ़ सुन कर क्या हासिल होगा? उसके घर टी.वी पर बस यह देसी न्यूज़ चैनल चलते या फिर हिन्दी फ़िल्में या सीरियल।
सीरियल की ही तो बात थी। रीमा ने एक बार सोचा था कि चलो रात को कबीर के साथ बैठ कर वीडियो पर पाकिस्तानी ड्रामा ‘धूप किनारे’ देखेगी। भारत में सभी लोग इस नाटक की बहुत तारीफ़ किया करते थे। उसने स्वयं भी एक आध एपिसोड देख रखा था। राहत काज़मी की एक्टिंग उसे बहुत पसन्द आई थी। उसने अपनी पड़ोसन बुशरा से कह कर कराची से ‘धूप किनारे’ के ओरिजनल वीडियो कैसेट मंगवाए। कबीर को मनाया कि कम से कम एक शाम जल्दी घर आ जाए। शुक्रवार की शाम कबीर आठ बजे घर आ गया।
रीमा ने जल्दी से डाइनिंग टेबल पर खाना लगाया। उसने आज खाने में मटन चॉप्स, मशरूम मटर की सूखी सब्ज़ी और मूंग साबुत की दाल बनाई थी। साथ में रायता, सलाद, पापड़ और अचार। खाना खा कर कबीर पहुंच गया टीवी के सामने। कबीर ने आज कपड़े भी नहीं बदले थे। सूट और जूते में ही बन्धा हुआ था अब तक। और रीमा मेज़ की सफ़ाई में जुट गयी। बचा हुआ खाना ठीक से पैक करके फ़्रिज में रखा। बरतन साफ़ किये और हाथ मुंह धोकर, परफ़्यूम लगाया। और कबीर के साथ बैठ गई। याद आने लगा के कैसे भारत में कबीर के साथ सिनेमा देखने जाया करती थी। शादी के बाद जयपुर गये थे और राजमन्दिर में फ़िल्म देखी थी।
“अरे भाई कौन है इस सीरियल में?”
“कोई राहत काज़मी है जो पाकिस्तान का बहुत बड़ा टी.वी. स्टार है। साथ में मरीना ख़ान है। .. बुशरा बता रही थी कि राहत काज़मी में तीन इंडियन स्टारों की झलक है। अमिताभ, मनोज कुमार और राज बब्बर। ”
“ये कैसा मिक्सचर हुआ जी ? अमिताभ और मनोज तो वैसे ही दिलीप कुमार की नक़ल करते हैं। फिर भला यह काज़मी मियां क्या एक्टिंग करेंगे ? ”
“आप देखिये तो सही। ” रीमा को कबीर की निगेटिव बातें परेशान करने लगती हैं। “और हां इस सीरियल में कुछ बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़लें और नज़में भी हैं। ”
“चलिये अभी सामने आ जाती हैं। ”
धूप किनारे की कास्टिंग शुरू होती है। रीमा को आदत ही नहीं है कि एक जगह मिट्टी का माधो बन कर फ़िल्म या टी.वी. सीरियल देखा जाए। वह एक जीवन्त व्यक्तित्व है। उसे बातें करने की इच्छा होती है। आज तो केवल कबीर का साथ पाने के लिये....। कबीर ने आज भोजन से पहले कोई ड्रिंक नहीं लिया शायद इसी लिये अपने लिये ड्राम्बुई का एक लार्ज सा पोरशन बना लिया है। उसने रीमा को भी अपने लिये एक लिक्योर बनाने को कहा है। रीमा माहौल को रंगीन बना देना चाहती है। उसने कबीर की बात मान ली है। हालांकि मन में कहीं इच्छा थी कि कबीर स्वयं उसके लिये ड्रिंक बनाए। आमतौर पर रीमा खाने के बाद लिक्योर ही ले लेती है। क्रेम-दि-मैन्थ पीने से उसे महसूस होता है कि पान खा लिया है। आज भी उसने वही बोतल खोली, हरे रंग का एक पैग अपने लिक्योर गिलास में डाला और बर्फ़ का चूरा करने लगी ताकि क्रेम-दि-मैन्थ का फ़्रापे बना सके।... एकाएक उसको अपनी ग़लती महसूस हुई। उसने दूसरे गिलास में चूरा की हुई बर्फ़ डाली और फिर पहले गिलास में से लिक्योर आहिस्ता आहिस्ता उस पर उंडेलने लगी। चूरा बर्फ़ के साथ मिल कर हरे रंग की क्रेम-दि-मैन्थ माहौल को कहीं अधिक ख़ूबसूरत और रोमांटिक बना रही थी।
रीमा को यह ड्रिंक बनाना कबीर ने ही सिखाया था। कबीर ने रीमा का गिलास देखा और मुस्कुरा दिया। दोनों ने चीयर्स कहा और अपने अपने गिलास में से एक एक घूंट पी लिया।
