सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ

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The Romantic
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Re: सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ

Unread post by The Romantic » 06 Nov 2014 21:14

चौधराइन
भाग 22 - समझौता चौधराइन का



कहने को तो मदन जोश में कह गया पर चौधराइन के जाने के बाद उसके दिमाग ने सोचा कि ये मैंने चौधराइन से ये कैसा बेवकूफ़ी भरा वादा कर लिया इस तरह तो मैं दिनरात इनकी चूत ठन्डी करने में ही लगा रहूँगा और इस गाँव में भरी तरह तरह कि चूतों का स्वाद न ले पाऊँगा। पर जल्दी ही उसके शैतानी दिमाग को एक शान्दार आइडिया सूझ गया।
हुआ यों कि एक दिन एक नये नये जवान हुए चिकने लड़के चिन्टू को ले उसकी भरी पूरी गदराई जवान खूबसूरत माँ चम्पा मदन के पास आई।
चम्पा –“मदन बेटा, ये मेरा लड़का चिन्टू पढ़ता लिखता तो है नहीं दिनभर शैतानी करता रहता है। आप चौधराइन से कह के इसे किसी काम पे लगा दो तो धीरे धीरे कुछ सीख जायेगा और बड़ा होने तक अपनी रोजी रोटी तो कमा ही लेगा।”
मदन उन्हें ले के चौधराइन के पास गया और सारी बात बताई ।”
सारी बात सुन चौधराइन ने माँ बेटे को थोड़ी देर बाहर बैठ इन्तजार करने के लिए बोल मदन को सलाह करने के लिए अन्दर बुलाया।
चौधराइन –“लौंडा है तो मेरे रजिस्टर में दर्ज करने लायक
मदन –“और उसकी माँ मेरे खाते लायक।
चौधराइन –“क्या बकता है।”
मदन –“क्यों मेरा मन नही होता नये नये तजुर्बे करने का?
चौधराइन –“पर तूने तो मुझसे वादा किया था कि अब तू अपनी ताकझाँक बन्द कर देगा।“
मदन –“तब आपने रजिस्टर कहाँ खोला था?
चौधराइन –“पर जरा संभल के।
मदन –“ आप फ़िक्र न करो। तो आज से तय रहा जो लड़का आपका उसकी माँ बहन मेरी।”
चौधराइन –“ठीक है। बुलाओ।”
मदन ने माँ बेटे को अन्दर बुलाय।
चौधराइन –“ठीक है। शुरू में मैं इसे हल्का काम दूँगी ताकि इसे काम करने की आदत पड़े। इसे आज रात भेज देना पँचायतघर की रखवाली करने। इसे सिर्फ़ वहाँ सोना है। ”
दोनों खुशी खुशी चले गये । उस रात जब चौधराइन ने चिन्टू से अपनी चूत जम के बजवाई तो चौधराइन के करतब देख देख मदन भी बहुत उत्तेजित हो गया और उसने भी चौधराइन की चूत धुन डाली। चुदाई से निबट करीब रात के दो बजे जब मदन बगिया वाले मकान पर जा रहा था तो सोच रहा था कि चौधराइन ने तो हरी झन्डी दे दी पर चिन्टू की अम्मा चम्पा फ़ँसानी तो खुद मुझे ही पड़ेगी ।”
भगवान ने खुद ही इसका रास्ता दिखा दिया। हुआ यों कि तीसरे दिन करीब एक बजे दोपहर में चम्पा मदन के पास बगिया वाले मकान पर आई और
मदन –“ आओ चम्पा चाची। कहो कैसी हो?”
चम्पा –“मैं तो ठीक हूँ पर चिन्टू बड़ा थका थका रहता है । ऐसा क्या काम कराती है चौधराइन?”
मदन –“कुछ नहीं बस पँचायत घर में सोता है।”
चम्पा(हँसकर) –“अरे सोने से कहीं कोई थकता है बेटा।”
मदन ने सोचा हँस रही है क्यों न इसका मन टटोलने के देखे सो बोला –“क्यों तुम रात में सोती हो तो नहीं थकती क्या या चन्दू(चम्पा का पति) चाचा नहीं थकते ।”
चम्पा उसका दोहरा मतलब समझ गयी, उसके मन में गुदगुदी सी हुई क्योंकि उसने भी गाँव में मदन के कारनामों की कहानियाँ सुनी थीं हँस के बोली –“अरे मेरी बात और है मैं तो तुम्हारे चन्दू चाचा के मारे……वो भी कभी जब वो मुझे……हटो। क्या फ़ालतू बात ले……।” यह बोलते बोलते चम्पा शर्मा के चुप हो गई। फ़िर संभल के आगे बोली –“ पर वो तो अकेला…।”
और वो फ़िर शर्मा गई।
मदन मजाक के ढ़ंग से –“कौन जाने शायद चौधराइन चाची साथ में……।”
चम्पा हँसते हुए –“ क्या मजाक करते हो बेटा कहाँ चौधराइन कहाँ जरा सा बच्चा।”
मदन मुस्कुराकर –“ जरा सा बच्चा क्यों। मेरी ही उमर का होगा और चौधराइन चाची तुम्हारी उमर की।”
