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2013- maanesar ki ek ghatna thriller story

Posted: 19 Aug 2015 13:23
by sexy
वर्ष २०१३ मानेसर की एक घटना


वो एक सुनहरी सी शाम थी! क्षितिज पर, सूर्यदेव की लालिमा छायी हुई थी! दिन भर के थके-मांदे सूर्यदेव अब अस्तांचल में विश्राम करने जा रहे थे! पृथ्वी पर दिवस का अवसान हो चुका था, आकाश में पक्षी अपने अपने घरौंदों की ओर उड़ चले थे! बगुले धनुष का आकार बनाये, अपने सर्वश्रेष्ठ साथी के पीछे पीछे उड़ते जा रहे थे! अब विश्राम का समय था! मैं शर्मा जी के साथ बैठा था, ये रास्ते का एक ढाबा था, चारपाई बिछी हुई थी, हमारी तरह और भी मुसाफिर चाय आदि का लुत्फ़ ले रहे थे! हमने भी चाय के लिए के अपनी वो यात्रा रोकी थी! हम बदायूं से वापिस आ रहे थे! एक मेरे जानकार मुल्ला जी के बेटे का निकाह था, वही से दावत उड़ा कर वापिस आ रहे थे! अभी दिल्ली कोई एक सौ बीस किलोमीटर दूर थी, चाय की तलब लगी थी तो चाय पीने हम रुक गए थे! शाम घिर चुकी थी, स्थानीय लोग भी अपने अपने घरों की ओर लौट रहे थे, कोई ईंधन ला रहा था, तो कोई मवेशियों का चारा, तो कोई अपनी साइकिल पर, बाज़ार से कुछ सामान ले, वापिस घर जा रहा था! फलों वाले ठेले और चाँट-पकौड़ी वाले ठेलों पर अब हंडे जलने लगे थे! औरतें अपने अपने घूंघट काढ़े आ-जा रही थीं, कुछ ने सामान उठाया हुआ था, और कुछ रुक कर सवारी के इंतज़ार में थीं! ठीक सामने ही एक देसी शराब का ठेका था, वहाँ तो ऐसी भीड़ लगी थी कि जैसे कल ठेका बंद हो जाएगा! जैसे आज मुफ्त बंट रही हो! लोग वहीँ अंदर घुसते, और आराम से बैठ कर मदिरा का आनंद लेते! बाहर एक ठेला लगा ता, उस पर उबले अंडे और ऑमलेट, और उबले चनों का सारा जुगाड़ था! लोग उसे भी घेर के खड़े थे! वो छोटा सा कस्बा था जो अब जीवंत हो उठा था! ये है मेरा भारत देश! इसीलिए मैं स्वर्ग की भी कल्पना नहीं करता! इसकी मिट्टी से पावन तो गोरोचन भी नहीं!
हमने चाय पी, और पैसे दिए उसके, पैसे खुले थे नहीं, तो वो खुले करवा लाया, दे दिए हमें!
"भाई साहब, यहाँ अंग्रेजी ठेका है क्या?" मैंने पूछा, उस दुकानदार से,
"हाँ, है न! यहां से आगे जाओगे तो उलटे हाथ पर पड़ेगा, कोई दो सौ कदम पर" वो इशारा करके बोला,
"शुक्रिया" मैंने कहा,
अब हम चले वहाँ से, गाड़ी में बैठे, और धीरे धीरे गाड़ी आगे बढ़ायी, कोई दो सौ कदम पर एक ठेका था! ठेके में सामने जाली लगी थी, और उस जाली में एक जगह थी, जहाँ से बस एक हाथ ही अंदर जा सकता था! शर्मा जी उतरे, और गए वहाँ, एक बोतल खरीद ली उन्होंने, और आ गए वापिस, बोतल मुझे पकड़ाई, मैंने पीछे सीट पर रख दी, और अब हम चले वहां से, आगे एक जगह, एक होटल था, यहाँ जुगाड़ हो सकता था, शर्मा जी उतरे और चले अंदर, फिर मुझे इशारा किया, मैं समझ गया कि जुगाड़ हो गया है! गाड़ी को ताला लगाया, बोतल उठायी और चल दिए होटल में! अंदर एक जगह बिठाया उसने हमें, और खाने का आर्डर भी ले लिया, मैंने तो मसालेदार ही खाना था, तो बोल दिया, शर्मा जी ने दाल मंगवा ली, साथ में सलाद, उसने देर न लगाई, सारा सामान, बर्फ आदि सब दे गया!
