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Re: मायावी दुनियाँ

Posted: 22 Dec 2014 21:37
by Jemsbond

अपने यान में सम्राट अपने साथियों के साथ मौजूद था। थोड़ी दूरी पर असली रामू भी दिखाई दे रहा था जिसका बन्दर का जिस्म हरे रंग की किरणों के घेरे में था।
''हम काफी हद तक अपने मकसद में कामयाब हो चुके हैं। बहुत जल्द पूरी दुनिया में हमारी पूजा शुरू हो जायेगी। हालांकि कुछ टेढ़े दिमाग वाले अभी भी हमारे रास्ते में टाँग अड़ाने की कोशिश कर रहे हें, लेकिन उनकी औकात कीड़े मकोड़ों से ज्यादा नहीं।" सम्राट अपने साथियों से कह रहा था।

''एक बार पूरी दुनिया के दिमागों पर हमारा कब्ज़ा हो जाये। फिर इस धरती पर हमारी हुकूमत होगी।" रोमियो ने खुश होकर कहा।
''हां। यहाँ के लोग हमारे गुलाम होंगे। जो लोग अभी इस ज़मीन पर पहले दर्जे पर क़ाबिज़ है वह अब दूसरे दर्जे पर आ जायेंगे। हमेशा के लिये। लेकिन शायद उनके दिमाग में विद्रोह की भावना हमेशा रहेगी।" सम्राट ने कुछ सोचते हुए कहा।

''ऐसा क्यों सम्राट?" सिलवासा ने चौंक कर पूछा।
''क्योंकि इन लोगों ने हमेशा ही पृथ्वी पर शासन किया है। अब इस बन्दर को ही देख लो। उस लड़के का दिमाग इस बन्दर के जिस्म में आने के बाद भी अपनी हार कुबूल नहीं कर रहा है। कुछ देर पहले इसने मुझे परेशान कर दिया था।''

''तो फिर इसका पत्ता साफ कर देते हैं।" डोव ने क्रूरता के साथ कहा।
''नहीं। हमें यहाँ मौजूद हर इंसान के दिमाग से अपने लिये विद्रोह की भावना निकालनी है। उनसे अपनी पूजा करानी है।"
''लेकिन कैसे?" सिलवासा ने पूछा।
''उसके लिये हमें कुछ तजुर्बे करने होंगे। और इसके लिये यह बन्दर बना रामू काम आयेगा।"
''आप कैसा तजुर्बा करना चाहते हैं सम्राट?" सिलवासा ने पूछा।

''मैं देखना चाहता हूं कि कोई इंसान कितनी बेबसी के हालात से गुज़रने के बाद हमारा गुलाम बन सकता है। अत: तुम लोग इसे 'एम-स्पेस में भेज दो।" सम्राट की बात सुनकर वहां मौजूद सभी के चेहरे पर एक मुस्कुराहट आ गयी।
''एम-स्पेस। वो तो मैथेमैटिकल समीकरणों का ऐसा चक्रव्यूह है जहां से निकलना लगभग नामुमकिन है। वहां पर तो ये नाचता रह जायेगा।" सिलवासा ने गहरी साँस लेकर कहा।

''लेकिन मुझे एक डर है।" बहुत देर से खामोश मैडम वान ने अपनी ज़बान खोली।
''शायद तुम ये कहना चाहती हो कि अगर किसी ने एम-स्पेस पार कर लिया तो वह हमें हमेशा के लिये अपने कण्ट्रोल में कर लेगा।" सम्राट ने कहा।

मैडम वान ने सर हिलाया, ''जी हाँ। क्योंकि एम स्पेस हमारा कण्ट्रोल रूम भी है। और उसी के द्वारा हमें अपने ग्रह से शक्तियां मिलती हैं।
''यह नामुमकिन है कि पृथ्वी का कोई दिमाग एम-स्पेस की गणितीय पहेलियों को समझ ले। और ये बच्चा तो बिल्कुल ही नहीं समझ सकेगा। क्योंकि मैं इसकी पूरी हिस्ट्री से वाकिफ हूं। गणित तो इसके लिये हमेशा एक हव्वे की तरह रही है। और बिना एम स्पेस की गणितीय पहेलियों को समझे कोई उसे पार नहीं कर सकता।"

''तो फिर ठीक है। हम इसे एम-स्पेस में डाल देते हैं।" कहते हुए मैडम वान ने डोव को इशारा किया और डोव जो कि यान के स्विच बोर्ड के पास था उसने एक स्विच दबा दिया। दूसरे ही पल यान में उस जगह का फर्श गोलाई में हट गया जहाँ पर बन्दर बना रामू मौजूद था। एक क्षण के अन्दर रामू का जिस्म उस रिक्त स्थान में गायब हो चुका था।
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यह अँधेरी सुरंग पता नहीं कितनी लंबी थी जिसमें रामू गिरता ही जा रहा था। उसे कुछ नहीं सुझाई दे रहा था। वह तो बस उस पल का इंतिज़ार कर रहा था जब वह किसी पक्के फर्श से टकरायेगा और उसके चिथड़े उड़ जायेंगे। उसने अपनी आँखें भी बन्द कर ली थीं। फिर उसे लगा कि उसके चारों तरफ रोशनी फैल गयी है। और उसी पल वह किसी नर्म स्थान पर गिरा था। क्योंकि उसे ज़रा भी चोट नहीं आयी थी।

