सुमन--वेद प्रकाश शर्मा

Horror stories collection. All kind of thriller stories in English and hindi.
Jemsbond
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Re: सुमन--वेद प्रकाश शर्मा

Unread post by Jemsbond » 24 Dec 2014 15:41

१३


शिवदत्त शर्मा, बी.ए.एल.एल.बी.।
जी हां...यही बोर्ड लटका हुआ था, उस कमरे के बाहर जिसमें संजय प्रविष्ट हुआ। ठीक सामने मेज के पीछे एक कुर्सी पर वकीलों के लिबास में शिव बैठा हुआ था।

औपचारिकता के बाद शिव ने कहा–‘‘कहिए, मैं आपके क्या काम आ सकता हूं?’’

‘‘आपकी काफी प्रसिद्धि सुनकर आपके पास आया हूं।’’

संजय ध्यान से उसके चेहरे को देखता हुआ बोला। ऐसा लगता था मानो वह बात कहने से पूर्व शिव की कोई परीक्षा लेनी चाहता हो।

‘‘ये तो मेरी खुशकिस्मती है, कहिए।’’
‘‘एक मर्डर केस है।’’
‘‘आप तो जानते ही होंगे कि मैं मर्डर केसों का ही विशेषज्ञ हूं।’’

‘‘जी...तभी तो आपके पास आया हूं...बात ये है कि पिछली पांच तारीख की शाम को मेरी बीवी का खून हो गया है।’’

‘‘पूरा विवरण बताइए।’’
‘‘विवरण कोई अधिक लम्बा-चौड़ा नहीं है...मेरे पुलिस लिखित बयान ये हैं कि मैं पांच तारीख की दोपहर को देहली से बाहर बिजनेस के सिलसिले में चला गया था। सुबह को जब वापस आया तो सीधा मीना यानी अपनी बीवी के कमरे की ओर बढ़ा, वहां मीना की लाश देखकर मुझ पर क्या बीती? मैं पागल-सा होकर चीख पड़ा और कुछ ही समय बाद वहां सभी एकत्रित हो गए।’’

‘‘हत्या किस चीज से की गई?’’
‘‘मीना के जिस्म में रिवॉल्वर की दो गोलियां पाई गईं।’’

‘‘जब तुम ये कह रहे हो कि दोपहर के गए हुए तुम दूसरे दिन सुबह को घर वापस आए तो तुम्हें कैसे मालूम कि खून शाम को हुआ था...क्या ये नहीं हो सकता कि तुम्हारे जाते ही अथवा रात के समय हत्यारे ने अपना काम किया हो।’’

‘‘ये मुझे पोस्टमार्टम की रिपोर्ट से पता लगा...ये पोस्टमार्टम की रिपोर्ट है कि हत्या शाम के पांच से सात बजे के बीच में किसी समय हुई है।’’

‘‘वैरी गुड...अब पूरी स्थिति बताओ क्या है?’’
‘‘जब पुलिस ने घटनास्थल की जांच की तो वहां कुछ ऐसे सुबूत मिले जिन्हें पुलिस अपराधी के समझ रही है...जैसे कि मीना की लाश की बंद मुट्ठी में किसी की कमीज का कपड़ा–लाश के पास पड़ी हुई एक सिगरेट का टुकड़ा और तीसरा सुबूत है अपराधी के जूतों के निशान।’’

‘‘जहां हत्या हुई, क्या वहां का फर्श कच्चा है?’’
‘‘नहीं।’’

‘‘तो फिर जूतों के निशान कहां और कैसे पाए गए?’’
‘‘पुलिस का ख्याल है कि हत्या से पूर्व मीना और हत्यारे के बीच कोई खींचतान हुई है जिसके कारण मेज पर रखे पीतल के गिलास में रखा दूध बिखर गया और वहां पर बिखरे दूध के ऊपर अपराधी के जूतों के निशान पाए गए।’’ संजय ने स्पष्ट किया।

‘‘क्या पुलिस ये जान चुकी है कि ये सब सुबूत किसकी ओर संकेत करते हैं?’’

‘‘जी हां–अपराधी पुलिस की हिरासत में है।’’
‘‘तो फिर तुम मेरे पास क्या लेने आए हो?’’

‘‘वकील साहब...! हत्यारा बहुत ही बदमाश है...मैं अपनी बीवी से बहुत प्रेम करता था। अतः हो सकता है कि वह किसी बड़े वकील की मदद से झूठा केस बनाकर निकल जाए, अतः आप ये केस मेरी ओर से लड़कर उस गुंडे को उसके अपराध की सख्त से सख्त सजा दिलाएं।’’ कहते हुए संजय ने नोटों का पुलिन्दा मेज पर रखकर शिव की ओर खिसका दिया।

‘‘अच्छा...जब तुम ये चाहते हो कि मैं तुम्हारा केस लडूं...तो स्पष्ट बता दो कि पुलिस को दिए गए बयान में कितना सच और कितना झूठ है?...वे बातें भी मुझे साफ-साफ बता दो जोकि तुमने पुलिस को नहीं बताई हैं और तुम्हारी जानकारी में हैं।’’ शिव ने नोटों का पुलिन्दा जेब के हवाले करते हुए कहा।

‘‘वकील साहब...मेरी जो जानकारी थी वह सब मैंने स्पष्ट पुलिस को बता दी है और सच पूछिए तो हत्यारा पकड़ा भी मेरी जानकारियों के कारण गया है। वर्ना वह तो इतना चालाक था कि हत्या करके ही इस शहर से दूर चला गया...। अब पुलिस उसे वहां से पकड़ कर लाई है।’’

‘‘जब पुलिस ने मेरे बयान में ये पूछा कि मुझे किस पर संदेह है तो मैंने गिरीश का नाम ले दिया, क्योंकि मुझे वास्तव में गिरीश पर संदेह था। आप शायद मुझे जानते नहीं हैं, मैं चरणदास जी (सुमन और मीना के पिता) का बड़ा दामाद हूं–मीना चरणदास जी की लड़की थी।’’

संजय के इन शब्दों पर शिव चौंका–उसे अभी तक पता नहीं था कि संजय ही चरणदास का दामाद है। उसे लगा जैसे संजय किसी षड्यंत्र की रचना कर रहा है।...गिरीश का नाम आते ही वह चौंक पड़ा था। लेकिन उसे तुरंत याद आया कि पांच तारीख की शाम को तो गिरीश स्वयं उसके साथ था फिर भला उसने खून कैसे कर दिया? उसे लगा जैसे गिरीश के विरुद्ध कोई गहरा षड्यंत्र रचा जा रहा है। उसने मन ही मन गिरीश की सहायता करने का प्रयास किया किंतु चेहरे से किसी प्रकार का भाव व्यक्त न करके बोला–‘‘तुमने पुलिस को क्या-क्या जानकारियां दी जिनसे गिरीश नामक हत्यारा गिरफ्तार हुआ?’’