"लो जी! हो जाओ शुरू" मैंने कहा,
हम शुरू हुए फिर!
खाना भी लगा दिया गया! खाना बढ़िया था! अच्छे से खाया, पैसे दिए, और अब चले वापिस! और इस तरह हम रात के दस बजे अपने स्थान पर पहुँच गए! वहां पहुंचे, तो पता चला, बाबा मोहन आये हुए हैं! बाबा मोहन काशी के हैं, अक्सर दिल्ली आते समय मेरे पास से हो कर जाते हैं!
मैं और शर्मा जी सीधे उन्ही के पास गए! नमस्कार हुई उनसे! उनके साथ उनका एक चेला भी था, कपिल नाम है उसका, वे बहत प्रसन्न हुए! उसने खाने आदि की पूछी तो बताया उन्होंने कि खाना तो खा लिया है, और 'प्रसाद' भी ग्रहण कर लिया है! अब मैंने उन्हें आराम करने की कही, बाकी बात बाद में सुबह!
मैं अपने कक्ष में आ गया था, कपड़े उतार रहा था कि पूनम आ गयी अंदर, पूनम अभी कोई महीने भर पहले ही आई थी यहाँ, पूनम ने खाने की पूछी तो मैंने कहा दिया कि खाना तो खा लिया है हमने, और अगर उसने नहीं खाया है तो खा ले, टेढ़ा सा मुंह बना कर चली गयी वो! मुझे हंसी आ गयी उसकी इस हरकत पर! कपड़े बदले, हाथ मुंह धोये और पकड़ ली खटिया!
तसल्ली से सोये हम! शर्मा जी मेरे साथ वहीँ रुके थे!
सुबह हुई साहब!
नहाये-धोये हम!
और फिर चाय-नाश्ते का हुआ समय!
पूनम ही आई थी, उस से चाय की कही, वो चली गयी चाय बनाने के लिए, अब तक बाबा मोहन और कपिल भी आ बैठे थे हमारे साथ!
"और बाबा, कैसे हो?" मैंने पूछा,
"कुशल से हूँ" वे बोले,
"और कपिल तू?" मैंने पूछा,
"कुशल से" वो बोला,
"कहाँ जा रही है सवारी?" मैंने पूछा,
"यहीं, मानेसर के पास" वे बोले,
"अच्छा! कोई काम?" मैंने पूछा,
"हाँ, है एक काम" वो बोले,
मैंने काम नहीं पूछा उनसे!
"और बाबा चरण ठीक हैं?" मैंने पूछा,
"हाँ, आजकल कलकत्ता गए हुए हैं" वे बोले,
"अच्छा अच्छा!" मैंने कहा,
अब तक चाय आ गयी! हमने अपने अपने कप उठा लिए, साथ में नमकीन और बिस्कुट थे, वही ले लिए! चाय बहुत बढ़िया बनायी थी, अदरक डाल कर! बहुत ही बढ़िया थी चाय!
कोई साढ़े ग्यारह बजे, बाबा मोहन को खाना खिलाया, कपिल को भी, हमने भी खा लिया था, और तब वे चले गए थे वहां से, उनको हफ्ते में वापिस आना था, मेरे पास से ही होकर जाते वो!
दोपहर में शर्मा जी भी चले गए! अब शाम को आते वो मेरे पास!
मैं अपने कमरे में ही आराम कर रहा था कि पूनम आ गयी अंदर,
"आओ पूनम, बैठ जाओ" मैंने कहा,
वो बैठ गयी, आँखों में आँखें डाले!