चम्पा भी अब शर्म छोड़ पूरी तरह बहस के मूड में आ गयी थी मुस्कुरा के बोली –“हाँ माना तेरी ही उमर का है पर हम बुढ़ियों और तेरी उमर वाले का क्या तालमेल?
मदन आश्चर्य प्रकट करते हुए –“तुम्हें बुढ़िया बताने वाले को मैं अन्धा ही कहूँगा । मुझे तो ताज्जुब है कि तुम और चन्दू चाचा रोज क्यों नहीं थकते । चाचा शायद तुम्हें नाजुक समझ के………।”
चम्पा –“ चुप कर बेटा ये सब कोई रोज रोज थोड़े ही………।”
मदन –“ये तो अगर मैं चन्दू चाचा होता तो बताता।”
पता नही बात चीत की झोंक में या शायद जानबूझ के चम्पा कह गई –“अच्छा तो तू आज बता ही दे।”
बस मदन ने चम्पा चाची का गदराया बदन बाहों में भर लिया उसकी मजबूत बाहों के उमंग भरे कसाव में चम्पा को एक अनोखा अनुभव हुआ पर उसने छूटने की एक कमजोर सी कोशिश की –“छोड़ बेटा क्यों मजाक करता है।”
इसबार मदन ने गम्भीर आवाज और चमकती आँखों से चम्पा चाची की उत्तेजना के खुमार से भरती आँखों में झाँक के कहा –“ये मजाक नहीं है चाची यही तो मैं साबित करना चाहता हूँ।”
ऐसा बोलते हुए मदन चम्पा चाची को लिए लिए ही बिस्तर पर गिर पड़ा।
चम्पा उत्तेजना से काँपती आवाज में–“ अरे अरे कहीं कोई आ गया तो…………?
आगे का वाक्य चम्पा के मुँह में ही घुट गया क्यों कि मदन ने उसके होठों को अपने होठों मे दबा लिया नये जवान होते लड़के का जिस्म और की बाँहो का कसाव चम्पा को अपने चढ़ती जवानी की याद दिला रहा था वो अपना आपा खोती जा रही थी और मदन से लिपटती जा रही थी एक दूसरे के होठों को चूसते चूसते कब दोनों के जिस्म से कपड़े उतर गये पता ही नहीं चला । जब दोनों के होठ अलग हुए तो बुरी चम्पा ने हाँफ़ते हुए मदन से कहा –“क्या सचमुच मैं अभी भी तेरे जैसे जवान लड़के को लुभाने लायक हूँ।”
मदन चम्पा चाची के ऊपर से उठ के बैठ गया और एक भरपूर नजर बिस्तर पर नंगधड़ंग पड़ी चम्पा चाची पर डाली और बोला –“मैं झूठ नहीं बोलूँगा दरअसल मेरी उमर के लड़कों को नईजवान लड़कियों से औरतें ज्यादा पसन्द आती हैं और औरतों में आप बेजोड़ हैं।”
चम्पा चाची –“अगर तू सच कहता है तो ताज्जुब नहीं रोज रात में चौधराइन मेरे चिन्टू को चूस डालती हो।”
मदन –“अरे छोड़ो चाची दोनो साले मजा करते होंगे अभी थोड़ी देरे में तुमको मेरी बात का विश्वास हो जायेगा।”
ये कह मदन ने अपने दोनों हाथों से उनकी केले के खम्बों जैसी जाँघें पकड़ के फ़ैलायी और अपने फ़ौलादी लण्ड का सुपाड़ा उनकी फ़ूली हुई चूत के रसीले मुहाने पर रखा । फ़िर अपने दोनों हाथों में उनकी बड़े बड़े खरबूजों जैसी चूचियाँ थाम के धक्का मारा। चम्पा के मुँह से निकला –“आआह्ह्ह!
सुपाड़ा अन्दर जा चुका था पर इसके बाद मक्कार मदन रुक गया और चम्पा चाची की बड़े बड़े खरबूजों जैसी चूचियाँ दबा दबाके निपल ऐसे चूसने लगा जैसे कोई आम चूस के खाता है। उसकी इस हरकत से उत्तेजित हो चम्पा ने अपने भारी चूतड़ उछाल उछाल के उसका पूरा लण्ड अपनी चूत में धाँस लिया और झुँझला के फ़ुसफ़ुसाई –“अगर तू ऐसे करता रहा तो मैं बिना चुदे बिना थके ही झड़ जाऊँगी। फ़िर तू साबित कैसे करेगा कि तू चम्पा चाची को थका सकता है।”
बस मदन इसी बेकरारी का तो इन्तजार कर रहा था उस भरी दोपहरी में बगिया के उस एकान्त मकान में मदन ने चम्पा चाची के जिस्म और दिमाग को अपनी जोशखरोश से भरी चुदाई से इतना मजा दिया कि वो अपने घर ऐसे थिरकते हुए लौट रही थीं जैसे कि वो एक बार फ़िर जवान हो गई हों। चम्पा चाची ने शाम को अपने पति (चन्दू) के आने पर उन्होंने बड़ी आवभगत की और रात में खुद पहल कर चन्दू चाचा को चुदाई के लिए उकसाया। दोपहर में जो कुछ मदन की चुदाई से सीखा था वो सब चन्दू चाचा के साथ फ़िर से दोहरा के आजमाया।

