सुमन--वेद प्रकाश शर्मा

Horror stories collection. All kind of thriller stories in English and hindi.
Jemsbond
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Re: सुमन--वेद प्रकाश शर्मा

Unread post by Jemsbond » 24 Dec 2014 15:37




सात अप्रैल का प्रभात होते-होते गिरीश अपने दोस्त शेखर के पते पर पहुंच गया। वहां जाकर उसने देखा कि शेखर अच्छी-खासी एक कोठी में रहता है। अर्थात आर्थिक दृष्टि से वह प्रगति कर चुका था।

उस समय वह कोठी के बाहर खड़े दरबान से शेखर के विषय में बात कर रहा था कि उसकी निगाह लॉन में पड़ी हुई कुछ कुर्सियों पर गई। वहां कुछ स्त्री-पुरुष शायद प्रभात की धूप का आनन्द उठा रहे थे। उन्हीं में ही शेखर भी बैठा था किंतु शेखर का ध्यान अभी तक उसकी ओर आकर्षित नहीं हुआ था।

दरबान ने लॉन की ओर संकेत कर दिया, गिरीश मुस्कराकर लॉन की ओर बढ़ गया। तभी शेखर की दृष्टि उस पर पड़ गई। हर्ष से वह उछल पड़ा और एकदम गिरीश की ओर लपका।

दोनों में से कोई कुछ न बोला किंतु दोनों की आंखों में अथाह प्रेम था। दोनों के दिलों में एक अजीब-सी खुशी की लहर दौड़ गई थी।...ये उनकी बचपन की आदत थी, ये अपने प्रेम को मुंह से बहुत कम कहते थे जबकि दिलों में अथाह प्रेम होता था।

गिरीश ने अपना सामान एक स्थान पर रख दिया और दोनों दौड़कर गले मिल गए। दोनों की आंखों में प्रसन्नता के आंसू छलछला गए। गिरीश की पीठ थपथपाता हुआ शेखर बोला–‘‘मुझे विश्वास था दोस्त कि तुम अवश्य आओगे।’’

‘‘तेरी शादी हो और मैं ना आऊं...यह कैसे हो सकता है?’’

‘‘आओ...।’’ शेखर उसका हाथ थामकर खींचता हुआ बोला–‘‘मेरे दोस्तों से मिलो।’’

शेखर गिरीश को लॉन में बिछी कुर्सियों के करीब ले गया।...शिष्टाचारवश लगभग सभी खड़े हो गए। एक अधेड़ से व्यक्ति की ओर संकेत करते बोला–‘‘मिलो...ये हैं मेरी मिल के मैनेजर बाटले...और मिस्टर बाटले, ये हैं मेरे सबसे पुराने दोस्त मिस्टर गिरीश।’’

दोनों ने हाथ मिलाए।
उसके बाद शेखर ने गिरीश का अन्य सभी दोस्तों से परिचय कराया।
फिर पूर्ण औपचारिकता निभाई गई...।

कुछ देर बाद शेखर के दोस्त विदाईं लेकर चले गए, वहां रह गए सिर्फ शेखर और गिरीश...जो अपने बचपन की यादों को ताजा करके ठहाके लगा रहे थे। शेखर से मिलकर गिरीश मानो सुमन को भूल-सा गया था और शायद उसी के परिणास्वरूप एक लम्बे अरसे के पश्चात् उसके चेहरे पर हंसी आई थी।

तभी लॉन के एक ओर बनी कंकरीट की एक सड़क पर एक कार आकर थमी...दोनों का ध्यान उस ओर आकर्षित हुआ।...गिरीश ने देखा कि कार पर जगह-जगह कागज चिपके हुए थे जिन पर ‘शेखर वेडस मोनेका’ लिखा हुआ था।

शेखर ने उस ओर देखा और ड्राइवर को संबोधित करके बोला–‘‘क्या बात है...?’’

‘‘पेट्रोल खत्म गो गया, सर।’’
‘‘मुनीम से पैसे ले लो।’’
तत्पश्चात ड्राइवर वहां से चला गया।

‘‘मेरे विचार से भाभी का नाम मोनेका है।’’
गिरीश शेखर से बोला।
‘‘बिल्कुल ठीक समझे...!’’ शेखर मुस्कराकर बोला।

‘‘अच्छा हां...एक बात याद आई।’’ गिरीश इस प्रकार उछला मानो अनायास ही उसे कुछ ख्याल आ गया हो–‘‘तुम्हें याद है आज से लगभग पांच वर्ष पूर्व हमने क्या शर्त लगाई थी?’’

‘‘शर्त...कैसी शर्त...?’’ शेखर आश्चर्य के साथ कुछ सोचने की मुद्रा में बोला।

‘‘हां...बेटे अब तुम्हें वह शर्त कब याद रहेगी, तुम्हारी शादी जो पहले हो रही है।’’

‘‘अरे...कहीं तुम उस सुहागरात वाली शर्त की बात तो नहीं कर रहे?’’

‘‘बिल्कुल, उसी की बात कर रहा हूं बेटे...याद है हमने शर्त लगाई थी कि हममें से जिसकी शादी पहले हो...सुहागरात दूसरा मनाएगा।...यानी मेरी होती तो सुहागरात तुम मनाते और अब तुम्हारी है तो शर्त के अनुसार सुहागरात मुझे मनानी है। कहो क्या विचार है?’’ मुस्कराता हुआ गिरीश बोला।

वास्तव में पक्के दोस्त होने के नाते वे मजाक-मजाक में इस प्रकार की शर्त लगा गए थे। यूं तो यह मजाक की ही बात थी। उसमें गंभीरता का तो प्रश्न ही न था।

‘‘विचार ही क्या है...।’’ शेखर बोला–‘‘मैं तुम्हे सुहागरात की दावत देता हूं।’’