"गुस्सा हो क्या?" मैंने पूछा,
"नहीं" वो बोली,
"तो फिर?" मैंने पूछा,
"कब जाएंगे?" उसने पूछा,
"अच्छा! हाँ, चलो इस इतवार छोड़ आता हूँ तुम्हें" मैंने कहा,
इतवार आने में अभी तीन दिन थे!
"ठीक है?" मैंने कहा,
"ठीक है" वो बोली,
"यहाँ क्या परेशानी है?" मैंने पूछा,
"कोई परेशानी नहीं" वो बोली,
"मैं समझ गया!!" मैंने कहा!
"क्या?" वो बोली,
मैं हंसने लगा!
"बताओ न?" उसने पूछा,
"वो...अजय!" मैंने कहा,
चेहरा लाल हो गया उसका! सर झुका लिया!
"है या नहीं, सच बताओ!" मैंने कहा,
उसने सर हिलाकर हाँ कही!
"वैसे लड़का अच्छा है! ब्याह की बात चलाऊँ?" मैंने कहा,
चौंक पड़ी! अंदर ही अंदर, मन में लड्डू फूट पड़े!
"उसके पिता बाबा रमिया मेरा कहा नहीं काटेंगे! मान जाएंगे!" मैंने कहा,
शांत! शांत बैठी रही!
"चलो ठीक है पूनम, इस इतवार छोड़ आता हूँ!" मैंने कहा,
उसने सर हिलाकर हाँ कहा!
भोली-भाली है ये पूनम! अधिक पढ़ी-लिखी नहीं है! गाँव की है, लेकिन रूप-रंग में किसी से कम नहीं! देह ऐसी कि कोई भी देखे तो चुंबक लग जाए नेत्रों को!
"तुमने ये बात अपनी माँ से बतायी है?" मैंने पूछा,
"हाँ" वो बोली,
"मन ने क्या कहा?" मैंने पूछा,
"कुछ नहीं कहती माँ" वो बोली,
जानता था, किसलिए कुछ नहीं कहती, बाबा रमिया पहुंचे हुए थे! और वो लड़का अजय, वो अपने पिता के नक्शेकदम पर ही था! और ये बेचारी पूनम! प्रेम कर बैठी थी उस से!
"अजय प्रेम करता है तुमसे?" मैंने पूछा,
सर हिलाकर हाँ कही!
"फिर चिंता न करो! आराम से रहो! इस इतवार चलता हूँ! मैं सामान भी ला दूंगा तुम्हारा, ठीक है?" मैंने कहा,
सर हिलाकर हाँ कही फिर से! बिना नज़रें मिलाये उठी और चली गयी बाहर!
एक हल्की सी हंसी, मेरे होंठों पर तैर गयी!

Re: 2013- maanesar ki ek ghatna thriller story

Posted: 19 Aug 2015 13:24
by sexy
उसी शाम को शर्मा जी आ गए थे, साथ साथ ही हमने खाना-पीना किया और फिर रात को शर्मा जी वहीँ ठहरे, हमारी बातें होती रहीं, मैंने उनको बताया कि हमको इतवार को निकलना है हरिद्वार, इस पूनम को छोड़ कर आना है इसकी माँ के पास, वे राजी हो गए, उसके बाद हम सो गए!
सुबह हुई तो हम फारिग हुए,
चाय-नाश्ता कर लिया था हमने, शर्मा जी चले गए थे उसके बाद,
इस तरह शनिवार आ गया, शनिवार को मैं और शर्मा जी बाज़ार गए, कपड़े-लत्ते खरीदे उसके लिए, और जो भी औरतों का अटरम-शटरम हुआ करता है, खरीद लिया था, पूनम को पसंद आता, मुझे यक़ीन था! सामान खरीद लिया तो वापिस हुए, और अपना सामान भी खरीद लिया फिर! अपने यहां पहुंचे, और फिर सीधा अपने कक्ष में!
पूनम नज़र नहीं आ रही थी, मैं बाहर गया, आसपास देखा, तो कहीं नहीं थी, एक सहायक से पूछा तो पता चला कि कपड़े लेने गयी है, जो दिन में सुखाये थे! मैं वापिस कक्ष में आ गया फिर, सामान आदि एक तरफ रखा, सहायक से पानी माँगा पीने के लिए, वो पानी लाया और फिर पानी पिया मैंने, शर्मा जी ने भी पानी पी लिया था!