चन्दू को बहुत मजा आया और बड़ा आश्चर्य हुआ। चुदाई के बाद उसने पूछा –“आज तू बड़ी खुश है चम्पा।”
चम्पा चन्दू के बालों भरे चौड़े सीने पर हाथ फ़ेरते हुए –“ खुश क्या चिन्टू की चिन्ता दूर हुई वैद्यजी(सदानन्द) के लड़के ने चौधरी के यहाँ लगवा दिया।”
चन्दू –“कौन वो मदन?”
चम्पा बोली –“हाँ वही। मुझे तो बड़ा सीधा लगता है पर लोग तो पता नहीं क्या क्या कहते हैं।”
चन्दू –“हाँ ताज्जुब तो मुझे भी है मैं एक गरीब किसान हुँ पर हमेशा आते जाते अपनी तरफ़ से चाचा राम राम कहना कभी नहीं भूलता । मुझे लगता है चौधरी की बगिया में जो चोर नौकर थे वो ही बदनाम करते हैं क्यों कि सालों को मदन ने निकाल दिया।”
चम्पा मुस्कुराई और मन ही मन सोंचा अब तो और भी राम राम करेगा –“खैर हमें क्या अपना लड़का ठिहे से लग गया।”
चन्दू उसकी चूत पर हाथ फ़ेर कर –“ठीक बात क्यों न इसी खुशी में बार और हो जाये
चम्पा ने उसके लण्ड पर हाथ रखा –“हाय दैया! ये तो फ़िर खड़ा हो गया।”
चन्दू चम्पा के ऊपर आ के सुपाड़ा चूत पर लगाते हुए–“खुशी मना रहा है न।“
चम्पा की इतनी चुदाई शादी वाली रात भी नहीं हुई थी जितनी आज हुई।
अगले दिन खेत पर जाते समय चन्दू मदन से मिल उसका आभार प्रकट करते हुए गया। मदन ने चन्दू को इतना खुश कभी नहीं देखा था।
उसी दिन चम्पा चाची ने मदन को मिल रात के किस्से की जानकारी दी तो मदन की समझ मे सारा माजरा आया वो हँसते हुए बोला –“ वाह चाची भतीजे से सीख चाचा पे आजमाया और उन्हें खुश भी कर दिया। तुमने कमाल कर दिया।
चम्पा –“कमाल तो तूने कर दिया हमें खुश रहना सिखा दिया। सारे करतब तेरे ही तो सिखाये हुए हैं ।”
मदन –“मिलती रहा करो, चाची ऐसे ऐसे करतब बताऊँगा कि चाचा को आप जन्नत की हूर लगेंगी।”
चम्पा –“जुग जुग जियो बेटा। आज तो नही परसों दोपहर एक बजे आऊँगी।”
मदन –“ठीक है चाची।”
तो इस तरह शुरू हुई चौधराइन की चूत की चौधराहट। अब हाल ये है कि चौधराइन को कोई नया शिकार मिले, तो उसके घर की औरते माँ बहन जो भी मदन को पसन्द आ जाय, चौधराइन की तरफ़ से उन्हें चोदने की छूट है और दूसरी ओर अगर गाँव की कोई औरत मदन से फ़ँस जाती हैं तो उनके लड़कों के लण्ड से चौधराइन अपनी चूत सिकवाती हैं ।
समाप्त