पहला एपिसोड ख़त्म होते होते लिक्योर अपना असर दिखाने लगती है और रीमा की आंखें बन्द होने लगती हैं, “कबीर, हम आज दिन भर खाना बनाते और सफ़ाई करते थक गये हैं। हमें नींद आ रही है। चलिये आप भी ऊपर चलिये। यह सीरियल कल सुबह आराम से देखेंगे। कल तो आपकी छुट्टी है। ”
“अरे हमारी छुट्टी की भली कही। एअरलाईन तो हफ़्ते में सातों दिन काम करती हैं। हम हर वक़्त ऑन-कॉल होते हैं। ... अच्छा तुम चलो मैं अभी आता हूं। ”
रीमा अपने बेड-रूम में ऊपर चली गई। और धम से बिस्तर पर गिरते ही सो गई। नींद बहुत गहरी थी। थकावट का असर साफ़ दिखाई दे रहा था और क्रेम-दि-मेन्थ ने अपना काम कर ही दिया था। रीमा की नींद खुली जब कमरे की बिजली जली। उसने हड़बड़ा कर आंखें खोलीं। कुछ पलों के लिये समय का अन्दाज़ उसके दिमाग़ से ग़ायब हो गया था। वह कुछ समझ नहीं पा रही थी। सामने कबीर खड़ा था सूट और हैट में हाथ में बैग लिये। उसे लगा जैसे सुबह हो गई और कबीर दफ़्तर जाने के लिये तैयार है, “अरे कबीर, आप रात भर कमरे में आए ही नहीं ! मैं सोती ही रह गई। क्या दफ़्तर निकल रहे हैं ? ”
“अरे नहीं रीमा । मैं बस ‘धूप किनारे’ देखता रहा। मैंने दोनों वीडियो कैसेट देख डाले। अभी सुबह के चार बजे हैं। अब मैं भी सोता हूं। ”
“आपने दोनों वीडियो देख लिये ! मगर मैंने तो कहा था कि सुबह इकट्ठे बैठ कर देखेंगे। फिर इतनी जल्दी क्या थी। मैं तो आपके साथ एन्जॉय करना चाहती थी। ”
“अरे, तो इसमें कौन सा जुर्म हो गया। हम तुम्हारे साथ दोबारा देख लेंगे। कोई मना थो़ड़े ही किया है कि तुम्हारे साथ नहीं देखेंगे। ”
रीमा तड़प कर उठी। उसकी आंखों में एक अलग किस्म का दर्द था जिसे समझने के लिये दिल में सेंसेटिविटी होना बहुत ज़रूरी है। कबीर के लिये इस सूक्ष्म भावना को समझ पाना संभव नहीं था, “अरे अभी कहां जा रही हो। अभी तो सुबह होने में देर है। ”
उस दिन पहली बार रीमा ने कबीर के साथ सोने से इन्कार कर दिया। और वहीं आकर बैठ गई जहां थोड़ी देर पहले कबीर बैठ कर धूप किनारे का आनन्द ले रहा था। उसे ग़ुस्से के मारे उबकाई सी आ रही थी। आज उसने जी भर कर अपने माता-पिता को कोसा जिन्होंने अच्छी नौकरी, अमीर घर और बिरादरी से उसकी शादी कर दी थी। अगर वह ग़रीब होती और पति का प्यार मिलता तो क्या वह अधिक सुखी न होती।
“अरे ये सब चोंचले हैं। राज कपूर ने तो ग़रीबी को इतना ग्लैमोराइज़ कर दिया था कि इन्सान को ग़रीब होना बहुत रोमांटिक लगने लगता था। दो दिन रोटी नसीब न हो तो सारा का सारा रोमांटिसिज़्म उड़न छू हो जाए। दुनियां की एक ही सच्चाई है – पैसा। जिसके पास नहीं है, उससे पूछ कर देखो। पैसा नहीं तो घर में शांति नहीं, दिलों में प्यार नहीं।”
“हमारे घर में तो पैसे की कमी नहीं है। फिर हमारे घर में शांति क्यों नहीं है ? आपके पास तो बच्चों के लिये पांच मिनट का समय नहीं होता। क्या आपको पता है कि अयान कौन सी क्लास में पढ़ता है। हमारी बेटी की ज़रूरतें क्या हैं, आपने कभी सोचा है ?... आपको अपनी सेक्रेटरियों से फ़ुरसत मिले तो बात बने न।.. आप जैसे इन्सान को प्यार और मुहब्बत का अर्थ क्या पता !”
यह बहस कभी कभार का शग़ल नहीं थी। ये रोज़ाना का झगड़ा था। बच्चे अक़लमन्द हैं। उन्होंने कभी शिकायत ही नहीं की कि उनका पिता क्यों कभी उनके लिये मौजूद नहीं होता। उनके स्कूल के कामों के लिये मां है ; उनके खाने, पहनने, स्पोर्ट्स और टूर पर जाने के लिये सब कुछ मां करती है। भला उन्हें पिता की कमी खले तो कैसे खले। जब सब कुछ पूरा हो रहा हो, तो किसी की कमी भी क्यों खलेगी ?