आधे घंटे के बाद पूनम आई, कपड़ों का ढेर ले आई थी!
"आओ पूनम, रख दो इनको यहाँ" मैंने कहा,
उसने बिस्तर पर रख दिए कपड़े सारे,
"सुनो, ये लो" मैंने कहा,
और उसके नए कपड़े उसको दे दिए! खुश हो गयी थी बहुत!
"अब जो पसंद आये ज़्यादा, वो पहन के चलना" मैंने कहा,
वो मुस्कुराई और चली गयी अपना सारा सामान लेकर!
अब शाम ढली! सहायक को बुलाया, सामान आदि मंगवाया और किया अपना काम शुरू फिर! बाद में खाना खाया और चैन की बंसी बजाई अपने पलंग पर!
सुबह सुबह मैं उठा, बाहर आया, कुल्ला-दातुन की, तो पूनम आ रही थी, नमस्ते हुई उस से, वो स्नान कर आई थी, बाल खुले थे तो बाल फटकार रही थी!
"चाय पिला दो पूनम, कल से तो तुम होंगी नहीं यहाँ!" मैंने कहा,
वो हंसी और चली गयी!
इतने में मैं स्नान कर आया, जब आया तो शर्मा जी भी उठ चुके थे, उन्होंने भी अपने वस्त्र उठाये और स्नान करने चले गए! वे जब वापिस आये, तो चाय ला चुकी थी पूनम, साथ में नमकीन थी, और कुछ मट्ठियां, चाय के साथ बढ़िया लगती हैं ये!
"सुनो पूनम, चाय पी लो तुम भी, तैयार हो जाओ फिर, खाना रास्ते में ही खा लेंगे" मैंने कहा,
उसने सर हिलाया, और चली गयी!
कोई आधे घंटे में वो भी तैयार थी, और हम भी! अपने सिलेटी रंग के कुर्ते और पाजामी में गज़ब लग रही थी पूनम! मैंने उसको घुमा-फ़िरा क देखा, कुरता जंच रहा था उस पर! और इस तरह हम कोई नौ बजे से पहले, हरिद्वार जाने के लिए तैयार हो गए थे! और हम निकल पड़े, सहायक को बताया कि कल या परसों में वापिस आ जाएंगे!
हम निकले अब वहां से, सुबह सुबह यातायात अधिक नहीं होता, आराम से चलते ही रहे, गाड़ी तेज नहीं भगाई थी हमने, रास्ते में एक जगह कोई बारह बजे, रुके, और भोजन किया हमने! और फिर आगे बढ़ गए! कोई तीन बजे हम हरिद्वार पहुँच गए थे! यहाँ आकर हमने चाय पी, हल्का-फुल्का खाया, और फिर पूनम की माँ के स्थान की ओर चल पड़े! पूनम की माँ बाबा हरदा के यहाँ रहा करती थी, हमें वहीँ जाना था! और वो स्थान यहाँ से कोई पच्चीस किलोमीटर पूर्व में पड़ता था! हरिद्वार में अक्सर ही भीड़-भाड़ रहा करती है, यहीं अटक गए थे हम, किसी तरह से निकले हम वहां से और आ आगये एक खुले रास्ते पर! और इस तरह कोई पांच, सवा पांच बजे, हम बाबा हरदा के स्थान पर पहुँच गए!
बाबा हरदा मेरे भी जानकार हैं, अतः उनसे मिलना सबसे ज़रूरी था! मैंने पूनम को भेज दिया था उसकी माँ के पास, कि हम अभी आ रहे हैं उनके पास! वो चली गयी थी, अपना बैग लेकर! और अब हम बाबा हरदा के पास चले मिलने! एक सहायक मिला, उस से बात हुई, और वो हमको ले गया बाबा हरदा के पास! हम अंदर गए! बाबा पंखा झल रहे थे, बत्ती नहीं थी!
