थोड़ी देर पहले अजय तो उनको जमकर चोदने के बाद भी छोड़ नहीं रहा था. खैर, एक ही रात में दो अलग अलग मर्दों से दबोचे और चोदे जाने के कारण चाची का जिस्म थक कर चूर हो चुका था. लेकिन ये भी सच है कि आज जीवन में पहली बार उनको मालूम हुआ था कि चुदाई में तृप्ति किसे कहते हैं. सोने के लिये करवट बदला तो दरवाजे के पास अन्धेरे में उनको अजय का साया दिखाई दिया. हो सकता है ये उनका वहम था या कि फ़िर चुदाई का शोर सुनकर अजय जाग गया और कौतूहलवश झांकने चला आया. फ़िर कमरे का दरवाजा हल्के से बंद हुआ और शोभा चाची भी सपनों के संसार में खो गयीं.
अपने जेठ के घर में पूरी रात किसी रन्डी की तरह चुदने के बाद अगली सुबह शोभा चाची उठीं तो उनके पूरे बदन में मीठा मीठा दर्द हो रहा था. कमरे में कोई नहीं था. कुमार कभी के उठ कर बड़े भाई के साथ सुबह की सैर के लिये जा चुके थे और शोभा हैंग ओवर (शराब पीने के कारण अगली सुबह व्यक्ति का सिर दुखता है, इसी को हैंग ओवर कहते है.) की वजह से सिर को दबाये चादर के नीचे बिस्तर में लेती हुईं थीं. थोड़ा सामान्य हुईं तो पिछली रात की बातें याद आने लगीं. कि कैसे गलती से वो अपने जवान भतीजे के कमरे में घुस कर उसके कुंवारे लन्ड को चूस रही थीं. फ़िर किस तरह से अजय की ताकत और सैक्स में उसकी नितान्त अनुभवहीनता ने उन्हें भी अपना गुलाम बना लिया था. कैसे अजय के लन्ड पर चढ़ कर घनघोर चुदाई का आनन्द उठाया था और उन दोनों की आवाजें सुनकर दीप्ति भाभी खुद अजय के दरवाजे तक ही चली आयी थीं. इसी रात, जीवन में पहली बार पतिदेव ने भी पीछे से चूत मारी थी. अजय के बारे में सोचते ही शोभा चाची की चूत में खुजली सी मचने लगी. दोनों मर्दों और खुद का पानी उनकी चूत में से बहकर बिस्तर पर फ़ैल गया था. तभी उन्हें याद आया कि ये तो गोपाल और दीप्ति का घर है और उन्हें अब तक उठ जाना चाहिये था. रात में जो कुछ भी हुआ वो अब उतना गलत नहीं लग रहा था. शायद उनके भाग्य में ही अपने भतीजे को एक कुंवारे लड़के से मर्द बनाने का सौभाग्य लिखा था. कमरे में बिखरे हुये कपड़े इकट्ठे करते शोभा चाची को अब सब कुछ सामान्य लग रहा था. खैर, अब उनको एक संस्कारी बहु की तरह नीचे रसोई में जाकर दीप्ति भाभी का हाथ बटाना था. हालांकि अजय से चुदने के बाद अगली ही सुबह उसकी मां से आंखें मिलाना थोड़ा अस्वभाविक था. उधर ये शन्का भी कि शायद दीप्ति ने कल रात को दोनों को संभोग करते देख लिया था चाची के मन में डर पैदा कर रही थी. शोभा रसोई में घुसी तो दीप्ति सब के लिये चाय बना रही थी. "गुड माँर्निंग, दीदी!", "मैं कुछ मदद करूँ?" "ओह, गुड माँर्निंग शोभा. अरे, कुछ खास नहीं, हो गया सब. तुम आराम कर लेती ना. कल रात को तो बड़ी मेहनत कर रही थीं." दीप्ति ने जवाब दिया. शोभा तो जड़वत रह गई. कहीं दीप्ति भाभी ने सच में उसे अजय के साथ रन्ग रेलियाँ मनाते देख तो नहीं देख लिया या वो सिर्फ़ अन्दाजा लगा रही हैं और उनका इशारा कुमार और उसकी चुदाई की तरफ़ था. जो भी हो आखिर इन लोगो की आवाजें भी तो पूरे घर में सुनाई दे रही थीं. "आप भी तो कल रात खूब पसीना बहा रही थीं", शोभा ने मुस्कुराने की चेष्टा की. आम हिन्दुस्तानी घरों में जठानी और