मनोहर कहानियाँ

Horror stories collection. All kind of thriller stories in English and hindi.
Jemsbond
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मनोहर कहानियाँ

Unread post by Jemsbond » 20 Dec 2014 09:45

'शिकार'

शाम के करीब 4 बजे थे। बाहर तेज बारिश हो रही थी। अमित अपने बेडरूम में अधलेटी अवस्थ में किसी उपन्यास के पृष्ठ पलट रहा था। मौसम सुबह से ही खराब था जिसकी वजह से वह आपिफस भी नहीं गया था। हाथ में थमा उपन्यास वह पहले भी एक दपफा पढ़ चुका था, लिहाजा दोबारा पढ़ने में उसे बोरियत महसूस हो रही थी। कुछ क्षण और पन्ने पलटते रहने के बाद उसने सुबह की डाक से आया मां का पत्रा उठा लिया और एक बार पिफर उसे पूरा पढ़ डाला।
मां ने लिखा था कि उसकीशादी किसी स्वेता नामक युवती से तय कर दी गई है। स्वेता बी.ए. पास थी और सिी काल सेंटर में जाॅब करती थी। पत्रा में मां ने जल्दी ही स्वेता की पफोटो भेजने की बात लिखी थी। पूरा पत्रा पढ़ चुकने के बाद उसने उसे तकिए के नीचे रख दिया और पुनः उपन्यास हाथ में उठा लिया। ठीक तभी दरवो पर दस्तक हुई।
अमित उठकर दरवाजे तक पहुंचा और किवाड़ खोलते ही चैक गया। खुले दरवाजे पर सिर से पांव तक भीगी हुई एक खूबसूरत युवती खड़ी थी। उसने जींस की पैंट और सपेफद रंग क शर्ट पहन रखा था। शर्ट का पहना और ना पहनना दोनों इस वक्त बराबर था क्योंकि भीगा हुआ शर्ट उसके शरीर से चिपक गया था और उसकी मांसल छातियां स्पष्ट नुमाया हो रही थी। अमित पहली ही नजर में भांप गया कि युवती शर्ट के नीचे कुछ भी नहीं पहने थी। उसके शरीर में सनसनी की लहर दौड़ गई।
कुछ क्षण युवती को घूरते रहने के बावजूद उसे युवती की सूरत जानी-पहचानी नहीं लगी। उसने अपने दिमाग पर जोर डालकर युवती को पहचानने की कोशिश की, किंतु कामयाब नहीं हुआ। कुछ ही क्षणों में उसे यकीन आ गया कि आज से पहले उसने युवती को कभी नहीं देखा था अतः उसने व्यर्थ सिर खपाने की बजाय उससे पूछ लेना ही उचित समझा, फ्कहिए किससे मिलना है?य्
फ्मुझे नहीं मालूम।य् युवती बोली, पिफर उसने महसूस किया कि उसकी बात स्पष्ट नहीं है अतः जल्दी से बोल पड़ी, फ्मेरा मतलब है बाहर बहुत तेज बारिश हो रही है, अगर आपकी इजाजत हो तो बारिश बंद होने तक मैं यहां रुक जाऊं।य्
फ्जी हां क्यों नहीं, प्लीज अंदर आ जाइए।य्
युवती कमरे में दाखिल हो गई। अमित ने उसे पीठ पीछे दरवाजा बंद कर दिया।
फ्मेरा नाम मोना है मैं...।य्
फ्परिचय बाद में दीजिएगा, पहले आप भीतर जाकर कपड़े बदल ले वरना बीमार पड़ जायेंगी। वार्डरोब में से जो भी आप पहनना चाहें पहन सकती हैं। आपचेंज करके आइए तब तक मैं आपक लिए चाय बनाता हूं।य्
कहकर अमित किचन की ओर बढ़ गया। युवती जिसने अपना नाम मोना बताया था, बेडरूम में पहुंचकर कपड़े बदलने लगी। जींस उतारकर उसने अमित का पाजामा-कुर्ता पहन लिया। मर्दाना लिबास में उसकी खूबसूरती पहले से अधिक निखर आई। वह ड्राइंगरूम में पहुंची तो दो कपों में चाय उड़ेलता अमित उसे ठगा सा देखता रहा गया।