स्कूल से पेरिस जाने का प्रोग्राम बना है। दोनों भाई बहनों ने अपना नाम लिखवा दिया है ट्रिप के लिये। पैसे मां से ले लिये हैं। ... इसी बात की तो अकड़ है कबीर की। अरे पैसे कमाता हूं। तुम लोगों पर ख़र्च करता हूं। और क्या करूं ? अबकी बार जब स्कूल से पेरिस जाने का कार्यक्रम बना तो दोनों ही बच्चों ने अपने नाम दे दिये। रीमा भी ख़ुश थी कि चलो दोनों इकट्ठे रहेंगे।
मगर तभी कबीर ने घोषणा कर दी, “रीमा, मैं दो हफ़्तों के लिये दिल्ली जा रहा हूं। वहां से मुंबई जाऊंगा। वो क्या है कि एअरलाईन की एक्सपेन्शन की बातचीत चल रही है मेरा वहां होना ज़रूरी है। ”
“मैं भी आपके साथ चलती हूं न। दो हफ़्ते मैं भी अपने मायके लगा आऊंगी। आजकल मां की तबीयत भी ठीक नहीं रहती है। ”
“सोचा तो मैंने भी पहले यही था। मगर वो क्या है कि इन्श्योरेंस वालों ने रूफ़ रिपेयर के लिये यही टाइम लिखा है। अभी वो लोग फंस रहे हैं, तो हम करवा लें। वर्ना हम कहते रहेंगे और उनके पीछे पीछे भागते रहेंगे। कुल तीन दिन का कह रहे हैं। ”
“तो ठीक है मैं काम करवा कर आ जाऊंगी। ... आप ही सोचिये, न तो आप यहां और न बच्चे। मैं करूंगी क्या?”
“देखो रीमा, मैं अब पचास का हो चला हूं। मेरे लिये अब औरत के जिस्म का कोई मतलब नहीं रह गया।.... अब तुम मुझसे कोई उम्मीद न रखना।”
कबीर के ये शब्द रीमा के दिल की धड़कन को गड़बड़ा देने के लिये काफ़ी थे। कुछ पल की चुप्पी के बाद उसने मुंह खोला, “कबीर आप पचास के हो गये तो इसमें मेरा क्या कुसूर है? मैं तो अभी सैंतीस की ही हूं।.... आप कहना चाहते हैं कि हमारी शादीशुदा ज़िन्दगी बस आपके एक वाक्य से ख़त्म हो गई?.... जिस तरह पेट को भूख लगती है, कबीर, जिस्म को भी वैसे ही भूख महसूस होती है। वैसे पेट की भूख शांत करने के तो कई तरीके हैं। मगर जिस्म........ ” ।
रीमा को अपनी बात बीच में ही बन्द करनी पड़ गई। कबीर के बेसुरे ख़र्राटे कमरे में गूंजने लगे।
रीमा को वहम है कि 13 की संख्या उसके लिये दुर्भाग्य लेकर आती है। यदि 13 तारीख़ को शुक्रवार हो तो वह घर से बाहर ही नहीं निकलती। और आज तो उसके विवाह को 13 वर्ष पूरे हुए हैं और 13 तारीख़ वाला शुक्रवार भी है। आज कबीर ने यह वाक्य बोल कर रीमा के दिल में 13 के आंकड़े के प्रति भावनाओं को जैसे आधार दे दिया है। क्या अब उसके बाकी जीवन का हर दिन 13 तारीख़ वाला शुक्रवार बनने वाला है?
शिमला के रिट्ज़ होटल की वो रात! हनीमून के बारे में बस सुन रखा था। उस रात की यादें सच में ब्लो हॉट ब्लो कोल्ड वाली यादें हैं। कबीर ने ज़बरदस्ती उसे संतरे के रस में वोदका डाल कर पिलाई थी। रात दस बजे से तीन बजे तक कबीर ने अपने आपको पांच बार सुख दिया था। और वहम की मारी रीमा हर बार अपना शरीर धोने के लिये बाथरूम में जाती थी। होटल में पावर की समस्या चल रही थी इसलिये रात को गरम पानी उपलब्ध नहीं था। पहली बार तो किसी तरह ठण्डे पानी से हिना नहा ली। बाक़ी के चार बार तो उसने केवल अपने गुप्तांग धोये और बग़लों को गीले तौलिये से पौंछ लिया। एक रात में पांच बार करने वाला कबीर अचानक संत कैसे हो गया?
