Re: 2012- pilibheet ki ghatna.(वर्ष २०१२ पीलीभीत की एक घटना
Posted: 19 Aug 2015 13:17
उस रात हमने वो संग लायी हुई मदिरा भी उड़ा डाली! मदिरा का सर्व-हरण करने में हम कभी नहीं चूकते! और चूकना भी नहीं चाहिए! बाबा गिरि ने भी हमारे साथ दो-चार पैग ले लिए थे, उनका वैसे सारा कार्यक्रम बाबा अमर नाथ के संग ही होता था! तो हम, रात को ओये आराम से, और सुकून से सुबह उठ भी गए! नहाये-धोये, चाय-नाश्ता किया, टहल भी आये! इसमें करीब आठ साढ़े आठ बज चुके थे! उसके बाद हमने आराम किया, शर्मा जी अकेले टहलने गए थे और साथ में लोकाट ले आये थे! दरअसल लोकाट पेट के लिए बहुत फायदेमंद हुआ करता है, लोकाट के बीजों को सुखाकर, उनका चूर्ण बना लें तो कब्ज़ और पेट की सभी बीमारियों का नाश किया करता है! और फल के रूप में खाओ तो भी पेट के लिए औषधि का काम करता है! जब से शर्मा जी ने लोकाट खाए थे तब से उनका पेट साफ़ और बढ़िया हो गया था! इसीलिए लाने गए थे! मैं उस समय लेट कर आराम कर रहा था! तभी वे ले आये एक बड़ा सा गुच्छा! उसको साफ़ करने के लिए गुसलखाने गए, और एक एक करके साफ़ कर लिए! और ले आये मेरे पास!
"लो जी" वे बोले,
"आप खाओ" मैंने कहा,
"खाओ तो सही?" वे बोले,
"आप खाओ" मैंने कहा,
"नहीं खाएंगे?" पूछा उन्होंने,
"खा लूँगा" मैंने कहा,
"तो उठिए फिर" बोले वो,
आखिर उठना पड़ा,
"लाओ" मैंने कहा,
"लो" मुझे देते हुए बोले,
मैंने फल छीले और खाने लगा! वाक़ई में बहुत मीठे चुन कर लाये थे! हम खाते रहे जब तक खत्म नहीं हो गए! जब खत्म हुए तो हाथ-मुंह धोने चले हम! वापिस आये तो बाबा गिरि मिले हमें वहीँ कमरे में! नमस्कार हुई!
"आइए मेरे साथ" बोले वो,
"चलिए" मैंने कहा,
और चला बाहर उनके साथ,
वे मुझे एक तरफ दूसरे स्थान की तरफ ले चले, मैं चलता रहा, हम पहुँच गए, तो वहां एक महिला खड़ी थी, एक कमरे के बाहर, कोई पचास-पचपन की रही होगी, उसने नमस्कार की, तो मैंने भी की,
"अंदर आओ" वे बोले,
मैं अंदर चला,
अंदर आया तो एक लड़की बैठी थी वहां, शायद यही थी वो साध्वी, जिसका ज़िक्र कल किया था बाबा ने!
"ये है रचना" बोले बाबा,
उसने नमस्कार किया, मैंने उत्तर दिया,
मैं बैठ गया था वहाँ कुर्सी पर, अब स्पष्ट था वो महिला या तो कोई पूर्व-साध्वी थी, अथवा इस लड़की की माँ,
"रचना" मैंने कहा,
उसने मुझे देखा, शर्मा कर निगाहें नीचे कर लीं उसने, मैं समझ गया, ये शायद पहली बार ही किसी क्रिया में बैठने आई है, और ये मेरे लिए सही नहीं था, ये मेरे लिए समस्या बन सकती थी! मैंने उस से अकेले में बात करने की कही, तो बाबा मान गए, वो उस महिला को लेकर बाहर चले गए, हालांकि उस महिला को ऐसा करना ठीक नहीं लगा था, उसके हाव-भाव ऐसे ही थे! वे चले गए बाहर, तो मैंने उस लड़की से बात करने की सोची!