‘‘जब पुलिस ने मेरा संदेह पूछा तो मैंने गिरीश का नाम लिया, क्योंकि मीना के परिवार से उसकी शत्रुता चल रही थी। उसने किसी तरह मीना की छोटी बहन और मेरी साली सुमन को प्रेम जाल में फंसाकर उसको लूट लिया। जब वह मां बनने वाली थी तो अपने घर ले गया लेकिन उसके बाद आज तक पता नहीं लगा कि सुमन का क्या हुआ। मैंने ये ही संभावना प्रकट की थी कि शायद इसी शत्रुता के कारण गिरीश ने मेरी अनुपस्थिति का लाभ उठाकर मीना की हत्या कर दी हो। मेरे बयान के आधार पर पुलिस गिरीश के घर पहुंची किंतु जब गिरीश के नौकर ने बताया कि गिरीश तो रात साढ़े आठ वाली गाड़ी से बाहर चला गया है...उसने बताया कि जाते समय वह बहुत जल्दी में था। नौकर के इन बयानों से संदेह गहरा हुआ–उसके बाद पुलिस ने उसके घर की तलाशी ली और उस समय गिरीश के हत्यारा होने में संदेह न रहा जब खून से सने कपड़े एक सुरक्षित स्थान पर रखे पाए गए। वहीं वह जूता भी था जिसके तले में दूध के निशान थे।...शायद ये दोनों चीजें गिरीश ने उस सुरक्षित स्थान पर छिपा दी थीं, किंतु पुलिस ने खोज ही निकालीं।...उस समय तो यह विश्वास पूरी तरह दृढ़ हो गया जब गिरीश के कमरे से उसी ब्रांड की सिगरेटों के पिछले भाग पाए गए जो लाश के पास पाया था।’’

शिव को लगा ये षड्यंत्र गिरीश के चारों ओर काफी दृढ़ता से बुना जा रहा है...इतना तो यह निश्चित रूप से जानता था कि हत्यारा गिरीश तो है नहीं क्योंकि उस शाम वह स्वयं उसके साथ था। उसके सामने ही उसे शेखर का तार मिला था और स्वयं वही उसे गाड़ी में बैठाकर आया था।...लेकिन अभी तक वह यह न समझ सका था कि संजय ने जो संदेह व्यक्त किया था वह सच्ची भावनाओं से किया था अथवा उसके पीछे उसी का कोई हाथ था।...इतना भी वह समझ गया कि एकत्रित किए गए समस्त सुबूत किसी ने जानबूझकर गिरीश को फंसाने की चाल चली है, किंतु अभी वह विश्वास के साथ यह निश्चय न कर सका कि गिरीश को फंसाने वाला संजय है अथवा कोई अन्य...? और आखिर हत्यारा गिरीश को ही क्यों फंसा रहा है...? क्या हत्यारे की गिरीश से कोई व्यक्तिगत दुश्मनी है...? खैर फिलाहाल उसने प्रश्न किया–‘‘वह कमरा तो बंद होगा, जिसमें मीना देवी का खून हुआ?’’

‘‘जी हां, उसमें पुलिस का ताला पड़ा हुआ है।’’
‘‘पांच तारीख की दोपहर को तुम बिजनेस के सिलसिले में बाहर कहां गए थे?’’

‘‘फिरोजा नगर!’’
‘‘वहां तक तो सिर्फ विमान सेवा है?’’

‘‘जी हां...! शिव चेतावनी-भरे लहजे में बोला–‘‘वकील से कभी कुछ छुपाना हानिकारक होता है। इसके अतिरिक्त तुम्हें जितनी जानकारियां हों, बता दो ताकि गिरीश को सख्त से सख्त सजा दिला सकूं।’’

‘‘इसके अतिरिक्त मेरे पास कोई जानकारी नहीं।’’
‘‘अब तुम जा सकते हो?’’ उसके बाद संजय चला गया।

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Re: सुमन--वेद प्रकाश शर्मा

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१४


शिव ने संजय से पैसे तो ले लिए किंतु जब उसने जाना कि खून के केस में एक निर्दोष व्यक्ति संयोग से फंस रहा है अथवा उसे फंसाया जा रहा है...अगर बात यहीं तक सीमित रहती तो शायद वह शांत रहता किंतु जब उसे ये ज्ञान हुआ कि फंसने वाला उसी का मित्र गिरीश है तो वह सक्रिय हो उठा।

सबसे पहले तो उसे यह पता लगाना था कि षड्यंत्रकारी कौन है?...संजय के बयानों को वह दोनों पहलुओं से सोच रहा था।

संजय के बयानों का पहला पहलू तो ये था कि वास्तव में उसकी दृष्टि में उसके बयान निष्पक्ष हों...अर्थात परिस्थितियों को देखते हुए संजय का दिल कहता हो कि खून गिरीश ने ही किया हो।

और दूसरा पहलू यह भी था कि संभव है संजय ने ही गिरीश को फंसाने के लिए एक षड्यंत्र के अंतर्गत ये बयान दिए हों...लेकिन इस स्थिति में प्रश्न ये था कि क्या संजय स्वयं मीना का खून कर सकता है...खैर सभी पहलू उसके सामने थे और वह सक्रिय हो उठा था।

