“बृहद लिंग और महमना बाबू लोहार यही पुनीत कार्य कर रहे थे , आपकी सेना कुमारिकाओं का चोदन करने के लिए अधिकृत नहीं थी” सुवर्णा बोली “और फिर अपने कटे हुए ठूंठ से आपकी सेना पुरुषार्थ खो बैठी है”
महाराज फिसलन भरे फर्श से उठते हुए बोले “किंतु हमने अपनी सेनाओं को उन्हें चोद्ने के लिए अधिकृत किया था”
“आप भूल रहे हैं महाराज , योनि का चोदन कौन करे इसका सर्वाधिकार केवल उस योनि की स्वामिनी का ही होता है जो स्वयं इसे धारण करती है” देवी सुवर्णा ने महाराज का लिंग पकड़ते हुए बोला
“नहीं हमने उनके राज्य को युद्ध में जीता है” महाराज कड़क कर बोले.
हंसते हुए सुवर्णा ने महाराज के लिंग को अपनी योनि पर स्पर्श किया और बोली ” मेरे प्यारे महाराज युद्ध में भले ही आप संपत्ति अथवा भूमि को जीत लें , स्त्री की योनि को कदापि नहीं जीत सकते” सुवर्णा ने प्रतिवाद किया.
” भोगवती की स्त्रीयों को बल पूर्वक जीता है हमने ” महाराज ने जवाब दिया
“भोगावती की स्त्रियाँ कोई भेड़ बकरियाँ अथवा भैंसे नहीं है महाराज जिनको आप खूँटे से बाँध देंगे” सुवर्णा ने बात को काटते कहा और अपनी योनि के होंठों को उंगलियों से विलग कर महाराज का लिंग अंदर प्रविष्ट कराना चाहा
“भोगावती की स्त्रियों के लिए हमारा शिश्न ही खूंटा है उन्हें उसी से बँधा रहना पड़ेगा” महाराज ने निर्णय सुनाकर एक धक्के के साथ देवी की योनि में प्रविष्ट हो गये.
“आपकी इसी विचित्र मानसिकता द्वारा दी गयी आज्ञा के कारण हमारे शूर वीर सैनिकों को अपना खूंटा कटवा कर ठूंठ बनवाना पड़ा है महाराज” देवी सुवर्णा अपने कूल्हे हिला कर लिंग को योनि में और अधिक धंसा कर बोली.
उन दोनो की झांट एक दूसरे के स्राव से भीग कर आपस में उलझ गये थे.
“देवी सुवर्णा आप तो भोगावती की स्त्री नहीं है , न ही हमने आपके सार्वजनिक चोदन की आज्ञा दी है फिर आप क्यों इतना दुखी होतीं हैं?” महाराज ने सुवर्णा की योनि में गहरे धक्के लगाते हुए जानना चाहा
“मैं भोगावती की राजकुमारी हूँ और आपसे विवाह के पहले कुमारिका भी , लिंगन्ना ने जब मेरा सार्वजनिक चोदन करना चाहा तो मेरे यौन छल्ले ने उसे ठूंठ बना दिया” देवी सुवर्णा ने रहस्य से परदा उठाया और अपने दोनो पैर महाराज की कमर के इर्द गिर्द बाँध दिए , यह रहस्योदघाटन सुन कर महाराज सुवर्णा पर निढाल हो कर
गिर पड़े
महाराज पर मानों वज्र पात हो गया जिस स्त्री को वह अपनी पत्नी समझते रहे वह तो शत्रु की राज कन्या निकली.
फिर अचानक उनकें होंठों पर विषैली हँसी फैल गयी “तब तो समस्या ही समाप्त हो गयी देवी….
आपने कहा क़ि स्त्री की योनि पर सर्वप्रथम अधिकार उसके पति का होता है … जो विवाह कर अपनी पत्नी का चोदन करने का अधिकारी बन जाता है…. आपने हमसे विवाह कार्य कर स्वयं हमें आपका चोदन करने का अधिकार प्रदान कर दिया है… हा..हा.. हा….” महाराज ने अट्टहास लगाया.
“आपके अधीन भोगावती की कन्याएँ हैं और हमारी पत्नी होने के नाते आप स्वयं हमारे अधीन हैं अत हमारे सैनिक आज भी निश्चयी ही सार्वजनिक चोदन करने के लिए अधिकृत हैं” महाराज हंसते हुए बोले.
“आप भूल रहे हैं महाराज…आपकी पत्नी होनेके नाते मैं भोगावती ही नहीं पुंसवक राज्य की भी महारानी हूँ , और आपके सैनिक स्वयं मेरे अधीनस्थ हैं”
इतना सुन कर महाराज के भय से तोते उड़ गये.
१. लोहे पर हथौड़ा और योनि पर लवडे पर प्रहार तभी करो जब दोनो गर्म हों.
२. भंजन , भोजन और चोदन सदैव एकांत में ही करना चाहिए.
३. अपनी स्त्री और छतरी किसी अन्य को देंगे तो हमेशा फटी फटाई ही वापस मिलेंगी.
४. चूत चुचि तथा चिलम इनका नशा करोगे तो सर्वनाश मो प्राप्त होगे
५. लॅंड और घमंड को सदा नियंत्रण में रखने पर ही कल्याण होगा.