फ्ऐसेक्या देख रहे हो?य् मोनाने इठलाते हुए एक बदनतोड़ अंगड़ाई ली।
फ्तुम बहुत खूबसूरत हो और...।य्
फ्और क्या?य् मोना ने उसकी आंखों में देखा।
फ्बहुत ज्यादा सेक्सी भी।य्
फ्सच...।य्
फ्एकदम सच मैंने तुम जैसी हसीन लड़की ताजिदंगी नहीं देखी, सच पूछो तो मुझे अभी तक यकीन नहीं हो रहा है कि स्वर्ग की एक अप्सरा मेरे सामने खड़ी है। मुझे सबकुछ स्वप्न जैसा प्रतीत हो रहा है।य्
फ्तुम मुझे बना तो नहीं रहे?य्
फ्बिल्कुल नहीं।य्
फ्पिफर तो तारीपफ करने के लिए शुक्रिया।य् मोना मुस्करा उठी।
फ्काश! तुम ताजिंदगी यूं ही मुस्कराती रहती और मैं तुम्हें निहारता रहता।य्
फ्और इस निहारने के चक्कर में चाय ठण्डी हो जाती।य् मोना ने कहा और हंस पड़ी।
फ्अरे चाय को तो मैं भूल ही गया था।य्
अमित ने एक कप तत्काल उसे पकड़ाया और दूसरा स्वयं उठा लिया। दोनों चाय पीने लगे, मगर इस दौरान भी अमित ललचाई नजरों से मोना के कपड़ों के भीतर छिपे उसके गुदाज बदन की कल्पना कर आनंदित होता रहा।
फ्बाई दी वे तुम्हारा नाम क्या है?य् मोना ने पूछा।
फ्अमित।य् वह बोला, फ्अमित कश्यप।य्
फ्हां तो मिस्टर अमित कश्यप जी आप ये बताइये कि कहीं आप मुझ पर लाइन तो नहीं मार रहे।य्
फ्तुम्हें ऐसा लगता है।य्
फ्जी हो, तभी तो पूछ रही हूं।य्
प्रतीक चित्र
फ्तो समझ लो ऐसा ही है, मैं सचमुच तुम पर लाइन मार रहा हूं, क्योंकि तुम्हारे इस सांचे में ढले बदन ने मुझे दीवाना बना दिया, काश! मेरी दीवानगी का कोई बेहतर सिला तुम मुझे दे पाती तो मैं ताउम्र तुम्हारा एहसानमंद रहता।य्
फ्गुड तुम्हारी सापफगोई मुझे पसंद आई, मुझे तुम्हारी दीवानगी भी पसंद आई, मगर यूं ही दूर-दूर से ही अपना प्रेम प्रगट करते रहोगे या करीब आकर भी कुछ...।य्
फ्सो स्वीट।य् अमि चहक उठा, आगे बढ़कर उसने मोना को अपनी बांहों में भर लिया, इस प्रक्रिया में उसने अपना चाय काप्याला सेंट्रल टेबल पर रखना पड़ा। उस स्थिति का पूरा पफायदा उठाया मोना ने, उसने अपनी अंगूठी का कैप उठाकर पाउडर जैसा कोई पदार्थ उसकी चाय में डाल दिया।
अमित बड़ी बेसब्री से उसके कुर्ते के अंदर हाथ डालकर उसकी नग्न-चिकनी पीठ को सहला रहा था।
फ्इतनी जल्दी भी क्या है डा²लग पहले हम चायतो खत्म कर लें।य्
फ्जिसके आगे सोमरस का प्याला हो वह चाय क्यों पीयेगा?य्
फ्क्योंकि मैं ऐसा कह रही हूं।य्
फ्ओके स्वीटहार्ट।य् कहकर अमित ने जल्दी से अपना कप खाली कर दिया। इसके बाद उसने मोना को पुनः अपनी बांहों में भर लिया और उसके गुलाबी होंठों को कुचलने लगा। मोना के मुख से पादक सिसकारियां निकलने लगी, वह अमित का पूरा साथ दे रही थी। देखते ही देखते अमित ने उसका कुर्ता उतार पेंफका और उसकी नुकीली तनी हुई छातियों को सहलाते हुए उसके अंग-अंग को चूमने लगा। अतिरेक से मोना ने उसका चेहरा अपनी छातियों से भींच लिया।
