Re: पागल वैज्ञानिक
Posted: 25 Dec 2014 18:32
संध्या के साड़े पांच बजे थे, कर्नल अभी तक कोठी से गायब था, सार्जेंट दिलीप बरांडे में बैठा चाय की चुस्कियां ले रहा था। उसके सामने एक आराम कुर्सी पर मोण्टी आराम से बैठा था। तभी फोन की घण्टी बजी, सार्जेंट ने रिसीवर उठाया...
- हैलो, जीहाँ मैं सार्जेंट दिलीप ही हूँ।
- और सार्जेंट कर्नल साहब भी हैं क्या।
- आप कोन बोल रही हैं.........ओह तो आप , कहाँ से, नहीं ठीक है मैं क्वाटर पहुँच रहा हूँ, तब तक आप सावधानी से रहें।
सार्जेंट ने रिसीवर क्रेन्डिल पर रख दिया और तेजी से अपनी आइन्सटीन की तरफ भागा, मोण्टी भी उछल कर उसके साथ हो लिया। अगले ही पल वो हवा से बातें कर रहे थे।
इस समय सार्जेंट के हंसमुख चहरे पर चिन्ता के लक्षण साफ दिखाई दे रहे थे। वह सड़क के किनारे स्थित वृक्ष के नीचे अपनी आइन्सटीन खड़ी कर तेजी से पास वाले क्वार्टर की तरफ भागा।
उसने काल बेल पुस की, अन्दर कहीं घंटी बजने की आवाज आयी फिर पदचाप की आवाज धीरे-धीरे स्पश्ट होती गयी...कौन ?
- मैं सार्जेंट दिलीप
उसने दरवाजा खोला, उसे जबड़े से खुन रिस रहा था कपड़े जगह-जगह फटे हुए थे। षरीर पर हन्टर के निषान स्पश्ट दिखाई दे रहे थे। उसके खुबसूरत चहरे पर पीड़ा के भाव झलक रहे थे।
- लगता है उन्होने आपको बहुत टार्चर किया।
- हाँ सार्जेंट, सच कहूँ तो मैं टूट गयी मैंने बता दिया डाॅक्टर कहाँ गये हैं।
- कहाँ गये हैं !
- श्रीनगर वहाँ उनकी विधवा बहन रहती है।
- आहो कब गये।
- परसों
- कितने बजे..
- लेब से तो सुबह ही चले गये थे, पर गये कब मुझे नहीं मालुम, वैंसे मुझे याद आ रहा है,षाम पांच बजे की फ्लाईट के टिकिट खरीदे थे।
- तुम्हे कैंसे मालुम।
- दरअसल हमारे लेब के बगल में ही डाॅक्टर का आफिस हे, उन्होने वहीं से फोन करके एक दिन पहले टिकिट के संदर्भ में बात की थी।
- खैर देखा जायेगा, तुम्हारे पास श्रीनगर में डाॅक्टर की बहन का पता तो होगा ही।
ये लो उसने मेज से एक कार्ड उठा कर दिया, डाॅक्टर ने जानेे से पहले मुझे दे दिया था, षायद कोई आवष्यक काम पड़ जाये।
सार्जेंट ने पते को जर्कीन की जेब में रख लिया..चलो।
- कहाँ ?
- अपनी हालात देख रही हो, तुम्हें मेडीकल सहायता की आवष्यकता है..चलो।
मैं जरा कपड़े बदल लूँ उसने अपने फटे कपड़ों की तरफ इसारा किया।
- ठीक है जल्दी करो।
पांच मिनिट बाद ही तीनों आइन्सटीन मैं बैठे थे.....तीसरा था मोंटी जो इस दरमियान परिस्थती की नजाकतता को देख बेहद गंभीर बन गया था।
सार्जेंट ने कार एक क्लीनिक के सामने रोक दी, उस क्लीनिक का डाॅक्टर सार्जेंट का पहचान वाला था।
आओ सार्जेंट डाॅक्टर ने उसे दूर से ही देख लिया आज यहाँ कैंसे आना हुआ।
- मैं तो मरने पर भी नहीं आता फिलहाल तो आप इन मैडम की मरहम पट्टी कर दें।
- क्या हुआ इन्हें।
- क्या हुआ, ये पूछें क्या नहीं हुआ, डाॅक्टर जरा जल्दी करो, इनके पूरे षरीर पर ताजे जख्म हैं।
- ठीक है लेकिन मेरी नर्स और कम्पोंडर तो चले गये बस मैं भी अभी जाने वाला ही था....तुम्हें मेरी सहायता करनी पड़गी।
- ठीक है।
उससे ठीक से चला भी नहीं जा रहा था, सार्जेंट सहारा देकर डिसपेन्सरी ले गया।
- उस स्ट्रेचर पर लिटा दो।
- चोट कहां लगी है।
- डाॅक्टर इसके पूरे षरीर पर बेरहमी से हन्टर बरसाये गये हैं।
- मामला क्या है।
- बाद में बताऊँगा.....पहले दवा-दारू करो।
- इनके कपड़े उतारने पडें़गे ? नर्स तो हे नहीं तुम उतारो मैं पानी गर्म करता हूँ।
- मैं!