"रचना नाम है तुम्हारा?" मैंने पूछा,
"जी" वो घबरा के बोली,
"पढ़ाई-लिखाई नहीं की?" मैंने पूछा,
""आठ तक पढ़ी हूँ" वो बोली,
बेचारी....ऐसी बहुत हैं साध्वियां, साध्वियां ही कहूँगा, जो गरीबी के कारण ये मार्ग चुन लिया करती हैं, शोषण करना तो भारत देश में बहुत सरल है! लेकिन किसी को सहायता कर उसे सबल बनाना बहुत मुश्किल! ये भी अछूती नहीं थी!
"कभी पहले बैठी हो साधना में?" मैंने पूछा,
"हाँ" वो बोली,
उत्तर मेरी आशा के विपरीत थे उसका!
"कौन सी क्रिया?" मैंने पूछा,
अब उसने जो बताया, वो मात्र सशक्तिकरण था, और उसमे वो सफल भी नहीं हो पायी थी, बाबा उसको मात्र इसलिए लाये थे, की मैं अपना काम-मद दूर कर सकूँ, बहु-स्खलित हो सकूँ, ताकि देह में काम अपनमी अगन भड़का न सके! क्योंकि आगामी क्रिया एक महा-क्रिया थी! और ऐसा होना, सम्भव था! मुझे उस लड़की पर तरस आया!
"कितनी उम्र है तुम्हारी?" मैंने पूछा,
"बाइस" वो बोली,
केवल बाइस! और इस छोटी सी उम्र में, उसको यहां धकेल दिया गया था! ये गलत था बहुत, कम से कम मेरी समझ में तो!
"तुम अपने घर जाओ रचना, और हो सके तो इन कामों से दूर रहो, सम्भव हो तो पढ़ाई ज़ारी रखो कैसे भी, पुनः पढ़ाई करो, अभी कोई देर नहीं हुई है, अपने पांवों पर खड़ी हो जाओगी एक दिन, तब अफ़सोस नहीं होगा इस क्षेत्र में आने का! " मैंने कहा, और उठ गया,
"रुकिए" वो खड़े होते हुए बोली,
मैं रुक गया!
"कहो?" मैंने कहा,
"माँ को पैसे की ज़रूरत है" वो बोली,
"मैं बाबा से बात करूँगा" मैंने कहा,
और आ गया बाहर,
बाहर आया तो बाबा और वो महिला बतिया रहे थे!
"सही है?" बाबा ने पूछा,
"नहीं" मैंने कहा,
मैंने नहीं कहा, तो उस औरत को जैसे सांप सूंघा! अब उसके वो 'एडवांस' वापिस देना होगा जो शायद उसने खर्च कर दिया हो!
"ठीक है, ले जाओ उस लड़की को" बाबा बोले उस औरत से,
औरत सकपकाई सी अंदर गयी, थोड़ी देर अंदर ही रही, शायद पूछ-ताछ की हो उसने रचना से!
"चलो बाबा" मैंने कहा,
"अभी चलता हूँ" वे बोले,
इतने में वो लड़की और उसकी माँ आये वहाँ, नमस्ते की, और चलते बनीं!
"आओ" मैंने कहा,
"रुको" वे बोले,
और जब वो औरतें चली गयीं तो मुझसे सवाल किया उन्होंने!
"क्या हुआ?" पूछा उन्होंने!
"बहुत कच्ची है" मैंने कहा,
"कैसे?" बोले वो,
"कोई अनुभव नहीं है" मैंने कहा,
"अच्छा...ओह" वे बोले,
"उसकी माँ ने शायद अधिक ही बताया हो आपको" मैंने कहा,
"हाँ, यही बात है" वे बोले,
अब मैंने बाबा को उस लड़की की हर सम्भव मदद करने को कहा, मैं भी करूँगा, ये भी कहा, बाबा ने बाद में बात करने को कहा इस विषय पर!