सर्वप्रथम शिव हवालात में जाकर बंद गिरीश से मिला।
उससे कुछ व्यक्तिगत बातें हुईं और उसने संजय के आने का पूरा विवरण गिरीश को बताकर उससे पूछा कि संजय चरित्र का कैसा था इसके उत्तर में गिरीश ने बताया कि इस विषय में वह अधिक नहीं जानता किंतु उसने यह अनुभव अवश्य किया था कि सुमन संजय का नाम आते ही गुम-सुम हो जाया करती थी।

जिस इंस्पेक्टर के पास ये केस था उससे मिलकर शिव ने वे सभी वस्तुएं बड़े ध्यान से देखीं जो पुलिस को तलाशी में गिरीश के घर से मिली थीं। उन वस्तुओं का उसने अपने ढंग से प्रयोगशाला में परीक्षण भी कराया। उसने कई अन्य महत्वपूर्ण कार्य भी किए।

अदालत का पहला दिन।
वकील सिर्फ शिव ही था–संजय की ओर से भी और गिरीश को तो उसने आश्वासन दिया ही था कि वह जानता है कि यह निर्दोष है, अतः उसे मुक्त कराकर ही दम लेगा।

अदालत में पहले दिन शिव अधिक कुछ नहीं बोला, सिर्फ अदालत से ये मांग की कि वह उस कमरे का निरीक्षण करना चाहता है जिसमें मीना देवी का खून हुआ।

अदालत ने उसे ये परमीशन देकर अगली तारीख लगा दी।

अगले दिन–
जब वह उस कमरे में पहुंचा तो उसने प्रत्येक वस्तु को भली-भांति परखा...जहां दूध बिखरा हुआ था उस स्थान पर बहुत देर तक उसकी निगाह जमी रही...पीतल का गिलास अभी तक उसी स्थन पर पड़ा था। उसने अपने ढंग से पीतल के गिलास और दूध बिखरे वाले भाग के फोटो लिए। कमरा काफी बड़ा था।

उसने बड़े ध्यान से कमरे का निरीक्षण किया और अपने ढंग से फोटो आदि लेता रहा। उस समय उसके साथ सिर्फ एक इंस्पेक्टर था जो आश्चर्य के साथ उसके कार्यों को देख रहा था।

अचानक एक सोफे के पीछे से उसे कोई वस्तु पाई जिसे उसने बड़ी सफाई से जेब में खिसका लिया।

इंस्पेक्टर को इस बात का लेशमात्र भी अहसास न हो सका। पूर्णतया निरीक्षण के बाद वह कमरे से बाहर आ गया।

उसके बाद...।
उसने समस्त फोटुओं के निगेटिव देखे...सोफे के पीछे पाई गई वस्तु के आधार पर कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण जानकारियां एकत्रित कीं।...रात के अंधेरे में उसे चोर भी बनना पड़ा। खैर अभिप्राय ये है कि अधिक परिश्रम करके उसने कुछ ऐसे सुबूत एकत्रित किए जिनसे वह अदालत में गिरीश को निर्दोष साबित कर सके।

उसके बाद...अदालत की तारीख वाले दिन...।
अदालत के अपराधी वाले बॉक्स में गिरीश सिर झुकाए इस प्रकार खड़ा था मानो वास्तव में हत्यारा वही हो और अब भेद स्पष्ट हो जाने पर पश्चाताप की ज्वाला में जल रहा हो।
अदालत वाला कमरा भीड़ से भरा हुआ था, सबसे अग्रिम सीटों पर मीना के माता-पिता और संजय बैठा था।...भीड़ में एक सीट पर शेखर भी उपस्थित था।

अपने माता-पिता से तो गिरीश आंख मिलाने का साहस ही न कर पा रहा था।

उसकी बहन अनीता की शादी हो चुकी थी, वह पति के घर थी। अतः अदालत में उपस्थित न थी।

शिव अब भी संजय के पास बैठा केस के पहलुओं पर विचार-विमर्श कर रहा था। तब जबकि न्याय की कुर्सी के ऊपर लगे घंटे ने दस घंटे बजाए...न्यायाधीश महोदय शीघ्रता से आकर न्याय की कुर्सी पर बैठ गए।

उपस्थित खड़े व्यक्तियों ने उनका अभिवादन किया।
‘‘कार्यवागी शुरू की जाए।’’ न्यायाधीश महोदय ने इजाजत दी।

शिव अपने स्थान से खड़ा हो गया और बोला–‘‘सबसे पहले मैं अदालत से अपील करूंगा कि मिस्टर संजय को बयानों के लिए खड़ा किया जाए।’’

संजय उठा और बॉक्स में जाकर खड़ा हो गया और उसने अपने वे सभी बयान दोहरा दिए जो उसने पुलिस को दिए थे।

उसके बयानों की समाप्ति पर शिव बोला–‘‘तो आपका मतलब ये है मिस्टर संजय कि आप खून के समय फिरोज नगर में थे?’’

‘‘जी हां!’’
‘‘क्या आप बता सकते हैं कि आपने अपना संदेह मिस्टर गिरीश पर ही क्यों किया?’’

‘‘सुमन के कारण हुई पारिवारिक शत्रुता के कारण।’’
‘‘अब आप जा सकते हैं।’’

उसके बाद संजय की कोठी पर कार्य करने वाले एक नौकर से शिव ने प्रश्न किया–‘‘जिस समय हत्या हुई–क्या तुम उस समय कोठी में थे?’’