उसने अपनी आँखें खोल कर देखा। यह तो किसी रेलवे स्टेशन का प्लेटफार्म मालूम हो रहा था। एक ऊँचा स्थान जिसकी साइड में रेलवे ट्रैक भी मौजूद था। जैसे ही उसने अपनी आँखें खोलीं, उस ट्रैक पर कहीं से एक ट्राली आकर रुक गयी। उस प्लेटफार्म पर उसके अलावा और कोई मुसाफिर नहीं था। अचानक वहाँ एक अनाउंसमेन्ट होने लगा। उसने सुना, अनाउंसमेन्ट उसी की भाषा में हो रहा था।

'समस्त यात्रियों से अनुरोध है कि दस मिनट के अन्दर इस जगह से दो सौ किलोमीटर दूर चले जायें क्योंकि दस मिनट के बाद दो सौ किलोमीटर के दायरे में तेज़ाबी बारिश शुरू हो जायेगी। जिसमें हर व्यक्ति गल जायेगा।" अनाउंसमेन्ट सुनते ही उसके होश उड़ गये। दस मिनट में दो सौ किलोमीटर कोई कैसे दूर जा सकता है? असंभव।"

उसने देखा न तो प्लेटफार्म और न ही ट्राली के ऊपर कोई छत जैसी संरचना थी। जो उस बारिश से बचाने वाली होती। फिर उसके दिमाग में एक विचार आया और वह दौड़कर ट्राली पर चढ़ गया। उसके चढ़ते ही ट्राली तेज़ गति से ट्रैक पर भागने लगी। उसने देखा सामने दो इंडिकेटर मौजूद हैं। पहला इंडिकेटर ट्राली की स्पीड को बता रहा था, सौ किलोमीटर प्रति मिनट। जबकि दूसरा इंडिकेटर समय को बता रहा था। उसके फेफड़ों से इत्मीनान की एक गहरी साँस निकली। इस स्पीड से तो ट्राली दो मिनट में ही दो सौ किलोमीटर का रास्ता तय कर लेती। उसने खुश होकर कोई गीत गुनगुनाना शुरू कर दिया। ये अलग बात है कि मुंह से केवल बंदर की खौं खौं ही निकल कर रह गयी। झल्लाकर उसने गाना बन्द कर दिया । और ट्राली के इंडिकेटर को देखने लगा। समय बताने वाले इंडिकेटर ने एक मिनट पूरा किया, और उसी समय ट्राली को एक झटका लगा। उसने चौंक कर देखा, अब ट्राली की स्पीड सौ से कम होकर पचास हो गयी थी।

'कोई बात नहीं। दो मिनट न सही, तीन मिनट में तो ट्राली दो सौ किलोमीटर के दायरे से निकल ही जायेगी। तब भी सात मिनट रह जायेंगे।' उसने अपने लड़खड़ाते दिल को संभाला। और आसमान की ओर देखा जहाँ अब अजीब से बादल छाने लगे थे। ये बादल पूरी तरह सुर्ख थे और शायद यही तेज़ाबी बारिश लाने वाले थे।
एक मिनट और बीता, और ट्राली को फिर एक झटका लगा। अब इंडिकेटर उसकी स्पीड पच्चीस किलोमीटर प्रति मिनट ही बता रहा था।

अचानक एक विचार ने उसके दिल की धडकनें फिर बढ़ा दीं। यानि हर मिनट ट्राली की स्पीड कम होकर आधी रही जा रही थी। इसका मतलब कि, वह मन ही मन कैलकुलेट करने लगा कि अगर इसी तरह हर मिनट ट्राली की स्पीड आधी होती रही तो दो सौ मीटर दूर जाने में उसे कितना समय लगेगा। गणित में हमेशा फिसडडी रहने वाला उसका दिमाग इस समय अपने को मुसीबत से घिरा देखकर बिजली की रफ्तार से चलने लगा था। जब उसने अपनी कैलकुलेशन का रिज़ल्ट देखा तो उसके होश उड़ गये। इस तरह तो अनंत समय तक चलने के बाद भी ट्राली कभी भी दो सौ मीटर के दायरे को पार नहीं कर सकती थी।