ठीक इसी वक्त अमित की पकड़ ढीली पड़ने लगी। पूरा कमरा उसे गोल-गोल घूमता प्रतीत होने लगा और कुछ ही पलों में बेहोश होकर पफर्श पर पसर गया।
फ्स्साला मुफ्रत का माल समझा था।य् बड़बड़ाती हुई मोना बेडरूम की ओर बढ़ गई।
करीब दो घंटे बाद अमित को होश आया तब तक मोना जा चुकी थी। हड़बड़ाहट में वह उठ बैठा और पूरे घर में पिफर गया। घर का सारा कीमती सामाना व नकद आठ हजार रुपये जो कि उसने अपने बटुए में रखा था, गायब थे। अमित को समझते देर न लगी कि वह ठगी का शिकार हुआ हुआ है। मगर अब वह कर भी क्या सकता था।
अभी अमित इस शाॅक जैसी स्थिति मे उबर भी नहीं पाया था कि दरवाजे पर दस्तक हुई। उसने बेमन से उठकर दरवाजा खोला और हैरान रह गया। दरवाजे पर मोना से कहीं ज्यादा खूबसूरत एक युवती भीगी हुई खड़ी थी।
फ्कहिए?य्
फ्जी बाहर तेज बारिश हो रही है क्या बारिश बंद होने तक यहां रुक सकती हूं?य्
सुनकर अमित के होंठों पर एक विषैली मुस्कान तैर गई। उसे समझते देन न लगी कि एक बार उसे ठगने की कोशिश की जा रही है। मन ही मन उसने युवती को मजा चखाने का पैफसला कर लिया और मुस्कराकर बोला, फ्जी हां भीतर आ जाइए।य्
युवती तत्काल कमरे में दाखिल हो गई।
फ्आप ऐसा कीजिए, पहले कपड़े बदल लीलिए वरना बीमार पड़ जायेंगी।य् कहकर उसने बेडरूम की ओर इशारा किया पिफर बोला, फ्तब तक मैं आपके लिए चाय बनाता हूं।य्
फ्जी थैक्यू!य् कहकर युवती बेडरूम की ओर बढ़ गई और अमित किचन की तरपफ।
किचन में पहुंचकर अमित ने चाय बनाई और उसमें नशीली गोली मिला दी। थोड़ी देर बाद जब वह चाय का कप लेकर ड्राइंगरूम में पहुंचा, तब तक युवती कपड़े बदलकर आ चुकी थी। वह अमित की जींस और शर्ट पहने थी। ये कपड़े उस पर खूब पफब रहे थे।
अमित ने चाय का प्याला उसकी ओर बढ़ा दिया। युवती चाय पीने लगी तो अमित एक बार पुनः मुस्करा उठा।
नशीली गोलियों ने जल्दी ही उस पर असर दिखाया और युवती अर्धबेहोशी की स्थिति में पहुंच गई। अमित ने तत्काल उसे बांहों में भर लिया और एक-एक कर उसके कपड़े उतार डाले। युवती उसका विरोध कर रही थी, मगर अमित को स्वयं से परे धकलने की ताकत उसमें नहीं थी।
अमित ने उसके नग्न बदन को अपनी बांहों में उठाया और बेडरूम में ले जाकर उसके कोमल अंगों को सहलाने लगा। युवती कराह उठी कुछ स्पुफट से शब्द उसके मुंह से निकले, फ्कमीने...घर में आई अकेली...लड़की से...अच्छा हुआ मैं अंजान बनकर तुमसे...यहां मिलने चली...आई वरना कहीं तुम जैसे शैतान से शादी हो जाती तो...देखना मैं तुम्हें पुलिस के हवाले कर दूंगी।
उसकी आधी-अधूरी बात का मतलब भी अमित बखूबी समझ गया। उसकी खोपड़ी भिन्ना गई। उपफ! ये उसने क्या कर डाला, उसका दिल हुआ अपने बाल नोंचने शुरू कर दे। वह युवती और कोई नहीं बल्कि उसकी मंगेतर थी।
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Jemsbond