‘वैरी गुड।’’ गिरीश बोला–‘‘बस तो फिर जल्दी से लाओ भाभी को...।’’

‘‘शादी इसी शहर से है बेटे...वह आज ही आ जाएगी।’’
‘‘बस तो बेटा रात को तुम लालीपाप चूसना और मैं...।’’

‘‘बेटे गिरीश...।’’ शेखर ने कहा–‘‘तुम बहुत सुर्ता निकले...तूने प्यार भी किया लेकिन मुझे भाभी के दर्शन एक बार भी न कराए...।’’

शेखर के वाक्य ने गिरीश के सूखते जख्मों पर मानो स्प्रिट के फाए का काम किया। उसके हदय में एक टीस-सी उठी, तड़प उठा वह! फिर कुछ नाराजगी के भाव में बोला–‘‘शेखर...तुम उस कुतिया का नाम मेरे सामने न लिया करो।’’

शेखर गिरीश के प्रति सुमन की बेवफाई की कहानी से परिचित था। वह जानता था कि सुमन किस तरह गिरीश की जिन्दगी में अंधेरा कर गई। वह कह तो गया किंतु उसे स्वयं कहने के बाद पश्चाताप हुआ आखिर वह यहां बेवक्त सुमन का नाम क्यों ले गया।...किंतु बात को संभालता हुआ बोला–‘‘मैं जानता हूं गिरीश कि सुमन ने तुम्हें नफरत का खजाना अर्पित किया है किंतु सच मानना दोस्त, अगर मैं उसे देख लेता तो अपने हाथों से उसकी जान ले लेता।’’

खैर...बात अधिक आगे न बढ़ सकी।...यही बस हो गई...विषय बदल गया।

उसके बाद...।
संपूर्ण रस्मों के साथ शादी हुई...मोनेका भी किसी सेठ की लड़की थी।

शायद शेखर से अधिक ही धनी थे वे लोग।
दहेज के रूप में इतना सब कुछ दिया गया कि देखने वाले दंग रह गए।

Jemsbond
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Re: सुमन--वेद प्रकाश शर्मा

Unread post by Jemsbond » 24 Dec 2014 15:38




सुहागरात...।
कैसी विचित्र शर्त लगाई थी इन मित्रों ने...शादी शेखर की–पत्नी शेखर की और सुहागरात मनानी थी गिरीश को–सुहागरात का वक्त आया–गिरीश ने विचित्र से प्यार और व्यंग्य भरी दृष्टि से शेखर को देखा और बोला–‘‘कहो बेटा–क्या इरादे हैं?’’

‘‘सुहागरात तुम्हीं मनाओगे–लेकिन ये ध्यान रखना कि मोनेका अपने पति को पहचानती है।’’

‘‘उसकी तुम चिन्ता मत करो।’’
‘‘तो फिर मेरी ओर से तुम पूर्णतया स्वतंत्र हो।’’
‘‘ओके–तो बेटा–मैं चलता हूं और तुम तारे गिनो।’’ गिरीश ने कहा।

दोनों के अधरों पर मुस्कान थी। कितना आत्मविश्वास था उन्हें एक-दूसरे पर।

ठीक तभी...।
जबकि गिरीश उस कमरे में प्रविष्ट हुआ जिसमें मोनेका सुहाग-सेज पर लाज की गठरी बनी अपने देवता की प्रतीक्षा कर रही थी।

इधर शेखर कमरे का हाल देखने सीधा रोशनदान पर पहुंचा–रोशनदान से उसने देखा कि गिरीश अंदर प्रविष्ट हुआ–सबसे पहले उसने अंदर से चटकनी लगा दी। उसने रोशनदान से देखा कि आहट सुनकर मोनेका अपने आप में सिमट गई।
शायद वह यही अनुमान लगा रही थी कि आने वाला शेखर है।

गिरीश सुहाग सेज के निकट पहुंचा–सबसे पहले उसने अपना कोट उतारा। अभी तक गिरीश ने मोनेका का मुखड़ा न देखा था क्योंकि वह लाज के पर्दे में थी। और स्वयं उसने तो देखा ही न था कि आने वाला उसका पति नहीं–कोई अन्य है।

शेखर रोशनदान से सब कुछ देख रहा था–उसके अधरों पर मुस्कान थी। इधर गिरीश ने कोट एक ओर सोफे पर डाला और मोनेका के अत्यंत निकट आ गया–वह और करीब आया–उधर रोशनदान में खड़े शेखर की धड़कने तीव्र हो गईं।

अचानक गिरीश मोनेका के अत्यंत निकट पहुँचकर बोला–‘‘मुझसे इस पर्दे की जरूरत नहीं भाभी जी मैं आपसे छोटा हूं।’’

भीतर-ही-भीतर शायद मोनेका चौंकी–किंतु प्रत्यक्ष में वह उसी प्रकार बैठी रही। आखिर लाजवान दुल्हन जो थी। गिरीश का वाक्य सुनकर शेखर के अधरों पर एक गर्वीली मुस्कान उभर आई। इधर गिरीश पलंग के नीचे–किंतु मोनेका के निकट बैठकर बोला–‘‘अभी शेखर नहीं आया है–मैं अपनी प्यारी भाभी का मुखड़ा देखूंगा तब उस नालायक को आपके पास आने की अनुमति दूँगा।’’

मोनेका उसी प्रकार गुमसुम बैठी रही।
गिरीश ने जेब में हाथ दिया और जेब में से कुछ निकालकर बोला–‘‘भाभी...मुंह दिखाई में मैं इससे अधिक कुछ नहीं दे सकता।’’ गिरीश ने कहा और वह वस्तु शेखर के फोटो के अतिरिक्त कुछ भी न थी, मोनेका की गोद में डालकर बोला–‘‘भगवान से सिर्फ ये कामना करता हूं कि आपका सुहाग जन्म-जन्मान्तर तक चमचमाता रहे।’’ भीतर ही भीतर गिरीश के वाक्य पर मोनेका तो गद्गद हो गई साथ ही साथ रोशनदान में खड़ा शेखर भी अपने प्रति गिरीश का प्रेम देखकर प्रफुल्लित हो उठा–‘‘अब चांद के ऊपर से बादलों का यह आवरण तो हटा दो भाभी।’’ गिरीश का संकेत मोनेका के मुखड़े से था।

