मायावी दुनियाँ

Horror stories collection. All kind of thriller stories in English and hindi.
Jemsbond
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मायावी दुनियाँ

Unread post by Jemsbond » 22 Dec 2014 21:22

मायावी दुनियाँ

'टन टन टन! स्कूल की घण्टी तीन बार बजी और रामू को ऐसा महसूस हुआ जैसे उसके दिल पर किसी ने तीन बार हथौड़े से वार कर दिया। चौथा पीरियड शुरू हो गया था और ये पीरियड उसे किसी राक्षस के भोजन की तरह लगता था। किसी तरह खत्म ही नहीं होता था। उसे गणित और गणित के अग्रवाल सर दोनों से चिढ़ थी। और चौथा पीरियड उन्हीं का होता था।
उसने अपने मन को उम्मीद बंधाई कि शायद आज अग्रवाल सर न आये हों। किसी एक्सीडेन्ट में उनकी टांग टूट गयी हो। आजकल के ट्रेफिक का कोई भरोसा तो है नहीं।
लेकिन ट्रेफिक वाकई भरोसेमन्द नहीं है। क्योंकि अग्रवाल सर अपनी दोनों टांगों की पूरी मजबूती के साथ क्लास में दाखिल हो रहे थे। चेहरे पर चढ़ा मोटा चश्मा उन्हें और खुंखार बना रहा था।
आने के साथ ही उन्होंने बोर्ड पर दो रेखाएं खींच दीं और एक लड़के को खड़ा किया, ''अनिल, तुम बताओ ये क्या है?
अनिल खड़ा हुआ, ''सर, ये दो समान्तर रेखायें हैं।
''शाबाश। बैठ जाओ। गगन, तुम समान्तर रेखाओं की कोई एक विशेषता बताओ।
''सर, समान्तर रेखाएं आपस में कभी नहीं मिलतीं। गगन ने तुरन्त जवाब दिया। उसकी गणित का लोहा तो अच्छे अच्छे मानते थे।
''गुड। तुम भी बैठ जाओ। रामकुमार, अब तुम खड़े हो।
''लो, आ गयी शामत।" किसी तरह उसने अपनी टांगों पर जोर दिया। पूरी क्लास का सर उसकी तरफ घूम गया था।
''बताओ, समान्तर रेखाएं आपस में क्यों नहीं मिलतीं ?" अग्रवाल सर ने सवाल जड़ा और उसका दिमाग घूम गया। उन दोनों से तो इतने आसान सवाल और मुझसे इतना टेढ़ा।
''सर, रेखाएं स्त्रीलिंग होती हैं। और सित्रयों की विशेषता यही होती है कि वो ससुरी आपस में मिल बैठकर नहीं रह सकतीं। आखिरकार उसे एक धांसू जवाब सूझ ही गया।
दूसरे ही पल पूरी क्लास में एक ठहाका पड़ा और वह बौखला कर चारों तरफ देखने लगा। क्या उसके मुंह से कुछ गलत निकल गया था?
''अबे घोंघाबसंत की औलाद, पूरी दुनिया सुधर जायेगी लेकिन तू नहीं सुधरेगा । चल इधर किनारे आ। दूसरे ही पल उसका कान अग्रवाल सर की मुटठी में था। किनारे पहुंचकर पहले तो उस खड़ूस ने दो तीन थप्पड़ जमाये फिर मुर्गा बन जाने का आर्डर दे दिया।
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सड़क पर पैडिल मारते हुए रामकुमार उर्फ रामू आज कुछ ज्यादा ही विचलित था। उसे एहसास हो गया था कि गणित जीवन भर उसके पल्ले नहीं पड़ेगी। और गणित के बिना जीवन ही बेकार था। यही सबक रोज उसके माँ बाप और टीचर्स दिया करते थे।
सो उसने अपना जीवन समाप्त करने का निश्चय किया। उसके रास्ते में एक छोटा सा जंगल पड़ता था। उसके अंदर एक गहरा तालाब है, ये भी उसे पता था। उसने अपनी साइकिल सड़क से नीचे उतार दी। अब वह उस गहरे तालाब की ओर जा रहा था। चूंकि उसने तैरना सीखा नहीं था, इसलिए वह आसानी से डूबकर मर जायेगा यही विचार आया उसके मन में।
जल्दी ही उसकी साइकिल तालाब के किनारे पहुंच गयी। उसने स्पीड तेज कर दी। वह साइकिल के साथ ही पानी में घुस जाना चाहता था।