क्या दो बच्चे पैदा करने के बाद उसके शरीर में नमक नहीं बचा? अपने देश में बिताए तीन साल कबीर की बाहों में बीते थे। मगर यहां लन्दन में आकर बसने के बाद से दोनों के बीच एक अजीब से ठण्डी से दूरी बढ़ती जाने लगी। लन्दन का ठण्डा मौसम शायद उनके रिश्तों में गहरा पैठने लगा था।
अपने मां बाप की तेरहवीं संतान रीमा; अपने पति से तेरह वर्ष छोटी रीमा; अपने विवाह के तेरह वर्ष बाद सोचने को मजबूर है कि आख़िर उसका अपने पति के साथ रिश्ता क्या है। उसका अपना जीवन क्या है। अब बच्चे इतने छोटे भी नहीं कि उन्हें हर काम के लिये मां की ज़रूरत पड़े और इतने बड़े भी नहीं हैं कि पूरी तरह से आत्मनिर्भर हों।
फिर भी रीमा के कुछ काम तो तय हैं कि वह अपने बच्चों को सुबह तैयार करती है, नाश्ता बनाती है, खिलाती है, फिर उन्हें कार पर बैठा कर स्कूल छोड़ने जाती है। दोनों बच्चे पार्क हाई में पढ़ते हैं। रीमा को प्राइवेट स्कूलों में बच्चों को पढ़ाना पसन्द नहीं। इसलिये बच्चे स्टेट स्कूल में ही जाते हैं। कबीर के अहंकार को बुरा लगता है कि इतनी बड़ी एअरलाईन के अधिकारी के बच्चे स्टेट स्कूल में पढ़ें। मगर रीमा की सोच अलग है।
रीमा ने सोचते सोचते दो साल और बिता दिये हैं। अब उसने रातों को रोना बन्द कर दिया है। कितनी रातें वह सज-धज कर डाइनिंग टेबल पर कबीर का इंतज़ार करती। वह ग्यारह बजे रात आता और आसानी से कह देता कि उसने तो खाना दफ़्तर में ही खा लिया है। और रीमा बिना खाना खाये और बिना टेबल साफ़ किये वहां से उठकर कबीर के साथ बेडरूम की तरफ़ चल देती। कबीर वहीं लाउंज में बैठ जाता, और टीवी के सामने ऊंधने लगता और वहीं सो रहता। उसके मुंह से व्हिस्की की महक आती रहती। बेडरूम में वह अकेली तड़पती रहती और उन हसीन रातों को याद करती जब कबीर को उसके शरीर में रुचि थी।
“आप आज रात फिर बेडरूम में नहीं आए?”
“ दफ़्तर के कामों में इतना थक जाता हूं कि बस यहीं टीवी के सामने ही नींद आ जाती है।”
“कबीर मेरा भी तो जी चाहता है कि कभी आप मुझ से भी प्यार की दो बातें करें।... भला मेरा क्या कुसूर है कि मैं अकेली बिस्तर पर करवटें बदलती रहूं?”
“भई देखो रीमा, अब मैंने तुम्हारे आराम के लिये सब इन्तज़ाम कर दिये हैं। घर में तमाम सहूलियत मौजूद हैं। और तुम्हें क्या चाहिये?”
हां, रीमा को और कुछ चाहने का हक़ कहां है। शरीर की भूख की मांग भला औरत कैसे रख सकती है। अपने जीवन के ऐसे मोड़ पर खड़ी है रीमा जब शरीर और अधिक मांगता है। तभी उसे पता चलता है कि बस उसका साथी थक गया है। मगर यह सब हुआ कैसे। सच्ची बात है कि अचानक तो नहीं ही हुआ है। लन्दन आने के बाद आहिस्ता आहिस्ता ही आया है यह बदलाव।
जब कबीर की पहली सेक्रेटरी ऐनेट आई थी तो कबीर ने घर देर से आना शुरू कर दिया था। ऐनेट स्कॉटलेण्ड से आई थी। उसकी भाषा कभी भी रीमा को समझ नहीं आती थी। मगर उसके शरीर की भाषा शायद कबीर को पूरी तरह समझ आ गई थी। कबीर जब घर आता तो चेहरा निचुड़ा हुआ सा लगता। बस किसी तरह खाना खाता और सो जाता।
रीमा को अच्छी तरह याद है कि जब उसका और कबीर का शारीरिक रिश्ता सक्रिय था तो संभोग के बाद वह कितनी गहरी नींद सोती थी। अब... गहरी नींद कबीर सोता है और संभोग के लिये तड़पने का काम करती है रीमा । रीमा को महसूस होने लगा कि कबीर के कपड़ों से दूसरी औरत के शरीर की गन्ध आने लगी है।
“क्या बकती हो तुम? इस तरह का गन्दा इल्ज़ाम लगाती हो मुझ पर? इतनी बेहूदा बात तुम कह कैसे गईं ?.... ” और कबीर के ग़ुस्से ने रीमा को दहला दिया था। मगर रीमा अपने पति को खोना नहीं चाहती थी। सिर नीचा किये सब सुनती रही। शायद कहीं यह डर भी था कि उसे घर से निकाल ही न दें। आर्थिक स्तर पर कबीर पर ही आश्रित थी। यदि महिला आर्थिक रूप से स्वतन्त्र न हो तो भला अपने मन की बात कैसे कह सकती है।
एक शाम यह हुआ भी था, कि शाम की तन्हाई से तंग आकर रीमा एअरलाईन की एक मुलाज़िम के घर चली गई थी। सीमा काउण्टर पर यात्रियों को चेक-इन करने की ड्यूटी करती थी। कबीर को बिल्कुल पसन्द नहीं था कि उसकी पत्नी छोटे अधिकारियों के साथ कोई सम्बन्ध रखे। मगर अकेलापन रीमा को इस क़दर परेशान कर रहा था कि उससे घर में बैठना मुश्किल हो रहा था। बच्चों को खाना खिलाया और सीमा को फ़ोन किया। सीमा अभी डिनर करने का सोच ही रही थी। आज उसका पति भी घर पर था। पति विमान परिचारक है। रीमा चली गई।
और कबीर उसी दिन कुछ जल्दी घर लौट आया। उसकी तबीयत कुछ ख़राब हो गई थी। हल्का हल्का बुख़ार महसूस हो रहा था। घर में रीमा को न पा कर उसकी ज़मींदाराना प्रकृति को बहुत तेज़ झटका लगा। परेशान घर में घूमता रहा। फिर घर को भीतर से अच्छी तरह बन्द कर दिया ताकि रीमा बाहर से चाबी लगा कर खोल न सके। टीवी के सामने बैठा और सो गया। रात जब रीमा वापिस आई तो दरवाज़ा खुला ही नहीं क्योंकि बच्चे ऊपर अपने बेडरूम में बेख़बर सो रहे थे और कबीर को तो अपनी पत्नी को कुछ साबित करना था। बाहर अन्धेरी ठण्डी रात में रीमा अकेली अपनी कार स्टार्ट करके, हीटिंग चला कर बिना किसी रज़ाई या कम्बल के पड़ी रही।
सुबह को उसका मोबाइल फ़ोन बजा। बेटे को चिन्ता थी। नाश्ते के लिये मां की ज़रूरत थी ....