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Re: सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ

Unread post by The Romantic » 06 Nov 2014 21:21

फ्रेंड्स अब ये सलीम जावेद मस्ताना की दूसरी कहानी आपके लिए






अशोक की मुश्किल
भाग 1
बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा…

अशोक लखनऊ के पास के गाँव का एक गठीले बदन वाला कड़ियल जवान है उसका कपड़ों का थोक का व्यापार लखनऊ कानपुर के आस पास के छोटे छोटे शहरों कस्बों और गाँवों के फुटकर व्यापारियों में फैला है जिसे वो लखनऊ में रहकर चलाता है। उसे अक्सर व्यापार के सिलसिले में शहरों कस्बों और गाँवों में आना जाना पड़ता है. इसीलिए उसे अक्सर रात में भी यहाँ वहाँ रुकना पड़ता है। शादी से पहले अपनी जिस्मानी जरुरतों को पूरा करने के लिए वो यहाँ वहाँ बदमाश लडकियों, औरतों में मुंह मार लेता था, पर धीरे धीरे उसकी प्रचंड काम शक्ति(चोदने कि ताकत) और हथियार (लंड) के आकार की वजह से बड़ी से बड़ी चुदक्कड़ बदमाश लड़की या औरत यहाँ
तक की रंडियां भी एक बार के बाद उसके पास आने से घबराने लगीं ।
दरअसल उसका लंड करीब नाइसिल पावडर के डिब्बे के जितना लम्बा और मोटा था और वो इतनी ज्यादा देर में झड़ता की जो एक बार चुदवा लेती थी वो दोबारा उसके पास भी नहीं फटकती थीं धीरे धीरे वो इतना बदनाम हो गया की जब वो रात में किसी शहर गांव में रुकता तो उसे यूँही (जांघों के बीच लंड दबा के) सोना पड़ता क्योंकि सब औरते उसके बारे में जान गयीं थीं.
पर इसी बीच बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा अशोक पास के एक कस्बे में व्यापार के सिलसिले में गया था वहां के फुटकर व्यापारियों से हिसाब किताब करते रात हो गयी तो उन लोगो ने पड़ोस की एक विधवा अधेड़ औरत चम्पा से गुजारिश करके उसके यहाँ अशोक के रुकने का इंतजाम कर दिया. ये विधवा किसी दूर के गाँव से, अपनी जवान खुबसूरत गदराई भतीजी महुआ जिसके माँ बाप कुछ धनदौलत छोड़ गए थे उसे बेचबांच के ये मकान लेकर रहने के लिए आई थी. अतः ये लोग अशोक की असलियत नहीं जानते थे अशोक को महुआ पसंद आ गई और उसने चम्पा से उसका हाथ मांग लिया और दोनों का विवाह हो गया।
सुहागरात को अशोक ने दुलहन का घूँघट उठाया महुआ की खूबसूरती देख उसके मुंह से निकला “सुभान अल्लाह ! मुझे क्या पता था की मेरी किस्मत इतनी अच्छी है।”
ऐसा कहते हुए अशोक ने अपने होंठ उसके मदभरे गुलाबी होठों पर रख दिये। महुआ को चूमते समय उसके बेल से स्तन अशोक के चौड़े सीने पर पूरी तरह दब गये थे वो उसके निप्पल अपने सीने पर महसूस कर रहा था ।