नमस्कार हुई उनसे!
उनके चरण छुए!
वे प्रसन्न हुए!
"आओ बैठो" वे बोले,
और सहायक को आवाज़ देकर, पानी मंगवा लिया!
पानी पिया जी हमने वहाँ!
"और, कैसे रास्ता भटके आज?" वे बोले,
"ऐसे ही, वो प्रेमा की लड़की पूनम थी मेरे यहां, आई थी किसी के साथ, वो तो आगे चले गए, वो मेरे यहाँ रह गयी, आज उसे ही छोड़ने आया हूँ" मैंने कहा!
"अच्छा! अच्छा!" वे बोले,
बाबा हरदा से बहुत बातें हुईं, कुछ मेरे विषय में, कुछ उनके विषय में और कुछ अन्य जानकारों के विषय में, फिर हम उठे वहाँ से और चले पूनम से मिलने के लिए!
वहाँ पहुंचे, तो पूनम और उसकी छोटी बहन भी मिली अपनी माँ के साथ! बहुत खुश थी पूनम आज! आखिर माँ के पास आ गयी थी, और फिर अजय! कोई दूर नहीं था वहाँ से!
अब उसकी माँ से बातें हुईं हमारी, उस लड़के अजय के बारे में, कुल मिलाकर यही निष्कर्ष निकला कि चाहती तो वो भी हैं कि पूनम का ब्याह उसी से हो जाए, लेकिन बाबा रमिया नहीं मानेंगे, किसी भी तौर पर नहीं! ये सत्य भी था, बाबा रमिया का रसूख था! उनका डेरा भी काफी बड़ा था, वहां उन्होंने कुछ ज़मीन कुछ पैसे कमाने के लिए रखी थी, वहां शादी-ब्याह आदि हुआ करते थे, कुछ अन्य पार्टियां भी, आय बढ़िया थी उनकी, इसमें कोई शक़ नहीं था! लेकिन बात करने में कोई हर्ज़ा नहीं था! मैंने यही कहा कि मैं स्वयं ही बात करूँगा!
अब मैं उठा, तो पूनम आई मेरे पास!
"हाँ! बोलो" मैंने कहा,
मुझे एक तरफ ले गयी वो!
"बोलो?" मैंने कहा,
"बात बन जायेगी?" उसने पूछा,
"अवश्य!" मैंने कहा,
आंसू भर लायी आँखों में!
"अरे! पागल हो क्या! चुप! मैंने कहा न, बन जाएगी बात" मैंने कहा,
आंसू पोंछे उसने!
"उस से मिलना, लेकिन कुछ ऐसा मत करना कि हम सबकी इज़्ज़त खराब हो" मैंने साफ़ साफ़ का दिया था!
वो चुप थी!
"समझ में आया या नहीं" मैंने कहा,
सर हिलाकर हाँ कही उसने!
"अब चलता हूँ, कल जाने से पहले आऊंगा, कल सुबह बात करने जाऊँगा बाबा रमिया से" मैंने कहा!
अब मैं बढ़ा शर्मा जी की तरफ, मुझे देख खड़े हुए वो, प्रेमा ने हमें रोका कि आज तो यहीं ठहर जाते, पूनम ने भी ज़िद पकड़ी, लेकिन वहां नहीं रुकना था! अतः मना कर दिया! और फिर बाबा हरदा से भी मिले, उनसे भी बहाना किया कि कुछ ज़रूरी काम है, नहीं तो रुक जाते! और इस तरह हम वहां से निकल पड़े! हाँ, जाने से पहले, मैं पूनम को कुछ पैसे दे आया था, कभी बात करनी हो तो कर लेती!
अब हम सीधा अपने जानकार बाबा अर्रु के पास पहुंचे! बाबा अर्रु मलंग बाबा हैं! आयु में कोई साठ-पैंसठ वर्ष के हैं लेकिन पूरे दिलदार! सौ किलो सोने का बोरा, गंगा जी में बस इसीलिए फेंक दिया कि भारी बहुत था! ऐसे हैं बाबा अर्रु! बाबा अर्रु ने सोने का बहुत काम किया है! वे यही काम किया करते हैं! और उन्होंने अपने ऐसे कुल नौ स्थान बना रखे हैं!