अचानक उसे लगा, पीछे से किसी ने उसकी साइकिल रोक ली है। उसने घूमकर देखना चाहा, लेकिन उसी समय उसकी गर्दन भी किसी ने पकड़ ली। कोई उसकी गर्दन दबा रहा था। धीरे धीरे उसपर बेहोशी छा गयी।
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इस छोटे से कमरे में तेज नीली रोशनी फैली हुई थी। इस रोशनी में चार बच्चे आसपास खड़े हुए किसी गंभीर चिंतन में डूबे थे। पास से देखने पर राज़ खुलता था कि ये दरअसल बच्चे नहीं, बौने प्राणी हैं। क्योंकि इनके चेहरे पर दाढ़ी मूंछें भी मौजूद थीं। इनके शरीर का गहरा पीला रंग सूचक था कि ये प्राणी इस धरती के अर्थात पृथ्वीवासी तो नहीं हैं।
इसी कमरे के एक कोने में रामू मौजूद था। बेहोश अवस्था में। लेकिन कमरे की सबसे ज्यादा आकर्षित करने वाली वस्तु थी, एक ताबूतनुमा शीशे का बक्सा। जिसके अंदर उन्ही चारों जैसा एक प्राणी निश्चल अवस्था में पड़ा हुआ था।
''तो अब क्या इरादा है मि0 रोमियो? उन चारों में से एक ने वातावरण में छायी निस्तब्धता तोड़ी।
''हमें अपने सम्राट को किसी भी कीमत पर बचाना है। वरना पृथ्वी नाम के इस अंजान ग्रह पर हम ज्यादा समय तक जिन्दा नहीं रह पायेंगे।

''सारी गलती हमारे यान के आटोपायलट की थी। यहां के वायुमंडल में उतरते हुए उसने यान को पूरी तरह डिसबैलेंस कर दिया। नतीजे में हमारे सम्राट का शरीर लगभग पूरा ही नष्ट हो गया।" तीसरा व्यक्ति बोला।
''ठीक कहते हो सिलवासा। अब हमारे सम्राट के शरीर में केवल उसका मस्तिष्क ही सही सलामत बचा है। और अगर हमने देर की तो वह भी नष्ट हो जायेगा। क्यों रोमियो?" पहले वाला बोला।

''हाँ डोव। अब आगे मैडम वान को अपना हुनर दिखाना है। उन्हें जल्द से जल्द सम्राट का दिमाग उस लड़के के शरीर में ट्रांस्प्लांट कर देना है, जिसे हम जंगल में तालाब के किनारे से पकड़ कर लाये हैं।"
''ठीक है।" तीसरा व्यक्ति जो दरअसल मैडम डोव थी, बोल उठी। और फिर वे सब अपने अपने काम में जुट गये। रामू को ताबूत के बगल में लिटा दिया गया था। फिर वे मस्तिष्क ट्रांस्प्लांट के आपरेशन में जुट गये। एक तरफ रामू का सर खोला जा रहा था और दूसरी तरफ सम्राट का।

ये आपरेशन पूरे एक घण्टे तक चलता रहा। और फिर थोड़ी देर बाद सम्राट का दिमाग रामू के जिस्म में फिट हो चुका था। जबकि रामू का दिमाग अलग एक ट्रे में नजर आ रहा था।
''अब पूरा हो गया है आपरेशन। हम लड़के के दिमाग को अब नष्ट कर देते हैं।" मैडम वान ने रामू के शरीर को अच्छी तरह टेस्ट करने के बाद कहा।