घर का दरवाज़ा खुला। नज़रें नीची किये रीमा भीतर दाख़िल हुई।
“आ गईं हिरोइन हमारे घर की ! मैं पूछता हूं कि मुझसे इजाज़त लिये बिना तुम्हारे कदम घर से बाहर निकले तो कैसे निकले ! अब तुम्हारी इतनी मजाल हो गई है कि तुम मुझसे बिना पूछे बाहर घूमने लगी हो ! ... तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ? ”
“जी बस सीमा के घर तक गई थी। मैं घर में अकेले बैठे बैठे बोर हो जाती हूं। ”
“मैं नहीं चाहता कि तुम छोटे लोगों के साथ मेलजोल रखो। आई बात समझ में?”
रीमा को समझ में आ गया था कि इस वक़्त बात करके बात को बिगाड़ा ही जा सकता है। वह एकदम चुप्पी ओढ़े बच्चों का काम करने लगी।
विवाहित जीवन की यादों में कुछ भी सकारात्मक क्यों याद नहीं आता ? क्यों वह हमेशा किसी अन्धेरी सुरंग के बीच जा कर कहीं खो जाती है ? एक शाम अपने अकेलेपन को दूर करने के प्रयास की सज़ा सारी रात कार में अकेले बिताना ! कबीर अपने आपको दिल्लीवाला कहता है। मगर व्यवहार तो किसी गांव के अनपढ़ ज़मींदार सा है। बेचारी रीमा! अभी तक बरेली की मासूम मानसिकता से नहीं उबर पा रही।
जब लन्दन आई थी तो अंग्रेज़ी भी ठीक से नहीं बोल पाती थी रीमा । कबीर पहले आ गया था नौकरी शुरू करने। क़रीब चार महीने बाद रीमा आ गई थी अपने पुत्र के साथ। अयान क़रीब साल भर का था। कबीर जैसे पगलाया पड़ा था रीमा के लिये। कबीर है बहुत बड़ा प्लैनर। पूरी सूझ बूझ से रीमा को शुक्रवार की फ़्लाइट से लन्दन बुलाया था। शुक्रवार और शनिवार की रातें आज भी रीमा के दिल को गुदगुदा जाती हैं। उसका सारा शरीर लव-बाइट्स के नीले काले निशानों से भर गया था। बस उसके बाद जब कबीर सोमवार को काम पर गया तो आज तक वापिस ही नहीं आया। उसका घिसटता हुआ शरीर घर सोने ज़रूर आता है। किन्तु वह शरीर रीमा के पति का नहीं होता। वह कभी ऐनेट का प्रेमी हो जाता है तो कभी काली शर्ली का।
लन्दन आने के बाद कबीर ने चार सेक्रेटरी बदली हैं। रीमा ने महसूस किया कि शायद उन सेक्रेटेरियों की मुख्य काबिलियत उनके बड़े बड़े वक्ष ही थे। बड़े वक्ष कबीर की कमज़ोरी थे। विवाह के चार दिन बाद ही जब कबीर रीमा के साथ उसके मायके हो कर आया तो रास्ते में ही बेहयाई से कहा था, “भई तुम्हारे भाई के बहुत मज़े हैं।”
“क्या मतलब?” रीमा को कबीर की बात समझ नहीं आई थी।
“तुम्हारी भाभी के ख़ज़ाने देखे कितने बड़े बड़े हैं!” कबीर की आंखों की गन्दगी उसके होठों की लार बन कर टपक रही थी। शर्म की मारी रीमा बस चुप्पी साध कर रह गई थी। रात को नाइटी पहनते समय उसने अपनी छातियों को देखा था। कोई छोटी तो नहीं थी उसकी छातियां। हां भाभी का पांच साल का बेटा है। वो भरी पूरी औरत हैं। ज़ाहिर है कि उनका बदन भी उतना ही गदराया हुआ था। भला कोई भी शरीफ़ आदमी अपने रिश्तेदारों के बारे में इतनी हल्की बात कर सकता है!