Re: मायावी दुनियाँ

Posted: 22 Dec 2014 21:51
by Jemsbond

एक मिनट और बीत चुका था और अब ट्राली की स्पीड मात्र साढ़े बारह किलोमीटर प्रति मिनट ही रह गयी थी। उसने सोचा कि ट्राली से कूद जाये और दौड़ना शुरू कर दे। लेकिन उसकी कैलकुलेशन के अनुसार अभी भी 13 किलोमीटर का फासला बाकी था और ये फासला वह बचे हुए छ: मिनट में हरगिज़ तय नहीं कर सकता था। वह ट्राली के फर्श पर बेचैनी से टहलने लगा। आसमान में सुर्ख बादल लगातार गहरे होते जा रहे थे। और उसके दिल पर मायूसी भी उतनी ही गहरी होती जा रही थी।

लेकिन फिर अचानक सम्राट की बात उसके ज़हन में गूंजी जिसने उसके दिल में रोशनी की किरण पैदा कर दी। उसने कहा था, ''बिना एम स्पेस की गणितीय पहेलियों को समझे कोई उसे पार नहीं कर सकता। और ट्राली की स्पीड का हर मिनट इस तरह कम होना भी यकीनन कोई गणितीय पहेली ही थी।

एक बार फिर उसने अपने दिमाग़ को दौड़ाना शुरू किया और आखिरकार उसे इस पहेली का हल मिल गया। यकीनन वह तेज़ाबी बारिश से बच सकता था। लेकिन उसे जो कुछ करना था वह आखिरी नौवें मिनट में ही करना था। जिस तरह हर मिनट ट्राली की स्पीड कम हो रही थी उस आधार पर नौवें मिनट की समाप्ति पर ट्राली एक सौ निन्यानवे किलोमीटर और छ: सौ मीटर की दूरी तय कर लेती। यानि अगर वह उस समय ट्राली से कूदकर आगे की तरफ भागना शुरू कर देता तो एक मिनट में ये बचे हुए चार सौ मीटर तय कर सकता था। अब वह इत्मीनान से बैठकर नौ मिनटों के खत्म होने का इंतिज़ार करने लगा।

वक्त गुज़र रहा था और ट्राली अब लगभग कछुए की रफ्तार से रेंगने लगी थी। सुर्ख बादलों ने पूरे वातावरण को ही सुर्ख कर दिया था। अजीब डरावना मंज़र था वह।
फिर नौवां मिनट भी खत्म हुआ और उसने फौरन ट्राली से छलांग लगा दी। अब वह जान छोड़कर आगे की तरफ भाग रहा था। इस समय उसका बन्दर का जिस्म काफी काम आ रहा था जिसमें बन्दरों की ही फुर्ती भरी हुई थी। बादलों में अब रह रहकर बिजलियां कड़क रही थीं।

दसवाँ मिनट खत्म होने में कुछ ही मिनट रह गये थे जब उसे आगे ज़मीन पर एक चमकदार पीली रेखा दिखाई दी। शायद ये दो सौ किलोमीटर की सीमा को दर्शा रही थी। उसकी एक लंबी छलांग ने उसे रेखा को पार करा दिया। उसी समय उसे अपने पीछे शोर सुनाई दिया। उसने घूमकर देखा, बारिश शुरू हो गयी थी। लेकिन वह बारिश रेखा के इस पर नहीं आ रही थी। लगता था मानो किसी ने वहाँ शीशे की दीवार खड़ी कर दी है। फिर उसने ये भी देखा कि चींटी की रफ्तार से रेंगती ट्राली धीरे धीरे उस पानी में पिघलती जा रही है। उसके बदन में सिहरन दौड़ गयी। अगर वह उस ट्राली पर होता तो उसका भी यही अंजाम होता। उसने एक इतिमनान की गहरी साँस ली और आगे बढ़ने लगा।

आगे बढ़ते हुए उसे लग रहा था कि वह किसी जंगल के अन्दर घुस रहा है। क्योंकि पहले इक्का दुक्का मिलने वाले पेड़ धीरे धीरे बढ़ते जा रहे थे। जल्दी ही वह एक घने जंगल में पहुंच गया। इस जंगल में साँप बिच्छू भी हो सकते थे, अत: वह एहतियात के साथ अपने कदम बढ़ाने लगा। फिर उसे ध्यान आया कि उसका जिस्म तो बन्दर का है। उसने फौरन छलांग लगाकर एक पेड़ की डाल पकड़ ली और फिर एक डाल से दूसरी डाल पर कूदते हुए वह आगे बढ़ने लगा। फिर उसे भूख का एहसास हुआ जो इस धमाचौकड़ी का नतीजा थी।