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Re: मनोहर कहानियाँ

Unread post by Jemsbond » 20 Dec 2014 09:46

रिश्तों की डोर

रामू गांव के नाई का लड़का था। दो साल पहले उसकी मां आंधी में छत से गिरकर मर गई थी। अब घर की देखभाल उसकी बहन कमली करती थी। उसका ब्याह हो चुका था। गौना हो जाऐगा तो वह भी अपनी ससुराल चली जाएगी पर अभी तो घर का सारा बोझ उसी पर था। जजमानी में मां की जगह वही आती-जाती थी।
कमली जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी थी। उसका गोरा सालोना चेहरा, लचीला बदन देखकर लगता मानो वह किसी ऊचीं जाति की बेटी हो। वह लहंगा पहनती और रंग-बिरंगे दुपट्टे ओढ़ती थी। जब वह अंचल में हाथ में लिए, पैरों में बिछुए और कमर पर चांदी की करधनी पहनकर गांव की धूल भरी गलियों में नजर झुकाए धीरे-धीरे चलती तो मनचलों के दिल पर सांप लोटने लगता था।
इसी गांव के ठाकुर साहब को काई औलाद नही था। एक छोटा भाई था, वह भी किसी फौजदारी में मार दिया गया था। उसी के बेटी-बेटे को वह अपनी औलाद की तरह पाल-पोस रहे थे। भतीजी का अभी ब्याह नही हुआ था। भतीजा शेरसिंह पास के शहर में पढ़ रहा था। ठाकुर साहब कमली को बेटी की तरह मानते थे।
एक दिन कमली को घर ठाकुर साहब की नौकरानी ने आकर बताया, ‘‘कमली ठाकुराइनी अम्मा ने तुम्हारे बापू को अभी बुलाया है।’’
उस समय कमली बटलोई में दाल डालने जा रही थी। थाली हाथ में लिए हुए उसने बाहर आकर बताया, ‘‘बापू तो नगरा गए हैं। भैया भी ननिहाल गया हुआ है। ऐसा क्या काम है, जो अम्मां ने इसी वक्त बापू को बुलाया है। कहो तो मै हो आऊं?’’
नौकरानी बोली, ‘‘कोई जरूरी काम होगा.... तुम्ही चली जाओं।’’
दाल डालकर कमली ठाकुर के हवेली के फाटक पर पहुचकर तनिक ठिठकी। सिर का अंचल हाथ से ठीक किया और पैर साधकर आंगन तक आ गई। चारो तरफ संनाटा फैला था। किवाड़े आधे बन्द थे। चैखट पर लालटेन लटकी थी। कमली ने वही से पुकार लगाई, ‘‘अम्मा.... ’’
किसी ने जवाब नही दिया। कमली चारों ओर सिर घुमकर देखते हुए सोचने लगी, ‘‘कोई नही है क्या.... ’’ उसका कलेजा धक-धक करने लगा। तभी भीतर से किसी ने पुकारा, ‘‘कमली.... ’’
आवाज शेरसिंह की थी। कमली की जान में जैसे जान आ गई और वह आश्वस्त होकर बोली, ‘‘हां भैया.... ’’ कमली ने शांत स्वर में पूछा, ‘‘भैया, अम्मा कहां है? घर में कोई नही दिख रहा है।’’
शेरसिंह पास आते हुए बोला, ‘‘अम्मा हीरालाल के यहां टीके में गई है। आओ.... भीतर आ जाओ।’’
कमली ने लजा कर कहा, ‘‘चुल्हा जलता छोड़ आई हूं।’’
शेरसिंह उसकी बात अनसुनी करते हुए बोला, ‘‘आओ.... आओ न.... ’’
‘‘फिर आऊंगी भैया.... ’’
अब तक शेरसिंह कमली के आगे आकर उसकी गोरी कलाई पकड़ ली। कमली की सम्पूर्ण देह में झन्न से हो गया। वह कुछ बोल न सकी तो शेरसिंह का साहस बढ़ा और वह कमली की कलाई पकड़े हुए कांपते स्वर में बोला, ‘‘मुझे कब तक तड़पाओगी कमली....’’