मोनेका चुपचाप बैठी रही।
तभी गिरीश ने हाथ बढ़ाया और धीमे से घूंघट हटाने लगा...मोनेका ने कोई विरोध भी नहीं किया।

घूंघट हट गया, गिरीश ने चांद के दर्शन किए...मोनेका लाज से सिर झुकाए चुपचाप बैठी थी।

किंतु...उस चांद को देखते ही...मोनेका के मुखड़े पर दृष्टि पड़ते ही, गिरीश के पैरों के तले से मानो धरती खिसक गई। वह इस बुरी तरह से चौंका मानो हजारों, लाखों बिच्छुओं ने उसे डंक मार दिया हो।

एक पल के लिए तो वह अवाक्-सा रह गया...आंख फाड़े मोनेका का चेहरा देखता रहा। उसकी आंखें आश्चर्य से फैल गईं। मानो वह पत्थर का बुत बन गया था। वास्तव में उसे लगा, संसार का सर्वश्रेष्ठ आश्चर्य देख रहा हो...अचानक फिर जैसे उसे होश आया।

उसका समस्त चेहरा क्रोधावस्था में कनपटी तक लाल हो गया। आंखें अंगारे उगलने लगीं। क्रोध से वह कांपने लगा...मानो वह भयंकर राक्षस के रूप में परिवर्तित होता जा रहा था। एकाएक वह उछलकर खड़ा हो गया। भयानक स्वर में वह चीखा–‘‘तुम! सुमन तुम यहां...डायन, कमीनी...तुम यहां। मेरे दोस्त की पत्नी। तुम यहां कैसे? तुम आखिर चाहती क्या हो?’’

अचानक रूप-परिवर्तन पर मोनका भी चौंक पड़ी...एकदम वह समस्त लाज भुलाकर आश्चर्य के साथ गिरीश को देखने लगी...इससे पूर्व कि वह कुछ समझ सके, अचानक गिरीश ने उसकी कलाई थामकर बड़ी बेरहमी के साथ उसे झटका देकर उठाया और...

चटाक–
एक जोरदार थप्पड़ मोनेका के गाल से टकराया...मोनेका अवाक रह गई, कुछ न समझ सकी वह। इधर रोशनदान में उपस्थित शेखर भी बुरी तरह चौंका, वह तुरंत रोशनदान से हट गया और दौड़कर कमरे के दरवाजे पर आया...किंतु दरवाजा बंद था। अतः वह जोर से थपथपाता हुआ चीखा–‘‘खोलो...खोलो गिरीश दरवाजा खोलो।’’

किंतु गिरीश–
उफ...! गिरीश तो मानो पागल हो गया था...राक्षसी हवस उसकी आंखों से झांक रही थी। उसने मोनेका को एक थप्पड़ मारकर ही बस नहीं कर दी...उसने मोनेका को पकड़कर झंझोड़ दिया...इस समय वह खतरनाक लग रहा था–मोनेका को झंझोड़ता हुआ वह चीखा–‘‘तुमने मुझे बर्बाद कर दिया...अब मेरे दोस्त को बर्बाद करना चाहती हो। लेकिन नहीं सुमन नहीं। मैं कभी ऐसा नहीं होने दूंगा...तुम लड़की नहीं हो...गंदी नाली की गंदगी में रेंगता वह कीड़ा हो जो सिर्फ गंदगी में ही रह सकता है...तुम लड़की नहीं हो, हवस की पुजारिन हो...तुम नहीं जानती प्यार क्या होता है...तुम्हें तो अपनी काम-वासनाओं की पूर्ति चाहिए...नहीं...नहीं...अपने बाद मैं अपने दोस्त को तुम्हारे हाथों बर्बाद न होने दूंगा–न जाने किस तरह धोखा देकर तुमने यह जगह ग्रहण कर ली है–भाग जाओ सुमन–तुम अब भी चली जाओ यहां से–वर्ना मैं तुम्हारा खून कर दूंगा।’’ आवेश में वह चीखा।

मोनेका के चेहरे पर ऐसे भाव थे मानो वह गिरीश को पहचानती ही न हो। मानो वह उसके मुख से निकलने वाले शब्दों से कुछ अनुमान लगाना चाहती हो किंतु वह किसी प्रकार का भी निर्णय निकालने में असमर्थ रही–अंत में वह धीमे से बोली–‘‘आप कौन हैं–और मुझे सुमन क्यों कह रहे हैं?’’

‘‘क्या कहा?’’ उसके उपरोक्त वाक्य पर तो गिरीश मानो चिहुंक उठा, उसका क्रोध सातवें आसमान पर पहुंच गया। वह बुरी तरह चीखा–‘‘क्या कहा तुमने? मैं कौन हूं? तुम सुमन नहीं हो कमीनी–जलील–जलालत की सीमा से बाहर जा रही हो तुम। तुम इतनी गिर सकती हो–तुम इतनी घिनौनी और मतलबी भी हो–ये मैंने कभी सोचा भी न था। तुम्हारा जीवित रहना न जाने कितने युवकों के लिए खतरनाक है–नहीं–मैं तुम्हें नहीं छोडूंगा–तुम्हारी जान अपने हाथों से लूंगा।’’