रामू ने एक डाल पर ठिठककर पेड़ों की तरफ देखा। उसे तलाश थी ऐसे फलों की जो उसकी भूख मिटा सकें। यह देखकर उसकी बांछें खिल गयीं कि पेड़ तो तरह तरह के फलों से लदे हुए थे। उसने फौरन फलों के नज़दीकी गुच्छे की तरफ हाथ बढ़ाया लेकिन उसी समय एक महीन आवाज़ उसके कानों में पड़ी, 'मर जायेगा, मर जायेगा उसने घबराकर अपना हाथ खींच लिया और इधर उधर देखने लगा कि ये आवाज़ किधर से आयी।
उसने फिर गुच्छे की तरफ हाथ बढ़ाया और वही आवाज़ फिर आने लगी। अब उसने ध्यान दिया कि आवाज़ उसी गुच्छे में से आ रही है। यानि कि ये फल ही इंसानों की तरह बोल रहे थे, और शायद ज़हरीले थे, तभी तोड़ने वाले को वार्निंग दे रहे थे।

रामू ने दूसरे पेड़ की ओर देखा। उसकी डालियां भी फलों से लदी हुई थीं। वह फल भी दूसरी तरह के थे। वह छलांग लगाकर उस पेड़ पर पहुंच गया और फल तोड़ने के लिये हाथ बढ़ाया।
'मरा मरा मरा.... इस फल से भी लगातार आवाज़ें लगीं और उसने घबराकर अपना हाथ खींच लिया। यानि कि इस फल का तोड़ना भी खतरनाक था।

'ऐसा तो नहीं कि ये फल अपने को बचाने के लिये इस तरह की आवाज़ लगा रहे हैं। उसके दिमाग में विचार आया और उसने तय किया कि इस बार ये फल कुछ भी बोलें, वह उन्हें तोड़ लेगा। उसने फल की तरफ हाथ बढ़ाया और उसकी वार्निंग के बावजूद उसे तोड़ लिया। तोड़ते ही फल से आवाज़ आनी बन्द हो गयी। फिर उसने उसे खाने के लिये मुंह की तरफ बढ़ाया, लेकिन उसी समय किसी ने झपटटा मारकर उसके हाथ से उस फल को लपक लिया। उसने भन्नाकर लुटेरे को देखा। वो भी एक बन्दर ही था, लेकिन असली।

फिर उस बन्दर ने जल्दी जल्दी उस फल को खाना शुरू कर दिया और साथ ही रामू को इस तरह देखता भी जा रहा था जैसे ठेंगा दिखा रहा हो। रामू ने तय किया कि उसे सबक सिखाये और इसके लिये उसने किसी मज़बूत डण्डे की तलाश में इधर उधर नज़रें दौड़ायीं। लेकिन उसी वक्त उसने देखा कि बन्दर अपना पेट पकड़कर तड़पने लगा था। फिर तड़पते तड़पते वह ज़मीन पर गिर गया और कुछ ही पलों में वह ठण्डा हो चुका था। रामू जल्दी से उसके पास पहुंचा और हिला डुलाकर देखने लगा। लेकिन उसे यह देखकर निराशा हुई कि बन्दर मर चुका था। इसका मतलब कि फलों की वार्निंग सही थी। वे वाकई ज़हरीले थे।

अगर वह उस फल को खा लेता तो? वह अपने अंजाम को सोचकर काँप गया। उसने तय कर लिया कि वह वहाँ की कोई चीज़ नहीं खायेगा। लेकिन कब तक? भूख उसकी आँतों में ऐंठन पैदा कर रही थी। अगर वह कुछ नहीं खाता तो भले ही कुछ समय तक जिंदा रह जाता लेकिन ज्यादा समय तक तो नहीं।

अचानक उसके दिल में फिर उम्मीद की किरण जागी। जैसा कि सम्राट ने कहा था कि इस दुनिया में हर तरफ गणितीय पहेलियां बिखरी हुई हैं। और उन्हें हल करके सलामती की उम्मीद की जा सकती है। तो इन ज़हरीले फलों के बीच जीवन देने वाले फल भी मौजूद होने चाहिए जो शायद किसी गणितीय पहेली को हल करने पर मिल जायें।

यह विचार दिमाग में आते ही वह उठ खड़ा हुआ और पेड़ों पर लदे फलों पर गौर करने लगा। यहाँ पर जिंदगी और मौत का सवाल था। अत: उसका दिमाग अपनी पूरी क्षमता झोंक रहा था। इसके नतीजे में जल्दी ही वह एक नतीजे पर पहुंच गया। उसने देखा कि एक पेड़ पर फलों के जितने भी गुच्छे लगे हुए थे, उनमें फलों की संख्या निशिचत थी।

जिस पेड़ के नीचे वह खड़ा था उसमें हर गुच्छे में पाँच पाँच फल लगे हुए थे। जबकि उसके पड़ोसी पेड़ में सात सात फलों के गुच्छे थे। उसने आसपास के सारे पेड़ देख डाले। किसी में हर गुच्छे में पाँच फल थे, किसी में दो, किसी में तीन तो किसी में सात फल थे। कहीं कहीं ग्यारह फल भी दिखाई दिये। उसने इन गिनतियों को वहीं कच्ची ज़मीन पर एक डंडी की सहायता से लिख लिया और उनपर गौर करने लगा। जल्दी ही ये तथ्य उसके सामने ज़ाहिर हो गया कि ये सभी संख्याएं अभाज्य थीं। यानि किसी दूसरी संख्या से विभाजित नहीं होती थीं। तो अगर कोई गुच्छे के फल को तोड़ता तो वह एक अभाज्य संख्या को विभाजित करने की कोशिश करता जो की असंभव था। इसीलिए फलों का ज़हर उसका काम तमाम कर देता।