हम वहीँ पहुंचे!
बाबा अर्रु हमें देख ऐसे प्रसन्न हुए जैसे स्वयं हम उनके ही पुत्र हों! गले से लग गए, पाँव छूने का मौका ही नहीं दिया! हाथ पकड़ कर, बिठा लिया नीचे!
"मुझे खबर क्यों नहीं की लाला?" मुझसे बोले,
मुझे लाला ही बोलते हैं वो! शुरू से ही!
अब उन्हें सारी बात बतायी! और ये भी कि किसी तरह से बाबा रमिया को मनवाओ! बाबा अर्रु ने आश्वासन दिया, कि अगर बेटी प्रेम करती है तो अवश्य ही मनाएंगे उन्हें!
"चलो वो कल देखेंगे! थके होंगे, 'मालिश; करवाओगे?" उन्होंने पूछा,
मैं हंस पड़ा! उनकी मालिश का अर्थ आप समझ समझ गए होंगे!
"अरे नहीं बाबा!" मैंने कहा,
"कभी थकते नहीं हो क्या?" मेरे कंधे दबाते हुए बोले!
"कैसी थकान! बल्कि मालिश के बाद हगी थकान!" मैंने कहा,
"अरे एक बार देख तो लो!" वो बोले,
इस से पहले मैं उन्हें कुछ कहता, आवाज़ दे दी अपने सहायक को! और किसी को बुला भेजा! अब मेरी सिट्टी-पिट्टी गुम!! हालांकि मैंने बहुत मना किया! लेकिन नहीं माने!

Re: 2013- maanesar ki ek ghatna thriller story

Posted: 19 Aug 2015 13:24
by sexy
और कुछ देर बाद, सहायक तो नहीं आया, लेकिन तो हृष्ट-पुष्ट सी लड़कियां ज़रूर आ गयीं! उम्र होगी कोई चौबीस-पच्चीस वर्ष उनकी! उनके चेहरे देख कर लगता था कि जैसे गढ़वाल या नेपाल की तरफ की होंगी वो!
"इधर आओ" बाबा बोले,
अब अब हमारे रंगीन मिज़ाज हैं, सभी जानते हैं उनके इस स्वाभाव के बारे में! सारी वाजीकारक औषधियों के ज्ञाता हैं, ऐसी कोई औषधि नहीं होगी जो न बनायी हो और न खायी हो उन्होंने!
वे आ गयीं उधर,
"बैठ जाओ" वे बोले,
वे बैठ गयीं!
"ये हमारे खासमखास हैं! इनकी मालिश होनी है!" वो बोले, हँसते हुए!
अब मैं कभी उन्हें देखूं, कभी शर्मा जी को, और शर्मा जी मुझे देख, मंद मंद मुस्कुराएं! बड़ी बुरी बीती!
"अरे बाबा रहने दो!" मैंने कहा!
"रहने कैसे दो!" वे बोले,
मैंने माथा पकड़ा अपना!
"निम्मी, ले जाओ हमारे साब को" बोले बाबा,
वे मुस्कुराईं और मेरा हाथ पकड़ लिया! लेकिन मैं उठा नहीं उनसे! वे कोशिश करती रहीं, लेकिन नहीं उठा मैं!
"अरे बैठ जाओ वहाँ" मैंने कहा,
उन्होंने छोड़ा मुझे, और खड़ी हो गयीं!
अब बाबा खड़े हुए, मैं भी खड़ा हुआ!
"मालिश करवा लो, फिर आराम से बैठेंगे!" बाबा ने कहा, हँसते हुए!
मुझे भी हंसी आ गयी!
"नहीं बाबा! मालिश बाद में, पहले कुछ हो जाए!" मैंने कहा,
"जैसी आपकी मर्जी" वे बोले,
अब वे लड़कियां जाने लगीं!