''मेरे दिमाग में एक आइडिया आया है।" खिड़की से बाहर डाल पर बैठे बन्दर की ओर देखते हुए कहा रोमियो ने।
''कैसा आइडिया ?" सिलवासा ने पूछा।
''इस दिमाग को उस बन्दर में फिट करके जंगल में छोड़ देते हैं। अगर होश में आने के बाद सम्राट के दिमाग ने इस शरीर को कुबूल नहीं किया तो एक मनुष्य का दिमाग बेकार में नष्ट हो जायेगा।"
''ठीक कहते हो रोमियो।" डोव ने सहमति जताई, और छोटी सी पिस्टल निकालकर बन्दर की तरफ तान दी। उसे बेहोश करने के लिए।
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मिसेज और मिस्टर वर्मा रामू के स्कूल में मौजूद थे। उनके सामने थी प्रिंसिपल मिसेज भाटिया।
''देखिए, मैं फिर आपसे कहती हूं कि हाईस्कूल लेवेल तक के बच्चों की छुटटी ठीक दो बजे हो जाती है। उसके बाद किसी के यहां रुकने का सवाल ही नहीं पैदा होता। और आपके बच्चे रामकुमार को तो मैं अच्छी तरह जानती हूं। वो तो कभी लाइब्रेरी भी नहीं जाता।" प्रिंसिपल ने कहा।
''फिर भी आप अगर स्टाफ से एक बार पूछ लें तो...। दो घण्टे हो रहे हैं। रामू अभी तक घर नहीं पहुंचा।" मि0 वर्मा बोले।

''उसकी तो कहीं इधर उधर जाने की भी आदत नहीं है।" स्कूल से सीधा घर ही आता है।
उसी समय वहां किसी काम से अग्रवाल सर ने प्रवेश किया। इन्हें बैठा देखकर वह इनकी तरफ घूमे।
''अच्छा हुआ आप लोग आ गये। आपका बच्चा रामकुमार गणित में बिल्कुल गोल है। अगर आपने उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया तो इस साल उसका पास होना मुश्किल है।
''एक मिनट!" प्रिंसिपल ने उसे रोका, ''मि0 और मिसेज वर्मा यहां इसलिए आये हैं क्योंकि इनका लड़का दो घण्टे से घर नहीं पहुंचा।"
''ज़रूर वह किसी पार्क वगैरा की तरफ निकल गया होगा। आज मैंने उसे सजा दी थी। हो सकता है दिल बहलाने के लिए कहीं पिक्चर देखने निकल गया हो।"

''आप ऐसा करें, प्रिंसिपल मि0 वर्मा की तरफ मुखातिब हुई, ''थोड़ी देर और अपने लड़के का इंतिजार कर लें। हो सकता है अब तक वह घर पहुंच गया हो। अगर ऐसा नहीं होता है तो हमें और पुलिस को इन्फार्म करें।"
''ठीक है।" दोनों ठंडी सांस लेकर उठ खड़े हुए। उनके चेहरे पर परेशानी की लकीरें और गहरी हो गयी थीं।
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Jemsbond
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Re: मायावी दुनियाँ

Unread post by Jemsbond » 22 Dec 2014 21:23

सम्राट के पपोटों में हरकत पैदा हुई और फिर धीरे धीरे उसने आँखें खोल दीं। उसके आसपास मौजूद सहयोगियों के चेहरे खिल उठे।
''आप कैसा महसूस कर रहे हैं सम्राट?" डोव उसकी तरफ झुका।
''मैं तो ठीक हूँ। लेकिन मुझे हुआ क्या था?"
''सम्राट! हमारे अंतरिक्ष यान में हुई दुर्घटना में आपका शरीर पूरी तरह नष्ट हो गया था। इसलिए हमने आपका दिमाग एक मानव के शरीर में फिट कर दिया है।"

''क्या?" चौंक पड़ा सम्राट।
''क्या हमसे कोई गलती हो गयी सम्राट?" डरते डरते पूछा रोमियो ने।

थोडी़ देर चुप रहने के बाद सम्राट बोला, ''तुम लोगों ने बिल्कुल ठीक किया। इस शरीर में शायद मैं अपने मकसद में जल्दी कामयाब हो जाऊँ। वह मकसद, जिसके लिए हम इस पृथ्वी पर आये हैं।"
''अब आगे के लिए क्या प्लान है सम्राट?" रोमियो ने पूछा।
''फिलहाल जिस बच्चे का शरीर तुम लोगों ने मुझे दिया है, उसके घरवालों से मैं मिलूंगा। और कोशिश करूंगा उनमें घुलमिल कर रहने की। अगर मैं अपनी पहचान छुपाने में कामयाब रहा तो हम यहां बहुत कुछ कर सकते हैं।"
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रामू जब क्लास में दाखिल हुआ तो आगे बैठे हुए सभी लड़के ठहाका मारकर हंस दिये। उन्हें पिछले दिन अग्रवाल सर को दिये जवाब और फिर उसके मुर्गा बनने की याद आ गयी थी।
''लो आ गया गणित का डब्बा।" अमित बोला। वह अग्रवाल सर का चहेता स्टूडेन्ट था।