मोनेका का भोला-भाला मुखड़ा यूं ही मासूम बना रहा, ऐसा लगता था जैसे वह गिरीश की किसी बात का मतलब न समझ रही हो। अभी वह कुछ समझ भी न पाई थी एकाएक वह चौंकी–गिरीश का बड़ा और शक्तिशाली पंजा उसकी पतली गर्दन पर आ जमा–पंजे का दबाव क्षण-प्रतिक्षण बढ़ता जा रहा था। मोनेका को लगा जैसे ये राक्षस वास्तव में उसकी हत्या कर डालेगा, अतः वह बुरी तरह घबराई। गिरीश के पंजे से निकलने हेतु वह छटपटाई किंतु असफल रही–गिरीश की पकड़ किसी राक्षस की तरह सख्त थी। अंत में प्रयास करके वह जोर से चीखी और फिर बचाओ-बचाओ पुकारने लगी।

इधर शेखर निरंतर चीख-चीखकर दरवाजा पीट रहा था, किंतु दरवाजा न खुला–तभी उसने अंदर से गिरीश के चीखने के बाद मोनेका की चीख और बचाओ-बचाओ की आवाज़ें उसके कानों में पड़ीं। भयानक खतरे को वह तुरंत भांप गया, वह जान गया कि अंदर गिरीश पागल हो गया है। वह इस स्थिति में मोनेका की हत्या भी कर सकता है। किंतु उसने सोचने में अधिक समय व्यर्थ न किया–जोर-जोर की आवाजें और चीखें सुनकर कोठी में उपस्थित मेहमान और नौकर इत्यादि दौड़ आए थे। शेखर ने चीखकर उन्हें दरवाजा तोड़ देने का आदेश दिया था।

अंदर गिरीश तो मानो गिरीश ही न रहा था–भयानक राक्षस बन गया था। उसने न सिर्फ मोनेका की चीखों को नजरअंदाज कर दिया बल्कि दरवाजे पर पड़ने वाली निरन्तर चोटे भी उस पर कोई प्रभाव न डाल सकीं। उसके पंजे मोनेका की गर्दन पर कसते ही चले गए। चीखने की शक्ति क्षीण पड़ गई। उसकी सांस-क्रिया थमने लगी–मुखड़ा लाल हो गया–आंखों की नसों में तनाव आ गया। गिरीश बड़ी बेहरमी के साथ गला घोंटता ही जा रहा था।

वह तो शायद मोनेका की जान ही ले लेता लेकिन ठीक उस समय जब मोनेका की आंखें मिचने लगीं–कमरे का दरवाजा टूट गया, शेखर के साथ अन्य नौकर और मेहमान उस ओर झपटे। बड़ी कठिनाई से खींच-तानकर सबने गिरीश को अलग किया।

शेखर ने लपककर मोनेका को संभाला जो चकराकर गिरने ही वाली थी।

नौकर इत्यादि ने गिरीश को पकड़कर खींचा किंतु गिरीश निरन्तर अपनी सम्पूर्ण शक्ति का प्रयोग करके उनके बंधनों से निकलने का प्रयास करता हुआ जोर-जोर से चीख रहा था–‘‘छोड़ दो मुझे–मैं इसका खून कर दूंगा, ये डायन है–चुड़ैल है।’’

‘‘क्या बक रहे हो, गिरीश? ये क्या पागलपन है?’’ शेखर चीखा।

‘‘शेखर–शेखर मेरे दोस्त, खून कर दो इस कमीनी का–ये सुमन है–वही सुमन जिसने मुझे इस स्थिति तक पहुँचा दिया–अब ये तुम्हें बर्बाद कर देगी।’’

‘‘पागल मत बनो, गिरीश।’’ शेखर मोनेका को संभालता हुआ बोला–‘‘ये सुमन नहीं है–ध्यान से देखो इसे–ये मोनेका है–तुम्हारी सुमन भला यहां कैसे आ सकती है?’’

‘‘नहीं-नहीं दोस्त, मैं इस नागिन को लाखों में पहचान सकता हूं, यह सुमन है–यह वही जहरीली नागिन है जिसने मुझे डस लिया–अब ये नागिन तुम्हें डसेगी।’’

‘‘इसे कमरे में बंद कर दो।’’ शेखर ने नौकरों को आदेश दिया।

इधर मोनेका का बेहोश जिस्म शेखर के हाथों में झल रहा था और उधर नौकर गिरीश को लगभग घसीटते ले जा रहे थे। किंतु गिरीश निरन्तर चीखे जा रहा था–‘‘ये सुमन है–मैं इसे पहचानता हूं–यह जहरीली नागिन है–ये सुमन है–ये सुमन है।’’ किंतु किसी ने उसकी बात पर कोई विशेष ध्यान न दिया।

उसकी स्थिति पागलों जैसी हो गई थी।

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Re: सुमन--वेद प्रकाश शर्मा

Unread post by Jemsbond » 24 Dec 2014 15:38




मोनेका के अचेत होते ही डॉक्टर दौड़ पड़े। मोनेका को होश में लाया गया। यूं तो उसकी स्थिति साधारण ही थी किंतु गिरीश की बातों से उसके मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ा था। लेकिन खतरे की कोई बात न थी। उसके होश में आने पर शेखर ने उससे पूछा–‘‘क्या तुम मेरे दोस्त को पहचानती हो?’’

‘‘नहीं–मैंने आज से पूर्व उन्हें कभी नहीं देखा लेकिन वे मुझे सुमन क्यों कह रहे थे? वे मुझे इतने गंदे-गंदे शब्द क्यों कह रहे थे?’’ मोनेका धीमे स्वर में बोली।

‘‘उसका बुरा मत मानना मोनेका–वह अनेक गमों का मारा हुआ है। सुमन नामक किसी लड़की ने उसे नफरत का खजाना अर्पित किया है। वह अत्यंत दुखी है मोनेका–शायद ही जमाने में कोई उससे अधिक ‘बदनसीब’ रहा हो–न जाने कितने दुख उठाए हैं उसने–तुम्हें उसकी बातों का बुरा नहीं मानना है मोनेका। वह प्यार का भूखा है–अपने प्यार से उसके गम को भुला दो–वह मेरा दोस्त है–बहुत प्यारा है वह। मन का बहुत साफ। तुम उसके गम को भुला दो।’’

‘‘क्या कहानी है उनकी?’’