"चलो, एक दूसरी से बात करता हूँ" वे बोले,
"ठीक है" मैंने कहा,
और अब मैं वापिस चला!
अपने कमरे में आया!
"क्या रहा?" पूछा शर्मा जी ने!
अब सारी बात बतायी मैंने उन्हें! उन्हें भी मेरा निर्णय सही ही लगा!
कोई दो घंटे के बाद, मुझे बाबा गिरि का समाचार मिला, मुझे बुलाया था उसी जगह, मैं समझ गया कि कोई और साध्वी आई है, मैं चल पड़ा!
वहां पहुंचा,
कमरे में झाँका, तो एक महिला थी, एक लड़की और बाबा वहाँ!
मैं अंदर जा बैठा! फिर से अकेले में बात करने को कहा, वो मान गए! चले गए बाहर!
अब मैं उस से मुख़ातिब हुआ,
"क्या नाम है तुम्हारा?" मैंने पूछा,
"भार्गवी" वो बोली,
नाम तो बहुत शानदार था उसका!
"उम्र क्या है?" मैंने पूछा,
"पच्चीस में चल रही हूँ" वो बोली,
उसके उत्तर देने के ढंग से समझ आया कि ये अनुभवी है!
"किसी क्रिया में बैठी हो?" मैंने पूछा,
"हाँ" वो बोली,
"कौन सी?" मैंने सवाल किया,
अब उसने उत्तर दिया और उत्तर सही ही दिया था! उसको अनुभव था!
"खड़ी हो जाओ" मैंने कहा,
वो खड़ी हो गयी,
अब मैंने उसके शरीर का परिमाप देखा, कंधे ऊपर नीचे तो नहीं? पाँव में कहीं कोई दोष तो नहीं? गरदन कहीं नीचे झुकी तो नहीं? सब ठीक था अभी तक, बाकी जांच बाद में होती, वो भी आवश्यक है! और करनी ही पड़ती है!
"मासिक आने में क्या देर है?" मैंने पूछा,
"बीस दिन" वो बोली,
तब तो ठीक था!
"आज रात नौ बजे, मेरे संग क्रिया में बैठना है, लेकिन उस से पहले जांच होगी, ठीक?" मैंने बताया उसको,
उसने गर्दन हिलाकर हाँ कहा,
"ठीक है, नौ बजे" मैंने कहा,
और मैं बाहर आ गया!
बाबा को बता दिया कि अभी तक तो ठीक है सबकुछ, आगे जांच में पता चले!
"कोई बात नहीं" वो औरत बोली,
और उस भार्गवी के बार में दो-चार तारीफ़ की चटकारें छोड़ दीं!
"लो जी" वे बोले,
"आप खाओ" मैंने कहा,
"खाओ तो सही?" वे बोले,
"आप खाओ" मैंने कहा,
"नहीं खाएंगे?" पूछा उन्होंने,
"खा लूँगा" मैंने कहा,
"तो उठिए फिर" बोले वो,
आखिर उठना पड़ा,
"लाओ" मैंने कहा,
"लो" मुझे देते हुए बोले,
मैंने फल छीले और खाने लगा! वाक़ई में बहुत मीठे चुन कर लाये थे! हम खाते रहे जब तक खत्म नहीं हो गए! जब खत्म हुए तो हाथ-मुंह धोने चले हम! वापिस आये तो बाबा गिरि मिले हमें वहीँ कमरे में! नमस्कार हुई!
"आइए मेरे साथ" बोले वो,
"चलिए" मैंने कहा,
और चला बाहर उनके साथ,
वे मुझे एक तरफ दूसरे स्थान की तरफ ले चले, मैं चलता रहा, हम पहुँच गए, तो वहां एक महिला खड़ी थी, एक कमरे के बाहर, कोई पचास-पचपन की रही होगी, उसने नमस्कार की, तो मैंने भी की,
"अंदर आओ" वे बोले,
मैं अंदर चला,
अंदर आया तो एक लड़की बैठी थी वहां, शायद यही थी वो साध्वी, जिसका ज़िक्र कल किया था बाबा ने!