‘‘जी हां...मैं अपनी कोठरी में था, किंतु मैं ये न जान सका कि हत्या हो गई है।’’

‘‘मतलब ये कि तुमने किसी धमाके इत्यादि की आवाज नहीं सुनी।’’
‘‘जी, बिल्कुल नहीं।’’

‘‘साफ जाहिर है योर ऑनर कि हत्या साइलेंसरयुक्त रिवॉल्वर से की गई है...।’’ शिव न्यायाधीश महोदय से संबोधित होकर बोला–‘‘लेकिन रिवॉल्वर कहां है...अभी तक कोई यह न जान सका।’’

‘‘तुम कहना क्या चाहते हो?’’
‘‘मैं ये कहना चाहता हूं कि बॉक्स में खड़ा ये (गिरीश) अपराधी निर्दोष है...इसके चारों ओर एक षड्यंत्र बुना गया...वह षड्यंत्र जो पैसे के बल पर बुना गया है।...ये आदमी जिस पर हत्या का झूठा इल्जाम लगाया जा रहा है, हत्या वाले समय स्वयं मेरे साथ था।’’

‘‘तुम्हारा मतलब हमारी समझ में नहीं आया–हमने सुना था कि तुम मिस्टर संजय के वकील हो लेकिन बोल बिल्कुल उल्टे रहे हो।’’

शिव के इस प्रकार उल्टा बोलने से संजय भी चौंका था।
‘‘नहीं योर ऑनर...मैं संजय का वकील नहीं बल्कि मिस्टर गिरीश का वकील हूं...मैंने मिस्टर संजय से फीस अवश्य ली थी किंतु जब कुछ सत्य तथ्य मेरे सामने आए तो मैंने अदालत के सामने वास्तवकिता रखने का निश्चय किया और अब मैं मिस्टर संजय के नोटों का यह पुलिन्दा बाइज्जत उन्हें वापस करता हूं।’’

संजय क्रोध से कांपने लगा। फिर संजय की मांग पर उस दिन भी अदालत की तारीख लग गई। अगली तारीख पर संजय की ओर से शहर के एक अन्य बड़े वकील थे।...उस दिन शिव ने अपने तथ्य कुछ इस प्रकार चीख-चीखकर रखे–

‘‘योर ऑनर! हकीकत ये है कि इस केस की छानबीन अधूरी है–पूरे तथ्यों को बारीकी से नहीं परखा गया है।’’

अब बारी संजय की ओर के बड़े वकील साहब की थी। बोले–‘‘मेरे दोस्त मिस्टर शिव खामखाह इस केस को उलझाने की कोशिश कर रहे हैं। केस का हर पहलू शीशे की भांति साफ है–सारे सुबूत मुजरिम के घर में मौजूद थे।’’

‘‘नहीं योर ऑनर, नहीं।’’ शिव चीखा–‘‘बस, यहीं पर मेरे फाजिल दोस्त गलती कर रहे हैं–वे बार-बार क्यों भूल जाते हैं कि वह रिवॉल्वर अभी तक सामने नहीं आया जिससे खून किया गया–आखिर कहां गया वह रिवॉल्वर?’’

‘‘योर ऑनर–वह रिवॉल्वर बिना लाइसैंस का था, मुजरिम गिरीश उसे किसी भी ऐसे स्थान पर छुपा सकते हैं जहां से वह पुलिस के हाथ न लगे।’’

‘‘कितनी बचकाना बात कही है मेरे फाजिल दोस्त ने...मिस्टर गिरीश रिवॉल्वर को तो ऐसे स्थान पर छुपा सकते हैं जहां वह पुलिस के हाथ न लगे किंतु जूते और कपड़े इत्यादि को ऐसी जगह छुपाएंगे जहां से वे पुलिस को प्राप्त हो जाए।’’

‘‘योर ऑनर–।’’ विरोधी वकील बोला–‘‘वकीले मुजरिम बेकार में छोटी-मोटी बातों को तथ्य बनाना चाहते हैं–यह तो एक संयोग है कि पुलिस को कपड़े और जूते मिल गए और रिवॉल्वर नहीं मिला।’’

‘‘नहीं योर ऑनर–ये संयोग नहीं है, एक सोचा-समझा षड्यंत्र है जिसमें पुलिस भी आ गई और मेरे फाजिल दोस्त भी चकरा गए। अब मैं कुछ ऐसे तथ्य सामने ला रहा हूं जिनसे साबित हो जाएगा कि वही सुबूत यानी गिरीश की कमीज, जूता और सिगरेट इत्यादि जो अभी तक गिरीश को अपराधी साबित कर रहे हैं–ये ही सुबूत अब चीख-चीखकर कहेंगे कि हत्यारा गिरीश नहीं बल्कि वह एक षड्यंत्र का शिकार है–ये सब गिरीश को फंसाने के लिए एकत्रित किए गए हैं।’’

‘‘मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि मिस्टर शिव आखिर कहना क्या चाहते हैं?’’

‘‘मैं एक बार फिर यही कहना चाहता हूं योर ऑनर कि वास्तव में इस केस के किसी पहलू को बारीकी से नहीं देखा गया है–मसलन–ये वे कमीज है जो पुलिस ने गिरीश के घर से प्राप्त की है।’’ शिव ने वह कमीज अदालत को दिखाते हुए कहा–‘‘इस पर लगे खून के निशान, जो निसंदेह मीना के खून के हैं और कमीज का ये फटा भाग मीना की लाश की मुट्ठी में पाया गया है...साबित करते हैं कि हत्या गिरीश ने ही की है लेकिन अगर बारीकी से देखा जाए तो ये सुबूत उल्टी बात कहने लगते हैं।...अब अदालत जरा बारीकी से मेरे तथ्यों पर ध्यान दें।’’ शिव आगे बोला–‘‘सबसे पहले ये देखें कि खून रिवॉल्वर से किया गया है तो किसी भी सूरत में खून के दाग इस ढंग से कमीज पर नहीं लग सकते। इससे भी अधिक बारीक सुबूत ये है कि फिंगर प्रिंट्स विभाग कि रिपोर्ट के अनुसार ये कमीज धुली हुई है...अर्थात धुलने के पश्चात् इसे एक मिनट के लिए पहना नहीं गया है...और अगर पहना नहीं गया है तो इस पर खून के निशान कहां से आ गए। साफ जाहिर है योर ऑनर कि षड्यंत्रकारी ने यह कमीज स्वयं गिरीश के घर से चुराकर खून से रंगकर गिरीश की कोठी में छुपा दी।’’ कहते हुए शिव ने फिंगर प्रिंट्स विभाग की रिपोर्ट के साथ–जिसमें साफ लिखा था कि कमीज धुली है और पहनी नहीं गई है, जज महोदय तक पहुंचा दी।