और वो शर्ली! वो तो एक बार कबीर और परिवार को हीथ्रो हवाई अड्डे तक छोड़ने भी आई थी। बेशर्म किस तरह कबीर को कस कर गले मिली थी। रीमा को समझ ही नहीं आता था कि कबीर को क्या पसन्द है। क्या वह गोरी अंग्रेज़ औरतों को पसन्द करता है या फिर काली अफ़्रीकनों को। मगर माइ लैन ली तो चीन से थी। ओह! यानि सभी तरह के स्वाद चख रहा है।
इसी लिये तो सीमा के घर जाने पर इतना हंगामा खड़ा कर दिया था और रात बाहर कार में बिताने को मजबूर कर दिया था। क्योंकि सीमा ने कबीर के सम्बन्धों के बारे में खुल कर हिना से बातें की थीं। एक बार तो कबीर ने सीमा पर भी अपने पद का इस्तेमाल करने का प्रयास किया था। मगर सीमा ने किसी भी तरह अपना दामन बचा लिया था। फिर उसका पति भी एअरलाईन में परसर है। शायद उससे डर गया होगा कबीर की बदनामी होगी। एक बार फ़ोन पर किसी से बात करते हुए रीमा ने भी सुन लिया था। किसी महिला के वक्ष और नितम्बों का ज़िक्र हो रहा था। मगर तब भी कबीर बात को टाल गया था। कबीर को हमेशा डर रहता है कि यदि रीमा एअरलाइन के कर्मचारियों से दोस्ती रखेगी तो उसकी अपनी पोल खुल जाने की पूरी संभावना है।
एक बार तो रीमा बेहयाई पर उतर आई, “कबीर चलिये न बिस्तर पर। टी.वी. कल देख लीजियेगा।”
बेबस सा कबीर साथ हो लिया रीमा के। रीमा ने आज कबीर का पसन्दीदा परफ़्यूम पैलोमा पिकासो लगाया था। अपनी नाइटी को हलका सा ऐसा ट्विस्ट दिया कि उसके वक्ष बस जैसे बाहर आने ही वाले थे। मगर कबीर जैसे मुर्दा जिस्म की तरह पड़ा रहा। उसमें कोई हरकत नहीं हुई। रीमा ने हिम्मत की और कबीर के नाइट सूट के पजामें में हाथ डाल दिया। काफ़ी देर तक मेहनत करती रही। मगर कबीर के ख़र्राटों ने रीमा को समझा दिया कि बात उसकी पहुंच से बाहर जी चुकी है।
रीमा उठ कर किचन में गई और वहां दराज़ से बड़ा सा चाकू निकाल लाई। पहले सोचा कि कबीर की हत्या कर दे। बिस्तर तक चल कर आई भी। मगर उस मांस के लिजलिजे लोथड़े को पड़ा देख उसे घिन आने लगी। ऐसी लाश को मार कर क्या हासिल होगा उसे?
रीमा को समझ नहीं आता था कि कबीर बी.बी.सी. या आई.टी.वी. की ख़बरें क्यों नहीं देखता। फिर स्काई न्यूज़ है सी.एन.एन. है, इन चैनलों को क्यों नकार रखा है। भला देसी चैनलों से देस की ख़बर रख कर हासिल क्या होगा। जिस देश में रह रहे हैं, उसके बारे में तो कुछ मालूम नहीं, लालू प्रसाद और मायावती के बारे में पढ़ सुन कर क्या हासिल होगा? उसके घर टी.वी पर बस यह देसी न्यूज़ चैनल चलते या फिर हिन्दी फ़िल्में या सीरियल।
सीरियल की ही तो बात थी। रीमा ने एक बार सोचा था कि चलो रात को कबीर के साथ बैठ कर वीडियो पर पाकिस्तानी ड्रामा ‘धूप किनारे’ देखेगी। भारत में सभी लोग इस नाटक की बहुत तारीफ़ किया करते थे। उसने स्वयं भी एक आध एपिसोड देख रखा था। राहत काज़मी की एक्टिंग उसे बहुत पसन्द आई थी। उसने अपनी पड़ोसन बुशरा से कह कर कराची से ‘धूप किनारे’ के ओरिजनल वीडियो कैसेट मंगवाए। कबीर को मनाया कि कम से कम एक शाम जल्दी घर आ जाए। शुक्रवार की शाम कबीर आठ बजे घर आ गया।
रीमा ने जल्दी से डाइनिंग टेबल पर खाना लगाया। उसने आज खाने में मटन चॉप्स, मशरूम मटर की सूखी सब्ज़ी और मूंग साबुत की दाल बनाई थी। साथ में रायता, सलाद, पापड़ और अचार। खाना खा कर कबीर पहुंच गया टीवी के सामने। कबीर ने आज कपड़े भी नहीं बदले थे। सूट और जूते में ही बन्धा हुआ था अब तक। और रीमा मेज़ की सफ़ाई में जुट गयी। बचा हुआ खाना ठीक से पैक करके फ़्रिज में रखा। बरतन साफ़ किये और हाथ मुंह धोकर, परफ़्यूम लगाया। और कबीर के साथ बैठ गई। याद आने लगा के कैसे भारत में कबीर के साथ सिनेमा देखने जाया करती थी। शादी के बाद जयपुर गये थे और राजमन्दिर में फ़िल्म देखी थी।
“अरे भाई कौन है इस सीरियल में?”