"रुको, सामान ले आओ" बोले बाबा, वे लड़कियां चुपचाप चली गयीं! मित्रगण ऐसी लड़कियां सर्रो कही जाती हैं! इनका कोई लेन-देन नहीं क्रिया आदि से, ये बस 'थकावट' दूर करने के लिए ही होती हैं! अक्सर असम की तरफ और नेपाल में चलन है इनका, जैसे देवदासी हुआ करती थीं ठीक वैसी ही, लेकिन ये पैसे आदि नहीं लेतीं, मेरा कभी साबका नहीं पड़ा, अधिक ज्ञात नहीं! अब बाबा तो बाबा ही हैं! घाट घाट का पानी पिया है, खूब तैरे हैं! उन्हें पता हो तो पता हो!
खैर, सामान आ गया! ठंडा पानी, बर्फ, दो शराब की बोतल, सलाद, पकौड़ियाँ, था कुछ ऐसा ही, रख दिया उन्होंने वहीँ! गिलास आदि सब रख दिया! और चली गयीं वहाँ से!
"पसंद नहीं आयीं?" बाबा ने पूछा,
"क्या बाबा! आप भी!" मैंने कहा,
"और भी हैं वैसे!" वे बोले,
मैं हंस पड़ा! बाबा का अब इस उम्र में ये हाल है तो जवानी कैसी बीती होगी उनकी! पूरे अफ़लातून रहे होंगे!
हमने खाना पीना शुरू किया,
"वो आशीष कहाँ है?" मैंने पूछा,
"लखनऊ में है" वे बोले,
"पढ़ाई करने?" मैंने पूछा,
"हाँ" वे बोले,
आशीष बेटा है उनका, उस से बड़ी लड़की का ब्याह कर दिया है बाबा ने!
"बढ़िया है!" मैंने कहा,
"ये कहाँ से पकड़ लाये?" मैंने पूछा,
"ये! चन्द्र ले आया है नेपाल से!" वे बोले!
"क्या बाबा! आप भी वैसे कमाल हो!" मैंने कहा!
खैर, हमारा खाना-पीना हो गया था! अब खटिया मिले तो चैन आये! बाबा ने मुझे एक कमरा दिया, अपने ही पास वाला, शर्मा जी को एक अलग कमरा दिया! अब मैं उनकी मंशा ताड़ा! आज तो 'थकवा' के ही मानेंगे बाबा!
खैर अब जो हो सो हो! मैं चला गया अपने कमरे में! और कर लिया कमरा बंद अंदर से! कपड़े नहीं उतारे थे अभी, कहीं कोई 'मुसीबत' न आ जाए! इसलिए!
और यही हुआ!
दरवाज़े पर दस्तक हुई!
मेरे कानों में बजी घंटी!
आ गयी मुसीबत! मैं उठा, दरवाज़ा खोला, तो सामने एक बहुत सुंदर सी लड़की खड़ी थी! मन में लालच आया मेरे! लेकिन फिर काबू किया! वो अंदर अाना चाहती थी, लेकिन मैंने नहीं अाने दिया! बहुत समझाने पर, कि मेरी तबीयत खराब है, उसको भेजा! दरवाज़ा किया बंद! और अब कपड़े उतार लिए! अब सो गया आराम से, खर्राटे मार कर! अब कोई भी आये, अब सुबह ही खुलना था दरवाज़ा!
और फिर सुबह हुई! करीब नौ बजे नींद खुली! अब नहाये-धोये हम सभी! गुसलखाने बाहर बने थे, वहीँ नहाये! फिर दूध मिला पीने को! और फिर बाबा से बात हुई हमारी!
"रात बढ़िया गुजरी?" पूछा उन्होंने,
"हाँ जी! बहुत बढ़िया!" मैंने कहा,
"मालिश बढ़िया रही?" वे बोले,
"बहुत बढ़िया!" मैंने कहा,
शर्मा जी मुस्कुराएं! अब उन्हें बाद में ही बताना था कि हुआ क्या था!