पलक झपकते जैसे कमली का होश लौट आया और वह भयभीत स्वर में बोली, ‘‘भैया..... ’’
और जोर से झटका दिया कलाई छूट गई। फिर सम्पूर्ण साहस बटोरकर कांपते पैरों से वह दरवाजे की ओर बढ़ी तो शेर सिंह ने आगे बढ़कर कमली का रास्ता रोक लिया। कमली उसे अपने सामने इतने निकट देखकर थर-थर कांपने लगी। जीभ तालू से चिपट गई। कंठ सूख गया। जाने कैसे अजीब से स्वर में शेरसिंह बोला, ‘‘इतना मत सताओ.... मेरे दिल के टुकड़े-टुकड़े हो जाएगे.... ’’
कमली कठिनता से बोली, ‘‘भैया.... ’’
पर शेरसिंह ने उसका हाथ पकड़कर उसे अपने पास खीचने लगा। कमली के होश उड़ गए। शेरसिंह उसे पास खीचता गया सहसा बाहर के आंगन से किसी ने पुकारा, ‘‘अरे हरिया.... चैपाल पर रोशनी नही की तूने? कहां मर गया आभागे।’’
आवाज सुनते ही शेरसिंह ने कमली को छोड़ दिया और जाने किधर छिप गया। कमली ने इस घटना की चर्चा किसी ने नही की। कहती भी तो किससे? कहकर ठाकुर साहब के भतीजे शेरसिंह का क्या कर लेती। उल्टे कमली ही गांव भर बदनामी हो जाती। कमली के चुप रह जाने से शेरसिंह बहुत प्रसन्न था। अपनी प्यास बुझाने के लिए वह मौके की तलाश में रहने लगा जल्द ही उसे मौका मिल ही गया।
प्रतीक चित्र
उस दिन ठाकुर साहब के यहां रतजगा था। दरअसल बात यह थी कि तीन साल के बाद इस बार शेरसिंह ने हाईस्कूल पास किया था। इसी की खुशी मनायी जा रही थी। रतजगा में कमली को भी बुलाया गया था। वह जाना नही चाहती थी, पर जाना जरूरी था। शाम के समय जब वह निकलने लगी तो उसने रूककर अपने बापू से पूछा, ‘‘रात अधिक हो जाएगी अकेली मैं लौटूंगी कैसे?’’
बापू बोल, ‘‘क्यों.... ठाकुराइनी के पास सो जइयो, डर क्या है।’’
‘‘डर तो कुछ नही है.... ’’ आगे कमली कुछ नही कह सकी।
ठाकुर के हवेली का आंगन औरतों से भरा था। तड़ातड़ बज रहे ढोलक की तान पर मधुर गीत हो रहे थे। गानेवाली कही बाहर से आयी थी और राधाकृष्ण के बड़े सुन्दर-सुन्दर गीत सुना रही थी। कमली जैमंती के पास बैठी गीतों का आंनद ले रही थी। अचानक ठाकुराइनी ने कमली का कंधा हिलाकर जोर से कहा, ‘‘जरा उठो तो..... ’’
‘‘क्यों अम्मां, कोई काम है क्या?’’
‘‘बेटी, जरा छत पर जाकर दो-चार कंडे लाकर आग सुलगा दे। यह ढोलक बजाने वाली बुढि़या तंबाखू पीती है। सारी रात उसे आग की जरूरत पड़ेगी।’’
कमली कंडे लेकर अंधेरे जीने से नीचे उतर रही थी कि उससे कोई टकराया तो वह डरकर पूछ बैठी, ‘‘कौन.... कौन है यहां?’’