''इसके दिमाग का डब्बा तो हमेशा गोल रहेगा। पता नहीं किसने इसे हम लोगों के बीच बिठा दिया।" गगन मुंह बिचकाते हुए बोला।
रामू बिना किसी से बात किये चुपचाप पीछे की सीट पर जाकर बैठ गया।

जल्दी ही अग्रवाल सर का पीरियड भी शुरू हो गया। अंदर दाखिल होते ही उनकी पहली दृष्टि रामू पर गयी।
''रामू! कल छुटटी के बाद तुम कहां गायब हो गये थे?"
''मैं टहलने गया था जंगल तक। संक्षिप्त जवाब दिया रामू के रूप में सम्राट ने।"

''अपने रिश्तेदारों से मिलने गया होगा वहाँ ये।" एक महीन सी आवाज उभरी और पूरी क्लास ठहाकों से गूंज उठी।
अग्रवाल सर ने सबको शान्त किया और पढ़ाना शुरू किया, ''आज मैं त्रिभुजों के कुछ गुण बताता हूँ। तीन भुजाओं से मिलने वाली ये आकृति त्रिभुज कहलाती है।" ब्लैक बोर्ड पर चाक से अग्रवाल सर ने त्रिभुज की आकृति खींची, ''गगन, तुम बताओ, त्रिभुज के तीनों कोणों का योग कितना होता है?"

''सर, एक सौ अस्सी डिग्री।" गगन ने फौरन जवाब दिया।
''गुड। रामकुमार, तुम खड़े हो और बताओ समबाहू त्रिभुज क्या होता है?" अग्रवाल सर किसी से पूछें या न पूछें रामू से जरूर पूछते थे।

रामू खड़ा हुआ, ''सर, पहले मैं गगन के जवाब में कुछ जोड़ना चाहता हूं। त्रिभूज के तीनों कोणों का योग हमेशा एक सौ अस्सी डिग्री नहीं होता। यह निर्भर करता है उस सतह पर जहां वह त्रिभुज बना हुआ है। अगर वह सतह यूक्लीडियन प्लेन है तब तो कोणों का योग एक सौ अस्सी डिग्री होगा, वरना कम या ज्यादा भी हो सकता है। मिसाल के तौर पर त्रिभुज किसी घड़े जैसी सतह पर बना है तो कोणों का योग एक सौ अस्सी डिग्री से ज्यादा होगा। और अब मैं आता हूं आपके सवाल पर.........।" अग्रवाल सर ने उसे हाथ के इशारे से रुकने के लिए कहा और खुद अपने सर को थामकर कुर्सी पर बैठ गये।

पूरी क्लास अवाक होकर रामू को देख रही थी।
''यह सब तुमने कहाँ पढ़ा?" अग्रवाल सर ने अपनी साँसों को संभालते हुए पूछा।
''यह तो कामनसेन्स है सर।" रामू के जवाब ने गगन और अमित के साथ अग्रवाल सर को भी सुलगा दिया।
''सर आज्ञा दें तो मैं रामू के कामनसेन्स का टेस्ट लेना चाहता हूं।" गगन अपनी सीट से उठा। अग्रवाल सर ने बिना कुछ कहे सर हिलाया।

''बताओ एक से सौ तक की संख्याओं को योग कितना होता है?" गगन ने पूछा। उसे मालूम था कि जिस फार्मूले को उसके भाई ने बताया है यह जोड़ निकालने के लिए, वह रामू को हरगिज नहीं पता होगा।
''पाँच हजार पचास!" जितनी तेजी से रामू ने जवाब दिया उससे यही लगा किसी ने उसके दिमाग में कम्प्यूटर फिट कर दिया है।
रामू यही बताकर चुप नहीं हुआ, ''मैंने यह कैलकुलेशन फार्मूले के आधार पर की है। जहां तक की संख्याओं को जोड़ना है, उससे एक आगे की संख्या लेकर उस संख्या से गुणा करो और फिर दो से भाग दे दो। रिजल्ट मिल जायेगा। वास्तव में यह समान्तर श्रेणी का एक स्पेशल केस होता है। यह श्रेणी अलजेब्रा की एक कामन श्रेणी है । अन्य प्रचलित श्रेणियां हैं गुणोत्तर, हरात्मक तथा चरघातांकी।"