इस नतीजे पर पहुंचते ही वह फुर्ती से उठ खड़ा हुआ। अब उसे ऐसे पेड़ की तलाश थी जिसके गुच्छे में विभाज्य संख्या में यानि चार, छ:, आठ इत्यादि संख्या में फल लगे हों। थोड़ी दूर जाने पर आखिरकार उसे ऐसा पेड़ मिल गया। इस पेड़ के हर गुच्छे में छ: फल लगे हुए थे। वह फुर्ती के साथ पेड़ पर चढ़ गया और एक गुच्छे की तरफ डरते डरते अपना हाथ बढ़ाया।

जब उसका हाथ गुच्छे के पास पहुंचा तो उसके फलों से आवाज़ आने लगी - 'आओ...आओ।

इसका मतलब उसका निष्कर्ष सही था। ये फल खाने के लायक़ थे। उसने उन फलों को तोड़ा और खाना शुरू कर दिया। काफी स्वादिष्ट और चमत्कारी फल थे। न केवल उसकी भूख मिटी थी बलिक प्यास और थकान भी मिट गयी थी। रामू अपने को पूरी तरह तरोताज़ा महसूस कर रहा था।

Re: मायावी दुनियाँ

Posted: 22 Dec 2014 21:52
by Jemsbond

'अब आगे जाने की ज़रूरत ही क्या है। इसी जंगल में बाकी जिंदगी गुज़ार देता हूं। आखिर पुराने ज़माने में सन्यास लेने के बाद साधू सन्यासी यही तो करते थे।' उसके ज़हन में आया और वह वहीं एक डाल पर पसर गया। लेकिन थोड़ी देर बाद फिर उसके विचारों ने पलटा खाया और वह उठकर बैठ गया।
'नहीं नहीं। इस दुनिया का कोई भरोसा नहीं कब पलटा खा जाये।' उसके अब तक के तजुर्बे ने उससे कहा और उसने फिर आगे बढ़ने के लिये कमर कस ली। उस घने जंगल में पेड़ों की डालों की सहारे ही वह आगे बढ़ने लगा।

उसके बन्दर वाले जिस्म के लिये डालों पर कूदना ज्यादा आसान था बजाय इसके कि वह ज़मीन पर पैदल चलता। जंगल में उस एक बन्दर के अलावा उसे कोई भी जानवर नहीं मिला था। शायद वह इसीलिए भेजा गया हो कि उसे ज़हरीले फल को खाने से बचा ले।
लगभग आधा घण्टा चलने के बाद अचानक जंगल खत्म हो गया।

लेकिन ये खात्मा रामकुमार के लिये किसी खुशी का संदेश नहीं था, बल्कि सामने मौजूद आसमान छूते पहाड़ों ने उसे नयी मुशिकल में डाल दिया था। अब तो आगे बढ़ने का रास्ता ही नहीं था।
पहाड़ भी अजीब से थे। बिल्कुल सीधे सपाट। ऐसा लगता था किसी ने पत्थर के बीसियों विशालकाय त्रिभुज बनाकर एक दूसरे से जोड़ दिये हों। उनका रंग भी अजीब था। कुछ संगमरमर जैसे सफेद थे और बाकी कोयले जैसे काले। काफी देर देखने के बाद भी रामू को उनके बीच कोई ऐसी दरार नज़र नहीं आयी जिसे रास्ता बनाकर वह उन पहाड़ों में घुस सकता था।

'लगता है यहाँ भी कोई गणितीय पहेली छुपी हुई है।' रामू ने मन में सोचा। और गौर से पहाड़ों को देखने लगा। उसे उनके रंग में ही कोई खास बात छुपी मालूम हो रही थी। लेकिन वह खास बात क्या है उस तक उसका दिमाग नहीं पहुंच पा रहा था। वह घूम घूमकर पहाड़ों की उन काली व सफेद त्रिभुजाकार रचनाओं को देख रहा था जिनके बीच से आगे जाने का कहीं कोई रास्ता नहीं था। तमाम काले व सफेद त्रिभुज कुछ इस तरह साइज़ व आकार में एक जैसे थे कि उन्हें अगर एक के ऊपर एक रख दिया जाता तो सब बराबर से फिट हो जाते।