- अरे भाई ये तो हमारा रोज का काम है, और इस समय ये सब नहीं देखा जाता।
सार्जेंट ने उसकी मिडी का बक्कल खोलकर मिडी निकाल बगल के टेबल पर रख दी ...उसने एक हाथ से अपनी आँख बन्द कर रखी थी।
- क्यों सार्जेंट तुम क्यों षरमा रहे हो, षरमाना तो मुझे चाहिये।
- मैं किसी से नहीं षरमाता...जरा उठो।
- मेरे से उठते नहीं बनेगा।
सार्जेंट ने एक हाथ से सहारा देकर उसे बिठा दिया, दूसरे हाथ से उसकी मिडी टाप की चेन खोली....फिर होले से टाप उसके षरीर से अलग कर दिया..उसके ब्रेस्ट भी हंटर की मार से लाल हो गये थे ..मैं जानता था वो एक नाजुक जगह थी..यहाँ के टेंपरेरी इलाज के बाद इस लड़की को निष्चित रूप से ब्रेस्ट की सरजरी करानी पड़ेगी। उसके षरीर से जगह-जगह खून रिस रहा था....आधा घण्टे में मरहम पट्टी पूरी हो सकी...डाॅक्टर ने उसे टिटनेस का इन्जेक्सन भी लगा दिया साथ ही दर्द के लिये इन्जेक्सन के साथ सोने के पहले खाने के लिये नींद की गोली भी उसे दे दी। अब वह कम्प्रेटिवली अच्छी फील कर रही थी..
- थेंक्यू डाॅक्टर।
- नो थेंक्स् सार्जेंट..
सार्जेंट ने संभालकर उस को कार की पिछली सीट पर लिटा दिया...और कार गेयर में डाल कर आगे बड़ा दिया।
- हैलो, जीहाँ मैं सार्जेंट दिलीप ही हूँ।
- और सार्जेंट कर्नल साहब भी हैं क्या।
- आप कोन बोल रही हैं.........ओह तो आप , कहाँ से, नहीं ठीक है मैं क्वाटर पहुँच रहा हूँ, तब तक आप सावधानी से रहें।
सार्जेंट ने रिसीवर क्रेन्डिल पर रख दिया और तेजी से अपनी आइन्सटीन की तरफ भागा, मोण्टी भी उछल कर उसके साथ हो लिया। अगले ही पल वो हवा से बातें कर रहे थे।
इस समय सार्जेंट के हंसमुख चहरे पर चिन्ता के लक्षण साफ दिखाई दे रहे थे। वह सड़क के किनारे स्थित वृक्ष के नीचे अपनी आइन्सटीन खड़ी कर तेजी से पास वाले क्वार्टर की तरफ भागा।
उसने काल बेल पुस की, अन्दर कहीं घंटी बजने की आवाज आयी फिर पदचाप की आवाज धीरे-धीरे स्पश्ट होती गयी...कौन ?
- मैं सार्जेंट दिलीप
उसने दरवाजा खोला, उसे जबड़े से खुन रिस रहा था कपड़े जगह-जगह फटे हुए थे। षरीर पर हन्टर के निषान स्पश्ट दिखाई दे रहे थे। उसके खुबसूरत चहरे पर पीड़ा के भाव झलक रहे थे।
- लगता है उन्होने आपको बहुत टार्चर किया।
- हाँ सार्जेंट, सच कहूँ तो मैं टूट गयी मैंने बता दिया डाॅक्टर कहाँ गये हैं।
- कहाँ गये हैं !
- श्रीनगर वहाँ उनकी विधवा बहन रहती है।
- आहो कब गये।
- परसों
- कितने बजे..