‘‘मैं हूं.... शेरसिहं.... ’’ कहते हुए शेरसिहं ने अंधेरे में कमली का हाथ पकड़ लिया तो उसके हाथ से कंडे गिर गये और वह चेतना शून्य हो गयी। शेरसिंह लालसा भरे स्वर में फुसफुसाया, ‘‘आज मेरा कलेजा ठंडा कर दो, कमली.... ’’
कमली पागलों की तरह चिल्ला उठी, ‘‘अम्मा.... ओ अम्मा.... ’’
बाहर बज रहे ढोलक की शोर के चलते उसकी आवाज अंधेरे जीने में ही गूंजकर रह गयी। पलक झपकते ही शेरसिहं ने कमली को अपनी बांहों में कस लिया।
‘‘अरे छोड़ दे हरामी।’’
शेरसिंह ने उसे अपने कलेजे से सटा लिया।
‘‘अम्मा.... ओ अम्मा.... अरे कोई है.... बचाओ..... बचाओ’’ कमली चिल्लाती रही पर किसी ने उसकी करूण पुकार नही सुनी तो कमली मछली की तरह छटपटाती हुई दीन स्वर में गिड़गिड़ाने लगी, ‘‘छोड़ दो भैया, मैं तुम्हारे पैर पड़ती हूं.... भगवान के लिए छोड़ दो.... ’’
शेरसिंह पर कमली के रोने-गिड़गिड़ाने का कोई असर नही हुआ। उसने बुरी तरह छटपटाती कमली का मुंह दबाकर जमीन पर पटक दिया। इसके बाद उसने कमली को निर्वस्त्रा कर उसके दोनो उरोजो को बेदर्दी से मसलते हुए उस पर छा गया फिर उठा तभी जब उसके जिश्म का लावा फूटकर बाहर आ गया।
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Re: मनोहर कहानियाँ

Unread post by Jemsbond » 20 Dec 2014 09:48

'काम'

रघुनी काम के लिए कोलकाता शहर के एक चैराहे पर सबेरे छः बजे से ही राजमिस्त्री एवं मजदूरों की कतार में बैठा था। काफी समय यूंही बैठे-बैठे कुछ सोचने लगा तो अचानक उसकी आंखों के सामने अतीत के कुछ पल चलचित्रा की तरह आने-जाने लगे।
उसे घर से भागे दो वर्ष गुजर गये थे। कोलकाता शहर में कदम रखते ही स्टेशन पर एक गिरहकट से पाला पड़ा और उसके प्राण जाते-जाते बचे थे। उस दिन महज दो-ढाई सौ रूपए उससे छीन लेने के चक्कर में कलकतिया गुंडे उसका खून कर देते। जैसे-तैसे माटी काटने का काम मिला। कई दिनों तक उसने काम किया। लेकिन जब मजदूरी की बात आयी तो ठेकेदार ने उसे उल्टा-सीधा समझाकर उसकी दो दिन की मजदूरी हड़प गया। बेचारा रघुनी मन मसोस कर रहा गया था।
कई माह तक उसने चूड़ा-चबेना फांक, फुटपाथ पर सोकर व्यतित किए थे। फिर उसने कई रात एक होटल के ढाबे में सोकर गुजारी थी। पहली रात तो उस ढाबे में उसका दम घुट गया था। उस रात मदोन्मत तीन वेश्याएं आकर उसके आस-पास ही सो गयी, जो रोज वहीं आकर सोती थी। बाद में तो जैसे आदत सी बन गयी, वेश्याएं आकर रघुनी के इर्द-गिर्द सो जाती थी और वह भडुए की भूमिका निभाने लगा।
वेश्याओं के इशारे पर ही एक रात उसने एक राही को लूटा और उसकी मरम्मत भी की थी। दिन मजे से बीत रहा था। कभी-कभी रात-रात भर शराब और सेक्स का दौर चलता रहता था फिर भी एकांत पाकर, उसका मन सिसकता था। इस शरीर की नश्वरता, आनंद की क्षणिकता पर तरस खाकर कल्याणकारी कार्यो की ओर भी उसने कुछ पग रखे और सोनागांछी के एक कोठे की जवान वेश्या लड़की को स्वीकार लिया।
लेकिन समाज सुधार का काम खाली पेट नही होता। गरीबी सब गुड़ गोबर कर देती है। आखिर वह लड़की एक दिन फिर से कोठे पर भाग गयी और वह चाहकर भी समाज सेवा नहीं कर सका। फिर घर भी रूपए भेजने है, बाल-बच्चों की चिन्ता। केवल अपना ही पेट नही भरना है। अपना पेट तो कुत्ता भी पाल लेता है। उसे बूढ़े कान्ट्रैक्टर की अट्ठाईस वर्षीया पत्नी की भी बात याद आ रही थी, जिसने रघुनी के हाथ में नोटों की गड्डियां रखते हुए, कहीं भाग चलने का प्रस्ताव रखा था।
उसने सुना था कि कलकत्ता की गलियों में रूपयों की वर्षा होती है। रघुनी के संजोए सपने ध्वस्त हो चूके थे। यहां आकर पता चला कि दूर के ढोल ही सुहावने होते है। घर की आधी रोटी ही भली थी। अचानक एक सेठ ने रघुनी का ध्यान भंग किया और एक मिस्त्री के साथ उसे लेकर अपने घर चला गया। सेठ के घर पहुंचकर रघुनी ने खैनी बनाई और मिस्त्री को एक चुटकी देकर खुद खाया फिर दोनों काम में जुट गए।
दोपहर एक बजे मिस्त्री ने आवाज लगायी, ‘‘सेठानी जी.... ओ सेठानी जी....’’