अचानक उसके ज़हन में एक झमाका हुआ और उसे अग्रवाल सर की एक बात याद आ गयी जो उन्होंने निगेटिव नंबरों के चैप्टर की शुरुआत करते हुए बतायी थी।
''अगर बराबर की निगेटिव व पाजि़टिव संख्या ली जाये तो उसका जोड़ हमेशा ज़ीरो होता है।' अगवाल सर का ये जुमला लगातार उसके दिमाग में उछलने लगा। फिर उसे ध्यान आया कि पहाड़ों के ये त्रिभुज भी निगेटिव व पाजि़टिव ही मालूम हो रहे थे। और वह भी बराबर के साइज़ के। अगर उन्हें बराबर से एक दूसरे से मिला दिया जाये तो?' लेकिन फिर उसे अपनी इस सोच पर हंसी गयी। भला इन विशालकाय पहाड़ों को कौन हिला सकता था।

लेकिन फिर उसके दिमाग में एक और विचार आया। आजकल के ज़माने में मात्र कुछ स्विच दबाकर भारी भरकम मशीनों को कण्ट्रोल किया जाता है, तो कहीं ऐसा तो नहीं कि इन पहाड़ों में रास्ते के लिये भी कोई स्विच दबाना पड़ता हो।
अब वह एक बार फिर पहाड़ के आसपास चक्कर लगाने लगा। उसे तलाश थी किसी स्विच की।

थोड़ी देर वह पहाड़ों के ही समान्तर एक दिशा में चलता रहा। इससे पहले वह दूसरी दिशा में काफी दूर तक जा चुका था। फिर एकाएक वह ठिठक गया। यह एक छोटा सा चबूतरा था।
लेकिन चबूतरे ने उसे आकर्षित नहीं किया था बल्कि उसके ऊपर मौजूद दो मूर्तियों ने उसका ध्यान अपनी ओर खींचा था। उनमें से एक मूर्ति पूरी तरह सफेद संगमरमर की बनी थी और उसका खूबसूरत चेहरा किसी फरिश्ते का मालूम हो रहा था। उसके शरीर पर दो पंख भी लगे हुए थे। जबकि दूसरी मूर्ति जो काले पत्थर की बनी हुई थी वह किसी शैतान की मालूम हो रही थी। जिसके सर पर दो सींग मौजूद थे। दोनों मूर्तियां एक दूसरी को घूरती हुई मालूम हो रही थीं।

'यहाँ भी पाजि़टिव और निगेटिव। हो न हो इन मूर्तियों का पहाड़ों से कोई न कोई सम्बन्ध ज़रूर है।
उसने आगे बढ़कर फरिश्ते की मूर्ति को हिलाने की कोशिश की। लेकिन वह टस से मस नहीं हुई। फिर उसने शैतान की मूर्ति को भी उठाने की कोशिश की। लेकिन वह भी मज़बूती के साथ चबूतरे पर जड़ी हुई थी। काफी देर तक वह उनके साथ तरह तरह की हरकतें करता रहा लेकिन न तो मूर्तियों में कोई परिवर्तन आया और न ही पहाड़ों में कोई हरकत हुई । वह थक कर चूर हो गया था अत: चबूतरे पर चढ़ गया और फरिश्ते की मूर्ति के सामने पहुंचकर अपने दोनों हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। मानो वह उससे प्रार्थना कर रहा था। ये अलग बात है कि इस समय उसके दिल में पूरी दुनिया के लिये निहायत बुरे शब्द गूंज रहे थे।

उसी समय उसे अपने पीछे गड़गड़ाहट की आवाज़ सुनाई देने लगी। उसने घबराकर आँखें खोल दीं और पीछे मुड़कर देखा। उसे हैरत का झटका लगा क्योंकि शैतान की मूर्ति तेज़ गड़गड़ाहट के साथ खिसकती हुई उसी की ओर आ रही थी। वह घबराकर जल्दी से चबूतरे के नीचे कूद गया। शैतान की मूर्ति लगातार फरिश्ते की मूर्ति की ओर खिसकती जा रही थी। और कुछ ही देर बाद वह उससे जाकर मिल गयी। इसी के साथ वहां इस तरह का हल्की रोशनी के साथ धमाका हुआ मानो कोई शार्ट सर्किट हुआ हो। रामू ने देखा, दोनों मूर्तियां धुवाँ बनकर हवा में विलीन हो रही थीं।

अभी वह उस धुएं को देख ही रहा था कि उसे अपने पीछे बहुत तेज़ बादलों जैसी गरज सुनाई पड़ने लगी। वह पीछे घूमा और वहाँ का नज़ारा देखकर उसका मुंह खुला रह गया।
विशालकाय त्रिभुजाकार पहाड़ तेज़ी के साथ एक दूसरे की ओर खिसक रहे थे। और काले त्रिभुज सफेद त्रिभुजों के पीछे छुप रहे थे। इस क्रिया में ही बादलों की गरज जैसी आवाज़ पैदा हो रही थी। रामू को अपने नीचे की ज़मीन भी हिलती हुई मालूम हो रही थी। लगता था जैसे भूकम्प आ गया है। उसने डर कर अपनी आखें बन्द कर लीं। उसे लग रहा था कि आज उसका अंतिम समय आ गया है। अभी ज़मीन फटेगी और वह उसमें समा जायेगा।