जज ने स्वीकार किया कि वास्तव में ये कमीज कहने लगी है कि अपराधी गिरीश नहीं है। तभी विरोधी वकील चीखा–‘‘मेरे फाजिल दोस्त शायद जूते को भूल गए...क्या वे भूल गए कि दूध के ऊपर मिस्टर गिरीश के जूतों के निशान थे।’’

‘‘याद है योर ऑनर...वे जूते भी याद हैं।’’ शिव चीखा–‘‘सबसे पहले आप उस स्थान के फोटो के निगेटिव को देखिए जहां दूध बिखरा हुआ था। ध्यान से देखने पर आप जानेंगे कि दूध पर बना जूते का निशान कितना हल्का है...अर्थात मैं ये कहना चाहता हूं कि ये निशान उस समय नहीं बना जब जूता किसी के पैर में हो...अगर जूता पैर में होता तो उस पर एक व्यक्ति का सारा भार होता और निशान कुछ गहरा बनता जबकि निशान सिर्फ हल्का-सा है...साफ जाहिर है कि जूता बाद में ले जाकर बिखरे दूध पर निशान बना दिया गया। इससे भी अधिक मेरा दूसरा तर्क है...वह है फिंगर प्रिंट्स विभाग की रिपोर्ट...रिपोर्ट में साफ लिखा है योर ऑनर कि जूता पिछले लम्बे समय में पहना ही नहीं जा रहा है।...कारण है कि गिरीश का नया जूता खरीद लेना...ये जूता एक प्रकार से उनके लिए बेकार था...जो जूता वे उन दिनों पहनते थे उसे पहनकर तो मिस्टर गिरीश अपने दोस्त शेखर की शादी में चले गए थे।’’ कहते हुए शिव ने रिपोर्ट के साथ वह तार भी, जो शेखर ने गिरीश को लिखा था, न्यायधीश महोदय तक पहुंचा दिया–‘‘रही सिगरेट की बात...उसके विषय में कहने के लिए कोई बात रह ही नहीं गई है क्योंकि षड्यंत्रकारी इतने सुबूत बना सकता है उसके लिए ये कठिन नहीं है कि वह गिरीश वाले ब्रांड की सिगरेट लाश के पास डाल दे।’’ शिव ने अन्तिम सुबूत भी फाका कर दिया।

अदालत सन्न रह गई...गिरीश की आंखों में चमक उभर आई, संजय की आंखों में क्रोध और चिंता के भाव थे।

विरोधी वकील की जबान में ताला लटक गया।
‘‘मिस्टर शिव!’’ एकाएक न्यायाधीश महोदय बोले–‘‘वास्तव में तुम्हारे तथ्य और तर्क काफी बारीक हैं...ये तो तुमने साबित कर दिया कि मिस्टर गिरीश सिर्फ षड्यंत्र के शिकार हैं किंतु क्या बता सकते हो कि ये षड्यंत्र किसका है और वास्तविक हत्यारा कौन है?’’

‘‘योर ऑनर, अब मैं हत्यारे को ही अदालत के सामने ला रहा हूं।’’ शिव ने कहना आरम्भ किया–‘‘मैं बात को अधिक लम्बी न कहकर स्पष्ट करता हूं कि हत्यारे मिस्टर संजय हैं।’’

उसके इन शब्दों के साथ अदालत कक्ष में अजीब-सा शोर उत्पन्न हो गया–संजय खड़ा होकर एकदम विरोध में चीखने लगा। विरोधी वकील ने केस को समझने के लिए समय की मांग की...उसकी मांग स्वीकार किए जाने पर शिव ने तुरंत अदालत से संजय को हिरासत में रखने की अपील की।

‘‘उसकी अपील भी अदालत ने स्वीकार कर ली।

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Re: सुमन--वेद प्रकाश शर्मा

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१५


अदालत की अगली तारीख वाले दिन–
‘‘ये वो रिवॉल्वर है योर ऑनर जिससे मीना देवी का खून किया गया।’’ एक रिवॉल्वर ऊपर उठाए शिव चीख रहा था।

अदालत में गहन सन्नाटा था।
शिव फिर चीखा–‘‘जो गोलियां मीना देवी के जिस्म में पाई गईं ये क्योंकि थ्री बोर की हैं। अतः चीख-चीखकर कह रही हैं कि उन्हें चलाने वाला रिवॉल्वर यही है क्योंकि ये गोलियां अन्य रिवॉल्वर से नहीं चलाई जा सकतीं।’’

‘‘मेरे फाजिल दोस्त का ये तर्क कुछ खोखला-सा लगता है। ये कैसे मान लिया जाए कि गोलियां इसी रिवॉल्वर से चलाई गई, ये ठीक है कि ये गोलियां विशेष रिवॉल्वर से चलती हैं किंतु क्या ऐसा नहीं हो सकता कि सिर्फ एक ही रिवॉल्वर हो और फिर दूसरा प्रश्न ये भी है कि मेरे फाजिल दोस्त आखिर ये रिवॉल्वर ले कहां से आए?’’

‘‘सबसे पहले मैं अदालत को ये बता दूं कि ये रिवॉल्वर मिस्टर संजय की कोठी की सुरक्षित सेफ में रखा हुआ था जिसे चोर बनकर ‘मास्टर की’ द्वारा प्राप्त किया।’’

‘‘ये झूठ है...।’’ एकाएक संजय चीख पड़ा–‘‘ये न जाने कहां से रिवॉल्वर उठा लाए और मुझे षड्यंत्र का शिकार बनाया जा रहा है...इस रिवॉल्वर का मेरे घर में होने का कोई प्रश्न ही नहीं।’’

‘‘प्रश्न है मिस्टर संजय...और मेरे पास प्रमाण भी है...।’’ शिव फिर चीखकर बोला–‘‘हत्यारे ने हत्या कुछ इस तसल्ली और शांति के साथ की कि अपनी ओर से कोई चिन्ह न छोड़ा गया...मसलन हत्यारे ने सारे काम चमड़े के दस्ताने पहनकर किए...। अदालत को याद होगा कि पीतल के उस गिलास पर जिससे दूध था किन्हीं विशेष दस्तानों के चिन्ह थे...ये ही चिन्ह हत्या वाले कमरे में अन्य स्थानों पर पाए हुए हैं जिसमें से हत्यारे ने गिरीश को फंसाने के लिए उसकी धुली हुई कमीज निकाली थी...और अंत में अब मैं यह कहूंगा कि इस रिवॉल्वर पर भी वे ही चिन्ह हैं...दस्ताने क्योंकि चमड़े के विशेष दस्ताने थे इसलिए अगर वे दस्ताने सामने आ जाएं तो स्पष्ट हो जाएगा कि हत्यारा कौन है?’’