देवरानी में इस तरह का सैक्स संबंधी वार्तालाप काफ़ी सामान्य है. चाय में शक्कर डालते हुये दीप्ति के हाथ रुक गये. "मैं क्या कर रही थी?" दीप्ति ने पूछा. "भाभी, हम दोनों ने आप लोगों की आवाजें सुनी थीं" शोभा ने दीप्ति के कन्धे पर हाथ रखते हुये कहा. "मैं अपने पति के साथ थी" दीप्ति ने फ़िर से चाय के बर्तन में शक्कर डालते हुए कहा. शोभा का चेहरा लाल हो गया और दिल हथौड़े की तरह बजने लगा. गले में कुछ चुभ सा रहा था शायद, बड़ी मुश्किल से बोल पाई "मैं भी तो अपने पति के साथ ही थी". "हाँ, आखिरकार". दीप्ति ने कन्धे से शोभा का हाथ झटकते हुये कहा. शोभा चुपचाप सिर झुकाये प्लेट में बिस्कीट लगाने लगी. कहां कल कि रंगीन रात और कहां सवेरे सवेरे ये सब बखेड़ा. लेकिन जो भी हो सामना तो करना ही पड़ेगा.
अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति compleet
Re: अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति
अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति--पार्ट -4
"सो, कैसा रहा सब कुछ." दीप्ति ने सामान्य बनते हुये पूछा. "दीदी, कल शाम को शराब पीने के बाद, इतनी सैक्सी फ़िल्म देख कर हम सब ही थोड़ा थोड़ा बहक गये थे" कहते हुये शोभा के हाथ काँप रहे थे. कल रात की याद करने भर से शोभा की चूत में गीलापन आ गया. "वो सब तो ठीक है, लेकिन तुमने मेरी बात का जवाब नहीं दिया. कल रात को मजा आया कि नहीं." दीप्ति तो जैसे जिद पर ही अड़ गयी. "पता नहीं आप को इस सब में क्या मजा आ रहा है, हम लोगों की ये कोई सुहागरात तो थी नहीं" शोभा थोड़ा शरमाते हुए बोली. "उसके लिये तो थी" आखिरकार दीप्ति ने कह ही डाला. अब शक की कोई गुन्जाईश नहीं थी की दीप्ति ने कल रात शोभा को अपने बेटे के कमरे में देख लिया था. "दीदी, ये सब गलती से हुआ" अब शोभा भी टूट गई. दिल जोरो से धड़क रहा था और तेजी से चलती सांसो से सीना भी ऊपर नीचे हो रहा था. शर्म के मारे दोनों गाल लाल हो गये थे बिचारी के. "इतनी देर हो गई थी कि तुम खुद को रोक भी नहीं सकती थीं?" शोभा से किसी जज की तरह सवाल पूछा दीप्ति ने. उसके बेटे को बिगाड़ने का अपराध जो किया था शोभा ने. "नहीं दीदी, जब मुझे पता चला कि....." "क्या पता चला तुम्हें?" दीप्ति का स्वर तेज हो चला. "दीदी, पता नहीं कैसे आपको बताऊँ? लेकिन जैसे ही मैनें उसको महसुस किया मैं समझ गयी कि ये कुमार तो नहीं हैं. किन्तु आपका बेटा तो रुकने को ही तैयार नहीं था." कहते हुये शोभ ने दीप्ति का हाथ पकड़ लिया. डर रही थी कि कहीं दीप्ति घर में महाभारत ना करा दे. दीप्ति ने शोभा के हाथ को दबाते हुये सयंत स्वर में पूछा. "कैसे महसूस किया तुमने उसे?". कम से कम इतना जानने का अधिकार तो उसका था ही कि उसके बेटे के साथ क्या हुआ था. अगर उसकी देवरानी ने जान बूझ कर अजय को उकसाया था तो ये एक अक्षम्य अपराध था. "मैनें तो सिर्फ़ वही किया जो में कुमार के साथ करती हूं". दीप्ति के कन्धे पर सर रखते हुये शोभा बोली. "हां तो ऐसा क्या किया तुमने कि तुमको मालूम पड़ गया कि ये कुमार नहीं अजय है और फ़िर भी तुम खुद को संभाल नहीं पाईं?"."मुझे तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा".