गरज की आवाज़ धीरे धीरे बढ़ती ही जा रही थी और बन्द आँखों से ही रामू महसूस कर रहा था कि अब वहाँ बिजलियां भी चमक रही हैं। और उस चमक में इतनी तेज़ रोशनी पैदा हो रही थी कि बन्द आँखों के बावजूद रामू को उसकी चुभन महसूस हो रही थी। लगता था उसके सामने सूरज चमक रहा है।

लगभग पन्द्रह मिनट की गरज व चमक के बाद अचानक वहाँ सन्नाटा छा गया। उसने डरते डरते आँखें खोलीं और एक बार फिर उसका मुंह खुला रह गया।
वह ऊंचे ऊंचे पहाड़ तो अपनी जगह से नदारद थे और उनकी जगह एक उतना ही विशालकाय महल नज़र आ रहा था। उस महल की दीवारों पर सफेद व काले रंग के पत्थर जड़े हुए थे। महल में सामने एक विशालकाय दरवाज़ा भी मौजूद था जो कि फिलहाल बन्द था।

'अरे वाह। लगता है मैं अपनी मंजि़ल पर पहुंच गया। ये महल यकीनन इस तिलिस्म को तोड़ने के बाद आराम करने के लिये बना है।' ऐसा सोचते हुए रामू महल के दरवाज़े की ओर बढ़ा।
जैसे ही वह दरवाज़े के पास पहुंचा, दरवाज़े के दोनों पट अपने आप खुल गये। एक पल को रामू ठिठका लेकिन फिर अन्दर दाखिल हो गया। उसके अन्दर दाखिल होते ही दरवाज़ा अपने आप बन्द भी हो गया। लेकिन अब रामू के पास पछताने का भी मौका नहीं था।

क्योंकि महल अन्दर से एक विशालकाय हाल के रूप में था। और उस हाल के फर्श पर हर तरफ साँप बिच्छू और दूसरे कीड़े मकोड़े रेंग रहे थे। वह चिहुंक कर जल्दी से उछला और छत से जड़े एक फानूस को पकड़ कर लटक गया। हाल के फर्श पर मौजूद ज़हरीले कीड़ों ने उसकी बू महसूस कर ली थी और अब रेंगते हुए उसी फानूस की तरफ आ रहे थे। हालांकि फानूस काफी ऊंचाई पर था और जब तक वह उससे लटक रहा था, कोई खतरे की बात नहीं थी। लेकिन कब तक? एक वक्त आता जब उसके हाथ थक जाते और वह धड़ाम से फर्श पर जा गिरता। और ये भी तय था कि गिरते ही साँप बिच्छुओं के खतरनाक ज़हर में उसकी बोटी बोटी गल जाती।

वक्त बीतता जा रहा था। लेकिन रामू के लिये ये वक्त बहुत ही सुस्त रफ्तार से गुज़र रहा था। एक एक सेकंड उसके लिये पहाड़ की तरह साबित हो रहा था। उसके हाथ अब अकड़ने लगे थे लेकिन फानूस से लटकने के सिवा उसके पास और कोई चारा नहीं था। यह मायावी दुनिया अजीब थी। वह पूरे जंगल को पार करके आया था और उसमें उसे किसी खतरनाक जानवर की झलक तक नहीं दिखी थी। दूसरी तरफ यह महल था जहाँ उसे उम्मीद थी कि खूबसूरत बेडस पर नर्म गददे लगे मिलेंगे, वहाँ ऐसे खतरनाक कीड़े मकोड़े व साँप बिच्छू।

उसने बेबसी से फर्श की तरफ देखा जहाँ बहुत से साँप बिच्छू उसके ठीक नीचे मुंह फैलाकर खड़े हो गये थे और उसके टपकने का इंतिज़ार कर रहे थे। उसने जल्दी से फर्श पर से नज़रें हटा लीं और दीवार की ओर देखने लगा। लेकिन दीवार के नज़ारे ने उसकी हालत और खराब कर दी। उसपर इस डरावनी हक़ीकत का इज़हार हुआ कि वहाँ कुछ ऐसे कीड़े व साँप भी मौजूद थे जो दीवार पर चढ़ सकते थे। और वो आफतें दीवार पर चढ़कर लगभग छत तक पहुंचने वाली थीं और उसके बाद उस फानूस तक जिससे वह लटका हुआ था।

यानि बचने का कोई रास्ता नहीं था। हाँ मरने के उसके पास दो रास्ते थे। या तो वह फानूस को छोड़ देता। ऐसी दशा में नीचे के कीड़े मकोड़े फौरन ही उससे चिमटकर उसका काम तमाम कर डालते, या फिर वह उन कीड़ों का इंतिज़ार करता जो छत से रेंगकर उसके पास आने वाले थे।