"ये है रचना" बोले बाबा,
उसने नमस्कार किया, मैंने उत्तर दिया,
मैं बैठ गया था वहाँ कुर्सी पर, अब स्पष्ट था वो महिला या तो कोई पूर्व-साध्वी थी, अथवा इस लड़की की माँ,
"रचना" मैंने कहा,
उसने मुझे देखा, शर्मा कर निगाहें नीचे कर लीं उसने, मैं समझ गया, ये शायद पहली बार ही किसी क्रिया में बैठने आई है, और ये मेरे लिए सही नहीं था, ये मेरे लिए समस्या बन सकती थी! मैंने उस से अकेले में बात करने की कही, तो बाबा मान गए, वो उस महिला को लेकर बाहर चले गए, हालांकि उस महिला को ऐसा करना ठीक नहीं लगा था, उसके हाव-भाव ऐसे ही थे! वे चले गए बाहर, तो मैंने उस लड़की से बात करने की सोची!
"रचना नाम है तुम्हारा?" मैंने पूछा,
"जी" वो घबरा के बोली,
"पढ़ाई-लिखाई नहीं की?" मैंने पूछा,
""आठ तक पढ़ी हूँ" वो बोली,
बेचारी....ऐसी बहुत हैं साध्वियां, साध्वियां ही कहूँगा, जो गरीबी के कारण ये मार्ग चुन लिया करती हैं, शोषण करना तो भारत देश में बहुत सरल है! लेकिन किसी को सहायता कर उसे सबल बनाना बहुत मुश्किल! ये भी अछूती नहीं थी!
"कभी पहले बैठी हो साधना में?" मैंने पूछा,
"हाँ" वो बोली,
उत्तर मेरी आशा के विपरीत थे उसका!
"कौन सी क्रिया?" मैंने पूछा,
अब उसने जो बताया, वो मात्र सशक्तिकरण था, और उसमे वो सफल भी नहीं हो पायी थी, बाबा उसको मात्र इसलिए लाये थे, की मैं अपना काम-मद दूर कर सकूँ, बहु-स्खलित हो सकूँ, ताकि देह में काम अपनमी अगन भड़का न सके! क्योंकि आगामी क्रिया एक महा-क्रिया थी! और ऐसा होना, सम्भव था! मुझे उस लड़की पर तरस आया!
"कितनी उम्र है तुम्हारी?" मैंने पूछा,
"बाइस" वो बोली,
केवल बाइस! और इस छोटी सी उम्र में, उसको यहां धकेल दिया गया था! ये गलत था बहुत, कम से कम मेरी समझ में तो!
"तुम अपने घर जाओ रचना, और हो सके तो इन कामों से दूर रहो, सम्भव हो तो पढ़ाई ज़ारी रखो कैसे भी, पुनः पढ़ाई करो, अभी कोई देर नहीं हुई है, अपने पांवों पर खड़ी हो जाओगी एक दिन, तब अफ़सोस नहीं होगा इस क्षेत्र में आने का! " मैंने कहा, और उठ गया,
"रुकिए" वो खड़े होते हुए बोली,
मैं रुक गया!
"कहो?" मैंने कहा,
"माँ को पैसे की ज़रूरत है" वो बोली,
"मैं बाबा से बात करूँगा" मैंने कहा,
और आ गया बाहर,
बाहर आया तो बाबा और वो महिला बतिया रहे थे!
"सही है?" बाबा ने पूछा,
"नहीं" मैंने कहा,
मैंने नहीं कहा, तो उस औरत को जैसे सांप सूंघा! अब उसके वो 'एडवांस' वापिस देना होगा जो शायद उसने खर्च कर दिया हो!