‘‘उसकी कहानी तुम धीरे-धीरे जान जाओगी–इस समय तुम ये जान लो कि वह एक बदनसीब इंसान है–जो प्यार के अभाव में पागल-सा हो गया है।

शायद वह भाभी का प्यार पाकर अपने अतीत के गमों को भूल जाए–शायद वह जीवन में कभी खुश हो सके।’’

‘‘लेकिन वे तो मुझे देखते ही चीखते हैं।’’
‘‘ये मैं भी अभी नहीं समझ सका हूं कि वह तुम्हें सुमन क्यों कह रहा है? मैं अभी उसके पास जा रहा हूं और उससे बातें करता हूं।’’ कहकर शेखर उठा।

‘‘पहले तो वे बहुत प्यारी-प्यारी बातें कर रहे थे, किंतु न जाने क्यों वे मेरी सूरत देखते ही चीखने लगे।’’

‘‘कहीं ऐसा तो नहीं मोनेका कि तुम्हारी सूरत सुमन से मिलती हो?’’

‘‘आप उन्हीं से बात करें!’’
‘‘अच्छा मैं चलता हूं।’’ कहकर शेखर, उस कमरे से बाहर निकल गया। अब उसका लक्ष्य वह कमरा था जिसमें नौकरों ने गिरीश को बंद कर दिया था।

जब शेखर बाहर से दरवाजा खोलकर अंदर प्रविष्ट हुआ तो गिरीश उसकी ओर लपका जो अब तक बेचैनी के साथ कमरे में इधर-उधर टहल रहा था। वह शेखर को देखकर प्रसन्नता से झूम उठा। लपककर उसने शेखर को गले से लगा लिया और बोला–‘‘शेखर–मेरे दोस्त तुम ठीक तो हो।’’

‘‘क्यों–मुझे क्या हुआ था?’’
‘‘शेखर विश्वास करो तुम्हारी बीवी मोनेका के रूप में वह नागिन सुमन है। मैं उसे ठीक से पहचान गया हूं, मेरा विश्वास करो शेखर–वह सुमन है।’’

‘‘लगता है गिरीश तुम्हें बहुत बड़ा धोखा हो रहा है, वह मोनेका है, वह तुम्हें नहीं पहचानती। वह भला सुमन कैसे हो सकती है?’’

‘‘नहीं, शेखर नहीं–चाहे कुछ भी हो–मेरा विश्वास करो–वह सुमन ही है। न जाने कौन-सी चाल चल रही है वह नागिन–शेखर मैंने उसे पास से देखा है–मैंने कभी उस नागिन को अपनी भावनाओं से चाहा है–उसे पहचानने में मैं कभी भूल नहीं कर सकता।’’

‘‘तुम पागल हो गए हो–होश की दवा करो।’’ शेखर गिरीश की बार-बार एक ही रट पर झुंझला गया था।

‘‘आखिर उस जहरीली नागिन ने तुम पर भी कर ही दिया जादू।’’

‘‘गिरीश!’’ इस बार शेखर कुछ कड़े लहजे में बोला–‘‘अब मोनेका मेरी पत्नी है, तुम निराधार उसको अपशब्द नहीं कह सकते।’’

‘‘शेखर, मेरे शेखर–अब तुम्हारा समय भी नजदीक आ गया है। अब तुम भी बर्बाद हो जाओगे–मैं फिर कहता हूं कि यह जहरीली नागिन है जिसे तुम दूध पिला रहे हो।’’

‘‘मेरी समझ में नहीं आता कि तुम आखिर चाहते क्या हो? क्या तुम पर कोई आधार है जिससे तुम ये सिद्ध कर सको कि मोनेका ही सुमन है?’’

‘‘आधार–!’’ अचानक गिरीश उछल पड़ा और वह बोला–‘‘हां–आधार है–मेरी अटैची कहां है–लाओ मेरी अटैची लाओ।’’

गिरीश की अटैची उसी कमरे में रखी थी। शेखर ने अटैची निकालकर गिरीश के सामने डाल दी और बोला–‘‘निकालो–किसी आधार पर तुम मोनेका को सुमन कह रहे हो?’’

गिरीश ने एक बार शेखर की ओर देखा और फिर अटैची खोलकर उसकी जेब से एक फोटो निकाला और शेखर की ओर उछाल दिया और बोला–‘‘लो देख लो–ये है सुमन।’’

शेखर ने फोटो उठाकर देखा तो स्तब्ध रह गया–अवाक-सा वह उस फोटो को देखता रह गया।

उसकी आंखों में गहन आश्चर्य उभर आया। फोटो वास्तव में सौ प्रतिशत मोनेका का ही था। कहीं भी हल्का-सा भी तो परिवर्तन नहीं था। उसकी समझ में नहीं आया कि यह सब रहस्य क्या है।

‘‘क्या वास्तव में ये तुम्हारी सुमन का फोटो है?’’
‘‘पहचान लो इस नागिन को–यही है सुमन, क्या तुम्हारी मोनेका ये नहीं है।’’

‘‘लेकिन गिरीश–मोनेका का भोलापन–उसकी बातें, तुम्हारे लिए कहे गए उसके शब्द मुझसे चीख-चीखकर कह रहे हैं कि वह धोखेबाज नहीं हो सकती? वह मासूम कली, भला इतनी फरेबी कैसे हो सकती है?’’ शेखर फोटो से नजरें हटाकर गिरीश की ओर देखता हुआ बोला।