उसने खामोश होकर इधर उधर देखा। सारे बच्चों के साथ अग्रवाल सर का भी मुंह भाड़ जैसा खुला हुआ था। उन्हें इसका भी एहसास नहीं था कि एक मक्खी लगातार उनके खुले मुंह से अन्दर बाहर हो रही है।
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''हैलो राम।" रामू ने घूमकर देखा, उसी के क्लास की स्टूडेन्ट नेहा उसे पुकार रही थी।
''क्या बात है नेहा?"
''आज तो तुमने सबकी बजा दी। क्या जवाब दिये।"

''शुक्रिया।" सपाट चेहरे के साथ कहा रामू ने।
''क्या बात है? आज तो तुम बदले बदले दिखाई दे रहे हो।" नेहा ने गौर से उसकी ओर देखा।
''मैं तो बिल्कुल ठीक हूँ।" गड़बड़ा कर रामू बने सम्राट ने कहा।
''चलो कैंटीन चलकर चाउमीन खाते हैं।" नेहा ने उसका हाथ पकड़ लिया।
''चलो।" दोनों कैंटीन की तरफ बढ़ गये।
उस बंदर ने एक अंगड़ायी लेकर आँखें खोल दीं, जिसके शरीर में रामू का दिमाग फिट किया गया था। दो पलों तक तो उसकी समझ में नहीं आया कि वह कहाँ है फिर उसने चारों तरफ नजर दौड़ायी। वह जिस पलंग पर लेटा था अचानक वह जोर जोर से हिलने लगा। उसने घबरा कर नीचे नजर की और उसकी जान निकल गयी। वह एक ऊँचे पेड़ की सबसे ऊँची डाल पर लेटा हुआ था।


उसने जल्दी से घबरा कर खड़ा होना चाहा किन्तु उसी समय उसका पैर फिसल गया और वह नीचे गिरने लगा। अब पल भर में जमीन से टकरा कर उसकी हडिडयाँ चूर हो जाने वाली थीं। किन्तु पता नहीं कहाँ से उसके शरीर में इतनी फुर्ती आ गयी। उसने हवा में ही पलटा खाया और एक दूसरी डाल पकड़ कर झूल गया।
उसे अपने शरीर की फुर्ती पर हैरत हुई। फिर उसकी नजर अपने हाथों पर गयी और वह एक बार फिर बुरी तरह घबरा गया। उसके हाथों सहित पूरे शरीर पर बड़े बड़े बाल उग आये थे।

''ये ये सब क्या है!" वह बड़बड़ाया। फिर उसके दिमाग में पुरानी बातें याद आती गयीं। वह तो तालाब में डूबकर खुदकुशी करने निकला था। फिर छलांग लगाने से पहले ही किसी ने उसे बेहोश कर दिया था। लेकिन अब तो उसका पूरा शरीर ही बदलकर बंदर जैसा हो गया था।
''कहीं ऐसा तो नहीं मैं वाकई मर गया हूँ। और अब ये मेरा पुनर्जन्म है। चलो अच्छा है, कम से कम बंदर बनकर गणित से तो पीछा छूटा।"

वह अंदर से एकाएक खुशी और फुर्ती से भर उठा। और एक डाल से दूसरी डाल पर छलांग मारने लगा।
किन्तु उसी समय उसकी खुशी पर ब्रेक लग गया। सामने की डाल से लिपटा हुआ विषधर ज़बान लपलपाते हुए उसकी तरफ गुस्से से घूर रहा था।
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''रोमियो, सम्राट का मैसेज आ रहा है।" सिलवासा ने स्क्रीन की तरफ ध्यान आकृष्ट किया और रोमियो के साथ बाकी साथी भी स्क्रीन की तरफ देखने लगे। फिर स्क्रीन पर धीरे धीरे सम्राट का चेहरा स्पष्ट हो गया जो दरअसल रामू का चेहरा था।
''क्या पोजीशन है?" सम्राट की आवाज उन्हें सुनाई दी।