महुआ की फ़ूली बुर पर उसका लण्ड रगड़ खा कर साँप की तरह धीरे धीरे फ़ैल रहा था। महुआ की बुर गर्म हो भी उसे महसूस कर रही थी जिस्मों की गरमी में सारी शरम हया बह गई और अब महुआ और अशोक सिर्फ़ नर मादा बचे थे अशोक की पीठ पर महुआ की और महुआ की पीठ पर अशोक की उँगलियाँ धसती जा रही थी । दोनों ने एक दूसरे को इतनी जोर से भींचा कि अशोक के शर्ट के बटन और महुआ का ब्लाउज चरमरा के फ़टने लगे अपने जिस्मों की गर्मी से पगलाये दोनो ने एक दूसरे की शर्ट और ब्लाउज उतार फ़ेंकी । अब महुआ ब्रा और पेटीकोट में और अशोक अन्डरवियर मे था। महुआ ने अशोक के अन्डरवियर के साइड से उसका टन्नाया हलव्वी लण्ड बाहर निकाल लिया और सहलाने लगी। साँसों की तेज़ी से महुआ का सीना उठबैठ रहा था और उसके बेल से स्तन बड़ी मस्ती से ऊपर नीचे हो रहे थे। अशोक ने उन्हें दोनो हाँथों में दबोच कर, उन पर जोर से मुँह मारा । इससे उत्तेजित हो महुआ ने उसका टन्नाया हलव्वी लण्ड जोर से भीच दिया । तभी अशोक ने उसके पेटीकोट का नारा खीच दिया
महुआ की मोटी मोटी नर्म चिकनी जांघों भारी नितंबों से पेटीकोट नीचे सरक गया। अशोक पागलों की तरह उसके गदराये जिस्म मोटी मोटी नर्म चिकनी जांघों भारी नितंबों को दबोचने टटोलने लगा।
महुआ से अब रहा नहीं जा रहा था, सो उसने अशोक का टन्नाया हलव्वी लण्ड खीचकर अपनी बुर के मुहाने पर लगाया और तड़पते हुए बोली,
"आहहहहहह अशोक, प्लीज़ अब रहा नहीं जाता, प्लीज़ मुझे चोद डालो नहीं तो मैं अपने ही जिस्म की गर्मी में जल जाऊँगी, हाय राजा अब मत तड़पाओ।"
अब अशोक ने और रुकना मुनासिब नहीं समझा। महुआ की टाँगें फ़ैला और एक हाथ उसकी गुदाज चूतड़ों पे घुमाते हुए दूसरे से अपना खड़ा, कड़क, मोटा, गर्म लण्ड पकड़ कर महुआ की फ़ूली हुई पावरोटी सी बुर के मुहाने पर रगड़ते हुए बोला, "चल महुआ, अब होशियार हो जा ज़िंदगी में पहली बार अपनी बुर चुदवाने के लिये। अब तेरी बुर अपना दरवाजा खोल कर चूत बनने जा रही है ।"
महुआ ने सिसकारी ली और आँखें बंद कर लीं । महुआ को पता था कि पहली चुदाई में दर्द होगा, वो अब किसी भी दर्द के लिये तैयार थी । अपना सुपाड़ा ठीक से महुआ की बुर के मुँहाने पे रख कर अशोक ने ज़ोर से दबाया। बुर का मुँह ज़रा सा खुला और अशोक के लण्ड का सुपाड़ा आधा अंदर घुस गया।
महुआ दर्द से कराही,
"इस्स्स्स्स्स्स अशोक।"
वो महुआ की कमर पकड़ कर बोला,
"घबरा मत महुआ, शुरू में थोड़ा दर्द तो होगा फ़िर मजा आयेगा।"
महुआ की कमर कस कर पकड़ कर अशोक ने लण्ड अंदर धकेला पर बुर फ़ैलाकर लण्ड का सुपाड़ा बुर में आधा घुस कर अटक गया था। महुआ ने दर्द से अपने होंठ दाँतों के नीचे दबा लिये और अब ज़रा घबराहट से अशोक को देखने लगी। महुआ की बुर को अपने लण्ड का बर्दास्त करने देने के लिये अशोक कुछ वक्त वैसे ही रहा और महुआ का गदराया गोरा गुलाबी जिस्म सहलाते हुए उसके बेल से स्तन की घुन्डी चूसने लगा, जब अशोक को एहसास हुआ कि महुआ की साँसें सामन्य हो गयी हैं तो फिर अपनी कमर पीछे कर के, महुआ को कस कर पकड़ कर पूरे ज़ोर से उचक के धक्का दिया। इस हमले से अशोक के लण्ड का सुपाड़ा महुआ की कम्सिन, अनचुदी बुर की सील की धज्जियाँ उड़ाते हुए पूरा अन्दर हो गया । अशोक के इस हमले से दर्द के कारण महुआ, अशोक को अपने ऊपर से धकेलने की कोशिश करने लगी और अपनी चूत से अशोक का लण्ड निकालने की नाकाम कोशिश करते हुए ज़ोर से चिल्ला उठी,