शोभा की समझ में आ गया की दीप्ति को रोकना मुश्किल है. उसने सब कुछ बताने का निश्चय कर लिया. वो बोली "दीदी, उसका वो इतना लम्बा और तगड़ा था और इतनी जल्दी खड़ा हो गया था की वो कुमार का तो हो ही नही सकता था. मैनें उसे रोकने की बहुत कोशिश की पर अजय बुरी तरह से उत्तेजित था." "तुमने उसे रोकने की कोशिश की, कैसे?" दीप्ति ने फ़िर से सवाल दाग दिया. "वैल, मैनें उसको अपने मुहं से निकाला और वहां से उठ गई", शोभा के मुहं से तुरन्त ही निकल गया. "ओ गॉड, तुमने अजय के लन्ड को अपने मुहं में लिया?" अब दीप्ति की चूत में पानी बहने लगा. एक औरत, उनकी देवरानी, कल रात उनके ही बेटे का लंड चूस रही थी. "क्यूं? आपने कभी नहीं किया क्या?" "नहीं" दीप्ति ने अविश्वास से शोभा की तरफ़ देखा. "कमरे में अन्धेरा था. मुझे लगा की कुमार सो रहे हैं. तो बाकी दिनों की तरह ही में अजय की चादर में घुस कर जल्दी मचाने लगी. नशे में तो मैं थी ही और आपकी और भाई साहब की चुदाई की आवाजों ने मेरा दिमाग खराब कर दिया था." शोभा ने भी पूरे वाकिये को रसीला बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. "एक झटके में ही वो लन्ड फ़ूल कर इतना बड़ा हो गया था कि मैं तुरन्त ही समझ गई कि ये कुमार नहीं हैं." "इतना बड़ा है क्या अजय का लन्ड?" दीप्ति ने पूछा. किन्तु तुरन्त ही उसे अपनी गलती का एहसास हो गया. उसे ऐसा सवाल नहीं पूछना चाहिये था. अजय बचपन से अपने माता पिता के साथ एक ही कमरे में सोता आया था.
"सो, कैसा रहा सब कुछ." दीप्ति ने सामान्य बनते हुये पूछा. "दीदी, कल शाम को शराब पीने के बाद, इतनी सैक्सी फ़िल्म देख कर हम सब ही थोड़ा थोड़ा बहक गये थे" कहते हुये शोभा के हाथ काँप रहे थे. कल रात की याद करने भर से शोभा की चूत में गीलापन आ गया. "वो सब तो ठीक है, लेकिन तुमने मेरी बात का जवाब नहीं दिया. कल रात को मजा आया कि नहीं." दीप्ति तो जैसे जिद पर ही अड़ गयी. "पता नहीं आप को इस सब में क्या मजा आ रहा है, हम लोगों की ये कोई सुहागरात तो थी नहीं" शोभा थोड़ा शरमाते हुए बोली. "उसके लिये तो थी" आखिरकार दीप्ति ने कह ही डाला. अब शक की कोई गुन्जाईश नहीं थी की दीप्ति ने कल रात शोभा को अपने बेटे के कमरे में देख लिया था. "दीदी, ये सब गलती से हुआ" अब शोभा भी टूट गई. दिल जोरो से धड़क रहा था और तेजी से चलती सांसो से सीना भी ऊपर नीचे हो रहा था. शर्म के मारे दोनों गाल लाल हो गये थे बिचारी के. "इतनी देर हो गई थी कि तुम खुद को रोक भी नहीं सकती थीं?" शोभा से किसी जज की तरह सवाल पूछा दीप्ति ने. उसके बेटे