हल्का-फुल्का खाया हमने, और हम कोई दस बजे, बाबा रमिया के स्थान के लिए निकल पड़े, बाबा अर्रु भी साथ ही चले, वहां पहुंचे, तो पता चला कि बाबा रमिया तो महीने बाद आएंगे! गए हुए हैं कहीं! अब क्या करते! हम पूनम के पास चले, उसको समझाया और उसकी माँ को भी, और उसके बाद बाबा अर्रु को उनके स्थान पर छोड़ा, और विदा ली हमने, अब दिल्ली वापसी करनी थी!
और हम दिल्ली वापिस हो गए तभी के तभी!
रास्ते में रुके, खाना खाया, चाय आदि पी, और फिर वापसी हुए!
कोई छह बजे हम वापसी अपने स्थान पहुंचे!
शर्मा जी अगले दिन घर के लिए निकले, मैं भी साथ ही चला, अपने घर गया, दो दिन रहा और फिर शर्मा जी से मिला, उसी दिन मैंने बाबा मोहन को फ़ोन किया, लेकिन फ़ोन किसी ने भी नहीं उठाया, हम अपने स्थान पर वापिस आ गए फिर!
तीन दिन और बीते, बाबा मोहन का कुछ पता नहीं चला था, फिर से फ़ोन किया तो फ़ोन बंद मिला, न जाने क्या हुआ? अब तक तो वापिस आना था उन्हें?
तीन दिन और बीत गए, कोई पता नहीं, कोई खबर नहीं!
और अगले दिन कपिल का फ़ोन आया, उस से एक खबर लगी कि बाबा अस्पताल में भर्ती हैं, वो भी था लेकिन बाबा की हालत खराब है, मैंने पता लिया और उसी दिन अस्पताल जा पहुंचा, वे गुड़गांव के एक अस्पताल में दाखिल थे, उनके साथ क्या हुआ था, मैंने पूछा तो कोई नहीं बोले! कपिल ने इतना बताया कि वो बता देगा, लेकिन अभी उसको बोलने में दिक्क़त है, उसकी जीभ में टाँके लगे हैं! अब उनके साथ जो लोग थे, उनमे से दो ऐसे थे जिनका ही काम ये बाबा मोहन कर रहे थे, काम एक ज़मीन का था, उस ज़मीन में किसी ने अकूत धन-दौलत होने की पुष्टि की थी!
और जब मुझे पता चला कि बाबा मोहन इसी काम के लिए गए थे, तो पहले तो गुस्सा आया, फिर हालत पर तरस, किसी शक्ति से टकरा गए थे वो, और अब ये हाल हुआ था उनका!
ठीक चौथे रोज, बाबा की मौत हो गयी, उनके शरीर के अंदरूनी अंग बुरी तरह से कुचल गए थे, चिकित्स्क जितनी कोशिश कर सकते थे की थी!
कोई हफ्ता बीता, कपिल के टाँके अब ठीक थे, मेरी उस से बात हुई,
"क्या हुआ था?" मैंने पूछा,
"सब कुछ ठीक था लेकिन.." वो बोला,
"लेकिन क्या?" मैंने पूछा,
"एक रात खुदाई शुरू हुई थी, ज़मीन में से आग निकली थी, बाबा ने बंद की, फिर पत्थर पड़ने लगे, वो भी बंद किया, और फिर किसी ने उमें उठाकर इतना मारा, इतना मारा कि मैं तो बेहोश हो गया था, और बाबा को क्या हुआ था, मुझे नहीं मालूम" वो बोला,
अब वहां दो लोग थे, एक दीपांकर साहब और एक सुरेश जैन साहब, ज़मीन दीपांकर साहब की थी, अब मैंने उनसे पूछा,
"क्या हुआ था उस रात?" मैंने पूछा,
"हमें नहीं मालूम जी" वे बोले,
"आप कहाँ थे?" मैंने पूछा,
"घर पर" वे बोले,
"आपको खबर किसने दी?" मैंने पूछा,
"पुलिस ने खबर दी थी, बाबा सड़क किनारे पड़े हुए थे" वे बोले,
और पुलिस ने वहाँ लगे बोर्ड से उनका नंबर निकाला था, इस तरह खबर लगी थी उनको...