‘‘लेकिन मिस्टर शिव, ये किस आधार पर कह रहे हैं कि हत्यारे मिस्टर संजय हैं।’’

‘‘सबसे पहला सुबूत ये कि मिस्टर संजय अपने बयान के अनुसार फिरोज नगर गए ही नहीं...। उसके इस कथन की पुष्टि विमान सेवा के अधिकारी ने की जिसके पास ये रिकार्ड रहता था कि कौन से विमान में कौन-कौन से यात्री थे। शिव आगे बोला–‘‘दूसरा सुबूत ये झुमका जो मुझे हत्या वाले कमरे के सोफे के पास से मिला था, इस झुमके पर शहर की मशहूर तवायफ का नाम लिखा है...इससे साफ जाहिर है कि हत्या से पूर्व वह वहां था।’’

यह एक नया रहस्योद्घाटन था...अदालत में मौत जैसी शांति थी।

उसके बाद शिव ने उस तवायफ को पेश किया, उसने स्पष्ट बताया कि उस दिन संजय के उसी कमरे में (जिसमें हत्या हुई) मुजरा हो रहा था। इस बात से उसकी बीवी नाराज थी। उनका झगड़ा हुआ। इस झगड़े के बीच में ही मैं चली आई लेकिन ये झगड़ा इतना गंभीर रूप ले लेगा ये मैं नहीं जानती थी।’’

‘‘अदालत कोई ठोस सुबूत चाहती थी। योर ऑनर...ये बयान झूठे भी हो सकते है।

‘‘मेरे पास एक अन्य ठोस सुबूत ये है।’’ कहते हुए शिव ने वे दस्ताने हवा में लहरा दिए–‘‘ये वही दस्ताने हैं योर ऑनर जो खूनी ने सारी वारदातों में पहन रखे थे...अदालत में मैं ये स्पष्ट कर दूं कि इन दस्तानों के अंदर...यानि जहां हाथ दिया जाता है...फिंगर प्रिंट्स विभाग की रिपोर्ट के अनुसार दस्ताने के अंदर पाए जाने वाले निशान मिस्टर संजय के हैं।’’

कुछ और सख्त बहस के बाद ये सिद्ध हो गया कि हत्यारा संजय ही था। तब न्यायधीश बोले–‘‘समस्त प्रमाणों और गवाहों तथा वकीलों की बहस से अदालत इस नतीजे पर पहुंची कि हत्या मिस्टर संजय ने ही की। अतः हत्या और फैलाए गए षड्यंत्र के अपराध के दंड में...।’’

‘‘ठहरों...!’’ एकाएक दरवाजे से एक आवाज आई सबकी गर्दनें एकदम दरवाजे की ओर घूम गईं।

गिरीश की आंखों में जैसे एकदम शोले उबल पड़े। दरवाजे पर शेखर और सुमन थे...सुमन को सामने देखकर उसके माता-पिता और संजय ने उसकी ओर जाना चाहा किंतु न्यायाधीश ने आर्डर...आर्डर...कहकर उनके इरादों पर पानी फेर दिया।...गिरीश को लगा जैसे ये नागिन अभी कुछ और जहर घोलेगी।

वह आगे बढ़ती हुई बोली–‘‘ठहरिए जज साहब...ठहरिए। ये इस दंड के काबिल नहीं है।’’

सारी अदालत सन्न रह गई...क्या कोई अन्य रहस्य सामने आ रहा है...? क्या हत्यारा संजय भी नहीं है।

‘‘अगर तुम कुछ कहना चाहती हो तो बॉक्स में आकर बोलो।’’ तभी जज साहब बोले।

सुमन का चेहरा सख्त, संगमरमर की भांति सपाट था। वह धीरे-धीरे चलती हुई बॉक्स में पहुंची और सबसे पहला प्रश्न उसने संजय से किया–‘‘मैं आपकी क्या लगती हूं?’’

‘‘छोटी साली।’’ संजय का चेहरा पीला पड़ चुका था।
‘‘छोटी साली का दूसरा रिश्ता?’’
‘‘छोटी बहन...।’’

‘‘नही...ऽ...ऽ...।’’ सुमन इस शक्ति के साथ चीखी कि अदालत का कमरा जैसे कांप गया। वहां बैठे लोग तो उसके इस कदर चीखने पर भयभीत हो गए।...सुमन चीखी–‘‘बहन और भाई के पवित्र रिश्ते को बदनाम मत करो...बहन के रिश्ते पर कीचड़ मत उछालो...आज तुमने इस भरी अदालत में अपनी साली को अपनी बहन क्यों कहा...? जो शब्द मुझसे अकेले में कहा करते थे वह क्यों नहीं कहा?’’