"आहहहहहहहह
मैं मर गयीईईईईईई, उ़़फ्फ़्फ़्फ़़ फ्फ़्फ़्फ़फ़्फ़ नहींईंईंईंईं, निकालो लण्ड मेरी बुर से अशोक, फ़ट जायेगी।"
ये देख कर अशोक ज़रा रुका और महुआ का एक निप्पल होठों मे दबाके चुभलाने लगा । अशोक के रुकने से महुआ की जान में जान आयी। उसे अपनी बुर से खून बहने का एहसास हो रहा था । अशोक महुआ के बेल से स्तन की घुन्डी चूस रहा था, उसका गदराया गोरा गुलाबी जिस्म सहला रहा था जब अशोक को एहसास हुआ कि महुआ की साँसें अब सामन्य हो गयी हैं और वो धीरे धीरे अपनी बुर को भी आगे पीछे करने लगी तो उसने हल्के से लण्ड का सुपाड़ा दो-तीन बार थोड़ा सा आगे पीछे किया। पहले तो महुआ के चेहरे पर हलके दर्द का भाव आया फ़िर वो मजे से
"आहहहहह, ओहहहहह"
करने लगी । पर जब कुछ और धक्कों के बाद महुआ ने हल्की सी मुस्कुराहट के साथ अशोक की तरफ़ देखा, तो अशोक समझ गया कि महुआ की चूत का दर्द अब खतम हो गया है। अबकी बार अशोक ने लण्ड का आधा सुपाड़ा बाहर निकाला और फ़िर से धीरे से चूत में धक्का मारा। पर लण्ड का सुपाड़ा फ़िर से चूत में घुस कर अटक गया और महुआ ज़ोर से चिल्ला उठी,
"आहहहहहहहह
मैं मर गयीईईईईईई, उ़़फ्फ़्फ़्फ़़ फ्फ़्फ़्फ़फ़्फ़, बस अशोक अब और नहीं, फ़ट जायेगी।"
अनुभवी अशोक समझ गया कि ये इससे ज्यादा बर्दास्त नहीं कर पायेगी सो मन मार के सुपाड़े से ही चोदने लगा अशोक को इसमें ज्यादा मजा तो नहीं आया पर महुआ के गदराये गोरे गुलाबी जिस्म से खेल सहला और उसके बेल से स्तन की घुन्डी चूसते हुए काफ़ी मशक्कत के बाद आखिरकार वो उसकी छोटी सी चूत में सुपाड़े से ही चोदकर लण्ड झड़ाने में कामयाब हो ही गया इस बीच उसकी हरकतों से महुआ जाने कितनी बार झड़ी और बुरी तरह थक गई। इसीलिए मजा आने के बावजूद महुआ ने अगले दिन चुदवाने से इन्कार कर दिया और फ़िर पहले दिन की थकान और घबराहट को सोच हर रोज ही चुदवाने में टाल मटोल करने लगी। घर में सुन्दर बीबी होते हुए बिना चोदे जीवन बिताना अशोक के लिए बहुत मुश्किल हो रहा था अत: अशोक ने झूठ का सहारा लिया एक दिन उसने महुआ से कहा कि उसके पेट में दर्द है और वो डाक्टर के यहाँ जा रहा है वहाँ से लौट कर उसने महुआ को बताया कि डाक्टर ने दर्द की वजह चुदाई में कमी बताया है और कहा है कि ये दर्द चुदाई करने से ही जायेगा।
ये सुन कर महुआ चुदाने को तैयार हो गई पर उसने सुपाड़े से ज्यादा अपनी चूत में लेने से इन्कार कर दिया क्योंकि उसे सचमुच बहुत दर्द होता था। अशोक भी जो कुछ मिल रहा है उसी को अपना भाग्य समझ इस आधी अधूरी चुदाई पर ही सन्तोष कर जीवन बिताने लगा।
क्रमश:………………