“कोई राहत काज़मी है जो पाकिस्तान का बहुत बड़ा टी.वी. स्टार है। साथ में मरीना ख़ान है। .. बुशरा बता रही थी कि राहत काज़मी में तीन इंडियन स्टारों की झलक है। अमिताभ, मनोज कुमार और राज बब्बर। ”
“ये कैसा मिक्सचर हुआ जी ? अमिताभ और मनोज तो वैसे ही दिलीप कुमार की नक़ल करते हैं। फिर भला यह काज़मी मियां क्या एक्टिंग करेंगे ? ”
“आप देखिये तो सही। ” रीमा को कबीर की निगेटिव बातें परेशान करने लगती हैं। “और हां इस सीरियल में कुछ बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़लें और नज़में भी हैं। ”
“चलिये अभी सामने आ जाती हैं। ”
धूप किनारे की कास्टिंग शुरू होती है। रीमा को आदत ही नहीं है कि एक जगह मिट्टी का माधो बन कर फ़िल्म या टी.वी. सीरियल देखा जाए। वह एक जीवन्त व्यक्तित्व है। उसे बातें करने की इच्छा होती है। आज तो केवल कबीर का साथ पाने के लिये....। कबीर ने आज भोजन से पहले कोई ड्रिंक नहीं लिया शायद इसी लिये अपने लिये ड्राम्बुई का एक लार्ज सा पोरशन बना लिया है। उसने रीमा को भी अपने लिये एक लिक्योर बनाने को कहा है। रीमा माहौल को रंगीन बना देना चाहती है। उसने कबीर की बात मान ली है। हालांकि मन में कहीं इच्छा थी कि कबीर स्वयं उसके लिये ड्रिंक बनाए। आमतौर पर रीमा खाने के बाद लिक्योर ही ले लेती है। क्रेम-दि-मैन्थ पीने से उसे महसूस होता है कि पान खा लिया है। आज भी उसने वही बोतल खोली, हरे रंग का एक पैग अपने लिक्योर गिलास में डाला और बर्फ़ का चूरा करने लगी ताकि क्रेम-दि-मैन्थ का फ़्रापे बना सके।... एकाएक उसको अपनी ग़लती महसूस हुई। उसने दूसरे गिलास में चूरा की हुई बर्फ़ डाली और फिर पहले गिलास में से लिक्योर आहिस्ता आहिस्ता उस पर उंडेलने लगी। चूरा बर्फ़ के साथ मिल कर हरे रंग की क्रेम-दि-मैन्थ माहौल को कहीं अधिक ख़ूबसूरत और रोमांटिक बना रही थी।
रीमा को यह ड्रिंक बनाना कबीर ने ही सिखाया था। कबीर ने रीमा का गिलास देखा और मुस्कुरा दिया। दोनों ने चीयर्स कहा और अपने अपने गिलास में से एक एक घूंट पी लिया।
पहला एपिसोड ख़त्म होते होते लिक्योर अपना असर दिखाने लगती है और रीमा की आंखें बन्द होने लगती हैं, “कबीर, हम आज दिन भर खाना बनाते और सफ़ाई करते थक गये हैं। हमें नींद आ रही है। चलिये आप भी ऊपर चलिये। यह सीरियल कल सुबह आराम से देखेंगे। कल तो आपकी छुट्टी है। ”
“अरे हमारी छुट्टी की भली कही। एअरलाईन तो हफ़्ते में सातों दिन काम करती हैं। हम हर वक़्त ऑन-कॉल होते हैं। ... अच्छा तुम चलो मैं अभी आता हूं। ”
रीमा अपने बेड-रूम में ऊपर चली गई। और धम से बिस्तर पर गिरते ही सो गई। नींद बहुत गहरी थी। थकावट का असर साफ़ दिखाई दे रहा था और क्रेम-दि-मेन्थ ने अपना काम कर ही दिया था। रीमा की नींद खुली जब कमरे की बिजली जली। उसने हड़बड़ा कर आंखें खोलीं। कुछ पलों के लिये समय का अन्दाज़ उसके दिमाग़ से ग़ायब हो गया था। वह कुछ समझ नहीं पा रही थी। सामने कबीर खड़ा था सूट और हैट में हाथ में बैग लिये। उसे लगा जैसे सुबह हो गई और कबीर दफ़्तर जाने के लिये तैयार है, “अरे कबीर, आप रात भर कमरे में आए ही नहीं ! मैं सोती ही रह गई। क्या दफ़्तर निकल रहे हैं ? ”
“अरे नहीं रीमा । मैं बस ‘धूप किनारे’ देखता रहा। मैंने दोनों वीडियो कैसेट देख डाले। अभी सुबह के चार बजे हैं। अब मैं भी सोता हूं। ”