'क्या यहाँ भी बचने का कोई गणितीय फार्मूला मौजूद है?' उसके दिमाग़ में ये विचार पैदा हुआ। और इस विचार के साथ ही उसके दिल में उम्मीद की किरण फिर पैदा हो गयी। वह हाल में चारों तरफ नज़रें दौड़ाने लगा और गौर से एक एक चीज़ को देखने लगा। फिर उसकी नज़र छत से लटकते एक छल्ले पर जम गयी।

वैसे तो हाल की छत से बहुत से फानूस लटक रहे थे। और उनका लटकना कोई हैरत की बात नहीं थी। लेकिन उन फानूसों के बीच में एक छल्ले का लटकना ज़रूर अजीब था। फिर उसने फर्श पर रेंगते कीड़ों और साँप बिच्छुओं को भी जब गौर से देखा तो उसे उनमें एक खास बात नज़र आयी।

वह सभी कीड़े मकोड़े साँप व बिच्छू रेंगते हुए किसी न किसी गणितीय अंक के आकार को बना रहे थे। मसलन एक साँप इस तरह टेढ़ा होकर रेंग रहा था कि उससे 5 का अंक बन रहा था। कुछ बिच्छू इस तरह सिमटे थे कि उनसे 3 का अंक बना दिखाई दे रहा था। एक कीड़ा 8 के अंक के आकार में था तो दूसरा 9 के अंक के आकार में। जब ये कीड़े एक दूसरे के समान्तर रेंगते थे तो उनसे बनी संख्याएं भी साफ दिख जाती थीं। फर्श पर कहीं 1512 संख्या रेंगती हुई दिख रही थी तो कहीं 5234। कहीं कहीं तो पन्द्रह बीस अंकों की बड़ी संख्याएं भी दिख रही थीं।

''कमबख्तों ये जो तुम लोग इतनी बड़ी बड़ी संख्याएं बना रहे हो। अगर मुझे कहीं से ज़ीरो मिल जाये तो तुम सब को उससे गुणा करके ज़ीरो कर दूं।" रामकुमार ने दाँत पीसकर कहने की कोशिश की और इसी के साथ उसकी आँखों ने हाल में मौजूद ज़ीरो को पहचान भी लिया। छत में फानूसों के साथ लटकता वह स्पेशल छल्ला ठीक किसी ज़ीरो की तरह ही दिख रहा था।

जिस फानूस से वह लटक रहा था उससे चार फानूस आगे जाकर वह छल्ला मौजूद था। लेकिन वहाँ तक पहुंचना भी अत्यन्त मुश्किल था। फर्श पर तो वह चल ही नहीं सकता था वरना ज़हरीले साँप बिच्छू फौरन ही उससे चिमट जाते। केवल एक ही रास्ता उसके सामने था। कि वह अपने फानूस से छलांग लगातार दूसरे फानूस तक पहुंचता और फिर तीसरे तक। इस तरह वह उस ज़ीरो नुमा छल्ले तक पहुंच सकता था। ये काम बहुत ही मुश्किल था लेकिन और कोई चारा भी नहीं था।

'मरना तो हर हाल में है। फिर कोशिश करके क्यों न मरा जाये।' उसने सोचा और आगे वाले फानूस की तरफ छलांग लगा दी। उसकी ये छलांग कामयाब रही। वह आगे के फानूस पर पहुंच चुका था। पहली बार उसे अपने बन्दर के जिस्म पर गर्व महसूस हुआ। अगर उसके पास मानव शरीर होता तो इस छलांग में फानूस टूट भी सकता था और ये भी ज़रूरी नहीं था कि वह दूसरे फानूस तक पहुंच ही जाता।

इस कामयाबी ने उसका उत्साह दोगुना कर दिया और उसने फौरन ही दूसरी छलांग लगा दी। हालांकि इसमें वह थोड़ी जल्दी कर गया था और तीसरा फानूस उसके हाथ से छूटते छूटते बचा था। उसके दिल की धडकनें एक बार फिर बढ़ गयीं।
अभी भी वह ज़ीरो नुमा छल्ला उससे दो फानूस आगे था। इसबार उसने संभल कर छलांग लगायी और एक फानूस और कामयाबी के साथ पार कर लिया। फिर अगला फानूस पार करने में भी उसे कोई परेशानी नहीं हुई। अब उसकी आँखें सिर्फ उस चमकदार छल्ले को देख रही थीं।

'बस एक छलांग और फिर ये ज़ीरो मेरे हाथों में होगा।' उसने एक पल में सोचा और दूसरे पल में छल्ले की ओर छलांग लगा दी। लेकिन जैसे ही उसके हाथों ने छल्ले को पकड़ा। छत से लटकते छल्ले की ज़ंज़ीर टूट गयी और वह छल्ले को लिये दिये फर्श पर आ गया।