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Re: सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ

Unread post by The Romantic » 06 Nov 2014 21:23

अशोक की मुश्किल
भाग 2

चम्पा चाची का चूरन…

गतांक से आगे………………
इसी बीच अशोक व्यापार के सिलसिले में जिस कसबे में उसकी ससुराल थी, वहाँ गया। फुटकर व्यापारियों से हिसाब किताब करते रात हो गयी तो सास से मिलने रात ही में पहुंच पाया और रात में वापस आना ठीक न समझ ससुराल में ही रुक गया उसे देख उसकी विधवा सास चम्पा बहुत खुश हुई। महुआ की तरह वह भी उन्हें चाची ही कहता था।
चाची की उम्र यही कोई 40 या 42 साल के आस पास होगी। उनका रंग गोरा डील डौल थोड़ा भारी पर गठा कसा हुआ, वो तीस पैंतिस से ज्यादा की नहीं लगती थी
अशोक ने पाँव छुए तो वो झुककर उसे कन्धे पकड़ उठाने लगीं तो सीने से आंचल ढलक गया और चाची के हैवी लंगड़ा आमों जैसे स्तनों को देख अशोक सनसना गया।
चाची बोली- “अरे ठीक है ठीक है आओ आओ बेटा मैं रोटी बना रही थी इधर रसोईं मे ही आ जाओ जबतक तुम चाय पियो तबतक मैं रोटी निबटा लूँ।
अशोक ने महसूस किया कि चाची ने ब्रा नहीं पहनी है उसने सोचा शायद रसोई की गर्मी से बचने के लिए उन्होंने ऐसा किया हो।
चाची ने उसे चाय पकड़ाते हुए पूछा – “ महुआ कैसी है?”
बोला-“जी ठीक है।”
अशोक डाइनिंग टेबिल की कुर्सी खींच के उनके सामने ही बैठ गया। चाची रोटी बेलते हुए बातें भी करती जा रहीं थी। उनके लो कट ब्लाउज से फ़टे पड़ रहे उनके कटीले आम जैसे स्तन रोटी बेलते पर और भी छ्लके पड़ रहे थे। जिन्हें देख देख अशोक का दिमाग खराब हो रहा था। वो उनपर से अपनी नजरें नहीं हटा पा रहा था। उसने सोचा ये कोई महुआ की माँ तो है नहीं चाची है मेरा इसका क्या रिश्ता?
अगर मैं इसे किसी तरह पटा के चोद लूँ तो क्या हर्ज है, कौन सा पहाड़ टूट जायेगा। उसने आगे सोचा आज तो महुआ भी साथ नही है मकान में सिर्फ़ हमीं दोनों हैं पता नहीं ऐसा मौका दोबारा कभी मिले भी या नहीं ये सोंच उसने चाची को आज ही पटा के चोदने का पक्का निश्चय कर लिया।
वो चाय पीते और उन कटीली मचलती चूचियों को घूरते हुए चाची को पटाने की तरकीब सोचने लगा।
तभी चाची बोली- क्या सोच रहे हो बेटा बाथरूम में पानी रखा है नहा धो के कुछ खा लो दिन भर काम करके थक गये होगे।”
अशोक(हड़बड़ा के) – “मैं भी नहाने के ही बारे में सोंच रहा था।”
ये कहकर वो जल्दी से उठा और के नहाने चला गया। नहाते नहाते उसने महुआ की चाची को पटा के चोदने की पूरी योजना बना ली थी।
नहा के अपने कसरती बदन पर सिर्फ़ लुन्गी बांध कर वो बाहर आया और जोर जोर से कराहने लगा।
कराहने की आवाज सुन चाची दौड़ती हुई आयीं पर अचानक अशोक के कसरती बदन को सिर्फ़ लुन्गी में देख के सिहर उठीं।
वो बोली- “क्या हुआ अशोक बेटा।”
अशोक(कराहते हुए)- “आह! पेट में बड़ा दर्द है चाची।”
चाची बोली- “तू चल के कमरे में लेट जा बेटा मेरे पास दवा है मैं देती हूँ अभी ठीक हो जायेगा।”
वो उसे सहारा दे के उसके कमरे की तरफ़ ले जाने लगी सहारा लेने के बहाने अशोक ने उन्हें अपने गठीले बदन से लिपटा लिया। अशोक के सुगठित शरीर की मांसपेशियाँ बाहों की मछलियाँ चाची के गुदाज जिस्म में भी उत्तेजना भरने लगी पति की मौत के बाद से वो किसी मर्द के इतने करीब कभी नहीं आई थीं ऊपर से अशोक का शरीर तो ऐसा था जैसे मर्द की कोई भी औरत कल्पना ही कर सकती है। बाथरूम से कमरे की तरफ़ जाते हुए उसने देखा कि उत्तेजना से चाची के निपल कठोर हो ब्लाउज में उभरने लगे हैं वो मन ही मन अपनी योजना को कामयाबी की तरफ़ बढ़ते देख बहुत खुश हुआ। जैसे ही वो चाची के कमरे के पास से निकले वो जान बूझ के हाय करके उसी कमरे में घुस उन्हीं के बिस्तर पर लेट गया जैसे कि अब उससे चला नहीं जायेगा।