संजय का चेहरा हल्दी की भांति पीला पड़ चुका था।...सारी अदालत में गहरा सन्नाटा था।

जज साहब फिर बोले–‘‘तुम कहना क्या चाहती हो?’’
‘‘जज साहब...आज जो कुछ मैं कहना चाहती हूं...उससे ये समाज...कांप जाएगा ये दुनिया कांप जाएगी। आज मैं वे शब्द कह दूंगी जिसे कोई भी लड़की कह नहीं पाती...जज साहब...सामने खड़े हुए मिस्टर संजय मेरे जीजा हैं...वे जीजा जो छोटी साली से ये कहा करते थे–‘साली आधी पत्नी होती है।’ नहीं जज साहब, ये कहानी सिर्फ मेरी और संजय की नहीं है...ये आज के अधिकांश समाज की कहानी है...नब्बे प्रतिशत जीजा और सालियों की कहानी है।...जज साहब, मुझ जैसी भोली-भाली साली जीजा के मन के पाप को क्या जाने? मैं तो अपने जीजा से प्यार करती थी...बिल्कुल खुलकर मजाक करती थी...वे सभी ऊपरी मजाक जो एक जीजा से किए जा सकते हैं...किंतु मेरे जीजा ने मेरे प्यार को...मेरे मजाक को...एक गंदा रूप दे दिया। मुझे आधी ही नहीं बल्कि पूरी पत्नी बना लिया।’’

संजय ने सिर झुका लिया...शर्म से वह जमीन में गड़ा जा रहा था।

‘‘जज साहब...अब मैं इस अदालत को इस पापी की कहानी बताने जा रही हूं।’’ सुमन ने आगे कहा–‘‘बात ये है जज साहब–आज से लगभग एक-डेढ़ वर्ष पूर्व मैं मिस्टर गिरीश से प्यार करती थी। एक ऐसा पवित्र प्यार जज साहब जिसकी आज के जमाने में कल्पना भी कंठ से नीचे नहीं उतरती। मेरा ये प्रेम तो था एक तरफ...किंतु दूसरी ओर मेरे दिल में एक ऐसी पीड़ा थी जो मुझे कचोट रही थी किंतु मैं किसी पर भी वह दुख प्रकट नहीं कर सकती थी...सच जज साहब, मैं अपनी उस कसक को अपने देवता गिरीश को भी नहीं बता सकती थी।...मैं अत्यंत संक्षिप्त रूप में उन घटनाओं को अदालत के सामने रख रही हूं जो मेरे जीवन में जहर घोल रही थीं और आगे चलकर घोल ही दिया।...जज साहब, मेरी बड़ी बहन के पति मिस्टर संजय क्योंकि मेरे जीजाजी थे अतः प्रत्येक साली की भांति मैं अपने जीजा से बहुत अधिक प्यार करती थी।...मैं सच कह रही हूं जज साहब...मैं उन्हें बहुत चाहती थी।...उनके प्रत्येक मजाक खुलकर किया करती थी...घर की तरफ से भी हमें पूरी आजादी थी...आखिर मिस्टर संजय मेरे जीजाजी जो ठहरे...मेरी बहन मीना को भी कोई संदेह न था...संदेह तो मुझे भी कोई नहीं था जज साहब, मैं तो वास्तव में उनसे इस प्रकार खुल गई थी जैसे भाई बहन...लेकिन जज साहब मेरे प्यारे जीजाजी के दिल में कुछ और ही था।...वे जब भी मेरे पास अकेले में होते तो कुछ विचित्र-विचित्र-सी बातें करते...कुछ विशेष अंदाज में मुझे देखते...जब कहीं भी ये अकेले मेरे पास होते तो मैं अपने प्रति इनके संबोधन, बर्ताव, दृष्टि इत्यादि सभी बातों में भिन्नता पाती।...ये अकेले में मुझसे कहते कि साली तो आधी पत्नी होती है...इन्होंने कई बार ये भी समझाने का प्रयास किया कि प्यार करना है तो घर ही में मुझसे कर लो, अगर कहीं बाहर करोगी तो बदनामी होगी।...घर में तो किसी को पता भी न लगेगा। इतनी-गंदी-गंदी बातें ये मुझसे करते...मुझे क्रोध आता किंतु चुप रह जाती। आखिर मैं करती भी क्या? किसी से कहती भी क्या...? एक लम्बे समय तक ये मुझ पर जाल फेंके प्रतीक्षा करते रहे कि शायद मैं स्वयं जाल में फंस जाऊं लेकिन जज साहब, मैं प्रत्येक बार स्वयं को बचाती रही।...मुझे तो बताते हुए शर्म आती है योर ऑनर, लेकिन आज मैं सब स्पष्ट कहूंगी ताकि मेरी कहानी जानकर अन्य कोई लड़की अपने जीजा के जाल में न फंस सके...उन जीजाओं के जाल में जो सालियों को आधी पत्नी कहते हैं...जिनकी नजर में सत्यता नहीं गंदी वासनाएं हैं...जिन्होंने इस पवित्र रिश्ते को गंदा रिश्ता बना दिया है।...हां मैं कह रही थी कि कभी-कभी ये अकेले में मेरे गुप्तांगो को किसी बहाने से स्पर्श करके मुझे उत्तेजित करने का प्रयास किया करते थे लेकिन मैं ये नहीं कहती कि प्रत्येक साली मेरी ही तरह है...मैं ये भी मानती हूं कि शायद कुछ सालियां भी ऐसी हों जो जीजाओं को आधा पति समझती हों लेकिन जज साहब मैंने कभी ऐसा सोचा भी नहीं...मैं अपने आपको संजय से बचाती रही। किंतु उस रात...उफ...। मैं कैसे बयान करूं अपने जीजा की राक्षसी हवस की उस कहानी को?...हां तो जज साहब एक रात को जब सब सो रहे थे...सो मैं भी रही थी कि एकाएक चौंकी–मेरे बिस्तर पर मेरे जीजा थे मैं कांपकर रह गई। इससे पूर्व कि मेरे मुख से कोई चीख निकले इन्होंने मेरे मुंह पर हाथ रख दिया। मैं छटपटाई किंतु उस समय तो ये मानो आदमी न होकर राक्षस थे...मैंने शोर मचाना चाहा किंतु समझ में नहीं आया कि मैं क्या कहूं...क्या कहकर शोर मचाऊं...और जज साहब...उस रात गिरीश की देवी अपवित्र हो गई।...संजय की राक्षसी हवस समाप्त हो चुकी थी।...मैं बिस्तर पर पड़ी फूट-फूटकर रो रही थी कि संजय मुझे ये धौंस देकर चला गया कि अगर मैंने किसी से कहा तो मेरी बड़ी बहन मीना की जिन्दगी बरबाद हो जाएगी।...मेरे दिमाग में भी ये बात बैठ गई, अपनी बहन को बर्बादी से बचाने के लिए मैंने अपना मुंह बंद ही रखा।...मैं ये जानती थी कि अगर मीना दीदी ये जानेंगी तो वे अपने पति से घृणा करने लगेंगी...। सभी कुछ नष्ट-भ्रष्ट हो जाता। अतः जज साहब मैं उस टीस को अंदर ही अंदर सहती रही।...जब भी मेरे सामने कोई संजय का नाम लेता मेरी विचित्र-सी हालत हो जाती।...मेरी जीभ तलवों से चिपककर रह जाती...कुछ बोल भी नहीं पाती थी मैं।