''हम लोग तो ठीक हैं सम्राट। आगे के लिए क्या हुक्म है?" रोमियो ने पूछा।
''फिलहाल तुम लोग अपने अंतरिक्ष यान को अच्छी तरह चेक करो। आइंदा के लिए उसे तैयार रहना चाहिए। मैं इन लोगों में काफी हद तक घुल मिल गया हूँ और धीरे धीरे अपना काम शुरू कर दूंगा।"
''ठीक है सम्राट।"

''तुम लोग एलर्ट रहना। किसी भी समय मुझे तुम लोगों की जरूरत पड़ सकती है।"
''हम लोग हर वक्त तैयार हैं।"
''वैसे पृथ्वीवासियों का आई. क्यू. बहुत अच्छा नहीं है। इसलिए मुझे विश्वास है कि बहुत जल्द हम कामयाब हो जायेंगे। दैटस आल।" इसी के साथ स्क्रीन पर सम्राट का चेहरा दिखना बन्द हो गया।
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स्कूल के इनडोर स्टेडियम के एक कोने में तीनों की तिकड़ी सर जोड़े खड़ी हुई थी। तीनों में शामिल थे - गगन, अमित और सुहेल।
''ये रामू का बच्चा तो हमारे लिए सिरदर्द बन गया है। समझ में नहीं आता उसकी गणित एकाएक इतनी मजबूत कैसे हो गयी।" अमित अपना सर खुजलाते हुए बोला।

''कल तक क्लास की जो लड़कियां हमारे सामने गिड़गिड़ाया करती थीं, आज उसके आगे पीछे फिर रही हैं।"
''उसमें तुम्हारी खास गर्ल फ्रेन्ड भी है गगन। मैंने नेहा को अपनी आँखों से रामू के साथ चाउमिन खाते देखा है।" सुहैल ने खबर दी।
''अब मैं उस कमबख्त की गर्दन तोड़ दूँगा।" गुस्से में बोला गगन।

''बी कूल गगन।" अमित ने उसके कंधे पर हाथ रखा।
''उसका बाप डाक्टर है। कहीं ऐसा तो नहीं उसने अपने सुपुत्र के भेजे में आपरेशन करके मैथ के फार्मूले फिट कर दिये हों।"
''दुनिया के किसी डाक्टर में अभी इतना दम नहीं है।" अमित ने सुहेल की थ्योरी रिजेक्ट कर दी।
''अग्रवाल सर भी उससे बुरी तरह खफा हैं। एक तो वह उनसे टयूशन नहीं पढ़ता। और हम लोग जो सर के रेगुलर स्टूडेन्ट हैं, उन्हें वह नीचा दिखा रहा है।"
''हम लोगों को अग्रवाल सर से डिसकस करना चाहिए। वह जरूर रामू की गणित का कोई न कोई तोड़ निकाल लेंगे।
''तुम ठीक कहते हो अमित। चलो चलते हैं।" तीनों वहाँ से चल दिये।

..............continued

Jemsbond
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Re: मायावी दुनियाँ

Unread post by Jemsbond » 22 Dec 2014 21:24

जबकि बंदर बने रामू की जान सांसत में थी। सामने मौजूद विशालकाय साँप उसे गटकने के लिए तैयार खड़ा था। उसने बचाव बचाव कहने के लिए मुँह खोला। लेकिन मुँह से बंदरों जैसी खों खों निकल कर रह गयी।
साँप ने उसके ऊपर एक झपटटा मारा और वह जल्दी से साइड में हो गया। इस चक्कर में उसके हाथ से डाल छूट गयी। और वह धड़ाक से नीचे चला आया। लेकिन नीचे उसे जरा भी चोट नहीं आयी। क्योंकि वह किसी जानवर की पीठ पर गिरा था। अब जो उसने घूमकर जानवर का चेहरा देखा तो उसकी रूह फना हो गयी। क्योंकि वह जानवर जंगली सुअर था।