‘‘इसी मासूम मुखड़े ने तो मेरे मन को जीता था दोस्त! इसकी इन्हीं भोली-भाली बातों ने तो मुझे अपना बना लिया था। इसकी इसी सादगी के कारण तो मैं इसकी ओर आकर्षित हुआ था। ये सब कुछ धोखा है शेखर–नारी का एक खूबसूरत धोखा। जिसमें मैं तो आ गया किंतु तुम्हें किसी भी स्थिति में नहीं आने दूंगा–ये भोलापन, ये प्यारा मुखड़ा, ये सादगी–सब कुछ धोखा है–मर्द को छलने के ढंग हैं। तुम उसे मेरे पास भेज दो–मैं अपने हाथ से उसका खून करूंगा।’’

‘‘तुम फिर पागलपन की सीमाओं की ओर बढ़ते जा रहे हों।’’

‘‘नहीं शेखर–क्या तुम्हें अब भी विश्वास नहीं कि तुम्हारी मोनेका और मेरी सुमन एक ही नागिन है। एक ऐसी जहरीली नागिन जिसने न केवल मुझे बरबाद किया बल्कि इस बीच न जाने कितनों के जीवन से खेली होगी अब वह तुम्हें डसना चाहती है। अगर वक्त पर मैं न देख लेता तो वास्तव में इस कुतिया के हाथों तुम भी बरबाद हों जाते। अब अगर तुम बच जाओगे तो हवस की पुजारिन अन्य किसी भोले युवक को अपनी हवस का शिकार बनाएगी–नहीं छोडूंगा...।’’

‘‘गिरीश–कभी-कभी संसार में दो सूरतें बिल्कुल एक जैसी भी पाई जाती हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि ये भी कुछ ऐसा ही चक्कर हो।’’ न जाने क्यों शेखर को अब भी विश्वास नहीं आ रहा था कि मोनेका का भोला मुखड़ा धोखा दे सकता है। अतः वह प्रत्येक संभव ढंग से यह सोचने का प्रयास कर रहा था कि मोनेका सुमन नहीं है।

‘‘तुम्हारी आंखों के सामने इस समय शायद–‘डबल रोल’ वाली फिल्म अथवा उपन्यास घूम रहे हैं।’’ गिरीश व्यंग्यात्मक लहजे में बोला–‘‘मेरे दोस्त, ये सिर्फ बोगस फिल्में और उपन्यास की कल्पित बातें होती हैं–वास्तविक जीवन में ऐसा नहीं हुआ करता–वास्तविक जीवन में अगर होता है तो सिर्फ इतना कि कभी-कभी दो चेहरे एक से हो जाते हैं–उन्हें अलग-अलग देखकर तो भ्रांति हो जाती है किंतु अगर दोनों को आस-पास खड़ा कर दिया जाए तो स्पष्ट पता लगता है कि कौन क्या है?–मेरा मतलब है–कहीं न कहीं किसी न किसी बात में अंतर अवश्य होता है।’’

‘‘तभी तो कहता हूं–ऐसा हो सकता है कि सुमन और मोनेका की सूरत मिलती हो। हमारे पास सुमन का फोटो जो है जिससे हम मोनेका को मिला रहे हैं–जीती-जागती सुमन तो नहीं है।’’

‘‘पता नहीं तुम्हें क्यों विश्वास नहीं हो रहा है कि ये ही सुमन है। देखना–क्या फोटो में ये निशान ठीक वैसा नहीं है जैसा मोनेका के चेहरे पर है–क्या इस निशान में लेशमात्र भी अंतर है और वैसे भी यह चोट का निशान है–क्या दोनों के यहीं चोट लगनी थी?’’

‘‘पता नहीं मुझे क्यों विश्वास नहीं हो रहा है?’’ शेखर विचारता हुआ बोला। वैसे इस बार वह गिरीश की बात से प्रभावित हुआ था क्योंकि वास्तव में फोटो में और मोनेका के चेहरे में तिल-भर का भी अंतर न था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर ये सब है क्या?

‘‘क्या वह यह कह रही है कि वह सुमन नहीं है?’’
‘‘हां!’’
‘‘तो फिर चलो–उसी से पूछेंगे कि ये फोटो किसका है?’’

‘‘चलते हैं, किंतु एक शर्त पर–’’
‘‘क्या?’’

‘‘यही कि तुम मेरे संकेत के बिना कुछ नहीं कहोगे और स्वयं को होश में रखोगे।’’

‘‘मैं सहमत हूं–चलो।’’
उसके बाद गिरीश ने अटैची से एक वस्तु और निकालकर जेब में डाल ली और सुमन के कमरे की ओर चल दिए।

एक विचित्र-सी गुत्थी में उनका मस्तिष्क उलझ गया था।
तब जबकि वे दोनों मोनेका वाले कमरे में पहुंचे तो मोनेका बिस्तर पर उठकर बैठ चुकी थी। उन दोनों को आता देख वह सचेत हो गई।

सुमन के चेहरे पर दृष्टि पड़ते ही गिरीश के दिल ने चीखना चाहा–उसका चेहरा गिरीश को बड़ा भयानक लग रहा था–सुमन इस समय उसे कोई राक्षसी नजर आ रही थी। उसका मन कह रहा था कि आगे बढ़कर वह उस खूबसूरत नागिन का गला दबा दे किंतु नहीं–उसने कुछ न किया–उस समय उसने अपनी समस्त भावनाओं का गला घोंट दिया। स्वयं संयम किया और शेखर के साथ आगे बढ़ गया।

उन दोनों की तीक्ष्ण निगाहें प्रत्येक पल उसके मुखड़े पर जमी हुई थीं।

शेखर की निगाहों में तो फिर भी कुछ प्रेम था किंतु गिरीश की निगाहें तो अत्यंत क्रूर थीं...मानो वह मोनेका को आंखों ही आंखों में पी जाने का इरादा रखता हो। उसे तीव्र घृणा हो रही थी सुमन के चेहरे से किंतु अंदर की ज्वाला को उसने इतना न भड़कने दिया कि शब्दों के माध्यम से वह कुछ कहे।