मिस्त्री की आवाज पर कुछ देर में एक युवती किंतु थुलथुल शरीर वाली गोरी महिला छत से झांकते हुए बोली, ‘‘क्या बात है राज मिस्त्री?’’
‘‘हम लोग खाना खाने जा रहे हैं मालकिन....’’
‘‘ठीक है मैं अभी आयी....’’
सेठानी गेट बंदकर ऊपर जाने को हुई तो युवा रघुनी जैसे उनसे मौन-मूक आंखों की भाषा में पूछता सोच लगा, मुश्किल से दस दिनों का यहां काम होगा और क्या? फिर न जाने किस घाट लगंूगा। यदि ऐसे सेठ का घरेलू नौकर हो जाता, तो कितना अच्छा होता। आलीशान महल, जर्सी गाय की देखभाल के अलावा और कोई विशेष काम भी नहीं है। लगता है सेठ निःसंतान है। बच्चों का भी कोई शोर-शराबा नहीं है। बढि़या-बढि़या खाना मिलता। इधर न तो दिन चैन न रात।
रघुनी एक दो दिन में ही सेठानी से काफी घुल-मिल गया था। एक दिन खाना खाने जाने से पहले उसने सेठानी से पूछा, ‘‘मलकिनी.... क्या मैं दोपहर में यहीं ठहर सकता हूं..... खाना खाने बहुत दूर जाना पड़ता है। इस लिए मैं अपने साथ सत्तू ले आया हूं।’’
‘‘कोई बात नहीं, आराम से रहो.... ’’
प्रतीक चित्र
कुछ देर बाद मिस्त्री भोजन करने बाहर चला गया तब सेठानी बगीचे का गेट एवं भवन का मुख्य दरवाजा बंदकर ऊपर चली गयी। सेठ जी को गोदाम पर खाना भिजवाने के बाद स्वयं भोजन कर निश्चिन्त हो नीचे रघुनी को सत्तू सानते देखने लगी।
रघुनी मन भर सत्तू खाकर ठंड़ा पानी पीया फिर जोरदार ढकार लिया तो सेठानी खिलखिलाकर हस पड़ी। रघुनी मुस्कराकर उनकी ओर देखते हुए बोला, ‘‘हसती क्यों हैं मालकिन.... जब पेट भर नहीं खाऊंगा तो खटूंगा कैसे?’’
कहकर वह अंगोछा बालू पर बिछाकर सोने लगा तो सेठानी बोली पड़ी, ‘‘ रघु.... बालू पर क्यों लेट रहे हो? ऊपर आकर चटाई पर आराम कर लो.... ’’
‘‘कोई बात नहीं मालकिन.... हम लोगों का तो बालू-माटी का काम ही है।’’
‘‘तो क्या हुआ, तुम ऊपर आ जाओ.... ’’
जब सेठानी कई बार कहती जिद कर बैठी तो वह ऊपर चला गया। चटाई पर लेटने के कुछ ही मिनटों बाद थका-मादा रघुनी अतीत की यादों के सागर में डूबता-उतरता झपकियां लेने लगा था।
इधर सेठानी बिल्कुल नई गुलाबी साड़ी पहनकर, सज-धज अपने कमरे से निकली और रघुनी के सिरहाने खड़ी बांस की सीढ़ी से ऊपर चढ़ने लगी। बिल्कुल ऊपर चढ़कर हसते हुए बोली, ‘‘रघु.... देख तो, मैं कैसी लग रही हूं?’’