को बिगाड़ने का अपराध जो किया था शोभा ने. "नहीं दीदी, जब मुझे पता चला कि....." "क्या पता चला तुम्हें?" दीप्ति का स्वर तेज हो चला. "दीदी, पता नहीं कैसे आपको बताऊँ? लेकिन जैसे ही मैनें उसको महसुस किया मैं समझ गयी कि ये कुमार तो नहीं हैं. किन्तु आपका बेटा तो रुकने को ही तैयार नहीं था." कहते हुये शोभ ने दीप्ति का हाथ पकड़ लिया. डर रही थी कि कहीं दीप्ति घर में महाभारत ना करा दे. दीप्ति ने शोभा के हाथ को दबाते हुये सयंत स्वर में पूछा. "कैसे महसूस किया तुमने उसे?". कम से कम इतना जानने का अधिकार तो उसका था ही कि उसके बेटे के साथ क्या हुआ था. अगर उसकी देवरानी ने जान बूझ कर अजय को उकसाया था तो ये एक अक्षम्य अपराध था. "मैनें तो सिर्फ़ वही किया जो में कुमार के साथ करती हूं". दीप्ति के कन्धे पर सर रखते हुये शोभा बोली. "हां तो ऐसा क्या किया तुमने कि तुमको मालूम पड़ गया कि ये कुमार नहीं अजय है और फ़िर भी तुम खुद को संभाल नहीं पाईं?"."मुझे तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा".
शोभा की समझ में आ गया की दीप्ति को रोकना मुश्किल है. उसने सब कुछ बताने का निश्चय कर लिया. वो बोली "दीदी, उसका वो इतना लम्बा और तगड़ा था और इतनी जल्दी खड़ा हो गया था की वो कुमार का तो हो ही नही सकता था. मैनें उसे रोकने की बहुत कोशिश की पर अजय बुरी तरह से उत्तेजित था." "तुमने उसे रोकने की कोशिश की, कैसे?" दीप्ति ने फ़िर से सवाल दाग दिया. "वैल, मैनें उसको अपने मुहं से निकाला और वहां से उठ गई", शोभा के मुहं से तुरन्त ही निकल गया. "ओ गॉड, तुमने अजय के लन्ड को अपने मुहं में लिया?" अब दीप्ति की चूत में पानी बहने लगा. एक औरत, उनकी देवरानी, कल रात उनके ही बेटे का लंड चूस रही थी. "क्यूं? आपने कभी नहीं किया क्या?" "नहीं" दीप्ति ने अविश्वास से शोभा की तरफ़ देखा. "कमरे में अन्धेरा था. मुझे लगा की कुमार सो रहे हैं. तो बाकी दिनों की तरह ही में अजय की चादर में घुस कर जल्दी मचाने लगी. नशे में तो मैं थी ही और आपकी और भाई साहब की चुदाई की आवाजों ने मेरा दिमाग खराब कर दिया था." शोभा ने भी पूरे वाकिये को रसीला बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. "एक झटके में ही वो लन्ड फ़ूल कर इतना बड़ा हो गया था कि मैं तुरन्त ही समझ गई कि ये कुमार नहीं हैं." "इतना बड़ा है क्या अजय का लन्ड?" दीप्ति ने पूछा. किन्तु तुरन्त ही उसे अपनी गलती का एहसास हो गया. उसे ऐसा सवाल नहीं पूछना चाहिये था. अजय बचपन से अपने माता पिता के साथ एक ही कमरे में सोता आया था.