“आपने दोनों वीडियो देख लिये ! मगर मैंने तो कहा था कि सुबह इकट्ठे बैठ कर देखेंगे। फिर इतनी जल्दी क्या थी। मैं तो आपके साथ एन्जॉय करना चाहती थी। ”
“अरे, तो इसमें कौन सा जुर्म हो गया। हम तुम्हारे साथ दोबारा देख लेंगे। कोई मना थो़ड़े ही किया है कि तुम्हारे साथ नहीं देखेंगे। ”
रीमा तड़प कर उठी। उसकी आंखों में एक अलग किस्म का दर्द था जिसे समझने के लिये दिल में सेंसेटिविटी होना बहुत ज़रूरी है। कबीर के लिये इस सूक्ष्म भावना को समझ पाना संभव नहीं था, “अरे अभी कहां जा रही हो। अभी तो सुबह होने में देर है। ”
उस दिन पहली बार रीमा ने कबीर के साथ सोने से इन्कार कर दिया। और वहीं आकर बैठ गई जहां थोड़ी देर पहले कबीर बैठ कर धूप किनारे का आनन्द ले रहा था। उसे ग़ुस्से के मारे उबकाई सी आ रही थी। आज उसने जी भर कर अपने माता-पिता को कोसा जिन्होंने अच्छी नौकरी, अमीर घर और बिरादरी से उसकी शादी कर दी थी। अगर वह ग़रीब होती और पति का प्यार मिलता तो क्या वह अधिक सुखी न होती।
“अरे ये सब चोंचले हैं। राज कपूर ने तो ग़रीबी को इतना ग्लैमोराइज़ कर दिया था कि इन्सान को ग़रीब होना बहुत रोमांटिक लगने लगता था। दो दिन रोटी नसीब न हो तो सारा का सारा रोमांटिसिज़्म उड़न छू हो जाए। दुनियां की एक ही सच्चाई है – पैसा। जिसके पास नहीं है, उससे पूछ कर देखो। पैसा नहीं तो घर में शांति नहीं, दिलों में प्यार नहीं।”
“हमारे घर में तो पैसे की कमी नहीं है। फिर हमारे घर में शांति क्यों नहीं है ? आपके पास तो बच्चों के लिये पांच मिनट का समय नहीं होता। क्या आपको पता है कि अयान कौन सी क्लास में पढ़ता है। हमारी बेटी की ज़रूरतें क्या हैं, आपने कभी सोचा है ?... आपको अपनी सेक्रेटरियों से फ़ुरसत मिले तो बात बने न।.. आप जैसे इन्सान को प्यार और मुहब्बत का अर्थ क्या पता !”
यह बहस कभी कभार का शग़ल नहीं थी। ये रोज़ाना का झगड़ा था। बच्चे अक़लमन्द हैं। उन्होंने कभी शिकायत ही नहीं की कि उनका पिता क्यों कभी उनके लिये मौजूद नहीं होता। उनके स्कूल के कामों के लिये मां है ; उनके खाने, पहनने, स्पोर्ट्स और टूर पर जाने के लिये सब कुछ मां करती है। भला उन्हें पिता की कमी खले तो कैसे खले। जब सब कुछ पूरा हो रहा हो, तो किसी की कमी भी क्यों खलेगी ?
स्कूल से पेरिस जाने का प्रोग्राम बना है। दोनों भाई बहनों ने अपना नाम लिखवा दिया है ट्रिप के लिये। पैसे मां से ले लिये हैं। ... इसी बात की तो अकड़ है कबीर की। अरे पैसे कमाता हूं। तुम लोगों पर ख़र्च करता हूं। और क्या करूं ? अबकी बार जब स्कूल से पेरिस जाने का कार्यक्रम बना तो दोनों ही बच्चों ने अपने नाम दे दिये। रीमा भी ख़ुश थी कि चलो दोनों इकट्ठे रहेंगे।
मगर तभी कबीर ने घोषणा कर दी, “रीमा, मैं दो हफ़्तों के लिये दिल्ली जा रहा हूं। वहां से मुंबई जाऊंगा। वो क्या है कि एअरलाईन की एक्सपेन्शन की बातचीत चल रही है मेरा वहां होना ज़रूरी है। ”
“मैं भी आपके साथ चलती हूं न। दो हफ़्ते मैं भी अपने मायके लगा आऊंगी। आजकल मां की तबीयत भी ठीक नहीं रहती है। ”
“सोचा तो मैंने भी पहले यही था। मगर वो क्या है कि इन्श्योरेंस वालों ने रूफ़ रिपेयर के लिये यही टाइम लिखा है। अभी वो लोग फंस रहे हैं, तो हम करवा लें। वर्ना हम कहते रहेंगे और उनके पीछे पीछे भागते रहेंगे। कुल तीन दिन का कह रहे हैं। ”
“तो ठीक है मैं काम करवा कर आ जाऊंगी। ... आप ही सोचिये, न तो आप यहां और न बच्चे। मैं करूंगी क्या?”