मैं नहीं जानती थी जज साहब कि उस रात का पाप इस तरह मेरे पेट में पल रहा है।...जब पार्टी में यह रहस्य खुला तो मैं भी स्तब्ध रह गई। अगर मैं वहां भी संजय का नाम लेती तो हमारा परिवार समाप्त हो जाता लेकिन मेरे देवता गिरीश ने मेरा कलंक अपने माथे ले लिया।...शायद ही कोई इतना सच्चा प्यार कर सके। गिरीश मुझे अपने घर में रखना चाहता था लेकिन नहीं जज साहब...मैं अब स्वयं को इस देवता के काबिल नहीं समझती थी...राक्षस के पैरों तले मसली गई कली भला देवता के गले का हार कैसे बनती। अतः मैंने निर्णय किया कि मैं गिरीश के जीवन से निकल जाऊंगी किंतु मैं जानती थी कि गिरीश मुझसे कितना प्यार करता है अतः मैंने उसके दिल में अपने प्रति नफरत भरने के लिए एक ऐसा गंदा और झूठा पत्र लिखा जिसे पढ़कर गिरीश मुझे बेवफा...नागिन, हवस की पुजारिन जानकर अपने दिल से निकाल फेंके।...उस पत्र को लिखते समय मेरे दिल पर क्या बीती? ये शायद गिरीश ने भी नहीं सोचा था। उस पत्र का एक-एक शब्द झूठा था। जज साहब उस पत्र में मैंने एक कल्पित प्रेमी बनाया था ताकि गिरीश ये समझे कि वास्तव में मैं हवस की पुजारिन थी...अब मैं जीवित रहना नहीं चाहती थी जज साहब...अतः आत्महत्या करने नदी पर पहुंच गई, मैं नदीं में कूद गई किंतु जब होश आया तो ये भी मेरा सौभाग्य था कि मैंने स्वयं को एक अस्पताल में पाया और वहां भी गिरीश उपस्थित था।...मिस्टर शेखर कहते हैं कि जब मैं नदी में कूदकर बेहोश होने के बाद होश में आई तो स्वयं को भूल चुकी थी और वह जीवन मैंने मोनेका बनकर गुजारा लेकिन एक अन्य दुर्घटना में मेरी याददास्त फिर लौट आई और मैं स्वयं को सुमन बताने लगी।...लेकिन मुझे मोनेका वाले जीवन की कोई घटना याद नहीं है।’’

सुमन के लम्बे चौड़े बयान समाप्त हुए तो अदालत में मौत जैसा सन्नाटा था। सभी दिल थामे उसकी दर्द भरी कहानी सुन रहे थे।...गिरीश तो सुमन को देखता ही रह गया। उसे लगा जैसे सुमन ‘देवी’ से भी बढ़कर है।...उसने अब तक जो सुमन को बुरा-भला कहा है उससे वह बहुत बड़ा पाप हो गया है।...उसे लगा जैसे वह सुमन के सामने बहुत तुच्छ है।...उसने स्वयं को ही ‘बदनसीब’ समझा था, लेकिन आज उसे मालूम हुआ कि सुमन भी उससे कम बदनसीब नहीं है।

सुमन सांस लेने के लिए रुकी थी, वह फिर आगे बोली–‘‘जब मुझे मिस्टर शेखर ने ये बताया कि मेरी बहन का हत्यारा संजय ही है तो मेरी भावनाएं चीख उठीं–मैं स्वयं को संभाल न सकी–अब तो मेरी बहन भी नहीं रही थी, जिसके कारण मैंने उस आवाज–उस राज को अपने सीने में दफन किए रखा था। अतः आज आकर मैंने इस समाज को बता दिया है कि जीजा और साली के रिश्ते को जो एक प्रकार से भाई-बहन का रिश्ता है–कुछ गंदे लोगों ने कितना गंदा और घिनौना बना दिया है–मैं इस समाज–इस दुनिया से–इन नौजवानों से अपील करती हूं कि आगे से समाज में कोई भी ऐसी कहानी जन्म न ले–गंदे लोग इस पवित्र रिश्ते को घिनौना न बनाएं ताकि कोई भी साली अपने जीजा से सिर्फ प्यार करे–उससे डरे नहीं–उससे घृणा न करे–वर्ना–वर्ना अगर ये रिश्ता इसी तरह गर्त में गिरता रहा तो ना कोई जीजा होगा–ना कोई साली–ना ये समाज होगा–ना ये दुनिया–कोई साली अपने जीजा से प्यार नहीं करेगी–जीजा जीजा नहीं रहेगा...नहीं–नहीं समाज से इस पाप को दूर करो–समाज से इस कलंक को निकाल फेंको–निकाल फेंको।’’ कहते-कहते सुमन रोने लगी–और अपने बॉक्स में बैठती चली गई।

अदालत में उपस्थित प्रत्येक इंसान के आंसू उमड़ आए।
उसके बाद–
संजय को उम्र कैद की सजा मिली।

गिरीश जब सुमन के करीब पहुंचा तो सुमन उसके कदमों में गिरकर सिसकने लगी–गिरीश की आंखों में भी मानो बाढ़ आ गई थी। प्रत्येक आंख में नीर था।

गिरीश ने सुमन को चरणों से उठाकर सीने से लगा लिया। सुमन ने अपना मुखड़ा उसके सीने में छुपा लिया और फूट-फूटकर रोने लगी। गिरीश प्यार से उसके सिर पर हाथ फेर रहा था।
।। समाप्त ।।

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