- लेब से तो सुबह ही चले गये थे, पर गये कब मुझे नहीं मालुम, वैंसे मुझे याद आ रहा है,षाम पांच बजे की फ्लाईट के टिकिट खरीदे थे।
- तुम्हे कैंसे मालुम।
- दरअसल हमारे लेब के बगल में ही डाॅक्टर का आफिस हे, उन्होने वहीं से फोन करके एक दिन पहले टिकिट के संदर्भ में बात की थी।
- खैर देखा जायेगा, तुम्हारे पास श्रीनगर में डाॅक्टर की बहन का पता तो होगा ही।
ये लो उसने मेज से एक कार्ड उठा कर दिया, डाॅक्टर ने जानेे से पहले मुझे दे दिया था, षायद कोई आवष्यक काम पड़ जाये।
सार्जेंट ने पते को जर्कीन की जेब में रख लिया..चलो।
- कहाँ ?
- अपनी हालात देख रही हो, तुम्हें मेडीकल सहायता की आवष्यकता है..चलो।
मैं जरा कपड़े बदल लूँ उसने अपने फटे कपड़ों की तरफ इसारा किया।
- ठीक है जल्दी करो।
पांच मिनिट बाद ही तीनों आइन्सटीन मैं बैठे थे.....तीसरा था मोंटी जो इस दरमियान परिस्थती की नजाकतता को देख बेहद गंभीर बन गया था।
सार्जेंट ने कार एक क्लीनिक के सामने रोक दी, उस क्लीनिक का डाॅक्टर सार्जेंट का पहचान वाला था।
आओ सार्जेंट डाॅक्टर ने उसे दूर से ही देख लिया आज यहाँ कैंसे आना हुआ।
- मैं तो मरने पर भी नहीं आता फिलहाल तो आप इन मैडम की मरहम पट्टी कर दें।
- क्या हुआ इन्हें।
- क्या हुआ, ये पूछें क्या नहीं हुआ, डाॅक्टर जरा जल्दी करो, इनके पूरे षरीर पर ताजे जख्म हैं।
- ठीक है लेकिन मेरी नर्स और कम्पोंडर तो चले गये बस मैं भी अभी जाने वाला ही था....तुम्हें मेरी सहायता करनी पड़गी।
- ठीक है।
उससे ठीक से चला भी नहीं जा रहा था, सार्जेंट सहारा देकर डिसपेन्सरी ले गया।
- उस स्ट्रेचर पर लिटा दो।
- चोट कहां लगी है।
- डाॅक्टर इसके पूरे षरीर पर बेरहमी से हन्टर बरसाये गये हैं।
- मामला क्या है।
- बाद में बताऊँगा.....पहले दवा-दारू करो।
- इनके कपड़े उतारने पडें़गे ? नर्स तो हे नहीं तुम उतारो मैं पानी गर्म करता हूँ।
- मैं!
- अरे भाई ये तो हमारा रोज का काम है, और इस समय ये सब नहीं देखा जाता।
सार्जेंट ने उसकी मिडी का बक्कल खोलकर मिडी निकाल बगल के टेबल पर रख दी ...उसने एक हाथ से अपनी आँख बन्द कर रखी थी।
- क्यों सार्जेंट तुम क्यों षरमा रहे हो, षरमाना तो मुझे चाहिये।
- मैं किसी से नहीं षरमाता...जरा उठो।
- मेरे से उठते नहीं बनेगा।
सार्जेंट ने एक हाथ से सहारा देकर उसे बिठा दिया, दूसरे हाथ से उसकी मिडी टाप की चेन खोली....फिर होले से टाप उसके षरीर से अलग कर दिया..उसके ब्रेस्ट भी हंटर की मार से लाल हो गये थे ..मैं जानता था वो एक नाजुक जगह थी..यहाँ के टेंपरेरी इलाज के बाद इस लड़की को निष्चित रूप से ब्रेस्ट की सरजरी करानी पड़ेगी। उसके षरीर से जगह-जगह खून रिस रहा था....आधा घण्टे में मरहम पट्टी पूरी हो सकी...डाॅक्टर ने उसे टिटनेस का इन्जेक्सन भी लगा दिया साथ ही दर्द के लिये इन्जेक्सन के साथ सोने के पहले खाने के लिये नींद की गोली भी उसे दे दी। अब वह कम्प्रेटिवली अच्छी फील कर रही थी..
- थेंक्यू डाॅक्टर।
- नो थेंक्स् सार्जेंट..
सार्जेंट ने संभालकर उस को कार की पिछली सीट पर लिटा दिया...और कार गेयर में डाल कर आगे बड़ा दिया।