"ठीक है, ले जाओ उस लड़की को" बाबा बोले उस औरत से,
औरत सकपकाई सी अंदर गयी, थोड़ी देर अंदर ही रही, शायद पूछ-ताछ की हो उसने रचना से!
"चलो बाबा" मैंने कहा,
"अभी चलता हूँ" वे बोले,
इतने में वो लड़की और उसकी माँ आये वहाँ, नमस्ते की, और चलते बनीं!
"आओ" मैंने कहा,
"रुको" वे बोले,
और जब वो औरतें चली गयीं तो मुझसे सवाल किया उन्होंने!
"क्या हुआ?" पूछा उन्होंने!
"बहुत कच्ची है" मैंने कहा,
"कैसे?" बोले वो,
"कोई अनुभव नहीं है" मैंने कहा,
"अच्छा...ओह" वे बोले,
"उसकी माँ ने शायद अधिक ही बताया हो आपको" मैंने कहा,
"हाँ, यही बात है" वे बोले,
अब मैंने बाबा को उस लड़की की हर सम्भव मदद करने को कहा, मैं भी करूँगा, ये भी कहा, बाबा ने बाद में बात करने को कहा इस विषय पर!
"चलो, एक दूसरी से बात करता हूँ" वे बोले,
"ठीक है" मैंने कहा,
और अब मैं वापिस चला!
अपने कमरे में आया!
"क्या रहा?" पूछा शर्मा जी ने!
अब सारी बात बतायी मैंने उन्हें! उन्हें भी मेरा निर्णय सही ही लगा!
कोई दो घंटे के बाद, मुझे बाबा गिरि का समाचार मिला, मुझे बुलाया था उसी जगह, मैं समझ गया कि कोई और साध्वी आई है, मैं चल पड़ा!
वहां पहुंचा,
कमरे में झाँका, तो एक महिला थी, एक लड़की और बाबा वहाँ!
मैं अंदर जा बैठा! फिर से अकेले में बात करने को कहा, वो मान गए! चले गए बाहर!
अब मैं उस से मुख़ातिब हुआ,
"क्या नाम है तुम्हारा?" मैंने पूछा,
"भार्गवी" वो बोली,
नाम तो बहुत शानदार था उसका!
"उम्र क्या है?" मैंने पूछा,
"पच्चीस में चल रही हूँ" वो बोली,
उसके उत्तर देने के ढंग से समझ आया कि ये अनुभवी है!
"किसी क्रिया में बैठी हो?" मैंने पूछा,
"हाँ" वो बोली,
"कौन सी?" मैंने सवाल किया,
अब उसने उत्तर दिया और उत्तर सही ही दिया था! उसको अनुभव था!
"खड़ी हो जाओ" मैंने कहा,
वो खड़ी हो गयी,
अब मैंने उसके शरीर का परिमाप देखा, कंधे ऊपर नीचे तो नहीं? पाँव में कहीं कोई दोष तो नहीं? गरदन कहीं नीचे झुकी तो नहीं? सब ठीक था अभी तक, बाकी जांच बाद में होती, वो भी आवश्यक है! और करनी ही पड़ती है!
"मासिक आने में क्या देर है?" मैंने पूछा,
"बीस दिन" वो बोली,
तब तो ठीक था!
"आज रात नौ बजे, मेरे संग क्रिया में बैठना है, लेकिन उस से पहले जांच होगी, ठीक?" मैंने बताया उसको,
उसने गर्दन हिलाकर हाँ कहा,
"ठीक है, नौ बजे" मैंने कहा,
और मैं बाहर आ गया!
बाबा को बता दिया कि अभी तक तो ठीक है सबकुछ, आगे जांच में पता चले!
"कोई बात नहीं" वो औरत बोली,
और उस भार्गवी के बार में दो-चार तारीफ़ की चटकारें छोड़ दीं!