जंगली सुअर भी अचानक आयी इस आफत से घबरा गया और सरपट नाक की सीध में दौड़ लगा दी। बड़ी मुशिकल से रामू उसकी पीठ पर बैलेंस कर पा रहा था।
फिर सुअर एक झाड़ी में घुस गया और रामू को नानी याद आ गयी। क्योंकि कंटीली झाडि़यों ने उसके पूरे जिस्म को छेड़ना शुरू कर दिया था। फिर उसके हाथ में एक मजबूत पौधा आ गया और वह उसे थामकर लटक गया। सुअर आगे भागता चला गया।

''हाय हाय कहाँ फंस गया मैं। इससे अच्छा तो गणित ही पढ़ता रहता मैं।" कराहते हुए रामू सोच रहा था। फिर उसने इरादा किया शहर वापस लौटने का।
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''सुनिए, मैं आपसे कुछ ज़रूरी बात करना चाहती हूँ।" बिस्तर पर करवट लेते हुए मिसेज वर्मा ने मिस्टर वर्मा के कंधे को हिलाया।
''अब सोने दो। मुझे नींद आ रही है।" मिस्टर वर्मा ने फौरन आँखें बन्द कर लीं।
''आप तो हमेशा इधर बिस्तर पर पहुँचे और उधर अंटा गफील हो गये।" मिसेज वर्मा ने शिकायत की।
''तो क्या तुम चाहती हो मुझे नींद न आने की बीमारी हो जाये?"

''बकवास मत करिये और मेरी बात सुनिए। मुझे राम आजकल कुछ बदला बदला सा लगता है।"
''हाँ। मैं भी देख रहा हूँ। उसका रंग आजकल कुछ ज्यादा ही साँवला हो गया है।"
''मैं रंग की बात नहीं कर रही हूँ।" मिसेज वर्मा ने दाँत पीसे, ''मुझे उसके व्यवहार में कुछ बदलाव लग रहा है। हर वक्त खोया खोया सा रहता है। मुझसे आजकल किसी बात की जिद भी नहीं करता। जो कुछ कहती हूँ फौरन मान लेता है।"
''ये तो अच्छी बात है। तुम्हारी प्राब्लम साल्व हो गयी। तुम ही तो शिकायत करती थीं कि वह तुम्हारी बात नहीं सुनता।"

''पता नहीं क्यों मुझे लगता है कि उसके शरीर में कोई भूत आ गया है।"
''अब तुमने शुरू कर दीं जाहिलों वाली बातें। मुझे नींद आ रही है। मैं सोता हूँ।" दूसरे ही पल मि0 वर्मा के खर्राटे गूंजने लगे थे। मिसेज वर्मा थोड़ी देर कुछ सोचती रही फिर वह भी अण्टा गफील हो गयी।
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अग्रवाल सर के घर पर उनके चहेते शिष्य डेरा जमाये हुए थे। यानि गगन, अमित और सुहेल सभी आपस में इस तरह सर जोड़कर बैठे थे मानो किसी गंभीर सब्जेक्ट पर विचार विमर्श कर रहे हों।
''सर, समझ में नहीं आता कल का गोबर गणेश रामू एकाएक इतना तेज कैसे हो गया।" अमित बोला।
''आश्चर्य मुझे भी है। लेकिन अब उसे नीचा दिखाना ही होगा। वरना और सर चढ़ जायेगा।" अग्रवाल सर बोले।
''हाँ सर। अब तो पानी सर के ऊपर से गुजरने लगा है। अब तो वह आपको भी कुछ नहीं समझता।"
''अच्छा।" अग्रवाल सर ने पैर पटका। और तीनों ने मुस्कुराहट छुपाने के लिए अपने मुँह पर हाथ रख लिए। क्योंकि अग्रवाल सर की पैंट की जिप खुली थी। जो पैर पटकने से ज़ाहिर हो गयी थी।

''हाँ सर।" अमित जल्दी से बोला, ''कहता है अग्रवाल सर की मैथ उसके मुकाबले में कुछ नहीं।"
''ऐसा कहा उसने।" गुस्से में उनके मुँह से झाग निकलने लगा था, ''मैं उसे दिखाऊंगा कि गणित किस बला का नाम है। बच्चू को ऐसा सबक सिखाऊँगा कि मैथ का नाम लेना भूल जायेगा।"
अब तीनों लड़कों के चेहरे पर मुस्कुराहट थी। क्योंकि वे अग्रवाल सर को गुस्सा दिलाने में कामयाब हो चुके थे। अब रामू की खैर नहीं थी।
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उधर बंदर बना रामू अब शहर की सीमा में प्रवेश कर चुका था। यहाँ आकर उसने राहत की साँस ली। 'चलो जंगली जानवरों से पीछा छूटा। यहाँ पर सिर्फ कुत्तों के भौंकने की आवाज़ें आ रही थीं। अब कुत्ते तो भौंकते ही रहते हैं।'
लेकिन यह क्या? कुत्ते तो भौंकते हुए उसी की तरफ दौड़े चले आ रहे थे। उसे याद आ गया कि उसका जिस्म बंदर का है। और कुत्ते बंदरों के अव्वल दर्जे के दुश्मन होते हैं।