वह शांत किंतु खतरनाक दृष्टि से उसे निहार रहा था।

शेखर की निगाहें भी उसी पर गड़ी थीं। वह शायद उसके चेहरे को पढ़कर सत्य-मिथ्या का पता लगाना चाहता था किंतु उसके चेहरे पर गजब की मासूमियत थी। जिसके कारण यह बात उसके कंठ से नहीं उतर रही थी कि मोनेका ही सुमन है।

‘‘ऐसे क्या देख रहे हैं आप दोनों?’’ बड़े धीमे से मोनेका ने निस्तब्धता भंग की। उसका लहजा अत्यंत कोमल, मासूम और मधुर था किंतु गिरीश को ठीक ऐसे लगा मानो कोई भयानक घरघराती आवाज में सुमन उसकी स्थिति पर खिल्ली उड़ा रही हो। लेकिन फिर भी वह कुछ नहीं बोला। सिर्फ खूनी निगाहों से उसे देखता रहा।

उनके इस तरह देखने पर वह थोड़ा-सा घबरा गई, उसका हलक सूख गया। उसे उन दोनों से भय लगने लगा। सूखे अधरों पर वह जीभ फेरकर बोली–‘‘आप लोग इस प्रकार क्यों घूर रहे हैं–क्या चाहते हैं मुझसे?’’

‘‘तो तुम सुमन नहीं हो।’’ शेखर उसे बुरी तरह घूरता हुआ बोला।

‘‘क्या आपको भी कोई गलतफहमी हो गई है–आप तो पिछले छः महीने से मुझे जानते हैं–मुझसे प्यार करते हैं–क्या आप भी यह कहना चाहते हैं कि मैं मोनेका नहीं सुमन हूं?’’

‘‘अगर तुम सुमन नहीं हो तो बताओ कि ये फोटो किसका है–और गिरीश के पास कहां से गया?’’ शेखर ने कुछ कड़े स्वर में कहा और फोटो उसकी गोद में फेंक दिया।

गिरीश शान्त खड़ा रहा–उसके अधरों पर ऐसी जहरीली मुस्कान थी, मानो उसने इस लड़की को कोई अपराध करते रंगे हाथों पकड़ लिया हो।

मोनेका ने धीरे से वह फोटो उठाया और देखा–शेखर और गिरीश की तीक्ष्ण निगाहें प्रत्येक क्षण उसके मुख पर जमी हुई थीं और उन्होंने फोटो देखते समय उसके मुखड़े पर उत्पन्न होने वाले चौंकने के भावों को स्पष्ट देखा–फिर आश्चर्य से मोनेका का मुंह खुल गया। दोनों में से कोई भी यह निश्चय करने में असफल रहा कि उसके चेहरे पर उत्पन्न होने वाले ये भाव वास्तविक हैं अथवा उन्हें धोखा देने के लिए खूबसूरत और सफल अभिनय है।

कुछ देर तक वह सुमन के फोटो को देखती रही और फिर उनकी ओर देखकर बोली–‘‘ये फोटो तो मेरा ही लगता है–किंतु...।’’

‘‘किंतु...क्या?’’ इस बार शेखर आवेश में बोला। वह शेखर के इस प्रकार चीखने से घबरा गई और बोली–‘‘किंतु मैंने इस पोज में कभी कोई फोटो नहीं खिंचवाया।’’

‘‘फिर यह कहां से आ गया?’’
‘‘मैं नहीं जानती–।’’

‘‘तुम वास्तव में सरासर धोखा हो।’’ शेखर चीखा–‘‘तुम्हारे ये खोखले उत्तर तुम्हारे मन में छुपे चोर को स्पष्ट कर रहे हैं–तुम्हारी बातों से पता लगता है कि तुम्हीं सुमन हो।’’

‘‘उफ्...! ये कैसा षड्यंत्र रचा जा रहा है मेरे विरुद्ध।’’ मोनेका एकदम सिसककर बोली–‘‘सच मानो शेखर, मैं सुमन नहीं हूं–मैं तुम्हारी सौगंध खाती हूं–ये मेरे विरुद्ध कोई षड्यंत्र रचा जा रहा है–नहीं शेखर, मैं सुमन नहीं हूं–मैं मोनेका हूं–तुम्हारी मोनेका।’’

शेखर को लगा जैसे मोनेका ठीक कह रही है–उसने मोनेका की आंखों के अग्रिम भाग में तैरते आंसू देखे तो पिघल गया–औरत के आंसू तो अंतिम और शक्तिशाली हथियार होते हैं।

शेखर भी उन आंसुओं का विरोध न कर सका। उसे जैसे ये आंसू मोनेका के सच्चे होने के प्रमाण हैं। वास्तव में उसके विरुद्ध कोई षड्यंत्र रचा जा रहा है। अतः वह एकदम गिरीश की ओर घूम गया।

गिरीश के होंठों पर जहरीली मुस्कान थी–बड़े व्यंग्यात्मक ढंग से शेखर को देखता हुआ बोला–

‘‘क्यों, प्रभावित हो गए ना इस नागिन के आंसू देखकर?’’
उसके ये शब्द सुनकर मोनेका की सिसकियां बंद हो गईं।

‘‘गिरीश, मैंने तुमसे कहा था कि कोई अपशब्द प्रयोग नहीं करोगे।’’

‘‘मान गया दोस्त कि वास्तव में औरत के आंसू आदमी को अंधा बना देते हैं। सभी प्रमाण इसके विरुद्ध हैं, किंतु फिर भी तुम्हें संदेह है कि ये सुमन नहीं है लेकिन दोस्त झूठ अधिक देर तक नहीं चल सकता। सत्य की किरण मिथ्या के अंधकार को ठीक इस प्रकार चीर डालेंगी जैसे रजनी के अंधेरे को प्रभात का सूर्य...। चलो एक बार को मैं भी मानता हूं कि ये लड़की सुमन नहीं लेकिन मेरे पास अंतिम वस्तु ऐसी है जिससे दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।’’