चाची ने उसे अपना अचूक चूरन देते हुए कहा- “ये ले बेटा ये चूरन कैसा भी पेट दर्द हो ठीक कर देता है।”
अशोक चूरन खाकर फ़िर लेट गया चाची बगल में बैठ उसका पेट सहलाने लगीं काफ़ी देर हो जाने के बाद भी अशोक कराहते हुए बोला-“हाय चाची मर गया हाय बहुत दर्द है ये दर्द जब उठता है कोई दवा कोई चूरन असर नहीं करता। इसका इलाज तो यहाँ हो ही नही सकता इसका इलाज तो महुआ ही कर सकती है।”
चाची ने अपने अचूक चूरन का असर न होते देख पूछा- “आखिर ऐसा क्या इलाज है जो महुआ ही कर सकती है।”
अशोक कराहते हुए बोला-“हाय चाची मैं बता नहीं सकता मुझे बताने लायक बात नहीं है। हाय मर गया, बड़ा दर्द है चाची।”
चाची ने फ़िर पूछा- “मुसीबत में शर्माना नहीं चाहिये यहां मेरे सिवा और तो कोई है नहीं बता आखिर ऐसा क्या इलाज है जो महुआ ही कर सकती है।”
अशोक कराहते हुए बोला-“ चाची आप नहीं मानती तो सुनिये ये सिर्फ़ औरत से शारीरिक सम्बन्ध बनाने से जाता है अब महुआ होती तो काम बन जाता। हाय बड़ा दर्द है मर गया।”
अशोक का पेट सहलाते हुए चाची ने उसके सुगठित शरीर की मांसपेशियों बाहों की मछलियों की तरफ़ देखा और उन्हें ख्याल आया इस एकान्त मकान में वो यदि इस जवान मर्द के साथ शारीरिक सुखभोग लें तो किसी को कुछ पता नहीं चलेगा। ये सोच उनके अन्दर भी जवानी अंगड़ाइयाँ लेने लगी। वो अशोक को सान्त्वना देने के बहाने उसके और करीब आकर सहलाने गयीं यहाँ तक कि उनका शरीर अशोक के शरीर से छूने लगा वो बोलीं- “ये तो बड़ी मुसीबत है बेटा।”
चाची की आवाज थरथरा रही थी।
अशोक कराहते हुए बोला-“हाँ चाची डाक्टर ने कहा है कि इसका और कोई इलाज नहीं है।”
तभी अशोक के पेट पर सहलाता चाची का हाथ बेख्याली या जानबूझकर अशोक के लण्ड से टकराया सिहर कर चाची ने चौंककर उधर देखा, लुंगी में कुतुबमीनार की तरह खड़े उसके लण्ड के आकर का अनुमान लगा कर उसे ठीक से देखने की अपनी इच्छा को चाची के अन्दर की जवान और भूखी औरत दबा नहीं पायी और अशोक के पेट दर्द की बीमारी का नाजुक मामला उन्हें इसका माकूल मौका भी दे रहा था। सो चाची ने बीमारी के मोआयने के अन्दाज में लुन्गी हटाके उसका नाइसिल पावडर के डिब्बे के जितना लम्बा और मोटा लण्ड थाम लिया उसके आकार और मर्दानी कठोरता को महसूस कर चाची के अन्दर की जवान औरत की जवानी बुरी तरह से अंगड़ाइयाँ लेने लगी। अपनी उत्तेजना से काँपती आवाज में वे बोल उठी,-“अरे बेटा तेरा लण्ड तो खड़ा भी है क्या पेट दर्द की वजह से।”
अशोक(लण्ड अकड़ा के उभारते हुए)-“ –हाँ चाची हाय इसे छोड़ दें।”
चाची की आवाज उत्तेजना से काँपने के अलावा अब उनकी साँस भी तेज चलने लगी थी। वो अशोक के लण्ड को सहलाते हुए बोलीं- “अगर मैं हाथ से सहला के झाड़ दूँ तो क्या तेरा दर्द चला जायेगा।”
अशोक-“अरे ये ऐसी आसानी से झड़ने वाला नहीं है चाची।”
चाची ने सोचा एकान्त मकान, फ़िर ऐसी मर्दानी ताकत(आसानी से न झड़ने वाला), ऐसी सुगठित बाहों की मछलियाँ वाला गठीला मर्द, ऐसे मौके और मर्द की कल्पना तो हर औरत करती है। फ़िर उन्हें तो मुद्दतों से मर्द का साथ न मिला था, ऐसे मौके और मर्द को हाथ से निकल जाने देना तो बेवकूफ़ी होगी।
क्रमश:………………

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