Re: अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति
जब वो तेरह साल का हुआ तो एक दिन दीप्ति को उसके बिस्तर में कुछ धब्बे मिले. उस दिन से उसने अजय का दूसरे कमरे में सोने का इन्तजाम कर दिया और साथ ही उसे नहलाना और उसके कपड़े बदलना भी बन्द कर दिया. उसके बाद दीप्ति कभी भी अपने बेटे को नग्नावस्था में ना देख सकी. पर आज वो सब कुछ जानना चाहती थी. शोभा ने भी दीप्ति के व्यवहार में आये परिवर्तन को तुरन्त ही जान लिया. "शायद अजय को ये सब अपने पिता से मिला है. कुमार का लन्ड तो काफ़ी पतला और छोटा है, अजय अपनी उम्र के हिसाब से काफ़ी तगड़ा है. गजब की ताकत है उसमें" अपने नये प्रेमी की प्रशन्सा करने से ही शोभा के होंठ सूख गये. "आओ, बैठ कर बात करते हैं" शोभा का हाथ पकड़ कर दीप्ति उसे हॉल में ले आई. "अपनी गलती पता चलने पर भी तुमने उसे रोका नहीं?" "दीदी, जब तक में कुछ समझ पाती काफ़ी देर हो चुकी थी, मैने लाईट जलाने की कोशिश की तो उसने अपने लन्ड से मेरे मुहं में झटके मारना शुरु कर दिया. मुझे लगा कि शायद वो कोई सपना देख रहा है पर जैसे ही वो जागा, बिल्कुल पागल ही हो गया. और फ़िर उसने मुझे भी अपने वश में कर लिया". "मैं कुछ न कर सकी दीदी, आई एम सॉरी". "और फ़िर, तुम भी उसके साथ शुरु हो गईं? है ना?" इस वक्त दीप्ति की चूत में बुलबुले से उठने लगे. जब शोभा ने बतय कि अजय का लन्ड कितना बड़ा है तो उसकी अजय के बारे में और जानने की इच्छा बढ़ गई. लेकिन खुद को चरित्रहीन साबित किये बगैर ये सब पूछ पाना भी जरा मुश्किल था. "मैने उसे रोकने की कोशिश की थी, लेकिन मैं उससे से दूर नहीं जा पाई. इतने सालों तक अपने हाथों से खिला पिला कर, नहला कर उसे बड़ा किया है मैनें. मेरे मन ने कहा कि बाकी सब की तरह ये भी उसकी ज़रूरतों का एक हिस्सा है. जब उसने मेरे चूचों को दबाया तो मुझे लगा कि आपकी तरह वो मेरा भी दूध पी ले मेरे सगे बेटे जैसे". दीप्ति के स्तनों में लहर सी उठ रही थी तो दिमाग में अपनी बहन जैसी देवरानी के लिये ईर्ष्या. अपना हाथ शोभा के स्तनों पर रख कर उसकी एक निप्पल को मसलते हुये पूछ बैठी, "क्या अजय ने इनको भी चूसा था?" शोभा ने दीप्ति के कन्धे से सिर हटा कर उसकी आंखों में झांका. दीप्ति की आंखों में पछतावे के आंसू थे जैसे कुछ खो गया हो. बीती रात खुद की जगह शोभा को अजय के ज्यादा करीब पाने का दर्द भरा था उसके दिल में. उधर, अपने प्यारे भतीजे की करतूत के बारे में उसकी मां को बताने का शोभा का उत्साह दुगुना हो गया था. "दीदी, अजय जोर जोर से मेरे चूंचों को पकड़ कर मसल रहा था. मैं रुक ही नहीं पाई. ब्लाऊज को फ़टने से बचाने के लिये ही मैनें उसे खोल दिया." शोभ ने अपना एक हाथ दीप्ति के ब्लाऊज में डाल दिया और उन्गलियों से उसकी तनी हुयी निप्पल को मसलने लगी. "अपना अजय अब उतना छोटा नहीं रहा. घोड़ों के जैसी ताकत है उसमें. अगर गोपाल भाई साहब भी ऐसे ही हैं तो आप वास्तव में बहुत लकी हैं." शोभा ने बात खत्म करते हुए कहा. मगर दीप्ति का दिमाग तो किसी और ही ख्याल में डूबा हुआ था. जैसा शोभा ने बताया अगर वो सब सच है तो अजय अपने पिता से कहीं आगे था. शोभा ने दीप्ति के गले में हाथों को डाल कर अपने गाल दीप्ति के गालों से सटा दिये. दीप्ति के पूरे शरीर में बिजली सी दौड़ गई. शोभा के लिये अब उसकी भावनायें मिली जुली थी. एक और तो वो शोभा की आभारी थी कि उस जैसी सैक्स में अनुभवी औरत ने अजय की यौन जरुरतों को पूरा किया दूसरी और मन में एक ईर्ष्या का बीज भी था कि अजय को इस सब के लिये किसी दूसरी औरत का सहारा लेना पड़ा जबकि खुद उसकी मां उसके लिये ये सब कर सकती थी.