रघुनी चैका और सेठानी को टकटकी लगाकर देखते हुए झट से जवाब दिया, ‘‘बहुत अच्छी.....नीचे आ जाइए मालकिन, आपके वजन से सीढ़ी लप रही है। कही टूट ने जाए।’’ कृत्रिम हसी बिखेरते हुए वह बोला।
‘‘लो आ गयी.... ’’ सीढ़ी से नीचे उतरकर रघुनी के सिर के पास बैठते हुए सेठानी ने पूछा, ‘‘अच्छा, यह बताओ, तेरी शादी हुई है या नही?’’
‘‘हो गई है.... तीन साल का एक लड़का भी है।’’
‘यहां कितने दिनों से हो?’’
‘‘करीब दो वर्षो से.....’’
‘‘बीवी की याद नहीं आती? कैसे इतने-इतने दिनों तक तुम लोग बाहर रह जाते हो?’’
‘‘याद आती है मालकिनी। मगर.... पेट के खातिर आदमी क्या-क्या नही करता। गांवों में रोजी-रोटी की गारंटी होती तो काहे को कीड़े-मकोडों की तरह जीने यहां आता? शहरों में झोपड़-पट्टियों की बाढ़ इन्हीं कारणों से हो रही है।’’
‘‘क्या रोना, रोने लगे जी..... ’’ कहती सेठानी उठकर अपने कमरे में गयी और वापस लौटकर तीन नम्बरी रघुनी को जबरन थमाती हुई बोली, ‘‘लो तीन सौ रूपए, कल अपने घर मनीआर्डर कर देना।’’
रघुनी सकपकाया-सा फटी निगाहों से सेठानी के सुन्दर चेहरे को देख ही रहा था कि सेठानी अपने फिरोजी होठों को चबाते हुए अधीर भाव से रघुनी के दायें हाथ को अपनी गोद में रखकर सहलाते हुए बोली, ‘‘तुम लोगों के बदन की कसावट इतनी अच्छी कैसे हो जाती है?’’
‘‘माटी-पानी और धूप में खटने वाले का शरीर है न.... आप लोगों की तरह मखमली सेज पर सोने वाला थोड़े हूं।’’
‘‘अच्छा तुम मेरा एक काम कर दोगे?’’ सेठानी अंगड़ाई लेकर हांफती हुई बोली, ‘‘बोलो करोगे न....।
‘‘एक क्या? दो, तीन कर दूंगा.... बोलिए न क्या काम है?’’ रघुनी झट से बोला।
‘‘औरतों का क्या काम होता है?’’
‘‘काम कुछ भी हो सकता है। बाजार से कुछ सामान खरीदकर लाना या घर में ही कोई सामान इधर से उधर रखना आदि.... मैं नही समझ पा रहा हूं।’’ रघुनी सेठानी की कुभावनाओं को भांपता बोला।
‘‘नही-नही.... यह सब काम नही हैे।’’ सेठानी अपना आंचल एक तरफ गिराते हुए बोली।
सेठानी का खुला आमंत्राण देख रघुनी भी कामग्नि से जलने लगा था। उसने सेठानी की कलाई थामी तो वह स्वयं ही कटे वृक्ष की तरह रघुनी की गोद में आ गिरी। फिर उसके हाथ सेठानी की नाजुक अंगों पर फिसलने लगा। सेठानी के तन-मन वासना की आग पहले से ही लगी थी। रघुनी का हाथ आग में घी का काम किया और सेठानी सब भूल अपना हाथ भी रघुनी के जिस्म पर फिसलाने लगी। कुछ देर तक दोनों एक दूसरे के जिश्म को नोंचते-खसोटते रहे। फिर रघुनी सेठानी को लिटाकर उन पर सवार होने के लिए उठा ही था कि खाना खाकर लौटे मिस्त्री ने दरवाजा खटखटाते हुए आवाज लगायी, ‘‘रघुनी.....ओ रघुनी.... ’’
मिस्त्री की आवाज पर रघुनी उठकर दरवाजा खोलने नीचे जाते हुए सोचने लागा कि पेट की आग और वासना की आग मुझे भस्म ही कर देगी क्या.... बाप रे, कैसा ये फेरा है? आसमान से गिरा तो खजूर में आ के अंटका..... पहले रोड की दुष्ट कुल्टाओं से जलता-झुलसता रहा और आज......?
सोचते-सोचते रघुनी ने दरवाज खोल दिया। मिस्त्री अंदर आ गया फिर दोनों काम में जुट गए।

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