‘‘क्या?’’
‘‘वैसे तो दोस्त, ये भी नहीं हो सकता कि दो सूरते इस हद तक एक हों किंतु अगर तुम ये संभावना व्यक्त करते हो तो थोड़ी देर के लिए मान लेता हूं कि मोनेका सुमन नहीं किंतु ये तो तुम मानोगे कि एक-सी दो सूरत वालों की ‘राइटिंग, एक-सी नहीं हो सकती।’’

‘‘वैरी गुड–ये मानता हूं ‘राइटिंग’ एक-सी नहीं हो सकती, क्या तुम्हारे पास सुमन का कुछ लिखा हुआ है?’’ शेखर को विश्वास हो गया कि दो इंसानों की राइटिंग एक-सी नहीं हो सकती।’’

‘‘उसका लिखा ‘प्रमाण’ तो अभी तो मेरे पास है दोस्त! जिसने मेरे हृदय में नारी के प्रति नफरत भर दी, जिसने मेरे सामने नारी को नग्न कर दिया। जो मेरे जीवन में सबसे अधिक महत्त्व रखता है।’’

‘‘फिर तो लिखवाओ मोनेका से कुछ।’’
‘‘पता नहीं आप क्यों मुझे सुमन सिद्ध करना चाहते हैं–लाइए पैन और कागज–बोलिए क्या लिखूं?’’ इस बार मोनेका सिसकती हुई बोली। उसके बाद...।

मोनेका से एक कागज पर बहुत कुछ लिखवाया था।
मोनेका के लिखे कागज को सुमन के पत्र से मिलाया गया जो गिरीश ने पहले ही अटेची से निकालकर जेब में रख लिया था। उस समय शेखर की आंखें आश्चर्य से फैल गईं जब उसने मोनेका और सुमन की राइटिंग में लेशमात्र भी अंतर नहीं पाया।

ठीक उसके विपरीत गिरीश के अधरों पर विजय की गर्वीली मुस्कान थी।
‘‘मोनेका...ये राइटिंग सिद्ध करती है कि तुम्हीं सुमन हो।’’

यह कहकर शेखर ने उसके लिखे कागज के साथ-साथ सुमन का पत्र भी उसकी ओर बढ़ा दिया।...मोनेका ने...जब देखा तो हैरत से उसकी आंखें भी फैल गईं...आश्चर्य के साथ वह बोली–‘‘ओह माई गॉड...ये सब क्या है...ये राइटिंग तो मेरी है लेकिन ये पत्र मैंने कभी नहीं लिखा। इस पर पड़ा हुआ ये नाम भी मेरा नहीं है...? ये सुमन कौन है जिसकी राइटिंग तक मुझसे मिलती है...कौन ये सुमन...?

‘‘अब अधिक चालाक बनने की कोशिश मत करो मोनेका...ये पूरी तरह सिद्ध हो चुका है कि तुम्हीं सुमन हो।...उसके विरोध में तुम्हारी दलीलें, तुम्हारे विरोध सभी खोखले हैं...एक ओर तुम ये भी स्वीकार करती हो कि ये राइटिंग तुम्हारी है लेकिन दूसरी ओर तुम सुमन होने से इंकार करती हो जिसने स्वयं ये पत्र लिखा है–अब तुम्हारा ये ढोंग समाप्त हो चुका है जलील लड़की...अच्छा ये है कि अब तुम भी ये स्वीकार कर लो कि तुम्हीं सुमन हो।...वैसे अब तुम्हारे स्वीकार अथवा अस्वीकार करने से कोई अंतर नहीं पड़ता क्योंकि इस अंतिम परीक्षा ने संदेह की कोई गुंजाइश ही नहीं छोड़ी है–अब तुम्हारी कोई भी चालाकी चल नहीं सकती।’’ शेखर कठोर होकर बोला।

‘‘अब मैं आपको कैसे समझाऊं कि मैं नहीं जानती कि यह सब क्या है? ये सुमन कौन है?’’

‘‘मोनेका उर्फ सुमन! ये शीशे की भांति साफ हो चुका है कि तुम्हीं सुमन हो–ये माना कि तुम एक चालाक लड़की हो किंतु समस्त सुबूत स्पष्ट हो जाने के बाद जो चालाकी तुम दिखा रही हो वह खोखली है–उसमें कोई तत्त्व नहीं रह गया है–अब तुम्हें पुलिस के हाथों में सोंपने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं है।’’ शेखर उसे धमकाता हुआ बोला।

‘‘पता नहीं आप लोग मुझे क्यों सुमन बनाना चाहते हैं...मुझे पुलिस-वुलिस में देने से पहले मेरे डैडी को बुला दीजिए। वे ही आपको बताएंगे कि मैं उनकी बेटी मोनेका हूं अथवा तुम्हारी सुमन।’’ वह सिसकती-सी बोली।
तत्पश्चात–

वे दोनों लाख प्रयास करते रहे कि वह स्वयं कह दे कि वह सुमन है–उन्होंने समस्त ढंग अपनाए किंतु उसने नहीं कहा कि वह सुमन है। वह यही कहती रही कि वह मोनेका है और सुमन नाम की किसी लड़की से परिचित तक नहीं है।

न जाने क्यों उसका भोला मुखड़ा देखकर शेखर के कंठ से ये बात नीचे नहीं उतर रही थी कि ये मासूम लड़की इतना बड़ी फ्रॉड हो सकती है। किंतु उसकी सूरत–उसकी राइटिंग–।
उलझन...उलझन और...अधिक उलझन...।

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