दोनों औरतें चुप थीं. शोभा के हाथ दीप्ति के बदन पर रेंग रहे थे और दीप्ति अपने बदन में उठती सैक्स तरंगों को अच्छे से महसूस कर सकती थी. लेकिन अजय और उसके पिता की तुलना के बारे में वो कुछ नहीं बोल सकती थी. शोभा ने ही बातचीत में आये गतिरोध को तोड़ा. "एक बार जब में उसके ऊपर चढ़ी तो अजय के लन्ड ने यहां तक जगह बना ली." अपने पेट पर नाभी के पास हाथ से इशारा करते हुये उसने दीप्ति को दिखाया. "मैनें तो सोचा था कि एक बार अजय को मुत्ठ मार के झड़ा दूंगी तो चली जाऊंगी. लेकिन पता नहीं कब मैं अपने होश खो बैठी और अजय के ऊपर चढ़ गयी. उसके बाद अजय ने अपने आप वो तगड़ा लन्ड पूरा का पूरा मेरी चूत में डाल दिया. देखो यहां तक" अजय की प्रशन्सा करना अब शोभा को अच्छा लग रहा था. (पाठकों को याद होगा कि शोभा ने अपने हाथ से अजय के लन्ड को अपनी चूत का रास्ता दिखाया था, बिचारे १९ साल के कुंवारे अजय को क्या मालूम की औरत की चूत में लन्ड कहां डालना होता है. दीप्ति से ये सब तथ्य छिपाना जरूरी था.) दीप्ति ने शोभा की आंखों में देखा.
दोनों औरतें चुप थीं. शोभा के हाथ दीप्ति के बदन पर रेंग रहे थे और दीप्ति अपने बदन में उठती सैक्स तरंगों को अच्छे से महसूस कर सकती थी. लेकिन अजय और उसके पिता की तुलना के बारे में वो कुछ नहीं बोल सकती थी. शोभा ने ही बातचीत में आये गतिरोध को तोड़ा. "एक बार जब में उसके ऊपर चढ़ी तो अजय के लन्ड ने यहां तक जगह बना ली." अपने पेट पर नाभी के पास हाथ से इशारा करते हुये उसने दीप्ति को दिखाया. "मैनें तो सोचा था कि एक बार अजय को मुत्ठ मार के झड़ा दूंगी तो चली जाऊंगी. लेकिन पता नहीं कब मैं अपने होश खो बैठी और अजय के ऊपर चढ़ गयी. उसके बाद अजय ने अपने आप वो तगड़ा लन्ड पूरा का पूरा मेरी चूत में डाल दिया. देखो यहां तक" अजय की प्रशन्सा करना अब शोभा को अच्छा लग रहा था. (पाठकों को याद होगा कि शोभा ने अपने हाथ से अजय के लन्ड को अपनी चूत का रास्ता दिखाया था, बिचारे १९ साल के कुंवारे अजय को क्या मालूम की औरत की चूत में लन्ड कहां डालना होता है. दीप्ति से ये सब तथ्य छिपाना जरूरी था.) दीप्ति ने शोभा की आंखों में देखा.