एक बार फिर उसे दौड़ जाना पड़ा। उसने छलांग लगाई और एक मकान का पाइप पकड़कर जल्दी जल्दी ऊपर चढ़ने लगा। थोड़ी ही देर में वह मकान की छत पर था।
अब वहाँ मौजूद पानी की टंकी पर चढ़कर वह चारों ओर नजारा कर रहा था। उसे एरिया कुछ जाना पहचाना महसूस हुआ। फिर इस घर को भी वह पहचान गया। यह तो नेहा का घर है। एक वही तो थी पूरे क्लास में जो उससे हमदर्दी रखती थी।

अब उसे थोड़ा इत्मिनान हुआ। वह नेहा को पूरी बात बतायेगा। शायद वह उसकी कुछ मदद कर सके।
रामू को किसी के आने की आहट सुनाई पड़ी। उसने झांककर देखा, नेहा गीले कपड़ों को धुप में डालने के लिए ऊपर आ रही थी।
''काम बन गया। लगता है ऊपर वाला मेरे ऊपर मेहरबान है।" उसने खुश होकर सोचा।
नेहा ऊपर आयी और फिर वहाँ लगे हुए तार पर कपड़े डालने लगी। अभी उसकी नजर बंदर उर्फ रामू पर नहीं पड़ी थी।
''हैलो नेहा! मैं रामू हूँ। प्लीज मेरी मदद करो।" रामू बोला। ये अलग बात है कि उसके मुंह से सिर्फ बंदरों वाली खों खों ही निकल पायी।

नेहा ने घूमकर देखा। और फिर जो कुछ हुआ वह रामू के लिए अप्रत्याशित था।
नेहा ने एक जोर की चीख मारी और मम्मी-बंदर मम्मी-बंदर रटती हुई सीढि़यों से नीचे भागी।
''बंदर-किधर है बंदर.. रामू भी घबरा कर इधर उधर देखने लगा। फिर उसे याद आया कि बंदर तो वह खुद ही बना बैठा है।
''तो नेहा भी मुझे पहचान नहीं पायी।" अफसोस के साथ उसने सोचा।

''किधर है बंदर! नीचे से एक दहाड़ सुनाई दी।" रामू ने घबराकर देखा। नीचे नेहा का बड़ा भाई हाथ में मोटा डंडा लिए नेहा से पूछ रहा था। रामू की रूह फना हो गई। उसने वहाँ से फौरन निकल लेना ही उचित समझा।
फिर एक लम्बी छलांग ने उसे दूसरे मकान की छत पर पहुँचा दिया। यहाँ पहुंचकर वह खुश हो गया। क्योंकि चारों तरफ मूंगफलियां बिखरी हुई थीं। दरअसल उन्हें सुखाने के लिए वहाँ रखा गया था। रामू को जोरों की भूख लग रही थी, लिहाजा उसने आव देखा न ताव और मुटठी भर भर कर मूंगफलियां चबानी शुरू कर दीं।

अभी उसने दो तीन मुटिठयां ही मुंह में डाली थीं कि कोई चीज बहुत जोरों से उसके पैर से टकराई। दर्द की एक जोरदार टीस में वह सी करके रह गया। फिर घूमकर देखा तो थोड़ी दूर पर एक लड़का खड़ा हुआ था हाथ में गुलेल लिए हुए।
''आओ बच्चू, ये गुलेल मैंने तुम लोगों के लिए ही तैयार की है।" कहते हुए लड़का गुलेल में फिर से कंकड़ी लगाने लगा।
अब रामू के पास एक बार फिर भागने के अलावा और कोई चारा नहीं था।

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